UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 6 PUNARMILAN KAVY KHAND (JAYSHANKAR PRASAD)

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Table of Contents

पाठ -----6 पुनर्मिलन (जयशंकर प्रसाद)


(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न


1– जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कौन-सा है ?
उत्तर — – ‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है ।
2– छायावाद के चार स्तंभ कहे जाने वाले कवियों के नाम लिखिए ।
उत्तर — – छायावाद के चार स्तंभ कहे जाने वाले कवि हैं-सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और जयशंकर प्रसाद ।
3– जयशंकर प्रसाद किस युग के कवि हैं ?
उत्तर — – जयशंकर प्रसाद छायावादी युग के कवि हैं ।

4– प्रसाद जी का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था । इस कथन की विवेचना कीजिए ।
उत्तर — – जयशंकर प्रसाद जी के माता-पिता की इनकी (प्रसाद जी की) कम उम्र में ही मृत्यु हो जाने से प्रसाद जी के लालन-पालन का भार इनके भाई ‘शम्भुरत्न’ पर आ पड़ा । परंतु शम्भुरत्न जी का भी देहांत हो गया । अतः इन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा । प्रसाद जी के घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी ही शेष थी । अन्य कुटुंबीजन इनकी संपत्ति हड़पने के षड्यंत्र में लगे रहे । परंतु प्रसाद जी ने इन सभी कठिनाइयों का धीरता से सामना किया । निष्कर्षत: जयशंकर प्रसाद जी का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था ।
5– प्रसाद जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ? इनके पिता का क्या नाम था ?
उत्तर — – प्रसाद जी का जन्म 1889 ई० में काशी के सरायगोवर्धन में हुआ था । इनके पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद था ।

MP BOARD KE SABHI SUBJECT KA SOLUTION

6– सुमित्रानंदन पंत ने ‘कामायनी’ महाकाव्य की तुलना किससे की है ?
उत्तर — – सुमित्रानंदन पंत ने ‘कामायनी’ महाकाव्य को ‘हिंदी’ में ताजमहल के समान माना है ।
7– प्रसाद जी की काव्य कृतियाँ लिखिए ।
उत्तर — – कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, आँसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक आदि प्रसाद जी की काव्य कृतियाँ हैं ।
8– प्रसाद जी को किस कृति के लिए मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया गया ?
उत्तर — – प्रसाद जी को ‘कामायनी’ महाकाव्य के लिए ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया गया ।
9– छायावाद का प्रवर्तक किसे कहा गया है ?
उत्तर — – छायावाद का प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद को कहा गया है ।
10– प्रसाद जी ने किस भाषा का प्रयोग किया है ?
उत्तर — – प्रसाद जी ने परिष्कृत व परिमार्जित, साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली का प्रयोग किया है ।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 6 PUNARMILAN KAVY KHAND

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 5 PANCHVATI KAVY KHAND
1– श्रद्धा कौन थी तथा उसके पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर — – श्रद्धा मनु की पत्नी थी तथा उसके पुत्र का नाम मानव था ।
2– कामायनी का पुत्र किस प्रकार चल रहा था और क्यों ?
उत्तर — – कामायनी अर्थात् श्रद्धा का पुत्र अपनी माँ की अंगुली पकड़कर चुपचाप और धैर्य के साथ चल रहा था, क्योंकि वह अपने पिता को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते बहुत थक गया था ।

3– कामायनी को अपनी किस भूल के लिए पश्चाताप हो रहा था ?
उत्तर — – कामायनी को अपनी इस भूल के लिए पश्चाताप हो रहा था कि मनु के नाराज होने पर उसने उसे क्यों नहीं मनाया । श्रद्धा को यह आभास होता है कि मुझे मनु को मनाना चाहिए था ।
4– मनु को श्रद्धा का स्पर्श कैसा प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर — – मनु को श्रद्धा का स्पर्श उबटन के समान प्रतीत हो रहा था ।

5– ‘पुनर्मिलन’ में कवि ने किस रस का प्रयोग किया है ?
उत्तर — – ‘पुनर्मिलन’ में कवि ने करुण रस व विप्रलम्भ श्रृंगार रस का प्रयोग किया है ।
6– इड़ा को कामायनी धुंधली-सी छाया क्यों प्रतीत हो रही थी ?
उत्तर — – इड़ा को कामायनी विरह की वेदना के कारण धुंधली-सी छाया प्रतीत हो रही थी ।

7– विरहिणी के रूप में कामायनी का चित्रण कविने किस प्रकार किया है ?
उत्तर — – कवि ने विरहिणी के रूप में श्रद्धा का चित्रण मार्मिक रूप में किया है । कवि ने कली की टूटी हुई पंखुड़ियों के साथ श्रद्धा के जर्जर अंगों की, लुटे हुए मकरंद के साथ श्रद्धा के नष्ट हुए माधुर्य की और कली के मुरझा जाने से श्रद्धा के उपेक्षित सौंदर्य की तुलना की है ।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न —–UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 6 PUNARMILAN KAVY KHAND

1– जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय लिखिए ।

उत्तर — – जयशंकर प्रसाद हिंदी कवि, नाटककार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार थे । वे हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की, जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई । आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है । वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे, जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ लिखीं । कवि के रूप में वे निराला, पंत, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे, जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढ़ते हैं । इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं ।

उन्होंने विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन किया । 48 वर्षों के छोटे से जीवन में ही उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की । जीवन परिचय- प्रसाद जी का जन्म 1889 ई–में काशी के सरायगोवर्धन में हुआ । इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिए विख्यात थे । इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद ‘हर हर महादेव’ से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी । इनके पिता तंबाकू के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे । पिता की मृत्यु के बाद ही बड़े भाई ‘शम्भुरत्न’ का भी देहांत हो गया । कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुंबियों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया ।

प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कॉलेज में हुई, किंतु बाद में घर पर ही इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया । दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान इनके संस्कृत के अध्यापक थे । इनके गुरुओं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर्चा की जाती है । घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था । उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था । वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे । वे नियमित व्यायाम करने वाले, सात्विक खानपान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे । वे नागरीप्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे । क्षय रोग के कारण सन् 1937 को काशी में उनका देहांत हो गया ।

2– प्रसाद जी की भाषा-शैली पर टिप्पणी लिखिए ।

उत्तर — – प्रसाद जी के काव्य की प्रमुख विशेषता रहस्यवादी चित्रण है । प्रारंभ में ये ब्रजभाषा में काव्य रचना करते थे किंतु कुछ समय बाद इन्होंने खड़ीबोली को अपने काव्य का माध्यम बनाया । इनकी भाषा परिष्कृत व परिमार्जित साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है । इनकी भाषा में ओज, माधुर्य एवं प्रवाह सर्वत्र दर्शनीय हैं । इनके काव्य में सुगठित शब्द-योजना दृष्टिगोचर होती है । इनका वाक्य-विन्यास तथा शब्द-चयन अद्वितीय है । सूक्ष्म भाव अभिव्यक्ति के लिए इन्होंने लक्षणा व व्यंजना शब्द-शक्तियों को अपनाया है । प्रसाद जी की शैली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है । ये छोटे-छोटे वाक्यों में भी गंभीर भाव भरने में दक्ष थे । संगीतात्मकता एवं लय पर आधारित इनकी शैली अत्यंत सरस एवं मधुर है । जहाँ दार्शनिक विषयों पर आधारित अभिव्यक्ति हुई है, वहाँ इनकी शैली अवश्य गंभीर हो गई है ।

3– जयशंकर प्रसाद की काव्य-कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी भाषागत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर — – काव्य-कृतियाँ- जयशंकर प्रसाद जी के प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं- लहर, कानन कुसुम, झरना, प्रेम पथिक, करुणालय, आँसू, महाराणा का महत्व, उर्वशी, चित्राधार, तन मिलन तथा कामायनी आदि । अनेक विद्वानों ने ‘कामायनी’ को आधुनिक हिंदी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना है । भाषागत विशेषताएँ- जयशंकर प्रसाद जी की भाषा में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(अ) प्रसाद जी ने अपनी रचनाओं में परिष्कृत व परिमार्जित साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली का प्रयोग किया है ।
(ब) इनकी भाषा में ओज, माधुर्य एवं प्रवाह सर्वत्र दर्शनीय होता है ।
(स) इनके काव्यों में सुगठित शब्द-योजना दृष्टिगोचर होती है । (द) इनके काव्यों में वाक्य-विन्यास तथा शब्द चयन अद्वितीय है ।
(य) अपने सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए प्रसाद जी ने लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्तियों का आश्रय लिया है तथा
प्रतीकात्मक शब्दावली को अपनाया है ।
(र) इनकी शैली संगीतात्मक, सरस तथा मधुर है ।

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 5 PANCHVATI KAVY KHAND

(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव—– UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 6 PUNARMILAN KAVY KHAND

1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए

(अ) चौंक उठी——————————————————-फेरा ।

संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित ‘कामायनी’ महाकाव्य से ‘पुनर्मिलन’ शीर्षक से उद्धृत है ।
प्रसंग- इन पंक्तियों में रानी इड़ा के चौंकने तथा मनु को खोजती हुई श्रद्धा की दीन दशा का चित्रण किया गया है । मनु अपनी पत्नी श्रद्धा से रूठकर चले गए हैं । उनकी पत्नी श्रद्धा किस प्रकार उनके विरह में व्याकुल है, उसी के विषय में कवि इड़ा के माध्यम से बता रहे हैं

व्याख्या– जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि सारस्वत नगर की रानी इड़ा अपने विचारों में खोई हुई थी । सहसा कुछ दूर से आती हुई आवाज को सुनकर वह चौंक उठी । उसने सुना कि दूर से इस शांत रात्रि में कोई महिला यह कहती हुई चली आ रही है- अरे! कोई दया करके मुझे यह बता दो कि मेरा वह परदेशी प्रियतम कहाँ है ? मैं अपने उसी बावले प्रियतम की खोज में भटकती फिर रही हूँ ।

काव्यगत सौंदर्य-1– कवि ने यहाँ श्रद्धा के विरह से व्याकुल हृदय एवं उसकी व्यथा का सजीव एवं मर्मस्पर्शी चित्रण किया है । 2– इड़ा को भविष्य की सोच में डूबे दिखाकर कवि ने मानव-मन की विभिन्न दशाओं का तुलनात्मक चित्रण प्रस्तुत किया है ।
3– ‘प्रवासी’ शब्द का प्रयोग करके श्रद्धा ने यह घोषणा की है कि मनु का एकमात्र स्थान उसका हृदय है ।
4– ‘बावले’ शब्द में स्नेह की अधिकता की अभिव्यंजना है ।
5– ‘फेरा डालना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है ।
6– भाषा साहित्यिक खड़ीबोली 7– रस- विप्रलम्भ शृंगार 8– गुण-प्रसाद 9– अलंकार- अनुप्रास तथा रूपक ।

(ब) इड़ा उठी—————————————————कली ।
संदर्भ-पूर्ववत्
प्रसंग– श्रद्धा ने ने स्वप्न में अपने पति मन को घायल और मरणासन्न अवस्था में देखा । वह पत्र को साथ लेकर मन को खोजने निकल पड़ती है और खोजते-खोजते सारस्वत नगर की रानी इड़ा के पास पहुँचती है ।

व्याख्या- इड़ा ने जब उठकर देखा तो उसे राजपथ पर एक धुंधली-सी छाया आती दिखाई दी । उसके स्वर में करुणा वेदना थी और उसकी पुकार दुःख की आग में जलती हुई-सी प्रतीत हो रही थी । श्रद्धा का शरीर निरंतर चलने के कारण थक गया था । उसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गए थे । उसकी चोटी खुल गई थी, जो उसकी अधीरता को प्रकट कर रही थी । वह उस मुरझाई कली के समान दिखाई दे रही थी, जिसकी पंखुड़ियाँ टूटकर बिखर गई हों तथा जिसका पराग लुट गया हो । तात्पर्य यह है कि श्रद्धा की अस्त-व्यस्तता उसकी मानसिक परेशानी को प्रकट कर रही थी कि उसे अपने शरीर तक की सुध नहीं थी ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने यहाँ विरह से व्याकुल श्रद्धा का शब्दचित्र अंकित किया है ।
2– कली की टूटी पंखुड़ियों से श्रद्धा के जर्जर अंगों, लुटे मकरंद से श्रद्धा के नष्ट हुए माधुर्य और कली के मुरझाने से श्रद्धा के उपेक्षित सौंदर्य की तुलना की गई है ।

3– भाषा- साहित्यिक खड़ी बोली 4– रस- विप्रलंभ शृंगार और करुण 5– गुण- माधुर्य 6– अलंकार
अनुप्रास तथा उपमा ।

(स) इड़ा आज——————————————————-खोलोतो ।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में इड़ा, पति-वियोग से दु:खी श्रद्धा को धीरज बँधाती हुई उसे अपने पास रुक जाने का आग्रह करती है ।

व्याख्या- माँ-बेटे के दुःख को देखकर इड़ा का हृदय करुणा से भर गया । उनके पास पहुँचकर इड़ा ने कहा कि तुमको किसने भुला दिया है ? तुम इस अँधेरी रात में भटकती हुई कहाँ जाओगी ? तुम मेरे निकट आकर बैठ जाओ । तुम्हारी अस्त-व्यस्त दशा को देखकर मेरा हृदय व्यथित हो गया है । तुम अपने हृदय में जो पीड़ा छिपाए घूम रही हो, उसको मुझे बताओ । हो सकता है मैं तुम्हारा कष्ट दूर करने में तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ । तुम्हारे कष्टों को सुनने के लिए मेरा हृदय व्यग्र हो उठा है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– श्रद्धा के प्रति इड़ा की सहानुभूति में मानवीय संवेदना प्रकट की गई है । किसी दु:खी व्यक्ति के साथ बैठकर पीड़ा बाँटने की स्वाभाविक मानवीय प्रकृति को अभिव्यक्ति दी है । 2– भाषा- साहित्यिक खड़ी बोली 3– रस
करुण और शांत 4–गुण- प्रसाद 5– अलंकार- रूपक ।

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(द) उधर कुमार————————————————-खड़े हुए ।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इन पंक्तियों में श्रद्धा अपने पुत्र को मनु से मिलवाती है और सबके मिलने पर छोटे-से परिवार में आत्मीयता का भाव भर जाता है ।

व्याख्या- यहाँ कवि ने मनु के पुत्र मानव के भावों का वर्णन किया है, जब वह यज्ञभूमि के ऊँचे मंदिर, यज्ञ मंडप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, वह सोचने लगा कि यह सब कितना मोहक, सुंदर और नवीन है, जो मेरे मन को आकर्षित कर रहा है । मनु के होश में आने पर श्रद्धा ने अपने पुत्र से कहा कि तू भी आकर अपने पिता के दर्शन कर ले । ये भूमि पर लेटे हुए हैं । माँ का कथन सुनते ही उसने पिता के पास आकर कहा-”पिताजी! देखो मैं आपके पास आ गया । ‘ पिता से बात कर पुत्र को अति प्रसन्नता हुई और दोनों ही रोमांचित हो गए ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ बालकों की प्रकृति एवं उनकी उत्सुकता संबंधी भावना का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया गया है । 2– मनु से श्रद्धा और पुत्र के मिलन में स्वाभाविकता का समावेश हुआ है । 3– भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली
4– रस- शृंगार तथा वात्सल्य 5– गुण- माधुर्य 6–अलंकार- अनुप्रास ।

2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए

(अ) धुला हृदय, बन नीर बहा ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने श्रद्धा की व्याकुलता को स्पष्ट किया है कि मनु को घायल अवस्था में लेटे देखकर वह उसके पास जाती है और चीख उठती है”आह! प्राणप्रिय! यह क्या हो गया ? तुम इस दशा में क्यों हो ?” ऐसा कहते हुए उसका सारा दुःख उसके नेत्रों के द्वारा आँसू बनकर बहने लगता है ।

(ब) छिन्न-पत्र मकरंद लुटी-सी,ज्यों मुरझाई हुई कली ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने श्रद्धा की दशा को स्पष्ट किया है कि वह विरह-वेदना के कारण उस मुरझाई हुई कली के समान दिखाई देती है, जिसकी पँखुड़ियाँ टूटकर बिखर गई हों तथा जिसका पराग लुट गया हो । तात्पर्य यह है कि श्रद्धा की
अस्त-व्यस्तता उसकी व्याकुलता को प्रकट कर रही है ।

(स) आँखें खुली चार कोनों में, चार बिंदु आकर छाए ।
भाव स्पष्टीकरण- कवि का तात्पर्य है कि श्रद्धा और मनु के मिलन पर जब मनु श्रद्धा के स्पर्श के बाद अपनी आँखें
खोलतें हैं तो दोनों की आँखों में आँसू आ जाते हैं अर्थात् दोनों एक-दूसरे को देखकर भाव विह्वल हो जाते हैं ।

(द) छाया एक मधुर स्वर उस पर,श्रद्धा का संगीत बना ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने श्रद्धा, मनु व उनके पुत्र के मिलन का मार्मिक चित्रण किया है कि उस परिवार में श्रद्धा का मधुर स्वर संगीत बनकर छा गया । आशय यह है कि अब उनके मध्य आनंद ही आनंद विद्यमान है ।

(ङ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1– प्रसाद जी का जन्म हुआ था
(अ) सन् 1885 में (ब) सन् 1886 में (स) सन् 1491 में (स) सन् 1889 में

2– प्रसाद जी को मंगलाप्रसाद पारितोषिक’उनकी कौन-सी रचना के कारण दिया गया ?
(अ) लहर (ब) झरना (स) कामायनी (द) चित्राधार
3– ‘कामायनी’ की रचना विधा है
(अ) कहानी (ब) खंडकाव्य (स) महाकाव्य (द) नाटक

4– प्रसाद जी की रचना है
(अ) पंचवटी (ब) साहित्य लहरी (स) विनय पत्रिका (द) लहर
5– प्रसाद जी की कृति नहीं है
(अ) झरना (ब) आँसू (स) आकाशदीप (द) साकेत

(च) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण बोध

1– निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखिए

निस्तब्ध – शांत, मौन ।
पथ————–मार्ग, रास्ता
निशा————–यामिनी, रात ।
कोमल——-मृदुल, नरम ।
जननी, माता ।
विश्राम————–आराम, चैन ।

2– निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए

शब्द————–विलोम
दया————–निर्दय
अपनापन————–परायापन
प्रवासी————–निवासी
निज————–पराया
रजनी————–वासर
बिसराया————–याद किया
चंचल —————-सुस्त
मिलन————–वियोग

3– निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए पाठ से छाँटकर उन शब्दों को लिखिए, जिनके अर्थको ये प्रकट करते हैं

(अ) अधिक बोलने वाला————–मुखर
(ब) मन को हरने वाला————–मनोहर
(स) फूलों का रस————–मकरंद
(द) प्रियजनों से दूर विदेश में रहने वाला————–प्रवासी

4– प्रस्तुत पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार बताइए

(अ) मुखर हो गया सूना मंडप
उत्तर — – यहाँ मानवीकरण अलंकार है ।
(ब) इडा उठी–दिख पडाराज-पथ,धुंधली-सी छाया चलती ।
उत्तर — – यहाँ उपमा व उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

(स) अनुलेपन सा मधुर स्पर्श था, व्यथा भला क्यों रह जाती ?
उत्तर — – यहाँ उपमा व उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

(द) यही भूल अब शूल सदृश हो, साल रही उर में मेरे ।
उत्तर — – यहाँ अनुप्रास व उपमा अलंकार है ।

5– निम्न लिखित पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम बताइए


(अ) इड़ा आज कुछ द्रवित हो रही,दुःखियों को देखा उसने ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में करुण रस है ।
(ब)”आह प्राणप्रिय! यह क्या ? तुम यों ?”घुला हृदय, बन नीर बहा ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में करुण रस है ।
(स) शिथिल शरीर वसन विशृंखल, कबरी अधिक अधीर खुली । ”
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में विप्रलम्भ शृंगार रस है ।

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