UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा (राहुल सांकृत्यायन)

UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा (राहुल सांकृत्यायन)

UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा (राहुल सांकृत्यायन)

अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा   (राहुल सांकृत्यायन)


1 — राहुल सांकृत्यायन का जीवन-परिचय देते हुए हिन्दी साहित्य में उनका स्थान बताइए ।।
उत्तर — – लेखक परिचय- राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल, सन् 1893 ई० को जिला आजमगढ़ के पन्दहा नामक गाँव में अपने नाना पं० रामशरण पाठक के यहाँ हुआ था, जो फौज में सिपाही थे ।। इनका बचपन का नाम केदारनाथ था ।। इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डे एक कट्टर धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे ।। राहुल जी की बौद्ध धर्म में बहुत आस्था थी, अतः इन्होंने महात्मा बुद्ध के पुत्र के नाम पर अपना नाम भी बदलकर राहुल रख लिया और संकृति गोत्र में जन्म लेने के कारण इनके नाम के साथ ‘सांकृत्यायन’ जुड़ गया ।। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा ‘रानी की सराय’ में प्राप्त की और उसके बाद निजामाबाद में उर्दू मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की ।। संस्कृत की उच्च शिक्षा इन्होंने वाराणसी से प्राप्त की ।। इसी समय से साहित्य के प्रति प्रेम इनके मन में उत्पन्न हुआ ।। इनके पिता की अभिलाषा थी कि ये उच्च शिक्षा प्राप्त करें, परन्तु इनका मन पढ़ाई में न होकर कहीं और ही था ।। बौद्ध धर्म में आस्था होने के कारण घर तथा परिवार का बन्धन भी इन्हें अच्छा नहीं लगा ।।

राहुल जी ने अपने नाना जी के श्रीमुख से उनके फौजी जीवन की कहानियाँ तथा दक्षिण भारत की यात्रा के वृत्तान्त सुने थे, जिनसे प्रभावित होकर इनके मन में भ्रमण के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ ।। इन्होंने घुमक्कड़ी को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया और नेपाल, तिब्बत, रूस, यूरोप, जापान, श्रीलंका, मंचूरिया, चीन, ईरान, कोरिया, अफगानिस्तान आदि देशों की अनेक बार यात्रा की ।। भारत के बदरीनाथ, केदारनाथ, कुमायूँ, गढ़वाल, केरल, कर्नाटक, कश्मीर, लद्दाख आदि के पर्यटन को इनकी दिग्विजय कहना अतिशयोक्ति न होगी ।। अपनी इन यात्राओं में इन्होंने अनेक दुर्लभ ग्रन्थों की खोज की ।। भावी घुमक्कड़ों को प्रभावित करने के उद्देश्य से इन्होंने ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ ही लिख डाला ।। अपनी आत्मकथा में उन्होंने यह तथ्य भी स्पष्ट किया है कि वे मैट्रिक पास करने के लिए भी तैयार नहीं थे ।। स्नातक की परीक्षा तो क्या उत्तीर्ण करते, उन्होंने कभी विश्वविद्यालय की चौखट के अन्दर भी कदम नहीं रखा ।। घुमक्कड़ी ही इनकी पाठशाला और विश्वविद्यालय थी ।। 14 अप्रैल, सन् 1963 ई० को माँ सरस्वती के इस महान् सपूत का निधन हो गया ।।


हिन्दी साहित्य में स्थान राहुल सांकृत्यायन हिन्दी के एक प्रकाण्ड विद्वान थे ।। वे छत्तीस एशियाई एवं यूरोपीय भाषाओं के ज्ञाता थे ।। मानव-जीवन और आधुनिक समाज के जितने क्षेत्र को राहुल जी ने स्पर्श किया, उतने क्षेत्रों में एक साधारण मस्तिष्क की पैठ असम्भव है ।।
आधुनिक हिन्दी-साहित्य में उनकी गणना सदैव हिन्दी के महान रचनाकारों में की जाती रहेगी ।।


2 — राहुल सांकृत्यायन की कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर — – कृतियाँ- राहुल जी ने यात्रा, दर्शन, धर्म, पुराण, राजनीति व इतिहास आदि विषयों को अपने लेखन का आधार बनाया ।। राहुल जी द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं – यात्रा साहित्य- मेरी यूरोप यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी लद्दाख यात्रा, रूस में पच्चीस मास, एशिया के दुर्लभ भू-खण्डों में, यात्रा के पन्ने, घुमक्कड़ शास्त्र ।।

आत्मकथा- मेरी जीवन यात्रा ।। कोश ग्रन्थ-तिब्बती-हिन्दी कोश, शासन शब्दकोष, राष्ट्रभाषा-कोष ।।

कहानी संग्रह- सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपरी, कनैला की कथा ।। उपन्यास-विस्मृत यात्री, मधुर स्वप्न, सिंह सेनापति, दिवोदास, जीने के लिए, सप्त सिन्धु, जय यौधेय ।।

जीवनी साहित्य- कार्ल्स मार्क्स, स्टालिन, वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली, सरदार पृथ्वी सिंह, नए भारत के नए नेता, महात्मा बुद्ध, लेनिन, असहयोग के मेरे साथी ।।

दर्शन- दर्शन-दिग्दर्शन, बौद्ध-दर्शन आदि ।। देश-दर्शन- सोवियत भूमि, किन्नर देश, हिमालय प्रदेश, जौनसार-देहरादून आदि ।। विज्ञान-विश्व की रूपरेखा ।।

साहित्य और इतिहास- इस्लाम धर्म की रूपरेखा, आदि हिन्दी की कहानियाँ, दक्खिनी हिन्दी काव्यधारा, मध्य एशिया का इतिहास आदि ।।

3 — राहुल सांकृत्यायन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — – भाषा-शैली- राहुल जी संस्कृतनिष्ठ और नागरी लिपि के समर्थक थे ।। इनकी भाषा पारिभाषिक, संयत व तर्कपूर्ण है ।। इसे विचार व चिन्तन की भाषा कहा जा सकता है ।। प्रकृति या मानव के सौन्दर्य का चित्रण करते समय राहुल जी ने प्रायः काव्यमयी भाषा का ही प्रयोग किया है ।। ऐसे में इनकी भाषा व्याख्यात्मक व आलंकारिक हो गई है ।। अनेक स्थलों पर राहुल जी की व्यावहारिक भाषा भी दृष्टिपथ में आती है ।। इनकी भाषा विषय और सौन्दर्य के अनुसार बदलती रही है ।। राहुल जी की रचनाओं में शब्दप्रयोग में स्वच्छन्दता स्पष्टता दृष्टिगोचर होती है ।। राहुल की रचनाओं में वर्णनात्मक, विवेचनात्मक और व्यंग्यात्मक शैली के दर्शन होते हैं ।। यात्रा-साहित्य की शैली वर्णनात्मक है ।। इतिहास, धर्म, दर्शन, विज्ञान आदि विषयों पर लिखते समय इनकी शैली विवेचनात्मक हो गई है ।। समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों, परम्पराओं तथा पाखण्डों पर व्यंग्य करते समय इनकी शैली व्यंग्यात्मक हो गई है ।।

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1 — निम्नलिखित गद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

(क) आधुनिककाल में………. …………न लिया होता ?
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ के ‘राहुल सांकृत्यायन’ द्वारा लिखित प्रसिद्ध रचना ‘घुमक्कड़शास्त्र’ से ‘अथातो घुमक्कड जिज्ञासा’ नामक निबन्ध से उद्धृत है ।।


प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में श्री राहुल सांकृत्यायन ने घुमक्कड़ प्रवृत्ति के महत्व पर प्रकाश डाला है ।।


व्याख्या- लेखक का कहना है कि वर्तमान युग के मनुष्यों का सुप्रसिद्ध घुमक्कड़ों से परिचय कराना आवश्यक है; क्योंकि यश-लोभी अधिकांश मनुष्य ऐसे हैं, जो इन बेचारे घुमक्कड़ों की रचनाओं को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित और प्रचारित कराते रहते हैं तथा समाज में विद्वान् बनने का ढोंग रचा करते हैं, जबकि वास्तव में ये कोल्हू के बैल हैं ।। आधुनिक वैज्ञानिक जगत में चार्ल्स डार्विन का नाम अत्यधिक महत्वपूर्ण है जिसने अपनी अद्वितीय खोज से प्राणियों की उत्पत्ति एवं मानव-वंश के विकास पर न केवल नए दृष्टिकोण से प्रकाश डाला, अपितु विद्वानों को एक नवीन दिशा भी प्रदान की ।। उसकी खोज के कारण ही अनेक विद्वानों को अपने पूर्वाग्रह से ग्रसित विचारों में भी परिवर्तन करना पड़ा ।। मानव-समाज की इस सेवा के मूल में डार्विन महोदय की घुमक्कड़ प्रवृत्ति ही प्रमुख रूप से विद्यमान थी ।। यदि उसने घुमक्कडी का व्रत न लिया होता तो वह कदाचित् ही ऐसे नवीन दृष्टिकोण जगत् के सामने प्रस्तुत कर पाता ।। UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 2 महाकवि माघ का प्रभात वर्णन


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) लेखक ने डार्विन के उदाहरण द्वारा घुमक्कड़ी की महत्ता का प्रतिपादन किया है ।। (2) भाषापरिष्कृत, परिमार्जित तथा मुहावरेदार ।। (3) शैली- विवेचनात्मक ।। (4) वाक्य-विन्यास- सुगठित ।। (5) शब्द-चयनविषय-वस्तु के अनुरूप ।।

(ख) मैं मानता हूँ.. … ……………………………………को बनाया है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने घुमक्कड़ी से प्राप्त होने वाले ज्ञान एवं यात्रा-साहित्य से प्राप्त होने वाले ज्ञान में अन्तर स्पष्ट किया है ।।


व्याख्या- लेखक इस बात को स्वीकार करता है कि देश-विदेश की यात्राओं पर लिखी गई पुस्तकों को पढ़ने से भी उन स्थानों के भ्रमण से मिलता-जुलता कुछ आनन्द मिल जाता है, परन्तु उनसे वह आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता, जो उन स्थानों के प्रत्यक्ष भ्रमण से प्राप्त होता है ।।


जिस प्रकार हम हिमालय के चित्र को देखकर, देवदार के गहन वनों और बर्फ से ढकी चोटियों के सौन्दर्य का अनुमानमात्र ही कर पाते हैं, किन्तु उसकी बर्फ से ढकी चोटियों के सौन्दर्य का वास्तविक आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, न उसके रूप को देख सकते हैं और न वहाँ की गन्ध का ही अनुभव कर सकते हैं ।। पुस्तकों में लिखे गए यात्रा वर्णनों को पढ़कर वह आनन्द नहीं मिल सकता, जो उन स्थानों की यात्रा करने वाले घुमक्कड़ों को प्राप्त होता है ।। यात्रा-कथाओं को पढ़ने से थोड़ा मार्गदर्शन मिलता है और कुछ दिनों के लिए ही सही देश-विदेश का भ्रमण करने की प्रेरणा भी मिलती है ।।


पुस्तकों को पढ़कर पाठक के मन में उन स्थानों को प्रत्यक्ष देखने की लालसा उत्पन्न हो जाती है, जिससे यह भी संभव है कि वह यात्रापुस्तक पढ़ते हुए घूमने का निश्चय कर ले ।। घुमक्कड़ को इसलिए ही संसार की सर्वश्रेष्ठ विभूति बताया गया है क्योंकि इन घुमक्कड़ों ने ही वर्तमान समय के विश्व का निर्माण किया है तथा विश्व का मार्गदर्शन कर उसे उन्नत बनाने का प्रयास किया है ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) केवल यात्रा-वर्णनों को पढ़कर घुमक्कड़ी का वास्तविक आनन्द प्राप्त नहीं होता है ।। (2) भाषाशुद्ध साहित्यिक आलंकारिक खड़ी बोली ।। (3) शैली- विवेचनात्मक ।। (4) वाक्य-विन्यास- सुगठित ।। (5) शब्द-चयन- विषयवस्तु के अनुरूप ।। (6) भावसाम्य- आगस्टाइन ने भी घुमक्कड़ी के विषय में कहा है- “संसार एक बड़ी पुस्तक है, जिसका वे लोग जो घर से बाहर नहीं जाते, केवल एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं ।। “

(ग) वे भारतीय….…………………………लात लगाते गए ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- लेखक ने प्रस्तुत गद्यांश में बताया है कि भारत में अनेक घुमक्कड़ हुए जिन्होंने बहुत से देशों की खोज की परन्तु अपनी घुमक्कड़ प्रकृति त्यागने के कारण ही भारत पराधीन हो गया था ।।

व्याख्या- लेखक कहता है कि भारतभूमि में बहुत बड़े-बड़े घुमक्कड़ पैदा हुए हैं जिन्होंने दक्षिण पूरब में लंका, वर्मा, मलाया, यवनद्वीप, स्याम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियो तथा सैलीबीज ही नहीं फिलीपाइन जैसे दूर देशों तक अपना परचम लहराया ।। एक समय तो ऐसा लगने लगा था जैसे न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया भी भारत का ही एक अंग बनने वाले है ।। परन्तु बाद में उन्होंने घुमक्कड़ी करना छोड़ दिया और कूपमण्डूक बन गए ।।
भारत में हिन्दू धर्म के कुछ उपदेशकों ने भारतवासियों की समुद्र-यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिए ।। उन्होंने लोगों के मन में यह धारणा बना दी कि समुद्र यात्रा करने से धर्म नष्ट हो जाता है ।। उनकी बातों से ऐसा लगने लगा कि मानो हिन्दू धर्म कोई नमक की पुतली हो, जो समुद्र के जल का स्पर्श करने मात्र से गल जाएगी ।। इस बात में क्या सन्देह है कि समाज का उत्थान देश-विदेश में भ्रमण से ही होता है ।। समाज की उन्नति के लिए घुमक्कड़ी अत्यन्त आवश्यक है ।। जिस देश ने, समाज ने या व्यक्ति ने भी घुमक्कड़ी धर्म को स्वीकार किया, उसे चारों फल-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त हो गए ।। सभी क्षेत्रों में उसकी उन्नति हुई, लेकिन जिसने घुमक्कडी धर्म को त्यागा, वह पतन के गर्त में गिरता गया ।। सीमित दायरे में संकुचित हो जाने के कारण भारतीयों का विकास न केवल रुक गया, वरन् वह विश्व की तुलना में अत्यधिक पिछड़ भी गया ।। भ्रमण से जो साहस का गुण विकसित होता है, उसका उनमें नितान्त अभाव हो गया और यही दोष उनकी पराधीनता का कारण सिद्ध हुआ ।।
साहित्यिक सौन्दर्य- (1) लेखक ने घुमक्कड़ी को बहुमुखी प्रगति और समाजोत्थान का महत्वपूर्ण साधन माना है और इसके समर्थन में इतिहास ने प्रमाण दिए हैं ।। (2) भाषा- व्यावहारिक एवं सरल खड़ी बोली ।। मुहावरों का सटीक प्रयोग ।। (3) शैलीव्यंग्यात्मक और वर्णनात्मक ।।

(घ) भारत के प्राचीन. ……..बाधा न रहे ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- लेखक राहुल सांकृत्यायन ने विभिन्न धर्मों के शलाका पुरुषों के भी घुमक्कड़ी होने का वर्णन किया है ।।


व्याख्या- श्री राहुल सांकृत्यायन जी कहते हैं कि भारत में विभिन्न धर्मावलम्बी मनुष्य एक साथ मिलकर रहते हैं ।। उन सभी धर्मों में एक जैन धर्म भी है ।। जैन धर्म के प्रतिष्ठापक श्रवण महावीर भी घुमक्कड़ ही थे ।। जिज्ञासा मानव-मन की मूल प्रवृत्ति है ।। इसी कारण महावीर ने घर-द्वार और नारी-सन्तान ही नहीं वरन् शरीर पर पहनने के वस्त्रों को भी त्याग दिया था ।। घुमक्कड़ी के कारण ही संसार में नयी-नयी खोजें हो पाती है ।। यदि मनुष्य एक ही स्थान पर बैठा रहता तो दुनिया का यह विकसित स्वरूप देखने को न मिलता ।। जैन धर्म के प्रतिष्ठापरक (प्रवर्तक) महावीर स्वामी ने सब कुछ त्यागकर ‘हाथ में भिक्षा और वृक्ष के नीचे निवास’ अर्थात् निर्द्वन्द्व विचरण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया ।। दिशाओं को ही वे अपना वस्त्र मानते थे ।। ऐसा उन्होंने इसलिए किया जिससे निर्द्वन्द्व विचरण में किसी प्रकार की कोई बाधा न रहे और निर्बाध होकर वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहें ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) लेखक ने इस गद्यावतरण में बताया है कि घुमक्कड़ी से व्यक्ति के वास्तविक ज्ञान में वृद्धि होती है ।। (2) नई-नई खोजें जो आज हमारे सामने हैं वे घुमक्कड़ी के ही कारण प्राप्त हुई हैं ।। (3) भाषा- सरल खड़ी बोली ।। (4) शैलीवर्णनात्मक ।। UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 2 महाकवि माघ का प्रभात वर्णन

(ङ) बुद्ध और महावीर से बढ़कर जैसा बना रखेंगे ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।

प्रसंग– इस अवतरण में राहुलजी ने घुमक्कड़ी को श्रेष्ठ व महान् बताया है ।। उन्होंने इस बात की ओर विशेष रूप से संकेत किया है कि महापुरुषों के महान् होने का मुख्य श्रेय घुमक्कड़ी को ही है ।।


व्याख्या– महात्मा गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों ही घुमक्कड़ थे ।। वे एक स्थान पर अधिक समय तक रुकना पसंद नहीं करते थे ।। इतना ही नहीं, उनके अनुयायी शिष्य भी उनकी इस घुमक्कड़ प्रवृत्ति से पूरी तरह प्रभावित थे क्योंकि उन्होंने अपने गुरु के द्वारा घुमक्कड़ होने की शिक्षा प्राप्त की ।। यदि कोई व्यक्ति बुद्ध और महावीर से बढ़कर त्याग, तपस्या, और सहृदयता का दावा करता है तो इसे उसकी अहंकार-भावना का परिचायक ही कहा जा सकता है ।। वस्तुतः ये दोनों ही सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड़ कहे जाते हैं ।। उन्होंने संसार के दुःखों का मूल खोजने के लिए ही महान् त्याग किया था, तपस्या की थी ।। उनकी तपस्या और उनके त्याग का उदाहरण सम्पूर्ण विश्व में नहीं मिलता ।


आजकल सैकड़ों व्यक्ति साधुओं का वेश धारण कर, कोल्हू से बँधे तेली के बैल की तरह एक ही स्थान पर जमे रहते हैं और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ महात्मा कहने एवं कहलाने का डंगा पीटते हैं ।। वास्तविकता यह है कि वे अज्ञानी और घमंडी होते हैं ।। वे बिना घुमक्कड़ी के ज्ञान प्राप्त कर ही नहीं सकते ।। यदि कोल्हू के बैल जैसी स्थिति के सभी लोग ज्ञानी और महात्मा बन जाएँ तो विश्व के प्रत्येक स्थान पर इस प्रकार के महात्माओं की भीड़ लग जाए ।। इस प्रकार के दम्भी और झूठे लोगों से सभी को सावधान रहना चाहिए; क्योंकि इनके चक्कर में आना जीवन के लिए महान् संकट सिद्ध होगा ।। सच्चा महात्मा कभी भी एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं ठहरता ।। दम्भी स्वभाव के साधुगण स्वयं तो कोल्हू के बैल (संकुचित विचारधारा) होते ही हैं, अपने शिष्यों को भी अपनी जैसी स्थिति में ढालने का प्रयास करते हैं ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) राहुल जी ने घुमक्कड़ी का महत्व बताते समय आजकल के पाखंडी साधुओं की कलई खोली है
और उन पर तीखा व्यंग्यरूपी प्रहार किया है ।। (2) भाषा- प्रवाहपूर्ण तथा व्यावहारिक; मुहावरों के प्रयोग से अभिव्यंजना शक्ति में वृद्धि हुई है ।। (3) शैली- हास्य-व्यंग्यप्रधान ।। (4) वाक्य विन्यास- सुगठित, (5) शब्द-चयन- विषय वस्तु के अनुरूप ।।

(च) शंकर तरूणाई……………..महामेल को देखा ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने भारतीयों की सुदूर भ्रमण की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला हैं ।।

व्याख्या- महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी का कहना है कि भारतवर्ष की चारों दिशाओं के अन्त तक बिना किसी साधन के यात्रा करने वाले आचार्य शंकर अपनी युवावस्था के प्रारंभ में ही दिवंगत हो गए थे ।। इतनी कम उम्र; तीस-बत्तीस वर्ष; में उन्होंने तीन संस्कृत ग्रन्थों के भाष्य लिखने के साथ-साथ अपने मानने वाले व्यक्तियों को घुमक्कड़ी धर्म का पाठ भी पढ़ा गए ।। वर्तमान समय में भी उनके घुमक्कड़ धर्म को मानने वाले अनेक लोग है ।। वास्कोडिगामा जब भारत की खोज कर भारत पहुँचा था, उसके बहुत समय पहले ही आचार्य शंकर के शिष्य भ्रमण करते हुए यूरोप और मास्को तक पहुँच चुके थे ।। आचार्य शंकर के साहसी शिष्यों-अनुयायियों ने उनके द्वारा भारत की चारों दिशाओं के छोर पर स्थापित किए गए चार धामों की यात्रा करके ही सन्तुष्ट नहीं हुए ।। उनके कई शिष्यों ने रूस के वाकू नामक स्थान तक की यात्रा की और वहाँ निवास भी किया ।। आचार्य शंकर के शिष्यों में से ही एक वोल्गा नदी के तट पर स्थित निज्जी नोवोग्राद नामक स्थान पर हुए महा-परिवर्तन का साक्षी भी रहा ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) बिना किसी उपयुक्त साधन के भारतवासियों के द्वारा वोल्गा तक की दुष्कर यात्रा किए जाने का वर्णन किया गया है ।। (2) भाषा- व्यावहारिक एवं सरल खड़ी बोली ।। (3) शैली- वर्णात्मक एवं विवेचनात्मक ।। (4) वाक्य-विन्यास- सुगठित ।। (5) शब्द-चयन- विषय-वस्तु के अनुरूप ।। UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 2 महाकवि माघ का प्रभात वर्णन

(छ) यह कोई आकस्मिक………………………….बना देती है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- इस गद्यांश में लेखक ने मानव-जीवन में घुमक्कड़ी के महत्व को समझाया है ।।
व्याख्या- भारत से बौद्ध धर्म के लुप्त होने का कारण भी राहुल सांकृत्यायन ने घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के प्रति उदासीनता को माना है ।। उनका मानना है कि हमारा देश सात शताब्दियों तक दासता और परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा रहा, जिस कारण यहाँ घुमक्कड़ी धर्म की बड़ी हानि हुई, जिसके परिणामस्वरूप बौद्ध जैसे धर्म यहाँ से लुप्तप्राय हो गए ।। यह सब कोई एक दिन में नहीं हो गया ।। जिस शासक-वर्ग अथवा धर्माधिकारियों पर समाज को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व था, उन्हीं ने लोगों के पैरों में बेड़ियाँ डालकर उन्हें कूप-मण्डूक बने रहने पर विवश कर दिया ।।
समाज के अगुवा धर्माचार्यों ने भी शासकवर्ग के लोभ और सत्ता के दबाव में आकर समाज के लोगों को कूप-मण्डूप बने रहने के लिए प्रेरित किया; फिर भी समयसमय पर ऐसे अनेक लोगों ने जन्म लिया, जिन्होंने घुमक्कड़ी को ही अपना कर्म-क्षेत्र बनाया और लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि उनका वास्तविक कर्म पथ यह विस्तृत संसार है ।। वे इसमें फैलकर अपने कर्मों का भली-भाँति पालन करें ।। इतिहास-पुरुष गुरु नानकदेवजी इस बात का जीता-जागता प्रमाण हैं ।। वे अपने समय के महान् घुमक्कड़ थे ।। उन्होंने न केवल भारत वरन् सम्पूर्ण विश्व को अपना कर्म-क्षेत्र मानकर उन्होंने ईरान और अरब देशों तक में भ्रमण किया ।। घुमक्कड़ी योग-विद्या की भाँति ही अनेक सिद्धियाँ प्रदान करने में सक्षम है और निर्भीकता उसकी सबसे बड़ी सिद्धि है ।। अर्थात् घुमक्कड़ी करने वाले व्यक्ति से अधिक निडर कोई नहीं हो सकता ।। वह व्यक्ति के भीतर से सब प्रकार के भय खींचकर बाहर निकाल फेंकती है।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) घुमक्कड़ी के प्रति समाज की उदासीनता के दुष्परिणाम को बौद्ध धर्म के लुप्त होने के दृष्टान्त द्वारा लेखक ने चेतावनी भी दी है कि यदि यह उदासीनता इसी प्रकार बनी रही तो हमारी वर्तमान सभ्यता और संस्कृति का विश्व से अस्तित्व समाप्त हो जाएगा ।। (2) मानवीय गुणों के विकास में घुमक्कड़ी के महत्व को भली प्रकार स्पष्ट करने में लेखक को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है ।। (3) भाषा- मुहावरों से परिपूर्ण प्रवाहयुक्त व्यावहारिक खड़ीबोली ।। (4) शैली- गणेषणात्मक ।। (5) वाक्य विन्यास- सुगठित, (6) शब्द चयन- विषयवस्तु के अनुरूप ।।

(ज) इतना कहने के बाद………………………. नहीं भूषण है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यावतरण में लेखक ने घुमक्कड़ी को सर्वश्रेष्ठ एवं नकद धर्म घोषित किया है ।।


व्याख्या- लेखक ने सभी धर्मों और महापुरुषों की उन्नति का कारण घुमक्कड़ी को बताया है ।। घुमक्कड़ी की महिमा के कारण ही लेखक उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म स्वीकार करता है और उसे धर्म की संकुचित सीमा में नहीं बाँधना चाहता ।। इसलिए धर्म जैसी सामान्य बात से उसकी तुलना भी नहीं करना चाहता ।। उसका मत है कि घुमक्कड़ी के साथ ‘धर्म’ शब्द का प्रयोग करने से घुमक्कड़ी का महत्व वैसे ही घट जाता है, जैसे दुराचारी और अन्यायी रावण के द्वारा शासित लंका के पड़ोस में होने के कारण समुद्र की महिमा कम हो गई थी और राम ने अलंध्य समुद्र पर पुल बनाकर उसके ऊपर से अपनी वानर-सेना को लंका पहुँचा दिया था ।।


धर्म लोगों में विद्वेष और घृणा फैलाते हैं; इसे विपरीत घुमक्कड़ी विभिन्न भू-भागों के निवासियों को एक साथ जोड़ती है ।। घुमक्कड़ी का अवसर बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है ।। यह धर्म अपने अनुयायियों को मरने के बाद स्वर्ग-प्राप्ति का झूठा लालच नहीं देता ।। इसके विषय में कहा जा सकता है कि यह ऐसा सौदा है कि इस हाथ दे और उस हाथ ले; अर्थात् घुमक्कड़ी से तत्काल लाभ प्राप्त होता है ।। इससे प्राप्त होने वाले सुख और आनन्द के लिए समय की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती ।। लेकिन पर्यटन करना भी सरल नहीं है, इसमें भी अनेक कठिनाईयाँ हैं चिन्ता से मुक्त व्यक्ति ही घुमक्कड़ी कर सकते हैं ।।


लेखक ने घुमक्कड़ बनने के लिए आवश्यक शर्तों को बताते हुए कहा कि चिन्ताहीन व्यक्ति घुमक्कड़ बनने का अधिकारी होता है ।। लेखक कहता है घुमक्कड़ और चिन्ताहीन दोनों एक दूसरे के पूरक है ।। दोनों का एक दूसरे पर आश्रित होना गलत नहीं हैं अपितु एक दूसरे का पूरक है तथा इनका आभूषण है जो दोनों को सुसज्जित करता हैं ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) भाषा- सरल, व्यावहारिक खड़ी बोली ।। (2) शैली- भावात्मक और आलंकारिक ।। (3) लेखक ने घुमक्कड़ी को धर्म से भी बढ़कर माना हैं (4) घुमक्कड़ी करने से तत्काल सुख और आनन्द की प्राप्ति होती है ।। (5) निश्चिन्त व्यक्ति ही घुमक्कड़ी कर सकते हैं ।।

(झ) घुमक्कड़ी से बढ़कर सुख ……….. खिल उठता है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- राहुलजी ने स्पष्ट किया है कि घुमक्कड़ी संसार का सबसे बड़ा सुख है और घुमक्कड़ी के लिए चिन्तारहित होना आवश्यक है ।। जो व्यक्ति चिन्तारहित है, उससे अधिक सुखी व्यक्ति संसार में कोई नहीं हैं ।।

व्याख्या- राहुल जी का मत है कि वही व्यक्ति वास्तविक घुमक्कड़ बन सकता है, जिसने सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्ति प्राप्त कर ली हो ।। इसके साथ ही उनका मानना है कि जो व्यक्ति सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त होना चाहता है, उसके लिए घुमक्कड़ी परमावश्यक हैं घुमक्कड़ी संसार का सबसे बड़ा सुख है; क्योंकि चिन्ताहीनता की मनोदशा में ही सर्वाधिक सुख सम्भव है ।। वस्तुतः चिन्तारहित होना संसार में सुखी होने का साक्षात् प्रमाण है ।। घुमक्कड़ी में छोटे-छोटे कष्ट भी होते हैं, किन्तु वे कष्ट बिलकुल वैसे ही होते हैं, जैसे भोजन में मिर्च का प्रयोग ।। मिर्च में तीखापन होता है, उसके खाने से कष्ट होता है; किन्तु मिर्च के तीखेपन से भोजन का स्वाद बढ़ता है और तीखेपन के कारण ही मिर्च का महत्व भी है ।। यदि मिर्च में यह तीखापन न हो तो कोई भी व्यक्ति उसका सेवन नहीं करेगा ।। इसी प्रकार घुमक्कड़ी में कभी-कभी होने वाले कटु अनुभव उसके आनन्द और उसकी सरसता को उसी प्रकार बढ़ाते हैं, जिस प्रकार काली पृष्ठभूमि पर बनाया गया चित्र और अधिक आकर्षक हो उठता है ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) घने अन्धकार में दीपक की भाँति घुमक्कड़ी में होने वाले कष्टपूर्ण अनुभव घुमक्कड़ी के आनन्द को और भी बढ़ा देते हैं ।। (2) भाषा- शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली ।। (3) शैली- सरल, सुबोध, आलंकारिक और विवेचनात्मक ।। (4) वाक्य-विन्यास- सुगठित ।। (5) शब्द-चयन- विषय-वस्तु के अनुरूप ।। (6) भावसाम्य- वस्तुतः चिन्ताओं से मुक्त व्यक्ति ही परमसुखी है ।। किसी कवि ने कहा भी है

चाह गयी चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह ।।
जिनको कछु न चाहिए, ते ही शाहंशा॥

(ञ) व्यक्ति के लिए.. …………. ..वे दिवांध हैं ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों के अंतर्गत राहुल जी ने घुमक्कड़ी को अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध करते हुए प्रत्येक युवक एवं युवती को घुमक्कड़ी का जीवन अपनाने हेतु प्रेरित किया है ।।


व्याख्या- लेखक के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुभव प्राप्त करने तथा अपना विकास करने की दृष्टि घुमक्कड़ी का विशेष महत्व है ।। न केवल व्यक्ति के लिए वरन् किसी जाति, धर्म, समाज अथवा संपूर्ण राष्ट्र की उन्नति हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करना आवश्यक है ।। विशेष रूप से युवा-काल में तो प्रत्येक युवक एवं युवती को घुमक्कड़ी करने का संकल्प ही कर लेना चाहिए ।। इसका कारण यह है कि विभिन्न स्थानों का भ्रमण करके व्यक्ति विभिन्न प्रकार की भौतिक, प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाओं को देखने और समझने का प्रत्यक्ष अवसर प्राप्त होता है ।। विभिन्न प्रकार संस्कृतियों और व्यक्तित्व वाले लोगों के संपर्क में आने के फलस्वरूप व्यक्ति की संकीर्ण विचारधाराओं का अंत होने लगता है और वह विराट व्यक्तित्व का स्वामी बनने लगता है ।। इसके अतिरिक्त घुमक्कड़ी ऐसा धर्म है, जिसके परिणाम, नकद रूप में, साथ-के-साथ प्राप्त होते हैं ।। दूसरे शब्दों में, जो जितना अधिक घुमक्कड़ी का अवसर प्राप्त करता है, उसे विभिन्न दृष्टियों से उतने ही अधिक लाभ होते है; अत: यदि कोई घुमक्कड़ी को व्यर्थ सिद्ध करने का प्रयास करे तो उसके द्वारा दिए जाने वाले प्रमाणों को झूठा और निरर्थक ही समझना चाहिए ।।


साहित्यिक सौन्दर्य- (1) किसी भी व्यक्ति, जाति तथा विशेष रूप से युवक-युवतियों के लिए घुमक्कड़ी का अत्यधिक महत्व दर्शाया गया है ।। (2) भाषा- सरल, सुबोध एवं भावात्मक ।। (3) शैली- भावपूर्ण एवं विवेचनात्मक ।। (4) वाक्य-विन्यास सुगठित ।। (5) शब्द चयन- विषय वस्तु के अनुरूप ।।

2 — निम्नलिखित सूक्तिपरक वाक्यों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए


(क) घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ के ‘राहुल सांकृत्यायन’ द्वारा लिखित ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ नामक निबन्ध से अवतरित है ।। ‘
प्रसंग- राहुल जी ने इस सूक्ति में घुमक्कड़ी को संसार की सर्वश्रेष्ठ प्रवृत्ति सिद्ध किया है ।।


व्याख्या- विश्व का ज्ञान और विज्ञान, घुमक्कड़ी और पर्यटन का ही परिणाम है ।। आदिमानव घुमक्कड़ था ।। इसी प्रकार प्राणियों की उत्पत्ति और मानव-वंश की खोज करने वाला डार्विन तथा नई दुनिया की खोज करने वाले कोलम्बस और वास्कोडि-गामा भी घुमक्कड़ थे ।। सामाजिक विकास के समस्त सिद्धान्त घुमक्कड़ी पर ही आधारित है ।। इस प्रकार मानवीय विकास के लिए घुमक्कड़ी सबसे बड़ा साधन हैं ।। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि घुमक्कड़ों ने समाज का परम हित किया है ।।

(ख) पुस्तकें भी कुछ-कुछ घुमक्कड़ी रस प्रदान करती है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में यात्रा-वृतान्ता पढ़ने से प्राप्त आनन्द और यात्रा करने से प्राप्त आनन्द का तुलनात्मक विवेचन किया गया है ।।


व्याख्या- राहुल सांकृत्यायन का कथन है कि पुस्तकों में मुद्रित यात्रा-साहित्य के अध्ययन से भी हमको यात्रा का आनंद तो प्राप्त होता है, परन्तु घुमक्कड़ी द्वारा प्राप्त यात्रा का आनन्द कुछ विशेष ही होता है ।। जिस प्रकार हिमाच्छादित पर्वत-शृंखलाओं के चित्र को देखकर हमें आनन्द तो प्राप्त होता ही है, लेकिन हिमाच्छादित चोटियों के प्रत्यक्ष दर्शन, स्पर्शन, गन्ध आदि के अनुभव से जिस आनन्द की प्राप्ति होती है, उसकी तुलना में यह आनन्द क्षणमात्र का और नगण्य होता है ।। इसी प्रकार पुस्तकों से घुमक्कड़ी के वास्तविक आनन्द की प्राप्ति नहीं की जा सकती ।। वास्तविक आनन्द तो घुमक्कड़ी से ही प्राप्त होता है ।।

(ग) समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा बैर है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- किसी समय में हिन्दू धर्म में समुद्री-यात्रा वर्जित मानी जाती थी ।। राहुल जी के अनुसार यह संकुचित विचारधारा ही भारत के पतन और पराधीनता का कारण बनी ।।


व्याख्या- राहुल जी कहते हैं कि प्राचीन भारतीय घुमक्कड़ थे, किन्तु जब से हिन्दू धर्म में समुद्री यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया तब से भारतवासी कूप-मण्डूक बन गए ।। उन्होंने घुमक्कड़ी ही बन्द कर दी ।। हिन्दू धर्म की ऐसी बातों पर आक्षेप करते हुए लेखक कहते हैं कि यह विचित्र विडम्बना हैं कि समुद्र यात्रा और हिन्दू धर्म में शत्रुता सिद्ध की जाने लगी, मानो हिन्दू धर्म कोई नमक की पुतली हो, जो समुद्र की हवाओं का स्पर्श करते ही गल जाएगी ।।

(घ) घुमक्कड़ धर्म ब्राह्मण धर्म जैसा संकुचित धर्म नहीं है, जिसमें स्त्रियों के लिए स्थान न हो ।। स्त्रियाँ इसमें उतना ही अधिकार रखती हैं,जितना पुरुष ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में यह स्पष्ट किया गया है कि घुमक्कड़ी के क्षेत्र में स्त्री-पुरुष दोनों एक समान अधिकार रखते हैं ।। व्याख्या- स्त्रियों द्वारा यह पूछने पर कि क्या उन्हें भी पुरुषों की भाँति घुमक्कड़ी का अधिकार है; लेखक इसका उत्तर देते हुए कहता है कि हाँ, घुमक्कड़ी में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता ।। स्त्री और पुरुष में लिंग के आधार पर भेदभाव केवल ब्राह्मण धर्म करता है ।। वह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को बहुत सीमित अधिकार प्रदान करता है ।। उदाहरण के लिए ब्राह्मण धर्म केवल पुरुषों को ही यज्ञ करने-कराने और वेदाध्ययन का अधिकार देता है, स्त्रियों को नहीं ।। ब्राह्मण-धर्म के इस भेदभाव का कोई तर्कपूर्ण औचित्य नहीं है ।। वरन् यह उसकी संकीर्णता है ।। स्त्रियों के प्रति पूर्वाग्रह है ।। घुमक्कड़ धर्म ब्राह्मण धर्म की भाँति संकुचित नहीं है ।। इसमें स्त्रियों को भी उतने ही अधिकार प्राप्त है, जितने पुरुषों को; अत: स्त्रियों को साहस का परिचय देते हुए घुमक्कड़ी धर्म में दीक्षा देकर आत्मोत्थान के साथ-साथ विश्वोत्थान में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए ।।

(ङ) घुमक्कड़ी किसी बड़े योग से कम सिद्धिदायनी नहीं है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- घुमक्कड़ी की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए राहुल जी ने उसे योग-साधना के समकक्ष स्वीकार किया है ।।

व्याख्या- राहुल जी का कहना है कि जिस प्रकार योग-साधना से व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, उसे तो केवल एक बार निश्चय और संकल्प के साथ योग-साधना में तत्पर हो जाने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार घुमक्कड़ी भी योग-साधना के समान ही सिद्धियाँ (योग-साधना से प्राप्त होने वाली आठ सिद्धियाँ हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्वस) प्रदान करती हैं ।। इस प्रकार योग-साधना द्वारा जो कार्य होता है, वही कार्य घुमक्कड़ी से भी हो जाता है ।। अतः घुमक्कड़ी एक ऐसी योग-साधना के समान है, जो प्रत्येक सिद्धि प्रदान करने में सक्षम है ।।

(च) मनुष्य स्थावर वृक्ष नहीं है, वह जंगम प्राणी है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में लेखक ने घुमक्कड़ी को मनुष्य की प्रकृति के अनुरूप बताकर उसकी महत्ता को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है ।।

व्याख्या- लेखक कहता है कि हमारे अनेक धर्मग्रन्थों में विदेश-यात्रा को व्यक्ति के लिए वर्जित बताकर घुमक्कड़ी धर्म को अपार क्षति पहँचाई गई है, जो किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नहीं है ।। इसीलिए महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने धर्मग्रन्थों की उन अतार्किक अवधारणाओं का जमकर विरोध किया और लोगों को समझाया कि व्यक्ति की उन्नति का एकमात्र उपाय घुमक्कड़ी धर्म ही है ।। स्वयं ईश्वर ने उसे घुमक्कड़ी के अनुरूप बनाया है ।। यदि व्यक्ति के लिए घूमना-फिरना हानिकारक होता तो ईश्वर उसे स्थावर अर्थात् एक स्थान पर स्थिर रहने वाला बनाता, किन्तु उसने उसे स्थावर न बनाकर गतिशील प्राणी बनाया है, जिससे वह सारे संसार में घूम-घूमकर न केवल अपना, वरन् प्राणिमात्र का कल्याण कर सके ।।

(छ) चलना मनुष्य का धर्म है जिसने इसे छोड़ा वह मनुष्य होने का अधिकारी नहीं ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति के अंतर्गत एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करना मनुष्य का धर्म बताया गया है तथा इसे प्रत्येक मनुष्य के लिए परमावश्यक सिद्ध किया गया है ।।


व्याख्या- प्रस्तुत सूक्ति के माध्यम से लेखक ने प्रत्येक मनुष्य के लिए घुमक्कड़ी को अनिवार्य रूप से आवश्यक बताया है ।। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने भी इस विचार पर विशेष बल दिया था और यह स्पष्ट किया था कि जो मनुष्य चलना बन्द कर देता है, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी ही नहीं है ।। मनुष्य कोई स्थावर वृक्ष अथवा जंगली प्राणी नहीं है, जो उसके लिए घुमक्कड़ी की आवश्यकता न हो ।। सच्ची मनुष्यता के विकास में घुमक्कड़ी का विशेष योगदान होता है ।।

(ज) महिमा घटी समुद्र की रावण बसा पड़ोस ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति के अंतर्गत घुमक्कड़ी को किसी भी धर्म से अधिक ऊँचा सिद्ध किया गया है ।।


व्याख्या- लेखक के अनुसार घुमक्कड़ी एक प्रकार का ऐसा धर्म है, जो संसार के सभी धर्मों से ऊपर है ।। उनका कथन है कि कोई भी अन्य धर्म घुमक्कड़ धर्म की तुलना नहीं कर सकता ।। यही नहीं, किसी भी धर्म की तुलना घुमक्कड़ी के साथ करना ऐसा ही है, जैसे विशाल समुद्र के पास दुराचारी रावण के रहने से समुद्र की महिमा भी घट गई ।। अर्थात् प्रत्येक धर्म की तुलना में घुमक्कड़-धर्म की महिमा बहुत अधिक है ।।

(झ) व्यक्ति के लिए घुमक्कड़ी से बढ़कर कोई नकद धर्म नहीं हैं ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- घुमक्कड़ी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए राहुल जी ने स्पष्ट किया है कि जीवन के सबसे बड़े सुख की प्राप्ति घुमक्कड़ी से ही होती है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को घुमक्कड़ी करनी चाहिए ।।


व्याख्या- यदि हमें अपने कार्य का प्रतिफल तुरन्त मिल जाए तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है ।। हम अपना प्रत्येक कार्य प्रतिफल के उद्देश्य से ही नहीं करते हैं ।। घुमक्कड़ धर्म का निर्वाह करते समय भी हमारे मन में किसी प्रकार की स्वार्थ भावना नहीं होती; तथापि घुमक्कड़ी से ही व्यक्ति और समाज का परम हित साधता है ।। घुमक्कड़ी करने वाला व्यक्ति घुमक्कडी से ही परम आनन्द की प्राप्ति कर लेता है ।। इस प्रकार तुरन्त पुरस्कार मिल जाने के कारण घुमक्कड़ी को नकद धर्म के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है ।।

(ञ) सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ ?
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- महान् घुमक्कड़ राहुल सांस्कृत्यायन ने प्रसिद्ध शायर इस्माइल मेरठी के शेर की इस पंक्ति के माध्यम से समय गँवाए बिना युवाओं को शीघ्र घुमक्कड़ी आरंभ कर देने के लिए प्रेरित किया है ।।


व्याख्या- कोई व्यक्ति घुमक्कड़ी करके ही जीवन का वास्तविक आनन्द और अनुभव प्राप्त कर सकता है, किन्तु यह घुमक्कड़ी जीवन की किसी भी अवस्था में नहीं हो सकती ।। बचपन और वृद्धावस्था दोनों में घुमक्कड़ी नहीं की जा सकती; क्योंकि बचपन में न तो बुद्धि परिपक्व होती है और न नई परिस्थिति में स्वयं को ढालने की समझ, जबकि वृद्धावस्था में शरीर की जर्जरता इसकी अनुमति नहीं देती ।। इस प्रकार घुमक्कड़ी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त अवस्था युवावस्था ही है ।। जो व्यक्ति संसार को बहुत निकट से देखना और समझना चाहता है, जीवन के रहस्यों, सुखों और दुःखों को जानना चाहता है तो उसे बिना विलम्ब किए घुमक्कड़ी आरंभ कर देनी चाहिए ।। यदि कल-कल करके घुमक्कड़ी के विषय में सोचता रहेगा तो उसका सारा जीवन यूँ ही समाप्त हो जाएगा और घुमक्कड़ी आरंभ न की जा सकेगी ।। यह जीवन दुबारा मिलने वाला नहीं है; अत: घुमक्कड़ी को कल पर टालकर इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए ।।


अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न


1 — ‘अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा’ पाठका सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर — – प्रस्तुत निबन्ध ‘अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा’ राहुल सांस्कृत्यायन द्वारा लिखित घुमक्कड़ शास्त्र’ से लिया गया है ।। इस निबन्ध में लेखक ने घुमक्कड़ी को शास्त्रों के समान बताया है ।। लेखक कहता है कि अगर मैं संस्कृत भाषा से लिखना प्रारंभ करूँ तो पाठकों को क्रोधित नहीं होना चाहिए क्योंकि मैं एक शास्त्र ही लिखने जा रहा हूँ तो फिर शास्त्र लिखने के नियमों का पालन आवश्यक है ।। शास्त्र में व्यक्ति और समाज के लिए परोपकारी जिज्ञासा का होना आवश्यक है ।। ऋषि व्यास ने अपने शास्त्र में ब्रह्म को जिज्ञासा का विषय बताया ।। उनके शिष्य जैमिनी ने धर्म को विषय बनाया ।। छः शास्त्रों के रचयिताओं में से आधों ने ब्रह्म को अपना विषय बताया ।। परन्तु मेरी समझ के अनुसार घुमक्कड़ी सर्वश्रेष्ठ विषय है, जो व्यक्ति घुमक्कड़ है, वही समाज का सबसे बड़ा हित चाहने वाला व्यक्ति है ।।


प्राचीन काल में आदिमानव भी घुमक्कड़ था ।। सांसारिक झंझटों से मुक्त वह पक्षियों की भाँति विचरण करता रहता था ।। सर्दी के मौसम में वह यहाँ, तो गर्मी में उस स्थान से दो सौ किलोमीटर की दूरी पर मिलता था ।। लेखक का कहना है कि वर्तमान युग के मनुष्यों का सुप्रसिद्ध घुमक्कड़ों से परिचय कराना आवश्यक है, क्योंकि यश-लोभी अधिकांशतः मनुष्य ऐसे है, जो इन बेचारे घुमक्कड़ों की रचनाओं को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित और प्रचारित कराते रहते हैं तथा समाज में विद्वान बनने का ढोंग रचा करते है, जबकि वे वास्तव में कोल्हू के बैल है ।। आधुनिक वैज्ञानिक जगत में चार्ल्स डार्विन का स्थान बहुत उच्च है क्योंकि इसने अपनी खोजों के माध्यम से विद्वानों को नई दिशा प्रदान की है ।। यदि डार्विन ने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता तो वह कदाचित् ही ऐसे नवीन दृष्टिकोण जगत के सामने प्रस्तुत कर पाता ।।


लेखक कहता हैं कि मैं स्वीकार करता हूँ कि देश-विदेश की यात्राओं पर लिखी गई पुस्तकों को पढ़ने से भी उन स्थानों के भ्रमण से मिलता जुलता कुछ आनन्द प्राप्त हो जाता है ।। परंतु वह आनन्द नहीं प्राप्त होता जो प्रत्यक्ष भ्रमण से प्राप्त होता है ।। यात्रा-कथाओं को पढ़ने से थोड़ा मार्गदर्शन मिलता है और कुछ समय भ्रमण करने की प्रेरणा भी मिलती है ।। पुस्तकों को पढ़कर पाठक मन में उन स्थानों को देखने की जो इच्छा उत्पन्न होती है, उससे संभव है वह यात्रा का निश्चय कर ले ।। घुमक्कड़ को आज की सर्वश्रेष्ठ विभूति इसलिए ही कहा जाता है क्योंकि उसी ने आज के समाज का निर्माण किया है ।। यदि आदिमानव एक ही स्थान पर रहता तो वह दुनिया का विकास नहीं कर पाता ।। मनुष्य की इस घुमक्कड़ी से अनकों बार युद्ध उत्पन्न हुए तथा खून की नदियाँ बही, हम ऐसा नहीं चाहते परन्तु यदि घुमक्कड़ व्यक्ति भ्रमण न करते तो मानव जाति का विकास नहीं हो पाता और वह पशु के समान रहती ।। आर्यों, शकों, हूणों आदि घुमक्कड़ों ने क्या-क्या किया इसका वर्णन इतिहास में स्पष्ट ही है किन्तु मंगोलों द्वारा किए गए अत्याचारों को हम सब जानते हैं ।। बारुद, तोप, कागज, छापाखाना आदि चीजों का पश्चिमी देशों में प्रचार करने वाले मंगोल थे जो घुमक्कड़ थे ।।


लेखक कहता है कि कोलम्बस, वास्को-डि-गामा ऐसे ही दो घुमक्कड़ थे जिन्होंने पश्चिमी देशों की उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया ।। अमेरिका का अधिकतर भाग तब निर्जन था, जब एशिया महाद्वीप के व्यक्ति कुएँ के मेढ़क बनकर घुमक्क्ड़ धर्म की महत्ता भूल गए और वे अमेरिका पर अपना परचम लगराने में विफल रहे ।। दो सौ वर्षों पहले तक तो आस्ट्रेलिया भी निर्जन सा पड़ा था ।। चीन और भारत की सभ्यता बहुत पुरानी है परंतु इन्होंने वहाँ अपना झंडा नहीं गाडा और आज जनसंख्या के भार से इनकी भूमि दबती जा रही है भारत और चीन घुमक्कड़ धर्म से विमुख हो गए और इसलिए अमेरिका और आस्ट्रेलिया की अपार सम्पत्ति से ये वंचित रह गए ।। मैं इसे विमुख होना ही कहूँगा क्योंकि इससे पहले भी भारत और चीन भूमि में महान् पुरुषों ने जन्म लिया है ।। भारतीय घुक्कड़ों ने दक्षिण पूरब में लंका, वर्मा, मलाया, पवनद्वीप, स्याम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियों आदि देशों की खोज की परंतु बाद में उन्होंने घुमक्कड़ी करना छोड़ दिया और कूप मण्डूक बन गए ।। भारत में हिन्दू धर्म के कुछ उपदेशकों ने भारतवासियों की समुद्र यात्रा पर प्रतिबन्ध लगा दिए ।। उन्होंने लोगों के मन में धारणा बना दी कि समुद्र यात्रा करने से धर्म नष्ट हो जाता है ।। इस बात में क्या सन्देह है कि समाज का उत्थान देश-विदेश में भ्रमण से ही होता है ।। समाज की उन्नति के लिए घुमक्कड़ी आवश्यक है ।। जिस देश ने घुमक्कड़ी धर्म को स्वीकार किया, उसे चारों फल-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त हो गए और जिसने इसे त्यागा वह पतन की गर्त में गिर गया ।।


लेखक कहता है कि ऐसा संभव है कि जो युक्तियाँ मैंने दी है वे शास्त्रों के ग्रहण के योग्य नहीं है ।। राहल जी कहते हैं कि दुनिया के अधिकांश धर्मनायक घुमक्कड़ थे ।। यद्यपि वे भारत से बाहर नहीं गए परन्तु वर्षा ऋतु के तीन मासों को छोड़कर वे एक स्थान पर रहना पाप मानते थे ।। उन्होंने अपने शिष्यों से भी कहा-शिष्यों घुमक्कड़ी करो ।। बुद्ध के शिष्यों ने अपने गुरु का आदेश मानकर अपने धर्म को पश्चिम में मकदूनिया, तथा मिश्र से पूरब में जापान, उत्तर में मंगोलिया से लेकर दक्षिण में बाली द्वीप तक फैलाया ।। जिस विशाल भारत पर सभी को गर्व है उसका निर्माण इन घुमक्कड़ों ने ही किया है ।। घुमक्कड़ी का वर्चस्व बुद्ध से एक या दो शताब्दी पूर्व भी था, जिसके कारण बुद्ध जैसे घुमक्कड़ भारतभूमि में अवतीर्ण हुए ।। लेखक कहते हैं कई महिलाएँ हमसे अकसर पूछती है क्या महिलाएँ भी घुमक्कड़ी का व्रत धारण कर सकती है ?


लेखक कहते हैं कि यह (घुमक्कड़ी) धर्म ब्राह्मण धर्म जितना संकुचित नहीं है जिसमें सारे अधिकार केवल पुरुषों के पास है ।। स्त्रियाँ इस धर्म में बराबर अधिकार रखती है ।। राहुल जी का कहना है कि भारत के प्राचीन धर्मो में एक जैन धर्म भी है ।। जिसके प्रतिष्ठापक भगवान महावीर थे ।। वे भी एक घुमक्कड़ ही थे ।। अपने घुमक्कड़ धर्म के पालन के लिए उन्होंने सभी बाधाओं और उपाधियों का त्याग कर दिया ।। उन्होंने घर-सम्पत्ति, नारी-संतान ही नहीं वस्त्रों का भी त्याग कर दिया ।। महावीर स्वामी ने सब त्याग कर हाथ में भिक्षा और वृक्ष के नीचे निवास’ अर्थात् निर्द्वन्द्व विचरण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया ।। वे दिशाओं को अपना वस्त्र मानते थे ।। जिससे कोई बाधा न हो और वह स्वतंत्रतापूर्वक घूमते रहे ।। भगवान महावीर प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ थे ।। वैशाली में जन्म लेकर उन्होंने विचरण करते हुए पावा में अपने शरीर का त्याग किया ।। बुद्ध और महावीर ने बढ़कर कोई स्वयं को यदि त्यागी या महात्मा बताता है तो वह झूठे अहंकार के वशीभूत होकर ही ऐसा कहता है ।।


लेखक उन साधुओं की कड़ी आलोचना करता है जो आश्रम या कुटिया बनाकर एक ही स्थान पर कोल्हू के बैल की तरह एक स्थान पर ही चक्कर काटते रहते हैं और स्वयं को श्रेष्ठ बताते हैं ।। लेखक ऐसे ढोंगी, नकलची और पाखंडी महात्माओं से जनता को सावधान करना चाहता है कि इनके संपर्क में आना खतरे से खाली नहीं है ।। ये लोग स्वयं संकुचित विचारधारा के है, दूसरों को भी अपने ही रंग में रंगकर अवनति के गर्त में गिरा देंगे ।।
लेखक का कहना है कि उन्होंने जो बुद्ध और महावीर की घुमक्कड़ी के उदाहरण दिए हैं, इससे यह नहीं मानना चाहिए कि केवल इन दो महापुरुषों ने ही केवल घुमक्कड़ी की है और दूसरे लोगों ने कोठरियों में बैठकर सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली है ।। यदि ऐसा होता तो शंकराचार्य जैसे विद्वान भारत के चारों कोनों में क्यों घूमत फिरते ।। शंकराचार्य को शंकर किसी ईश्वर ने नहीं बनाया बल्कि उन्हें ईश्वर के समतुल्य बनाने वाला यही घुमक्कड़ धर्म हैं ।। शंकराचार्य का जीवन अल्प था ।। परन्तु इस अल्पकाल में ही उन्होंने न केवल तीन संस्कृत ग्रन्थों के भाष्य लिखने के साथ-साथ अपने अनुयायियों को घुमक्कड़ी धर्म का पाठ भी पढ़ा दिया ।। वास्को-डि-गामा के भारत आने से पहले ही शंकराचार्य के शिष्य मास्को और यूरोप तक पहुंच गए ।।
लेखक रामानुज, मध्यावाचार्य और वैष्णवाचार्यों के अनुयायियों से क्षमा माँगते हुए कहते हैं इन लोगों ने ही भारत को कुएँ का मेढ़क बनाने में मुख्य भूमिका निभाई हैं ।। ऐसे समय में रामानंद और चैतन्य कीचड़ में खिले कमल की भाँति अवर्तीण हुए और पुनः घुमक्कड़ धर्म की स्थापना की ।। लेखक कहता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत में कम हो गए तो भारत में कूप-मण्डूकों का बाहुल्य हो गया ।। यह स्थिति लगभग सात सौ वर्षों तक रही ।। इन वर्षों में गुलामी और परवशता ने यहाँ पर स्थायी निवास कर लिया ।। परन्तु इस देश की मिट्टी ने ऐसे रत्नों को जन्म दिया, जिन्होंने देश के नागरिकों को सदैव कर्म-पथ पर चलने को प्रेरित किया ।। भारत में गुरुनानक अपने समय के महान् घुमक्कड़ थे ।। उन्होंने केवल भारत में ही नहीं ईरान और अरब तक धावा मारा ।। UP Board class 11 Hindi Solution Chapter 6 आनन्द की खोज, पागल पथिक (राय कृष्णदास)


लेखक कहता है कि दूसरी शताब्दियों को छोड़िए अभी शताब्दी भी नहीं बीती भारतवर्ष में महर्षि दयानंद सरस्वती जी जैसे महापुरुष हुए ।। महर्षि दयानंद को स्वामी दयानंद सरस्वती जी इसी घुमक्कड़ी धर्म ने बनाया ।। उन्होंने लगभग संपूर्ण भारत का भ्रमण करते रहे ।। वह पुस्तक लिखते व शास्त्रार्थ करते हुए भ्रमण किया ।। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कर दिया ।। उन्होंने कहा कि मनुष्य स्थिर रहने वाला वृक्ष नहीं अपितु चलने फिरने वाला प्राणी हैं ।। राहुल जी कहते हैं समाज में अनेक धर्म है लेकिन सभी धर्मों में घुमक्कड़ी सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ धर्म है ।। घुमक्कड़ी संकुचित धर्म नहीं है ।। यह अनन्त आकाश की तरह और गंभीर समुद्र की तरह विशाल है ।। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह ने घुमक्कड़ी के बल पर ही अपने ईसाई मत का विश्व के कोने-कोने में प्रचार किया ।।


लेखक कहता है कि इतना वर्णन करने के बाद यह सिद्ध हो जाता है कि दुनिया में घुमक्कड़ धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं है ।। उसका मत है कि घुमक्कड़ी के साथ ‘धर्म’ शब्द का प्रयोग करने से घुमक्कड़ी का महत्व वैसे ही घट जाता है, जैसे दुराचारी और अत्याचारी रावण के द्वारा शासित लंका के पड़ोस में होने के कारण समुद्र की महिमा कम हो गई थी और राम ने अलंघ्य समुद्र पर पुल बनाकर अपनी सेना को लंका पहुँचा दिया था ।। घुमक्कड़ी का अवसर बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है ।। यह धर्म अपने अनुयानियों को मरण के बाद स्वर्ग का लालच नहीं देता, यह तो तत्काल लाभ पहुंचाता है ।। राहुल जी कहते हैं कि निश्चित होकर घूमने में जो सुख मिलता है, वह अन्य किसी कार्य में नहीं मिलता ।। चिन्ताहीन व्यक्ति ही घुमक्कड़ी कर सकते हैं ।। पर्यटन के समय जो कष्टप्रद अनुभव होते हैं, वे किसी भी तरह घुमक्कड़ी के आनन्द को कम नहीं करते अपितु और भी बढ़ा देते हैं ।।
लेखक के मतानुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए, वरन् किसी भी जाति, धर्म, समाज अथवा राष्ट्र की उन्नति के लिए घुमक्कड़ी आवश्यक है ।। प्रत्येक युवक व युवती को घुमक्कड़ी करने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए ।। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की संकीर्ण विचारधारा का अन्त होने लगता है और वह विराट व्यक्तित्व का स्वामी बनने लगता है ।। इसके साथ यह धर्म ऐसा है, जिसका लाभ नकद रूप में तत्काल प्राप्त होता है ।। यदि माता-पिता तुम्हारे इस धर्म का विरोध करे तो उनके कथनों की अवहेलना उसी प्रकार कर देनी चाहिए ।। जिस प्रकार प्रह्लाद ने अपने पिता की की थी ।। प्रत्येक बाधा उत्पन्न करने वालों को उपेक्षित कर देना चाहिए ।। UP Board class 11 Hindi Solution Chapter 6 आनन्द की खोज, पागल पथिक (राय कृष्णदास)


लेखक कहते हैं घुमक्कड़ों की गति महानदी के प्रवाह के समान है, जिसे किसी राज्य की कोई सीमाएँ कभी नहीं रोक सकती ।। राहुल जी कहते हैं कि उन्होंने स्वयं कई बार सीमाओं को सीमारक्षकों को धोखा देकर पार कर लिया है ।। लेखक युवक व युवतियों से कहता है कि यह दीक्षा उसे लेनी चाहिए जिसमें साहस, निर्भयता, आत्मविश्वास आदि गुण विद्यमान हो ।। लेखक कहते हैं कि हमें मनुष्य जन्म एक बार मिलता है, जवानी भी एक बार मिलती है इसलिए मन में साहस और आत्म विश्वास से घुमम्मड़ी के लिए तैयार हो जाओ ।। संसार तुम्हारे स्वागत के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है ।।


2 — लेखक ने पाठ में किन-किन घुमक्कड़ों का वर्णन किया है ? ये घुमक्कड़ किन-किन क्षेत्रों से संबंधित थे ?
उत्तर — – लेखक ने पाठ में चार्ल्स डार्विन, कोलम्बस, वास्को-डि-गामा, महावीर बुद्ध, शंकराचार्य, रामानन्द, चैतन्य, गुरुनानक, दयानंद, प्रभु ईसा आदि का वर्णन किया है ।। इनमें से चार्ल्स डार्विन विज्ञान क्षेत्र से संबंधित है जिसने प्राणियों की उत्पत्ति तथा मानव-वंश के विकास पर अद्वितीय खोज की ।। कोलम्बस, वास्को-डि-गामा ने भूगोल से संबंधित थे जिन्होंने भारत तथा अमेरिका की खोज की ।। महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य, रामानन्द चैतन्य, गुरुनानक, प्रभु ईसा सभी धार्मिक क्षेत्र से संबंधित थे जिन्होंने धर्म का प्रसार एवं कुरीतियों का खंडन किया ।। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना कर समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कर सामंजस्य स्थापित करने में सहायता प्रदान की ।।


3 — लेखक ने घुमक्कड़ी के लिए किन गुणों को आवश्यक बताया है ?
उत्तर — लेखक का मानना है कि घुमक्कड़ी के लिए व्यक्ति को चिन्ताहीन, साहसी, निडर, अडिग, निर्भय होना चाहिए ।। उसे किसी की बात नहीं सुननी चाहिए, न माता के आँसू बहने की परवाह करनी चाहिए ।। न पिता के भय और उदास होने की, न पत्नी के रोने धोने की, और न पति के कलपने की ।। उसे अपने लक्ष्य पर अडिग तथा स्थिर होना चाहिए ।।


4 — लेखक ने घुमक्कड़ी को शास्त्र क्यों कहा है ?
उत्तर — – लेखक ने घुमक्कड़ी को शास्त्र इसलिए कहा है क्योंकि लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि घूमने अर्थात् यात्रा आदि से प्राप्त होने वाला ज्ञान, ग्रन्थों से प्राप्त ज्ञान से भी बढ़कर होता है ।। कदाचित ऐसा इसलिए कि इसमें व्यवहारिकता अधिक होती है ।। लेखक ने विभिन्न महापुरुषों के उदाहरण देकर आदिमकाल से आधुनिक काल तक इनकी सफलता का रहस्य घुमक्कड़ी प्रवृत्ति को बताया है ।। घुमक्कड़ी से व्यक्ति के वास्तविक ज्ञान में वृद्धि होती है ।। नई-नई खोजे जो आज हमारे सामने हैं , वे घुमक्कड़ी के ही कारण प्राप्त हुई है इसलिए लेखक ने धुमक्कड़ी की तुलना शास्त्र से की है ।।


5 — कुटिया या आश्रम बनाकर रहने वाले महात्माओं को लेखक ने तेली का बैल’ क्यों कहा है ?


उत्तर — – लेखक राहुल सांकृत्यायन जी ने कुटिया या आश्रम बनाकर रहने वाले महात्माओं को ‘तेली का बैल’ इसलिए कहा है क्योंकि ऐसे महात्मा-साधु एक जगह पर जमकर ही चक्कर काटते रहते है ।। घुमक्कड़ी नहीं करते, न ही जनता के बीच में जाते हैं ।। ये पाखंडी साधु अपने को श्रेष्ठ महात्मा कहते हैं और अपने शिष्यों से भी ऐसा प्रचार करवाते है ।। लेखक का मानना है कि यदि एक जगह रहकर ही व्यक्ति ज्ञानी और महात्मा बना जाता तो ऐसे महात्मा प्रत्येक स्थान पर मिल जाते क्योंकि घुमक्कड़ी के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं की जा सकती है ।। ।।

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