UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 3 DOHE RAHEEM पाठ 3 दोहे रहीम

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पाठ 3 -- दोहे ( रहीम) kaa सम्पूर्ण हल 


(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न


1– रहीम किस प्रकार के कवि माने जाते हैं ?
उत्तर —- रहीम भारतीय सांस्कृतिक समन्वय का आदर्श प्रस्तुत करने वाले मर्मी कवि माने जाते हैं।
2– मुसलमान होते हुए भी रहीम ने अपने काव्य में किन ग्रंथों को उदाहरण के लिए चुना ?
उत्तर —- मुसलमान होते हुए भी रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना।
3– रहीम का जन्म कब और कहाँ हुआ था ? इनके पिता का क्या नाम था ?
उत्तर —- रहीम का जन्म सन् 1556 ई–में लाहौर में हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम खाँ था।
4– रहीम का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर —- रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था।
5– अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध अकबर के नवरत्न का नाम बताइए।
उत्तर —- अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध अकबर के नवरत्न अब्दुर्रहीम खानखाना थे।
6– अकबर ने रहीम को किस उपाधि से विभूषित किया ?
उत्तर —- अकबर ने रहीम को ‘खानखाना’ की उपाधि से विभूषित किया।
7– रहीम की बरवै छंद पर आधारित रचना का नाम लिखिए।
उत्तर —- रहीम की बरवै छंद पर आधारित रचना ‘बरवै नायिका-भेद वर्णन’ है।
8– अकबर ने रहीम को किस प्रमुख पद पर नियुक्त किया ?
उत्तर —- अकबर ने रहीम को दरबार के प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज के पद पर नियुक्त किया।
9– ‘सोरठा’छंद में रचित रहीम की कौन-सी रचना है ?
उत्तर —- ‘सोरठा’ छंद में रचित रहीम की रचना ‘शृंगार-सोरठा’ है।
10– रहीम ने कौन-सी भाषा-शैली का प्रयोग अपने काव्य में किया है ?
उत्तर —- रहीम ने अपने काव्य में अवधी व ब्रजभाषा और मुक्तक शैली का प्रयोग किया है।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न


1– बुरी संगति का प्रभाव कैसे व्यक्तियों पर नहीं होता है ?
उत्तर —- जो व्यक्ति उत्तम स्वभाव और दृढ़ चरित्र वाले होते हैं, ऐसे व्यक्तियों पर बुरी संगति का प्रभाव नहीं होता है।
2– हमें कैसे व्यक्ति को बार-बार मनाना चाहिए ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर —- हमें सज्जन व्यक्ति को बार-बार मनाना चाहिए। यदि वे सौ बार भी नाराज हों तो उन्हें सौ बार भी मना लेना चाहिए। जैसे
सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर उसे बार-बार पिरोया जाता है।
3– रहीम ने सच्चे मित्र की क्या पहचान बताई है ?
उत्तर —- रहीम के अनुसार सच्चे मित्र वे होते हैं, जो विपत्ति की कसौटी पर सदा खरे उतरते हैं अर्थात विपत्ति में भी मित्र का साथ
निभाते हैं। UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 2 PADAWALI MEERABAI पाठ 2 पदावली मीराबाई
4– नेत्रों से निकलने वाले आँसू क्या करते हैं ?
उत्तर —- नेत्रों से निकलने वाले आँसू, नेत्रों से निकलते ही मन के सारे दुःख को प्रकट कर देते हैं।
5– ‘जुरै गाँठ परि जाय’ के द्वारा रहीम ने प्रेम संबंधों की किस विशेषता को बताया है ?
उत्तर —- ‘जुरै गाँव परि जाय’ के द्वारा रहीम ने प्रेम संबंधों की नाजुकता के बारे में बताया है। जिस प्रकार धागा टूटने पर जुड़ता नहीं है और यदि जुड़ भी जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम संबंधों के टूटने पर उसका जुड़ना कठिन होता है। इसको जोड़ने का प्रयास करने पर भी इसमें अंतर अवश्य आ जाता है।
6– ‘जहाँ काम आवै सुई, कहा करैतरवारि’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर —- इस पंक्ति के माध्यम से कवि समझाना चाहता है कि बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों का निरादर नहीं करना चाहिए।
उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए; क्योंकि जिस स्थान पर सुई काम आती है, उस स्थान पर तलवार काम नहीं आ
सकती।
7– हमें कैसे लोगों से न तो मित्रता करनी चाहिए और नही शत्रुता ?
उत्तर —- हमें तुच्छ विचार वाले अर्थात् नीच मनुष्य से प्रेम और द्वेष नहीं करना चाहिए, उससे किसी भी प्रकार से संबंध नहीं रखना चाहिए; क्योंकि उससे दोनों ही प्रकार से हानि होने की संभावना रहती है।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न


1– रहीम के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर —- नवाब अब्दुर्रहीम खानखाना मध्यकालीन भारत के कुशल राजनीतिवेत्ता, वीर बहादुर योद्धा और भारतीय सांस्कृतिक समन्वय का आदर्श प्रस्तुत करने वाले मर्मी कवि माने जाते हैं। उनकी गिनती विगत चार शताब्दियों से ऐतिहासिक पुरुष के अलावा भारत माता के सच्चे सपूत के रूप में की जाती रही है। आपके अंदर वह सब गुण मौजूद थे, जो महापुरुषों में पाए जाते हैं। आप ऐसे सौ भाग्यशाली व्यक्तियों में से थे, जो अपनी उभयविध लोकप्रियता के कारण केवल ऐतिहासिक न होकर भारतीय जनजीवन के अमिट पृष्ठों पर यश शरीर से भी जीवित पाए जाते हैं। एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर आपने जो मार्मिक तथ्य अंकित किए थे, वे आपकी विशाल हृदयता का परिचय देते हैं। हिंदू देवीदेवताओं, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है।

रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवन व्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो सामाजिक सौहार्द एवं भारतीय संस्कृति की झलक को पेश करता है, जिसमें विभिन्नता में भी एकता की बात की गई है। जन्म परिचय- अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म संवत् 1613 (सन् 1556) में इतिहास प्रसिद्ध बैरम खाँ के घर लाहौर में हुआ था। संयोग से उस समय सम्राट हुमायूँ सिकंदर सूरी के आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। बैरम खाँ के घर पुत्र की उत्पति की खबर सुनकर वे स्वयं वहाँ गए और उस बच्चे का नाम रहीम’ रखा। रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। एक बार अकबर इनके पिता बैरम खाँ से नाराज हो गए। विद्रोह का आरोप लगाते हुए बैरम खाँ को हज करने मक्का भेज दिया। उनके शत्रु मुबारक खाँ द्वारा बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। अकबर ने ही रहीम की शिक्षा का प्रबंध किया।

रहीम ने तुर्की, अरबी, फारसी, हिंदी व संस्कृत आदि भाषाओं का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया। इनकी योग्यता से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें ‘नवरत्नों’ में स्थान दिया। रहीम का विवाह- रहीम की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात सम्राट अकबर ने अपने पिता हुमायूँ की परंपरा का निर्वाह करते हए, रहीम का विवाह बैरमखाँ के विरोधी मिर्जा अजीज कोका की बहन माहबानों से करवा दिया। इस विवाह में भी अकबर ने वही किया, जो पहले करता आ रहा था कि विवाह के संबंधों के बदौलत आपसी तनाव व पुरानी से पुरानी कटुता को समाप्त कर दिया करता था। रहीम के विवाह से बैरम खाँ और मिर्जा के बीच चली आ रही पुरानी रंजिश खत्म हो गई। रहीम का विवाह लगभग सोलह साल की उम्र में कर दिया गया था।


मीर अर्ज का पद- अकबर के दरबार के प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातोंरात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिए जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो-तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम-काज सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने सच्चे व विश्वासपात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रूप से विश्वसनीय है। रहीम दानशील व उदार हृदय के साथ-साथ मृदु स्वभाव के भी थे। अकबर के दरबारी कवि गंग के एक छंद से प्रसन्न होकर इन्होंने उसे 36 लाख रुपये पुरस्कार में दिए। अकबर ने इन्हें ‘खानखाना’ की उपाधि से विभूषित किया। रहीम का अंतिम जीवन कष्टमय रहा। सन् 1627 ई–में रहीम इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए।

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रचनाएँ—(अ) बरवै नायिका-भेद वर्णन- यह नायक-नायिका भेद पर लिखित हिंदी का पहला काव्य-ग्रंथ माना जाता है। यह
श्रृंगार प्रधान है। इसकी रचना बरवै छंद में की गई है। इसमें 115 छंद हैं।
(ब) श्रृंगार -सोरठा- यह काव्य-रचना भी शृंगार प्रधान है। अभी तक इसके केवल छ: छंद ही प्राप्त हैं। जो सोरठा छंद में रचित हैं।
(स) मदनाष्टक- यह रहीम की सर्वश्रेष्ठ काव्य-रचना मानी जाती है। यह ब्रजभाषा में रचित है। किंतु इसमें संस्कृत
शब्दों के प्रयोग भी हुए हैं। इसमें श्रीकृष्ण और गोपियों की प्रेम संबंधी लीलाओं का सरस चित्रण है।
(द) रहीम-सतसई- इसमें नीति परक और उपदेशात्मक दोहों का संग्रह हुआ है। ये दोहे जनसाधारण में आज भी
लोकप्रिय हैं। इनमें से अभी तक 300 दोहे प्राप्त हुए हैं।
(य) रास पंचाध्यायी- यह ‘श्रीमद्भागवतपुराण’ के आधार पर लिखा ग्रंथ है, जो अप्राप्य है।
(र) नगर शोभा- इसमें नगरों में रहने वाली विभिन्न जातियों एवं व्यवसायों की स्त्रियों का वर्णन है।
भाषा-शैली- रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। उनके काव्य में शृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं तथा दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। रहीम जनसाधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं। हिंदी काव्य में इन्हें बरवै छंद का जनक माना जाता है। प्रायः सभी प्रमुख रसों एवं अलंकारों का प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है। रहीम ने मुक्तक शैली में ही अपने काव्य का सृजन किया। इनकी यह शैली अत्यंत सरल, सरस और बोधगम्य है।

2– रहीम की रचनाओं में भक्तिकाल की जो सामान्य प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर —- रहीम की रचनाओं में भक्तिकाल की रचनाओं के समान ही ईश्वर में सहज विश्वास, उसकी दीन-वत्सलता, नाम स्मरण की महत्ता, जप, कीर्तन, भजन का अवलंबन, गुरु की महत्ता, अहंकार का त्याग, जाति-पाँति का विरोध, लोक-मंगल की भावना, संत जीवन का आदर्श- सरलता, निस्पृहता, परोपकार तथा प्रेम-महिमा आदि प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं।

(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्तिभाव

1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए


(अ) रहिमन————————————————————————–चून॥
संदर्भ- प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्य खंड’ में संकलित ‘रहीम’ जी द्वारा रचित ‘रहीम ग्रंथावली’ से ‘दोहे’ शीर्षक से उद्धृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में सच्ची प्रीति की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या- कवि रहीम कहते हैं कि उसी प्रेम की प्रशंसा करनी चाहिए, जिसमें दोनों प्रेमियों का प्रेम मिलकर दुगुना हो जाता है, अर्थात् दोनों प्रेमी अपना अलग-अलग अस्तित्व भूलकर एक-दूसरे में समाहित हो जाते हैं। जैसे हल्दी पीली होती है और चूना सफेद, परंतु दोनों मिलकर एक नया (लाल) रंग बना देते हैं। हल्दी अपने पीलेपन को और चूना सफेदी को छोड़कर एकरूप हो जाते हैं। सच्चे प्रेम में भी ऐसा ही होता है।
काव्यगत सौंदर्य- 1– जब तक स्वयं का अस्तित्व भुला न दिया जाए, प्रेम का वास्तविक स्वरूप प्रकट नहीं होता। कवि ने हल्दी-चूने के मिलन का उदाहरण देकर इस प्रेम की प्रकृति के भाव का सुंदर चित्रण किया है। 2– भाषा- ब्रज 3– रस-शांत 4–छंद- दोहा 5–अलंकार- दृष्टांत, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास।

(ब) टूटे सुजन—————-मुक्ताहार॥
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में रहीम ने सज्जनों के महत्व पर विचार प्रकट किया है।
व्याख्या- कवि रहीम कहते हैं कि यदि सज्जन मनुष्य रूठ भी जाएँ तो उन्हें शीघ्र मना लेना चाहिए। यदि वे सौ बार भी नाराज हों तो उन्हें सौ बार भी मना लेना चाहिए; क्योंकि वे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जिस प्रकार सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर उसे बार-बार पिरोया जाता है, उसी प्रकार सज्जन को भी मनाकर रखना चाहिए, क्योंकि वे मोतियों के समान ही मूल्यवान होते हैं।

काव्यगत सौंदर्य- 1– सज्जन को निरंतर प्रसन्न रखना चाहिए- इस तथ्य को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया गया है। 2– भाषा- ब्रज 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– अलंकार- यमक, पुनरुक्तिप्रकाश और दृष्टांत 6– छंद- दोहा। UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 2 PADAWALI MEERABAI पाठ 2 पदावली मीराबाई

(स) जाल परे———————————-छोह॥
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में मछली के माध्यम से सच्चे प्रेम को आदर्श बताया गया है।
व्याख्या- कवि रहीम कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए नदी में जाल डाला जाता है, तब मछली तो जाल में फँस जाती है और पानी अपनी सहेली मछली का मोह त्यागकर आगे निकल जाता है; परंतु मछली को जल से इतना प्रेम है कि वह पानी के बिना तड़प-तड़पकर मर जाती है। तात्पर्य यह है कि सच्चा प्रेम करने वाला कभी अपने साथी का साथ नहीं छोड़ता।
काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ मछली और जल के संबंध के द्वारा प्रेम के स्वरुप को अत्यंत हृदयग्राही रूप में स्पष्ट किया गया
है। 2– भाषा- ब्रज 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– छंद- दोहा 6–अलंकार- अनुप्रास और अन्योक्ति।

( द) दीनन——————————————————————होय॥
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि द्वारा सामान्य जन को दीन-दुःखियों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया गया है और कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति ईश्वर-तुल्य होता है।
व्याख्या- रहीमदास जी कहते हैं कि दीन-हीन निर्धन लोग सभी लोगों की ओर इस आशा से देखते हैं कि वे हमारी कुछ सहायता करेंगे, किंतु विडंबना यह है कि उन दीन-हीनों को कोई नहीं देखता अर्थात् उनकी सहायता कोई नहीं करता। कवि रहीम कहते हैं कि जो दीनों की ओर देखता है अर्थात् उनकी सहायता करता है, वह उनके लिए भगवान् के समान होता है। काव्यगत सौंदर्य- 1– सभी को दीन-दुःखियों की सहायता करनी चाहिए, इस भाव की अभिव्यक्ति की गई है।
2– भाषा- सरल तथा प्रवाहपूर्ण 3– छंद- दोहा 4– अलंकार- अनुप्रास 5– रस- शांत।

(य) कदली—————- ——————————दीन॥
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में सत्संगति के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है। व्याख्या- कवि रहीम का कहना है कि स्वाति नक्षत्र की बूंदों में पानी एक-सा होता है, परंतु उसका प्रभाव अलग-अलग वस्तु में अलग-अलग होता है। वह स्वाति बूंद केले के पत्ते पर गिरकर कपूर बन जाती है अथवा कपूर के दाने के समान दिखाई देती है। सीप में पड़कर मोती का रूप धारण कर लेती है और सर्प के मुख में पड़कर विष बन जाती है। इसी प्रकार मनुष्य भी जैसी संगति में बैठता है, उसके ऊपर उस संगति का वैसा ही प्रभाव पड़ता है। तात्पर्य यह है कि अच्छी संगति में बैठने पर व्यक्ति सज्जन और दुर्जनों की संगति पाकर दुर्जन बन जाता है।

काव्यगत सौंदर्य- 1– रहीम ने यहाँ स्वाति नक्षत्र की बूँद का उदाहरण देते हुए संगति के परिणाम की जो व्याख्या की है, वह व्यावहारिक दृष्टि से अनुकरणीय है। 2– भाषा- ब्रज 3– रस- शांत, 4– गुण- प्रसाद 5– छंद- दोहा 6– अलंकारदृष्टांत।

2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए


(अ) बिपति कसौटी जो कसे, तेही साँची मीत।
भाव स्पष्टीकरण- इस पंक्ति में रहीम जी कहते हैं कि जो विपत्ति की कसौटी पर सदा खरे उतरते हैं अर्थात् विपत्ति में भी
मित्र का साथ निभाते हैं, वही सच्चे मित्र होते हैं।
(ब) टूटे से फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय॥
भाव स्पष्टीकरण- इस पंक्ति का भाव यह है कि हमें प्रेम संबंधों को नहीं तोड़ना चाहिए। यदि यह संबंध एक बार टूट
जाए तो फिर से जुड़ना कठिन होता है और इसको जोड़ने का प्रयास भी किया जाए तो उसमें अंतर अवश्य आ जाता है।

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(स) कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
भाव स्पष्टीकरण- कवि रहीम कहते हैं कि स्वाति नक्षत्र की बूंद तो एक ही होती है, किंतु संगति के कारण उसके गुण
तीन हो जाते हैं। वह केले के पेड़ पर गिरकर कपूर, सीप में गिरकर मोती व सर्प के मुख में गिरकर विष बन जाती है।
(द) जहाँ काम आवै सुई, कहा करे तरवारि॥
भाव स्पष्टीकरण- कवि रहीम कहते हैं कि बड़ों को देखकर लघुजनों अर्थात् छोटे लोगों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि सुई बहुत छोटी वस्तु है और तलवार उसके मुकाबले में बहुत बड़ी। परंतु जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार का
प्रयोग नहीं किया जा सकता अर्थात् छोटे लोग भी अपने स्थान पर महत्वपूर्ण होते हैं।

(ङ) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण-बोध

1– निम्नलिखित के तत्सम रूप लिखिए
शब्द——————————————तत्सम
गुन——————————————गण
बिपति——————————————विपत्ति

गोत——————————————गोत्र
जुड़े
गाँठ——————————————ग्रंथि

2– निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची लिखिए


मछली – अंडज, मीन, मत्स्य। भुजंग विषधर, सर्प, पन्नग। फूल – पुष्प, कुसुम, सुमन।
आँख नयन, दृग, लोचन।

3– निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए


शब्द——————————————विलोम
अमृत ——————————————विष
जुड़े ————————————————–टूटे
दुःख——————————————सुख
प्रेम ————————————घृणा
संपत्ति——————————————विपत्ति
दीर्घ ————————————लघु
बढ़त——————————————घटत

4– निम्नलिखित दोहों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए


(अ) प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीमलखि, पथिक आपुफिरि जाए॥
उत्तर —- प्रस्तुत दोहे में अनुप्रास व दृष्टांत अलंकार है।

(ब) यों रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत॥
उत्तर —- प्रस्तुत दोहे में अनुप्रास व दृष्टांत अलंकार है।

(च) वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1– रहीम का जन्म हुआ था
(अ) सन् 1556 ई–में (ब) सन् 1656 ई–में (स) सन् 1621 ई–में (द) सन् 1541 ई–में
उत्तर-
2– रहीम किसके भक्त थे ?
(अ) राम के (ब) श्रीकृष्ण के (स) शिव के (द) विष्णु जी के
उत्तर- (ब) श्रीकृष्ण के

3– रहीम का जन्म-स्थान है
(अ) कानपुर (ब) दिल्ली (स) लाहौर (द) बरेली
उत्तर-

4– रहीम के पिता थे
(अ) बैरम खाँ (ब) अकबर (स) शाहजहाँ (द) जहाँगीर
उत्तर- (अ) बैरम खाँ

5– रहीम की रचना है
(अ) बीजक (ब) साहित्य लहरी (स) मदनाष्टक (द) प्रेम सरोवर
उत्तर- (स) मदनाष्टक

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