Up Board Class 12th civics Chapter 11 Problems and Solutions of Tribes in India सरकार के अंग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका free pdf
सरकार के अंग---- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका (Problems and Solutions of Tribes in India)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1– जनजातीय कल्याण में स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए ।
उत्तर —- भारत में अधिकांश जनजातियों को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । इन समस्याओं को दूर करके ही इन जनजातियों का कल्याण हो सकता है । जनजातीय कल्याण में सरकार के अतिरिक्त अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । सरकार द्वारा जनजातियों के कल्याण हेतु चलाई जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन में ये संस्थाएँ अपना योगदान दे रही हैं । इसके अतिरिक्त ये संस्थाएँ इन जनजातियों के बीच रहकर उन्हें शिक्षा एवं रोजगार संबंधी सहायता भी प्रदान कर रही हैं ।
2– भारत में आदिवासियों की दो समस्याएँ लिखिए तथा उनके समाधान के उपाय भी बताइए ।
उत्तर —- भारत में आदिवासियों की दो प्रमुख समस्याएँ हैं
(i) अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्या
(ii) आर्थिक समस्या अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्या का समाधान करने के लिए सरकार द्वारा उनके शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं । आदिवासियों में शिक्षा का विकास करने के लिए नि:शुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा छात्रावास की सुविधाएँ प्रदान की गई हैं । जनजातियों की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार ने कुछ राज्यों में वनों से प्राप्त उत्पादों के विपणन के सम्बन्ध में विपणन विकास संघ एवं सहकारी समितियों की स्थापना की है ।
3– भारत में अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं की व्याख्या कीजिए और उनके समाधान हेतु आवश्यक उपायों पर
अपने सुझावदीजिए । अथवा भारत में अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर —- भारत में अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं
(i) आर्थिक समस्याएँ
(ii) औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ
(iii) सामाजिक समस्याएँ ।
(iv) राजनीतिक समस्याएँ
(v) अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्याएँ
(vi) धार्मिक समस्याएँ
(vii) हत्या एवं यौन शोषण की समस्याएँ
(viii) स्वास्थ्य तथा जनसंख्या की समस्याएँ
(ix) विस्थापन की समस्याएँ
(x) आवागमन तथा संचार की समस्याएँ अनुसूचित जनजातियों की उपर्युक्त समस्याओं को सरकार एवं जनसामान्य के संयुक्त प्रयासों से ही दूर किया जा सकता है ।
4– भारत में अनुसूचित जनजातियों की चार समस्याओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर —- उत्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-3 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
5– अनुसूचित जनजातियों की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर —- अनुसूचित जनजातियों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) प्रत्येक जनजाति का कोई न कोई कुलदेवता होता है और उस जनजाति के सभी लोग उस कुलदेवता की पूजा करना अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं ।
(ii) आदिवासी जनजाति के लोग अपने दैनिक प्रयोग में आने वाली सभी वस्तुओं का निर्माण प्रायः स्वयं करते हैं । अतएव कहा जा सकता है कि जनजाति आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होती है ।
(iii) एक जनजाति के सभी लोग एक समय में एक निश्चित भू-खण्ड में निवास करते हैं ।
(iv) प्रत्येक जनजाति अपना एक नेता निर्वाचित करती है और नेता के नियंत्रण में संगठित रहना अपना कर्त्तव्य मानती है ।
(v) एक जनजाति के सभी लोग आपस में मिलकर रहते हैं । जनजाति के लोगों में ‘हम’ की प्रबल भावना (संगठित होकर काम करने की भावना) पाई जाती है ।
(vi) एक जनजाति के लोग बाह्य शत्रु से युद्ध करने के लिए संगठित होते हैं और शत्रु पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं ।
(vii) आदिवासी जनजाति के सभी लोग अपनी ही जनजाति के अन्दर विवाह करते हैं । वस्तुतः जनजाति एक अन्तर्विवाही जन समूह होता है ।
(viii) भारतीय जनजातियों में युवा-गृह की संस्था भी पाई जाती है ।
(ix) जनजाति में उपजातियों जैसी श्रेणियों का अभाव पाया जाता है ।
(x) एक जनजाति के सदस्य अपने सांस्कृतिक तत्वों को मानते हैं और प्रायः एक जैसे रीति-रिवाजों का ही पालन करते हैं ।
6– अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार लिखिए ।
उत्तर —- अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार हैं
(i) अनुसूचित जातियों का सामाजिक रूप से पिछड़ापन ।
(ii) अनुसूचित जातियों का आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ापन ।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1– भारत की विभिन्न जनजातियों का उल्लेख करते हुए उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर —- भारत के विभिन्न राज्यों में पाई जाने वाली प्रमुख जनजातियाँ निम्नलिखित हैं
(i) असम—- असम में निम्नलिखित जनजातियाँ पाई जाती हैं—- (क) योनपास, (ख) मिजिस, (ग) आवास, (घ) खलास
और (ङ) उफलास ।
संविधान की छठी अनुसूची में उपबन्धों के अनुसार असम में संयुक्त खासी, जयन्तिया पहाड़ियों, गारो पहाड़ियों, मिजो
पहाड़ियों, उत्तर कचार पहाड़ियों तथा मिकिर पहाड़ियों में निवास करने वालों को आदिवासियों में सम्मिलित किया गया है ।
(ii) आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना—- आन्ध्र प्रदेश में जो जनजातियाँ पाई जाती है, उनमें चंचुस, कोंडा रेड्डी, कोडा कायू, जाहायुस, कोलस, नायक पोड तथा साखरस/साबारस आदि प्रमुख हैं ।
(iii) अरुणाचल प्रदेश—- अरुणाचल प्रदेश में निशी, उफला, निशोंग, हिलभिरी, आयातानी, खोबास आदि जनजातियाँ पाई जाती है ।
(iv) झारखण्ड—- झारखण्ड में खरिया, मुंडा, ओरांव, खरवार, कहार, विरहोर तथा संथाल आदि प्रमुख जनजातियाँ हैं । झारखण्ड में कुल तीस जनजातियाँ पाई जाती हैं ।
(v) कर्नाटक—- कर्नाटक राज्य में अलेरु, मालेरु आदि प्रमुख जनजातियाँ हैं ।
(vi) गुजरात—- गुजरात में भील, नायका अथवा नायकडा आदि प्रमुख जनजातियाँ हैं ।
(vii) महाराष्ट्र—- महाराष्ट्र में भील, हल्बा—-हल्बी, धोबा, हल्ला—-कोरटी, महादेव कोली, गोंड तथा ठाकुर आदि जनजातियाँ प्रमुख रूप से पाई जाती हैं ।
(viii) राजस्थान—- राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के रूप में भीलों का वास है परन्तु इसके अतिरिक्त मीणा, दामोर, राकारिया, गारसिया भी अधिक संख्या में निवास करती हैं ।
(ix) ओडिशा—- ओडिशा राज्य में आदिवासियों की 62 जातियाँ पाई जाती हैं ।
(x) पश्चिम बंगाल—- पश्चिम बंगाल में संथाल प्रमुख अनुसूचित जनजाति है ।
(xi) मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़—- मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में जनजातियों की संख्या 46 के लगभग है । भील, भिलाला, वरेला, परनिया, बैंगा, भारिया, भूमिया, हल्बा-हल्बी, कंवर-कनकार, धानका-पनगढ़ तथा सहरिया अन्य महत्वपूर्ण जनजातियाँ हैं ।
(xii) उत्तर प्रदेश—- उत्तर प्रदेश में थारू, बुक्सा, खरवार व माहीगीर जनजातियाँ अल्प संख्या में पाई जाती हैं ।
(xiii) उत्तराखण्ड—- उत्तराखण्ड में भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, थारू, राजि तथा कोल्टा जनजातियाँ पाई जाती हैं ।
(xiv) नागालैण्ड—- नागालैण्ड की प्रमुख जनजाति का नाम नागा है । यह जनजाति नागा पहाड़ियों, पटकोई की पहाड़ियों तथा अरुणाचल प्रदेश में निवास करती हैं ।
(xv) तमिलनाडु—- दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य की नीलगिरि तथा उटकमण्ड पहाड़ियों में टोडा जनजाति निवास करती है ।
भारत में जनजातियों की समस्याएँ—- भारत में जनजातियों की निम्नलिखित समस्याएँ हैं–
(i) आर्थिक समस्याएँ—- वर्तमान में भूमि तथा वन कानून भारतीय जनजातियों के लिए बहुत कठोर हैं । उन्हें आजीविका के लिए वनों के प्रयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है । वन अधिकारी, ठेकेदार तथा साहूकार इनका शोषण करते हैं । इस कारण जनजातियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई हैं तथा आर्थिक रूप से ये बहुत पिछड़ गए हैं । अधिकांश आदिवासी आधुनिक समय में भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं । आदिवासी उपयोजना, बीस सूत्री कार्यक्रम, केन्द्रीय सहायता तथा विशेष योजनाओं के बावजूद भी आदिवासियों की आय में गिरावट आ रही है ।
गरीबी दूर करने की आई० आर० डी० पी० योजना में छोटे तथा सीमान्त आदिवासी किसानों को सरकार व्यापार करने के गुण सिखा रही है । अशिक्षा तथा शहरी सभ्यता से दूर, जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों का आर्थिक शोषण अभी भी जारी है । वनों से प्राप्त नैसर्गिक सम्पदा के लिए ठेकेदारों, व्यापारियों तथा बिचौलियों द्वारा उनका भारी शोषण किया जाता है । वनोत्पाद (वनों से प्राप्त पदार्थ) जैसे चिरौंजी, शहद तथा महँगी वस्तुओं वस्तुओं का उचित मूल्य आदिवासियों को नहीं मिल पाता है । मध्य प्रदेश में चावल व्यापारियों की ऐसी लॉबी है, जिनका वनोत्पाद पर एकाधिकार स्थापित है । तेंदु पत्ते के व्यापार में ठेकेदारों का ऐसा जाल बिछा है कि आदिवासी कदम—-कदम पर ठगा महसूस करता है । लघु वन उत्पादों के मूल्य में जो वृद्धि की गई है, उसका लाभ इन लाखों आदिवासियों को न मिलकर चन्द बिचौलियों की तिजोरियों में बन्द होने लगा है ।
(ii) औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ—- औद्योगीकरण के नाम पर जो ढाँचा खड़ा किया जा रहा है, उससे सम्पूर्ण देश में बेदखल किए गए लोगों की आबादी काफी बढ़ चुकी है । चाहे कोयले की खाने हो या पनबिजली, बाँध हों या अन्य भारी कारखाने या उद्योग कुल मिलाकर उनका लाभ कुछ वर्ग विशेष के लोगों तक ही सीमित होकर रह गया है । जिस गरीब आदिवासी की जमीन से कोयला निकाला जाता है तथा विकास के लिए जिस निर्माण की बुनियाद रखी जाती है, उसमें आदिवासियों की भूमिका केवल ढाँचे के निर्माण तक ही सीमित रहती है । सैंकड़ों वर्षों से जिस जमीन से वह जुड़ा हुआ है, औद्योगीकरण के नाम पर उसे उस भूमि से वंचित कर दिया है ।
उसकी जमीन के बदले हर्जाने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की जाती । एक अधिसूचना के द्वारा (जिसे आदिवासी पढ़ नहीं सकता) जमीन सरकार की हो जाती है । आज यह सब स्वीकार करते हैं कि गाँव के छोटे किसान तथा आदिवासियों तक शासन द्वारा निर्धारित विकास का लाभ नहीं पहुंच पाता हैं । औद्योगीकरण के कारण इन क्षेत्रों में निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं
(क) अनैतिक कार्यों में वृद्धि, (ख) बेरोजगारी तथा गरीबी,
(ग) भारी संयंत्र के आस पास निवास करने वाले आदिवासियों के साथ सामाजिक तथा व्यावसायिक भेदभावपूर्ण व्यवहार,
(घ) जल प्रदूषण,
(ङ) भविष्य में पुनः बेदखली,
(च) आदिवासियों के जीवन में हस्तक्षेप,
(छ) शहरी अपराध जैसे डकैती और जुए की प्रवृत्ति में वृद्धि,
(ज) भूमि से वचिंत होना आदि ।
(iii) सामाजिक समस्याएँ—- भारतीय जनजातीय समाज में निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख रूप से पाई जाती हैं
(क) जनजातियों में बाल—-विवाह पाए जाते हैं ।
(ख) जनजातियों में पाए जाने वाले युवा—-गृहों में शिथिलता आ गई है और उनकी उपादेयता कम हो गई हैं ।
(ग) वधू—-मूल्य के कारण मौद्रिक अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक वृद्धि हुई हैं, जिससे जनजातियों में विवाहों में धन का अत्यन्त महत्व हो गया हैं ।
(घ) जनजातियों में गोत्रीय विवादों जैसी जटिलता पाई जाती है ।
(ङ) सामाजिक संगठन की समरूपता, श्रम विभाजन से समाप्त हो चुकी है, जिसके कारण जनजातियों का सामाजिक संगठन कमजोर हुआ है ।
(च) जनजातीय लोगों में मद्यपान का प्रचलन दीर्घकाल से चला आ रहा है । अतः मद्यपान से न केवल उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, बल्कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पारिवारिक कलह भी बढ़ गई हैं ।
(छ) जनजातियों में भौतिकवादी विश्व की चमक से वेश्यावृत्ति एवं विवाहेत्तर यौन संबंधों की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं ।
(iv) राजनीतिक समस्याएँ—- आदिवासियों में राजनीतिक जागरूकता प्रायः शून्य के बराबर थी, परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विभिन्न स्तरों पर आरक्षण, प्राथमिकता, प्रजातांत्रिक अधिकारों के अन्तर्गत चुनने एवं चुने जाने के अधिकार मिलने से आदिवासी भी शासन में भागीदारी निभाने लगे हैं, परिणामस्वरूप वे अपनी सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के प्रति जागरूक हो गए हैं । परन्तु इसके साथ ही अनेक जनजातियों में विद्रोह, संघर्ष एवं अलगाववादी विचारधारा का जन्म हुआ है । अनेक आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक, औद्योगिक तथा सामाजिक विकास के लिए अलग राज्यों की माँग होने लगी है । बिहार का विभाजन कर नवनिर्मित झारखण्ड तथा मध्यप्रदेश में नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राजनीतिक अलगाववादी प्रवृत्तियों के ही परिणाम कहे जा सकते हैं ।
(v) अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्याएँ—- जनजातियों की प्रमुख समस्याएँ अशिक्षा तथा निरक्षरता से संबधित हैं । इनमें निरक्षरता का प्रतिशत आज भी अन्य जातियों की तुलना में काफी अधिक है । अशिक्षा के कारण ही जनजातीय समाज अनेक कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं अनैतिक परम्पराओं में फंसे हुए हैं । वर्ष 1961 ई० में आदिवासी जनसंख्या का 8 – 5 प्रतिशत साक्षर थे, जिनकी संख्या 2001 ई० में बढ़कर 19–8% हो गई है । धार्मिक समस्याएँ—- जनजातियों में धर्म, जादू–टोने आदि का विशेष प्रचलन पाया जाता है । प्रायः बीमार व्यक्ति का इलाज टोने–टोटके से किया जाता है । बाह्य प्रभावों एवं सामाजिक संगठनों की सक्रियता के कारण अब जादू-टोने का असर कम होता सा दिखाई देता है ।
आदिवासियों में धर्मान्तरण की गम्भीर समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है । मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि अनेक पूर्वोत्तर राज्यों की 70 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या धर्मान्तरण करके ईसाई धर्म स्वीकार कर चुकी है । आदिवासियों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास की भूमिका के संदर्भ में संसद को धर्मान्तरण जैसे विषयों से जूझना पड़ता हैं । नियोगी समिति (1986 ई०) की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि मध्य प्रदेश में अमेरिका, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी तथा नार्वे आदि देशों द्वारा 29 करोड़ 27 लाख 39 हजार रुपए मिशन को उपलब्ध कराए गए । सन् 1986 ई० में धर्मान्तरण व मिशन के कार्य हेतु पूरे भारत के लिए विदेशी धन के आँकड़े 216 करोड़ 27 लाख रुपए बताए गए ।
(vii) हत्या एवं यौन शोषण की समस्याएँ—- संसद में यह स्वीकार किया गया है कि वर्ष 2004 ई० में सम्पूर्ण देश में आदिवासियों पर हिंसक मामलों की संख्या 20,000 से अधिक है । तेंदु पत्ता उद्योग के लिए बिचौलियों, दलालों तथा ठेकेदार द्वारा गरीब तथा असहाय युवतियों व महिलाओं का यौन शोषण करने के मामले भी प्रकाश में आए हैं ।
(viii) स्वास्थ्य तथा जनसंख्या की समस्याएँ—- अधिकांश जनजातियों को समुचित स्वास्थ्य–सेवाएँ उपलब्ध नहीं है, जबकि तराई क्षेत्रों, जंगलों आदि में अनेक प्रकार की बीमारियाँ पाई जाती हैं । सरकार ने कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले भी हैं, परन्तु वहाँ चिकित्सा–सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है । सफाई की कमी के कारण पोलियों, मलेरिया, हैजा, चेचक आदि बीमारियाँ बढ़ती रहती है । स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएँ उपलब्ध न होने से मृत्यु-दर बहुत अधिक हैं । इसके साथ ही कुछ जनजातियों जैसे भील, गोंड आदि से जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है और कोरवा एवं टोडा जनजातियों की जनसंख्या कम होती जा रही है ।
(ix) विस्थापन की समस्या—- आदिवासी क्षेत्रों में भारी संयन्त्रों की स्थापना, आदिवासियों के समक्ष विस्थापित होने की समस्या उत्पन्न कर देती है । उपलब्ध स्रोतों के अनुसार विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान भारत में 199 कल-कारखानों की स्थापना से 17 लाख ग्रामीण जनता को अपनी भूमि से विस्थापित होना पड़ा है, जिनमें आदिवासियों की जनंसख्या लगभग 8 लाख 10 हजार से अधिक थी । अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार की छठी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित 17 परियोजनाओं के कारण 43,328 आदिवासी परिवार अपनी जमीन से बेदखल किए जा चुके हैं ।
(x) आवागमन तथा संचार की समस्याए—- अधिकांश जनजातियाँ दुर्गम भौगोलिक स्थानों में रहती हैं, अत: उनका सम्पर्क आधुनिक समाज से बहुत कम हो पाता है । आधुनिक संचार एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हुआ है । इस प्रकार का वातावरण न होने के कारण जनजातियाँ विकास के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो पाती हैं ।
2– अनुसूचित जनजातियों से आप क्या समझते हैं? भारत में अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए ।
उत्तर —- आदिवासी अथवा अनुसूचित जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ—- आदिवासियों को जिन अन्य नामों से जाना जाता है उनमें वनवासी, पहाड़ी, आदिम जाति, वन्य जाति, अनुसूचित जनजाति तथा सर्वजीववादी प्रमुख है । अनुसूचित जनजातियों में केवल उन जनजातियों को रखा जाता है, जिनको संविधान की अनुसूची में सम्मिलित किया गया है । आदिवासी शब्द को मानवशास्त्र में एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो उसे अन्य जातियों से भिन्नता प्रदान करती है । इस समूह का एक अलग नाम होता है तथा इसमें रहने वाले आदिवासियों में एक ही प्रकार की संस्कृति पाई जाती है । यह जनजाति एक पृथक भौगोलिक क्षेत्र (सामान्यतः जंगलों, पहाड़ों या बीहड़ क्षेत्रों) में निवास करती है । प्रमुख विद्वानों ने इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है
“जनजाति से हमारा तात्पर्य आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो सामान्य भाषा बोलता हो तथा बाह्य आक्रमणों से अपनी सुरक्षा करने के लिए संगठित हो । ————————————–बोआस “
एक ऐसा ग्रामीण समुदाय या ग्रामीण समुदायों का ऐसा समूह जिसकी सामान्य भूमि हो, सामान्य संस्कृति हो, सामान्य भाषा हो और जिस समुदाय के व्यक्तियों का जीवन आर्थिक दृष्टि से एक—-दूसरे के साथ जुड़ा हो, जनजाति कहलाता है । “——————————–जैकब्स एवं स्टर्न
“स्थानीय आदिवासियों के किसी भी ऐसे समूह को हम जनजाति कहते हैं जो एक सामान्य क्षेत्र में निवास करता हो, एक सामान्य भाषा बोलता हो तथा सामान्य संस्कृति के अनुसार व्यवहार करता हो । “—-गिलिन एवं गिलिन
भारत में अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ—- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—- 1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
3– भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए । उनकी दशा में सुधार लाने के लिए दो उपायों को लिखिए ।
उत्तर– भारत में जनजातियों की समस्याएँ—- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—- 1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए । जनजातियों की दशा में सुधार लाने के लिए दो उपाय निम्न हैं
(i) अनुसूचित जनजातियों को शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं । सरकार ने शिक्षा का विकास करने के उद्देश्य से आदिवासियों को निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा छात्रावास की सुविधाएँ प्रदान की हैं ।
(ii) विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में आदिवासियों के विकास तथा कल्याण से संबंधित अनेक कार्यक्रमों तथा योजनाओं को स्थान दिया गया है । आदिवासी उपयोजना कार्यक्रम का लक्ष्य है – गरीबी को दूर करना । बीस सूत्री कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान गरीबी के विरुद्ध संघर्ष को दिया गया था । छठी योजनाकाल में पूरे देश में 27,59,379 आदिवासियों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था ।
4– भारत में जनजातियाँ मुख्यतः किन भागों में पाई जाती हैं? इनकी प्रमुख समस्याएँ क्या हैं? इनके समाधान के लिए सरकार की ओर से क्या उपाय किए जा रहे हैं?
उत्तर —- भारत में जनजातियाँ की समस्याओं के समाधान के उपाय—- अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं । इन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ साथ इनकी समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय भी किए गए हैं
(i) शासकीय सेवाओं में आरक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं ।
(ii) जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु कल्याण व सलाहकार अभिकरणों की स्थापना की गई हैं ।
(iii) सभी राज्यों में विकास एवं कल्याण कार्यक्रम संबंधी विभागों की स्थापना की गई हैं जो कि जनजातीय कल्याण कार्यों की देख रेख करते हैं ।
(iv) लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों में इनके लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं ।
(v) संवैधानिक संरक्षणों के क्रियान्वयन की जाँच हेतु संसदीय समिति का गठन किया गया है ।
(vi) अनुसूचित जनजातियों के बीच कार्य कर रहे गैर—-सरकारी स्वैच्छिक संगठनों को अनुदान प्रदान किया जाता है । (vii) अनुसूचित जनजातियों को शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं । सरकार ने शिक्षा का विकास करने के उद्देश्य से आदिवासियों को निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा छात्रावास की सुविधाएँ प्रदान की हैं ।
(viii) विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में आदिवासियों के विकास तथा कल्याण से संबंधित अनेक कार्यक्रमों तथा योजनाओं को स्थान दिया गया है । आदिवासी उपयोजना कार्यक्रम का लक्ष्य है–गरीबी को दूर करना । बीस सूत्री कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान गरीबी के विरुद्ध संघर्ष को दिया गया था । छठी योजनाकाल में पूरे देश में 27,59,379 आदिवासियों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था ।
(ix) पंचवर्षीय योजनाओं में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु विशेष प्रावधान किए गए हैं ।
(x) अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं और बच्चों के हित सुरक्षित करने के लिए केन्द्रीय कल्याण राज्यमन्त्री की अध्यक्षता में सलाहकार बोर्ड की स्थापना की गई है ।
(xi) वन से प्राप्त उत्पादों के विपणन के संबंध में सहकारी समितियों की स्थापना की गई है । मध्य प्रदेश में नई तेंदू पत्ता नीति के चलते ठेकेदारों के आदमी आदिवासियों का शोषण नहीं कर पाएंगे क्योंकि तेंदू पत्ता एकत्र कराने का कार्य सहकारिता के अन्तर्गत आ गया है ।
(xii) संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र वाले तथा राष्ट्रपति के निर्देश पर अनुसूचित आदिम जातियों वाले राज्यों में आदिम जाति के लिए सलाहकार परिषदों की स्थापना की व्यवस्था है । तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में ऐसी परिषदों की स्थापना की जा चुकी है । ये परिषदें आदिवासियों के कल्याण संबंधी विषयों पर राज्यपालों को परामर्श देती है ।
(xiii) कुछ राज्यों में भारतीय जनजातीय विपणन विकास संघ की स्थापना भी की गई हैं जिससे उनका आर्थिक शोषण कम किया जा सके ।
(xiv) राष्ट्रीय आदिवासी नीति 2006—-21 जुलाई, 2006 को केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नीति का मसौदा जारी किया गया जिसके अन्तर्गत आदिवासियों से संबंधित 23 मुद्दे हैं | आदिवासियों की जमीन छीनने, उनके विस्थापन व पुनर्वास, शिक्षा, सफाई, राज्यों के पेशा कानून को केन्द्रीय कानून के समान बनाना, लैंगिक भेदभाव के अधिकार को दूर करना, उनकी संस्कृति की सुरक्षा करने आदि पर बल तथा जंगल की जमीन पर आदिवासियों के अधिकार को भी शामिल किया गया हैं ।
(xv) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की दृष्टि से सरकार द्वारा समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम आदि को आदिवासी क्षेत्रों में लागू किया गया है ।
(xvi) केन्द्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए संवैधानिक तथा कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू किया जा रहा है तथा इसके प्रभावशाली क्रियान्वयन पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है ।
5– सरकार द्वारा आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर —- उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—-4 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
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