UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 11 अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल)

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 11 अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल)

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI
UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 11
11-- अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल)


(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न


1– केदार जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर — – केदार जी का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई–को उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में हुआ था ।
2– केदार जी की कृतियाँ कहाँ प्रकाशित होती थी ?
उत्तर — – केदार जी की कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से प्रकाशित होती थी ।
3– केदार जी का पहला कविता संग्रह कौन-सा था ?
उत्तर — – केदार जी का पहला कविता संग्रह ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं था ।
4– केदार जीने एल–एल–बी– की परीक्षा कहाँ से उत्तीर्ण की ?
उत्तर — – केदार जी ने एल–एल–बी– की परीक्षा डी0ए0वी0 कॉलेज कानपुर से उत्तीर्ण की ।


5– ‘केदारनाथ जनवादी चेतना के सजग प्रहरी हैं । ‘ कैसे ?
उत्तर — – केदारनाथ जनवादी चेतना के सजग प्रहरी हैं क्योंकि इनकी कविता का प्रमुख विषय मनुष्य और जीवन है । उनकी कविताएँ व्यापक जीवन संदर्भो के साथ ही मनुष्य की सौंदर्य चेतना से जुड़ती हैं ।
6– केदारनाथ जी को किस-किस सम्मान से नवाजा गया ?
उत्तर — – केदारनाथ जी को हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी द्वारा डी0 लिट0 की उपाधि दी गई । इनके अतिरिक्त इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, हिंदी संस्थान पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से नवाजा गया ।

7– शिवकुमार सहाय के साथ उनका संबंध कैसा था ?
उत्तर — – शिवकुमार सहाय के साथ उनका संबंध प्रेमपूर्ण था । शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और ‘बाबूजी’ कहते थे ।
8– केदारनाथ जी काव्य की किस काव्यधारा के कवि हैं ?
उत्तर — – केदारनाथ जी काव्य की प्रगतिवादी काव्यधारा के कवि हैं ।

(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न


1– कवि केदारनाथ अग्रवाल कैसे गुणों वाले आदमी को अच्छा मानते हैं ?
या चरित्र की दृढ़ता के लिए इंसान में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
उत्तर — – कवि केदारनाथ के अनुसार आदमी को दूसरे के लिए सद्भावी, सदाचारी व परमार्थी होना चाहिए । व्यक्ति को दृढ़ संकल्पी, वचनों का पक्का तथा स्वभाव का सच्चा होना चाहिए । आदमी को आदमी के लिए उदार तथा हिम्मतवाला होना चाहिए । ईश्वर ने व्यक्ति के हृदय में प्रेम-प्यार, दया, करुणा आदि भावनाओं की जो धरोहर सँजोकर रखी है, व्यक्ति को उसे अक्षुण्ण बनाए रखना चाहिए ।

2– ‘अच्छा होता’ कविता की मूल भावना पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — – ‘अच्छा होता’ कविता में कवि ने वर्तमान में मनुष्य के संवेदना शून्य और जीवन मूल्य विहीन होते जाने पर चिंता व्यक्त की है, साथ ही आशा की एक किरण भी बनाए रखी है कि कितना अच्छा होता यदि आदमी दूसरों के लिए परमार्थी, वचन का पक्का, नीयत अथवा स्वभाव का सच्चा, नि:स्वार्थी होता । वह दगाबाज व दुश्चरित्र न होता तथा हिम्मतवाला व बड़े हृदय वाला होता । यदि आदमी ईश्वर के द्वारा दी गई मानवीय गुणों की धरोहर को अक्षुण्ण बनाए रखें, तो मानवता का कल्याण हो जाए और संसार से भय और आतंक का अंत हो जाए ।

3– ‘स्वार्थ का चहबच्चा’पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर — – इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मनुष्य अपने स्वार्थों का खजाना (चहबच्चा) न हो, उसके हृदय में सिर्फ अपने स्वार्थ की भावना नहीं होनी चाहिए अर्थात् वह चोरी छिपे भी अपने स्वार्थों का पोषण न करें । यदि हम स्वार्थ में आकंठ डूब जाएँगे तो समाज हमें घृणित दृष्टि से देखेगा ।

4– ‘मौत का बाराती’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया है ?
उत्तर — – इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने मनुष्यों के स्वार्थों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मनुष्य यदि अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मौत का बाराती अथवा सौदागर न बने तो कितना अच्छा हो । क्योंकि मनुष्य अपने हितों की पूर्ति के लिए मौत का खेल खेलने से भी नहीं चूकता ।


5– सितार के बोल से शहद की पंखुड़ियाँ किस प्रकार खुलती हैं ?
उत्तर — – संगीतकार जब हृदय की शीतलता प्रदान करने के लिए सितार पर संगीत की तान छेड़ता है, तब संगीत के जो स्वर फूटते हैं | उनसे शहद की पंखुरियाँ खुलती चली जाती हैं और जैसे-जैसे संगीत का माधुर्य बढ़ता है, वैसे-वैसे उससे प्राप्त होने वाले आनंदरस की मधुरता और गाढ़ी होती जाती है ।

6– ‘आग के ओठ बोलते हैं’ पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर — – यहाँ कवि का तात्पर्य है कि दुःखों से जलते-तपते हृदय को शीतलता प्रदान करने के लिए जब कोई सितार पर संगीत की तान छेड़ता है, तब संगीत के जो स्वर निकलते हैं । वह वास्तव में आग से जलते होठों की व्यथा होती है अर्थात् संगीत के स्वर दुःखी हृदय को शीतलता प्रदान करते हैं ।


7– संगीत-समारोह में कौमार्य कैसे बरसता है ?

या

रात्रि में आयोजित संगीत-समारोहों में क्या होता है ?

उत्तर — – जब संगीतकार संगीत रस में डूब जाता है और ज्यों-ज्यों वह अपने अतीत की स्मृतियों में खोने लगता है, त्यों-त्यों संगीत समारोह अपने यौवन को प्राप्त करता जाता है । रात की चाँदनी में नहाई शांति संगीत के आनंद को चरम पर पहुँचा देती है ।

8– काव्य लोक में कब कौन विचरण करती है ?
उत्तर — – जब संगीत समारोह अपने यौवन को प्राप्त कर लेता है और व्यक्ति के मन में कोमल भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, उस समय आनंद का हंस अबाध गति से तैरने लगता है । इसी आनंदरूपी हंस पर सवार होकर सरस्वती काव्य लोक में विचरण करने लगती है ।

(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

1– केदारनाथ का जीवन परिचय लिखिए तथा उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — – केदारनाथ अग्रवाल हिंदी काव्य की प्रगतिवादी काव्यधारा के अनन्य कवि हैं । इन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों से हिंदी साहित्य में अप्रतिम योगदान दिया । काव्य रचनाओं में ही नहीं, बल्कि गद्य साहित्य में भी इन्होंने साहित्य सृजन किया । अत: साहित्य के प्रति उनकी अनुपम उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें समय-समय पर विभिन्न हिंदी सस्थानों द्वारा पुरस्कृत किया गया । जीवन परिचय- केदारनाथ अग्रवाल जी का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई० को उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में हुआ था । केदार जी की माता का नाम घसिट्टो तथा पिता का नाम हनुमान प्रसाद था । इनकी आरंभिक शिक्षा कमासिन गाँव में हुई । कक्षा तीन तक पढ़ने के बाद रायबरेली से कक्षा छ: उत्तीर्ण की । कक्षा सात व आठ कटनी के जबलपुर से उत्तीर्ण की । इसी समय पार्वती नामक कन्या से इनका विवाह हो गया । इसके पश्चात् केदार जी इलाहाबाद गए ।

इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर पास करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक तथा डी–ए–वी–कॉलेज कानपुर से एल– एल–बी– की परीक्षा उत्तीर्ण की । 22 जून सन् 2000 को साहित्य के इस महान उपासक का देहांत हो गया । केदारनाथ अग्रवाल का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था । इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरूआत की । उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है । प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुईं । प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और ‘बाबूजी’ कहते थे । लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध जल्दी देखने को नहीं मिलता । यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकराकर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं । उनका पहला कविता संग्रह ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ परिमल से ही प्रकाशित हुआ था ।

रचनाएँ- केदार जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

(अ) काव्य-कृतियाँ- अपूर्वा, फूल नहीं रंग बोलते हैं, लोक और आलोक, नींद के बादल, पंख और पतवार, कहे केदार खरी-खरी, युग की गंगा, खुली आँखें खुले डैने आदि

(ब) गद्य साहित्य- बस्ती खिले गुलाबों की, यात्रा संस्मरण, विवेक-विमोचन, समय समय पर, दतिया (उपन्यास), विचारबोध आदि

2– केदारनाथ जी ने अपने काव्य में किस भाषा-शैली का प्रयोग किया है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर — – केदारनाथ जी ने अपने काव्य में आम बोलचाल की सरल और साधारण भाषा का प्रयोग किया है, तथापि उनकी भावाभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावपूर्ण है । ग्रामीण बोलचाल के शब्दों से युक्त व्यावहारिक भाषा को अपनाते हुए उन्होंने तत्कालीन यथार्थ परिस्थितियों का चित्रण किया है । अन्य प्रगतिवादी कवियों की भाँति उन्होंने मुहावरों, लोकोक्तियों को प्रमुखता न देते हुए जनता के विविधतापूर्ण जीवन, सौंदर्य-चेतना एवं श्रम को वाणी दी । उन्होंने गहन संवेदना के स्वर से युक्त संगीतात्मक भाषा को अपनाया । जनता के श्रम, सौंदर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन करने वाले केदार हिंदी प्रगतिवादी कविता का अलग ही चेहरा थे । शैली के रूप में इन्होंने मुक्तक शैली को ही प्राथमिकता दी है ।

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3– केदारनाथ जी ने अपने काव्य में जीवन के किन पक्षों पर प्रकाश डाला है ?
उत्तर — – जनवादी चेतना के सजग प्रहरी केदार जी की कविता का प्रमुख विषय मनुष्य और जीवन है । उनकी कविताएँ व्यापक जीवन-संदर्भो के साथ ही मनुष्य की सौंदर्य-चेतना से जुड़ती है । इसके साथ-साथ वे प्रगतिवादी हिंदी कविता में स्वकीया प्रेम के विरल कवि हैं । वे धरती व धूप के कवि तो हैं ही; लोकजीवन, प्रकृति और मानव की संघर्ष चेतना भी उनके काव्य में प्रचुर मात्रा में मिलती है । केदारनाथ जी ने अपने काव्य में जनता के श्रम, सौंदर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन किया है । वे अपने रचनात्मक विस्तार में जगह-जगह प्रगतिवाद के प्रचलित मुहावरों का निषेध करते हुए नए ढंग से प्रगतिशीलता गढ़ते थे । जिसकी आस्था मनुष्य और जीवन में है ।

(घ) पद्यांश व्याख्या सहित एवं पंक्ति भाव;–


1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए


(अ) अच्छा होता—————————————————-कच्चा होता ।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘केदारनाथ अग्रवाल’ द्वारा रचित ‘अपूर्वा’ काव्य संग्रह से अच्छा होता’ शीर्षक से उद्धृत है ।
प्रसंग- प्रस्तुत कविता-पंक्तियों में कवि ‘मनुष्य को मनुष्य के लिए कैसा होना चाहिए’ इस पर प्रकाश डाल रहे हैं ।

व्याख्या- श्री केदारनाथ अग्रवाल जी का कहना है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में रहता भी है । कितना अच्छा होता कि वह स्वार्थी न होकर परमार्थ की भावना लिए हुए होता और परमार्थ के लिए कार्य करता, स्वार्थ उसे छूता तक नहीं । लेकिन वह स्वार्थी है, बिना स्वार्थ के तो वह दूसरों से बात तक करना उचित नहीं समझता । वृक्ष, नदी, सूर्य आदि को देखिए, दूसरों को सुख प्रदान करना ही इनका उद्देश्य है । एक मनुष्य ही है जो सब कुछ जानते- समझते हुए भी परार्थी नहीं होना चाहता । परार्थी होने के लिए व्यक्ति को ईमानदार और इरादों का पक्का होना चाहिए । यदि ऐसा नहीं है तो हम परार्थी हो ही नहीं सकते । परार्थ के अभाव में हमारे अंत:करण में स्वार्थ की भावना जन्म लेने लगेगी । यदि हम स्वार्थ में आकंठ डूब जाएँगे तो समाज हमें कुत्सित दृष्टि से देखेगा, हमें अपराधी समझेगा और हमारी ओर अँगुली उठाएगा । यदि हमें समाज में सिर ऊँचा करके रहना है तो स्वार्थ का त्याग करना होगा और परस्पर कंधे से कंधा मिलाकर एक-दूसरे को विकास की ओर अग्रसर करना होगा । यदि हम अपने तक ही सीमित रहेंगे तो हम मानवता का अथवा मानव-समाज का हित नहीं कर सकते । अत: व्यक्ति को परार्थी होना चाहिए और प्रत्येक कार्य परमार्थ की भावना से करना चाहिए ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– मनुष्य को स्वार्थ का त्याग कर मानवता की भावना से कार्य करने की प्रेरणा दी गई है । 2– कविता में यद्यपि कवि ने मनुष्य के दोषों का उल्लेख किया है कि वास्तव में उसने ‘अच्छा होता’ कहकर इन दोषों को त्यागने का संकल्प ही व्यक्त किया है । 3– भाषा- लोकभाषा व अन्य भाषा के शब्दों से युक्त खड़ीबोली 4– रस- शांत 5–गुण- प्रसाद 6–छंद- मुक्त 7–अलंकार- अनुप्रास ।

अच्छा होता—————————————————————बराती होना ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग-”मनुष्य को मनुष्य के लिए कैसा होना चाहिए’ के विषय में आगे बताते हुए कवि कहता है कि मनुष्य यदि ईमानदार, मिथ्या अभिमान से रहित हो तथा आतंकवादी न हो तो बहुत ही अच्छी बात है । वास्तव में कवि मनुष्य में सभी मानवीय गुणों का समावेश चाहते हैं ।


व्याख्या- कवि श्री केदारनाथ अग्रवाल जी कहते हैं कि कितना अच्छा होता यदि व्यक्ति स्वार्थी न होकर परार्थी होता । यदि व्यक्ति उदार होता; अर्थात् आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की मदद करने वाला होता; हिम्मती होता तो बहुत ही अच्छा होता । बहुत ही अच्छा होता यदि वह किसी की धरोहर की रक्षा करने वाला होता, किसी के साथ धोखा न करने वाला होता । आज ऐसा नहीं है । आज का व्यक्ति दूसरे लोगों को धोखा देने में, ठगने में ही अपनी चतुराई समझता है, व्यक्ति को दुःखी देखकर उसके दुःख का सहभागी नहीं बनता । पुन: कवि कहता है कि व्यक्ति यदि किसी की ईमानदारी पर चोट करने वाला, ठग, जातिवाद के मिथ्या अभिमान से ग्रसित, आतंकवादी न होता तो बहुत ही अच्छा होता । निष्कर्ष रूप से कवि सभी व्यक्तियों को यथासंभव समस्त मानवीय गुणों से युक्त देखना चाहता है ।


काव्यगत सौंदर्य-1– कवि आशा करता है कि सभी व्यक्तियों में मानवीय गुणों का विकास हो । 2– अमानवीय गुणों के त्याग पर बल दिया गया है । 3– भाषा- लोकभाषा के शब्दों से युक्त खड़ीबोली 4– रस- शांत 5– गुण- प्रसाद 6– छंद मुक्त 7– अलंकार- अनुप्रास ।

(स) आग के ओठ– ——————————शहद की पंखुरियाँ ।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अपूर्वा’ काव्य संग्रह से ‘संगीत सितार की रात’ शीर्षक से उद्धृत है ।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने संगीत के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए मानव हृदयों में व्याप्त दु:खों को उनका स्रोत बताया है ।

व्याख्या- कवि केदारनाथ जी कहते हैं कि शांत सुनसान रात में मानव के जलते हृदय की आग (दुःखों) से शीतलता प्रदान करने के लिए जब कोई सितार पर संगीत की तान छेड़ता है, तब सितार से जो संगीत के स्वर प्रस्फुटित होते हैं, वे वास्तव में आग से जलते ओठों की व्यथा कथा होती है अर्थात मनुष्यों के हृदय की पीड़ा होती है । संगीतकार जैसे-जैसे उस संगीत के प्रवाह में डूबता जाता है, उसके मन की एक-एक परत खुल जाती है और संगीत की मधुरता बढ़ती जाती है; जैसे-जैसे संगीत का माधुर्य बढ़ता है, वैसे-वैसे उससे प्राप्त होने वाले आनंद की मधुरता भी गाढ़ी होती जाती है ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि का मानना है कि वास्तविक संगीत का स्रोत जीवन में दुःख है । 2– दु:खों के बीच से भी आनंद रस प्राप्त करने में भी जीवन की सार्थकता है । 3– भाषा- संस्कृत शब्दों से युक्त खड़ी बोली 4– रस- शांत 5– गुण- प्रसाद 6– छंद- मुक्त 7–अलंकार- अनुप्रास, मानवीकरण तथा रूपक ।

(द) चूमती अंगुलियों————————————–चंद्रमा के साथ ।
संदर्भ- पूर्ववत्

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने विभिन्न रागों के रात्रि में चाँदनी के प्रकाश में गायन का वर्णन किया है ।


व्याख्या- कवि कहते हैं कि जब व्यक्ति एक बार अपने दुःखों में डूबकर उससे उत्पन्न संगीत के आनंद का रस लेने लगता है तो सितार (जीवन) के तारों को चूमती हुई उँगलियाँ स्वयं ही उन पर नृत्य करने लगती हैं और उससे एक से बढ़कर एक राग हवा में तैरते हुए आनंद क्रीड़ा करने लगते हैं । रात्रि के खुले विस्तृत वक्ष पर चंद्रमा के साथ जब ये राग मचलते हैं तो उससे प्राप्त आनंद असीम होता है । यह संगीत का सत्य है कि रात्रि में शांति से नहाई चाँदनी उसके आनंद को चरम पर पहुँचा देती है । इसीलिए संगीत के रागों का गायन रात्रि के विभिन्न प्रहरों में किया जाता है और संगीत समारोह भी प्रायः रात्रि में ही आयोजित किए जाते हैं ।

काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि को संगीत की अच्छी समझ है, यह बात यहाँ प्रमाणित होती है । 2– संगीत की रात्रि का प्रतीक रूप में चित्रण किया गया है । 3– भाषा- संस्कृत शब्दों से युक्त खड़ी बोली 4– रस- शांत 5– गुण- प्रसाद 6– छंद- मुक्त 7– अलंकार- श्लेष ।

(य) शताब्दियाँ—————————————————————————–विचरण करती हैं ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- कवि यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि दुःखों से आनंद रस ग्रहण करने पर संगीत और साहित्य (काव्य) की रचना होती है ।
व्याख्या- कवि कहता है कि संगीत रस में एक बार डूब जाने पर जब व्यक्ति मन की खिड़की से झाँककर आनंद के असीम आकाश पर अपनी दृष्टि डालता है तो वह अपने शताब्दियों पुराने अतीत में गोते लगाने लगता है । वह ज्यों-ज्यों अपने अतीत की स्मृतियों में खोने लगता है, त्यों-त्यों संगीत समारोह अपने यौवन को प्राप्त करता जाता है अर्थात् व्यक्ति के मन में कोमल- सौम्य भावनाओं की झड़ी लग जाती है । इस समय व्यक्ति का मन श्वेत दूध की भाँति निर्मल और स्वच्छ हो उठता है और उस पर हर्ष अथवा आनंद का हंस निद्वंद्व होकर अबाध गति से तैरने लगता है । इसी आनंदरूपी हंस पर सवार होकर सरस्वती काव्य- लोक में विचरण करने लगती है । आशय यही है कि संसार के दु:खों से उत्पन्न आनंद ही काव्य और संगीत की पृष्ठभूमि तैयार करता है । जब भी, जैसे भी यह पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है, काव्य और संगीत की देवी सरस्वती सक्रिय होकर भाव जगत् में विचरण करने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप काव्य और संगीत का जन्म होता है । UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 7 DAN KAVY KHAND (SOORY KANT TRIPATHI “NIRALA”)

काव्यगत सौंदर्य- 1–कवि ने काव्य और संगीत का स्रोत दु:खों को माना है । 2– कवि की यह विचारधारा छायावादी कवियों से प्रभावित है । क्योंकि उन्होंने भी ऐसी ही भावना व्यक्त की है । 3– भाषा- संस्कृत शब्दों से युक्त खड़ीबोली 4– रस- शांत व शृंगार 5– गुण- प्रसाद 6– छंद- मुक्त 7– अलंकार- रूपक और मानवीकरण ।

2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए


(अ) परार्थी पक्का और नियति का सच्चा होता ।UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 7 DAN KAVY KHAND (SOORY KANT TRIPATHI “NIRALA”)

भाव स्पष्टीकरण- कवि का तात्पर्य है कि आदमी को अपने मानवीय गुणों को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहिए । उसे अपने स्वार्थ का त्याग कर दूसरों की भलाई की कामना करते हुए अपने वचनों पर पक्का रहना चाहिए । दूसरों के कल्याण के लिए दृढ़ संकल्प लेना चाहिए और अपने आचरण द्वारा उसे पूरा करके दिखाना चाहिए । उसे नीयत का सच्चा तथा उसमें लेशमात्र भी छल-कपट नहीं होना चाहिए ।

(ब) चूमती अंगुलियों के नृत्य पर, राग पर राग करते हैं किलोल ।
भाव स्पष्टीकरण- कवि ने यहाँ स्पष्ट किया है कि जब व्यक्ति संगीत की धारा में डूब जाता है तो सितार के तारों को चूमती हुई उँगलियाँ उन पर स्वयं ही नृत्य करने लगती हैं, जिससे एक से बढ़कर एक राग हवा में क्रीड़ा करने लगते हैं अर्थात जब व्यक्ति संगीत के आनंद रस में डूब जाता है तो उसे परम आनंद मिलता है तथा नए-नए रागों का सृजन होता है ।

(स) शताब्दियाँ झाँकती हैं, अनंत की खिड़कियों से ।
भाव स्पष्टीकरण- कवि ने स्पष्ट किया है कि संगीत रस में डूब जाने के बाद जब आदमी मन की खिड़की से झाँकता है तो आनंद के असीम आकाश पर उसकी दृष्टि पड़ती है, जिससे वह शताब्दियों पुराने अपने अतीत में चला जाता है । जैसे-जैसे वह अतीत की यादों में डूबता जाता है वैसे-वैसे संगीत अपने यौवन को प्राप्त करने लगता है । अर्थात् अतीत की स्मृति की कोमल भावनाएँ एक-एक कर सामने आने लगती हैं ।

(ङ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1– केदार जी का जन्म-स्थान है
(अ) प्रयाग (ब) काशी (स) कानपुर (द) बाँदा
उत्तर –(द) बाँदा

2– केदार जी का जन्म सन् है
(अ) 1892 ई० (ब) 1900 ई० (स) 1911 ई० (द) 1905 ई०
उत्तर –(स) 1911 ई०
3 — केदार जी की प्रथम कृति है
(अ) अपूर्वा (ब) नींद के बादल (स) फूल नहीं रंग बोलते हैं (द) खुली गंगा
उत्तर –(स) फूल नहीं रंग बोलते हैं
4– केदार जी को हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के द्वारा कौन-सी उपाधि से सम्मानित किया गया ?
(अ) डी–लिट– (ब) साहित्य अकादमी (स) साहित्य वाचस्पति (द) तुलसी पुरस्कार
उत्तर –(स) साहित्य वाचस्पति
5 केदारजी की रचना है
(अ) गीतांजली (ब) मधुशाला (स) प्रिय-प्रवास (द) खुली आँखें खुले डैने
उत्तर –(द) खुली आँखें खुले डैने

(च) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण बोध

1– निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए |
चरित्र का कच्चा (चरित्रहीन)- समाज में चरित्र के कच्चे व्यक्तियों की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती है ।
हृदय की थाती (हृदय की धरोहर)- सत्यनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी को सदैव हृदय की थाती मानकर सँजोकर रखना चाहिए ।
ईमान का घाती ( विश्वासघात करने वाला)-ईमान के घाती व्यक्ति देश की अखंडता के लिए हानिकारक हैं ।
मौत का बराती (मृत्यु पर प्रसन्न होने वाला, आतंकवादी)- समाज में आजकल मौत के बरातियों की संख्या बढ़ती जा रही है ।
स्वार्थ का चहबच्चा ( स्वार्थ का खजाना)- स्वार्थी व्यक्ति सदैव स्वार्थ के चहबच्चे को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते हैं ।

2– निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए उन शब्दों को लिखिए, जिनके अर्थ को ये वाक्यांश बनाते हैं

(अ) जिसका कभी अंत न हो ——————अनंत
(ब) सौ वर्षों का समय—————— शताब्दी
(स) विद्या की देवी —————— सरस्वती
(द) धोखा देने वाला —————— धोखेबाज
(य) रुपया-पैसा गाड़कर रखने के लिए बनाया गया गड्ढा—————— चहबच्चा
(र) वर के साथ चलने वाले लोग —————— बाराती
(ल) दूसरों का हित चाहने वाला——————परार्थी

3– निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार और रस को पहचानिए
(अ) शताब्दियाँ झाँकती हैं, अनंत की खिड़कियों से, संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है ।
उत्तर — – अलंकार- अनुप्रास, मानवीकरण
रस– शृंगार
(ब) न स्वार्थ का चहबच्चा न दगैल दागी न चरित्र का कच्चा होता
उत्तर — – अलंकार अनुप्रास रस
रस– शांत

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