kadamb ka ped poem कदम्ब का पेड़ कविता

kadamb ka ped poem कदम्ब का पेड़ कविता

कदंब का पेड़

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे। ले देतीं यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता। वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बाँसुरी बजाता अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।

सुन मेरी बंसी को माँ तुम मुझे देखने काम छोड़ कर तुमको आता देख बाँसुरी पत्तों में छिपकर धीरे से इतनी खुश हो जाती तुम बाहर तक आती। रख मैं चुप हो जाता फिर बाँसुरी बजाता।

गुस्सा होकर मुझे डाँटती, कहती ‘नीचे आ जा’ पर जब मैं ना उतरता, हँसकर कहती ‘मुन्ना राजा’। ‘नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूँगी नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूंगी’।

मैं हँसकर सबसे ऊपर की टहनी पर चढ़ जाता एक बार कह ‘माँ’ पत्तों में वहीं कहीं छिप जाता। बहुत बुलाने पर भी माँ, जब नहीं उतर कर आता माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।

तुम आँचल पसारकर अम्मा, वहीं पेड़ के नीचे ईश्वर से कुछ विनती करतीं, बैठी आँखें मीचे। तुम्हें ध्यान में लगा देख, मैं धीरे-धीरे आता और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, फिर भी खुश हो जातीं जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं। इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।

HOME PAGE

How to download online Ayushman Card pdf 2024 : आयुष्मान कार्ड कैसे ऑनलाइन डाउनलोड करें

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam-1

Garun Puran Pdf In Hindi गरुण पुराण हिन्दी में

Bhagwat Geeta In Hindi Pdf सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दी में

MP LOGO

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

join us
Scroll to Top