अहिंसा परमो धर्मः पर संस्कृत निबंध || Essay on Ahinsa Parmo Dharma in Sanskrit language

अहिंसा परमो धर्मः पर संस्कृत निबंध || Essay on Ahinsa Parmo Dharm in Sanskrit language

अहिंसा परमो धर्मः पर संस्कृत निबंध || Essay on Ahinsa Parmo Dharma in Sanskrit language

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अहिंसा परमो धर्मः पर निबंध [2007,08]

[अन्य शीर्षकः-अहिंसा]

1- परेषां हिंसनं पीडनम् एव हिंसा भवति, एतद् विपरीता भावना अहिंसा भवति ।

2- मनसा वाचा कर्मणा कथमपि कस्यचित् कष्टं न देयम् इति एव अहिंसा ।

3- मनुना निर्दिष्टेषु दशसु धर्मलक्षणेषु अहिंसा एव प्रथम: धर्मः अस्ति ।

4- अहिंसापालकाः कारुणिकाः दयावन्तश्च भवन्ति ।

5- अहिंसया एव आत्मा सुखम् अनुभवति मनश्च परां शान्ति लभते ।

6- अहिंसाबलेन शत्रवोऽपि मित्राणि भवन्ति ।

7- सर्वाणि कार्याणि अहिंसया एव सिध्यन्ति अतएव मुनिभिः ‘अहिंसा परमो धर्मः’ इति स्वीकृतः ।

8- जैनबौद्धधर्मी अहिंसाधर्मे परमौ निष्ठावन्तौ ।

9- महात्मागान्धिमहोदयः अहिंसाधर्मस्य परमोपासकः आसीत् ।

10- सः अहिंसाशस्त्रेण भारतं स्वतन्त्रमकरोत् ।

11- अहिंसायां महती शक्तिः वर्तते, अनया अधिकृताः जनाः सदा वशवर्तिनः भवन्ति ।

12- अतः सर्वैः अहिंसा धर्मः पालनीया ।

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