UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 4 PREM MADHUREE पाठ 4 प्रेम माधुरी (भारतेंदु हरिश्चंद्र)

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 4 PREM MADHUREE पाठ 4 प्रेम माधुरी (भारतेंदु हरिश्चंद्र)

4– प्रेम माधुरी (भारतेंदु हरिश्चंद्र)


(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1– आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कौन कहे जाते हैं ?
उत्तर —- भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं।
2– भारतेंदुजी का मूल नाम क्या था ?
उत्तर —- भारतेंदु जी का मूल नाम हरिश्चंद्र था।
3– भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर —- भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म 9 सितंबर, 1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।


4– भारतेंदु जी का विवाह कब और किसके साथ हुआ ?
उत्तर —- भारतेंदु जी का विवाह 13 वर्ष की अवस्था में ‘मन्नो देवी’ नामक युवती से हुआ था।
5– हरिश्चंद्र जी को किस सन में भारतेंदु’ की उपाधि से विभूषित किया गया ?
उत्तर —- हरिश्चंद्र को सन् 1880 में ‘भारतेंदु’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
6– उस कवि का नाम बताइए, जिसे खड़ीबोली गद्य का जनक कहा जाता है और गद्य-पद्य दोनों के ही इतिहास में
उसके नाम से एक युग का नामकरण किया गया।
उत्तर —- भारतेंदु हरिश्चंद्र।
7– भारतेंदु जी ने अपने काव्य में कौन-सी भाषा और शैली का प्रयोग किया है ?
उत्तर —- भारतेंदु जी ने अपने काव्य में ब्रजभाषा और मुक्तक का प्रयोग किया है।
8– भारतेंदु जी की नाटक लिखने की शुरूआत किस नाटक से हुई थी ?
उत्तर —- भारतेंदु जी की नाटक लिखने की शुरूआत बंगला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से हुई थी।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न–


1– कृष्ण के वियोग में गोपियों की मन की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर —- कृष्ण के वियोग के कारण गोपियों का मन विरह-वेदना से व्याकुल था। उन्हें बादल का बरसना अच्छा नहीं लगता था। उनकी आँखें केवल कृष्ण के दर्शनों की अभिलाषी थीं। उनके शरीर के सभी अंग कृष्ण के वश में हैं। इसलिए उन पर
उद्धव की बात का कोई प्रभाव नहीं होता था। सभी गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में मगन थी।

2– बादलों को निगोड़े’ क्यों कहा गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर —- बादलों को ‘निगोड़े’ कहा गया है क्योंकि बादलों के बरसने के कारण विरह में व्याकुल गोपियों की वेदना बढ़ती जाती है। परंतु बादल गोपियों की विरह-वेदना को नहीं समझते और वर्षा के रूप में झूम-झूमकर आनंद लेते हुए बरसते हैं। इसलिए गोपियों ने उन्हें निगोड़े कहकर उलाहना दिया है।
3– ‘रितुन को कंत’ किसे कहा गया है ? इसके आने पर वातावरण अच्छा होने पर भी गोपी को इसमें पीड़ा का अनुभव
क्यों हो रहा है ?
उत्तर —- ‘रितुन को कंत’ ऋतुओं के स्वामी वसंत को कहा गया है। इसके आने पर वातावरण आनंदमय हो जाता है। चारों दिशाओं में पीली-पीली सरसों फूल रही होती है। अत्यंत सुंदर, शीतल और सुगंधित पवन बहने पर भी श्रीकृष्ण के वियोग के कारण गोपियाँ इसमें पीड़ा का अनुभव करती हैं, क्योंकि कृष्ण मथुरा जाते हुए उन्हें यह बताकर गए थे कि वे परसों तक लौट आएँगे, परंतु बरसों बीतने पर भी वह लौटकर नहीं आए हैं।


4– वसंत ऋतु में किसको देखने के लिए गोपियाँ तरस रही हैं ?
उत्तर —- वसंत ऋतु में श्रीकृष्ण को देखने के लिए गोपियाँ तरस रही हैं।
5– ‘मरेहू पै आँखें ये खुली ही रहि जाएँगी’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर —- यहाँ कवि का अभिप्राय है कि गोपियों की आँखें मरने के बाद भी श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्रतीक्षा में खुली रहेंगी क्योंकि गोपियों के प्राण श्रीकृष्ण के लौट आने की अवधि बीत जाने पर शरीर से निकल जाना चाहते हैं, परंतु उनकी आँखे उनके प्राणों के साथ नहीं जाना चाहती क्योंकि उन्होंने अपने प्रियतम कृष्ण को जी भरकर नहीं देखा है और उनके दर्शनों की प्रतीक्षा में वे खुली रहेंगी।

6– प्रेम-माधुरी में वर्णित वर्षा वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर —- वर्षा ऋतु में कोयल कदंब के वृक्ष पर बैठकर कूकने लगी है। वर्षा के जल से पत्ते धुलकर हिल-हिलकर सुशोभित होते हैं। मेंढक बोलने लगे हैं और मोर नाचने लगते हैं। वर्षा ऋतु का यह दृश्य देखकर संयोगीजन (जिनके प्रियजन उनके समीप हैं) मन में हर्षित होते हैं। धरती हरी भरी हो गई है, शीतल पवन धीरे-धीरे बह रही है। इन सब दृश्यों को देखकर वियोगीजन अपने प्रियजनों के दर्शनों के लिए तरसने लगते हैं। वर्षा ऋतु में वर्षा झूम-झूमकर आती है और निकम्मे बादल बरस-बरसकर वियोगीजनों की विरह वेदना को बढ़ाते हैं।
7– गोपियाँ उद्धव की बात न मानकर ज्ञान का उपदेश ले जाने के लिए क्यों कह रही हैं ?
उद्धव की बात न मानकर ज्ञान का उपदेश ले जाने के लिए इसलिए कहती हैं क्योंकि गोकल में सभी ब्रज बालाएँ श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न हैं। जिन पर उद्धव के ब्रह्म ज्ञान के उपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसे कुएँ में भाँग पड़ने पर सभी उसके जल को पीकर मद अवस्था में आ जाते हैं, उसी प्रकार सभी गोपियाँ कृष्ण प्रेमरूपी भाँग पीकर प्रसन्न हैं। अत:
आप अपना ज्ञान का उपदेश लेकर यहाँ से चले जाओ।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न


1– हिंदी साहित्य में भारतेंदु जी के योगदान को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर —- भारतेंदु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण ही 1868 से 1900 तक के काल को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेंदु ने साहित्य सेवा प्रारंभ कर दी थी। अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने ‘कविवचन सुधा’ नामक पत्रिका निकाली, जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएँ छपती थीं। वे बीस वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने 1868 में ‘कविवचन सुधा’, 1873 में ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए ‘बाल बोधिनी’ नामक पत्रिकाएँ निकाली। साथ ही उनके समांतर साहित्यिक संस्थाएँ भी खड़ी की। वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए उन्होंने ‘तदीय समाज’ की स्थपना की थी। अपनी देशभक्ति के कारण राजभक्ति प्रकट करते हुए भी उन्हें अंग्रेजी हुकूमत का कोपभाजन बनना पडा। उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 में उन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि प्रदान की। हिंदी साहित्य को भारतेंदु की देन भाषा तथा साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में है। भाषा के क्षेत्र में उन्होंने खड़ीबोली के उस रूप को प्रतिष्ठित किया, जो उर्दू से भिन्न है और हिंदी क्षेत्र की बोलियों का रस लेकर संवर्धित हुआ है। इसी भाषा में उन्होंने अपने संपूर्ण गद्य साहित्य की रचना की। साहित्य सेवा के साथ-साथ भारतेंदु जी की समाज सेवा भी चलती थी। उन्होंने कई संस्थानों की स्थापना में अपना योगदान दिया। दीन-दुखियों, साहित्यिकों तथा मित्रों की सहायता करना वे अपना कर्तव्य समझते थे।

2– भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।


उत्तर —- भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम ‘हरिश्चंद्र’ था। ‘भारतेंदु’ उनकी उपाधि थी। इनका कार्यकाल युग की संधि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामंती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ परंपरा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेंदु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिंदी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। जीवन परिचय- भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर,1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता गोपाल चंद्र एक अच्छे कवि थे और गिरधर दास उपनाम से कविता लिखा करते थे।

1857 में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय उनकी आयु 7 वर्ष की होगी। ये दिन उनकी आँख खुलने के थे। भारतेंदु का कृतित्व साक्ष्य है कि उनकी आँखे एक बार खुली तो बंद नहीं हुई। पैंतीस वर्ष की संक्षिप्त आयु में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। जब हरिश्चंद्र पाँच वर्ष के थे तब इनकी माता तथा जब दस वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। इस तरह मातापिता के सुख से भारतेंदु वंचित हो गए। बचपन का सुख नहीं मिला। विमाता ने खूब सताया। 13 वर्ष की अवस्था में ‘मन्नो देवी’ नामक युवती से इनका विवाह हुआ। संवेदनशील व्यक्ति के नाते उनमें स्वतंत्र रूप से देखने-सोचने व समझने की आदत का विकास होने लगा। पढ़ाई की विषय-वस्तु और पद्धति से उनका मन उखड़ता रहा। क्वींस कॉलेज, बनारस में प्रवेश लिया, तीन-चार वर्षों तक कॉलेज आते-जाते रहे पर यहाँ से मन बार-बार भागता रहा। स्मरण शक्ति तीव्र थी, ग्रहण क्षमता अद्भुत। इसलिए परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते रहे। बनारस में उन दिनों अंग्रेजी पढ़े-लिखे और प्रसिद्ध लेखक- राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद थे, भारतेंदु शिष्य भाव से उनके यहाँ जाते। उन्हीं से अंग्रेजी शिक्षा सीखी। भारतेंदु ने स्वाध्याय से संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू भाषाएँ सीख ली। उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पाँच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया


लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए, श्री अनिरुद्ध सुजान।-
बाणासुर की सेन को, हनन लगे भगवान॥


अत्यधिक उदार व दानशील होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। ये ऋणग्रस्त हो गए। बहुत कोशिशों के बाद भी ये ऋण-मुक्त नहीं हो पाए और क्षय रोग से ग्रस्त हो गए। हिंदी साहित्य की यह दीप्ति सन् 1885 ई– में सदैव के लिए बुझ गई।

रचनाएँ- भारतेंदु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेंदु के नाटक लिखने की शुरूआत बंगला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेंदु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 3 DOHE RAHEEM पाठ 3 दोहे रहीम
(अ) नाटक- भारत-दुर्दशा, अँधेरी नगरी, नील देवी, रत्नावली, भारत-जननी, मुद्राराक्षस, सती-प्रताप, धनंजय
विजय, सत्य हरिश्चंद्र आदि।
(ब) काव्य कृतियाँ- प्रेम माधुरी, प्रेम तरंग, दानलीला, प्रेम सरोवर, कृष्ण चरित आदि।
(स) उपन्यास- पूर्ण प्रकाश, चंद्रप्रभा
(द) निबंध संग्रह- दिल्ली दरबार दर्पण, मदालसा, सुलोचना
876 (य) यात्रा वृत्तांत- लखनऊ की यात्रा, सरयूपार की यात्रा
(र) संपादन- हरिश्चंद्र चंद्रिका, हरिश्चंद्र मैगजीन, कविवचन सुधा

3– भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर —- भाषा-शैली- हिंदी साहित्य को भारतेंदु जी की देन भाषा और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में है। भारतेंदु जी का खड़ीबोली
और ब्रजभाषा दोनों पर समान अधिकार था। भारतेंदु जी ने खड़ी-बोली के उस रूप को प्रतिष्ठित किया, जो उर्दू से भिन्न है और हिंदी क्षेत्र की बोलियों का रस लेकर संवर्धित हुआ है। इसी भाषा में उन्होंने अपने संपूर्ण गद्य साहित्य की रचना की। इन्होंने काव्य के सृजन हेतु ब्रजभाषा को अपनाया। इनके द्वारा प्रयुक्त ब्रजभाषा अत्यंत सरल, सरस एवं माधुर्य से परिपूर्ण है। भाषा में नवीनता एवं सजीवता है। साथ ही प्रचलित शब्दों, मुहावरों एवं कहावतों का यथास्थान प्रयोग किया गया है। इसके परिणामस्वरूप उनकी भाषा में प्रवाह उत्पन्न हो गया है। भारतेंदु जी ने मुख्य रूप से मुक्तक शैली का प्रयोग किया। इस शैली के अंतर्गत इन्होंने अनेक नवीन प्रयोग करके अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया। इनकी शैली भावों के अनुकूल है। लोकगीतों की शैली में भी भारतेंदु जी ने अपने काव्य की रचना की। इनके द्वारा प्रयुक्त शैली सरस, सरल एवं प्रवाहपूर्ण है।

(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव—


1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए।

(अ) कूकै लगी——————————————————————————–बरसै लगे।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ द्वारा रचित ‘भारतेंदु ग्रंथावली’ से ‘प्रेम माधुरी’ शीर्षक से उद्धृत है। प्रसंग-इस पद्यांश में कवि ने वर्षा के आगमन का मोहक चित्रण किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि कदंब के वृक्षों पर बैठकर फिर से कोयले कूकने लगी हैं। वर्षा के जल से धुले पत्ते हिलहिलकर वृक्षों पर सरस प्रतीत होने लगे हैं। अब मेंढक फिर बोलने लगे हैं तथा मोर नाचने लगे हैं। यह सब देखकर अपने प्रिय के समीप होने के कारण संयोगीजन अपने हृदय में हर्षित होने लगे हैं और दूसरी ओर सारी धरती हरी-भरी हो गई है। शीतल मंद पवन चलने लगी है। इसे देखकर वियोगी व्यक्ति के मन अपने प्रिय के दर्शनों को तरसने लगे हैं। लो यह वर्षा ऋतु झूम-झूमकर फिर से आ गई है और ये निगोड़े बादल झुक-झुककर फिर से बरसने लगे हैं।

काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ पर वर्षा ऋतु का बड़ा मनोहारी वर्णन हुआ है। 2– प्रकृति का उद्दीपन रूप में वर्णन हुआ है। वर्षा के आगमन पर संयोगीजन हर्षित व वियोगीजन दुःखी हो रहे हैं। 3– भाषा- ब्रज 4– रस- शृंगार 5– गुण- माधुर्य
6– छंद- कवित्व 7– अलंकार- अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश।

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 3 DOHE RAHEEM पाठ 3 दोहे रहीम

(ब) यह संग————————– ——————————–मानती है।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इस पद्यांश में कृष्ण के वियोग में गोपियों के नेत्रों की दयनीय दशा का वर्णन किया गया है। व्याख्या- गोपियाँ कृष्ण के विरह से पीड़ित होकर अपने नेत्रों की व्यथा उद्धव को सुनाती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे नेत्र कृष्ण के वियोग में तथा उनकी खोज में सदा इधर-उधर घूमते रहते हैं और उन्हें देखे बिना धैर्य धारण नहीं करते हैं। यदि क्षणभर के लिए भी इन नेत्रों को कृष्ण का वियोग मालूम पड़े तो ये प्रलयकाल का दृश्य उपस्थित कर देते हैं अर्थात् प्रलयकाल के बादलों के समान निरंतर आँसुओं की वर्षा करते हैं। ये आँखें क्षणभर के लिए भी बरौनियों के बीच में स्थिर रहना नहीं जानती, कभी झपकती हैं तो कभी तत्काल खुल जाती हैं। पलकों में समाना तो ये जानती ही नहीं। इसलिए हे उद्धव! तुम श्रीकृष्ण से यह कहना कि उन्हें (कृष्ण) देखे बिना दुखियारी गोपियों की आँखें मानती ही नहीं हैं।
काव्यगत सौंदर्य- 1–यहाँ गोपियों के कृष्ण के दर्शनों की तीव्र अभिलाषा व्यक्त हुई है। 2– गोपियों के विरह-काल की स्थिति का आँखों के माध्यम से कलात्मक रूप प्रस्तुत किया गया है। 3– भाषा- ब्रज 4– रस- वियोग शृंगार 5– छंद
सवैया 6– गुण- माधुर्य 7– अलंकार- अनुप्रास तथा अतिशयोक्ति।

(स) ऊधौ जू————————————————-भाँग परी है।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस पद्यांश में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि वे किसी प्रकार भी उनके निराकार ब्रह्मा के उपदेश को ग्रहण नहीं कर सकतीं।

2– निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग कीजिए

आग लगाना (क्रोध या ईर्ष्या भड़काना)- राधिका सदैव अपने माता-पिता के सामने अपनी सौतेली बहन के विरुद्ध आग लगाती रहती है।

धीरज न आना (धैर्य न रखना)- युवा पुत्र की मृत्यु हो जाने के कारण सबके समझाने पर भी उसके माता-पिता को धीरजन आ सका।

प्रलय ढाना (नष्ट-भ्रष्ट करना)- युद्ध के पश्चात विजयी देश की सेना विजित प्रदेश पर प्रलय ढा देती है।

पलकों में न समाना (अत्यधिक प्रसन्न या दुःखी होना)- पुत्री के आई–ए–एस–की परीक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर उसके माता-पिता के पलकों में न समाई। UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 3 DOHE RAHEEM पाठ 3 दोहे रहीम

3– प्रेम माधुरी में किन छंदों का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर —- प्रेम माधुरी में कवित्त एवं सवैया छंदों का प्रयोग किया गया है।

4– ‘निगोड़ा’शब्द का प्रयोग किसी को उलाहना देने के लिए किया जाता है। इसमें गोपियाँ निगोड़ा’ शब्द बादल के
लिए क्यों प्रयुक्त कर रही हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर —- लोक व्यवहार में निगोड़ा कहकर उसे उलाहना दिया जाता है, जो मन की पीड़ा को बढ़ाने वाला हो। बादल बरसकर
गोपियों की पीड़ा को बढ़ा देते हैं इसलिए गोपियाँ उन्हें निगोड़ा कहकर उलाहना देती हैं।

5– निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार बताइए

(अ) परसों को बिताए दियो बरसोंतरसों कब पाँय पिया परसों।
उत्तर —- प्रस्तुत पंक्ति में यमक और अनुप्रास अलंकार है।
(ब) कूकै लगीं कोइलैं कदंबन पैबैठि फेरि।
उत्तर —- प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
(स) पिय प्यारेतिहारेनिहारेबिना, अंखियाँदुखियाँ नहिं मानती हैं।
उत्तर —- प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।

6– प्रस्तुत पाठ में श्रृंगार रस युक्त पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर —- “देखि के सँजोगी-जन हिय हरसै लगे।”
“पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना, अँखियाँ, दुखियाँ नहिं मानती हैं।”
“बिना प्रान-प्यारे दरस तुम्हारे हाय, मरेहू पै आँखें ये खुली ही रहि जाएँगी।”

(च) वस्तुनिष्ठ प्रश्न ।

1– भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म हुआ था।
(अ) सन् 1850 ई–में (ब) सन् 1868 ई–में (स) सन् 1880 ई–में (द) सन् 1884 ई–में
उत्तर-(अ) सन् 1850 ई-


2– निम्नलिखित में से कौन-सी रचना भारतेंदु जी की नहीं है ?
(अ) बीजक (ब) प्रेम सरोवर (स) नीलदेवी (द) भारत-दुर्दशा
उत्तर-अ) बीजक

3– निम्नलिखित में से कौन-सी रचना भारतेंदु जी की है ?
(अ) दीपशिखा (ब) गोदान (स) भारत-दुर्दशा (द) यामा
उत्तर-(स) भारत-दुर्दशा

4– ‘प्रेम माधुरी’काव्य कृति किस कवि की है ?
(अ) प्रेमचंद (ब) प्रतापनारायण मिश्र (स) पूर्णसिंह (द) भारतेंदु हरिश्चंद्र
उत्तर-(द) भारतेंदु हरिश्चंद्र

5– भारतेंदु जी को भारतेंदु’ की पदवी से कब विभूषित किया गया ?
(अ) सन् 1880 में (ब) सन् 1884 में (स) सन् 1821 में (द) सन् 1781 में
उत्तर-(अ) सन् 1880

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