UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 5 PANCHVATI KAVY KHAND
पाठ - 5 पंचवटी (मैथिलीशरण गुप्त)
(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1– खड़ीबोली पद्य के उन्नायकों में से किसी एक राष्ट्रीय कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर — - खड़ीबोली पद्य के उन्नायकों में से एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि ’मैथिलीशरण गुप्त’ हैं ।
2– गुप्त जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर — - गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त सन् 1886 में उत्तर प्रदेश में झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ था ।
3– गुप्त जी के जीवन पर सबसे गहरा प्रभाव किसका पड़ा ?
उत्तर — - गुप्त जी के जीवन पर सबसे गहरा प्रभाव मुंशी अजमेरी जी का पड़ा ।
4– ’साकेत’ और ’पंचवटी’ के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर — - ’साकेत’ और ’पंचवटी’ के रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं ।
5– हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा गुप्त जी को कौन-सा सम्मान मिला ?
उत्तर — - हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा गुप्त जी को ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ सम्मान मिला ।
6– गुप्त जी को राष्ट्रकवि’ की संज्ञा किसने प्रदान की ?
उत्तर — - गाँधी जी ने गुप्त जी को ’राष्ट्रकवि’ की संज्ञा प्रदान की ।
7– हिडिंबा, नहुष, दुर्योधन के चरित्र को नवीन रूप गुप्त जी ने अपनी किस कृति में दिया ?
उत्तर—- गुप्त जी ने अपनी कृति द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया में हिडिंवा, नहुष, दुर्योधन के चरित्र को नवीन रूप दिया ।
8– ’साकेत’ किस तरह की रचना है ?
उत्तर — - ‘साकेत’ एक महाकाव्य है ।
9– गुप्त जी ने किस भाषा और शैली को अपनाया है ?
उत्तर — - गुप्त जी ने भाषा में ब्रजभाषा तथा परिष्कृत, सरल तथा शुद्ध खड़ीबोली एवं शैलियों में प्रबंधात्मक, अलंकृत,
विवरणात्मक, गीति और नाट्य शैली को अपनाया है ।
(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न
1– पंचवटी की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर — - पंचवटी की सुंदरता अद्भुत है ।
वहाँ सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल में क्रीड़ा करती हुई लगती हैं । धरती और आकाश में चंद्रमा का प्रकाश इस प्रकार फैला हुआ है जैसे किसी ने धरती और आकाश में साफ धुली चादर बिछा दी हो । पृथ्वी अपना हर्ष हरी घास के तिनकों की नोकों को हिलाकर प्रदर्शित कर रही है और वृक्ष धीरे-धीरे बहने वाली वायु के झोंकों से हिलकर अपना हर्ष प्रकट कर रहे हैं ।
2– पंचवटी में प्रहरी कुटी के किस धन की रक्षा कर रहा है ?
उत्तर — - पंचवटी में प्रहरी कुटी के अनुपम धन सती सीता की रक्षा कर रहा है, जो अपने पति राम के साथ यहाँ रह रही हैं और जो रघुवंश की प्रतिष्ठा हैं ।
3– निद्रा का त्याग करके पंचवटी की छाया में स्वच्छ शिला पर कौन बैठा हुआ है ?
उत्तर — - निद्रा का त्याग करके पंचवटी की छाया में स्वच्छ शिला पर लक्ष्मण बैठे हुए हैं,जो पंचवटी कुटी में राम और सीता की रक्षा करने के लिए सजग प्रहरी के रूप में बैठे हुए हैं ।
4– राम के राज्यभार संभालने पर लक्ष्मण अपने किस अहित से आशंकित हैं ?
उत्तर — - राम के राज्यभार संभालने पर लक्ष्मण आशंकित हैं कि जब राम राज्य के कार्य में व्यस्त होंगे, तो विवश होकर वे हम लोगों _ को भूल जाएंगे और हम उनके सानिध्य से दूर हो जाएंगे ।
5– लक्ष्मण संसार से क्या अपेक्षा रखते हैं ?
उत्तर — - लक्ष्मण संसार के लोगों से अपेक्षा रखते हैं कि संसार के लोग अपना तथा दूसरों का भला स्वयं करने लगें और इसके लिए वे दूसरों पर निर्भर न रहें तो यह संसार कितना सुखद और सुंदर हो जाएगा ।
6– ‘भोगी कुसुमायुधयोगी-सा बना’कौन दिखाई दे रहा है ? कवि ने उसको भोगी कुसुमायुध’ क्यों कहा है ?
उत्तर — – भोगी कुसुमायुध योगी- से बने लक्ष्मण दिखाई दे रहे हैं । कवि ने उनको ‘भोगी कुसुमायुध’ इसलिए कहा है क्योंकि उनके रूप-सौंदर्य और तन्मयता को देखकर ऐसा लगता है कि मानो भोगी कामदेव ही योगी का रूप धारण करके यहाँ आकर बैठ गया हो ।
7– प्रकृति हमारे लिए क्या-क्या करती है ?
उत्तर — – प्रकृति हमारे सुख में सुखी व दुःख में दुःखी होती है । प्रकृति जहाँ अनजाने में हुई हमारी भूलों और अपराधों के लिए हमें निर्दय भाव से दंड देती है, वहीं यह वृद्धजनों का माता के समान पालन-पोषण करती है । जिस प्रकार माता अपने सभी बच्चों का समान भाव से पालन करती है, उसी प्रकार पृथ्वी भी बाल, वृद्ध सभी का समान भाव से पालन-पोषण करती है ।
(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1– मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं । श्री पं०महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ीबोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ीबोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया । गुप्त जी खड़ीबोली के उन्नायकों में प्रधान हैं । इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भो के अनुकल होने के कारण नए कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया । हिंदी कविता के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है ।
पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय संबंधों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो ‘पंचवटी’ से लेकर ‘जयद्रथ वध’, ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं । साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है । अपनी लेखनी के माध्यम से वे सदा अमर रहेंगे और आने वाली सदियों में नए कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगे । जीवन परिचय- हिंदी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त सन् 1886 ई० में पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता कौशल्या बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ । माता और पिता दोनों ही परम वैष्णव थे । वे ‘कनकलताद्ध’ नाम से कविता करते थे । विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई । घर में ही हिंदी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया । मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया । 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरंभ की ।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में भी आए । उनकी कविताएँ खड़ीबोली में मासिक ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होना प्रारंभ हो गई । प्रथम काव्य संग्रह ‘रंग में भंग’ तथा बाद में ‘जयद्रथ वध’ प्रकाशित हुई । उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रंथ ‘मेघनाद वध’, ‘ब्रजांगना’ का अनुवाद भी किया । सन् 1914 ई० में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत ‘भारत भारती’ का प्रकाशन किया । उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई । संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘स्वप्नवासवदत्ता’ का अनुवाद प्रकाशित कराया । सन् 1916-17 ई–में महाकाव्य ‘साकेत’ का लेखन प्रारंभ किया । उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रंथ में दूर किए गए । स्वत: प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरू किया । ‘साकेत’ तथ अन्य ग्रंथ ‘पंचवटी’ आदि सन् 1931 में पूर्ण किए । 12 दिसंबर 1964 ई–को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का यह जगमगाता तारा अस्त हो गया । उन्होंने 78 वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, 19 खंडकाव्य, काव्यगीत, नाटिकाएँ आदि लिखीं । उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिबित हैं । ‘भारत भारती’ के तीन खंड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है । वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे । डा–नगेंद्र के अनुसार वे सच्चे राष्ट्रकवि थे । दिनकर जी के अनुसार उनके काव्य के भीतर भारत की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी ।
रचनाएँ—(अ) भारत भारती- इसमें देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखी हुई हैं । इसी से वे राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए ।
(ब) साकेत- ‘मानस’ के पश्चात हिंदी में राम-काव्य का दूसरा अनुपम-ग्रंथ ‘साकेत’ ही है ।
(स) यशोधरा- इसमें उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया है ।
(द) द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया- इनमें हिडिंबा, नहुष, दुर्योधन आदि के चरित्रों को नवीन रूपों में प्रस्तुत किया गया है ।
(य) गुप्त जी की अन्य पुस्तकें- पंचवटी, चंद्रहास, कुणालगीत, सिद्धराज, मंगल-घट, अनघ तथा मेघनाद वध ।
2– गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में किस भाषा-शैली का प्रयोग किया है ? क्या उनकी रचनाएँ राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत हैं ?
उत्तर — – भाषा-शैली- गुप्त जी ने अपनी कविताओं में ब्रजभाषा तथा परिष्कृत, सरल तथा शुद्ध खड़ीबोली को अपनाया, उन्होंने यह सिद्ध किया कि ब्रजभाषा काव्य सृजन के लिए समर्थ भाषा है । सभी अलंकारों का इन्होंने स्वाभाविक प्रयोग किया है । लेकिन सादृश्यमूलक अलंकार गुप्त जी को अधिक प्रिय है । घनाक्षरी, मालिनी, वसंततिलका, हरिगीतिका व द्रुतविलंबित आदि छंदों में उन्होंने काव्य रचना की है । गुप्त जी ने विविध शैलियों में काव्य की रचना की । इनके द्वारा प्रयुक्त लियाँ हैं- प्रबंधात्मक शैली, अलंकृत उपदेशात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, गीति शैली तथा नाट्यशैली । मैथिलीशरण गप्त जी की रचनाएँ राष्टीय भावनाओं से परिपर्ण हैं । काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपनी लेखनी से संपर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी । राष्ट्रप्रेम की इस अजस्त्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र से कविता के माध्यम से हो रहा था । बाद में राष्ट्र प्रेम की इस धारा को देशभर में प्रवाहित किया था, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ।
3– राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंचवटी’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर — पंचवटी में रात्रि सौंदर्य अपने चरम पर है । संदर चंद्रमा की किरणें जल और थल सब जगह खेलती हुई प्रतीत होती हैं । चंद्रमा का प्रकाश धरती और आकाश पर ऐसे फैला हुआ है, जैसे धरती पर धुली हुई चादर बिछा दी हो । पृथ्वी हरी-हरी घास की नोंकों को हिलाकर अपना हर्ष और उल्लास प्रकट कर रही है और वृक्ष मंद-मंद वायु के झोंकों से हिलकर उनकी प्रसन्नता को प्रकट कर रहे हैं । पंचवटी की छाया में सुंदर पत्तों की कुटिया बनी हुई है । जिसके सामने साफ पत्थर की शिला पर धनुष धारण किए कोई वीर तथा निडर व्यक्ति बैठा है । जब सारा संसार रात्रि के कारण सो रहा है, तब यह क्यों जाग रहा है, जो तपस्वियों का वेश धारण किए इतना सुंदर लगता है, मानो सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाला कामदेव योगी का रूप धारण करके बैठा हो । इस वीर ने ऐसा कौन-सा व्रत ग्रहण किया हुआ है, जिसके कारण इसने अपनी निद्रा का त्याग किया हुआ है ? यह व्यक्ति जो वैराग्य धारण किए बैठा है, यह तो राजभवन के सुखों को पाने के योग्य है । मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है कि जिस कुटी की रक्षा में इस तपस्वी ने अपना तन, मन और जीवन अर्पण किया हुआ है, उसमें जाने ऐसा कौन-सा धन है । पंचवटी में तीन लोकों की महारानी सती सीता अपने पति श्रीराम संग निवास करती है और वह वीर (लक्ष्मण) इस निर्जन प्रदेश में उनकी रक्षा के लिए बैठे हैं । सती सीता रघुवंश की मर्यादा हैं ।
इसलिए इस कुटी का प्रहरी वीर होना चाहिए । पंचवटी में रात्रि सन्नाटे से भरी है और चाँदनी दूर तक फैली है, यहाँ कोई शब्द नहीं हो रहा है । नियति रूपी नर्तकी के समस्त कार्य चल रहे हैं । राम लक्ष्मण और सीता के वनवास के तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, पर ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो, जब वे वनवास को आए थे परंतु अब वनवास की अवधि पूर्ण होने को है । लक्ष्मण विचार करते हैं कि राजा बनने के बाद राज्य-भार के कारण राम इतने व्यस्त हो जाएँगे कि वे हमें भूल जाएँगे । ऐसा करना उनकी विवशता ही होगी, किंतु इससे हमें दुःख नहीं होगा क्योंकि इससे जनता का कल्याण होगा । परंतु क्या यह संसार अपना व दूसरों का कल्याण स्वयं नहीं कर सकता । यदि ये लोग अपना और संसार का हित कर सकते तो संसार कितना सुखद और मधुर होता ।
(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव—
1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए ।
(अ) चारुचंद्र की——————————————————–झोंकों से ।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा रचित ‘पंचवटी’ काव्य से ‘पंचवटी’ शीर्षक से उद्धृत है ।
प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने चाँदनी रात में पंचवटी की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है ।
व्याख्या- कवि कहता है कि सुंदर चंद्रमा की चंचल किरणें जल और थल सभी स्थानों पर क्रीड़ा कर रही हैं । पृथ्वी से आकाश तक सभी जगह चंद्रमा की स्वच्छ चाँदनी फैली हुई है, जिसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि धरती और आकाश में कोई धुली हुई सफेद चादर बिछी हुई हो । पृथ्वी हरे घास के तिनकों की नोंक के माध्यम से अपनी प्रसन्नता को व्यक्त कर रही है । तिनकों के रूप में उसका रोमांचित होना दिखाई देता है; अर्थात् तिनकों की नोंक चाँदनी में चमकती है और उसी चमक से पृथ्वी की प्रसन्नता व्यक्त हो रही है । मंद सुगंधित वायु बह रही है, जिसके कारण वृक्ष धीरे-धीरे हिल रहे हैं, तब ऐसा मालूम पड़ता है मानों सुंदर वातावरण को पाकर वृक्ष भी मस्ती में झूम रहे हों । तात्पर्य यह है कि सारी प्रकृति प्रसन्न दिखाई दे रही है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ पंचवटी की रात्रिकालीन सुंदरता का मनोहारी वर्णन हुआ है ।
2– प्रकृति का चित्रण आलंबन रूप में हुआ है ।
3– भाषा- खड़ी-बोली
4– रस- शृंगार
5– गुण- माधुर्य
6– अलंकार- अनुप्रास, उत्प्रेक्षा तथा मानवीकरण
7– छंद- मात्रिक ।
(ब) किस व्रत में है—-.————————————————-जीवन है ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस पद्य में उस समय का वर्णन है, जब वनवास के दिनों में श्रीराम और सीता जी पंचवटी की कुटिया में सोए हुए हैं और लक्ष्मण रात को कुटिया के बाहर एक शिला पर बैठकर पहरा दे रहे हैं ।
व्याख्या- लक्ष्मण को पहरा देते हुए देखकर कवि कहता है कि वीर व्रत धारण करने वाला यह युवक अपनी नींद त्यागकर किस व्रत की साधना में लीन है ? देखने से तो लगता है कि यह किसी राज्य का सुख भोगने के योग्य है, पर यह तो वैराग्य धारण कर जंगल में बैठा है । आखिर इस कुटिया में ऐसा कौन-सा धन है, जिसका यह युवक बड़ी तन्मयता से पहरा दे रहा है । यह इस कुटी की रक्षा के लिए शरीर की परवाह नहीं कर रहा है अर्थात् अपने शरीर को विश्राम नहीं दे रहा है और सब प्रकार से अपने मन को इस कुटी की रक्षा में लगाए हुए है । अवश्य ही इस कुटी में ऐसा कोई अमूल्य और अनुपम धन होना चाहिए, जिसकी रक्षा में यह वीर अपने तन, मन और जीवन को ही समर्पित किए हुए है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने इन पंक्तियों में लक्ष्मण की लगन, त्याग, कर्तव्यनिष्ठा, एकाग्रता आदि गुणों पर प्रकाश डाला
है । 2– भाषा- खड़ीबोली 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– छंद- मात्रिक 6– अलंकार- अनुप्रास ।
(स) क्या ही स्वच्छ—— ——————————————-और चुपचाप ।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य, क्रियाशीलता, शांति और सात्विकता का सुंदर वर्णन किया है ।
व्याख्या- पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते हुए लक्ष्मण अपने मन में सोचते हैं कि यहाँ कितनी स्वच्छ और चमकीली चाँदनी है और रात्रि भी बहुत शांत है । स्वच्छ, सुगंधित वायु मंद-मंद बह रही है । पंचवटी में किस ओर आनंद नहीं है ? इस समय चारों ओर पूर्ण शांति है तथा सभी लोग सो रहे हैं, फिर भी नियतिरूपी नटी अर्थात् नर्तकी अपने कार्यकलाप बहुत शांत भाव से और चुपचाप पूरा करने में तल्लीन है । तात्पर्य यह है कि नियति रूपी नर्तकी अपने क्रियाकलापों को बहुत ही शांति से संपन्न कर रही है और वह अकेले ही अपने कर्तव्यों का निर्वाह किए जा रही है । काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने यहाँ पंचवटी के रात्रि सौंदर्य को दार्शनिक अर्थ में चित्रित किया है । पंचवटी रात्रि के सन्नाटे में डूबी हुई है, किंतु नियति (यहाँ इसका अर्थ प्रकृति से लिया गया है; क्योंकि उसकी सभी क्रियाएँ निश्चित नियमों के अंतर्गत चलती हैं) अपने कार्य में संलग्न है, अर्थात् सभी विश्राम में हैं, शांत हैं, किंतु प्रकृति अपने कार्य में इस समय भी व्यस्त है । 2– भाषा- खड़ी बोली 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– छंद- मात्रिक 6– अलंकार- अनुप्रास और रूपक ।
(द) सरल तरल—————————————————————–सेवी है ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने लक्ष्मण के मन में उठ रहे विचारों का सुंदर चित्रण किया है । लक्ष्मण को प्रकृति एक ओर हर्ष और उल्लास प्रकट करती हुई प्रतीत होती है तो दूसरी ओर अपने शोकभावों को भी व्यक्त करती है ।
व्याख्या- लक्ष्मण अपने मन में विचार करते हैं कि जो सुंदर और चंचल ओस की बूंदे प्रकृति की प्रसन्नता और शोभा की प्रतीक हैं, उन्हीं ओस की बूंदों से वह आत्मीय प्रकृति दुःख की घड़ी में हमारे साथ रोती हुई-सी प्रतीत होती है, जबकि सुख के क्षणों में इन्हीं ओस की बूंदों के माध्यम से वह अपना हर्ष प्रकट करती है । यह प्रकृति हमारी अनजाने में की गई भूलों पर कठोरतापूर्वक दंड देती है, किंतु कभी-कभी बड़ी दयालु होकर बूढ़ों की भी बच्चों के समान सेवा करती है । इस प्रकार प्रकृति के कठोर और कोमल दोनों रूप हमारे सम्मुख प्रकट होते हैं । यहाँ प्रकृति में आत्मीयता और संरक्षण का भाव व्यक्त हुआ है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– प्रकृति ओस के कणों को मोतियों के रूप में पृथ्वी पर बिखेरकर अपना हर्ष प्रकट करती है और यही ओस कण हमारी वेदना में अश्रु की बूंदें बनकर लुढ़कते हैं । आँसू को बहुधा मोती की उपमा दी जाती है । कवि ने इस सादृश्य उपमा के काव्यकाल का अद्भुत रूप प्रस्तुत किया है ।
2– प्रकृति को माता के रूप में चित्रित करके उसके भावात्मक स्वरूप को प्रदर्शित किया गया है । 3– यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया गया है । 4, भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली 5– रस- शृंगार 6– गुण- माधुर्य 7– छंद- मात्रिक 8–अलंकार- रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास तथा मानवीकरण ।
(य) और आर्य को———————- ————————————यह नरलोक ?
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- पंचवटी में स्थित कुटिया का प्रहरी बने लक्ष्मण सोच रहे हैं कि एक वर्ष पश्चात् जब हम लोग अयोध्या लौट जाएँगे, तब रामचंद्र प्रजा के हित के लिए राज्य-भार को धारण करेंगे । प्रस्तुत पद्य में इसी का वर्णन किया गया है ।
व्याख्या- वनवास की अवधि पूरी करके जब हम लोग अयोध्या लौटेंगे तो बड़े भाई राम को क्या मिलेगा ? लक्ष्मण स्वयं उत्तर देते हुए कहते हैं कि वे राज्यभार संभाल लेंगे, किंतु यह भार तो वह प्रजा के हित के लिए ही धारण करेंगे । तब वे राज्य के कार्य में इतने व्यस्त रहेंगे कि विवश होकर हम लोगों को भी भूल जाएँगे, किंतु यह सोचकर कि वे लोगों के उपकार में लगे हैं, हमें दुःख नहीं होगा । लक्ष्मण के मन में यह प्रश्न उठता है कि इस दुनिया के लोग अपना हित स्वयं क्यों नहीं कर सकते ? वे अपनी सुख-सुविधा के लिए राजा पर ही निर्भर क्यों रहते हैं ? यदि लोग अपना तथा दूसरों का भला स्वयं ही करने लगे और इसके लिए दूसरों का मुँह न देखें तो यह संसार कितना सुंदर और सुखद हो जाएगा ।
काव्यगत सौंदर्य- 1, यहाँ राम की महानता के साथ-साथ लक्ष्मण के सेवा-भाव को भी चित्रण हुआ है । कवि ने लक्ष्मण की सोच में एक साथ दो भावों को समाहित करके अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है ।
2– भाषा-साहित्यिक खड़ीबोली 3– रस- शांत 4–गुण- प्रसाद 5–छंद- मात्रिक 6– अलंकार- अनुप्रास और उत्प्रेक्षा ।
2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(अ) वीर वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर नहो प्रहरी ?
भाव स्पष्टीकरण- कवि का तात्पर्य है कि पंचवटी की कुटिया में निवास करने वाली सती सीता हैं, जो वीर वंश (रघुकुल) की प्रतिष्ठा हैं इसलिए इस कुटी का रक्षक एक वीर पुरुष है, जो उनकी रक्षा कर सकें ।
(ब) भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है ।
भाव स्पष्टीकरण- कवि का तात्पर्य है कि जब संसार रात के शांत वातावरण में सोया हुआ है, उस समय यह धनुर्धारी तपस्वियों के वेश में ऐसा सुंदर लग रहा है, मानो सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाले कामदेव ही योगी का रूप धारण करके यहाँ बैठ गए हों ।
(स) कर विचार लोकोपकार का, हमें न इससे होगा शोक । पर अपना हित आप नहीं क्या, कर सकता है यह नरलोक ? भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि लक्ष्मण के मन में विचार उठ रहे हैं कि राजकाज सँभालने के बाद राम हमें भूल जाएँगे, किंतु इससे हमें दुःख नहीं होगा क्योंकि ऐसा वे लोक कल्याण के लिए करेंगे । परंतु क्या दुनिया के आदमी अपना हित स्वयं नहीं कर सकते ? यदि वे अपना व दूसरों का हित कर लें तो संसार कितना मधुर और सुखद हो जाएगा ।
(ङ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1– ‘नहुष’ के रचयिता हैं
(अ) तुलसी (ब) बिहारी (स) मैथिलीशरण गुप्त (द) हरिऔध
2– निम्नलिखित में से कौन-सी रचना गुप्त जी’ की है ?
(अ) शिवा-शौर्य (ब) साकेत (स) आँसू (द) बीजक
3– निम्नलिखित में से कौन-सी रचना गुप्त जी की नहीं है ?
(अ) प्रिय-प्रवास (ब) भारत भारती (स) द्वापर (द) अनघ
4– गुप्त जी का जन्म स्थान है
(अ) आगरा (ब) बरेली (स) चिरगाँव (झाँसी) (द) कानपुर
5– राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत आधुनिक युग के लोकप्रिय कवि हैं
(अ) कबीरदास (ब) मैथिलीशरण गुप्त (स) पूर्णसिंह (द) मलिक मुहम्मद जायसी
(च) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण बोध
1– निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखिए
कुटीर – कुटी, झोंपड़ी ।
निशा – रात्रि, यामिनी ।
अवनि पृथ्वी, धरती ।
अंबर – नभ, गगन ।
चंद्र – राकेश, मयंक ।
2– निम्नलिखित शब्दों में संधि विच्छेद कीजिएसंधिशब्द
संधि विच्छेद
लोकोपकार………………लोक + उपकार
निरानंद………………निर् + आनंद
धनुर्धर………………धनु: + धर
कुसुमायुध………………कुसुम + आयुध
3– निम्नलिखित शब्दों में समास विग्रह कीजिए
समस्त पद………………समास विग्रह
पंचवटी………………पाँच वृक्षों का समाहार
जल-थल………………जल और थल
नरलोक………………मनुष्यों का संसार
वीर वंश………………वीरों का वंश
अदय………………बिना दया का
राम-जानकी………………राम और जानकी
वसुंधरा………………वस्तुओं को धारण करने वाली
सदय………………दया के साथ
नियति-नटी………………भाग्य रूपी नर्तकी
4– निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार बताइए
(अ) चारुचंद्र की चंचल किरणें,खेल रही हैं जल थल में ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास, मानवीकरण व उपमा अलंकार है ।
(ब) भोगी कुसुमायुध योगी-सा बना दृष्टिगत होता है ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में उपमा अलंकार है ।
(स) मानो झींम रहे हैं तरु भी, मंद पवन के झोंकों से ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है ।
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