UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 9 PATH KI PAHACHAN KAVY KHAND (HARIVANSH RAY VACHCHAN)

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 9 PATH KI PAHACHAN KAVY KHAND (HARIVANSH RAY VACHCHAN)

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI
9-- पथ की पहचान (हरिवंशराय बच्चन')


(क) अतिउत्तरीय प्रश्न
1– बच्चन जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर — – बच्चन जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद (प्रयाग) के नजदीक प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूट्टी में हुआ था ।
2– बच्चन जी के माता-पिता का नाम क्या था ? वे ‘बच्चन’ नाम से कैसे मशहूर हुए ?
उत्तर — – बच्चन जी के माता-पिता का नाम क्रमशः सरस्वती देवी और प्रतापनारायण श्रीवास्तव था । इनको बाल्यकाल में ‘बच्चन’ कहा जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चा’ है । बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए ।
3– बच्चन जी को राज्यसभा का सदस्य कब मनोनीत किया गया ?
उत्तर — – बच्चन जी को सन् 1966 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया ।
4– बच्चन जीने पी-एच–डी–की उपाधि कहाँ से प्राप्त की ?
उत्तर — – बच्चन जी ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी-एच–डी–की उपाधि प्राप्त की ।
5– बच्चन जी की वह कौन-सी रचना है, जिससे वे अत्यधिक लोकप्रिय हुए ?
उत्तर — – बच्चन जी अपनी रचना ‘मधुशाला’ से अत्यधिक लोकप्रिय हुए ।
6– हरिवंशराय की प्रथम कृति कौन-सी थी ?
उत्तर — – हरिवंशराय की प्रथम कृति ‘तेरा हार’ थी ।
7– बच्चन जी ने अपने काव्य में किस भाषा-शैली का प्रयोग किया है ?
उत्तर — – बच्चन जी ने अपने काव्य में सरल खड़ीबोली व मुक्तक और भावात्मक गीति शैली का प्रयोग किया है ।
8– काव्य की किन विशेषताओं के कारण बच्चन जी को लोकप्रियता मिली ?
उत्तर — – काव्य की सरलता, संगीतात्मकता, प्रवाह और मार्मिकता के कारण बच्चन जी को लोकप्रियता मिली ।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न
1– पुस्तकों में किसकी कहानी नहीं छापी गई है ? कविता के आधार पर लिखिए ।
उत्तर — – पुस्तकों में हमारे जीवन-पथ की कहानी नहीं छपी होती है । जीवन-पथ की कहानी हमें स्वयं ही बनानी पड़ती है । हम दूसरे लोगों के कहे अनुसार अपने जीवन का मार्ग निर्धारित नहीं कर सकते । इसका निर्धारण हमें स्वयं ही करना होता है ।
2– हमें सफल यात्री बनने के लिए क्या प्रयास करने चाहिए ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर — – हमें सफल यात्री बनने के लिए अपने लक्ष्य व मार्ग का निर्धारण भली-भाँति कर लेना चाहिए । रास्ता अच्छा है या बुरा यह सोचकर समय नष्ट नहीं करना चाहिए तथा मार्ग पर आस्था के साथ चलना चाहिए ।

3– ‘पथ की पहचान’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर — – ‘पथ की पहचान’ कविता के माध्यम से कवि जीवन-मार्ग पर बढ़ने वाले मनुष्य को संदेश देना चाहता है कि पथिक इस मार्ग पर चलने से पहले तुम्हें अपने लक्ष्य व मार्ग का निर्धारण कर लेना चाहिए । अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए रास्ते के बारे में सोचकर समय नष्ट मत करो । आस्था के साथ अपने चुने मार्ग पर आगे बढ़ो ।
4– ‘आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों’इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जीवन की किस वास्तविकता से परिचित कराना चाहते हैं ?
उत्तर — – इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जीवन की इस वास्तविकता से परिचित कराना चाहते हैं कि यथार्थ जीवन की कठोरता मनुष्य की कोमल कल्पना को साकार नहीं होने देती है । जीवन में कोमल कल्पना और यथार्थ के बीच समन्वय होना चाहिए । इसलिए आँखों में स्वर्ग के सुख की कल्पना तो अवश्य करो, परंतु अपने पैर यथार्थ के धरातल पर ही जमाए रखो । अर्थात् मन में चाहे कितनी ऊंची कल्पना हो,परंतु कार्य व्यावहारिक होना चाहिए ।


5– रास्ते पर चलने से पहले हमे बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है । अतः हमें किन बातों को ध्यान में
रखकर चलना चाहिए ?
उत्तर — – रास्ते पर चलने से पहले हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमने जो लक्ष्य व मार्ग चुना है, वह उपयुक्त हो । हमें मार्ग में बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जो हमारा मार्ग अवरुद्ध कर सकती हैं, इस मार्ग पर चलते हुए कौन हमसे बिछड़ जाए व कौन मिल जाए तथा जीवन की यात्रा किस स्थान पर जाकर समाप्त हो, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता ।
6– ‘स्वप्न दो तो सत्य दो सौ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर — – इस पंक्ति के द्वारा कवि कहना चाहते हैं कि स्वप्न या कल्पनाएँ जीवन में बहुत कम हैं, उनके सामने यथार्थ सत्य अनगिनत हैं । अर्थात् सत्य का मुकाबला कल्पनाओं से नहीं करना चाहिए । सुख के स्वप्नों में डूबकर जीवन की वास्तविकताओं की अनदेखी नहीं करनी चाहिए ।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

1– हरिवंशराय बच्चन के जीवन परिचय और काव्य कृतियों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — – हरिवंशराय श्रीवास्तव ‘बच्चन’ हिंदी भाषा के प्रमुख कवि और लेखक थे । ‘हालावाद’ के प्रवर्तक बच्चन जी हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं । उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘मधुशाला’ है । वे भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता भी हैं । जीवन परिचय- हरिवंशराय बच्चन जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद (प्रयाग) के नजदीक प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम प्रतापनारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था । इनको बाल्यकाल में ‘बच्चन’ कहा जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चा’ या संतान होता है । बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए । इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली, जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था ।

उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम–ए–और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू–बी–यीट्स की कविताओं पर शोध कर पी- एच–डी–पूरी की । 1926 में 19 वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ, जो उस समय 14 वर्ष की थी । लेकिन 1936 में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई । पाँच साल बाद 1941 में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया, जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं । इसी समय उन्होंने ‘नीड़ का पुनर्निर्माण’ जैसी कविताओं की रचना की । तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए । हिंदी साहित्य की आराधना करते हुए यह महान विभूति 18 जनवरी 2003 को पंचतत्व में विलीन हो गई ।

रचनाएँ- हरिवंशराय बच्चन’ की प्रथम कृति ‘तेरा हार’ सन् 1932 ई–में प्रकाशित हुई । उनकी अन्य कृतियाँ इस प्रकार है (अ) निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत- इन संग्रहों में कवि के हृदय की पीड़ा साकार हो उठी है । ये कृतियाँ बच्चन जी
की सर्वोत्कृष्ट काव्य उपलब्धि कही जा सकती हैं ।
(ब) मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश- ये तीनों संग्रह एक के बाद एक शीघ्र प्रकाश में आए । हिंदी में इन्हें हालावाद की रचनाएँ कहा गया । बच्चन जी की इन कविताओं में प्यार और कसक है ।
(स) सतरंगिणी, मिलनयामिनी- इन रचनाओं में उल्लास-भरे तथा श्रृंगार रस से परिपूर्ण गीतों के संग्रह हैं । इनके अतिरिक्त बच्चन जी के अनेक गीत-संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें प्रमुख हैं- आकुल अंतर, प्रणय-पत्रिका, बुद्ध का नाचघर तथा आरती और अंगारे ।

2– बच्चन रचित ‘पथ की पहचान कविता का भाव या आशय अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर — – ‘पथ की पहचान’ कविता में कवि ने मनुष्य को जीवन पथ पर आगे बढ़ने से पहले सावधान किया है कि यात्रा आरंभ करने से पहले मनुष्य को अपने लक्ष्य व मार्ग का निर्धारण कर लेना चाहिए । इस लक्ष्य का निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ता है । यह कहानी पुस्तकों में नहीं छपी होती । जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने भी अपने लक्ष्य का निर्धारण स्वयं ही किया था । कवि ने पथिक को अच्छे-बुरे की शंका किए बिना आस्था के साथ अपने मार्ग पर चलने को कहा है, जिससे लक्ष्य तक पहुँचने की यात्रा सरल हो जाएगी । यदि हम अपने मन में यह सोच लें कि यही मार्ग सही एवं सरल है तो हम लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से कर सकते हैं । जितने भी महापुरुषों ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति की है, वे मार्ग की कठिनाइयों से नहीं घबराए और अपने मार्ग पर निरंतर बढ़ते रहे । उचित मार्ग की पहचान से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है । जीवन के मार्ग में कब कठिनाइयाँ आएँगी और कब सुख मिलेगा, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । अर्थात् यह सब अनिश्चित है कि कब कोई हमसे बिछड़ जाएगा और कब हमें कोई मिलेगा, कब हमारी जीवन यात्रा समाप्त हो जाएगी । कवि मनुष्य को हर विपत्ति से सामना करने का प्रण लेने की प्रेरणा देते हैं । कल्पना करना मनुष्य का स्वभाव है ।

कवि के अनुसार जीवन के सुनहरे सपने देखना गलत बात नहीं है । अपनी आयु के अनुरूप सभी कल्पना करते हैं । परंतु इस संसार में कल्पनाएँ बहुत कम और यथार्थ बहुत अधिक हैं । इसलिए तू कल्पनाओं के स्वप्न में न डूब, वरन् जीवन की वास्तविकताओं को देख । जब मनुष्य स्वर्ग के सुखों की कल्पना करता है तो उसकी आँखों में प्रसन्नता भर जाती है । पैरों में पंख लग जाते हैं और हृदय उन सुखों को पाने को लालायित हो जाता है परंतु जब यथार्थ (सत्य) सामने आता है तो मनुष्य निराश हो जाता है । हमारे आँखों में भले ही स्वर्ग के सुखों के सपने हो परंतु हमारे पैर धरातल पर ही जमे होने चाहिए । राह के काँटे हमें जीवन मार्ग की कठिनाइयों का संदेश देते हैं । इसलिए इन कष्टों से लड़ने के लिए सोच-विचारकर ही कार्य करो और एक बार आगे बढ़ने पर विघ्न-बाधाओं से मत घबराओ ।

(घ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव

1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए

(अ) पुस्तकों में———————————-पहचान कर ले ।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘सतरंगिणी’ काव्य संग्रह से ‘पथ की पहचान’ शीर्षक से उद्धृत है ।
प्रसंग- इस पद्यांश में कवि कहता है कि हमें कोई भी कार्य सोच-विचारकर करना चाहिए । लक्ष्य चुन लेने के बाद उस काम की कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए ।
व्याख्या- यात्रा पर निकलने को तैयार पथिक के संबोधन के द्वारा कवि मनुष्य को जीवन-पथ पर आगे बढ़ने से पहले सावधान करते हुए कहता है कि हे पथिक! हमारे जीवन-पथ की कहानी पुस्तकों में नहीं छपी होती, वह तो स्वयं ही बनानी पड़ती है । दूसरे लोगों के कथन के अनुसार भी हम अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकते । इसका निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ेगा । इस संसार-पथ पर अनेक लोग आए और चले गए अर्थात् पैदा हुए और मृत्यु को प्राप्त हो गए, उन सबकी गणना नहीं की जा सकती, परंतु कुछ ऐसे कर्मवीर भी इस जीवन-मार्ग से गुजरे हैं, जिनके कर्मरूपी पदचिह्न आज भी आने वाले पथिकों का मार्गदर्शन करते हैं; उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं; अर्थात् इस संसार में अनेक लोग जन्मे हैं, जिनके पदचिह्न मौन भाषा में उनके महान् कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं । उनके पचिह्नों की मूक भाषा में जीवन की सफलता के अनेक रहस्य छिपे हैं । हे पथिक! तू उस मूक भाषा के उन रहस्यमयी अर्थों को समझकर अपने लक्ष्यरूपी गंतव्य और उस तक जाने के मार्ग का पूर्व निर्धारण कर ले । उन सभी कर्मठ महापुरुषों ने काम करने से पहले खूब सोच-विचार किया और फिर मन-प्राण से अपने कार्य में जुटकर सफलता प्राप्त की । हे पथिक! चलने से पहले अवश्य ही अपने मार्ग को भली प्रकार से पहचान ले ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पथिक को कर्तव्य के मार्ग पर बढ़ने का संदेश दिया है और कार्य करने से पहले सोच-विचार करने की प्रेरणा दी है । 2– आत्म-प्रेरणा का भाव भी मुखरित हुआ है । 3– भाषा- सरल तथा सरस खड़ीबोली 4– रस- वीर 5–गुण- ओज 6– अलंकार- अनुप्रास तथा विरोधाभास ।

(ब) है अनिश्चित ——– ———————————-पहचान कर ले ।
संदर्भ- पूर्ववत्प्र
संग- यहाँ पर कवि जीवन-पथ पर आने वाले सुख-दुःखों के प्रति सचेत करता हुआ मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहा है ।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे जीवन-पथ के पथिक! यह पहले से ही नहीं निश्चित किया जा सकता है कि तेरे मार्ग में किस स्थान पर नदी, पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी; अर्थात् तेरे मार्ग में कब कठिनाइयाँ और बाधाएँ आएँगी, यह नहीं कहा जा सकता, यह सब कुछ अनिश्चित है । यह भी नहीं कहा जा सकता कि तेरे जीवन के मार्ग में किस स्थान पर सुंदर वन और उपवन मिलेंगे, अर्थात् तुम्हारे जीवन में कब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी ? यह भी निश्चित नहीं है कि कब अचानक तुम्हारी जीवन-यात्रा समाप्त हो जाएगी अर्थात् कब तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी ? कवि आगे कहता है कि यह बात भी अनिश्चित है कि मार्ग में कब तुझे फूल मिलेंगे और कब काँटे तुझे घायल करेंगे; अर्थात् तुम्हारे जीवन में कब सुख प्राप्त होगा और कब दुःख- यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि तेरे जीवन-मार्ग में कौन अपरिचित अचानक आकर तुझसे मिलेंगे और कौन प्रियजन अचानक तुझे छोड़ जाएंगे । हे पथिक! तू अपने मन में प्रण कर ले कि जीवन की कठिनाइयों के सम्मुख नतमस्तक न होकर बड़ीसे-बड़ी विपत्ति के आ पड़ने पर भी तुझे आगे ही बढ़ते जाना है । हे जीवन-पथ के यात्री! तू पथ पर चलने से पूर्व जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भली-भाँति जानकर अपने मार्ग की पहचान कर ले ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने यहाँ पथिक को माध्यम बनाकर जीवन-पथ की यथार्थता पर प्रकाश डाला है । 2– कवि ने स्पष्ट किया है कि दृढ़ निश्चय से ही सफलता की प्राप्ति संभव हो सकती है । 3– भाषा- सरल तथा सरस खड़ीबोली 4– रस- वीर 5– गुण- ओज 6– अलंकार- रूपक तथा अनुप्रास ।

(स) कौन कहता है——————– ——————————–पहचान कर ले ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस पद्य में कवि कहता है कि मानव द्वारा कल्पना करना स्वाभाविक है, किंतु इसके साथ सत्य का भी आभास होना आवश्यक है ।
व्याख्या- हे पथिक! स्वप्न देखना अर्थात् कल्पना करना मानव का स्वभाव है । तुमसे यह किसने कहा है कि जीवन में सुनहरे स्वप्न देखना मना है । सभी अपनी-अपनी इच्छाओं एवं आयु के अनुरूप कल्पना करते हैं । इसलिए मनुष्य भी कल्पना अवश्य करेगा, प्रयत्न करने पर भी इन्हें कल्पना करने से रोका नहीं जा सकता । जिस प्रकार नील-गगन में तारे उदित होते हैं, ऐसे ही मन में सुंदर-सुंदर कल्पनाएँ भी झिलमिलाती हैं । ये स्वप्न अर्थात् कल्पनाएँ तभी सार्थक हैं, जब इनका कोई उद्देश्य हो, परंतु इस संसार में कुछ ही कल्पनाएँ पूरी होती हैं, जबकि यथार्थ अनगिनत हैं । इसलिए केवल कल्पना-लोक में ही मत अटक जाओ, सत्य को भी अवश्य देखो । तात्पर्य यह है कि सुख के स्वप्नों में ही नहीं डूब जाना चाहिए, वरन् जीवन की वास्तविकताओं को भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए । ऐसा करने पर ही उन्नति का पथ प्रशस्त हो सकेगा । जो कुछ सोच-विचार करना है, अपना पथ निर्धारित करने से पहले ही कर लेना चाहिए । काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि का यहाँ तात्पर्य है कि महत्वकांक्षा यथार्थ के सत्य पर आधारित होनी चाहिए । इसके लिए कठिन श्रम के साथ-साथ कर्तव्य का पालन भी आवश्यक है । 2– भाषा- सरल खड़ीबोली 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– अलंकार- रूपक तथा अनुप्रास ।

(द) स्वपन आता स्वर्ग का————————————————————–पहचान कर ले ।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पथिक को आदर्श और यथार्थ का उचित समन्वय करके ही जीवन-पथ पर बढ़ने के लिए सचेत किया है ।
व्याख्या- हे पथिक! कल्पना का आनंद स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है । जब मनुष्य स्वर्ग के सुखों की कल्पना करता है तो उसकी आँखों में प्रसन्नता का प्रकाश भर जाता है । उसके चरण उस रंगीन कल्पना तक पहुँचने के लिए बड़ी तीव्रता से बढ़ने लगते हैं । उसका हृदय उस सुंदर कल्पना को गले लगाने के लिए उत्कंठित रहता है, परंतु कर्मपथ पर कोई एक ही कठिनाई जब किसी काँटे की तरह उसके पैर में चुभती है तो उससे जो रक्त निकलता है, उसी में कल्पना का सारा संसार डूब जाता है; अर्थात् व्यक्ति कठोर कठिनाइयों से विचलित होकर उन सुखों की प्राप्ति की कल्पना करना ही छोड़ देता है । इस प्रकार यथार्थ जीवन की कठोरता मनुष्य की कोमल कल्पना को साकार नहीं होने देती है । कवि बच्चन यहाँ परामर्श देते हैं कि जीवन में कोमल कल्पना और कठोर यथार्थ के बीच समन्वय होना आवश्यक है, तभी जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है । इसलिए आँखों में स्वर्ग के सुख की कल्पना तो अवश्य करो, परंतु अपने पैर यथार्थ के धरातल पर ही जमाए रखो; अर्थात् कल्पना और यथार्थ में सामंजस्य बनाए रखो । पथ के काँटे हमें यही संदेश देते हैं कि जीवन कष्टों से भरा पड़ा है और हमें उन्हीं के मध्य अपने सपनों की दुनिया बसानी है । उन कष्टों से जूझने के लिए तैयार रहो और पर्याप्त सोच-विचार के बाद ही कोई कार्य करो एवं एक बार काम शुरू कर देने पर विघ्न-बाधाओं से मत घबराओ ।

काव्यगत सौंदर्य-1– कवि ने मनुष्य को यथार्थ व आदर्शों के बीच समन्वय बनाकर अपने जीवन-पथ पर बढ़ने की प्रेरणा देते हैं । 2– मनुष्य कठिनाइयों और बाधाओं से बहुत कुछ सीखता है । 3– कवि ने प्रतीकों का आश्रय लेकर अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है । 4– भाषा- मुहावरेदार खड़ीबोली 5–रस-शांत 6–गुण- प्रसाद 7– अलंकार- अतिशयोक्ति, अनुप्रास और रूपक ।


2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ।

(अ) यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कुछ ऐसे कर्मवीर भी इस जीवन-पथ से गुजरे हैं, जो इस मार्ग पर अपने पैरों की निशानी छोड़ गए हैं जिनके कर्मरूपी पदचिह्न आज भी आने वाले पथिकों का मौन रहकर मार्गदर्शन करते हैं । अर्थात् उनके पदचिह्नों की मूकभाषा में जीवन की सफलता के अनेक रहस्य छिपे हैं ।

(ब) कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने पथिक को सावधान करते हुए स्पष्ट किया है कि जीवन-पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ आएँगी । ये सब कठिनाइयाँ अनिश्चित हैं । यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि तुम्हें जीवन-पथ में कौन अपरिचित अचानक मिल जाएंगे और कौन प्रियजन अचानक तुम्हें छोड़ जाएँगे ।
(स) स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो,
सत्य का भी ज्ञान कर ले ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने पथिक के माध्यम से स्पष्ट किया है कि मनुष्य को कल्पनाओं पर ही रीझना नहीं चाहिए । उसे सत्य को भी अवश्य देखना चाहिए । तात्पर्य यह है कि केवल सुख के स्वप्नों में ही नहीं डूब जाना चाहिए, वरन् जीवन की वास्तविकताओं की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए ।

(ङ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1– ‘बच्चन’ जी का जन्म-स्थान है
(अ) आगरा (ब) प्रयाग (स) दिल्ली (द) कानपुर
2– ‘एकांत संगीत’ के रचयिता हैं
(अ) मैथिलीशरण गुप्त (ब) भारतेंदु हरिश्चंद्र (स) डा–नगेंद्र (द) हरिवंशराय बच्चन
3– बच्चन जी की रचना है
(अ) मधुशाला (ब) कृष्ण गीतावली (स) वैदेही वनवास (द) गीतावली
4– ‘बच्चन जी का जन्म सन् है
(अ) सन् 1915 ई– (ब) सन् 1925 ई० (स) सन् 1891 ई– (द) सन् 1907 ई०
5– ‘पथ की पहचान कविता में कवि ने किसके माध्यम से मनुष्य को अपने पथ की पहचान करने के लिए प्रेरित किया
है ?
(अ) पथिक के (स) महापुरुषों के (ब) पर्वतों के (द) नदी के

(च) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण बोध
1– निम्नलिखित पंक्तियों में रस को पहचानिए
(अ) किंतु जग के पथ पर यदि स्वप्नदो तो सत्य दो सौ, स्वप्न परही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्तियों में शांत रस है ।
(ब) आ पड़े कुछ भी रुकेगा तून, ऐसी आन कर ले । पूर्व चलने के, बटोही बाट की पहचान कर ले ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्तियों में वीर रस है ।

2– निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द बताइए
शब्द…………………….विलोम
स्वर्ग…………………….नरक
सम्मान…………………….अपमान
पश्चात् या पश्चिम बुरा…………………….भला
असंभव…………………….संभव
सरल…………………….कठिन
सफल…………………….असफल
विश्वास…………………….अविश्वास
अनिश्चित…………………….निश्चित
उदय…………………….अस्त
सत्य…………………….असत्य ज्ञान
अज्ञान

3– निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची बताइए
सरित – नदी, तरंगिणी ।
गिरि – पर्वत, पहाड़ ।
बाग वाटिका, उपवन ।
सुमन फूल, कुसुम ।
आँख नयन, लोचन ।
स्वर्ग – सुरलोक, देवलोक ।
धरा, धरती ।
4– निम्नलिखित पदों से उपसर्ग और प्रत्यय को अलग-अलग करके मूल शब्द के साथ लिखिए
शब्द—————मूलशब्द————-उपसर्ग————प्रत्यय
सफलता —————सफल…………——————–.. ता
असंभव ————-संभव—————अ ——————————
अनुमान —————मान —————अनु ——————————
अवधान—————धन —————अव ——————————

मुक्त 5– निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए
(अ) यह निशानी मूक होकर, भी बहुत कुछ बोलती है ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास व विरोधाभास अलंकार है ।
(ब) पंख लग जाते पगों को ललकती उन्मुक्त छाती ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास व अतिशयोक्ति अलंकार है ।

Leave a Comment