UP BOARD CLASS 9TH HINDI SOLUTION CHAPTER 4 LAXMI KA SWAGAT एकांकी खण्ड

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UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI
UP BOARD CLASS 9TH HINDI SOLUTION CHAPTER 4 LAXMI KA SWAGAT एकांकी खण्ड
4- लक्ष्मी का स्वागत (उपेंद्रनाथ अश्क')


(क) लघु उत्तरीय प्रश्न लक्ष्मी का स्वागत


1- रोशन की मन:स्थिति क्या है?
उत्तर— रोशन की मन: स्थिति बड़ी खराब है ।। उसकी पत्नी का देहांत हो चुका है जिससे वह बहुत प्रेम करता था तथा उसका पुत्र डिफ्थीरिया नामक बीमारी से ग्रस्त है और अपने जीवन की अंतिम साँसें ले रहा है ।। रौशन के माता-पिता उसके दुःख को नहीं समझते व उसका विवाह कराना चाहते हैं ।। जिसके कारण वह बहुत दुःखी है ।।

2- अरुण किस रोग से पीड़ित है?
उत्तर— अरुण डिफ्थीरिया रोग से पीड़ित है ।। उसे तेज ज्वर है, साँस बहुत कष्ट से आ रही है तथा वह अचेत अवस्था में पड़ा है ।।

3- रौशन अरुण को किस डॉक्टर के पास लेकर जाता है?

उत्तर— रौशन अरुण को बाजार में डॉक्टर जीवाराम के पास लेकर जाता है ।।

4- रौशन अपने पिता के कहने पर भी लड़की वालों से आकर क्यों नहीं मिलता है? स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— रौशन अपने पिता के कहने पर भी लड़की वालों से आकर नहीं मिलता है क्योंकि वह पुनर्विवाह नहीं करना चाहता है और उसका पुत्र अरुण डिफ्थीरिया जैसी भयंकर बीमारी से ग्रस्त है ।। वह अपने जीवन की अंतिम साँसें ले रहा है, इसलिए रौशन बहुत परेशान व दु:खी है ।। इसलिए वह अपने पिता के बार-बार कहने पर भी लड़की वालों से आकर नहीं मिलता है ।।

5- ‘लक्ष्मी का स्वागत’ भावना प्रधान, मर्मस्पर्शी,सामाजिक एकांकी हैं ।। इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए ।। उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक सामाजिक एकांकी है ।। सामाजिक यथार्थ के घटनाक्रम पर आधारित इसका संपूर्ण कथानक भावनाप्रधान और अत्यंत मर्मस्पर्शी है ।। एकांकी के संपूर्ण कथानक में एक तरफ रौशन का चरित्र है जो पत्नी वियोग व पुत्र की गंभीर बीमारी के कारण परेशान व दु:खी है ।। पत्नी के देहांत के कारण वह घोर अवसाद की स्थिति में है ।।

विगत जीवन की याद आते ही उसकी मनःस्थिति अत्यंत व्यथापूर्ण हो जाती है ।। उसके दुःख की इस स्थिति में उसका मित्र उसे ढाढ़स बंधाता है, परंतु फिर भी वह भावनात्मक दृष्टि से सामान्य नहीं हो पाता है और उसे अपना वर्तमान जीवन भार लगने लगता है ।। पत्नी की मृत्यु के एक माह बाद ही उसे एक और दु:खद त्रासदी झेलनी पड़ती है, जब बीमारी के कारण उसका पुत्र मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाता है ।।

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पुत्र प्रेम के कारण उसकी मनोदशा पागलों जैसी हो जाती है और वह किसी प्रकार अपने पुत्र को बचा लेना चाहता है ।। रौशन के संवादों से उसकी व्यथा का पूर्ण आभास हो जाता है कि वह कितना दुःखी है ।। उसका चरित्र हमारे मन को उद्वेलित कर देता है और उसके प्रति करुणा व सहानुभूति की भावना जाग्रत होती है ।। दूसरी तरफ रौशन के माता-पिता का चरित्र है, जो अत्यंत निर्दयी, दहेजलोभी और कठोर हृदय लोगों में से हैं, जिनकी सभी संवेदनाएँ मर चुकी हैं ।। वे अपने पुत्र व पोते की दुःखद स्थिति से पूर्णत: उदासीन है ।।

उन्हें केवल ऐसी बहू की आवश्यकता है, जो अपने साथ बहुत सारा दहेज लेकर आए ।। उनका सारा ध्यान केवल इस बात पर है कि रौशन कब विवाह के लिए तैयार हो ।। उनकी इस मानसिकता के कारण पाठक के मन में उनके प्रति घृणा के भाव उत्पन्न होते हैं ।। इस प्रकार एक ओर पत्नी एवं पुत्र से प्रेम और दूसरी ओर धन एवं बहू की लालसा को दर्शाने वाला यह एकांकी भावनाप्रधान व अत्यंत मर्मस्पर्शी है और भारतीय समाज की यथार्थ मानसिकता का स्पष्ट बोध कराता है ।।

6- ‘गिरेहुए मकान की नींव पर ही दूसरा मकान खड़ा होता है’ यह कथन किसका है?
उत्तर— ‘गिरे हुए मकान की नींव पर ही दूसरा मकान खड़ा होता है’ यह कथन रौशन की माँ का है, जो वह रौशन के मित्र सुरेंद्र से कहती है क्योंकि वह रौशन का दूसरा विवाह कराना चाहती है और उसे सामाजिक रीति-रिवाजों की चिंता है ।। इसीलिए वह सुरेंद्र के सामने रामप्रसाद का उदाहरण देकर रौशन को विवाह के लिए तैयार करने को भी कहती है ।।

7- ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी का क्या उद्देश्य है? एकांकीकार को इसकी पूर्ति में कहाँ तक सफलता मिली है? अपने शब्दों में बताइए ।।


उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ उपेंद्रनाथ अश्क’ द्वारा रचित पर्याप्त चर्चित एकांकी है ।। इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है- पुनर्विवाह की समस्या ।। रौशन की पत्नी सरला की एक माह पूर्व मृत्यु हो चुकी है और उसके माता-पिता उसका शीघ्र विवाह करा देना चाहते हैं, क्योंकि “अभी तो चार नाते आते हैं, फिर देर हो गई तो इधर कोई मुँह भी न करेगा ।।” प्रमुख उद्देश्य के साथ-साथ कतिपय गौण उद्देश्य भी देखे जा सकते हैं; जैसे- दूषित सामाजिक मान्यताओं व रीति-नीति का चित्रण, मानव की हृदयहीनता व धन-लिप्सा आदि ।।

इस एकांकी में ‘अश्क’ जी ने रौशन की माँ के माध्यम से समाज की परंपराओं, रीति-नीति व मान्यताओं का उल्लेख किया है ।। रौशन के पुनर्विवाह का समर्थन करती हुई वह रोशन से कहती है कि-“तुम्हारे पिता ने भी तो पहली पत्नी की मृत्यु के दूसरे महीने ही विवाह कर लिया था ।।” ।। सामाजिक रीति-रिवाजों के मूल में ‘मानव की हृदयहीनता और क्रूरता के दर्शन होते हैं ।। जब रौशन के माता-पिता उसके पुत्र अरुण की बीमारी की ओर ध्यान न देकर सियालकोट से आने वाले बड़े व्यापारी के रिश्ते के स्वागत में लग जाते हैं ।। रौशन अपने मित्र सुरेंद्र से स्पष्ट कहता है कि सब लोग अरुण की मृत्यु चाहते हैं ।। वह डॉक्टर से भी कहता है-“आप नहीं जानते डॉक्टर साहब, ये सब पत्थर दिल हैं ।।

” मानव की क्रूरता का प्रमुख कारण धन-लिप्सा है ।। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण रौशन के पिता हैं ।। रौशन के विवाह के लिए बार-बार मना करने पर भी वे अंत में शगुन ले लेते हैं और कहते हैं कि-“घर आई लक्ष्मी का निरादर नहीं कर सकता ।।”
प्रस्तुत एकांकी में ‘अश्क’ जी ने यथार्थ का सशक्त चित्रण कर मनुष्य की धन-लिप्सा पर कठोर व्यंग्य किया है ।। इस प्रकार ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एक सोद्देश्य रचना है और एकांकीकार अपने उद्देश्यों की पूर्ति में पूर्ण रूप से सफल रहा है ।।

8- ‘लक्ष्मी का स्वागत’ शीर्षक कहाँ तक उपयुक्त है? क्या यह शीर्षक बिल्कुल सही है? इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए ।।


उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी का शीर्षक रोचक, सटीक एवं कथावस्तु से संबंधित है ।। एकांकी का संपूर्ण कथानक दहेज में धन प्राप्त करने की मानसिकता पर आधारित है ।। लक्ष्मी का स्वागत हर घर में होता है, किंतु इस धनरूपी लक्ष्मी के स्वागत में माता-पिता अपनी वास्तविक लक्ष्मी अर्थात् बहू को कैसे भूल जाते हैं, इसका वास्तविक चित्रण इस एकांकी के शीर्षक को सार्थक करता है ।।

धन की लिप्सा के कारण रौशन के माता-पिता उसका दुःख नहीं समझते और उसके प्रति सहानुभूति रखने की जगह, उसे विवाह के लिए तैयार करने में लगे हुए हैं, क्योंकि नया रिश्ता लाने वाले लोग धनवान हैं और उन्हें अधिक दहेज मिलने की संभावना है ।। इसलिए वे घर में आती हुई लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए अपना संपूर्ण प्रयास करते दिखाई पड़ते हैं ।। इस प्रकार इस एकांकी का शीर्षक उपयुक्त एवं सार्थक है ।।

9- रौशन के पिता के विचारों के संबंध में अपनी सहमति या असहमति पर टिप्पणी लिखिए ।।


उत्तर— रौशन के पिता के विचारों से हम पूर्णरूप से असहमत हैं ।। रौशन का पिता एक स्वार्थी व धन-लोलुप व्यक्ति है ।। रौशन की पत्नी का देहांत होते ही वह उसके पुनर्विवाह की तैयारी में लग जाता है ।। रौशन की मन:स्थिति की उसे कोई परवाह नहीं है ।। उसका पुत्र युवा है ।। विवाह व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का प्रश्न होता है, अत: इसके निर्णय का अधिकार संतान के पास ही सुरक्षित रहना चाहिए, परंतु रौशन का पिता उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करता है और विवाह के विषय में उसकी सहमति को आवश्यक नहीं समझता ।।

रौशन के पिता में मानवता विद्यमान नहीं है ।। वह अपने पोते की बीमारी की पूर्णरूप से उपेक्षा करता है और केवल धनी व्यापारी परिवार से शगुन लेने की चिंता में व्यस्त रहता है ।। भाषी को भारी वर्षा में डॉक्टर के यहाँ जाता देखकर तथा डॉक्टर को आते देख भी उसके मन में अपने पोते के प्रति करुणा के भाव जाग्रत नहीं होते ।। वह अरुण की मरणासन्न अवस्था में भी रौशन को खरी-खोटी सुनाकर उससे विवाह के लिए ‘हाँ’ करवाने की कोशिश करता है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रौशन के पिता के विचार पूर्णतः स्वार्थ केंद्रित और अमानवीयता पर आधारित हैं ।। ऐसे व्यक्ति के विचारों से कोई भी सहृदय व्यक्ति सहमत नहीं हो सकता ।।

(ख) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न ।।

1- ‘लक्ष्मी का स्वागत’एकांकी की कथा संक्षेप में लिखिए ।।
उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ द्वारा लिखित सामाजिक विद्रूपताओं पर चोट करने वाली एक सशक्त रचना है ।। इस एकांकी की कथावस्तु पारिवारिक होते हुए भी दूषित सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं की ओर संकेत करती है और आज के मनुष्य की धन-लोलुपता, स्वार्थ-भावना, हृदयहीनता तथा क्रूरता का यथार्थ रूप प्रस्तुत करती है ।। एकांकी की कथावस्तु निम्नवत् है-

जिला जालंधर के इलाके में मध्यम श्रेणी के मकान के दालान में सुबह के नौ-दस बजे बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही है ।। मध्यम श्रेणी परिवार का सदस्य रौशन अपने पुत्र अरुण की बढ़ती बीमारी से बहुत दुःखी है ।। वह बार-बार अपने पुत्र की नाजुक स्थिति को देखकर घबरा जाता है ।। उसकी पत्नी सरला का देहांत एक माह पूर्व हो चुका है ।। उसके दुःख को वह भूल भी नहीं पाता कि उसका पुत्र डीफ्थीरिया (गले का संक्रामक रोग) से पीड़ित हो गया ।।

उसकी स्थिति प्रतिक्षण बिगड़ती जा रही है ।। वह अपने भाई भाषी को डॉक्टर को लेने भेजता है ।। उसका मित्र सुरेंद्र उसे हिम्मत बँधाता है परंतु बाहर के मौसम को देखकर उसका मन डरा हुआ है ।। वह सुरेंद्र से कहता है कि – “मेरा दिल डर रहा है सुरेंद्र, कहीं अपनी मां की तरह अरुण भी मुझे धोखा न दे जाएगा?” डॉक्टर आकर बताता है कि अरुण की हालत बहुत खराब है ।।

वह इंजेक्शन दे देता है और गले में पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद दवाई की दो चार बूंदे डालते रहने की सलाह देता है ।। वह रौशन को भगवान पर भरोसा रखने को कहता है ।। इसी बीच सियालकोट के व्यापारी रौशन के लिए रिश्ता लेकर आते हैं ।। रौशन की माँ आकर उससे मिलने के लिए कहती है ।। वह रौशन के मित्र सुरेंद्र से उसे समझाने को कहती है कि वह रौशन को समझाकर ले आए ।। परंतु सुरेंद्र अरुण की बीमारी के कारण अपनी असमर्थता जताता है ।।

पुत्र-प्रेम में रौशन पागल-सा हो जाता है और अपनी माँ को रिश्ते वालों को वापस लौटा देने को कहता है ।। रौशन की माँ पुनर्विवाह का समर्थन करते हए उसे रामप्रसाद व उसके पिता का उदाहरण देती है ।। तभी रौशन का पिता आता है और अरुण की बीमारी को बहानेबाजी बताता है क्योंकि रौशन सियालकोट वालों से नहीं मिलना चाहता और रौशन को आवाज लगाकर सियालकोट वालों से मिलने को कहता है ।। रौशन के इंकार पर वह शगुन लेने को कहता है कि मै घर आई लक्ष्मी का निरादर नहीं कर सकता ।।

रौशन का पिता उसकी माँ से कहता है कि मैंने पता लगा लिया है कि सियालकोट में इनकी बड़ी भारी फर्म है और इनके यहाँ हजारों का लेन-देन है ।। रौशन के पिता शगुन लेने चले जाते हैं और सुरेंद्र रौशन की माँ से दीये का प्रबंध करने को कहता है क्योंकि अरुण संसार से जा रहा है ।। फानूस टूटकर गिर जाता है ।। अंत में रौशन के पिता शगुन लेकर माँ को बधाई देने आते हैं ।। इसी समय अरुण संसार से विदा लेता है और रौशन मृत बालक का शव लिए आता है ।। रौशन के पिता के हाथ से हुक्का गिर जाता है और माँ चीख मारकर धम्म से सिर थामे बैठ जाती है ।।
सुरेंद्र के संवाद-” माँजी, जाकर दाने लाओ और दीये का प्रबंध करो’ के साथ एकांकी का समापन होता है ।।

2- ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी की स्त्री पात्र (रौशन की माँ )का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।


उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी में रौशन की माँ प्रमुख पात्रों में से है ।। वह एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार की नारी है ।। वह उस महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जो अशिक्षित, अहकेंद्रित तथा दकियानूसी प्रौढ़ा है ।। उसका विचार है कि सरला की मृत्यु के बाद रौशन को शीघ्र विवाह कर लेना चाहिए ।।

उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं हैं(अ) रुढ़िवादी एवं व्यावहारिक- रौशन की माँ पूर्णत: रुढ़िवादी और व्यावहारिक है ।। इसलिए वह रौशन को रामप्रसाद का उदाहरण देकर समझाती है कि उसे भी रामप्रसाद की तरह शीघ्र विवाह कर लेना चाहिए, क्योंकि “अभी तो चार नाते आते हैं फिर देर हो गई तो इधर कोई मुँह भी न करेगा ।।” फिर उसके पिता ने भी पहली पत्नी की मृत्यु के दूसरे महीने ही विवाह कर लिया था ।।


(ब) वाचाल- रौशन की माँ समय और स्थिति की गंभीरता को न देखते हुए कटु वाक्य बोलती ही रहती है ।। पोते की गंभीर स्थिति भी उसे बोलने से नहीं रोक पाती ।। वह अपने भाव निरंतर प्रकट करती रहती है तथा अपना निर्णय पुत्र पर थोपना चाहती है ।।

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(स) दूरदर्शी- रौशन की माँ के कथनों से उसकी दूरदर्शिता प्रदर्शित होती है ।। वह रौशन का विवाह इसलिए शीघ्र करा देना चाहती है कि यदि देर हो गई तो-“लोग सौ-सौ लांछन लगाएँगे और फिर कौन ऐसा क्वाँरा है ।।” वह सुरेंद्र से भी रौशन को समझाने को कहती है ।। सुरेंद्र के कहने पर कि ‘तुम्हारा रौशन बिन ब्याहा न रहेगा’ पर वह स्पष्ट कहती है कि ‘सियालकोट वाले भले आदमी हैं, लड़की अच्छी, सुशील, सुंदर व पढ़ी-लिखी है ।। इसलिए अच्छा रिश्ता लेने में चूक नहीं करनी चाहिए ।।’

(द) ताने और व्यंग्य से परिपूर्ण- रौशन की माँ अपने समय और काम की चर्चा करके सदा ताने देने और व्यंग्य करने में लीन दिखाई पड़ती है ।। उसे अपनी घुट्टी व हकीम की दवाई पर ही विश्वास है ।। इसलिए डॉक्टर के आने पर वह सुरेंद्र से कहती है-“हमने तो बाबा, बोलना ही छोड़ दिया है ।। ये डॉक्टर जोन करें,थोड़ा है ।।” बच्चे की बीमारी पर वह कहती है, अरे जरा ज्वर है, छाती जम गई होगी ।। बस, मैं घुट्टी दे देती तो ठीक हो जाता, पर मुझे कोई हाथ लगाने दे तब न! हमें तो वह कहता है, बच्चे से प्यार ही नहीं ।।” ।।


(य) अनिश्चित मानसिकता- रौशन की माँ अनिश्चित मानसिकता की महिला है ।। सियालकोट वालों को देखकर वह खुश होती है ।। वह रौशन को बुलाकर विवाह के लिए स्वीकृति देने के लिए समझाती है, परंतु रौशन के क्रोध करने पर वह कहती है-“हम तुम्हारे ही लाभ की बात कर रहे हैं ।।” बच्चे की बिगड़ती स्थिति को देखकर वह चिंतित हो जाती है ।। वह रौशन के पिता से कहती है- “ वह तो बात भी नहीं सुनता, जाने बच्चे की तबियत बहुत खराब है ।।” उसे दूसरी चिंता रिश्ते वालों की होती है ।। वह कहती है-

“बहू की बीमारी का पूछते होंगे ।।”” बच्चे को पूछते होंगे ।।”

अरुण की मृत्यु पर वह ‘मेरा लाल’ कहकर और चीख मारकर सिर थामे धम से बैठ जाती है ।।

(र) चरित्र में स्वाभाविकता- रौशन की माँ के चरित्र में शुरू से अंत तक स्वाभाविकता विद्यमान है ।। घर की बड़ी
बूढ़ी महिला जिस स्वभाव की होती है और जैसी बातचीत करती है, रौशन की माँ उसका अनुपम उदाहरण है ।। निष्कर्ष रूप में रौशन की माँ का चरित्र प्रभावशाली एवं परिस्थितियों के अनुरूप चित्रित किया गया है ।। एकांकीकार ने माँ के चरित्र में मनौवैज्ञानिक दृष्टि से यथार्थता व स्वाभाविकता का समावेश किया है ।।

3- उपेंद्रनाथ अश्क जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।।


उत्तर— जीवन परिचय- हिंदी के समर्थ नाटककार उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ का जन्म 14 दिसंबर सन् 1910 ई-को पंजाब के जालंधर नामक नगर के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।। अश्क जी का प्रारंभिक जीवन गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहा ।। आप गंभीर रूप से अस्वस्थ रहे और राजयक्ष्मा जैसे रोग से संघर्ष किया ।। जालंधर में प्रारंभिक शिक्षा लेते समय 11 वर्ष की आयु से ही वे पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे ।। कला स्नातक होने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया तथा विधि की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास की ।।

अश्क जी ने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू लेखक के रूप में शुरू किया था किंतु बाद में वे हिंदी के लेखक के रूप में ही जाने गए ।। 1932 में मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर उन्होंने हिंदी में लिखना आरंभ किया ।। 1933 में उनका दूसरा कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका मुंशी प्रेमचंद ने लिखी ।। उनका पहला काव्य संग्रह ‘प्रातः प्रदीप’ 1938 में प्रकाशित हुआ ।। बंबई प्रवास में आपने फिल्मों की कहानियाँ, पटकथाएँ, संवाद और गीत लिखे, तीन फिल्मों में काम भी किया किंतु चमक-दमक वाली जिंदगी उन्हें रास नहीं आई ।।


19 जनवरी 1996 को अश्क जी चिरनिद्रा में लीन हो गए ।। प्रकाशित रचनाएँउपन्यास- गिरती दीवारें, शहर में घूमता आईना, गर्म राख, सितारों के खेल आदि कहानी संग्रह- सत्तर श्रेष्ठ कहानियाँ, जुदाई की शाम के गीत, काले साहब, पिंजरा आदि नाटक- लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी, जय-पराजय, अलग-अलग रास्ते आदि एकांकी संग्रह- अश्क जी द्वारा लिखित एकांकियों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है

(क) सामाजिक व्यंग्य- लक्ष्मी का स्वागत, अधिकार का रक्षक, पापी, मोहब्बत, विवाह के दिन, जोंक, आपस का समझौता, स्वर्ग की झलक, क्रॉसवर्ड पहेली आदि ।।
(ख) प्रतीकात्मक तथा सांकेतिक- अंधी गली, चरवाहे, चुंबक, चिलमन, मैमूना, देवताओं की छाया में, चमत्कार, सूखी डाली, खिड़की आदि ।।


(ग) प्रहसन तथा मनोवैज्ञानिक- मुखड़ा बदल गया, अंजो दीदी, आदिमार्ग, भँवर, तूफान से पहले, कैसा साब कैसी आया, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, सयाना मालिक, बतसिया, जीवन साथी, साहब को जुकाम है आदि ।। काव्य- एक दिन आकाश ने कहा, प्रातः प्रदीप, दीप जलेगा, बरगद की बेटी, उर्मियाँ आदि संस्मरण- मंटो मेरा दुश्मन, फिल्मी जीवन की झलकियाँ ।।
आलोचना-अन्वेषण की सहयात्रा, हिंदी कहानी-एक अंतरंग परिचय

4- कितनी आयु में उपेंद्र जी ने पंजाबी में तुकबंदियाँशुरू कर दी थी?
उत्तर— उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ जी ने सामाजिक, मनोवैज्ञानिक व प्रतीकात्मक एकांकियों का सृजन किया है ।। अश्क जी का जन्म जालंधर नामक नगर में हुआ ।। प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करते हए ‘अश्क’ जी ने जालंधर में 11 वर्ष की आयु से ही पंजाबी में तुकबंदियाँ करनी शुरू कर दी थी ।। यहीं से उपेंद्र जी का साहित्य सफर शुरू हुआ ।। अश्क जी ने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा ।।


5- उपेंद्र जी को किस-किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?


उत्तर— उपेंद्र जी हिंदी साहित्य के महान लेखक थे ।। इन्हें 1965 ई-में ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त हुआ ।। सन् 1972 ई- में अश्क जी को ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया तथा सन् 1974 ई-में हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘साहित्य वारिधि’ से पुरस्कृत किया गया ।।

6- ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी में किस पात्र का चरित्र आपकी दृष्टि में अधिक अच्छा है? उसके चारित्रिक गुणों को अपने शब्दों में लिखिए ।।


उत्तर— ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी के मुख्य पात्र रौशन का चरित्र हमारी दृष्टि में अधिक अच्छा प्रतीत होता है ।। वह एक निर्दयी परिवार का स्नेही सदस्य है ।। जिसका पुत्र डिफ्थीरिया से पीड़ित है ।। इसकी पत्नी की एक माह पूर्व मृत्यु हो चुकी है ।। इसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं


(अ) दुःखी व निराश- रौशन अपने पुत्र अरुण की बीमारी से अत्यधिक खिन्न एवं निराश है ।। बच्चे का बुखार से गर्म शरीर, लाल आँखें, रुकती हुई साँसें उसे बहुत दुःखी कर रहे हैं ।। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद वह पुत्र में ही पत्नी को देखता है ।। वह अरुण की गिरती तबियत को देखकर दुःखी होता हुआ सुरेंद्र से कहता है,-


“यह मामूली ज्वर नहीं है, गले का कष्ट साधारण नहीं——-मेरा दिल डर रहा है सुरेंद्र, कहीं अपनी माँ की तरह अरुण भी तो मुझे धोखा नदे जाएगा ।।”

(ब) भावुक व स्नेहशील- रौशन भावुक व कोमल हृदय वाला युवक है ।। उसे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम था ।। पत्नी की मृत्यु से परेशान, दूसरे विवाह की बात सुनकर वह बहुत व्यथित हो जाता है ।। वह सुरेंद्र से कहता है-“जो मर जाती है, वह भी किसी की लड़की होती है, किसी के लाड़-प्यार में पली होती है, फिर–” अपनी पत्नी के बाद वह अपने पुत्र को माँ के समान पूर्ण प्रेम, सुरक्षा व आत्मीयता देता है ।।

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उसकी बीमारी में वह उसकी देखभाल बड़ी सावधानी व तत्परता से करता है ।। अरुण की बीमारी में जब डॉक्टर व सुरेंद्र भगवान पर भरोसा रखने को कहते हैं, तब वह कहता है- “मुझे उस पर कोई विश्वास नहीं रहा ।। उसका कोई भरोसा नहीं-निर्मम और क्रूर ।। उसका काम सताए हुओं को और सताना है, जले हुओं को और जलाना है ।।”

(स) माता-पिता द्वारा शासित- रौशन एक समझदार युवक है, किंतु वह अपने माता-पिता को अपनी मनमानी करने से नहीं रोक पाता है ।। वह पुनर्विवाह नहीं करना चाहता, किंतु उसके माता-पिता उसकी इच्छा की कोई परवाह नहीं करते ।। क्योंकि वे जानते हैं कि रौशन कोमल हृदय एवं संवेदनशील है ।। वह उनकी बातों के विरोध का साहस नहीं करेगा ।।


(द) मानवीय गुणों से पूर्ण- रौशन में सभी मानवीय गुण विद्यमान हैं ।। रौशन के माता-पिता जितने दकियानूसी, लोभी व कठोर हैं, वह उतना ही अधिक दयावान, प्रगतिशील व संवेदनशील है ।। वह अपने पुत्र से बहुत प्रेम करता है तथा अपनी पत्नी को भी बार-बार याद करता है ।। वह अपने पिता होने के फर्ज को पूरी निष्ठा से निभाता है ।। उसकी माँ विवाह के लिए पिता का उदाहरण देने पर वह कठोर शब्द कहते हुए रुक जाता है तथा कहता है
“वे—————-माँ, जाओ, मैं क्या कहने लगा था ।।”


(य) तार्किक- रौशन एक तर्कशील युवा है ।। अपनी माँ द्वारा रामप्रसाद का उदाहरण दिए जाने पर वह तर्क देता है “तुम रामप्रसाद से मुझे मिलाती हो! अनपढ़, अशिक्षित, गँवार! उसके दिल कहाँ है? महसूस करने का माद्दा कहाँ है? वह जानवर है ।।”

(र) अविचल एवं दृढ़-रौशन अपने विचारों व निर्णयों में अविचल एवं दृढ़ रहने वाला है ।। माँ के बार-बार कहने पर भी वह सियालकोट वालों के रिश्ते का समर्थन नहीं करता और उनके सामने नहीं जाता ।। वह माँ से कहता है”उनसे कहो-जहाँ से आए हैं, वहीं चले जाएँ ।।” इतना ही नहीं पिता के बुलाने पर भी वह कहता है- “मेरे पास समय नहीं है!—–मैं नहीं जा सकता ।।”


(ल) परंपरागत मान्यताओं का विरोधी- रौशन को परंपरागत नीति-रीति अथवा मान्यताओं में कोई विश्वास नहीं है ।। सुरेंद्र के विवाह के बारे में कहने पर कि यह तो दुनिया की रीत है वह कहता है, “दुनिया की रीत इतनी निष्ठुर, इतनी निर्मम, इतनी क्रूर?” बच्चे की बीमारी में भी उसे माँ की घुट्टी पर जरा भी यकीन नहीं है वह तो आजकल की चिकित्सा पद्धति पर विश्वास करता है ।। वस्तुतः रौशन शिक्षित युवक होने के साथ-साथ समझदार, भावुक, आदर्श पिता, सज्जन पति, विवेकी, सभ्य तथा दुषित मान्यताओं का विरोधी है ।। इसके द्वारा ‘अश्क’ जी ने समाज की परंपरागत मान्यताओं के प्रति विद्रोह प्रदर्शित किया है ।।


7- एकांकी के तत्वों के आधार पर लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी की समीक्षा कीजिए ।।


उत्तर— यह एकांकी उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ की एक सामाजिक एकांकी है ।। इस एकांकी में इन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परंपराओं का सहारा लेकर मनुष्य की अपनी स्वार्थ सिद्धि को चित्रित किया है ।।

(अ) कथावस्तु- प्रस्तुत एकांकी की कथावस्तु जिला जालंधर के एक मध्यमवर्गीय परिवार की है ।। कथावस्तु का प्रसार मुख्य पात्र रौशन के विधुर होने तथा उसके पुत्र अरुण की गंभीर बीमारी से आरंभ होकर उसकी मृत्यु के बाद उसके नए विवाह के प्रस्ताव की स्वीकृति तक होता है ।। जो पाठकों को मर्मस्पर्शी पीड़ा से भर देता है ।।


(ब) स्वाभाविक विकास- कथा का स्वाभाविक विकास होता है ।। जिस पुनर्विवाह की समस्या को एकांकीकार ने उठाया है उसे एक दूषित सामाजिक मान्यता बनाकर प्रस्तुत किया गया है ।। कथा का आरंभ रौशन की पत्नी-वियोग के कारण दुःखद स्थिति तथा पुत्र की बीमारी की चिंता से होता है ।। अपने पुत्र के प्रति इधर रौशन की चिंता का बढ़ना व दूसरी ओर उसके माता-पिता के उसके नए विवाह के तीव्रतर प्रयासों से कथा विकसित होती है ।।

(स) चरम सीमा- डॉक्टर के प्रयासों के उपरांत भी अरुण की बिगड़ती हुई हालत और उसकी स्थिति की उपेक्षा कर उसके दादा-दादी का उसके पिता के विवाह पर विचार-विमर्श करना इस एकांकी की चरमसीमा है ।।

(द) अंत- अंत में अरुण मर जाता है तथा उसके दादा-दादी उसके पिता के विवाह का शगुन लेकर खुशी से फूले नहीं समाते ।। दहेजरूपी लोभ के प्रति मानवता की इस संवेदन-शून्यता की कल्पना भी पाठक को असह्य होती है और इस घृणित सत्य को पाठक की आत्मा यथार्थरूप में परख लेती है ।।

(य) सरल भाषा व संवाद- एकांकी में छोटे संवाद व सरल भाषा का प्रयोग किया गया है ।। अभिनेयता की दृष्टि से यह उपयुक्त है, जिससे अभिनेताओं को विचार सम्प्रेषण में कोई परेशानी न हो ।। कहीं-कहीं रौशन व माँ के कथन बड़े अवश्य हैं, जो परिस्थिति के अनुरूप हैं ।।


(र) संकलन-त्रय- समय, स्थान और कार्य (संकलन-त्रय) का निर्वाह सुंदर ढंग से किया गया है ।। ‘अश्क’ जी ने एकांकी के प्रारंभ में ही बता दिया है कि- स्थान जालंधर के इलाके में मध्यम श्रेणी के मकान का दलान समयसुबह के नौ-दस बजे, कार्य- बच्चे की बीमारी व पिता के द्वारा विधुर पुत्र के विवाह की तैयारी ।। अतः एकांकी संघटन की दष्टि से यह एक सफल एकांकी है ।। यह एकांकी मंच और रेडियों दोनों के लिए उपयक्त है ।। इस पर पाश्चात्य शैली का प्रभाव है, जिसका कथानक सहज, यथार्थवादी व प्रभावशाली तथा अंत दु:खांत है ।।

(ग) वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1- रौशन का पुत्र किस रोग से पीड़ित था?
(अ) मलेरिया (ब) तपेदिक (स) डिफ्थीरिया (द) पेचिश

2- रौशन के माता-पिता उसकी दूसरी शादी करना चाहते थे; क्योंकि


(अ) अच्छा खासा दहेज मिल सके (ब) मान-सम्मान मिल सके
(स) बीमार बच्चे की देखभाल हो सके (द) इनमें से कोई नहीं

3- रौशन दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं था; क्योंकि

(अ) उसके माता-पिता बीमार थे ।।
(ब) उसका पुत्र बीमार था ।।

(स) वह अपनी पत्नी से प्यार करता था ।।
(द) घर आती लक्ष्मी से उसे कोई मोह नहीं था ।।

4- रौशन की माँ के कहने पर भी सुरेंद्र,रौशन से उसके पुनर्विवाह की बात नहीं करता; क्योंकि
१) वह स्वयं अपना विवाह करना चाहता है ।।
(ब) वह नहीं चाहता कि रौशन का पुनर्विवाह हो ।।
(स) सुरेंद्र अपने मित्र के दर्द को समझता है ।।
(द) उपर्युक्त सभी विकल्प सत्य

5- रौशन के पिता, पुत्र के विरोध करने पर भी शगुन लेने को राजी क्यों हो गए?
(अ) उन्हें अपने पुत्र से बहुत ज्यादा प्यार था ।।
(ब) पैसा ही उनके लिए सर्वोपरि था ।।
(स) बच्चे के पालन-पोषण हेतु माँ की जरूरत थी ।।
(द) उनकी संवेदनाएँ मर चुकी थीं ।।

6- माँ के अनुसार सियालकोट के व्यापारी रौशन के लिए किस दिन अपनी लड़की का शगुन लेकर आए थे?
(अ) पिछले मंगलवार को
(ब) जब सरला का चौथा हुआ था ।।
(स) फुलेरा दूज के दिन
(द) उपर्युक्त सभी विकल्प सत्य

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