Up board class 10 social science chapter 30 देश की आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था
पाठ–30 देश की आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था
प्रश्न–1. आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कोई तीन उपाय सुझाइए।
उ०- प्रत्येक राष्ट्र को अपनी आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक उपाय करने पड़ते हैं। अत: भारत को भी इस कार्य के लिए अनेक साधनों एवं संगठनों का निर्माण करना पड़ा। भारत द्वारा अपनी आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अपनाए गए तीन प्रमुख संगठन निम्न हैं
(i) प्रादेशिक सेना (ii) सीमा सुरक्षा बल (iii) भारतीय तटरक्षक बल
प्रश्न—2. भारत की आंतरिक सुरक्षा की किन्हीं तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए ।
उ०- भारत की आंतरिक सुरक्षा की तीन चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं
(i) भाषावाद की समस्या (ii) संप्रदाय वाद की समस्या (iii) अलगाववाद की समस्या
प्रश्न—3. भारत की आंतरिक सुरक्षा की रणनीति के तीन उपाय बताइए।
उ०- भारत को विविध चुनौतियों का सामना करते हुए, अपनी आंतरिक सुरक्षा हेतु कारगर रणनीति बनाने की नितांत आवश्यकता
है। भारत में अशिक्षा, निर्धनता, विषमता और बेरोजगारी की समस्याएँ आंतरिक सुरक्षा की उचित रणनीति अपनाने के लिए बाध्य करती हैं। भारत की आंतरिक सुरक्षा की रणनीति के तीन उपाय निम्न प्रकार हैं(i) राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य तय करना । (ii) संपूर्ण क्षेत्रों में समान रूप से विकास और प्रगति की धारा प्रवाहित करना । (iii) समाज के सभी वर्गों और संप्रदायों को लाभ के समान अवसर जुटाना |
प्रश्न—4 असम राइफल्स के विषय में संक्षेप में बताइए ।
उ०- असम राइफल्स की स्थापना सन् 1935 ई० में लूटपाट करने वाली जनजातियों से ब्रिटिश बस्तियों और चाय बगानों की
सुरक्षा के लिए कैशर लैवी के रूप में की गई थी। वर्ष 1833 में इसका नाम बदलकर ‘फ्रंटियर पुलिस’ रखा गया। वर्ष 1917 में इसे ‘असम राइफल्स’ नाम दिया गया। यह ग्रह मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाला ‘केंद्रीय सशस्त्र बल’ है। यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ अन्य कार्य भी करता है। वर्तमान समय में असम राइफल्स में 46 बटालियन हैं।
इसका मुख्यालय शिलांग में है। इसका आदर्श वाक्य है- ‘पहाड़ी लोगों का मित्र ।”
प्रश्न— 5. प्रादेशिक सेना पर एक टिप्पणी लिखिए ।
उ०- प्रादेशिक सेना- भारत में प्रादेशिक सेना का गठन 9 अक्टूबर, 1949 ई० को किया गया था। प्रादेशिक सेना नागरिकों का स्वैच्छिक सैन्य संगठन है। इसके अंतर्गत उन नागरिकों को जोड़ा जाता है, जो स्वेच्छा से अपनी अल्पकालीन सेवाएँ देश की रक्षा में अर्पित करने की इच्छा रखते हैं। इन नागरिकों को अवकाश के समय सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि आंतरिक सुरक्षा, युद्ध तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय उन्हें कार्यों में लगाया जा सके। संकटकाल में सामान्य सेवाओं के बाधित होने अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट आने के समय प्रादेशिक सेना नियमित सेना की तरह कार्य करके राष्ट्र सेवा में अपना अंशदान करती है ।
प्रश्न— 6. एन.सी.सी. को सुरक्षा सेवा की नर्सरी क्यों कहा गयाहै ??
उ०- एन.सी.सी. अर्थात् राष्ट्रीय कैडिट कोर शिक्षा प्राप्त कर रहे युवक एवं युवतियों का एक स्वैच्छिक संगठन हैं, जो अनुशासन
में रहकर शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। एन.सी.सी. नियमित सेना की पाठशाला के रूप में कार्य करती है तथा सेना को योग्य अधिकारी दिलाने में सहायक बनती है इसलिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने एन.सी.
सी. को सुरक्षा सेवा की नर्सरी कहा है।
प्रश्न– 7. “आतंकवाद एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है।” किन्हीं तीन तर्कों द्वारा स्पष्ट कीजिए ।
उ०- पर्यावरण प्रदूषण के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है। मध्य एशिया में उपजे धीरे-धीरे इसने समूचे विश्व को
अपनी चपेट में ले लिया है। आतंकवाद के अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन जाने के पीछे निम्न तीन कारण तक दिए जा सकते हैं(i) राजनीतिक स्वार्थ के कारण कुछ उन्मादी तथा गैर-सामाजिक लोग विश्वभर में आतंकवादी घटनाओं का संचालन कर रहे हैं।
(ii) सूचना एवं प्रौद्योगिकी तथा नए-नए घातक यंत्रों के आविष्कारों और उनकी सुलभता ने, आतंकवाद को समूचे विश्व में
फैलने का अवसर दिया है ।
(iii) जैविक, नाभिकीय तथा रासायनिक अस्त्र-शस्त्रों तक आतंकवादियों की पहुँच ने विश्वभर में भय और आतंक का
वातावरण बना दिया है।
प्रश्न—8. आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए तीन उपाय लिखिए ।
उ०- आतंकवाद को नियंत्रित करने के तीन उपाय निम्नलिखित हैं
(i) संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकवाद की समाप्ति के लिए प्रस्ताव पारित किया जाए।
(ii) समस्त राष्ट्र संयुक्त प्रयासों द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध कार्य योजना बनाए। (iii) अलगाववाद की आवाज उठते ही, उसे तुरंत दबा दिया जाना चाहिए।
Up board class 10 social science chapter 30 देश की आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न—1. आंतरिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ बताइए।
उ०- आंतरिक सुरक्षा का अर्थ- राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में शांति और व्यवस्था के साथ नागरिकों की जान-माल की
सुरक्षा की व्यवस्था आंतरिक सुरक्षा कहलाती है। अलगाववाद, आतंकवाद के साथ-साथ राष्ट्र के असामाजिक तत्व आंतरिक सुरक्षा में बाधा पहुँचाते हैं। आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्र के आर्थिक विकास का सही मार्ग तथा बाह्य सुरक्षा की पक्की नींव होती है। इसी नींव पर राष्ट्र की सामरिक सुरक्षा का किला बनाया जाता है। आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने में सरकार के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक को भी सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता होती है। सरकार द्वारा किए गए सुरक्षा उपायों के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक के राष्ट्रभक्त और जागरूक होने से राष्ट्र सशक्त और सुरक्षित बनता है। आंतरिक सुरक्षा समाज में भाईचारा, शांति, सहयोग और सौहार्द का वातावरण उत्पन्न कर प्रत्येक नागरिक को आर्थिक विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करती है।
आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ- राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। भारत जैसे विशाल क्षेत्रफल वाले देश के समक्ष ये चुनौतियाँ अधिक विकट बन जाती हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा अरुणाचल प्रदेश से लेकर गुजरात तक भारत में विविध जातियों, धर्मों, संप्रदायों और भाषा-भाषी लोगों का जमघट होने के कारण भारत को क्षेत्रवाद, भाषावाद और सांप्रदायिकता का संकट झेलना पड़ता है। भाषावाद, क्षेत्रवाद और सांप्रदायवाद का टकराव राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा पर प्रहार कर, उसे छिन्न-भिन्न करने में लगा रहता है। सीमापार से आने वाला आतंकवाद और घुसपैठियों का रेला भारत की आंतरिक सुरक्षा को सदैव नष्ट करने पर तुला रहता है। भारतीयता का भाव, संपूर्ण देशवासियों को एकता के सूत्र में बाँधकर आतंकवाद की आँधी और घुसपैठियों से निपटने में सक्षम बनाता है। भारत हमारी माता है और हम इसकी संतान हैं। यही भाव कश्मीरी, पंजाबी, बंगाली, बिहारी, तमिल तथा केरलवासियों को भावात्मक सूत्र में बाँधकर आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने की प्रेरणा देता हैं। वर्तमान में भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ विद्यमान हैं(i) क्षेत्रवाद की समस्या
(ii) भाषावाद की समस्या
(iii) संप्रदायवाद की समस्या
(iv) अलगाववाद की भावना
(v) आतंकवाद की समस्या
(vi) पिछड़ेपन की समस्या
(vii) पड़ोसी देशों से असामाजिक तत्वों की घुसपैठ की समस्या
(viii) राजनीतिक दलों द्वारा जातिवाद और संप्रदायवाद को भड़काने की समस्या
उपर्युक्त सभी समस्याएँ भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न कर रही हैं।
. भारत में आंतरिक सुरक्षा के साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर—भारत की आंतरिक सुरक्षा के साधन- प्रत्येक राष्ट्र को अपनी आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक उपाय करने पड़ते हैं। अत: भारत को भी इस कार्य के लिए अनेक साधनों और संगठनों का निर्माण करना पड़ा। उसके द्वारा अपनाए गए साधनों को निम्नवत् वर्गीकृत किया जा सकता है |
(i) पारंपरिक साधन- आंतरिक सुरक्षा के पारंपरिक साधन वे हैं, जो प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं। हाँ, समयानुकूल
इनमें परिवर्तन और सुधार अवश्य होता है। ये साधन पुलिस बल, त्वरित कार्य बल (आर.ए.एफ), असम राइफल्स, होमगार्ड, सशस्त्र पुलिस, गुप्तचर शाखा तथा अपराध शाखा आदि हैं। पुलिस प्रशासन राज्य सरकार के अंतर्गत आता है। इसका पूरा संचालन पुलिस महानिरीक्षक द्वारा किया जाता है। त्वरित कार्य बल का कार्य सांप्रदायिक दंगों तथा उपद्रवों पर नियंत्रण पाना है। 1991 ई० में गठित यह बल एक प्रशिक्षित
और शस्त्र-सुसज्जित आक्रामक बल के रूप में कार्य करता है। दंगा समाप्त हो जाने पर यही बल कानून-व्यवस्था लागू कराकर बचाव तथा राहत कार्यों में भी सहयोग देता है। असम राइफल्स का गठन 1835 ई० में ‘कछार लेवी’ के नाम से पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कया गया था। यह बल ‘पर्वतीय लोगों का मित्र’ और ‘पूर्वोत्तर का प्रहरी’ कहलाता है। इसका मुख्यालय शिलांग में है। होमगार्ड शाखा का गठन 1946 ई० में नागरिक अशांति और सांप्रदायिक दंगों के नियंत्रण हेतु किया गया था। यह संगठन देश में हवाई हमला होने तथा प्राकृतिक आपदाओं के आने पर बचाव तथा राहत कार्य करता है।
गैर-पारंपरिक साधन- आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए समाज के दिव्यांग, असहाय, वृद्ध तथा बीमार लोगों की सहायता के लिए जो उपाय काम में लाए जाते हैं, उन्हें गैर-पारंपरिक साधन कहते हैं। गैर-परंपरागत साधनों को अपनाकर अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दिव्यांगों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़कर सामाजिक
असमानता और असंतोष को दूर किया जाता है। इन साधनों का उपयोग समय और आवश्यकतानुसार किया जाता है। जिस प्रकार देश की विस्तृत सीमाओं की सुरक्षा के लिए सशस्त्र सेनाओं का गठन किया जाता है उसी प्रकार देश की
आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था को मजबूत करने के लिए विभिन्न सुरक्षा संगठनों का गठन किया जाता है। भारत में गठित इन बलों का विवरण निम्नलिखित तालिका में दिया गया है
भारत की आंतरिक सुरक्षा में कार्यरत संगठनों की तालिका
संगठन का नाम | स्थापना वर्ष | मुख्यालय |
इंटेलीजेंस ब्यूरो | 1920 | नई दिल्ली |
असम राइफल्स | 1835 | शिलांग |
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल | 1939 | नई दिल्ली |
राष्ट्रीय कैडेट कोर (एन०सी०सी०) | 1948 | नई दिल्ली |
प्रादेशिक सेना | 1949 | नई दिल्ली |
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस | 1962 | नई दिल्ली |
होमगार्ड्स | 1946 | नई दिल्ली |
केंद्रीय जाँच ब्यूरो | 1963 | नई दिल्ली |
सीमा सुरक्षा बल | 1965 | नई दिल्ली |
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल | 1969 | नई दिल्ली |
भारतीय तटरक्षक बल | 1978 | नई दिल्ली |
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड | 1984 | नई दिल्ली |
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो | 1986 | नई दिल्ली |
रैपिड एक्शन फोर्स | 1991 | नई दिल्ली |
उपर्युक्त संगठनों में से कुछ महत्वपूर्ण संगठनों का वर्णन निम्नलिखित है
(i) प्रादेशिक सेना- भारत में प्रादेशिक सेना का गठन 9 अक्टूबर, 1949 ई० को किया गया था। प्रादेशिक सेना नागरिकों
का स्वैच्छिक सैन्य संगठन है। इसके अंतर्गत उन नागरिकों को जोड़ा जाता है, जो स्वेच्छा से अपनी अल्पकालीन सेवाएँ देश की रक्षा में अर्पित करने की इच्छा रखते हैं। इन नागरिकों को अवकाश के समय सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि आंतरिक सुरक्षा, युद्ध तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय उन्हें कार्यों में लगाया जा सके। संकटकाल में सामान्य सेवाओं के बाधित होने अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट आने के समय प्रादेशिक सेना नियमित सेना की तरह कार्य
करके राष्ट्र सेवा में अपना अंशदान करती है ।
(ii) सीमा सुरक्षा बल- सीमा सुरक्षा बल का गठन 1 दिसंबर, 1965 ई० को किया गया था। इसका मुख्य कार्य भारत की
अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की स्थायी सुरक्षा करना है। सीमा सुरक्षा बल का सर्वोच्च अधिकारी महानिदेशक होता है तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया है। सीमा सुरक्षा बल के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
(क) भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों में सुरक्षा की भावना को बनाए रखना ।
(ख) अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की बाढ़ रोकने के लिए घुसपैठ, तस्करी तथा अन्य अवैध गतिविधियों पर रोक लगाना ।
(ग) युद्ध के समय सेना के अनुपूरक के रूप में कार्य करना ।
(घ) आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने तथा असैनिक प्रशासन को बनाए रखने में सहयोग करना ।
(ङ) सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षात्मक कार्यवाही करने वाले अन्य बलों के साथ संपर्क एवं सहयोग बनाए रखना ।
(iii) भारतीय तटरक्षक बल- भारतीय तटरक्षक बल का गठन 18 अगस्त, 1978 ई० में समुद्री सीमाओं की सुरक्षा करने
के उद्देश्य से किया गया था। इसका प्रमुख अधिकारी डायरेक्टर जनरल स्तर का होता है। भारतीय तटरक्षक बल के तीन क्षेत्रीय कार्यालय क्रमशः मुंबई, चेन्नई तथा पोर्टब्लेयर में स्थापित किए गए हैं। इस बल के द्वारा मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं(क) समुद्री सीमा तथा सामुद्रिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करना । (ख) तट से दूर समुद्र में स्थित नौसैनिक अड्डों तथा द्वीपों की सुरक्षा करना ।
(ग) समुद्र में मछली पकड़ने गए मछुआरों की विपत्ति में सुरक्षा करना ।
(घ) सागरीय पर्यावरण तथा प्रदूषण पर नियंत्रण लगाना।
(ङ) तस्करों के विरुद्ध अभियान चलाने में सीमा शुल्क अधिकारियों का सहयोग करना ।
(iv) भारत-तिब्बत सीमा पुलिस- भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल की स्थापना 24 अक्टूबर, 1962 ई० को की गई थी, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया। इसका कार्यक्षेत्र लद्दाख के कराकोरम दर्रे से लेकर अरुणाचल प्रदेश के लिपुलेख दर्रे तक है ।
(v ) भारत में कैलाश पर्वत तथा मानसरोवर झील की पावन यात्रा इसी संगठन के संरक्षण में संपन्न कराई जाती है। केंद्रीय जाँच ब्यूरो- केंद्रीय जाँच ब्यूरो की स्थापना 1963 ई० में की गई थी, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया। यह केंद्र सरकार की मुख्य अन्वेषी संस्था है। इसका मुख्य कार्य राजनेताओं, सरकारी कर्मचारियों, संगठित गैंग तथा पेशेवर अपराधियों की धोखाधड़ी, गबन, रिश्वतखोरी तथा जालसाजी आदि आपराधिक कार्यों की जाँच करना है ।
(vi) केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल- केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल का गठन 1939 ई० में किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया। इस बल का मुख्य कार्य केंद्र तथा राज्य सरकारों को कानून और शांति व्यवस्था बनाने में सहयोग देना तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय बचाव तथा राहत कार्यों में मदद देना है ।
(vii) राष्ट्रीय कैडेट कोर- इसे एन.सी.सी. के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय कैडेट कोर की स्थापना 1948 ई० में की गई थी, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया। राष्ट्रीय कैडेट कोर शिक्षा प्राप्त कर रहे युवक एवं युवतियों का एक स्वैच्छिक संगठन है, जो अनुशासन में रहकर शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। राष्ट्रीय कैडेट कोर का आदर्श है- ‘एकता और अनुशासन’। इस संगठन के लक्ष्यों को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है
(क) शैक्षिक संस्थाओं से छात्र, छात्राओं का संगठन बनाना ।
(ख) युवा कैडेट्स को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान कराना।
(ग) कैडेट्स के अनुशासित शिविर लगाकर, उन्हें शस्त्र चलाने तथा राष्ट्र की सुरक्षा करने का व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना ।
(घ) युवकों में राष्ट्र प्रेम तथा राष्ट्र की सुरक्षा की भावना जगाना ।
(ङ) राष्ट्र पर युद्ध का संकट आ जाने पर द्वितीय सहायक सेना का गठन करना ।
(च) सैन्य प्रशिक्षण द्वारा युवक-युवतियों में अनुशासन जगाकर चरित्र-निर्माण करना । राष्ट्रीय कैडेट कोर नियमित सेना की पाठशाला के रूप में कार्य करती है तथा सेना को योग्य अधिकारी दिलाने में सहायक बनती है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय कैडेट कोर का महत्व इन शब्दों में व्यक्त किया था, “राष्ट्रीय कैडेट कोर (एन.सी.सी.) सुरक्षा सेवा की नर्सरी है।” अत: कहा जाता है कि राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा का मूलमंत्र यह है कि “भारत का प्रत्येक विद्यार्थी राष्ट्रीय कैडेट कोर का सदस्य बने, तभी एन.सी.सी. भारत की दूसरी रक्षा पंक्ति बनने में सफल हो सकेगी।”
प्रश्न —-3. सीमा सुरक्षा बल तथा एन.सी.सी. का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
उ०- उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या- 2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
प्रश्न —-4. आतंकवाद को जन्म देने के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं? आतंकवाद रोकने के चार उपाय सुझाइए।
उ०- आतंकवाद- भारत की आंतरिक सुरक्षा में सेंध लगाने में आतंकवाद कभी भी सक्रिय हो जाता है। आतंकवाद उन गैर -सामाजिक तथा धार्मिक उन्मादी नवयुवकों की भय और आतंकवादी गतिविधियों को कहा जाता है, जिनसे वे समाज तथा राष्ट्र में भय का वातावरण उत्पन्न करते हैं। प्रायः कुछ असामाजिक तत्व अपनी गैर कानूनी मांगों को पूरा करवाने के लिए हिंसा, लूटमार, आगजनी तथा बम विस्फोट करके, जो भय का वातावरण उत्पन्न करते हैं, उसे ही आतंकवाद कहा जाता है। प्रायः सामाजिक असमानताएँ, विषमताएँ और असंतोष आतंकवादियों को जन्म देते हैं, जिसका परिणाम ही आतंकवाद है। आतंकवाद की विशेषताएँ- आतंकवाद की पहचान, उसकी निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा हो जाती है
(i) कुछ गैर-सामाजिक लोगों द्वारा हिंसा फैलाना ।
(ii) राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु सामाजिक वातावरण को हिंसात्मक तथा विषाक्त बनाना ।
(iii) सरकार को धमकाने तथा अपनी गैर कानूनी माँगों को पूरा कराने के लिए हिंसा और अपहरण का सहारा लेना ।
(iv) विद्रोह के रूप में संघर्ष कराने, आग लगाने तथा बम विस्फोट द्वारा निर्दोष लोगों की हत्या करने जैसी घातक घटनाओं को जन्म देना ।
(v) अवैध तथा अमानवीय कार्य करने से भी न हिचकिचाना ।
(vi) राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खंड-खंड करने का प्रयास करना ।
(vii) हिंसा, लूटमार, बम-विस्फोट तथा खूनी संघर्ष करवाकर सत्ता परिवर्तन का प्रयास करना । आतंकवाद पर नियंत्रण- आतंकवाद समूचे विश्व के लिए विनाशक और मानवता के लिए कलंक बनकर उभरा है। अतः इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पनप रही समस्या का समाधान भी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से ही किया जाना चाहिए। आतंकवाद पर नियंत्रण लगाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए
(i) संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकवाद की समाप्ति के लिए प्रस्ताव पारित किया जाए ।
(ii) समस्त राष्ट्र संयुक्त प्रयासों द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध कार्य योजना बनाएँ। (iii) विश्व में आतंकवादियों को राष्ट्रों के संयुक्त अभियानों द्वारा कुचल डालने का प्रयास किया जाए ।
(iv) संयुक्त राष्ट्र संघ को शांति वाहिनी सेना की तरह, आतंकवाद विनाशनी सेना का गठन करके आतंकवाद तथा आंतकवादियों को कुचलने का प्रयास करना चाहिए ।
(v) अलगाववाद की आवाज उठते ही, उसे तुरंत कठोरता से दबा दिया जाना चाहिए ।
(vi) आतंकवाद की समस्या को हल करने में पक्षपात या तुष्टिकरण की नीति को दूर रखना चाहिए। (vii) गैर-सामाजिक और उन्मादी लोगों को सुधारने का भरपूर प्रयास करना चाहिए ।
(viii) आतंकवादी संगठनों को जड़ से नष्ट करके, आतंकवादियों को अस्त्र-शस्त्र सहित समर्पण करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
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