Up board class 9 hindi solution chapter 2 मंत्र (मुंशी प्रेमचंद )
पाठ – मंत्र (मुंशी प्रेमचंद )
(क) लघु उत्तरीय प्रश्न
1–प्रेमचंद जी की जन्म-तिथि तथा जन्म-स्थान के बारे में बताइए। उनके बचपन का क्या नाम था?
उ०- प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय था।
2. प्रेमचंद जी को किस-किस नाम से जाना जाता है? उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें किस नाम से
संबोधित किया?
उ०- प्रेमचंद जी को नवाबराय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें
‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया।
3. प्रेमचंद जी की कौन-सी कृति अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर ली गई?
उ०- प्रेमचंद जी की कृति ‘सोजे वतन’ अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी कौन-सी थी और वह कब प्रकाशित हुई?
उ०- प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ थी और वह ‘जमाना’ पत्रिका के दिसबंर 1910 के अंक में
प्रकाशित हुई।
5. प्रेमचंद जी के किस उपन्यास को उनके पुत्र ने पूरा किया?
उ०- प्रेमचंद जी के उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ को उनके पुत्र ने पूरा किया।
6- प्रेमचंदजी ने अपनी रचनाओं में किसके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है?
उ०- प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओं में तत्कालीन निम्न एवं मध्यम वर्ग के प्रति सहानुभूति प्रकट की है।
7 -‘हंस’ पत्रिका के संपादक कौन है?
उ०- हंस पत्रिका के संपादक प्रेमचंद जी हैं।
8. प्रेमचंद जी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कौन-सा है?
उ०- प्रेमचंद जी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास ‘गोदान’ है।
(ख) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न ।
1- संक्षिप्त जीवन परिचय देकर उनकी कृतियों का वर्णन कीजिए।
उ०- जीवन परिचय- प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का
नाम आनंदी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ
और जीवन-यापन का अध्यापन से। पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही था। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्मे होशरूबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिरजा रुसबा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।
1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास विषय से इंटर पास किया और 1919 में बी०ए० पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहांत हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ, जो सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संतानें हुई – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1910 में उनकी रचना ‘सोजे-वतन’ (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया
और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपतराय नाम से लिखते थे। सन् 1915 ई० में इन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर ‘प्रेमचंद’ नाम धारण करके, हिंदी-साहित्य जगत में पदार्पण किया। जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। अक्टूबर 1936 में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ उनके पुत्र अमृत ने पूरा किया। कार्यक्षेत्र- प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह माने जाते हैं। वैसे तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था, पर उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर अंक में 1915 में, ‘सौत’ नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी ‘कफन’ नाम से। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। उनसे पहले हिंदी में काल्पनिक, एय्यारी और पौराणिक धार्मिक रचनाएँ ही की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरूआत की। भारतीय साहित्य का बहुत-सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा, चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य, उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’, ‘जमाना’ पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई। कथा सम्राट प्रेमचंद का कहना था कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। यह बात उनके साहित्य में उजागर हुई है। 1921 में उन्होंने महात्मा गाँधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने ‘मर्यादा’ पत्रिका का संपादन भार सँभाला, छह साल तक ‘माधुरी’ नामक पत्रिका का संपादन किया, 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्र ‘हंस’ शुरू किया और 1932 के आरंभ में ‘जागरण’ नामक एक साप्ताहिक पत्र और निकाला। उन्होंने लखनऊ में 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की।
रचनाएँ- प्रेमचंद ने कथा-साहित्य के क्षेत्र में युगांतकारी परिवर्तन किए और एक नए कथा-युग का सूत्रपात किया। जनता की बात जनता की भाषा में कहकर तथा अपने कथा-साहित्य के माध्यम से तत्कालीन निम्न एवं मध्यम वर्ग की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करके वे भारतीयों के हृदय में समा गए और भारतीय साहित्य जगत में ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से विभूषित हुए। प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, जीवन-चरित और निबंध के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का अभूतपूर्व परिचय दिया।
(अ) उपन्यास- कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, वरदान, सेवासदन, रंगभूमि, गबन, गोदान और मंगलसूत्र (अपूर्ण)
(ब) कहानी संग्रह- नवनिधि, ग्राम्य जीवन की कहानियाँ, प्रेरणा, कफन, कुत्ते की कहानी, प्रेम-प्रसून, प्रेम-पचीसी, प्रेम-चतुर्थी, मनमोदक, मानसरोवर (दस भाग), समर-यात्रा, सप्त-सरोज, अग्नि-समाधि, प्रेम-गंगा और सप्त
सुमन (स) नाटक- कर्बला, प्रेम की वेदी, संग्राम और रूठी रानी
(द) जीवन-चरित- कलम, तलवार और त्याग, दुर्गादास, महात्मा शेखसादी और राम-चर्चा (य) निबंध-संग्रह- कुछ विचार (र) संपादित- गल्प-रत्न और गल्प-समुच्चय
(ल) अनूदित- अहंकार, सुखदास, आजाद-कथा, चाँदी की डिबिया, टॉलस्टाय की कहानियाँ और सृष्टि का आरंभ।
2- प्रेमचंद जी की भाषा-शैली की विशेषता बताइए।
उ०- भाषाशैली- प्रेमचंद जी की भाषा के दो रूप हैं- एक रूप तो जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है और दूसरा
रूप जिसमें उर्दू, संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसी भाषा का प्रयोग इन्होंने अपनी श्रेष्ठ कृतियों में किया है। यह भाषा अधिक सजीव, व्यावहारिक और प्रवाहमयी है। यही भाषा प्रेमचंद जी की प्रतिनिधि भाषा है। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य की रचना जनसाधारण के लिए की। इसी कारण उन्होंने सरल, सजीव एव सरस शैली में ही अपनी रचनाओं का सृजन किया। वे विषय एवं भावों के अनुरूप शैली को परिवर्तित करने में दक्ष थे। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है(अ) वर्णनात्मक शैली- किसी पात्र, वस्तु, घटना आदि का वर्णन करते समय इस शैली का प्रयोग किया गया है।
नाटकीय सजीवता इनके द्वारा प्रयुक्त इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
(ब) विवेचनात्मक शैली- प्रेमचंद जी ने अपने गंभीर विचारों को व्यक्त करने के लिए विवेचनात्मक शैली को
अपनाया है। इस शैली में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग अधिक किया गया है।
(स) मनोवैज्ञानिक शैली- प्रेमचंद जी ने मन के भावों तथा पात्रों के मन में उत्पन्न अंतर्द्वद्वों को चित्रित करने के लिए
इस शैली का प्रयोग किया है।
(द) हास्य-व्यंग्यात्मक शैली- सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय इस शैली का प्रभावपूर्ण प्रयोग किया
गया है।
(य) भावनात्मक शैली- काव्यात्मक एवं आलंकारिकता पर आधारित इनकी इस शैली के अंतर्गत मानव जीवन से
संबंधित विभिन्न भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।
3. प्रेमचंद जी का साहित्य में क्या योगदान है? स्पष्ट कीजिए।
उ०- साहित्यिक योगदान- कथा साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद युगांतकारी परिवर्तन करने वाले कथाकार तथा भारतीय समाज के
सजग प्रहरी व एक सच्चे प्रतिनिधि-साहित्यकार थे। डा० द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने लिखा है- “हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन एक ऐतिहासिक घटना थी। उनकी कहानियों में ऐसी घोर यंत्रणा, दुःखद गरीबी, असप्त दुःख, महान स्वार्थ और मिथ्या आडंबर आदि से तड़पते हुए व्यक्तियों की अकुलाहट मिलती है, जो हमारे मन को कचोट जाती है और हमारे हृदय में टीस पैदा कर देती है।” तैंतीस वर्षों के रचनात्मक जीवन में वे साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित। एक श्रेष्ठ कथाकार और उपन्यास सम्राट के रूप में हिंदी-साहित्याकाश में उदित इस ‘चंद्र’ को सदैव नमन किया जाता
रहेगा।
(ग) अवतरणों पर आधारित प्रश्न
1. मोटर चली गई ————- लौट आने की आशा थी।
संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘गद्य खंड’ में संकलित एवं ‘प्रेमचंद जी’ द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक कहानी से उद्धृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में वर्तमान युग की शहरी सभ्यता पर कटाक्ष करते हुए भगत जैसे ग्रामीण सभ्यता के लोगों में विद्यमान मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डाला गया है एवं भगत की डॉक्टर चड्ढा के चले जाने के बाद मनोदशा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- भगत की मानसिक दशा का चित्रण करते हुए लेखक कहता है कि भगत डॉक्टर चड्ढा के गोल्फ खेलने के लिए चले जाने के बाद भी यह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो किसी के प्राण निकलते हुए देखकर भी अपने मनोरंजन को ही प्राथमिकता देते हैं। डॉक्टर चड्ढा भगत के मरणासन्न पुत्र को इसलिए नहीं देखता, क्योंकि उसके मनोरंजन का समय हो गया था। वह एक मरते हुए मनुष्य के प्राणों की रक्षा करने से ज्यादा महत्व गोल्फ खेलने को देता है। वह भगत के पुत्र का इलाज नहीं करता और गोल्फ खेलने चला जाता है। डॉक्टर चड्ढा का अमानवीय व्यवहार उसके लिए अभी भी अविश्वसनीय बना हुआ था। भगत को आधुनिक युग के सभ्य कहे जाने वाले लोगों की ऐसी निर्ममता का कोई पूर्व अनुभव नहीं हुआ था। वह तो उस मानसिकता वाले व्यक्तियों में से था, जो सदा किसी मुर्दे को कंधा देने, किसी के गिरे हुए घर को फिर से खड़ा करने, किसी के घर में लगी हुई आग को बुझाने या हो रहे कलह को शांत करने आदि परहित के कार्यों के लिए सदैव तत्पर रहते थे। भगत को जब तक मोटर जाती दिखाई दी वह टकटकी (एकटक नजर) लगाकर उसी मार्ग को देखता रहा। शायद उसे अभी तक कहीं-न-कहीं यह उम्मीद थी कि डॉक्टर साहब वापस आएँगे और उसके लड़के को देखेंगे।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्तगद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) भगत को किस बात पर विश्वास न आता था?
उ०- संसार में कोई मनुष्य ऐसा भी हो सकता है, जो अपने मनोरंजन के आगे किसी के प्राणों की चिंता न करे, भगत
को इस बात पर विश्वास न आता था।
(स) भगत को कैसा अनुभव अब तक न हुआ था? उ०- संसार में जिन लोगों को सभ्य कहा जाता है, वे इतने निर्मम और कठोर होते हैं कि किसी के निकलते हुए प्राण भी
उनमें दया अथवा करुणा नहीं उपजा सकते, इस बात का अनुभव भगत को अब तक न हुआ था।
(द) भगत पुराने जमाने के कैसे लोगों में से था?
उ०- भगत पुराने जमाने के लोगों की तरह अत्यंत दयालु और परोपकारी था। वह दूसरों के घरों में लगी आग को
बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, किसी के छप्पर को उठाने अथवा किसी के आपसी विवाद को सुलझाने आदि के लिए
सभी प्रकार की सहायता करने को तैयार रहता था।
(म) भगत को किस बात की आशा थी?
उ०- भगत को आशा थी कि डॉक्टर चड्ढा वापस आकर उसके लड़के को देख लेंगे।
2. प्राणिशास्त्र के————- ध्यान न आया।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इन पंक्तियों में कैलाश के सर्प प्रेम और उनके बारे में उसकी जानकारी व उसके जुनून के बारे में बताया गया है। व्याख्या- कैलाश के सर्पो से प्रेम को बताते हुए लेखक कहता है कि उसके द्वारा विद्यालय में साँपों पर एक मार्के का जो व्याख्यान दिया गया था उसको सुनकर जीव विज्ञान के बड़े-बड़े विद्वान भी अचंभित रह गए थे। साँपों की यह विद्या उसने एक बूढ़े सपेरे से सीखी थी। उसे साँपों की जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने का भी शौक था। अगर उसे पता चल जाता कि किसी व्यक्ति के पास कोई अच्छी जड़ी-बूटी है, तो जब तक वह उसे प्राप्त नहीं कर लेता था उसे शांति नहीं मिलती थी। यह एक प्रकार की लत थी। जिस पर वह काफी धन खर्च कर चुका था। उसकी मित्र मृणालिनी कई बार उसके घर आ चुकी थी, परंतु वह जब उसके जन्मदिन पर आई तो वह साँपों को देखने के लिए इतनी उत्सुक थी जितना कि पहले कभी नहीं हुई थी। यह नहीं कह सकते कि उसकी उत्सुकता सचमुच जाग गई थी या वह यह उत्सुकता दिखाकर कैलाश पर अपने अधिकार का प्रदर्शन करना चाहती थी, परंतु उसका साँपों को देखने का निवेदन समय के अनुरूप नहीं था। उस कमरे में कितने लोग जमा होंगे और इतने लोगों को देखकर साँपों की क्या प्रतिक्रिया होगी और रात के समय उन्हें छेड़ा जाना कितना खतरनाक होगा उसे जरा भी ध्यान नहीं था।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम बताइए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) साँपों के बारे में ज्ञान कैलाश ने कहाँ से सीखा था?
उ०- साँपों के बारे में ज्ञान कैलाश ने एक बूढ़े सपेरे से सीखा था।
(स) अचानक साँपों को देखने की जिज्ञासा मृणालिनी के अंदर क्यों जाग उठी?
उ०- कैलाश पर अपने अधिकार का प्रदर्शन करने के लिए मृणालिनी के अंदर साँपों को देखने की जिज्ञासा जाग उठी थी।
(द) मृणालिनी ने साँपों को देखने के आग्रह में किस बात का ध्यान नहीं रखा?
उ०- मृणालिनी ने साँपों को देखने के आग्रह में इस बात का भी ध्यान न रखा कि रात के समय साँप भीड़ को देखकर
बिगड़ भी सकते थे और किसी को नुकसान भी पहुंचा सकते थे।
3. अरे मूर्ख——- —– जोन होना था, वह हो गया।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- डॉक्टर चड्ढा के युवा पुत्र कैलाश को उसके बीसवें जन्मोत्सव पर अत्यधिक जहरीले साँप ने डंस लिया । इस दुर्घटना से डॉक्टर चड्ढा का हृदय चीत्कार कर उठा। एक मित्र के कहने पर उन्होंने किसी झाड़ने वाले को बुलाया। कैलाश की गंभीर दशा देखकर झाड़ने वाले ने निराश भाव से कहा कि जो कुछ होना था, हो चुका, अर्थात् अब कुछ भी संभव नहीं है। झाड़ने वाले की यह बात सुनकर डॉक्टर चड्ढा के मित्रों ने अपने मन की पीड़ा और क्रोध को इन पंक्तियों में प्रकट किया है।
व्याख्या- डॉक्टर चड्ढा के मित्रों ने झाड़-फूंक करने वाले से कहा – अरे मूर्ख, तू यह क्या कह रहा है कि जो कुछ होना था, हो चुका। वास्तव में इस समय तो वह घटित हो गया है, जिसे घटित नहीं होना चाहिए था। अभी तो इसके माता-पिता ने अपने लाडले बेटे के माथे पर सेहरा भी न बँधा देखा। कैलाश की प्रेयसी मृणालिनी के हृदय में पल्लवित होनेवाला इच्छारूपी वृक्ष नए पत्तों तथा सुंदर-सुंदर फूलों से कहाँ सुशोभित हो सका; अर्थात् मृणालिनी की अभिलाषाएँ कहाँ पूरी हो पाई? मृणालिनी के हृदय की समस्त इच्छाएँ पूरी हुए बिना ही समाप्त हो गईं। वह अभी केवल बीस वर्ष का ही तो था। जीवन का विशाल सागर अभी उसके सामने था, जिसमें खुशियों की लहरें उठ रही थीं। उन लहरों पर झिलमिलाते तारों अर्थात् मन की अभिलाषाओं का प्रकाश पड़ रहा था। उनके प्रकाश को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे अनगिनत तारे आनंदमग्न हो जल के ऊपर नृत्य कर रहे हों। कैलाश उस आनंद-सागर में नौका-विहार करता हुआ अचानक अपनी नैया जीवन-सागर में डुबा बैठा। अतः इस समय वह सब-कुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था अर्थात् वह युवा पुत्र, जिसे अभी जीना चाहिए था, जिसे जीवन के सुख-ऐश्वर्य भोगने चाहिए थे, अनहोनी के कारण मृत्यु कर शिकार हो गया।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) ‘जो कुछ न होना था, हो चुका’ इस पंक्ति से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उ०- इस पंक्ति से लेखक का तात्पर्य है कि ऐसा युवक (कैलाश) जिसे अभी जीवन के सुखों का आनंद लेने के लिए
जीना चाहिए था, वह एक अनहोनी का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया था, जो नहीं होना चाहिए था।
(स) ‘जो कुछ होना था वह कहाँ हुआ?’ यह किसने कहा? उ०- यह डॉक्टर चड्ढा के मित्र ने कहा। (द) लेखक के अनुसार माँ-बाप और मृणालिनी ने क्या खोया?
उ०- लेखक के अनुसार माँ-बाप ने अपने पुत्र से संबंधित सभी खुशियाँ खो दी और मृणालिनी ने अपने विवाह व भावी
जीवन से संबंधित सभी स्वप्न खो दिए।
4. भगवान बड़ा कारसाज है——. —— बात न पूछता।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- भगवान सबके साथ पक्षपातरहित न्याय करता है।
व्याख्या- बूढ़ा भगत, डॉक्टर चड्ढा के पुत्र को साँप द्वारा डस लिए जाने पर प्रतिक्रिया स्वरूप कहता है कि भगवान बड़ा न्यायी है। वह सबका काम बनानेवाला है। जब मेरा बेटा मृत्यु से संघर्ष कर रहा था तो इसी डॉक्टर को जरा-सी भी दया नहीं आई थी। रोगी को देखने के स्थान पर खेलने के लिए चला गया था। आज मैं वहाँ होता तो भी मैं बिलकुल भी दुःख प्रकट न करता।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) लेखक ने किस बात के लिए भगवान को कारसाज कहा है?
उ०- लेखक ने भगवान को सभी के काम बनाने और सभी के साथ न्याय करने के लिए कारसाज कहा है।
(स) भगत के आँसू कब निकले थे?
उ०- जब भगत अपने बेटे को डॉक्टर चड्ढा को दिखाने लाया था, किंतु डॉक्टर चड्ढा उसके बेटे को देखे बिना
गोल्फ खेलने चले गए और उसका बेटा मर गया था। उस समय भगत के आँसू निकले थे।
(द) ‘भगवान बड़ा कारसाज है।’ यहाँ इस कथन का क्या आशय है?
उ०- यहाँ इस कथन का आशय है कि भगवान बड़ा न्यायी है। वह सभी का काम बनाने वाला है।
5. बुढ़िया फिर सो गई ——धातकथा।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस अवतरण में वृद्ध भगत के हृदय के अंतर्द्वद्व को अत्यंत ही सजीव ढंग से चित्रित किया गया है। व्याख्या- बूढ़ा भगत अपनी पत्नी के सो जाने पर दरवाजा बंद करके लेट गया। उसके मन की दशा ठीक वैसी थी, जैसी संगीत के शौकीन किसी व्यक्ति की उपदेश सुनने पर होती है। उपदेश सुनते समय जब वाद्य-यंत्रों की आवाज उसके कानों में पड़ती है तो उसकी बार-बार इच्छा होती है कि वह किसी तरह उस मधुर ध्वनि को सुनने के लिए वहाँ से निकलकर चला जाए। शारीरिक रूप से भले ही वह उपदेशक के सामने बैठा रहे, पर उसक मन संगीत की स्वर-लहरियों में खो जाता है। यद्यपि ऐसा व्यक्ति अन्य लोगों की शर्म करके वहाँ से उठ नहीं पाता है, किंतु उसका मन बराबर उठने के लिए तत्पर रहता है। लेखक कहता है कि यदि भगत के अंदर विद्यमान बदले की भावना को उपदेशक मान लिया जाए तो उसका हृदय वह वाद्ययंत्र था, जिसकी झंकार उस युवक के पक्ष में गूंज रही थी। भगत की परोपकारी भावना उसकी बदले की भावना पर हावी होने लगती है। उसके आदर्श और उसकी मानवीयता के गुण उसे डॉक्टर के लड़के के प्राण बचाने के लिए तीव्रता से प्रेरित करते हैं, किंतु उसका मस्तिष्क उससे अपने लड़के की मौत का बदला लेने को कहता है। उसका मन बार-बार उस अभागे युवक की ओर खिंचा जा रहा था, जो मृत्यु के निकट चला जा रहा था और जिसके लिए एक-एक पल की देर भी प्राण लेने वाली सिद्ध हो रही थी।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ व लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) भगत की उस समय मनोदशा कैसी हो रही थी?
उ०- उस समय भगत की मनोदशा ठीक वैसी थी जैसी संगीत के शौकीन किसी व्यक्ति की उपदेश सुनने पर होती है।
(स) लेखक के अनुसार उपदेश सुनने वाले व्यक्ति की संगीत सुनने पर कैसी मनोदशा होती है?
उ०- उपदेश सुनने वाले संगीत प्रेमी के कानों में जब वाद्य-यंत्रों की आवाज पड़ती है, तो उसकी बार-बार इच्छा होती
है कि वह उस मधुर ध्वनि को सुनने के लिए वहाँ से निकलकर चला जाए।
(द) कौन-सा अभागा युवक इस समय मर रहा था?
उ०- वह अभागा युवक कैलाश था, जिसे साँप ने काट लिया था तथा वही इस समय मर रहा था।
(य) एक-एक पल किसके लिए घातक हो रहा था?
उ०- डॉक्टर चड्ढा के इकलौते पुत्र कैलाश के लिए एक-एक पल घातक हो रहा था।
6. चौकीदार चला गया —- .—- उठते ही नहीं।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में बूढ़े भगत की मानसिक और शारीरिक स्थिति के मध्य व्याप्त तारतम्यहीनता की स्थिति का चित्रण किया गया है।
व्याख्या- चौकीदार के द्वारा कैलाश की मरणासन्न स्थिति की बात सुनकर भगत की स्थिति ऐसी हो गई, जैसे वह नशे में हो। नशे में डूबे हुए व्यक्ति का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। वह चलना किसी ओर को चाहता है तथा उसके पैर पड़ते कहीं ओर हैं, वह कहना कुछ चाहता है किंतु उसकी जिह्वा से निकलता कुछ और ही है। यही दशा इस समय साँप का विष उतारने में सिद्धहस्त बूढ़े भगत की हो रही थी। उसके मन में डॉक्टर चड्ढा से बदला लेने की भावना प्रबल थी। वह चाहता था कि वह कैलाश का विष उतारने डॉक्टर चड्ढा के घर न जाए, पर दूसरी ओर उसकी परोपकारी कर्मनिष्ठा पर उसके मन का अधिकार नहीं था। इसी विचलित मन:स्थिति में उसके पैर डॉक्टर चड्ढा के घर की ओर बढ़े चले जाते थे। लेखक कहता है कि जिसने कभी तलवार न चलाई हो, वह अवसर आने पर निश्चय करके भी तलवार नहीं चला सकता। तलवार हाथ में लेते ही उसके हाथ काँपने लगते है। भगत भी ऐसे ही व्यक्तियों में से था, जिसने कभी बदला लेने की भावना से कोई कार्य किया ही नहीं था।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) नशे में आदमी का शरीर कैसा हो जाता है?
उ०- नशे में आदमी का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। वह चलना किसी ओर चाहता है तथा उसके पैर
कहीं ओर पड़ते हैं, वह कहना कुछ चाहता है किंतु उसकी जिह्वा से निकलता कुछ और ही है।
(स) भगत का मन कुछ और कह रहा था और जबान कुछ,इसका क्या कारण था?
उ०- भगत का मन कुछ और कह रहा था और जबान कुछ, इसका प्रमुख कारण उसकी मनोदशा थी। उस समय
उसकी दशा नशे में लिप्त व्यक्ति के समान थी।
(द) ‘सेवक स्वामी पर हावी था’कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उ०- इस कथन में लेखक का सेवक से अभिप्राय भगत के ‘अवचेतन मन’ से है और स्वामी से आशय ‘चेतन मन’ से।
सामान्यतया चेतन मन का अवचेतन मन पर नियंत्रण होता है। लेकिन भगत की स्थिति इसके विपरीत थी। उसका चेतन मन उसे डॉक्टर चड्ढा के यहाँ जाने से रोकता है परंतु अवचेतन मन प्रेरित करता है। इसलिए ‘सेवक स्वामी पर हावी था।
(य) ‘चेतना रोकती थी, पर उपचेतना ठेलती थी। इस कथन के माध्यम से कवि का इशारा किस ओर है?
उ०- इस कथन से लेखक का इशारा भगत के चेतन और अवचेतन मन की ओर है।
7. एक बार ————— मेरे सामने रहेगा।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इन पंक्तियों में डॉक्टर चड्ढा के मन में उत्पन्न उस समय की ग्लानि को स्पष्ट किया गया है जब भगत उसके मृतप्राय पुत्र को सर्प विष से मुक्त कर, बिना कुछ लिए चुपचाप चला जाता है।
व्याख्या- मरते हुए पुत्र के जीवित हो जाने के बाद उत्पन्न हर्ष एवं उल्लास के वातावरण से मुक्ति पाकर डॉक्टर चड्ढा भगत को ढूँढ़ते हैं किंतु वह किसी से बिना कुछ कहे चला गया था। भगत के प्रति किए गए अपने कृत्य के प्रति ग्लानि को अनुभव करते हुए डॉक्टर चड्ढा कह रहे हैं कि भगत जैसे व्यक्ति का जन्म यश की वर्षा करने के लिए ही होता है। यद्यपि वे यह जानते हैं कि वह उनसे कुछ लेगा नहीं, किंतु वे उसके पैरों पर गिरकर उससे अपने उस अपराध की क्षमा याचना करेंगे, जो उन्होंने एक डॉक्टर होते हुए भी उसके मरणासन्न पुत्र को न देखकर किया था। डॉक्टर चड्डा कहते है कि उस बूढ़े की सज्जनता ने उनके मन में ऐसे आदर्श का बीजारोपण किया है, जो शेष जीवन में सदैव उनके सम्मुख रहेगा। इन पंक्तियों में डॉक्टर चड्डा की ग्लानि, पश्चाताप एवं उनके हृदय-परिवर्तन की अभिव्यक्ति मिली है।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उ०- पाठ- मंत्र
लेखक- प्रेमचंद
(ब) भगत को देखकर डॉ० चड्ढा को किस बात का अहसास हुआ?
उ०- भगत को देखकर डॉ० चड्ढा को भगत के मरणासन्न पुत्र को न देखने के कारण उसके प्रति किए गए अपने कृत्य
का अहसास हुआ। (स) डा० चड्ढा को अब किस बात की ग्लानि हो रही है?
उ०- डा० चड्ढा को उस घटना का स्मरण हो जाता है जब बूढ़ा अपने इकलौते पुत्र को मृतप्राय अवस्था में लेकर
आया था और वह उसे देखे बिना गोल्फ खेलने चले गए थे। आज बूढ़े के द्वारा अपने ऊपर किए गए उपकार के कारण उन्हें अपने उस दिन के व्यवहार पर ग्लानि हो रही है।
(द) वह कौन सा आदर्श है, जिसे डा० चड्ढा जीवनभर अपने सामने रखना चाहते हैं?
उ०- वह भगत द्वारा किए गए नि:स्वार्थ मानव-सेवा का आदर्श है, जिसे डॉक्टर चड्डा जीवनभर अपने सामने रखना
चाहते हैं।
(य) भगत की किस चारित्रिक विशेषता को उजागर किया गया है?
उ०- भगत की नि:स्वार्थ, निष्काम मानव-सेवा की चारित्रिक विशेषता को यहाँ उजागर किया गया है।
(घ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1-प्रेमचंद जी का जन्म हुआ थ
ा(अ) सन् 1805 में (ब) सन् 1880 में (स) सन् 1856 में (द) सन् 1982 में
उत्तर-
2. प्रेमचंद किस युग के लेखक हैं?
(अ) प्रगतिवादी युग के (ब) शुक्ल युग के (स) भारतेंदु युग के (द) छायावादी युग के
3. प्रेमचंद जी की कृति है
(अ) कुटज (ब) दाँत (स) मन की लहर (द) सेवासदन
4. प्रेमचंदजी का उपन्यास है
(अ) मंत्र (ब) कफन (स) गोदान (द) रूठी रानी
5. किस महान साहित्यकार को उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से विभूषित किया गया?
(अ) हजारी प्रसाद द्विवेदी (ब) प्रेमचंद (स) गुलाबराय (द) प्रतापनारायण मिश्र
6. हंस पत्रिका के संपादक थे
(अ) महादेवी वर्मा (ब) धर्मवीर भारती (स) प्रेमचंद (द) काका कालेलकर
(ङ) व्याकरण एवं रचनाबोध
निम्नलिखित शब्दों का संधि विच्छेद करते हुए संधि का नाम बताइएसंधि शब्द संधि विच्छेद
संधि का नाम
निश्चल———— निः + चल———-विसर्ग संधि
निष्काम ———-निः + काम———- विसर्ग संधि
निः स्वार्थ———- निः + स्वार्थ———-विसर्ग संधि
नि: शब्द———- निः + शब्द———-विसर्ग संधि
सज्जन ———-सत् + जन———-व्यंजन संधि
औषधालय ———-औषध + आलय ———-दीर्घ संधि
2. निम्नलिखित समस्त पदों मे समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिएसमस्त पद समास विग्रह
समास का नाम
कामना तरु ———-कामना रूपी वृक्ष———-कर्मधारय समास
मित्र समाज ———-मित्रों का समाज———-संबंध तत्पुरुष समास
जलमग्न ———-जल में मग्न———-अधिकरण तत्पुरुष समास
जीवन पर्यंत ———-जीवन भर———-अव्ययीभाव समास
करुण क्रंदन ———- करुण विलाप ———-कर्मधारय समास
महाशय ———-सज्जन पुरुष———-कर्मधारय समास।
माता-पिता———- माता और पिता———-द्वंद्व समास
आत्मरक्षा ———-आत्म के लिए रक्षा———-संप्रदान तत्पुरुष समास
कला प्रदर्शन———- कला के लिए प्रर्दशन———-संप्रदान तत्पुरुष समास
सावन-भादों ———-सावन और भादों———-द्वंद्व समास
जीवनदान ———-जीवन का दान———-संबंध तत्पुरुष समास
3. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गअलग कीजिएशब्द-रूप
उपसर्ग आमोद अवसर
अव उपदेशक
उप प्रदर्शन निवारण
नि प्रतिघात
प्रति निर्दयी
4. पाठ में से वे कथन छाँटिए या चुनिए, जिसमें भगत की मानसिक स्थितियों का चित्रण हुआ हैईश्वर की शक्ति में विश्वास- भगवान् बड़ा कारसाज है, मुरदे को भी जिला सकता है। झेंप- ‘नहीं री, ऐसा पागल नहीं हूँ कि जो मुझे काँटे बोए, उसके लिए फूल बोता फिरूँ।’ अंतर्द्वद- मन में प्रतिकार था, पर कर्म मन के अधीन न था। जिसने कभी तलवार नहीं चलाई, वह इरादा करने पर भी तलवार नहीं चला सकता। उसके हाथ काँपते हैं, उठते ही नहीं। कायरता- कहीं नहीं, देखता हूँ कितनी रात है। कातरता- ‘दुहाई है सरकार की, लड़का मर जाएगा। हुजूर! चार दिन से आँखें नहीं —– धैर्य- न देगा, न सही। घास तो कहीं नहीं गई है। दोपहर तक क्या दो आने की भी न काढूँगा? स्वाभिमान- ‘अभी तो यहीं बैठे चिलम पी रहे थे। हम लोग तमाख देने लगे तो नहीं ली: अपने पास से तमाख निकालकर भरी।’ आत्मसंतोष- ‘अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, बाबूजी! वह नारायण चाहेंगे तो आधे घंटे में भैया उठ बैठेंगे। आप नाहक दिल छोटा कर रहे है। जरा कहारों से कहिए, पानी तो भरें।’ प्रतिकार और प्रतिहिंसा- कलेजा ठंडा हो गया, आँखें ठंडी हो गई। लड़का भी ठंडा हो गया होगा। तुम जाओ। आज चैन की नींद सोऊँगा (बुढ़िया से) जरा तमाखू दे दे। एक चिलम और पीऊँगा। अब मालूम होगा लाला को! सारी साहिबी निकल जाएगी, हमारा क्या बिगड़ा?
5. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
हाथ से चला जाना (अवसर / नियंत्रण खो देना) अथक प्रयास के पश्चात् जब कार का नियंत्रण उसके हाथों से चला गया, तब उसके दुर्भाग्य की कौन कहे दुर्घटना तो घटनी ही थी। मिजाज करना (टालमटोल करना) राहुल की पत्नी बहुत सीधी और भोली है तभी वह इतना मिजाज करता रहता है। किस्मत ठोकना (भाग्य को दोष देना) बहुत परिश्रम करने के बाद भी परीक्षा में प्रथम श्रेणी न आने पर उसने अपनी किस्मत ठोकली। आनन-फानन में (बिना किसी देर के) रमेश ने आनन-फानन में एक मीटर गहरा गड्ढा खोद दिया। कलेजा ठंडा होना (शांति मिलना) राम के दिवालिया हो जाने पर श्याम का कलेजा ठंडा हो गया। सूरत आँखों में होना फिरना ( व्यक्ति का बार-बार स्मरण आना) जबसे बहन विदेश गई है, उसकी सूरत मेरी आँखों में फिर रही है।
सन्नाटा छा जाना (अचानक शांति हो जाना) झगड़ा हो जाने पर शहर में सन्नाटा छा गया। शंका निवारण करना (संदेह दूर करना) यदि आप अपनी शंका का निवारण करना चाहते हैं, तो कृपया कल आइए। चैन की नींद सोना (निश्चिंत होना) विनोद तो अब बेटी का विवाह करके चैन की नींद सोएगा। आँखें पथरा जाना (आँखों का क्रियाहीन होना) श्याम का विदेश से लौटने का इंतजार करते-करते उसके पिता की
आँखें पथरा गई
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