up board hindi class 10 full solution chapter 2 सूरदास का जीवन परिचय
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प्रश्न – 1 सूरदास के जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए ।
अथवा
कवि सूरदास का जीवन_परिचय एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए ।
महाकवि सूरदास का जीवन परिचय
सूरदास हिन्दी_साहित्य रुपी गगन के चमकते हुए नक्षत्र और भक्तिकाल की सगुणधारा के कृष्ण भक्ति शाखा के कवि हैं । इन्होंने अपनी संगीतमय वाणी से कृष्ण की भक्ति तथा बाल-लीलाओं के रस का ऐसा सागर प्रवाहित किया है, जिसको मथकर भक्तजन भक्ति रुपी अमृत और ग्यान प्राप्त करते हैं ।
जीवन परिचय –
महाकवि सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० ( वैशाख शुक्ल पंचमी संवत 1535) में आगरा से मथुरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था । कुछ विद्वान दिल्ली के निकट “सीही” ग्राम को भी इनका जन्म_स्थान मानते हैं। सूरदास जी जन्मान्ध थे | इस विषय में भी विद्वानों में कई मतभेद हैं । इन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का मानव स्वभाव का एवं प्रकृति का ऐसा सजीव वर्णन किया है, जो आँखों से प्रत्यक्ष देखे बिना सम्भव नहीं है । इन्होंने स्वयं अपने आपको जन्मान्ध कहा है । ऐसा इन्होंने लाक्षणिक रूप में अथवा ज्ञान चक्षुओं के अभाव के लिए भी कहा हो सकता है।
सूरदास की रुचि बचपन से ही भगवान् की भक्ति के गायन में थी । इनसे भक्ति का एक पद सुनकर पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया, और श्रीनाथजी के मन्दिर में कीर्तन का भार सौंप दिया । श्री वल्लभाचार्य जी के पुत्र श्री बिट्ठलनाथ जी ने “अष्टछाप” नाम से आठ कृष्ण भक्त कवियों का जो संगठन बनाया था | सूरदास जी इनमें सर्वश्रेष्ठ कवि थे । वे गऊघाट पर रहकर जीवनपर्यन्त कृष्ण की लीलाओं का गायन करते रहे ।
सूरदास जी की मृत्यु सन् 1583 ई० ( संवत 1640) में श्री बिट्ठलनाथ के सामने गोवर्द्धन की तलहटी में स्थित पारसोली नामक ग्राम में हुई । “” खंजन नैन रूप रस माते”” पद का गान करते हुए इन्होंने अपने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया ।
कृतियाँ – महाकवि सूरदास की निम्नलिखित तीन रचनाएँ ही उपलब्ध हैं
(1) सूरसागर – श्रीमद भगवत की कथा के आधार पर रचित किया गया सूरसागर जिसमें सवा लाख पद है | उनमें से अभी तक दस हजार पद ही उपलब्ध हो पाए है इनमें कृष्ण की बाल लीलाएं कृष्ण गोपी प्रेम क्रिसन गोपी संवाद गोपी विरह उद्धव गोपी संवाद आदि का सरल भाषा में वर्णन किया गया है सम्पूर्ण ‘सूरसागर’ एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाये जाते हैं तथा यही ग्रन्थ सूरदास की कीर्ति का स्तम्भ है।
(2) सूर-सारावली – इसमें कुल 1107 पद हैं ।
(3) साहित्यलहरी – इसमें 118 दृष्टिकूट पदों का संग्रह है । इस ग्रन्थ में किसी एक विषय की विवेचना नहीं हुई है, वरन मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गयी है। इसमें कहीं कहीं पर श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन हुआ है तथा कही कहीं पर महाभारत की कथा के अंशों की झलक देखने को मिलती है।
साहित्य में स्थान – भक्त कवि सूरदास का स्थान हिन्दी साहित्य में सूर्य के समान ही है ।
इसीलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा कहा गया है –
सूर सूर तुलसी शशी उड्डयन केशवदास |
अब के कवि खाद्धोत सम जहाँ तहां करत प्रकाश ||
अर्थात आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी कहते हैं,
सूरदास सूर्य, तथा तुलसीदास चन्द्रमा और केशवदास तारे के समान है
और आज कल के कवि जुगनू की तरह यहाँ वहाँ प्रकाश कर रहे हैं |
छात्र इसको जरुर देखें
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