up board class 10 science chapter प्रकाश का परावर्तन
इकाई-1: प्रकाश
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न
प्रश्न—- 1. प्रकाश के परावर्तन से क्या अभिप्राय है? इससे संबंधित परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर- प्रकाश का परावर्तन– जब प्रकाश-किरण किसी माध्यम से चलती हुई किसी चमकदार तल पर आपतित होती है तो वह तल से टकरा कर उसी माध्यम में वापस लौट आती है। यह प्रकाश का परावर्तन कहलाता है; जैसे–प्रकाश का किसी दर्पण से टकराकर वापिस उसी माध्यम में वापस लौटना।

प्रकाश जिस तल से टकराकर परावर्तित होता है, वह तल परावर्तक परावर्तक तल (दर्पण) तल कहलाता है। तल से टकराने वाली किरण आपतित किरण तथा टकराने के बाद उसी माध्यम में लौटती किरण परावर्तित किरण कहलाती है। तल के जिस बिंदु पर आपतित किरण टकराती है, उस बिंदु पर तल से खींचा गया लंब अभिलंब कहलाता है। AO आपतित किरण, OB परावर्तित किरण तथा ON अभिलंब को प्रदर्शित करती है।
किसी तल से परावर्तित प्रकाश की मात्रा उस तल की प्रकृति पर निर्भर करती है। इसलिए किसी पॉलिश युक्त चिकने पृष्ठ से हो रहे परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते हैं तथा इसमें परावर्तित प्रकाश की मात्रा पॉलिशदार तल के अनुसार अधिकतम होती है। किसी खुरदरे पृष्ठ से हो रहे परावर्तन को विसरित या अनियमित परावर्तन कहते हैं। किसी समतल तल से परावर्तन के दो नियम निम्न प्रकार हैं
(i) प्रथम नियम- तल के अभिलंब तथा आपतित किरण के बीच का कोण तथा तल के अभिलंब तथा परावर्तित किरण के बीच का कोण बराबर होते हैं, या
आपतन कोण ∠i = परावर्तन कोण ∠r
(ii) दूसरा नियम- आपतित किरण, अभिलंब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में होते हैं। इस तल को आपतन तल कहते हैं |
प्रश्न 2. प्रकाश के परावर्तन के नियम लिखिए। पार्श्व उत्क्रमण से क्या तात्पर्य है? अंग्रेजी के किन अक्षरों में पार्श्व उत्क्रमण का अनुभव नहीं होता?
उत्तर- प्रकाश के परावर्तन के नियम- प्रकाश के परावर्तन के निम्नलिखित दो नियम हैं
(i) प्रथम नियम- तल के अभिलंब एवं आपतित किरण के बीच बना कोण तथा परावर्तित किरण एवं तल के अभिलंब के बीच बना कोण बराबर होते हैं, अर्थात्
आपतन कोण ∠i = परावर्तन कोण ∠r
(ii) द्वितीय नियम- आपतित किरण, अभिलंब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में होते हैं। इस प्रकार के तल को आपतन तल कहते हैं।
पार्श्व उत्क्रमण– जब हम अपना प्रतिबिंब समतल दर्पण में देखते हैं तो हमारा दायाँ हाथ प्रतिबिंब का बायाँ हाथ दिखाई पड़ता है तथा हमारा बायाँ हाथ प्रतिबिंब का दायाँ हाथ दिखाई पड़ता है इस प्रकार वस्तु के प्रतिबिंब में पार्श्व बदल जाते हैं। इस घटना को पार्श्व उत्क्रमण कहते हैं। यह कथन छपे अक्षरों से स्पष्ट होता है। यदि हम अक्षर छपे कागज को दर्पण के सामने रखकर पढ़े तो अक्षर उल्टा दिखाई देता है। माना कि E आकार की वस्तु समतल दर्पण M के सामने रखी है। वस्तु के बिंदु A का प्रतिबिंब A’ दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर दर्पण के सामने A है। इसी प्रकार अन्य बिंदुओं B तथा C के प्रतिबिंब बनते हैं। वस्तुओं के सभी बिंदुओं के प्रतिबिंबों को ज्ञात करके बनने वाले प्रतिबिंब को प्राप्त किया जा सकता है। यह प्रतिबिंब वस्तु के आकार का बनता है परंतु उसमें पार्श्व बदल जाते हैं।

सममिति के कारण अंग्रेजी के अक्षरों A,H,I,M,O,T,U,V,W,X,Y के दपर्ण से बने प्रतिबिंबों में पार्श्व उत्क्रमण का अनुभव नहीं होता, यद्यपि इसमें भी पार्श्व उत्क्रमण होता है।
प्रश्न 3. समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब का बनना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – माना M, M, एक समतल दर्पण है तथा 0 एक – AC बिंदु-वस्तु है। दर्पण द्वारा बने 0 के प्रतिबिंब की स्थिति ज्ञात करने के लिए, हम दो आपतित किरणें OA तथा OB लेते हैं। किरण OA, दर्पण पर लंबवत् गिरती है अर्थात् इसके लिए आपतन कोण शून्य है। अतः परावर्तन कोण भी शून्य होगा। अत: यह किरण परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग पर वापस लौट जाती है। अर्थात् AC परावर्तित किरण है। दूसरी आपतित किरण OB, दर्पण के बिंदु B पर गिरती है। बिन्दु B पर अभिलंब BN खींचा गया है। अब बिंदु B पर आपतन कोण के बराबर परावर्तन कोण बनाते हुए, परावर्तित किरण BD खींच लेते हैं। दोनों परावर्तित किरणे AC तथा BD पीछे बढ़ाई जाने पर I पर मिलती हैं। अत: ये बिंदु I से आती हुई प्रतीत होती है, इस प्रकार I, बिंदु 0 का आभासी प्रतिबिंब है।
आपतन कोण OBN = परावर्तन कोण NBD
परन्तु कोण OBN = कोण AOB (एकांतर कोण)
कोण NBD = कोण AIB (संगत कोण)
अतः कोणAOB = कोण AIB
अब त्रिभुजों AOB तथा AIB में
LAOB = ZAIB
कोण OAB = कोण IAB (प्रत्येक समकोण)
भुजा AB उभयनिष्ठ है, इस प्रकार दोनों त्रिभुज सर्वांगसम हैं।
A0 = IA अतः स्पष्ट है कि समतल दर्पण द्वारा वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के ठीक पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने है। यदि हम वस्तु को दर्पण से दूर हटाए या पास ले जाए तो प्रतिबिंब भी उतनी ही दूर दर्पण से हट जाएगा या दर्पण के पास आ जाएगा। यदि हम किसी वेग से दर्पण की ओर भागे या दर्पण से दूर दौड़े तो हमें अपना स्वयं का प्रतिबिंब दुगुने वेग से अपनी ओर आता अथवा अपने से दूर जाता प्रतीत होगा |
प्रश्न 4. गोलीय दर्पण किसी कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक के उपयोग लिखिए ।
उत्तर- गोलीय दर्पण- गोलीय दर्पण काँच के खोखले गोले का काटा गया भाग होता है। इसके एक तल पर पारे की कलई तथा लाल-ऑक्साइड का पेंट होता है। दूसरा तल परावर्तक तल होता है। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं(i) अवतल दर्पण (ii) उत्तल दर्पण।
(i) अवतल दर्पण- वह दर्पण जिसमें परावर्तन दबे हुए तल से होता है अर्थात् गोले का भीतरी तल परावर्तक तल होता है।

(ii) उत्तल दर्पण- वह दर्पण हैं जिसमें परावर्तन उभरे हुए तल से होता है अर्थात् गोले का बाहरी तल परावर्तक तल होता है।

अवतल दर्पण के उपयोग(— i) बड़ी फोकस दूरी तथा बड़े द्वारक का अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने के काम आता है।
मनुष्य अपने चेहरे को दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच में रखता है जिससे चेहरे का सीधा व बड़ा आभासी प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई देने लगता है।
(ii) डॉक्टर प्रकाश की किरणें छोटे अवतल दर्पण से परावर्तित करके आँख, दाँत,
नाक, कान, गले इत्यादि में डालते हैं। इससे ये अंग भली-भाँति प्रकाशित हो जाते
(iii) अवतल दर्पणों का उपयोग -टेबिल लैम्पों की शेडों में किया जाता है। जिससे प्रकाश
दर्पण से होकर अभिसारी हो जाता है और क्षेत्र को अधिक प्रकाश पहुँचाता हैं। (iv) अवतल दर्पणों का उपयोग मोटरकारों, रेलवे इंजनों में तथा सर्च लाइट के लैम्पों में
परावर्तक के रूप में होता है। लैम्प दर्पण के मुख्य फोकस पर होता है। अत: परावर्तन के पश्चात् प्रकाश एक समांतर किरण-पुंज के रूप में आगे बढ़ता है।
उत्तल दर्पण के उपयोग——(i) उत्तल दर्पण का उपयोग गली तथा बाजारों में लगे लैम्पों के ऊपर किया जाता है। प्रकाश दर्पण से परावर्तित होकर अपसारी किरण-पुँज के रूप में चलता है और _अधिक क्षेत्र में फैल जाता है। (ii) उत्तल दर्पण मोटरकारों में ड्राइवर की सीट के पास लगा रहता है। इसमें ड्राइवर
पीछे से आने वाले व्यक्तियों व गाड़ियों के प्रतिबिंब देख सकता है। ये उत्तल दर्पण
बहुत बड़े क्षेत्र में फैली वस्तुओं के प्रतिबिंब आकार में छोटे तथा सीधे दिखते हैं।
प्रश्न 5. गोलीय दर्पण से संबंधित निम्नलिखित की परिभाषा लिखिए
(a) दर्पण का ध्रुव, (b) मुख्य अक्ष, (c) वक्रता त्रिज्या, (d) वक्रता केंद्र,
(e) मुख्य फोकस, (f) फोकस दूरी, (g) फोकस तल।
उत्तर- (a) दर्पण का ध्रुव– गोलीय दर्पण के परावर्तक तल के मध्य बिंदु को दर्पण का धुव कहते हैं। इसको P से प्रदर्शित करते है।
(b) मुख्य अक्ष- दर्पण के वक्रता केंद्र तथा ध्रुव को मिलाने वाली रेखा को दर्पण का
मुख्य अक्ष कहते हैं।
(c) वक्रता त्रिज्या– उस गोले की त्रिज्या को जिसका कि दर्पण का एक भाग है, दर्पण
की वक्रता त्रिज्या कहते हैं। (d) वक्रता केंद्र- उस गोले के केंद्र को जिसका दर्पण एक भाग है, दर्पण का
वक्रता-केंद्र कहते हैं। यह अवतल दर्पण में परावर्तक तल की ओर तथा उत्तल
दर्पण में परावर्तक तल से दूसरी ओर होता है। इसे C से प्रदर्शित किया जाता है।
(e) मुख्य फोकस– गोलीय दर्पण की मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें दर्पण से
परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष पर स्थित जिस बिंदु से होकर जाती हैं अथवा जिस बिंदु से अपसारित होती हुई प्रतीत होती हैं, उस बिंदु को दर्पण का मुख्य फोकस कहते हैं। मुख्य फोकस को सामान्यतः केवल फोकस लिखा जाता है। इसे F से प्रदर्शित किया जाता है। (1) फोकस दूरी- दर्पण के ध्रुव से मुख्य फोकस तक की दूरी को दर्पण की फोकस दूरी कहते हैं। इसे fसे प्रदर्शित करते हैं। दर्पण का फोकस बिंदु F, ध्रुव P एवं वक्रता केंद्र C के ठीक बीच में होता है। यदि दर्पण की वक्रता त्रिज्या । हो तो
अत: फोकस दूरी, वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।
(g) फोकस तल- फोकस तल वह तल होता है, जो मुख्य फोकस में से होकर जाता है और मुख्य अक्ष के लंब रूप में होता है।
प्रश्न 6. प्रतिबिंब किसे कहते हैं? वास्तविक तथा आभासी प्रतिबिंब में क्या अन्तर है?
उत्तर- प्रतिबिंब- वस्तु के किसी बिंदु से दो या दो से अधिक प्रकाश की किरणें चलकर परावर्तन या अपवर्तन के पश्चात् जिस बिंदु पर जाकर मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती हैं, तो वह बिंदु पहले बिंदु का प्रतिबिंब कहलाता है। किसी वस्तु के विभिन्न बिंदुओं के प्रतिबिंबों को मिलाने पर उस वस्तु का प्रतिबिंब बन जाता है।
प्रतिबिंब दो प्रकार के होते हैं- (i) आभासी प्रतिबिंब, (ii) वास्तविक प्रतिबिंब (i) आभासी प्रतिबिंब- यदि किसी बिंदु वस्तु से चलने वाली किरणें परावर्तन या अपवर्तन के पश्चात् अपसारी हो जाती हैं तथा किसी बिंदु से आती हुई प्रतीत हों, तो वह आभासी प्रतिबिंब होगा। इस प्रतिबिंब को परदे पर नहीं लिया जा सकता है। यह वस्तु के सापेक्ष सीधा होता है। समतल दर्पण से सदैव आभासी प्रतिबिंब ही बनता है। वास्तविक प्रतिबिंब- यदि किसी वस्तु से चलने वाली किरणें परावर्तन या अपवर्तन के पश्चात् किसी दूसरे बिंदु पर जाकर वास्तव में मिलें, तो वह प्रतिबिंब वास्तविक प्रतिबिंब कहलाता है। वास्तविक प्रतिबिंब किरणों के वास्तव में एक-दूसरे को काटने के स्थान पर बनता है। इसे परदे पर भी बनाया जा सकता है। प्रायः अवतल व उत्तल दर्पण का प्रतिबिंब वास्तविक प्रतिबिंब बनता है। यह वस्तु के सापेक्ष उल्टा बनता है।
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