UP BOARD CLASS 9 HINDI SOLUTION CHAPTER 3 गुरु नानकदेव (गद्य खण्ड)

UP BOARD CLASS 9 HINDI SOLUTION CHAPTER 3 गुरु नानकदेव- हजारी प्रसाद द्विवेदी (गद्य खण्ड)

UP BOARD CLASS 9 HINDI SOLUTION CHAPTER 3 गुरु नानकदेव (गद्य खण्ड) पथ क सम्पूर्ण हल

पाठ-- 3 -- गुरु नानकदेव हजारी प्रसाद द्विवेदी


(क) लघु उत्तरीय प्रश्न
1 — आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म-स्थान एवं जन्म-तिथि लिखिए
उतर — आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त 1907 में बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था ।।
2 — द्विवेदी जी के माता-पिता का क्या नाम था ?
उतर — द्विवेदी जी की माता का नाम श्रीमती ज्योतिकली और पिता का नाम पं० अनमोल द्विवेदी था ।।
3 — ‘विश्व भारती’का संपादन द्विवेदी जी ने कहाँ रहकर किया ?
उतर — ‘विश्व भारती’ का संपादन द्विवेदी जी ने शांति निकेतन में रहकर किया ।।
4 — ‘कुटज’ और ‘कल्पलता’ के लेखक का नाम बताइए ।।
उतर — ‘कुटज’ और ‘कल्पलता’ के लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं ।।
5 — द्विवेदी जी की आरंभिक शिक्षा कहाँ हुई तथा उन्होंने ज्योतिषाचार्य और साहित्य की परीक्षा कहाँ से उत्तीर्ण की ?
उतर — द्विवेदी जी की आरंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई तथा उन्होंने ज्योतिषाचार्य और साहित्य की परीक्षा ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की ।।
6 — भारत सरकार ने द्विवेदी जी को किस सम्मान से अलंकृत किया और कब ?
उतर — भारत सरकार ने सन् 1957 ई० में द्विवेदी जी को ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया ।।
7 — ‘सूर साहित्य’ पर द्विवेदी जी को क्या सम्मान मिला और किसके द्वारा मिला ?
उतर — सूर साहित्य पर द्विवेदी जी को इंदौर-साहित्य समिति से स्वर्ण पदक मिला ।।
8 — द्विवेदी जी ने अपने निबंधों में किन-किन शैली का प्रयोग किया है ?
उतर — द्विवेदी जी ने अपने निबंधों में गवेषणात्मक, वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक और व्यास शैली का प्रयोग किया है ।। ।।

(ख) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1 — आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की संक्षिप्त जीवनी लिखते हुए उनकी गद्य शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।।
जीवन परिचय- आधुनिक युग के मौलिक निबंधकार, उत्कृष्ट समालोचक एवं सांस्कृतिक विचारधारा के प्रमुख उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त 1907 में बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था ।। उनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था ।। उनके पिता पं० अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे ।। द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई और वहीं से उन्होंने मिडिल की परीक्षा पास की ।। इसके पश्चात् उन्होंने इंटर की परीक्षा और ज्योतिष विषय लेकर आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की ।। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् द्विवेदी जी शांति निकेतन चले गए और कई वर्षों तक वहाँ हिंदी विभाग में कार्य करते रहे ।। शांति-निकेतन में रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन और उसकी रचना प्रारंभ की ।। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था ।। वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं के विद्वान थे ।। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था ।। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी ० लिट ० की उपाधि देकर उनका विशेष सम्मान किया था ।।
द्विवेदी जी की साहित्य-चेतना निरंतर जागृत रही, वे आजीवन साहित्य-सृजन में लगे रहे ।। हिंदी साहित्याकाश का यह देदीप्यमान नक्षत्र 19 मई सन् 1979 को सदैव के लिए इस भौतिक संसार से विदा हो गया ।।

गद्य शैली की विशेषताएँ- उनकी गद्य शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(अ) द्विवेदी जी की भाषा को प्रसन्न भाषा’ कहा जा सकता है ।।
(ब) उनकी भाषा में तत्सम, तदभव तथा उर्दू शब्दों का मिला-जुला रूप मिलता है ।।
(स) उनकी भाषा अभिव्यक्ति प्रवाहपूर्ण है, जिसमें सरसता, रोचकता तथा गतिशीलता आदि गुण मिलते हैं ।।
(द) द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में गवेषणात्मक, वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक और व्यास शैली का प्रयोग किया है ।।
2 — द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उतर — भाषा-शैली- द्विवेदी जी की भाषा को ‘प्रसन्न भाषा’ कहा जा सकता है ।। वे गहरे-से-गहरे विषय को मौज ही मौज में
लिख डालते हैं ।। वे तत्सम, तद्भव तथा उर्दू शब्दों का मिला-जुला प्रयोग करते हैं ।। इसके अतिरिक्त वे नए शब्द गढ़ने में भी कुशल हैं ।। उनकी अभिव्यक्ति प्रवाहपूर्ण है ।। सरसता, रोचकता तथा गतिशीलता उनके अन्य गुण हैं ।।
द्विवेदी जी की शैली में उनकी शैली के निम्नलिखित रूप मिलते हैं
(अ) गवेषणात्मक शैली- द्विवेदी जी के विचारात्मक तथा आलोचनात्मक निबंध इस शैली में लिखे गए हैं ।। यह शैली द्विवेदी जी की प्रतिनिधि शैली है ।। इस शैली की भाषा संस्कृत प्रधान और अधिक प्रांजल है ।। कुछ वाक्य बड़े-बड़े हैं ।। इस शैली का एक उदाहरण देखिए- ‘लोक और शास्त्र का समन्वय, ग्राहस्थ और वैराग्य का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृति का समन्वय, निर्गुण और सगुण का समन्वय, कथा और तत्व ज्ञान का समन्वय, ब्राह्मण और चांडाल का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय, रामचरितमानस शुरू से आखिर तक समन्वय का काव्य है ।।’
(ब) वर्णनात्मक शैली- द्विवेदी जी की वर्णनात्मक शैली अत्यंत स्वाभाविक एवं रोचक है ।। इस शैली में हिंदी के शब्दों
की प्रधानता है, साथ ही संस्कृत के तत्सम और उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हुआ है ।। वाक्य अपेक्षाकृत बड़े
(स) व्यंग्यात्मक शैली- द्विवेदी जी के निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का बहुत ही सफल और सुंदर प्रयोग हुआ है ।। इस
शैली में भाषा चलती हुई तथा उर्दू, फारसी आदि के शब्दों का प्रयोग मिलता है ।।
(द) व्यास शैली- द्विवेदी जी ने जहाँ अपने विषय को विस्तारपूर्वक समझाया है, वहाँ उन्होंने व्यास शैली को अपनाया है ।। इस शैली के अंतर्गत वे विषय का प्रतिपादन व्याख्यात्मक ढंग से करते हैं और अंत में उसका सार देते हैं ।।

3 — ‘गुरु नानकदेव’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उतर — हिंदी गद्यकारों में विशिष्ट स्थान रखने वाले महान साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘गुरु नानकदेव’ एक संस्मरणात्मक निबंध है ।। इस निबंध में द्विवेदी जी ने सिक्ख धर्म के प्रवर्तक और महान संत गुरु नानकदेव के जीवन, चिंतन, सामाजिक कार्यों एवं आदर्श आचरण की झलक प्रस्तुत की है ।। द्विवेदी जी ने इस निबंध के माध्यम से महान् संत गुरु नानकदेव के आदर्श जीवन का अनुकरण करने और मानवतावादी मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है ।। लेखक कहते हैं कि भारतवर्ष में कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है ।। इस दिन पूरे भारत में कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है ।। इस दिन शरद् ऋतु में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं सहित पूरे वैभव पर होता है ।। इसी दिन महान् संत गुरु नानकदेव का जन्म उत्सव मनाया जाता है ।। भारतीय जनता ने बहुत समय से कार्तिक पूर्णिमा से ही गुरु नानकदेव के जन्म का संबंध जोड़ दिया है ।। गुरु किसी एक ही दिन भौतिक शरीर में अवतरित हुए होंगे परंतु श्रद्धालुओं के मन में वे प्रतिक्षण प्रकट होते हैं ।। गुरु जिस क्षण भी मन में प्रकट हो जाएँ, वही उत्सव का क्षण होता है ।। चंद्रमा के साथ महान पुरुषों जैसे राम व कृष्ण के साथ ‘चंद्र’ जोड़कर जनता खुशी प्रकट करती है, उसी प्रकार नानकदेव के साथ पूर्णचंद्र जोड़कर जनता खुश होती है ।। भारत की मिट्टी में महापुरुषों को जन्म देने का विशेष गुण है ।। आज से पाँच सौ साल पहले जब देश में अनेक कुसंस्कार व्याप्त थे और देश जातिवाद, संप्रदाय, धर्म व संकीर्ण विचारों वाले घमंडी व्यक्तियों के कारण खंडित हो रहा था, उस समय गुरु नानकदेव का जन्म हुआ ।। ऐसी कठिन स्थिति में इन सड़ी-गली रूढ़ियों, दूषित संस्कारों आदि को दूर करने के लिए अनेक संतों ने जन्म लिया ।।

इन संतों में नानकदेव ऐसे संत थे जो शरद्काल के चंद्रमा की तरह शांत थे ।। इनके मधुर वचनों ने विचार और आचरणों की बहुत बड़ी क्रांति ला दी ।। ये किसी का मन दुःखी किए बिना कुसंस्कारों को छिन्न करके श्रद्धालुओं के मन में विराजमान हो गए ।। नानकदेव जी ने प्रेम का उपदेश दिया क्योंकि मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य प्रेम है, वही उसका साधन व मार्ग है ।। प्रेम से ही मान-अभिमान, छोटे-बड़ों का भेद समाप्त हो जाता है ।। इनकी वाणी में एक अद्भुत शक्ति थी, जो सहज रूप से हृदय से निकलती थी ।। इसी मीठी वाणी से गुरु नानकदेव ने भटकती हुई जनता को मार्ग दिखाया ।। लेखक कहते हैं कि गुरु नानकदेव ने क्षुद्र अहंकार व छोटी मानसिकता के लिए शास्त्रार्थ को गलत बताया है ।। उन्होंने जनता के समक्ष सत्य को प्रत्यक्ष कर देना उचित मार्ग बताया है ।। भगवान जब भलाई करते हैं तो गुरु नानकदेव जैसे संतों को उत्पन्न कर देते हैं, जो नैतिकता से गिरे हुए लोगों के मन में भी प्रेम की भावना जगा देते हैं ।। आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व भी ऐसी ही एक भलाई भगवान ने की जो आज भी क्रियाशील है ।। हे महागुरु, आपके चरणों में हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे अंदर आशाओं का संचार करो, मित्रता व प्रेम की अविरल धारा में हमें डुबो दो अर्थात् हमारे हृदय में मित्रता व प्रेम की भावना का संचार करो ।। हम उलझे हुए व भटके हुए हैं पर अभी भी उपकार मानने का गुण हमसे दूर नहीं हुआ है ।। हम आपकी अमृतमयी वाणी को अभी तक भूले नहीं हैं ।। अत: हमें आप उचित मार्ग दिखाएँ तथा ऋणी भारत का प्रणाम स्वीकार करें ।।

4 — द्विवेदी जी की प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उतर — रचनाएँ- द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बहुमुखी था ।। वे निबंधकार, उपन्यासकार, साहित्य-इतिहासकार तथा आलोचक थे ।।
उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं
(अ) आलोचना- सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, प्राचीन भारत में कलात्मक विनोद, कबीर, नाथ संप्रदाय, हिंदी साहित्य का आदिकाल, आधुनिक हिंदी साहित्य पर विचार, साहित्य का मर्म, मेघदूत- एक पुरानी कहानी, लालित्य मीमांसा, साहित्य सहचर, कालिदास की लालित्य योजना, मध्यकालीन बोध का स्वरूप
(ब) निबंध संग्रह- अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितरक, विचार प्रवाह, कुटज, आलोक पर्व
(स) उपन्यास- बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु-चंद्र लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा
(द) अन्य- संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, संदेश रासक, मृत्युंजय रवींद्र, महापुरुषों का स्मरण

(ग) अवतरणों पर आधारित प्रश्न
1 — आकाश में ————- क्षण उत्सव का है ।।
संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘गद्य खंड’ में संकलित ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी’ द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबंध से उद्धृत है ।। प्रसंग- इस गद्यांश में आचार्य द्विवेदी ने गुरु नानकदेव के जन्मदिन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं और कहा है कि इस पवित्र तिथि को परम ज्योति से युक्त महामानव गुरु नानकदेव इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे ।। उनके शारीरिक रूप से अवतरित होने का इतना महत्व नहीं है, जितना भक्तों के हृदयों में उनके अवतार का है ।।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कहते हैं कि जिस प्रकार आकाश में पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण कोमल व शांत किरणों के साथ प्रकाशित होता है उसी प्रकार श्रद्धालुओं के मन में भी ऐसी शांत किरणों का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है ।। गुरु नानकदेव चंद्रमा के समान ही सोलह कलाओं से युक्त मानव थे ।। भारतीय जनता के मानस में यह बात बहुत समय से समाई हुई है कि गुरु नानकदेव का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ था ।। यह बात भले ही कसौटी पर खरी न उतरती हो, फिर भी भारतीय कार्तिक पूर्णिमा को ही गुरु नानक के जन्मदिन के रूप में स्वीकार करते आ रहे हैं ।। वैसे तो गुरु नानकदेव का पंचतत्व से बना हुआ भौतिक शरीर किसी एक दिन ही प्रकट हुआ होगा, लेकिन श्रद्धालु भक्तजनों के हृदय में उनका जन्म प्रत्येक क्षण होता रहता है; अर्थात् भक्तों के हृदय में वे आज भी प्रतिपल अवतार लेते रहते हैं ।। इस दृष्टि से उनका पार्थिव जन्मदिन इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि आध्यात्मिक ।। अतः गुरु नानकदेव के पार्थिव जन्मदिन की तुलना में आध्यात्मिक जन्मदिन को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए ।। इतिहासकारों में इस बात पर मतभेद हो सकता है कि गुरु नानकदेव के भौतिक शरीर ने पृथ्वी पर कब जन्म लिया; परंतु भारतीय जनमानस इस बात को कोई महत्व नहीं देता क्योंकि भक्त-हृदय में गुरु किसी भी क्षण अवतरित हो सकता है ।। गुरु किसी भी क्षण या पल में उत्पन्न हो जाए, वह क्षण उत्सव मनाने योग्य ही होता है ।।

प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) आकाश में चंद्रमा कितनी पूर्ण कलाओं से पूर्ण होकर चमकता है ?
उतर — आकाश में चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर चमकता है ।।
(स) लेखक ज्योतिपुंज में किसकी कल्पना कर रहा है ?
उतर — लेखक ज्योतिपुंज में गुरु नानकदेव की कल्पना कर रहा है ।। ।।
(द) कार्तिक पूर्णिमा के साथ किसका संबंध जोड़ दिया गया है ?
उतर — कार्तिक पूर्णिमा के साथ गुरु नानकदेव के जन्म का संबंध जोड़ दिया गया है ।।
(य) इतिहास के पंडित किस विषय पर वाद-विवाद करते रहे हैं ?
उतर — इतिहास के पंडित गुरु नानकदेव के पार्थिव जन्मदिन के विषय में वाद-विवाद करते रहे हैं ।।
(र) कौन-सा क्षण उत्सव का है ?
उतर — गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाएँ, वही क्षण उत्सव का है ।।

2 — भारतवर्ष की मिट्टी—————– समर्थ हुए ।।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इस गद्य खंड में द्विवेदी जी ने गुरु नानकदेव के जन्म की परिस्थितियों का चित्रण किया है ।। इसके साथ ही उन्होंने गुरु नानकदेव एवं भारतवर्ष की महानता का उद्घाटन भी किया है ।।
व्याख्या- द्विवेदी जी ने स्पष्ट किया है कि भारतवर्ष की मिट्टी में युग के अनुरूप महापुरुषों को जन्म देने का अद्भुत गुण है ।। आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व हमारा देश अनेक प्रकार के कुसंस्कारों से भरा हुआ था ।। जातियों, संप्रदायों, धर्मों और संकीर्ण वंशों के अभिमान से वह खंडित हो रहा था ।। देश में नए धर्मों के आगमन के कारण ऐसी समस्या उत्पन्न हो गई थी, जो भारत भूमि के हजारों वर्षों के लंबे इतिहास से अपरिचित थी ।। ऐसे कठिन समय में हमारे देश की मिट्टी में अनेक महापुरुषों का जन्म हुआ ।। इन महापुरुषों ने दूषित संस्कार, सड़ी-गली परंपराओं, अनुपयोगी एवं अहितकार विचारों और संकुचित दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए पूरा-पूरा प्रयास किया ।। बाधाओं के कारण वे भयभीत नहीं हुए ।। इन महान पुरुषों ने जर्जर और खंडित विचारधारा को समाप्त करके एक ऐसी विराट् जीवन-दृष्टि को प्रतिष्ठित किया, जिसके कारण जन-जन का मन नई ज्योति, नई दीप्ति, नई आभा और नए प्रकाश से जगमग हो गया ।। सबको नया जीवन मिला ।। गुरु नानकदेव ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे, जिन्होंने इस संक्रमण-काल को विराट-दृष्टि प्रदान की और सुप्त राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक भावनाओं में नवजीवन का संचार किया ।।

प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) भारतवर्ष की मिट्टी में क्या अद्भुत गुण है ?
उतर — भारतवर्ष की मिट्टी में समय के अनुरूप महापुरुषों को जन्म देने का अदभूत गुण है ।।
(स) पाँच सौ वर्ष पहले भारतवर्ष किन-किन समस्याओं से उलझा हुआ था ?
उतर — पाँच सौ वर्ष पहले भारतवर्ष अनेक कुसंस्कारों में उलझा हुआ था ।। जातियों, संप्रदायों, धर्मों और संकीर्ण
कुलाभिमानों से वह खंड विच्छिन्न हो गया था ।।
(द) महापुरुष क्या करने में कुंठित नहीं हुए ?
उतर — महापुरुष देश-समाज की सड़ी रुढ़ियों, मृतप्राय आचारों, बासी परंपरागत विचारों एवं निरर्थक संकीर्णताओं पर
प्रहार करने में बिल्कुल भी कुंठित नहीं हुए ।।
(य) अपने प्रयासों के माध्यम से महापुरुष किन कार्यों में सफल हुए ?
उतर — अपने प्रयासों के माध्यम से महापुरुष समाज को नई दिशा (ज्योति) और नया जीवन प्रदान करने में सफल हुए ।।

3 — यह आश्चर्य की बात है————— प्रेम और मैत्री है ।।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इन पंक्तियों में गुरु नानकदेव के महान् व्यक्तित्व और उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है ।। व्याख्या- गुरु नानकदेव एक महान् संत थे ।। उनके समय के समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ विद्यमान थीं ।। समाज का आचरण दूषित हो चुका था ।। इन बुराइयों को दूर करने और सामाजिक आचरणों में सुधार लाने के लिए गुरु नानकदेव ने न तो किसी की निंदा की और न ही तर्क-वितर्क द्वारा किसी की विचारधारा का खंडन किया ।। उन्होंने अपने आचरण और मधुर वाणी से ही दूसरों के विचारों और आचरण में परिवर्तन करने का प्रयास किया और इस दृष्टि से आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की ।। बिना किसी का दिल दुःखाए और बिना किसी को किसी प्रकार की चोट पहुँचाए, उन्होंने दूसरों के बुरे संस्कारों को नष्ट कर दिया ।। उनकी संत वाणी को सुनकर दूसरों का हृदय हर्षित हो जाता था और लोगों को नवजीवन प्राप्त होता था ।। लोग उनके उपदेशों को जीवनदायिनी औषध की भाँति ग्रहण करते थे ।। मध्यकालीन संतों के बीच गुरु नानकदेव इसी प्रकार प्रकाशमान दिखाई पड़ते हैं, जैसे आकाश में आलोक बिखेरनेवाले नक्षत्रों के मध्य; शरद पूर्णिमा का चंद्रमा शोभायमान होता है ।। विशेषकर शरद् पूर्णिमा के अवसर पर ऐसे महान् संत का स्मरण हो आना स्वाभाविक है ।। द्विवेदी जी कहते हैं कि गुरु नानकदेव प्रत्येक दृष्टि से अलौकिक थे ।। उन महान संत ने मानवमात्र की पीड़ा को दूर करने के लिए प्रेम और मित्रता की चिकित्सा पद्धति को अपनाया था ।।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्तगद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) क्रांति लाने वाले किस संत की बात गद्यांश में की गई है ?
उतर — क्रांति लाने वाले संत गुरु नानकदेव की बात यहाँ की गई है ।।
(स) संत की वाणी की विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।।
उतर — संत की वाणी मधुर, स्निग्ध और अत्यधिक मोहक थी, जो भारतवासियों के तत्कालीन जीवन में क्रांति लाने में
सहायक सिद्ध हुई ।।
(द) गुरु नानकदेव ने कुसंस्कारों को किस प्रकार छिन्न-भिन्न किया ?
उतर — गुरु नानकदेव ने कुसंस्कारों को बिना किसी का दिल दुःखाए और बिना किसी पर आघात किए छिन्न-भिन्न
किया ।।
(य) लोकोत्तर किन्हें कहा गया है ?

उतर — गुरु नानकदेव को लोकोत्तर कहा गया है ।। उसका शास्त्र————— नत हो जाने की
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस अवतरण में आचार्य द्विवेदी ने गुरु नानकदेव की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डाला है ।।

व्याख्या- द्विवेदी जी कहते हैं कि गुरु नानकदेव प्रत्येक दृष्टि से अलौकिक थे ।। उस महान् संत ने मानवमात्र की पीड़ा को दूर करने के लिए प्रेम और मित्रता की चिकित्सा पद्धति को अपनाया ।। तात्पर्य यह है कि गुरु नानकदेव प्राणियों की पीड़ा और उनके कष्टों को दूर करने के लिए उनसे प्रेम और मित्रता का भाव रखते थे, आलोचना का नहीं ।। इस अलौकिक संत के पास सहानुभूति का ऐसा दिव्य शस्त्र था, जिसके आधार पर वे सबके कल्याण की कामना करते थे ।। उनका मन सदैव इसी चिंता में लगा रहता था कि समस्त प्राणियों का कष्ट कैसे दूर किया जाए ।। प्राणियों का हित-चिंतन ही उनके लिए शास्त्र और उपनिषद् थे और वे हर समय उन्हीं में डूबे रहते थे ।। गुरु नानकदेव की स्नेह-ज्योति का हल्का सा स्पर्श भी मनुष्य के दुर्गणरूपी अंधकार को नष्ट करके उसके मन को दिव्यज्योति से प्रकाशित कर देता था ।। अलौकिक संत मृत्यु की ओर बढ़ रहे प्राणी पर अपने प्रेम का अमृत-पात्र उड़ेल देता है, जिसे पाकर व्यक्ति की प्राणधारा नवीनगति से प्रवाहित हो उठती है ।। गुरु नानकदेव भी ऐसे ही अलौकिक संत थे ।। वे समस्त संसार को एक ही दृष्टि से देखते थे ।। उनकी दृष्टि में न कोई छोटा था न बड़ा; न निर्धन था न धनवान्; न कमजोर था न बलवान् तथा न स्त्री था न पुरुष ।। गुरु नानकदेव विभिन्नता में भी एकता देखते थे ।। उनकी दृष्टि समस्त संसार में एक ही तत्व की उपस्थिति देखती थी ।। वे कहते थे कि हमें भी अनेकता में एकता की खोज करनी चाहिए ।। वास्तव में उस दिव्य पुरुष की हर बात वित्रित थी, हर चीज अद्भुत थी ।। लेखक कहते हैं कि इस कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को उन महान संत के चरण कमलों में अर्पित होने की भावना जाग्रत होती है ।।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) गुरु नानकदेव कुसंस्कारों का अँधेरा कैसे दूर करते थे ?
उतर — गुरु नानकदेव कुसंस्कारों का अंधेरा अपने स्नेहरूपी प्रकाश से दूर करते थे ।।
(स) वह ( गुरु नानकदेव)किस प्रकार से निराला है ?
उतर — गुरु नानकदेव सभी से निराले थे क्योंकि उनकी दृष्टि में छोटे-बड़े, धनी-निर्धन, निर्बल- सबल अथवा स्त्री- पुरुष
का को भेद नहीं था ।।
(द) वह (गुरु नानकदेव )किस प्रकार मुमूर्षु प्राणधारा को प्रवाहशील बनाता है ?
उतर — गुरु नानकदेव अपनी मधुर-वाणी के द्वारा मुमूर्षु प्राणधारा को प्रवाहशील बनाते हैं ।।

5 — गुरु नानक ने —– ——-विराजमान है ।।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस गद्यांश में लेखक ने गुरु नानकदेव की प्रेम संबंधी भावनाओं को चित्रित किया है ।।
व्याख्या- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है कि गुरु नानकदेव प्रेम को मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति मानते थे ।। उन्होने सारे संसार को प्रेम का दिव्य संदेश दिया है ।। उनके अनुसार मानव-जीवन का सर्वप्रमुख लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करना है ।। ईश्वर स्वयं प्रेममय है ।। प्रेम ईश्वर का स्वरूप है और प्रेम ही उसका स्वभाव ।। ईश्वर को प्राप्त करने का एकमात्र साधन भी प्रेम ही है ।। अत: उसे पाने के लिए मनुष्य को अनंत प्रेम का पाठ सीखना चाहिए ।। वे कहते हैं कि, हे मोह में पड़े हुए मनुष्य! तुझे यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि तेरे मन में जो अभिमान एवं घमंड भरा हुआ है, वह सच्ची प्रीति और निष्काम प्रेम से ही दूर होगा ।। निष्काम प्रेम से ही तेरा अहंकार नष्ट होगा तथा मन निर्मल हो सकेगा और तुम्हारी क्षुद्रता (अर्थात लघुता) की सीमाएँ टूट जाएँगी तथा तुम असीम और अनंत हो जाओगे ।। इसी के द्वारा तुम्हें मंगलमय शिव की प्राप्ति होगी ।। वह उठकर उस ईश्वर की प्रेम-साधना में लीन हो जाएगा ।। वस्तुत: यदि जीवन का अंतिम लक्ष्य उसे प्राप्त करना है तो सच्चे प्रेम का तत्व प्राप्त करना होगा ।। लेखक कहते हैं कि बाहरी आडंबर धर्म नहीं है ।। धर्म तो आत्मा के रूप में व्यक्ति के अंदर है, जिसे अहंकार को नष्ट करके ही जाना और पाया जा सकता है ।।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ब) नानकदेव के अनुसार मानव का चरम प्राप्तव्य क्या है ?
उतर — नानकदेव के अनुसार मानव का चरम प्राप्तव्य ईश्वर है, जो प्रेम स्वरूप है और जिसे प्रेम से ही पाया जा सकता है ।।
(स) गुरु नानक जी ने प्रेम का क्या संदेश दिया है ?
उतर — गुरु नानकदेव के अनुसार प्रेम के द्वारा ही छोटे-बड़े, मान-अभिमान का भेद समाप्त हो जाता है ।। यही ईश्वर
प्राप्ति का मार्ग है ।।
(द) मनुष्य को मंगलमय शिव की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उतर — सच्ची प्रीति के द्वारा मनुष्य को मंगलमय शिव की प्राप्ति हो सकती है ।।
(य) धर्म किस रूप में मनुष्य के अंदर विराजमान है ?
उतर — धर्म प्रेम रूप में मनुष्य के अंदर विराजमान है ।।

6 — धन्य हो ————– उद्भासित हो रही हो ?
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- यहाँ लेखक ने गुरु नानकदेव की समान दृष्टि, प्रत्येक वस्तु में ईश्वर-ज्योति की प्रत्यक्ष अनुभूति तथा उससे प्रेम करने के संदेश की व्याख्या की है ।।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में आचार्य द्विवेदी ने गुरु नानकदेव के उस दृष्टिकोण को सामने रखा है, जिसमें उन्होंने प्रत्येक मनुष्य एवं प्राणी में उसी अगम, अगोचर, अलख कहलाने वाले ईश्वर की ज्योति देखी है, जो स्वयं उनके हृदय में भी विराजमान है ।। नानकदेव मनुष्यमात्र के लिए यही संदेश देते हैं कि उस ईश्वर की ज्योति घट-घट अर्थात् प्रत्येक प्राणी में विद्यमान है, जो स्वयं प्रत्येक मनुष्य के हृदय एवं उसकी चेतना का प्रदर्शन किया है ।।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्तगद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) प्रस्तुत गद्यांश में प्रयुक्त घट-घट शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।।
उतर — ‘घट-घट’ का अर्थ है- प्रत्येक हृदय अथवा प्रत्येक प्राणी का शरीर
(स) गुरुदेव की लीला कहाँ-कहाँ व्याप्त है ?
उतर — गुरुदेव की लीला जल में, स्थल में, पृथ्वी पर जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ तक व्याप्त है ।।

7 — अद्भुत है————— शैली है ।।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इस गद्यांश में द्विवेदी जी ने गुरु नानकदेव की सहज स्वाभाविक वाणी के प्रभाव का वर्णन किया है ।। व्याख्या- आचार्य द्विवेदी जी ने गुरु नानकदेव के व्यक्तित्व की महानता पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि गुरु नानकदेव की वाणी में अद्भुत प्रभाव था ।। उनकी वाणी का एक-एक शब्द स्वाभाविक रूप से हृदय को प्रभावित करता था ।। उसमें विचित्र मर्मभेदी शक्ति थी ।। उनकी वाणी में कृत्रिमता नहीं थी और उसमें किसी प्रकार का शब्दाडंबर भी नहीं था ।। वह उनके हृदय से स्वाभाविक रूप में प्रकट होती थी और श्रोता के हृदय को पूरी तरह से अपने वश में कर लेती थी ।। सहज और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन होता है, परंतु ऐसा जीवन ही अधिक प्रभावपूर्ण होता है ।। इसी प्रकार सहज और स्वाभाविक भाषा में भी अद्भुत और विश्वसनीय शक्ति होती है ।। द्विवेदी जी का कथन है कि जिस प्रकार सीधी लकीर खींचना कठिन होता है, उसी प्रकार सरल और स्वाभाविक जीवन भी बहुत कठिन होता है किंतु गुरु नानकदेव ने बिना किसी आडंबर और बनावट के बड़े स्वाभाविक ढंग से अपनी भावनाओं और विचारधारा को जन-सामान्य तक पहुंचाया ।। उनकी वाणी सहज, स्वाभाविक एवं सीधी-सादी थी ।। वह प्रत्येक की समझ में आ जाती थी ।। उनकी भाषा की शैली बहुत अद्भुत व मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी ।।

प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) लेखक ने गुरु की बानी को सहज बेधक क्यों कहा है ?
उतर — गुरु की बानी में किसी प्रकार का आडंबर नहीं है, न ही उसमें कोई छल-छद्म है, इसलिए वह कैसे भी कठोर हृदय को बड़ी सरलता से बेधकर उसमें अपनी पैठ बना लेती है, इसीलिए लेखक ने उसे सहज बेधक कहा है ।।
(स) कठिन साधना क्या है ?
उतर — आडंबरहीन सरल-जीवन जीना ही कठिन साधना है ।।
(द) गुरु नानकदेव की वाणी की शक्ति का वर्णन कीजिए ।।
उतर — गुरु नानकदेव की वाणी में अद्भुत शक्ति थी ।। उनकी वाणी हृदय पर सीधा असर करती थी ।। उसमें कहीं कोई दिखावा और कृत्रिमता नहीं थी ।। वह हृदय से स्वाभाविक रूप से प्रकट होती थी और श्रोता के हृदय को वश में कर लेती थी ।।

8 — किसी लकीर —– —- फीके पड़गए ।।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इन पंक्तियों में लेखक ने व्यक्त किया है कि गुरु नानकदेव ने चरम सत्य का उद्घाटन करके संसार की भौतिक वस्तुओं को सहज ही तुच्छ सिद्ध कर दिया है ।।
व्याख्या- यदि हम किसी रेखा को मिटाए बिना उसे छोटा करना चाहते हैं तो उसका एक की उपाय है कि उस रेखा के पास उससे बड़ी रेखा खींच दी जाए ।। ऐसा करने पर पहली रेखा स्वयं छोटी प्रतीत होने लगेगी ।। इसी प्रकार यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, स्वयं को संकीर्णता के जाल से मुक्त करना चाहते हैं, तो उसके लिए भी हमें महानता की बड़ी लकीर खींचनी होगी ।। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया जा सकता उसके लिए व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है ।। ऐसा करने पर ये अपने आप तुच्छ प्रतीत होने लगेंगे ।। इसी उद्देश्य से मानव-जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया ।। इससे लोगों को बड़े सत्य का दर्शन हुआ ।। गुरु की वाणी ने साधारण जनता को परमसत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराया ।। परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं ।। गुरु की वाणी ऐसी महाज्योति थी, जिसने जनसाधारण के मन से अहंकार, क्षुद्रता, संकीर्णता आदि के अंधकार को दूर कर उसे दिव्य ज्योति से आलोकित कर दिया ।।

प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) किसी लकीर को मिटाए बिना छोटा कैसे किया जा सकता है ?
उतर — किसी लकीर को मिटाए बिना छोटा बना देने का उचित उपाय यह है कि उसके सामने बड़ी लकीर खींच दी जाए ।।
(स) गुरु नानक जी ने जनता को किसके सामने रखा ?
उतर — गुरु नानक जी ने जनता को सत्य के सामने रखा, जिससे लोगों को सत्य का दर्शन हुआ ।।
(द) ‘हजारों दिये उस महाज्योति के सामने फीके पड़ गए’ का आशय स्पष्ट कीजिए ।।
उतर — इस वाक्यांश का आशय है कि नानकदेव के समय के हजारों बड़े-बड़े संत भी गुरु नानकदेव की महानता को
स्वीकार करने के लिए विवश हो गए ।।

9 — भगवान जब—– —- अनुग्रह कहते हैं ।।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस अवतरण में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि गुरु नानक जैसे महान् संतों में ईश्वर अपनी ज्योति अवतरित करते हैं और ये महान् संत इस ज्योति के सहारे गिरे हुए लोगो को ऊपर उठाते हैं ।। इसी को भगवान् का अनुग्रह या अवतार कहा जाता है ।।

व्याख्या- आचार्य द्विवेदी का मत है कि जब संसार पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है तो उसकी अलौकिक ज्योति किसी संत के रूप में इस संसार में अवतरित होती है ।। तात्पर्य यह है कि ईश्वर अपनी दिव्य ज्योति को किसी महान् संत के रूप में प्रस्तुत करके उसे इस जगत् का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर भेजता है ।। वह महान् संत ईश्वर की ज्योति से आलोकित होकर संसार का मार्गदर्शन करता है ।। ईश्वर निरीह लोगों के कष्टों को दूर करना चाहता है, इसलिए उसकी यह दिव्यज्योति मानव-शरीर प्राप्त कर चैन से नहीं बैठती, वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए तुरंत सक्रिय हो उठती है ।। यह ज्योति पतितों तथा पापियों को ऊपर उठाती है और उनका उद्धार करती है ।। मानवरूप में जब भी ईश्वर अवतार लेता है, तभी इस विश्व का उद्धार तथा कल्याण होता है ।। प्राचीन भक्ति-साहित्य में ईश्वर की दिव्य-ज्योति का मानव रूप में जन्म ‘अवतारऔर उद्धार’ कहा गया हैं ।। इस दिव्य-ज्योति का ‘अवतार’ अर्थात् उतरना होता है और सांसारिक प्राणियों का ‘उद्धार’ अर्थात् ऊपर उठना होता है ।। आचार्य द्विवेदी अन्त में कहते हैं कि ईश्वर का अवतार लेना और प्राणियों का उद्धार करना ईश्वर के प्रेम का सक्रिय अथवा क्रियात्मक रूप है ।। भक्तजन इसे ईश्वर की विशेष कृपा मानकर ‘अनुग्रह’ की संज्ञा प्रदान करते हैं ।।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) ईश्वर संसार पर अपना अनुग्रह किस प्रकार करते हैं ?
उतर — ईश्वर अपनी दिव्य-ज्योति को किसी संत में उतारकर उसके द्वारा संसार का उद्धार कराकर उस पर अपना अनुग्रह करते हैं ।।
(स) यह ज्योति किस प्रकार क्रियात्मक होती है ?
उतर — यह ज्योति नीचे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाती हुई उनका उद्धार करती है ।। यह चुपचाप नहीं बैठती बल्कि मानव
के कल्याण में क्रियाशील रहती है ।।
(द) संसार का उद्धार कब होता है ?
उतर — मानवरूप में जब ईश्वर अवतार लेता है तब संसार का उद्धार होता है ।।
(य) ‘अवतार’ एवं ‘उद्धार’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।।
उतर — ‘अवतार’ शब्द का अर्थ है- नीचे उतरना और ‘उद्धार’ शब्द का अर्थ है- ऊपर उठाना ।।

10 — महागुरु नई आशा — —– अंगीकार करो ।।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- यहाँ लेखक ने गुरु नानकदेव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त किया है और उनसे भारतीय समाज में आशा, मैत्री, प्रेम आदि गुणों को प्रवाहित करने के लिए आशीर्वाद की इच्छा व्यक्त की है ।।
व्याख्या- लेखक इस महान् गुरु से प्रार्थना करते हैं कि वे भटके हुए भारतवासियों के हृदय में प्रेम, मैत्री एवं सदाचार का विकास करके उनमें नई आशा, नए उल्लास व नई उमंग का संचार करें ।। इस देश की जनता उनके चरणों में अपना प्रणाम निवेदन करती है ।। लेखक का कथन है कि वर्तमान समाज में रहनेवाले भारतवासी कामना, लोभ, तृष्णा, ईर्ष्या, ऊँच-नीच, जातीयता एवं सांप्रदायिकता जैसे दुर्गुणों से ग्रसित होकर भटक गए हैं, फिर भी इनमें कृतज्ञता का भाव विद्यमान है ।। इस कृतज्ञता की भावना के कारण ही आज भी ये भारतवासी आपकी अमृतवाणी को नहीं भूले हैं और आपकी महानता के आगे अपना सिर झुकाते हैं; अतः हे गुरु! आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करें ।।

प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।।
उतर — पाठ- गुरु नानकदेव
लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ब) लेखक भारतवासियों की ओर से क्या कहना चाहता है ?
उतर — लेखक भारतवासियों की ओर से गुरु नानकदेव से कहना चाहता है कि यद्यपि भारतवासी अनेक दुर्गुणों से ग्रसित
होकर भटक चुके हैं तथापि उनमें कृतज्ञता की भावना अभी भी विद्यमान है ।। इस कृतज्ञता की भावना के कारण ही
ज भी ये भारतवासी आपकी अमृतवाणी को भूले नहीं हैं और आपकी महानता के आगे अपना सिर झुकाते हैं ।।
अत: हे गुरु ।। आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करें ।।
(स) ‘कृतज्ञता’ किसे कहते हैं ?
उतर — ‘कृतज्ञता’ का अर्थ है- किए हुए उपकार को मानने की भावना ।।
(द) कृतज्ञ भारत का प्रणाम किसके प्रति है ? ।।
उतर — कृतज्ञ भारत का प्रणाम गुरु नानकदेव के प्रति है ।।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 –हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन काल है
(अ) सन् 1920 – 1980 ई० (ब) सन् 1907-1979 ई० (स) सन् 1900 – 1979 ई० (द) सन् 1907 – 1978 ई०
उत्तर– (स) सन् 1900 – 1979 ई०
2 — हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी एवं संस्कृत के अध्यापक के रूप में शांति निकेतन गए
(अ) सन् 1960 ई० में (ब) सन् 1956 ई० में (स) सन् 1946 ई० में (द) सन् 1940 ई० में
उत्तर- (द) सन् 1940 ई० में
3 — हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास है
(अ) कबीर (ब) संदेश रासक (स) कल्पना (द) अनामदास का पोथा
उत्तर–(द) अनामदास का पोथा
4 — ‘कुटज’ के लेखक हैं
(अ) संपूर्णानंद (ब) जयशंकर प्रसाद (स) हजारी प्रसाद द्विवेदी (द) महावीर प्रसाद द्विवेदी
उतर–(स) हजारी प्रसाद द्विवेदी
5 — द्विवेदी जी को किस कृति के लिए मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया गया ?
(अ) अशोक के फूल (ब) कबीर (स) पुनर्नवा (द) कुटज
उतर–(ब) कबीर
6 — भारत सरकार ने द्विवेदी जी को हिंदी की महती सेवा के लिए पद्मभूषण का अलंकरण प्रदान किया
(अ) सन् 1968 ई० में (ब) सन् 1957 ई० में (स) सन् 1955 ई० में (द) सन् 1940 ई० में
उतर–(ब) सन् 1957

(ङ) व्याकरण एवं रचनाबोध
1 — निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय को अलग-अलग करके लिखिए
शब्द-रूप————प्रकृति-प्रत्यय
अवतार———— आर
अनुग्रह————ग्रह
प्रहार ———— आर
पांडित्य ————त्य
स्वाभाविक ————इक
उल्लसित————इत
महत्व ———— त्व
2 — निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग को पृथक करके लिखिए
शब्द-रूप————उपसर्ग
अवतार————अव
अनुभूत————अनु
अनुग्रह————अनु
सम्मुखीन————सम

3 — निम्नलिखित शब्दों में संधि विच्छेद करते हुए संधि का नाम भी लिखिएसंधिशब्द संधि विच्छेद
संधि का नाम अनायास ————अन + आयास——————–दीर्घ संधि
लोकोत्तर ————लोक + उत्तर————गुण संधि
कुलाभिमान ————कुल + अभिमान————दीर्घ संधि
सर्वाधिक ————सर्व + अधिक————दीर्घ संधि
अमृतोपम———— अमृत + उपम————गुण संधि

Leave a Comment