Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 8 संस्कृत दिग्दर्शिका अष्टमः पाठः विश्ववन्द्याः कवयः
अष्टमः पाठः विश्ववन्द्याः कवयः
निम्नलिखित पद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए–\\
1 — कवीन्दं …………………. कोविदाः ।।
[शब्दार्थ-कवीन्दुम्>कवि+ इन्दुम् = कविरूपी चन्द्रमा को, नौमि नमस्कार करता हूँ, चन्द्रिकामिव> चन्द्रिकाम् + इव = चाँदनी के समान, चिन्वन्ति =चुनते हैं, कोविदाः विद्वान लोग]
संदर्भ– यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘विश्ववन्द्याः कवयः’ नामक पाठ के ‘वाल्मीकिः’ शीर्षक से उदधत है ।।
अनुवाद- मैं कवियों में चन्द्रमा के सदृश वाल्मीकि को नमस्कार करता हूँ, जिनकी रामायण की कथा का विद्वान् लोग उसी प्रकार रसपान करते हैं, जैसे चकोर चाँदनी का (रसपान) करते हैं ।।
2– वाल्मीकिकविसिंहस्य………………………… परं पदम् ।।
[शब्दार्थ- वाल्मीकिकविसिंहस्य = वाल्मीकि-कवि रूपी सिंह की, कवितावनचारिणः = कविता रूपी वन में विचरण करने वाले, शृण्वन्=सुनते हुए, याति प्राप्त होता है, परं पदम् = मोक्ष को]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- कवितारूपी वन में विचरण करने वाले कवि वाल्मीकिरूपी सिंह की रामकथारूपी गर्जन (घोष) को सुनकर कौन
(ऐसा व्यक्ति है, जो) मोक्ष प्राप्त नहीं करता (अर्थात् रामकथा सुनकर सभी लोग मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं) ।।
3 — कूजन्तं ………………….. वाल्मीकिकोकिलम् ।।
[शब्दार्थ- कूजन्तं = कूजते (बोलते) हुए, रामरामेति > राम-राम + इति = राम-राम इस (शब्द) का, आरुह्य = चढ़कर, कविताशाखां= कविता रूपी शाखा पर, वाल्मीकिकोकिलम् = वाल्मीकि रूपी कोयल की]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- कवितारूपी शाखा (डाली) पर चढ़कर मधुर-मधुर अक्षरों में (मधुर ध्वनि से) ‘राम-राम’ शब्द का कूजन करते हुए वाल्मीकिरूपी कोकिल (नर कोयल) की मैं वन्दना करता हूँ ।।
विशेष- आशय यह है कि महर्षि वाल्मीकि-रचित ‘रामायण’ कोकिल स्वर के समान मधुर है, जिसमें ‘श्रीराम’ के नाम स्मरणपूर्वक उनके सुन्दर चरित्र का गायन किया गया है (कोकिल जिस प्रकार वृक्ष की शाखा पर बैठकर पंचम स्वर में बोलता है, वैसे ही वाल्मीकि जी ने कवितारूपी शाखा पर बैठकर कूजन किया) ।।
4 — श्रवणाञ्जलिपुटपेयं……………………. वन्दे ।।
[शब्दार्थ-श्रवणाञ्जलिपुटपेयं > श्रवण+अञ्जली-पुट-पेयम् = कानरूपी अंजली के पुट से पीने योग्य, विरचितवान् = रचा, भारताख्यममृतं > भारत + आख्यम् + अमृतम् = महाभारत नामक अमृत, तमहमरागमकृष्णं > तम् + अहम् + अरागम् + आकृष्णम् = उन रागरहित और पापरहित को मैं]
सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘विश्ववन्द्याः कवयः’ नामक पाठ के व्यासः’ शीर्षक से उद्धृत है ।।
अनुवाद- मैं उन कृष्णद्वैपायन (व्यासदेव) की वन्दना करता हूँ, जो राग (द्वेष) और पाप से रहित हैं तथा जिन्होंने कानरूपी अञ्जलि द्वारा पाए जाने योग्य महाभारत नामक अमृत की सृष्टि की है ।। (आशय यह है कि जिस प्रकार प्यासा आदमी अंजलि से पानी पीकर पूर्ण तृप्त हो जाता है, उसी प्रकार निष्पाप व्यास जी द्वारा रचित महाभारत भी ऐसा अमृतमय है कि उसे कानों से मन भरकर सुनने से हृदय परम तृप्ति का अनुभव करता है) ।। विशेष- कवि ने ‘अकृष्णं कृष्णद्वैपायनं’ में ‘जो कृष्ण (काला या कल्मषयुक्त) नहीं है, फिर भी ‘कृष्ण’ नामधारी है, में विरोधाभास का चमत्कार प्रदर्शित किया है ।।
5 — नमः सर्वविदे……………………………. भारतम् ।।
[शब्दार्थ – सर्वविदे = सब कुछ जानने वाले (सर्वज्ञ) को, कविवेधसे = कविरूपी ब्रह्म को, सरस्वत्या = वाणी द्वारा, सरस्वती नदी से (विद्या से; ज्ञान से), वर्षमिव>वर्षम् + इव = भारतवर्ष के समान, भारतम् = महाभारत को
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- मैं उन सर्वज्ञ कवि ब्रह्मा श्री व्यास जी को नमन करता हूँ, जिन्होंने अपनी वाणी से पुण्यतम ‘महाभारत’ की रचना उसी प्रकार की है, जिस प्रकार ब्रह्मा ने सरस्वती नदी द्वारा भारत को पुण्यभूमि बना दिया है ।। (भाव यह है कि ब्रह्माजी ने जिस प्रकार पुण्यतोया सरस्वती की सृष्टि द्वारा भारत देश को पुण्यभूमि बना दिया, उसी प्रकार व्यास जी ने भी अपनी वाणी के बल पर महाभारत काव्य को पुण्यमय बना दिया) ।। विशेष- महर्षि वेदव्यास जी ने ‘महाभारत’ में धर्म के सच्चे स्वरूप का उद्घाटन किया है, जिसे पढ़कर लोग धर्माचरण करना सीखें और पुण्यसंजय द्वारा मोक्ष प्राप्त करें ।।
6 — नमोऽस्तु ………………………. प्रदीपः ।।
[शब्दार्थ- फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र > फुल्ल + अरविन्द > आयत्-पत्र-नेत्र = खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान नेत्रों वाले, ज्ञानमयः=ज्ञान से परिपूर्ण]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद-खिले हुए कमल की चौड़ी पंखुड़ियों के सदृश (विशाल) नेत्र वाले विराट् बुद्धि वाले हे व्यासदेव! आपको नमस्कार है, जिन आपने ‘महाभारत‘ रूपी तेल से पूर्ण ज्ञानमय दीपक जलाया है ।। (आशय यह है कि दीपक जिस प्रकार अंधकार को दूर करके मनुष्य को रास्ता दिखाता है, दीपक में भरा तेल ही उस दीपक द्वारा प्रकाश देता है, उसी प्रकार महाभारत में ज्ञानरूपी तेल है, जो लोगों का हमेशा मार्गदर्शन करता रहेगा ।। उसी प्रकार बुद्धि वाले श्री व्यासदेव ने ‘महाभारत’ के रूप में सदा तेल से भरे रहने वाले ऐसे दीपक को जलाया है, जो मनुष्यों के अज्ञानान्धकार को दूर कर उन्हें निरन्तर ज्ञानरूपी प्रकाश देता रहेगा) ।। विशेष- ‘महाभारत’ एक ऐसे विशाल महासागर के समान है, जिसमें विश्व का सारा ज्ञान भर दिया गया है, इसीलिए इसके विषय में कहा गया है कि ‘यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्’ (जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है), अर्थात् संसार में जो कुछ भी
जानने योग्य है, वह सब इसमें है ।। यह दावा विश्व के किसी भी अन्य ग्रन्थ के लिए नहीं किया जा सकता ।। Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 7 lobh papasy karanam संस्कृत दिग्दर्शिका सप्तमः पाठः लोभः पापस्य कारणम्
7 — पुरा कवीनां ………………….. बभूव ।।
[शब्दार्थ- पुरा = प्राचीनकाल में, गणनाप्रसङ्गे = गणना के प्रसंग में, कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासः > कनिष्ठिका+ अधिष्ठित-कालिदासः = कनिष्ठिका, छोटी उँगली पर विराजमान हैं कालिदास जहाँ ऐसी, अद्यापि> अद्य+अपि = आज तक भी, अनामिका=अनामिका (नामक उँगली), सार्थवती=सार्थक, बभूव हुआ]
सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के विश्ववन्द्याः कवयः’ नामक पाठ के कालिदासः’ शीर्षक से उद्धुत है ।।
अनुवाद- (कभी) प्राचीनकाल में कवियों की (श्रेष्ठता की) गणना के अवसर पर (सबसे पहले) कनिष्ठिका पर कालिदास का नाम गिना गया ।। आज तक उनके जोड़ के दूसरे कवि के अभाव के कारण (कनिष्ठिका से अगली अंगुली का नाम) अनामिका (बिना नाम वाली) पड़ना सार्थक हुआ अर्थात् आज भी कालिदास के समान दूसरा कवि नहीं है ।। विशेष- कनिष्ठिका से अगली अँगूली का नाम ‘अनामिका’ तो प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है ।। कवि की सूझ इसमें है कि उसने कालिदास की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए कवियों की गणना के प्रसंग में इस अंगुली का नाम ‘अनामिका’ पड़ने की कल्पना की ।। यह हेतुत्प्रेक्षा का चमत्कार है ।।
कालिदासगिरां…………………….मादृशाः ।।
[शब्दार्थ- कालिदासगिराम् = कालिदास की वाणी (या कविता) को, सारम = तत्त्व को, विदुर्नान्ये>विदुः+न+अन्ये = अन्य नहीं जानते हैं, मादृशाः = मेरे जैसे]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- कालिदास की वाणी के सार (अर्थात् मर्म) को या तो स्वयं कालिदास जानते हैं या (भगवती) सरस्वती या चतुर्मुख (चार मुख वाले) ब्रह्मा ।। मुझ जैसे अन्य (अल्पज्ञ) नहीं जानते ।। विशेष- कालिदास इतनी अलौकिक प्रतिभा से सम्पन्न कवि थे कि उनकी सरल-सी दिखाई पड़ने वाली कविता भी इतने गूढ़ और नित्य जीवन अर्थों की व्यंजना करती है कि उसके मर्म को (अर्थात् कवि के मन्तव्य को) स्वयं कालिदास अथवा सरस्वती या ब्रह्मा ही समझ सकते हैं ।। वह अन्य किसी के सामर्थ्य की बात नहीं ।।
निर्गतासु……………………………जायते ।।
[शब्दार्थ-निर्गतासु = निकलने पर, उच्चरित होने पर, सूक्तिषु = सुन्दर वचनों को, प्रीतिर्मधुरसान्द्रासु> प्रीतिः + मधुरसान्द्रासु= आनन्द; मधुर और सघन, मञ्जरीष्विव>मञ्जरीषु +इव= आम्रमंजरियों के सदृश
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- नई निकली हुई (निर्गताः) मधुर (मकरन्द से पूरित) और सान्द्र (घनी सुगन्ध वाली) आम्रमंजरियों के सदृश कालिदास की मधुर (कर्णप्रिय) और सान्द्र (सरल) सूक्तियाँ उच्चारणमात्र से (निर्गतासु) किसे आनन्दित नहीं करतीं ।। जिस प्रकार सुगन्धित मंजरियाँ; मधुर मकरन्द से पूरित होकर निकलते ही सर्वत्र सुगन्धि फैला देती हैं, वैसे ही कालिदास की मधुर सूक्तियों के उच्चारणमात्र से ही जनसामान्य आनन्दित हो उठता है ।।
सूक्ति व्याख्या संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
1 — श्रृंण्वन् राम-कथा-नादं को न याति परं पदम् ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘विश्ववन्द्याः कवयः’ नामक पाठ से अवतरित है ।।
प्रसंग- रामायण की मोक्षदायिनी शक्ति का गुणगान करते हुए उसके रचयिता की वन्दना की गई है ।।
व्याख्या- जिस प्रकार पशुओं में सिंह सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कवियों में वाल्मीकि श्रेष्ठ हैं ।। कवि वाल्मीकिरूपी सिंह की राम-कथारूपी गर्जना को सुनकर कौन होगा, जो परम पद (मोक्ष) को प्राप्त नहीं कर लेगा ? तात्पर्य यह है कि वाल्मीकि जी द्वारा रचित ‘रामायण’ की राम-कथा मोक्षदायिनी है ।।
2– चक्रे पुण्यं सरस्वत्या यो वर्षमिव भारतम् ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- महर्षि वेदव्यास ने भारत के समान ही पुण्यशाली जिस महाभारत ग्रन्थ की रचना की, प्रस्तुत सूक्ति में उस भारतदेश और महाभारत ग्रन्थ की प्रशंसा की है ।।
व्याख्या- भगवान् ब्रह्मा ने पृथ्वी पर सरस्वती नामक पुण्य नदी से युक्त भारतवर्ष की रचना की ।। हमारा यह भारतवर्ष इतना पुण्यशाली और पवित्र है कि यहाँ देवता भी निवास करने को लालायित रहते हैं ।। ब्रह्म के समान ही कवि व्यास ने अपनी पुण्यशालिनी वाणी से भारतदेश के समान महान् पुण्यशाली ग्रन्थ महाभारत की रचना की ।। जिस प्रकार भारत आदिकाल से विश्वगुरु के रूप में सम्पूर्ण संसार को अपने ज्ञान से आलोकित करता रहा है, उसी प्रकार महाभारत भी अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्ग दर्शन करता आ रहा है ।। धन्य है वे महर्षि व्यास, धन्य है उनकी वाणी और धन्य है उसकी अनुपम रचना महाभारत ।।
3 — प्रज्वलितो ज्ञानमयः प्रदीपः ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- महाभारत को ज्ञानमय दीपक कहकर महाकवि व्यास को नमस्कार किया गया है ।।
व्याख्या- प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति का आशय यह है कि दीपक जिस प्रकार अन्धकार को दूर करके मनुष्य को रास्ता दिखाता है, उसी प्रकार महाभारत में भी ज्ञानरूपी तेल है, जो लोगों का सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा ।। जिस प्रकार दीपक से भरा हुआ तेल ही उस दीपक के माध्यम से प्रकाश देता है, उसी प्रकार श्री व्यास ने भी महाभारत के रूप में सदा तेल से भरे रहने वाले ऐसे दीपक को जलाया है, जो मनुष्य के अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करके उन्हें निरन्तर ज्ञानरूपी प्रकाश देता रहेगा ।। महाभारत को पाँचवाँ वेद भी माना जाता है ।। यह एक ऐसे विशाल महासागर के समान है, जिसमें विश्व का समस्त ज्ञान निहित है ।। इसीलिए महाभारत के विषय में कहा गया है”यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्” अर्थात् जो इसमें है वह कहीं नहीं है ।। इसीलिए उस श्लोक, जिसमें यह सूक्ति निहित है, में उचित ही कहा गया है कि हे व्यासदेव! आपने पूर्ण ज्ञानमय दीपक जलाया है ।।
4 — पुरा कवीनांगणनाप्रसंले कनिष्ठिकाधिष्ठतकालिदासः ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के अग्रगण्य कवि हैं ।। इस तथ्य को काव्य-शैली में प्रस्तुत करते हुए कहा गया हैव्याख्या- महाकवि कालिदास रस-व्यंजना, वैदर्भी रीति, हृदयहारी, प्रकृति चित्रण, उपमा, अलंकार के मंजुल प्रयोगों तथा रसराज श्रृंगार की उद्भावनाओं से रसिकजन के मनःसागर को आनन्दातिरेक की उत्तला तरंगों से आप्लावित करने के कारण कवियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।। इनका श्रृंगार रसप्रधान नाटक ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम् ‘ देश-विदेशों में इनकी महत्ता प्रतिष्ठापित कर चुका है ।। रूस, जापान आदि देशों में इसका सफल मंचन हो चुका है ।। विदेशी विद्वान जितना कालिदास को जानते हैं, उतना अन्य संस्कृत कवियों को नहीं ।। इसका श्रेय कालिदास की काव्यकला को ही प्राप्त है ।। कवियों की गणना करते समय पहले ही कालिदास कनिष्ठिका उँगली पर आ गए थे; अर्थात् उनका महाकवियों में प्रथम स्थान था ।। आज भी उनके समान अन्य कोई कवि नहीं है ।। अतएव अनामिका नामक उँगली मनो सार्थक हो गई है ।। कनिष्ठिका (छोटी) उँगली के पास की उँगली को अनामिका कहते हैं ।। अनामिका का अर्थ है- जिसका कोई नाम नहीं ।। आज भी अनामिका पर कालिदास के समान किसी कवि का नाम न होने से वह सार्थक है; अर्थात् उसका ‘अनामिका’ नाम ठीक ही है ।। भाव यह है कि कालिदास पहले भी अद्वितीय थे और आज भी अद्वितीय हैं ।।
पाठ पर आधारित प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए
1 — वाल्मीकिः कवीन्दुः कथं कथ्यते ?
उत्तर — यतः तत्प्रणीतां रमायणी कथां चन्द्रिकामिव पिबन्ति कोविदचकोराः ।।
2 — वाल्मीकिः कः आसीत् ।।
उत्तर — वाल्मीकिः रामायणग्रन्थस्य रचयिता महाकविः आसीत् ।।
3 — कथं वाल्मीकिमुनिः कोकिलेनोपमितः ?
उत्तर — यथा कोकिल: मधुरं कूजति, तथैव वाल्मीकिः रामरामेति मधुरं चुकूजे ।।
4 — महाभारतस्य रचयिताः क ?
उत्तर — व्यासः कविः महाभारतस्य रचयिता अस्ति ।।
5 — कालिदासस्य सूक्तीनां का विशेषता अस्ति ?
उत्तर — कालिदासस्य सूक्तयः मधुराः सान्द्राश्च अस्ति ।।
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6 — ज्ञानमयः प्रदीपः केन प्रज्वलितः ?
उत्तर — वेदव्यास: महाभारतनामकः ज्ञानमयः प्रदीपः प्रज्वालितः ।।
7 — कः कविः कवीन्दः इति कथितः ।।
उत्तर — वाल्मीकिः कविः कवीन्दुः इति कथितः ।।
8 — कोविदाः काम् कथां चित्वन्ति ?
उत्तर — कोविदाः रामायणीं कथां चकोरा इव चन्द्रिकामिव चित्वन्ति ।।
9 — व्यासस्य पूर्णं नाम किम् आसीत् ? ।।
उत्तर — व्यासस्य पूर्णं नाम ‘कृष्णद्वैपायनः आसीत् ।।
10 — कवीनांगणनाप्रसले कालिदासः कुत्राधिष्ठितः आसीत् ?
उत्तर — कवीनां गणनाप्रसङ्गे कालिदासः कनिष्ठिकाम् अधिष्ठित् आसीत् ।।
11 — विश्ववन्द्याः कवयः केके सन्ति ?
उत्तर — वाल्मीकि: व्यास: कालिदासश्च विश्ववन्द्याः मुख्याः कवयः अस्ति ।।
12 — संस्कृतस्य साहित्यस्य आदिकविः कः आसीत् ?
उत्तर — संस्कृतस्य साहित्यस्य आदिकवि: वाल्मीकिः आसीत्
13 — अनामिका कथं सार्थवती बभूव ?
उत्तर — कालिदासस्य समानः कः अपि कवि न अस्ति, अत: अनामिका सार्थवती बभूव ।।
14 — भारततैलपूर्णः ज्ञानमयः प्रदीपः केन प्रज्वलितः ?
उत्तर — भारततैलपूर्ण: ज्ञानमयः प्रदीप: वेदव्यासेन प्रज्वालितः ।।
15 — वेदव्यासेन भारतं कथं पुण्ययुक्तमकरोत् ?
उत्तर — वेदव्यास: निजसरस्वत्या भारतं पुण्ययुक्तमकरोत् ।।
संस्कृत अनुवाद संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
1 — आदिकवि वाल्मीकि को नमस्कार है ।।
अनुवाद- आदिकवि वाल्मीकाय नमः ।।
2 — रामकथा को सुनकर कौन मोक्ष को प्राप्त नहीं करता है ?
अनुवाद- रामकथास्य श्रुत्वा क: मोक्षाय प्राप्यः न करोति ?
3 — मैं कवि वेदव्यास को नमस्कार करता हूँ ।।
अनुवाद- अहम् कवि वेदव्यासाय नमः करोमि ।।
4 — कवियों ने कालिदास श्रेष्ठ है ।।
अनुवाद- कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः ।।
5 — महाभारत की रचना वेदव्यास ने की ।।
अनुवाद- महाभारतस्य रचयिता वेदव्यास: आसीत् ।।
6 — गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस लिखी ।।
अनुवाद- गोस्वामी तुलसीदासः श्रीरामचरितमानस् अलिखत् ।।
7 — तुम शीघ्र विद्यालय जाओ ।।
अनुवाद- त्वं शीघ्र विद्यालयं गच्छ ।।
8 — पिता पुत्रों को मिठाई देता है ।।
अनुवाद- पिता पुत्रेभ्यः मिष्टान्नं ददाति ।।
शिव पार्वती के साथ कैलाशगए ।।
अनुवाद- शिवः पार्वत्या सह कैलाशम् अगच्छत् ।।
10 — योग स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है ।।
अनुवाद- योगः स्वस्थजीवनाय आवश्यकः अस्ति ।।
संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न
1 — निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम लिखिए
कवीन्दुम, मञ्जरीष्विव, अद्यापि, नमोऽस्तु, रामेति, मधुराक्षम्, भारताख्यममृतम्, कनिष्ठिकाधिष्ठितः, चन्द्रिकामिव, फुल्लारविन्दः, श्रवणाञ्जलिः
उत्तर — सन्धि पद ………….सन्धि-विच्छेद………….सन्धि का नाम
कवीन्दुम ………….कवि + इन्दुम्………….दीर्घ सन्धि
मञ्जरीष्विव ………….मञ्जरीषु + इव………….यण सन्धि
अद्यापि ………….अद्य + अपि………….दीर्घ सन्धि
नमोऽस्तु………… — नमः + अस्तु ………….उत्व सन्धि
रामेति ………… — राम + इति ………… — वृद्धि सन्धि
मधुराक्षरम् ………….मधुर + अक्षरम् ………….दीर्घ सन्धि
भारताख्यममृतम्………….भारत + आख्यम् + अमृतम् ………….दीर्घ, अनुस्वार सन्धि
कनिष्ठिकाधिष्ठितः ………….कनिष्ठिका + अधिष्ठितः………….दीर्घ सन्धि
चन्द्रिकामिव………… — चन्द्रिकाम् + इव………….अनुस्वार सन्धि
फुल्लारविन्दः ………… — फुल्ल + अरविन्दः ………… — दीर्घ सन्धि
श्रवणाञ्जलिः ………… — श्रवण + अञ्जलिः ………… — दीर्घ सन्धि
2 — निम्नलिखित शब्द-रूपों में प्रयुक्त विभक्ति एवं वचन लिखिए
सर्वविदे, व्यासाय, यस्य, वाल्मीकिं, सूक्तिषु, कूजन्तम्, कवेः, कोविदाः, येन, त्वया, वनचारिणः, सरस्वत्याः
उत्तर — शब्द-रूप………….विभक्ति ………… — वचन
सर्वविदे………….चतुर्थी ……….एकवचन
व्यासाय………….चतुर्थी ……….एकवचन
यस्य …………….षष्ठी…………….एकवचन
वाल्मीकिं …………द्वितीया…………एकवचन
सूक्तिषु ……….. — सप्तमी ……….. — बहुवचन
कूजन्तम् …………द्वितीया…………एकवचन
कवेः ……..पञ्चमी/षष्ठी………..एकवचन
कोविदाः …………प्रथमा…………बहुवचन
येन ……….. — तृतीया…………एकवचन
त्वया…………… — तृतीया…………एकवचन
वनचारिणः …………पञ्चमी/षष्ठी ……..बहुवचन
सरस्वत्याः …………पञ्चमी/षष्ठी…………एकवचन
3 — निम्नलिखित धातु रूपों के लकार, पुरुष तथा वचन बताइए
कूजन्तं, याति, नौमि, नमः, चिवन्ति, विदुः, जायते, वन्दे
उत्तर — धातू-रूप………… — लकार ………….पुरूष………….वचन
कूजन्तं ………….लोट् लकार ………….मध्यम………….द्विवचन
याति………… — लट् लकार………….प्रथम ………….एकवचन
नौमि ………….लट् लकार………… — उत्तम………….एकवचन
नमः ………….लोट् लकार ………….मध्यम………….एकवचन
चिन्वन्ति ………….लट् लकार………… — प्रथम………….बहुवचन
विदुः………… — लट् लकार………… — प्रथम………….बहुवचन
जायते………… — लट् लकार………… — प्रथम………….एकवचन
वन्दे ………….लट् लकार ………….उत्तम………….एकवचन
4 — निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए
भारतवैलपूर्णः, गणनाप्रसंड्रे, कविवेधसे, कालिदासगिरां, कथानादम्
उत्तर — समस्त पद………….समास-विग्रह………….समास का नाम
भारतवैलपूर्णः ………….भारत एव तैलपूर्णः ………….कर्मधारय समास
गणनाप्रसङ्गे ………… — गणनायाः प्रसङ्गे ………….तत्पुरुष समास
कविवेधसे ………… — कवि एव वेधसे ………….कर्मधारय समास
कालिदासगिरां ………… कालिदासस्य गिराम् ………… तत्पुरुष समास
कथानादम् ………… कथायाः नादम् ………… तत्पुरुष समास
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