Up board class 12 sanskrit natak primbada ka charitra chitran

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प्रियंवदा का चरित्र-चित्रण

प्रियंवदा नाटक की नायिका शकुन्तला की प्रिय सखी है। वह आयु में शकुन्तला के बराबर है और उसी के समान रूपवती है। वह शकुन्तला की हितैषिणी है और उसे सदैव प्रसन्न देखना चाहती है। उसके चरित्र की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) विनोदशीला प्रियंवदा विनोदप्रिय स्वभाववाली है। शकुन्तला को केसर वृक्ष के पास खड़ा देखकर वह कहती हैं, तुम्हारे संयोग से यह वृक्ष ऐसा लग रहा है, जैसे लता का संयोग पा गया हो।

( 2 ) आश्वस्त स्वभाव-प्रियंवदा आश्वस्त स्वभाववाली है। जब अनसूया का मन इस बात से आशङ्कित होता है।

कि हस्तिनापुर जाकर राजा दुष्यन्त शकुन्तला को याद करेंगे कि नहीं, तब प्रियंवदा उसे आश्वस्त करते हुए कहती है-“

न तादृशा आकृतिविशेषा गुणविरोधिनो भवन्ति । “

Up board 12th sanskrit natak durvasa ka charitra chitran

(3) वाक्चातुर्य – शकुन्तला को ऋषि दुर्वासा के शाप से मुक्त कराने हेतु वह अपने वाक्चातुर्य से ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न करती है और उनसे शाप की समाप्ति का उपाय ज्ञात करती है- अभिज्ञानाभरणदर्शनेन शापो निवर्तिष्यत इति ।

( 4 ) शकुन्तला की हितैषिणी प्रियंवदा शकुन्तला से निःस्वार्थ प्रेम करती है और उसे बहन के समान मानती है। वह शकुन्तला के प्रत्येक मनोरथ को पूर्ण करने के लिए प्रयत्नशील रहती है। ऋषि दुर्वासा से शाप की समाप्ति का उपाय वही ज्ञात करती है। शकुन्तला की विदाई के समय वह सहर्ष गोरोचन, तीर्थमृत्तिका, दूर्वाकिसलय आदि माङ्गलिक अङ्गराग एकत्र करती हैं और उसे राजा की दी हुई अँगूठी सँभालकर रखने की सलाह देती है-

यदि नाम स राजा प्रत्यभिज्ञानमन्थरो भवेत्, ततस्तस्य इदमात्मनामधेयाङ्कितमङ्गलीयकं दर्शय ।

संक्षेप में प्रियंवदा शकुन्तला की परम स्निग्ध सखी है, जो उसके सुख में सुखी और दुःख में दुःखी रहती है। वह व्यावहारिक शिष्टाचार, नम्रता एवं वाक्पटुता में कुशल है।

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