UP BOARD CLASS 9TH HINDI SOLUTION CHAPTER 3 VYAVAHAR SETH GOVINDDAS एकांकी खण्ड
UP BOARD CLASS 9TH HINDI SOLUTION CHAPTER 3 VYAVAHAR SETH GOVINDDAS एकांकी खण्ड
कक्षा 9 हिंदी पाठ-3 व्यवहार (सेठ गोविंददास)
(क) लघु उत्तरीय प्रश्न
1- एकांकीकार के अनुसार व्यवहार क्या है?
उत्तर— एकांकीकार के अनुसार भोज में आमंत्रित व्यक्ति जमींदार के सम्मान में जो कुछ भी अर्थात् अधिक से अधिक रुपया-पैसा उपहार स्वरूप जमींदार को देता है, उसे ही व्यवहार कहा जाता है ।। 2- ‘व्यवहार किस प्रकार का एकांकी है? उत्तर— सेठ गोविंददास द्वारा रचित ‘व्यवहार’ एकांकी ग्रामीण परिवेश में रचित एक सामाजिक और समस्याप्रधान एकांकी है ।। इस एकांकी में एकांकीकार ने ग्रामीण किसानों व आधुनिक परिवेश में शिक्षित एक किसान-पुत्र के मध्य विचारों की विभिन्नता का चित्रण किया है ।। इस एकांकी में जमींदारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण को न केवल चित्रित किया गया है बल्कि उसका समाधान भी बताया है कि गरीबों का शोषण करने वाले जमींदारों और साधन-संपन्न लोगों को स्वयं आगे बढ़कर इनके कल्याण की पहल करनी चाहिए ।।
3- ‘व्यवहार’ एकांकी का सर्वश्रेष्ठ पात्र कौन है और क्यों?
उत्तर— ‘व्यवहार’ एकांकी का सर्वश्रेष्ठ पात्र क्रांतिचंद्र है ।। वह आधुनिक परिवेश में शिक्षित एक किसान-पुत्र है, जो जमींदारों की कार्य प्रणाली को भली प्रकार से जानता व समझता है ।। वह किसानों को उनकी शक्ति से अवगत कराता है तथा शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करता है तथा किसानों को जमींदार के द्वारा दिए जाने वाले भोज में न जाने के लिए तैयार कर लेता है ।। ऐसा करने के लिए वह निरर्थक दलीलों का सहारा नहीं लेता, वरन् पुष्ट तार्किक आधार भी देता है ।। वह एक किसान-पुत्र होने के कारण किसानों के हित को भली प्रकार जानता है और उचित कदम उचित समय पर उठाता है ।। अत: क्रांतिचंद्र इस एकांकी का सर्वश्रेष्ठ पात्र है ।।
4- नर्मदाशंकर की दृष्टि में सभी किसान परिवार सहित भोज में नहीं आने चाहिए,ऐसा आपकी दृष्टि में कहाँ तक उचित है? स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— नर्मदाशंकर के अनुसार सभी किसान परिवार सहित भोज में नहीं आने चाहिए, यह हमारी दृष्टि में गलत है क्योंकि ऐसा करना किसानों का शोषण करना है और जमींदारों व साधन संपन्न लोगों व किसानों के बीच की कटुता को बढ़ाना है ।। अतः नर्मदाशंकर का यह दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं है ।। समाज में समानता लाने के लिए जमीदारों व संपन्न लोगों को किसानों व गरीबों के कल्याण के लिए पहल करनी ही चाहिए ।।
5- एकांकीकार ने व्यवहार’ एकांकी को कितने दृश्यों में बाँटा है?
उत्तर— एकांकीकार सेठ गोविंददास ने ‘व्यवहार’ एकांकी को तीन दृश्यों में बाँटा है ।। पहले दृश्य में जमींदार रघुराजसिंह व उसके मैनेजर नर्मदाशंकर का किसानों को भोज में बुलाने, कर्ज माफ करने, बिना नजराना लिए जमीन देने आदि पर वार्तालाप का वर्णन है ।। दूसरे दृश्य में गरीब किसानों की भोज को लेकर पंचायत व चूरामन व उसके शिक्षित पुत्र क्रांतिचंद्र का वार्तालाप तथा क्रांतिचंद्र का शोषण के विरुद्ध किसानों को प्रेरित करने का चित्रण किया गया है तथा तीसरे दृश्य में किसानों द्वारा भोज का बहिष्कार करने पर नर्मदाशंकर व रघुराजसिंह की प्रतिक्रिया व रघुराजसिंह का जमींदारी की तौक गले से उतारने के निर्णय का चित्रण लेखक ने किया है ।।
6- ‘विश्व प्रेम’ के लेखक कौन हैं?
उत्तर— ‘विश्व प्रेम’ के लेखक सेठ गोविंददास जी हैं ।। यह उनका प्रथम नाटक है ।।
7- ‘व्यवहार’ एकांकी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर— प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य जमींदारों के असली रूप को उजागर करके, किसानों को उनकी संगठित शक्ति का अनुभव कराके जमींदारों के चंगुल से मुक्त कराना है ।। जब तक देश के मजदूर किसान संगठित और शिक्षित नहीं होंगे तब तक इनका शोषण होता रहेगा ।। एकांकीकार ने किसानों के इस दर्द को पाठकों के सम्मुख विभिन्न पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है ।। एकांकी का उद्देश्य किसानों को जमींदारों के शोषण से बचाना, उन्हें उनकी वास्तविक शक्ति का अनुभव कराना तथा जमींदारों का परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए रघुराजसिंह की भाँति किसानों के लिए कल्याण के आगे बढ़ने को प्रेरित करना है ।।
8- क्रांतिचंद्र का कहना मानकर किसानों का भोज में न आने का फैसला करना क्या आपको सही लगता है? यह
फैसला कहाँ तक सही है? स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— क्रांतिचंद्र का कहना मानकर किसानों का भोज में न आने का फैसला करना हमें सर्वथा उचित लगता है, क्योंकि इस फैसले के कारण ही जमींदार रघुराजसिंह जमींदारी की तौक को गले से निकालकर किसानों के हित के लिए किसानों जैसा बनकर उनके कल्याण में अपना जीवन व्यतीत करने की सोचता है ।। रघुराजसिंह समझ जाता है कि किसान अब अन्याय व अत्याचार सहन नहीं करेंगे, वे अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार हैं ।। अत: किसानों द्वारा भोज का बहिष्कार करना एक उचित कदम है ।।
9- ‘व्यवहार’ एकांकी की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? प्रकाश डालिए ।।
उत्तर— सेठ गोविंददास ने प्रस्तुत एकांकी में एक शिक्षित जमींदार रघुराजसिंह व उसके मैनेजर नर्मदाशंकर व ग्रामीण किसानों व आधुनिक परिवेश में शिक्षित किसान-पुत्र के मध्य विचारों की विभिन्नता का द्वंद्व प्रस्तुत किया है ।। एकांकी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(अ) सुसंगठित कथावस्तु- एकांकी की कथावस्तु सर्वथा सुसंगठित एवं व्यवस्थित है ।। कहीं पर भी अव्यवस्था दृष्टिगत नहीं होती, जिस कारण पूरी कथा तेजी के साथ आगे बढ़ती है ।। एकांकी में तीन दृश्य हैं तथा तीनों दृश्यों की कथा परस्पर एकसूत्र में पिरोई गई है ।। कथानक का कोई भी अंश अलग करना संभव नहीं है ।।
(ब) स्वाभाविक विकास- एकांकी के द्वारा जिस सामाजिक समस्या को प्रस्तुत किया गया है, उसका यहाँ स्वाभाविक विकास दर्शाया गया है ।। एकांकी में कथानक का प्रारंभ रघुराजसिंह और नर्मदाशंकर के वार्तालाप से होता है ।। क्रांतिचंद्र व किसानों के वार्तालाप से विकसित होता हुआ कथानक किसानों के द्वारा भोज के निमंत्रण को अस्वीकार कर देने पर चरम सीमा को प्राप्त होता है ।। किसानों के कल्याण में जीवन व्यतीत करने के रघुराजसिंह के निर्णय पर कथानक समाप्त हो जाता है ।।
(स) कौतूहल- कौतूहल एकांकी का मुख्य गुण है ।। एकांकी के प्रारंभ से अंत तक कौतूहल बना हुआ है ।। नर्मदाशंकर की बात पर रघुराजसिंह नाराज होगा या उसकी बात मान लेगा, किसान क्रांतिचंद्र की बात मानेंगे या नहीं तथा किसानों द्वारा भोज का बहिष्कार किए जाने पर जमींदार क्या कदम उठाएगा, इसका कौतूहल एकांकी के समाप्त होने तक बना रहता है ।।
(द) संकलन-त्रय- समय, स्थान और वातावरण की एकता (सामंजस्य) ही संकलन त्रय है ।। एकांकी में पहला और
तीसरा दृश्य रघुराजसिंह के महल तथा दूसरा दृश्य गाँव का है ।। एकांकी के मंचन में दो दृश्यों के ही विधान की आवश्यकता है जिसके प्रस्तुतीकरण में कोई अस्वाभाविकता प्रकट नहीं होती ।। अत: संकलन त्रय की योजना में
एकांकीकार को पूर्णतया सफलता मिली है ।।
10- ‘व्यवहार’ एकांकी में एकांकीकार द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर— ‘व्यवहार’ एकांकी के द्वारा एकांकीकार जमींदार व जमींदारों के वास्तविक स्वरूप को सामने प्रकट करके उन लोगों को संदेश देना चाहता है, जो उनके अंधे भक्त है ।। क्रांतिचंद्र एक शिक्षित नवयुवक है ।। वह रघुराजसिंह द्वारा किसानों को भोज में आमंत्रित किए जाने को धोखा बताता है ।। जब वह रघुराजसिंह का विरोध करता है और किसान उसके सम्मुख जमींदार के अच्छे कार्यों की दुहाई देते हैं तो क्रांतिचंद्र अपने तर्कों के आधार पर यह सिद्ध कर देता है कि जमींदार ने ये कार्य अपने लाभ के लिए ही किए हैं ।।
एकांकी के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि जमींदार और किसान के हित विपरीत हैं तथा क्रांतिचंद्र व रघुराजसिंह की सोच भी एक दूसरे के विपरीत है ।। रघुराजसिंह एक विवेकशील जमींदार है जो अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए ग्रामीणों के शोषण को उचित नहीं समझता तथा इसे जारी रखना उसके लिए कठिन है ।। विचारों के मंथन से वह मानवता के सच्चे स्वरूप को पहचानकर अपनी कार्य प्रणाली बदलने का विचार करता है ।। एकांकी का मुख्य संदेश यही है कि जमींदारी प्रथा अथवा इस तरह की किसी भी शोषक प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए मात्र शोषितों का संगठन ही पर्याप्त नहीं है अपितु उन्हें उचित मार्गदर्शन भी मिलना चाहिए ।। साथ ही शोषक का हृदय परिवर्तन भी आवश्यक है ।।
1- ‘व्यवहार’ एकांकी का सारांश लिखिए ।।
अथवा ‘व्यवहार’शीर्षक एकांकी की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए ।।
उत्तर— सेठ गोविंददास द्वारा रचित ‘व्यवहार’ एकांकी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है ।। इस एकांकी में सेठ गोविंददास ने जमींदार व किसानों के संघर्ष और उससे उपजे अंतर्द्वद्व तथा जमींदार वर्ग की युवा पीढ़ी को गरीब किसान मजदूरों के हित का चिंतन करते हुए चित्रण किया है ।। एकांकी तीन दृश्यों में विभाजित है ।। एकांकी की कथावस्तु निम्नवत हैप्रथम दृश्य- यह दृश्य रघुराजसिंह के महल की बालकनी से प्रारंभ होता है ।। रघुराजसिंह गाँव का जमींदार है तथा नर्मदाशंकर उसका मैनेजर है ।। रघुराजसिंह अपनी बहन के विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित भोज में सभी ग्रामीण किसानों को परिवार सहित आमंत्रित करता है ।। रघुराजसिंह इसके निर्णय को उसका मैनेजर गलत बताता है क्योंकि ऐसा करने से उसे पर्याप्त आर्थिक हानि होगी ।।
रघुराजसिंह के पूर्वज ऐसे अवसरों पर चुने हुए घरों से केवल मर्दो को बुलाते थे ।। जिससे भोजन कराने में खर्च कम होता था और व्यवहार से (उपहार से) आमदमी अधिक होती थी ।। नर्मदाशंकर रघुराजसिंह के किसानों के हित में लिए गए कुछ अन्य फैसलों-लगान कम करना, कर्ज माफ करना तथा बिना नजराना लिए जमीन देने को भी गलत बताता है ।। रघुराजसिंह का मानना है कि किसानों का शोषण करना तथा उनसे व्यवहार लेना अनुचित है ।। द्वितीय दृश्य- यह दृश्य गाँव के एक मकान के कोठे से प्रारंभ होता है जहाँ बहुत से किसान बैठे हैं जो भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के हैं ।। इन्हीं में 22-23 वर्ष का एक शिक्षित युवक है, जो देखने में किसान नहीं लगता ।।
वह चूरामन नामक किसान का बेटा क्रांतिचंद्र है ।। उसने गाँव के एक घर में सभी किसान, गाँव के पंचों तथा अन्य ग्रामीणों की एक सभा का आयोजन किया है ।। जिसका उद्देश्य जमींदार द्वारा दिए गए भोज के आमंत्रण पर निर्णय लेना है कि किसान वहाँ जाएँ या नहीं ।। क्रांतिचंद्र इस बात से क्षुब्ध है कि निर्णय लेने में देरी क्यों की जा रही है, जबकि दावत का समय नजदीक आता जा रहा है ।। क्रांतिचंद्र निमंत्रण को अस्वीकार करना चाहता है, क्योंकि उसे स्वीकार करना किसान मजदूरों का अपमान है ।। क्योंकि वह एक बार अपने पिता के साथ जाकर उस अपमान का अनुभव कर चुका है ।। सभी किसान इस बात पर सहमत नहीं हो पाते ।।
कुछ किसानों का मानना है कि नहीं जाना चाहिए तथा कुछ का मानना है कि जाना चाहिए ।। तब क्रांतिचंद्र किसानों को बताता है कि जमींदार किस प्रकार से उन्हें धोखा दे रहा है ।। जब किसान जमींदार द्वारा किए गए उपकारों की दुहाई देते हैं तो क्रांतिचंद्र अपने तर्कों के द्वारा यह सिद्ध कर देता है कि ये सब कार्य जमींदार ने केवल अपने लाभ के लिए किए हैं ।। यही बात सबको भोज के निमंत्रण पर भी है ।।
इस प्रकार क्रांतिचंद्र भोज के निमंत्रण को स्वीकार करने को किसानों का अपमान सिद्ध करते हुए उसे अस्वीकार करने के लिए वहाँ से चला जाता है ।। सभी किसान स्तब्ध रह जाते हैं ।। तृतीय दृश्य- जमींदार रघुराजसिंह की बालकनी से प्रारंभ होता है जहाँ वह बैचेनी से टहल रहा होता है ।। तभी उसका मैनेजर बदहवास हालत में किसान प्रतिनिधि क्रांतिचंद्र की चिट्ठी लेकर आता है ।। पत्र को पढ़कर रघुराजसिंह का सिर शर्म से झुक जाता है क्योंकि यह पत्र किसानों द्वारा भोज निमंत्रण को अस्वीकार करने से संबंधित है ।।
नर्मदाशंकर इसे किसानों की बदमाशी बताता है ।। यह किसानों द्वारा जमींदारों को बेइज्जत करने वाला कार्य है ।। रघुराजसिंह निश्चय करते हैं कि उन्हें अभी और बदलाव करने होंगे, जिससे वह किसानों का स्नेह व विश्वास प्राप्त कर सके ।। नर्मदाशंकर के समझाने पर भी वह जमींदारी की तौक गले से निकालकर किसानों के सच्चे हित में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय लेता है ।। यहीं पर एकांकी का समापन होता हैं ।।
2- एकांकी का शीर्षक कहाँ तक उपयुक्त है? इस बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए ।।
उत्तर— प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक ‘व्यवहार’ सभी दृष्टियों से सार्थक है ।। शास्त्रीय दृष्टि से एक उपर्युक्त शीर्षक में तीन विशेषताओं का होना आवश्यक है-1-कथानक का संकेतक होना 2-संक्षिप्त होना 3-कौतूहलवर्द्धक होना ।। इस दृष्टि से ‘व्यवहार’ एकांकी के कथानक का संकेतक है ।। इसके नाम से ही पता चलता है कि इसका कथानक किसी प्रकार के व्यवहार पर आधारित है ।। वास्तव में एकांकी का प्रारंभ व अंत व्यवहार लेने की कशमकश से होता है ।।
एकांकी में व्यवहार (विवाह आदि अवसरों पर दिया जाने वाला उपहार) ही रघुराजसिंह के व्यवहार को परिवर्तित कर देता है और वह जमींदारी की तौक को अपने गले से निकालकर किसानों का सच्चा हितैषी बनकर अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय करता हैं ।। ‘व्यवहार’ एक शब्द का शीर्षक है, अत: संक्षिप्तता की विशेषता भी इसमें उपस्थित है ।। एकांकी के प्रांरभ से अंत तक इसमें कौतूहल बना रहता है कि रघुराजसिंह नर्मदाशंकर की बात माने या नहीं, जमींदार रघुराजसिंह व्यवहार लेगा या नहीं, किसान भोज का निमंत्रण स्वीकार करेंगे या नहीं ।। किसान प्रतिनिधि क्रांतिचंद्र की चिट्ठी मिलने के बाद भी कौतूहल बना रहा है कि जमींदार रघुराजसिंह क्या निर्णय लेगा ।। यह कौतूहल एकांकी की समाप्ति पर जमींदार के जमींदारी की तौक को गले से उतारकर फेंकने की बात पर समाप्त होता है ।। इस प्रकार इस एकांकी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है ।।
3- ‘सेठ गोविंददास का जीवन परिचय एवं कृतियों पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर— जीवन परिचय- सेठ गोविंददास हिंदी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिंदी के उत्कृष्ट नाट्यकार ही नहीं थे, अपितु सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए, सेवाभावी राजनीतिज्ञ भी थे ।। सेठ गोविंददास का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर शहर में राजा गोकुलदास के परिवार में संवत 1953 (सन् 1896) को विजयादशमी के दिन हुआ ।। राज-परिवार में पले-बढ़े सेठजी की शिक्षा-दीक्षा भी आला दर्जे की हुई ।। अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति ही नहीं, स्केटिंग, नृत्य, घुड़सवारी का जादू भी इन पर चढ़ा ।। सेठ गोविंददास का पारिवारिक वातावरण भक्तिमय रहा ।। आपकी कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा थी ।।
अवसर प्राप्त होते ही धार्मिक उत्सवों पर रास लीलाओं में भाग लेना आपको बहुत पसंद था ।। इसी से आपमें नाट्य-साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न हुई ।। तभी गाँधी जी के असहयोग आंदोलन का तरुण गोविंददास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों के साथ सेवकों के दल में शामिल हो गए तथा दर-दर की खाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गँवाया ।। सेठजी ने देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों ‘चंद्रकांता’ व ‘चंद्रकांता संतति’ की तर्ज पर ‘चंपावती’, ‘कृष्णलता’ और ‘सोमलता’ नामक उपन्यास लिखे, वह भी मात्र सोलह वर्ष की किशोरावस्था में ।। साहित्य में दूसरा प्रभाव सेठजी पर शेक्सपीयर का पड़ा ।। UP BOARD CLASS 9TH HINDI SOLUTION CHAPTER 2 NAYE MEHMAN एकांकी खण्ड
शेक्सपीयर के ‘रोमियो-जूलियट’, ‘एजयू लाइक इट’, ‘पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर’ और ‘विंटर्स टेल’ नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठजी ने ‘सुरेंद्र-सुंदरी’, ‘कृष्णकामिनी’, ‘होनहार’ और ‘व्यर्थ संदेह’ नामक उपन्यासों की रचना की ।। इस तरह सेठजी की साहित्य-रचना का प्रारंभ उपन्यास से हुआ ।। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी ।। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, ‘वाणासुर-पराभव’ नामक काव्य की भी रचना की ।। सन् 1917 में सेठजी का पहला नाटक ‘विश्व प्रेम’ छपा ।। उसका मंचन भी हुआ ।। सन् 1974 ई-में सेठजी का देहांत हो गया ।। प्रमुख एकांकी- सेठ गोविंददास के नाटकों एवं एकांकियों की संख्या सौ से भी ऊपर है ।। इनके प्रमुख एकांकियों को विभिन्न शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है
(क) ऐतिहासिक- बुद्ध की एक शिष्या, बुद्ध के सच्चे स्नेही कौन?, नानक की नमाज, तेगबहादुर की भविष्यवाणी, परमहंस का पत्नी प्रेम आदि ।।
(ख) सामाजिक समस्या प्रधान- स्पर्धा, मानव-मन, मैत्री, हंगर-स्ट्राइक, ईद और होली, जाति उत्थान, वह मरा
क्यों? आदि (ग) राजनीतिक- सच्चा कांग्रेसी कौन आदि
(घ) पौराणिक- कृषि यज्ञ इसके अतिरिक्त इनके अन्य प्रमुख एकांकी संग्रह हैं- सप्तरश्मि, एकादशी, पंचभूत,
चतुष्पद, आपबीती, जगबीती, मैं, अष्टदश, कर्तव्य, हर्ष, प्रकाश आदि ।।
-1784- साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें किस उपाधि से विभूषित किया गया? उत्तर— सेठ गोविंददास भारत के स्वतंत्रता सेनानी, सांसद तथा हिंदी के साहित्यकार थे ।। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन्
1961 ई- में पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया ।। भारत की राजभाषा के रूप में वे हिंदी के प्रबल समर्थक थे ।। सेठ गोविंददास हिंदी के कला मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य रचना करने वाले नाटककार ही नहीं थे अपितु
सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए सेवाभावी राजनीतिज्ञ थे ।।
5- ‘सेठ गोविंददास हिंदी के प्रबल समर्थक थे’ स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— हिंदी भाषा की हित चिंता में तन-मन-धन से लीन सेठ गोविंददास हिंदी साहित्य सम्मेलन के अत्यंत सफल सभापति सिद्ध हुए ।। हिंदी के प्रश्न पर सेठजी ने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिंदी का पक्ष लिया ।। वह हिंदी के प्रबल पक्षधर और भारतीय संस्कृति के संवाहक थे ।। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए ये जीवनपर्यंत प्रयत्नशील रहे और कालांतर में आपके प्रयासों से हिंदी राष्ट्रभाषा बनी भी ।। निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि सेठ
गोविंददास साहित्य और स्वदेश दोनों के एकनिष्ठ सेवक थे तथा हिंदी के प्रबल समर्थक थे ।।
6- ‘व्यवहार’ एकांकी के आधार पर नर्मदाशंकर का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।
उत्तर— नर्मदाशंकर जमींदार रघुराजसिंह के स्टेट का मैनेजर है, जिसकी आयु लगभग 65 वर्ष है ।। वह 40 वर्षों से रघुराजसिंह के स्टेट का मैनेजर है ।। जमींदार का हित सोचना ही उसका परम कर्तव्य है ।। नर्मदाशंकर के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित है —
(अ) जमींदारी प्रथा का समर्थक- नर्मदाशंकर जमींदारी प्रथा का समर्थक है ।। वह जानता है कि इस प्रथा का अंत हो
जाने पर उसका महत्व खत्म हो जाएगा ।। इसलिए वह चाहता है कि जमींदार रघुराजसिंह व किसानों के बीच द्वंद्व चलता रहे ।। तभी उसका महत्व बना रहेगा ।। इसीलिए वह रघुराजसिंह को किसानों के विरुद्ध भड़काने का प्रयास
करता है ।।
(ब) जमींदार रघुराजसिंह का शुभचिंतक- नर्मदाशंकर जमींदार रघुराजसिंह का शुभचिंतक है ।। वह रघुराजसिंह के
किसानों के हित में लिए गए फैसलों; कर्ज माफ करना, लगान कम करना, तथा बिना नजराना लिए जमीन देना का विरोध करता है ।। जब रघुराजसिंह सभी किसानों को भोज पर परिवार सहित आमंत्रित करता है तो रघुराजसिंह की आर्थिक हानि की ओर इशारा करते हुए वह कहता है-“किसानों का भोज खर्च का नहीं, आमदनी का कारण
होता था, वह अब खर्च का कारण हो जाएगा ।।”
(स) किसानों का विरोधी- नर्मदाशंकर किसानों का प्रबल विरोधी है ।। रघुराजसिंह किसानों के हित की जो बात
सोचता है उसका वह विरोध करता है तथा उनके लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिससे रघुराजसिंह के हृदय में उनके लिए दुर्भावना पैदा हो और किसानों के हितों के लिए रघुराजसिंह द्वारा किए गए कार्यों को अनुचित बताते
हुए कहता है-“चोर-चौर मौसेरे भाई,राजा साहब ।।”
द) अहंकारी- नर्मदाशंकर एक अहंकारी व्यक्ति है ।। वह किसानों को हेय दृष्टि से देखता है ।। किसानों द्वारा भोज
बहिष्कार का निर्णय लेने पर वह रघुराजसिंह से कहता है- “इन दो कौड़ी के किसानों की यह मजाल! इनकी यह हिम्मत! इनका यह साहस, इनकी यह हिमाकत!” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि नर्मदाशंकर एक अहंकारी, किसानों का विरोधी और जमींदारी प्रथा का समर्थक है ।। उसके हृदय में दया, करुणा, सहानुभूति जैसी कोमल भावनाएँ नहीं हैं ।। उसमें वे सभी गुण विद्यमान हैं जो शोषण करने वाले व्यक्तियों के सहयोगी में होने चाहिए ।।
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7- रघुराजसिंह किस प्रकार किसानों का सच्चा हित कर सकता है?
उत्तर— रघुराजसिंह को किसानों का सच्चा हित करने के लिए अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाई जाने वाली शोषणपूर्ण कार्य पद्धति को त्यागकर किसानों के हित के लिए कार्य करने होंगे और किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह उनका शत्रु नहीं, बल्कि शुभचिंतक है ।। किसानों के प्रति उसके पूर्वजों द्वारा किए गए अत्याचारों को उसे समाप्त करना होगा व किसानों के विकास के लिए कार्य करने होंगे ।। उसे किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य स्वयं की स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं, अपितु किसानों के हित के लिए हैं ।। उसे जमींदारी की तौक को गले से उतारकर किसानों के हित के लिए उनके जैसा बनकर रहना होगा व किसानों को समानता का अधिकार देना होगा और किसानों के हित में निरंतर प्रयत्नशील रहना होगा, जिससे किसान उस पर विश्वास कर सकें ।।
8- ‘व्यवहार’ एकांकी के आधार पर क्रांतिचंद्र के चरित्र की विशेषताएँ बताइए ।।
उत्तर— क्रांतिचंद्र चूरामन किसान का पुत्र व एक शिक्षित नवयुवक है ।। वह जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण से भली-भाँति परिचित है ।। ग्रामीण किसानों का शोषण देखते रहना उसके लिए असहनीय है ।। इसलिए वह उन्हें मुक्त कराना चाहता है ।। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(अ) साहसी व शिक्षित युवा- क्रांतिचंद्र 22-23 वर्ष का अत्यंत साहसी व शिक्षित युवक है ।। शिक्षित होने के कारण
वह अपना व गाँव का हित-अहित भली प्रकार जानता है और समझता है ।। वह शिक्षित होने के कारण जमींदारों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को रोकने का साहस करता है तथा ग्रामीण किसान उसके नेतृत्व को स्वीकार
करते हैं और उसकी बातों से सहमत हो जाते हैं ।।
(ब) स्वतंत्रता का पोषक- क्रांतिचंद्र को किसी के अधीन रहना पसंद नहीं है इसलिए वह अपने नाम के साथ ‘प्रसाद’
व ‘दास’ जैसे उपनाम भी नहीं लगाता है ।। यही कारण है जब उसका पिता उसे ‘रेवाप्रसाद’ कहकर पुकारता है तो वह क्रोधित हो जाता है व अपने पिता से कहता है- “मेरा नाम रेवाप्रसाद नहीं है, पिताजी मैंने कई बार आपसे कह दिया, मैं न किसी का प्रसाद हूँ, न किसी का दास ।।” वह सभी किसानों को भी अज्ञान के अंधकार से निकालकर प्रकाश में लाकर, उन्हें जमींदार के शोषण से मुक्त कराना चाहता है तभी वह कहता है- “अंधकार में
रहने वाले व्यक्ति को यदि प्रकाश में ले आया जाए तो प्रकाश में लाने वाला कोई भूल नहीं करता ।।”
(स) नेतृत्व की क्षमता- शिक्षित होने के कारण क्रांतिचंद्र में किसानों का नेतृत्व करने की क्षमता है ।। जो किसान
रघुराजसिंह को अपना हितैषी समझते थे, उन्हें वह समझाता है कि रघुराजसिंह उन्हें धोखा दे रहा है ।। वह सभी
किसानों को अपने तर्कों द्वारा भोज के बहिष्कार के लिए सहमत कर लेता है ।। (
द) भूलों से सीखने वाला- क्रांतिचंद्र भूतकाल में की गई भूलों से सीख लेने वाला युवा है, उसका मानना है कि जो
लोग भूलों से सीख नहीं लेते, वे अंत में दुर्दशा को प्राप्त होते हैं ।। वह किसानों को समझाते हुए कहता है कि-“पर भूल और उस पर भी भूल, भूलों की झड़ियों ने ही तो हमारी यह दशा कर दी है ।। भूल की बातों में भूल होना
सबसे बड़ी भूल है ।।”
(य) मानवतावादी- क्रांतिचंद्र मानवता का पोषक है ।। वह स्वार्थी न होकर परार्थी है ।। जमींदार द्वारा गरीब किसानों के शोषण को वह सहन नहीं कर पाता ।। स्पष्ट है कि वह मानवता और समानता में विश्वास रखने वाला है ।।
(र) निर्भीक- क्रांतिचंद्र एक निर्भीक युवा है ।। वह सत्य को सत्य कहने में बिल्कुल नहीं डरता है ।। वह अपने पिता से
भी कहता है-“पिताजी मैं डरता नहीं हूँ, भय से अधिक बुरी वस्तु मै संसार में और कोई नहीं मानता ।।” वह
जमींदार को डाकू व लुटेरा तक कहता है तथा उसे भेजे जाने वाले पत्र में कठोर भाषा का प्रयोग करता है ।।
(ल) बुद्धिमान- क्रांतिचंद्र एक बुद्धिमान युवक है ।। वह जमींदार के द्वारा किसानों के हित में किए जाने वाले कार्यों;
जैसे- कर्ज माफ करना, लगान कम देना, बिना नजराना लिए जमीन देना आदि को केवल उसकी स्वार्थसिद्धि का कारण बताता है कि कैसे इन उपायों से जमींदार की आय में वृद्धि हुई है तथा जमींदार द्वारा दिए जाने वाले भोज के बदले दिए जाने वाले व्यवहार से किसानों की आर्थिक क्षति से उन्हें अवगत कराता है ।। इस प्रकार क्रांतिचंद्र साहसी, निर्भीक, शिक्षित, बुद्धिमान युवा है जो किसानों को जमींदार के अत्याचारों से मुक्त कराना चाहता है तथा भोज का बहिष्कार कर जमींदार के विरुद्ध संघर्ष की शुरूआत करता है तथा जमींदार को सही मार्ग पर ले आता है ।। देश को आज ऐसे ही युवकों की आवश्यकता है, जो शोषणमुक्त समाज की स्थापना के
लिए स्वयं को आगे ला सकें ।।
(ग) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1- ‘व्यवहार’ एकांकी में दावत है(अ) क्रांतिचंद्र के जन्मदिन की
(ब) नर्मदाशंकर के बेटे के विवाह की (स) रघराजसिंह की बहन के विवाह की (द) इनमें से कोई नहीं 2- रघुराजसिंह के यहाँ मैनेजर है(अ) चूरामन
(ब) क्रांतिचंद्र (स) नर्मदाशंकर
(द) इनमें से कोई नहीं
3- चूरामन के पुत्र का नाम है(अ) नर्मदाशंकर
(ब) रघुराजसिंह (स) क्रांतिचंद्र
(द) इनमें से कोई नहीं
4- जमींदार रघुराजसिंह ने किसानों के हित में(अ) सड़कें बनवाईं ।।
(ब) पक्के मकान बनवाए ।। (स) लगान माफ कर दिया था ।।
(द) इनमें से कोई नहीं
5- घर-पीछे एक आदमी को दावत पर बुलाने का अभिप्राय था(अ) किसानों को अपमानित करना
(ब) किसानों को तंग करना (स) भीड़ को नियंत्रित करना
(द) कम खर्च में अधिक व्यवहार की वसूली करना
6- गाँव के किसान रघुराजसिंह द्वारा दिए गए भोज में नहीं गए क्योंकि(अ) वे उसे अपना शत्रु मानते थे ।।
(ब) वे उसको अपमानित करना चाहते थे ।। (स) वे अपने आपको उससे अलग समझते थे ।। (द) वे उसका सम्मान नहीं करते थे ।। 7- क्रांतिचंद्र के अनुसार स्कूल और कॉलेज क्या करके अपराध नहीं करते
(अ) लोगों को बिना काम किए आरामतलब बनाकर (ब) सच्ची वस्तुस्थिति दिखाकर (स) डर के कारण अन्याय और अपमान सहना सिखाकर
(द) इनमें से कोई नहीं
8- ‘किसानों का भोज खर्च का नहीं आमदनी का कारण होता था, वह अब खर्च का कारण हो जाएगा ।।’ यह कथन किसका है? (अ) नर्मदाशंकर का
(ब) चूरामन का (स) क्रांतिचंद्र का
(द) रघुराजसिंह का
9- किसानों ने अपना जनप्रतिनिधिक्रांतिचंद्रको चुना (अ) वह शहर में नेतागिरी करता था ।।
(ब) वह अपने को बड़ा समझता था ।। (स) वह बाहुबली था ।।
(द) वह शिक्षित नवयुवक था ।।
10- बिना नजराना लिए मुफ्त जमीन देने का क्या परिणाम हुआ? (अ) किसान लापरवाह हो गए ।।
(ब) किसान जमींदार के गुलाम हो गए ।। (स) जमींदार की वार्षिक आय में हजारों रुपये की वृद्धि हो गई ।।
(द) इनमें से कोई नहीं (घ) आन्तरिक मूल्यांकन
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