Up board Class 12 sanskrit natak Dushyant ka charitra chitran

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दुष्यन्त का चरित्र चित्रण –

महाराजा दुष्यन्त हस्तिनापुर के राजा हैं। वह सुन्दर, हृष्ट-पुष्ट और युवा हैं। उनके सौन्दर्य को देखकर शकुन्तला प्रथम बार में ही आकृष्ट हो जाती है। उनके चरित्र की निम्न प्रमुख विशेषताएं हैं-

( 1 ) बुद्धिमान् – दुष्यन्त के चरित्र में बुद्धिमत्ता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वह शकुन्तला के रूप से आकृष्ट होने के बाद विवाह करने की तभी सोचता है, जब उसे यह पता चल जाता है कि वह ब्राह्मण की कन्या नहीं है।

(2) मातृभक्त – द्वितीय अङ्क में जब करभक उसकी माता का सन्देश देकर आता है कि “आज से चौथे दिन मेरे उपवास की पारणा होगी। उस समय तुम यहाँ अवश्य उपस्थित रहना” तो वह विवेक से तपस्वियों का भी उल्लंघन नहीं करना चाहता और माता की आज्ञा का पालन भी करना चाहता है।

( 3 ) कलामर्मज्ञ – संगीत और चित्रकला के साथ-साथ दुष्यन्त युद्धकला में भी निपुण है। पञ्चम अङ्क में हंसपदिका

की गीति पर उसकी ‘अहो, रागपरिवाहिणी गीतिः’ यह टिप्पणी उसकी संगीतज्ञता की द्योतक है। वह शकुन्तला का चित्र बनाकर

अपनी चित्रकला पारङ्गतता की सिद्धि करता है। उसकी युद्धकला का पता तब चलता है, जब इन्द्र उसे दानवों से युद्ध करने के लिए स्वर्ग बुलाते हैं।

( 4 ) सहृदय – दुष्यन्त ऋषि-मुनियों का सच्चे मन से सम्मान करनेवाला है। वह आश्रम के मृगों एवं पशु-पक्षियों पर शर-सन्धान नहीं करता है, आश्रम में विनम्र भाव से प्रवेश करता है और आश्रम में किसी प्रकार की विघ्न बाधा नहीं डालता।

(5) कुशल शासक – वह सफल शासक है, प्रजापालक है, कर्त्तव्यनिष्ठ है, शूरवीर तथा पराक्रमशील है। वह आश्रम में बाधा उपस्थित करनेवालों से आश्रम की सुरक्षा करता है ।

(6) सच्चा प्रेमी – राजा दुष्यन्त एक आदर्श प्रेमी हैं। प्रेम के क्षेत्र में उसका नाम आज भी अमर है। ऋषि शाप से मुक्त होने पर वह अपने परिचय, प्रणय एवं गन्धर्व विवाह, शकुन्तला एवं उसकी सन्तति सबकी रक्षा करता है तथा अपने वचन का पालन करने का पूरा प्रयास करता है।

( 7 ) नायक – राजा दुष्यन्त अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक का नायक है। उसमें नायकत्व सम्बन्धी सभी विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। उसका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली है।

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