Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 7 lobh papasy karanam संस्कृत दिग्दर्शिका सप्तमः पाठः लोभः पापस्य कारणम्

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सप्तमः पाठः लोभः पापस्य कारणम्


निम्नलिखित पद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए


1— एको ……………………पश्यति।
[शब्दार्थ-वृद्धव्याघ्रः=बूढ़ा बाघ, स्नातः स्नान करके, कुशहस्तः हाथ में कुशा लिए हुए, सरस्तीरे>सरः+तीरे सरोवर के किनारे, ब्रूते = कह रहा था, पान्थाः = हे पथिकों, लोभाकृष्टेन > लोभ + आकृष्टेन = लोभ से आकृष्ट (पथिक) द्वारा, पान्थेनालोचितम् > पान्थेन+आलोचितम् = पथिक ने सोचा, भाग्येनैतत् >भाग्येन + एतत् = भाग्य से बह, संशयमनारुह्य >संशयम्+अनारुह्य संदेह पर चढ़े बिना (सन्देह किए बिना), पुनरारुह्य>पुनः+आरुह्य=फिर चढ़कर; फिर प्राप्त करके


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘लोभ पापस्य कारणम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।

अनुवाद- एक बूढ़ा बाघ स्नान करके, कुश हाथ में लेकर, तालाब के किनारे कह रहा था, ‘अरे, अरे पथिकों! यह सोने का कंगन लो।’ तब लोभ से खिंचकर किसी राहगीर ने सोचा, ‘भाग्य से ही ऐसा सम्भव होता है (ऐसा सुअवसर हाथ आता है), किन्तु इस (जैसे) सन्देहास्पद विषय में प्रवृत्त होना ठीक नहीं (अर्थात् जहाँ संकट की आशंका हो, ऐसे कार्य से विरत होना ही अच्छा), फिर भी (कहा गया है कि)– संशय (सन्देह) का आश्रय लिए बिना व्यक्ति कल्याण (हित) को प्राप्त नहीं करता, पर सन्देह का आश्रय लेने पर यदि जीवित बच जाता है तो (भलाई) देखता है (प्राप्त करता है)।


2— सः आह……….………… दुर्निवारः।
[शब्दार्थ-प्रसार्य = फैलाकर, मारात्मके त्वयि हिंसा करने वाले तुझ पर, प्रागेव>प्राक् + एव= पहले ही, यौवनदशायाम् अतीव = यौवन में बहुत अधिक, दुर्वृत्त-दुराचारी, दाराश्च > दाराः+च= और स्त्री, धार्मिकेणाहमादिष्ट:>धार्मिकेण+ अहम्+आदिष्टः धार्मिक ने मुझे आदेश दिया, तदुपदेशादिदानीमहं>तद् + उपदेशात् + इदानीम् +अहम् = उसके उपदेश से अब मैं, गलितनखदन्तः = गिरे हुए नाखून और दाँतों वाला, विश्वासभूमिः = विश्वासपात्र, चैतावान् > और (मैं) इतना, लोकप्रवादः लोकनिन्दा, दुर्निवारः= नहीं हट सकती
सन्दर्भ- पूर्ववत्।


अनुवाद- वह (पथिक) बोला- “तेरा कंगनः कहाँ है?” बाघ ने हाथ फैलाकर दिखाया। पथिक बोला, “तुझ हिंसक (जीवधाती) पर कैसे विश्वास करूँ? बाघ बोला- “सुन रे पथिक! पहले ही युवावस्था में मैं बड़ा पापी (दुराचारी) था। अनेक गायों और मनुष्यों को मारने से मेरे पुत्र और पत्नी मर गए और मैं वंशहीन हो गया। तब किसी धर्मात्मा ने मुझे उपदेश दिया“आप कुछ दान, धर्म आदि कीजिए।” उस उपदेश से नहाने वाला, दान देने वाला, बूढ़ा, टूटे नाखून और दाँतों वाला मैं भला विश्वास योग्य क्यों नहीं हूँ? मैं तो इतना लोभरहित हो गया हूँ कि अपने हाथ से स्वर्णकंकण (सोने का कंगन) को भी जिस किसी को (किसी को भी) देना चाहता हूँ, तो भी बाघ मनुष्य को खाता है, यह लोकनिन्दा दूर करना कठिन है” (अर्थात् लोगों के मन में बाघ के हिंसक होने की धारणा इतने गहरे तक बैठी है कि उसका निराकरण सम्भव नहीं, चाहे मैं कितना ही धर्मात्मा क्यों न हो जाऊँ)।


3— मया च…………… पण्डितः।
[शब्दार्थ- अधीतानि = पढ़े हैं, मरुस्थल्याम् = रेगिस्तान में, क्षुधार्ते = भूख से व्याकुल अर्थात् भूखे व्यक्ति को, पाण्डुनन्दनः = पाण्डव (यहाँ युधिष्ठिर), लोष्ठवत्= मिट्टी के ढेले के समान]


सन्दर्भ- पूर्ववत्।
अनुवाद- और मैंने धर्मशास्त्र भी पढ़े हैं- हे युधिष्ठिर! मरुभूमि (रेगिस्तान) में जैसे वर्षा और जैसे भूखे को दिया भोजन सफल होता है, वैसे ही दरिद्र को दिया दान भी सफल होता है। जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान तथा समस्त प्राणियों को अपने समान देखता है (समझता है), वह पण्डित (सच्चा ज्ञानी) है।

4— त्वंचातीव……… ………….किमौषधैः।
[शब्दार्थ- मा=मत (नहीं), प्रयच्छेश्वरे>प्रयच्छ+ ईश्वरे=समर्थ को दो, व्याधितस्य रोग की, नीरुजस्य निरोगी की]


सन्दर्भ- पूर्ववत्। अनुवाद- और तुम बहुत दरिद्र हो, इसलिए तुम्हें यह सोने का कंगन देने को प्रयत्नशील (सचेष्ट) हूँ; क्योंकि- हे कौन्तेय (कुन्ती पुत्र)! दरिद्रों का भरण (पालन-पोषण) करो, धनवान् को धन मत दो। औषध रोगी के लिए है, जो नीरोगी (स्वस्थ) है, उसे औषध से क्या (लाभ)? (धनवानों के पास तो धन है ही, धन की आवश्यकता उसी को है, जिसके पास धन नहीं है।)


5— तदत्र ……………………………………………भक्षितः।
[शाब्दार्थ- तदत्र>तत + अत्र = तो यहाँ (इस), सरसि = सरोवर में, तदवचः प्रतीतः = उसकी बात पर विश्वास करके, महापङ्के = अत्यधिक कीचड़ में, निमग्नः = फँसा हुआ, पलायितुमक्षमः > पलायितुम् + अक्षमः = भागने में असमर्थ, अतस्त्वामहमुत्थापयामि > अतः + त्वाम् अहम् + उत्थापयामि = इसलिए तुझे मैं निकालता हूँ, शनैः शनैरूपगम्य > शनैः-शनैः + उपगम्य = धीरे-धीरे पास जाकr


सन्दर्भ- पूर्ववत्।
अनुवाद- तो यहाँ (इस) सरोवर में स्नान करके सोने का कंगन लो। तब जब वह उसकी बात पर विश्वास कर लालच में (पड़कर) सरोवर में स्नान करने के लिए घुसा तो गहरी कीचड़ (दलदल) में फँसकर भागने में असमर्थ हो गया। उसे कीचड़ में पड़ा (फँसा) देख बाघ बोला, ‘ओहो, दलदल में फँस गए। तो तुम्हें निकालता हूँ’ यह कहकर धीरे-धीरे पास पहुँचकर बाघ ने उसे खा लिया।

सूक्ति व्याख्या संबंधी प्रश्न—- Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 4 himalaya संस्कृत दिग्दर्शिका चतुर्थः पाठः हिमालयः सम्पूर्ण हल


निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की व्याख्या कीजिए


1— लोभः पापस्य कारणम्।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘लोभः पापस्य कारणम्’ नामक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में लोभ को पाप का कारण बताया गया है।

व्याख्या- पाँच मनोविकारों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद में यह तीसरा मनोविकार है। दूसरे की किसी वस्तु को येन-केन प्रकारेण पा लेने या ले लेने की तीव्र लालसा ही लोभ कहलाती है। लोभ और लालच एक-दूसरे के पर्याय है। संसार में अधिकतर लोग लोभ-लालच के वशीभूत होकर ही पाप-कर्म में प्रवृत्त होते हैं और क्रमश: अपने विनाश का कारण स्वयं बनते हैं। यदि व्यक्ति अपने लोभ-लालच की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा लें तो उसे पाप-कर्म करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी और उसकी प्रवृत्ति स्वयमेव पाप कर्म की ओर हट जाएगी।

2— नःसंशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- इस सूक्ति में जीवन में जोखिम उठाने के महत्व को प्रतिपादित किया गया है।

व्याख्या- प्रत्येक व्यक्ति उन्नति करना चाहता है। यदि वह उन्नति करना चाहता है तो उसे स्वयं को सन्देह अर्थात् खतरे में डालना ही होगा। उन्नति के लिए यदि किसी भी काम को किया जाए तो उसकी शत-प्रतिशत सफलता कभी निश्चित नहीं होती। इस बात की संभावना भी रहती है कि उसे हानि भी उठानी पड़े। पथिक भी सोचता है कि बाघ उसे मार सकता है, लेकिन बाघ के पास गए बिना सोने का कंगन भी प्राप्त नहीं हो सकता। अतः सोने का कंगन प्राप्त करने के लिए उसे अपने प्राणों को संकट में डालना ही होगा। कहा गया है- ‘No risk no gain.’
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि स्वयं को खतरे में डाले बिना मनुष्य उन्नति नहीं कर सकता।

3— दरिद्रे दीयते दानं सफलं।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- इस सूक्ति में कहा गया है कि धनहीन व्यक्ति को दिया गया दान ही सफल होता है।


व्याख्या- दरिद्र को दिया हुआ दान ही सफल होता है; क्योंकि निर्धन को जब हम दान देते हैं तो उससे उसकी आवश्यकता पूरी होती है। हमारी दी हुई वस्तु का उपभोग करके उसकी आत्मा तृप्त होती है। उसकी तृप्त आत्मा से हमारे लिए शुभ आशीर्वचन निकलते हैं। इन्हीं आशीर्वचनों से हमारे पुण्यों में वृद्धि होती है और हमारे दान देने का उद्देश्य सफल हो जाता है। इसके विपरीत जब हम किसी समर्थ अथवा सम्पन्न व्यक्ति को दान देते हैं तो वह हमारे दिए हुए दान का दुरुपयोग करता है तथा उस दान के द्वारा वह विलासिता की वस्तुएँ प्राप्त करता है और समाज में दुराचरण फैलाता है, जिससे हमें पुण्यों के स्थान पर पापों का भागीदार बनना पड़ता है। इसीलिए तो किसी ने कहा भी है कि दान गरीब व्यक्ति को ही दिया जाना चाहिए।


4— मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- इस सूक्ति में पराई स्त्री और पराए धन के प्रति आचरण को स्पष्ट किया गया है।


व्याख्या- इस सूक्ति का अर्थ है कि दूसरे की स्त्री को माता के समान और दूसरे के धन का मिट्टी के ढेले के समान समझना चाहिए। दूसरे की स्त्री अथवा धन पर जो कुदृष्टि रखता है, वह व्यक्ति पण्डित अर्थात् ज्ञानी नहीं कहा जा सकता। आशय यह है कि जो व्यक्ति अज्ञान अथवा अहंकार के कारण दूसरे की स्त्रियों के साथ घृणास्पद आचरण का प्रदर्शन करते हैं, उन्हें अपने घर की स्त्रियों के सम्मान एवं सुरक्षा की चिन्ता नहीं होती; क्योंकि जैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ करेंगे वैसा ही व्यवहार दूसरे भी आपके साथ करेंगे। इसी प्रकार यदि आप अन्यायपूर्ण ढंग से दूसरे के धन का हरण करते हैं तो आपका स्वयं का अर्जित धन भी दूसरे के द्वारा लिया जा सकता है। यही कारण है कि ज्ञानी व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान और दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान समझते हैं।

5— आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यतिस पण्डितः।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- बाघ अपने अहिंसक होने का प्रमाण देने के सन्दर्भ में महाभारत का दृष्टान्त देता हुआ यह सूक्ति कहता है।

व्याख्या- पण्डित (तत्ववेत्ता व ज्ञानी) वह है, जो समस्त प्राणियों को अपने समान समझता है। भाव यह है कि व्यक्ति जो व्यवहार अपने लिए औरों से चाहता है, उसे वैसा ही व्यवहार दूसरों से करना चाहिए। यहीं भारतीय संस्कृति का मूल-तत्व है। यहाँ पण्डित से तात्पर्य किसी जाति अथवा पढ़े-लिखे व्यक्ति से नहीं है। पण्डित वही है जिसमें दया, ममता, सहानुभूति एवं उदारता की भावना हो तथा जिसके अन्दर छुआछूत, भेदभाव, ऊँच-नीच आदि की भावना न हो। जो अपने-पराए का भेद रखकर व्यवहार करता है, वह मूर्ख होता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति के अनुसार सभी प्राणियों में एक ही परमात्मा का अंश विद्यमान होता है।


6— नीरुजस्य किमौषधैः।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- इस सूक्ति में बाघ महाभारत का उद्धरण देते हुए लोभी पथिक से कह रहा है कि रोगी व्यक्ति को ही औषध दी जाती है, निरोगी को नहीं।


व्याख्या- रोगी के लिए औषध उपयोगी है, किन्तु निरोगी के लिए औषध का क्या प्रयोजन? अर्थात् औषध अस्वस्थ व्यक्ति का रोग दूर करके उसे पुनः स्वस्थ बनाने के लिए होती है, जो व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ है, उसे औषध से क्या लेना-देना? इसी प्रकार जो दरिद्र है, अभावग्रस्त है, उसे दान की आवश्यकता है; किन्तु जो धनी है, साधन-सम्पन्न है, उसे और धन देने से क्या लाभ? दान का सच्चा उपयोग तो अभाव पीड़ित का अभाव दूर करने में है।

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पाठ पर आधारित प्रश्न—निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए


1— लोभः कस्य कारणम् अस्ति?
उत्तर— लोभः पापस्य कारणम् अस्ति।
2— वृद्धव्याघ्रःसरस्तीरे किम अकथयत्?
उत्तर— वृद्धः व्याघ्रः सरस्तीरे अकथयत्- “भो, भो पान्थाः! इदं सुवर्ण कङ्कणम् गृह्यताम् ।”
3— व्याघ्रस्य सम्बन्धे कः लोकप्रवादः दुर्निवारः?
उत्तर— व्याघ्रः मानुषं खादति इति व्याघ्रस्य सम्बन्धे लोकप्रवादः दुर्निवारः।
4— व्याघ्रस्य कथनं श्रुत्वा पथिकः किमचिन्तयत्?
उत्तर— पथिक: व्यचारयत् यत् भाग्येनैव एतत् सम्भवति, परमस्मिन् सन्देहास्पदे विषये प्रवृत्तिः न कुर्यात् , किन्तु संशयमकृत्वाऽपि नरं कल्याणं न पश्चति।
5— पण्डितः कः?
उत्तर— आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सैव (स + एव) पण्डितः।
6— व्याघ्र यौवने कीदृशः आसीत्?
उत्तर— व्याघ्र यौवने अतीव दुर्वृत्तः आसीत् ।
7— दानं केभ्यःदातव्यम्?
उत्तर— दानं दरिद्रेभ्यः दातव्यम्।
8— पथिकः व्याघ्रस्य वचनैः कुत्र निमग्नः?
उत्तर— पथिक: व्याघ्रस्य वचनैः महापङ्के निमग्नः।
9— व्याघ्रोहस्तं प्रसार्य किं दर्शयति?
उत्तर— व्याघ्रो हस्तं प्रसार्य सुवर्णकङ्कणं दर्शयति।
10— पापस्य किं कारणम् अस्ति?
उत्तर— पापस्य कारणम् लोभः अस्ति।.
11— औषधं कस्य पथ्यं भवति?
उ.- औषधं व्याधितस्य पथ्यं भवति।
12— पान्थं पङ्के पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रः किम् अवदत्?
उत्तर— पान्थं पङ्के पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रः अवदत्- “अहो! महापङ्के पतितोऽसि। अतस्त्वामहमुत्थापयामि।’
13— कीदृशंदानं सफलं भवति?
उत्तर— यत् दानं दरिद्रे दीयते तत् सफलं भवति।
14— अनेन पाठेन युष्मभ्यं का शिक्षा प्राप्यते?
उत्तर— अनेन पाठेन अस्मभ्यं शिक्षा प्राप्यते यत् लोभः पापस्य कारणं भवति।

संस्कृत अनुवाद संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए


1— किसी स्थान पर एक बाघ रहता था।
अनुवाद- कस्मिंश्चिद् स्थाने एक: व्याघ्रः वसति स्मः।
2— पथिक को सोने का कंगन देखकर लालच आ गया।
अनुवाद- पान्थस्य स्वर्णकंङ्कण पश्य अलोभत् ।
3— लोभ पापका कारण होता है।
अनुवाद- लोभः पापस्य कारणं भवति।
4— पथिक सरोवर के कीचड़ में फँस गया।
अनुवाद- पान्थाः सरिसस्य पढ़े निमग्नः।
5— साधु ने हमें धर्म का उपदेश दिया।
अनुवाद- साधुः वयं धर्मस्य उपदेशः ददाति।

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6— दरिद्र को दिया गया दान सफल होता है।
अनुवाद- दरिद्रस्य दीयते दानं सफलं भवति।
7— हम आज पढ़ने के लिए जा रहे हैं।
अनुवाद- वयं अद्य अध्ययनाय गच्छाम्।
विद्यालय के समीप एकतालाब है।
अनुवाद- विद्यालयं समया एक: वडागः अस्ति।
तुम्हें प्रतिदिन प्रातःकाल भ्रमण करना चाहिए।
अनुवाद- यूयं नित्यं प्रात:काले भ्रमणं कुर्यात् ।
10— सफलता के लिए हमें अति परिश्रम करना चाहिए।
अनुवाद- सफलतायाः कृते वयम् अति परिश्रमं कुर्याम् ।

संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न

1— निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करते हुए नियम-निर्देशित कीजिए_

पान्थोऽवदत्, चैतवान, सरस्वीरे, अतस्त्वामहमुत्थपयामि, तस्यौषधं, तथापि, धर्मादिकम्, प्रागेव, भाग्येनैतत्, लोभाकृष्टः


उत्तर— सन्धि पद ……………..— सन्धि विच्छेद नियम………………सन्धि का नाम
पान्थोऽवदत् …………….— पान्थः + अवदत् ……………..उत्व सन्धि
चैतवान ……………..च+ एतवान ……………..वृद्धि सन्धि
सरस्तीरे ……………..सरः + तीरे :……………..सत्व सन्धि
अतस्त्वामहमुत्थपयामि ……………..अत: + त्वाम् +अहम् + उत्थापयामिः ……………..सत्व, अनुस्वार सन्धि
तस्यौषधं …………….— तस्य + औषधम ……………..वृद्धि सन्धि
तथापि ……………..तथा + अपि……………..दीर्घ सन्धि
धर्मादिकम् ……………..धर्म + आदिकम् ……………..दीर्घ सन्धि
भाग्येनैतत् ……………..भाग्येन + एतत् ……………..वृद्धि सन्धि
लोभाकृष्टः…………….— लोभ + आकृष्ट ……………..दीर्घ सन्धि

2— निम्नलिखित शब्दरूपों में प्रयुक्त विभक्ति एवं वचन लिखिए
सन्देहे, भाग्येन, तव, लोभात्, भुतेषु, नीरुजस्य, शस्त्राणि, त्वयि, व्याघ्रः, उपदेशात्, पङ्के, धार्मिकेण
शब्द-रूप ……………..विभक्ति……………..वचन
सन्देहे ……………..सप्तमी……………..एकवचन
भाग्येन…………….— तृतीया……………..एकवचन
लोभात्……………..पंचमी ……………..एकवचन
भुतेषु ……………..सप्तमी……………..बहुवचन Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 4 himalaya संस्कृत दिग्दर्शिका चतुर्थः पाठः हिमालयः सम्पूर्ण हल
नीरुजस्य…………….— षष्ठी……………..एकवचन
शास्त्राणि…………….— प्रथमा/द्वितीया……………..एकवचन
त्वयि…………….— सप्तमी……………..एकवचन
व्याघ्रः…………….— प्रथमा……………..एकवचन
उपदेशात्…………….— पञ्चमी……………..एकवचन
पङ्के ……………..सप्तमी……………..एकवचन
धार्मिकेण ……………..तृतीया……………..एकवचन

3— निम्नलिखित धातु-रूपों के लकार, पुरुष एवं वचन स्पष्ट कीजिए
अकथयत्, उत्थापयामि, अधीतानि, चरतु, अपश्यत्, तिष्ठति, अवदत्, इच्छामि, ब्रूते, गृह्यताम्, गृहाण
उत्तर— धातु-रूप ……………..लकार……………..पुरुष ……………..वचन
अकथयत् ……………..लङ् लकार ……………..प्रथम एकवचन
उत्थापयामि…………….— लट् लकार ……………..उत्तम……………..एकवचन
अधीतानि…………….— लोट् लकार ……………..उत्तम……………..एकवचन
चरतु ……………..लोट् लकार ……………..प्रथम……………..एकवचन
अपश्यत् ……………..लङ् लकार ……………..प्रथम……………..एकवचन
तिष्ठति ……………..लट् लकार……………. प्रथम……………..एकवचन
अवदत् ……………..लङ् लकार ……………..प्रथम……………..एकवचन
इच्छामि ……………..लट् लकार ……………..उत्तम……………..एकवचन
ब्रूते ……………..लट् ……………..लकार प्रथम……………..एकवचन
गृह्यताम् ……………..लोट् लकार ……………..प्रथम……. द्विवचन

4— रेखांकित पदों में प्रयुक्त विभक्ति तथा उससे संबंधित नियम का उल्लेख कीजिए
(क) ग्रामं निकषा नदी वहति ।।
उत्तर— पद ग्रामं में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई हैं क्योंकि अभितः (चारों ओर या सभी ओर), परितः (सभी ओर), समया (समीप),
निकषा (समीप), हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द), प्रति (ओर तरफ), शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
(ख) सुधीरः कट्या कुब्जः अस्ति।
उत्तर— रेखांकित पद कट्या में तृतीय विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि जिस अंग में विकार होने से शरीर विकृत दिखाई दे, उस
विकारयुक्त अंग में तृतीय विभक्ति होती है।
(ग) विद्यालयं अभयतः राजमार्गम् अस्ति।
उत्तर— रेखांकित पद विद्यालयं में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि अभितः (चारों ओर या सभी ओर), परितः (सभी ओर), समया (समीप), निकषा (समीप) हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द),प्रति (ओर तरफ), शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
(घ) मृगाः मृगैः सङ्कमनुब्रजन्ति।
उत्तर— रेखांकित पद मृगैः में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि साकं, सार्धं, समं शब्दों के योग में तृतीय विभक्ति होती है।
(ङ) कृष्णस्य पिता वसुदेव।
उत्तर— रेखांकित पद कृष्णस्य में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि जो बातें संबंध विशेष को प्रदर्शित करने वाली होती है, वहाँ षष्ठी विभक्ति होती है।

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