UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 2 PADAWALI MEERABAI पाठ 2 पदावली मीराबाई

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 2 PADAWALI MEERABAI पाठ 2 पदावली मीराबाई

2 -- पदावली (मीराबाई) का  सम्पुर्ण हल 


(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1 — कृष्णाश्रयी शाखा की एकमात्र कवयित्री का नाम लिखिए ।।
उत्तर — कृष्णाश्रयी शाखा की एकमात्र कवयित्री मीराबाई थी ।।
2 — मीराबाई का जन्म कब और किस स्थान पर हुआ था ?
उत्तर — मीराबाई का जन्म सन् 1498 ई० के लगभग राजस्थान में मेड़ता के पास चौकड़ी ग्राम में हुआ था ।।
3 — मीराबाई के पति कौन थे ?
उत्तर — मीराबाई के पति चित्तौड़ के महाराणा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज थे ।।
4 — मीराबाई किसकी भक्त थी ?
उत्तर — मीराबाई श्रीकृष्ण की भक्त थी ।।
5 — मीराबाई ने बचपन से ही किसे अपना पति माना ?
उत्तर — मीराबाई ने बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपना पति माना ।।
6 — मीराबाई किन्हें अपना गुरु मानती थी ?
उत्तर — मीराबाई रैदास को अपना गुरु मानती थी ।।
7 — मीराबाई द्वारिका क्यों चली गई थी ?
उत्तर — मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राजपरिवार को अच्छा नहीं लगता था ।। उन्होंने मीरा को कई बार विष देकर मारने की कोशिश की ।। घरवालों के इस व्यवहार से परेशान होकर वे द्वारिका चली गई थीं ।।
8 — मीराबाई के काव्य में प्रयुक्त रस का नाम लिखिए ।।
उत्तर — मीराबाई ने अपने काव्य में शृंगार और शांत रस का प्रयोग किया है ।।
9 — हिंदी साहित्य में मीराबाई का क्या स्थान है ? वे किस नाम से जानी जाती हैं ?
उत्तर — कृष्णभक्त कवियों में मीरा का स्थान भावना की तरंगों और अगाध तन्मयता के कारण विशिष्ट है ।। हिंदी साहित्य में वे ‘प्रेम दीवानी मीरा’ के नाम से जानी जाती हैं ।।
10 — मीराबाई की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए ।।
उत्तर — (अ) नरसी जी का मायरा (ब) राग गोविंद

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न


1 — मीराबाई अपने नैनों में किनको बसाना चाहती हैं ? उनका स्वरूप कैसा है ?
उत्तर — मीराबाई अपने नैनों में श्रीकृष्ण को बसाना चाहती हैं ।। जो अपने सिर पर मोर पंखवाला मुकुट, कानों में मछली की आकृति के कुंडल, होठों पर सुंदर बाँसुरी, कमर पर छोटी-छोटी घंटियों वाली कमरबंद और पैरों में घुघरन वाली पाजेब धारण
करते हैं ।।

2 — मीराबाई को कौन-से धन की प्राप्ति हो गई है ? उस धन की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर — मीराबाई को राम नाम रूपी अमूल्य धन अर्थात् श्रीकृष्ण की प्राप्ति हो गई है ।। इस धन की विशेषता है कि यह खर्च नहीं होती, इसे कोई चोर नहीं चुरा सकता है और खर्च करने पर दिन-प्रतिदिन इसमें सवा गुना वृद्धि होती है ।।
3 — मीरा ने क्या मोल लिया है ?
उत्तर – मीरा ने श्रीकृष्ण को मोल लिया है ।। उन्होंने श्रीकृष्ण को सोच-समझकर तथा ठीक प्रकार से नाप-तौलकर मोल लिया है ।।
4 — मीरा ने वस्तु अमोलक किसे कहा है ?
उत्तर — मीरा ने ‘श्रीकृष्ण’ को वस्तु अमोलक कहा है, क्योंकि उन्होंने श्रीकृष्ण को बहुत अधिक मूल्य देकर मोल लिया है ।। अर्थात् मीरा ने सारे संसार से विरक्त होकर पूर्ण समर्पण भाव से श्रीकृष्ण को खरीदा है ।।
5 — मीरा किसके रंग में रंग गई हैं ? यहाँ तजि’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — मीरा श्रीकृष्ण के रंग में रंग गई हैं ।। यहां तजि’ से अभिप्राय है कि उन्होंने लोक-लाज को त्याग दिया है और शृंगार करके कृष्णभक्ति में नृत्य प्रारंभ कर दिया है ।।
6 — मीरा ने अपने पति की क्या पहचान बताई है ?
उत्तर — मीरा ने अपने पति की पहचान बताई है कि जो अपने सिर पर मोर-मुकुट धारण किए हुए हैं, वे कृष्ण ही मेरे पति
(स्वामी) हैं ।।

7 — मीरा संसार रूपी सागर पार करने का क्या उपाय बताती हैं ?
उत्तर — मीरा संसार रूपी सागर पार करने का एकमात्र उपाय कृष्णभक्ति को बताती हैं ।। वे कहती हैं कि कृष्ण ही इस संसार रूपी भवसागर से पार लगाकर, उद्धार करके मोक्ष प्रदान कर सकते हैं ।।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न


1 — मीराबाई का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के बारे में बताइए ।।
उत्तर — मीराबाई कृष्णाश्रयी शाखा की हिंदी की महान कवयित्री हैं ।। श्रीकृष्ण की उपासिका मीरा ने अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को पाने के लिए अपना राजसी वैभव त्याग दिया था ।। भरे-पूरे परिवार में जन्म लेकर भी अपने गिरधर नागर के चरणों में सजाने के लिए मीरा सदा आँसुओं की लड़ियाँ ही पिरोती रहीं ।।
जन्म परिचय- श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई का जन्म सन् 1498 ई — (संवत् 1555 विक्रमी) के लगभग राजस्थान में मेड़ता के पास चौकड़ी ग्राम में हुआ था ।। इनके पिता जोधपुर के राजा रत्नसिंह थे ।। बचपन में ही इनकी माता का निधन हो गया था ।। मीराबाई राव जोधाजी की प्रपौत्री एवं राव दूदाजी की पौत्री थी ।। अतः इनके दादा जी राव दूदाजी ने ही इनका पालन-पोषण किया था ।। दादाजी की धार्मिक प्रवृत्ति का प्रभाव इन पर पूरा पड़ा ।। तभी से मीराबाई के हृदय में कृष्ण-प्रेम उत्पन्न हो गया ।। आठ वर्ष की मीरा ने कब श्रीकृष्ण को पति के रूप में स्वीकार लिया, यह बात कोई न जान सका ।।
विवाह- मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के महाराणा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ था ।। इनका वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा ।। विवाह के कुछ समय बाद मीराबाई विधवा हो गई ।। इसके बाद इनके ससुर भी पंचतत्वों में विलीन हो गए ।। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया ।। किंतु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं ।। वे संसार की ओर से विरक्त हो गईं ।। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई ।। वे मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्ण जी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं ।। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा ।। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की ।। घरवालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वे द्वारका और वृंदावन गईं ।। वे जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था ।। लोग उनको देवियों जैसा प्यार और सम्मान देते थे ।।

मीराबाई की भक्ति– मीरा की भक्ति में माधुर्य-भाव काफी हद तक पाया जाता है ।। वे अपने इष्टदेव कृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रूप में करती थीं ।। उनका मानना था कि इस संसार में कृष्ण के अलावा कोई पुरुष है ही नहीं ।। वे कृष्ण की अनन्य दीवानी थी ।।
बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।। मोहनी मूरति साँवरि सुरति, नैना बने बिसाल॥ अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर बैजंती-माल ।। छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल ।।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल॥ मीराबाई रैदास को अपना गुरु मानते हुए कहती हैं
गुरु मिलिया रैदास दीन्ही ज्ञान की गुटकी ।।
भक्ति में मीराबाई को लोक-लाज का भी ध्यान नहीं रहता था- वे तन्मय होकर नाचती थीं ।। कृष्ण के विषय में उन्होंने कहा है | मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई ।। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई ।। तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई॥ छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ।।
संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई॥ कृष्ण भक्ति के पद गाते हुए सन् 1546 ई –में मीराबाई प्रभु के श्री चरणों में विलीन हो गई ।। रचनाएँ- मीराबाई ने गीतिकाव्य की रचना की है ।।
उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं
(अ) गीत गोविंद की टीका
(ब) राग सोरठा के पद
(स) राग गोविंद
(द) नरसी जी का मायरा
(य) राग विहाग एवं फुटकर पद
(र) गरबा गीत
(ल) मीराबाई की मल्हार

2 — ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरोन कोई पद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर — प्रस्तुत पद में मीराबाई जी ने श्रीकृष्ण को ही अपना बताया है ।। उनके अनुसार कृष्ण के अलावा उनका कोई और सगा संबंधी नहीं है ।। वे ही उनके पति हैं ।। संसार से जुड़े किसी भी प्राणी से उनका किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है ।। अर्थात् पिता, माता, भाई अब कोई उनका अपना नहीं है ।। उनके लिए तो श्रीकृष्ण ही सब कुछ हैं ।। मीराबाई जी कहती हैं कि उन्होंने श्रीकृष्ण के लिए अपने कुल की मर्यादाओं को भी छोड़ दिया है ।। उनका अब कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।। संतों की संगति से उन्होंने लोक-लाज का मोह छोड़ दिया है ।। आँसुओं की धारा से उन्होंने प्रेमरूपी बेल को सींचा है, जो अब फैल गई है तथा जिस पर आनंदरूपी फल लगे हुए हैं ।। अर्थात् श्रीकृष्ण की भक्ति करने से उन्हें जो आनंद की अनुभूति होती है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता ।। अब वे श्रीकृष्ण की भक्ति में ही अपनी खुशी देखती हैं और इस संसार को देखकर उन्हें रोना आता है अर्थात् संसार के व्यवहारों से वे विमुख हो गई हैं ।। मीराबाई श्रीकृष्ण जी को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे गिरधर, मैं आपकी दासी हूँ, अत: मेरा उद्धार करो ।। सारांशत: मीराबाई कृष्ण की भक्ति में इस कदर लीन हो गई हैं कि उन्हें अब संसार और संसार से संबंधित किसी वस्तु से किसी भी प्रकार का कोई मोह नहीं रह गया है ।।

(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव


1 — निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए
(अ) पायो जी — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — –गायो ।।
संदर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्य खंड’ में संकलित ‘मीराबाई’ द्वारा रचित ‘मीरा सुधा-सिंधु’ से ‘पदावली’ शीर्षक से उद्धृत है ।।
प्रसंग- इस पद में कवयित्री ने सद्गुरु की कृपा से प्राप्त रामनाम का महत्व बताया है ।।

व्याख्या- मीराबाई कहती हैं कि मैंने राम-नाम-रूपी अमूल्य रत्न प्राप्त कर लिया है ।। सच्चे गुरु ने मुझ पर कृपा करके राम-नाम की अमूल्य वस्तु मुझे प्रदान की है ।। राम-नाम के रत्न को पाकर मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है कि मैंने जन्मजन्मांतरों से संचित खजाना प्राप्त कर लिया है ।। मैंने अब तक प्राप्त सभी सांसारिक भोग्य वस्तुओं को त्यागकर रामनाम की वह अपूर्व निधि प्राप्त कर ली है, जो खर्च नहीं होती, इसे चोर नहीं चुरा सकते और खर्च करने पर दिन-प्रतिदिन इसमें सवा गुना वृद्धि होती है ।। मीरा कहती हैं कि मुझे ईश्वर-भक्तिरूपी नाव मिल गई है और उसका खेने वाला सच्चा गुरु है ।। कुशल सद्गुरु रूपी मल्लाह मिल जाने से इस भक्तिरूपी नौका द्वारा मैं संसाररूपी सागर को पार कर सकूँगी और मोक्ष प्राप्त कर लूँगी ।। मीराबाई कहती हैं कि मेरे स्वामी गिरधर नागर हैं और मैं प्रसन्नतापूर्वक बार-बार उनका यशोगान करती
काव्यगत सौंदर्य-1 — यहाँ सद्गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।। 2 — भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति और श्रद्धा भावना व्यक्त हुई है ।। 3 — मीरा के आराध्यदेव भगवान श्रीकृष्ण हैं ।। यहाँ ‘राम’ शब्द उनके लिए ही प्रयोग हुआ है ।। 4 — भाषा-राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा 5 — रस-शांत 6 — गुण-प्रसाद 7 — अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास और रूपक
8 –छंद-गेय पद 9 — संत कबीरदास जी ने भी अपने दोहों में कई जगह सद्गुरु की महिमा का वर्णन किया है ।।

(ब) माईरी — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — –कौल॥
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- मीराबाई कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो गई थीं ।। इस पद में वे बताती हैं कि उन्होंने कृष्ण को पूरी तरह से अपना बना लेने का निर्णय भली-भाँति सोच-विचारकर ही किया है ।।
व्याख्या- मीराबाई कहती हैं- अरी माई, सुन! मैंने तो कृष्ण को मोल ले लिया है, अर्थात् कृष्ण पूरी तरह मेरे हो गए हैं; क्योंकि जो व्यक्ति मूल्य देकर वस्तु को खरीद लेता है, उस पर उसी का पूरा अधिकार हो जाता है ।। भले ही इस विषय में लोग तरह-तरह की बातें करते रहें ।। कोई किसी वस्तु को छिपाकर खरीदता है और कोई चुपचाप खरीद लेता है, किंतु मैंने ऐसा नहीं किया है ।। मैने तो उन्हें सरेआम ढोल बजाकर खरीदा है ।। कोई कहता है कि मैंने कृष्ण को महँगा खरीदा है, तो कोई कहता है सस्ता खरीदा है लेकिन मैंने तो उन्हें भली-भाँति नाप-तोल करके यानि तराजू से तोल करके मोल लिया है ।। कोई उन्हें काला बताता है, तो कोई गोरा, परंतु मैंने तो उन्हें अपना सब कुछ देकर अर्थात् सारे संसार से विरक्त होकर पूर्ण समर्पण भाव से खरीदा है ।। सब यह जानते हैं कि मीरा ने आँखें खोलकर अर्थात् बहुत समझ-बूझकर श्रीकृष्ण को अपनाया है ।। किसी को इस बात का क्या पता है कि प्रभु श्रीकृष्ण ने मीरा को पूर्वजन्म के वायदे के अनुसार दर्शन दिए हैं ।।


काव्यगत सौंदर्य-1 — प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का अप्रतिम समर्पण भाव दर्शनीय है ।। जिस प्रकार जब कोई सौदागर किसी वस्तु को खरीदता है तो उसकी खरीद पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ हुआ करती हैं; उसी प्रकार श्रीकृष्ण को अपना लेने पर मीराबाई की तरह-तरह की आलोचनाएँ हो रही हैं, किंतु मीरा को इसकी कोई चिंता नहीं है ।। उनके अनुसार तो सौदा बिलकुल नाप-तोलकर किया गया है ।। 2 — भाषा- राजस्थानी भाषा के साथ-साथ ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है तथा बजंता ढोल’, ‘तराजू तोल’, और ‘आँखें खोल’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग किया गया है ।। 3 — रस- भक्ति 4 –गुण- प्रसाद 5 — अलंकार- रूपक और अनुप्रास 6 — छंद-गेय पद

(स) मैं तो साँवरे — — ——————————जाँची॥
संदर्भ-पूर्ववत्
प्रसंग- इस पद में मीरा भगवान कृष्ण के प्रेम में डूबकर पूर्णरूप से उन्हीं के रंग में रँग गई हैं, इसलिए संसार की अन्य किसी वस्तु में उनका मन नहीं लगता ।।
व्याख्या- मीरा कहती है कि मैं तो साँवरे कृष्ण के श्याम रंग में रँग गई हूँ अर्थात् उनके प्रेम में आत्मविभोर हो गई हूँ ।। मैंने तो लोक-लाज को छोड़कर अपना पूरा शृंगार किया है और पैरों में घुघरू बाँधकर नाच भी रही हूँ ।। साधुओं की संगति से मेरे हृदय की सारी कालिमा मिट गई है और मेरी दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल गई है ।। मैं प्रभु श्रीकृष्ण का नित्य गुणगान करके कालरूपी सर्प के चंगुल से बच गयी हूँ अर्थात् अब मैं जन्म-मरण के चक्र से छूट गयी हूँ ।। अब कृष्ण के बिना मुझे यह संसार निस्सार और सूना लगता है और उनकी बातों के अतिरिक्त अन्य सभी बातें व्यर्थ लगती हैं ।। मीराबाई को केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में ही आनंद मिलता है, संसार की किसी अन्य वस्तु में नहीं ।।
काव्यगत सौंदर्य- 1 — इस पद में मीरा की अनन्य भक्ति- भावना का भावात्मक चित्रण हुआ है ।। 2 — मीरा ने स्वयं को श्रीकृष्ण के समक्ष समर्पित कर दिया है ।। 3 — प्रेम दीवानी मीरा के लिए यह संसार निस्सार और व्यर्थ है ।। 4 — भाषाराजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा 5 — रस- शांत और भक्ति 6 — गुण- माधुर्य 7 — अलंकार- अनुप्रास, रूपक और
पुनरुक्तिप्रकाश 8 — छंद-गेय पद

`
(द) मेरे तो गिरधर — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — — –मोई॥
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीराबाई कहती हैं कि वे तो एकमात्र श्रीकृष्ण को प्राप्त करना चाहती हैं, किसी अन्य को नहीं ।।
व्याख्या- मीराबाई कहती हैं कि मेरे एकमात्र गिरधर गोपाल (श्रीकृष्ण) ही हैं, दूसरा कोई नहीं है ।। जो सिर पर मोरमुकुट धारण किए हुए हैं, वे कृष्ण ही मेरे स्वामी अर्थात् पति हैं ।। माता-पिता, भाई-बंधु कोई भी मेरा नहीं है ।। अपने गिरधर के प्रेम में मैंने अपने कुल (राजवंश) की सारी मर्यादाएँ त्याग दी हैं ।। अब मेरा कोई क्या बिगाड़ेगा (जब कृष्ण मेरे साथ हैं) ? साधु संतों के पास बैठकर मैंने झूठी बनावटी परंपराओं की लोक- लज्जा को भी खो दिया है ।। मैंने प्रेम की बेल को बोकर, उसे कृष्ण– वियोग के आँसुओं से सींचा है और अब तो यह बेल चारों ओर फैल गई है और इस पर आनंदरूपी फल भी लग गए हैं ।। मीरा को कृष्ण-भक्ति ही रुचिकर लगती है और इस नश्वर संसार को देखकर उन्हें रोना भी आता है ।। मीरा श्रीकृष्ण से विनती करती है कि हे गिरधरलाल! मैं आपके चरणों की दासी हूँ ।। अब आप ही मुझे इस संसाररूपी सागर से पार लगाओ और मेरा उद्धार करो ।।
काव्यगत सौंदर्य- 1 — यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की अनन्य भक्ति प्रदर्शित हुई है ।। 2 –ईश्वर के प्रति प्रणय भावना पर आधारित भक्ति चित्रित की गई है ।। 3 — भाषा- राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा 4 — रस-भक्ति 5 — गुण- प्रसाद 6 — अलंकाररूपक 7 — छंद- गेय पद ।।

2 — निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए


(अ) वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो ।।
भाव स्पष्टीकरण- मीराबाई जी कहती हैं कि मेरे गुरु ने मुझे राम-नाम के रूप में अमूल्य वस्तु दी है, जिसको मैंने गुरु की
कृपा समझकर ग्रहण कर लिया है ।।

(ब) खरचै नहिं कोई चोर न लैवे, दिन-दिन बढ़त सवायो ।।
भाव स्पष्टीकरण- मीराबाई जी कहती हैं कि राम नाम की अपूर्व निधि जो मैंने प्राप्त की है, वह खर्च नहीं होती, इसे कोई
चोर नहीं चुरा सकता और खर्च करने पर दिन-प्रतिदिन इसमें सवा गुना वृद्धि होती है ।।

(स) कोई कहै छाने कोई कहै चुपके, लियो री बजंता ढोल ।।
भाव स्पष्टीकरण- मीराबाई कहती हैं कि किसी वस्तु की खरीद कोई छिपाकर करता है और कोई चुपचाप, किंतु मैंने श्रीकृष्ण को न तो छिपाकर खरीदा है और न ही चुपचाप, मैंने तो उन्हें ढोल बजाकर डंके की चोट पर खरीदा है ।।


(ङ) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण बोध

1 — निम्नलिखित पदों में नाम सहित समास-विग्रह कीजिए
समस्त पद……………………….समास विग्रह
मकराकृत……………………….मछली के समान आकृति
कुमति……………………….कुत्सित मति
नंदलाल……………………….नंद का लाल
अमोल……………………….न मोल
राम-रतन……………………….राम रूपी रतन

2 — निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
शब्द……………………….तत्सम शब्द
बिसाल……………………….विशाल
आणंद……………………….आनन्द
भगति ……………………….भक्ति
बछल……………………….वत्सल
क्षुद्र सिंगार……………………….शृंगार

3 — मीरा के काव्य में किस रस की प्रधानता है ?
उत्तर — मीरा के काव्य में श्रृंगार व शांत रस की प्रधानता है ।। ।।
4 — निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल ।।
उ०- इस पंक्ति में अनुप्रास व उपमा अलंकार है ।।
(ब) बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।।
उत्तर — इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है ।।
(स) जनम-जनम की पूँजी पाई ।।
उत्तर — इस पंक्ति में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।।
(द) अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोई ।।
उत्तर — इस पंक्ति में रूपक और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।।
(य) पायो जी म्है तो राम-रतन धन पायो ।।
उत्तर — इस पंक्ति में रूपक अलंकार है ।।


(च) वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1 — मीराबाई का जन्म-स्थान है
(अ) लखनऊ (ब) राजस्थान (स) दिल्ली (द) कानपुर
उत्तर –
2 — मीराबाई की कृति है
(अ) साहित्य लहरी (ब) बीजक (स) नरसी जी का मायर (द) गीतावली

3 — मीराबाई उपासिका है
(अ) राम की (ब) कृष्ण की (द) विष्णु की (स) शिव की

4 — मीराबाई की भाषा है
(अ) अवधी (ब) संस्कृत (द) साहित्यिक ब्रज (स) अंग्रेजी

Leave a Comment