Up Board Class 12th civics Chapter 12 Human Rights मानवाधिकार free pdf

Up Board Class 12th civics Chapter 12 Human Rights मानवाधिकार free pdf

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Principles of Origin of State

मानवाधिकार (Human Rights)

लघु उत्तरीय प्रश्न

1– मानवाधिकार का अर्थ एवं परिभाषा बताइए ।
उत्तर —- मानवाधिकार का अर्थ एवं परिभाषा—- मानव अधिकारों से अभिप्राय मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से हैं जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है । अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों, नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार ।

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (घ) के अनुसार, “मानवाधिकारों से तात्पर्य जीवन, स्वतंत्रता, समता एवं व्यक्ति की गरिमा से हैं जिन्हें संविधान द्वारा प्रत्याभूत किया गया अथवा जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में दिए गए हैं एवं भारतीय न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है । “

2– भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर —- भारत में मानवाधिकार की स्थिति—- देश के विशाल आकार और विविधता, विकासनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म—-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थति एक प्रकार से जटिल हो गई हैं । भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त हैं । संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने जाने की भी आजादी दी गई हैं ।

यह अक्सर मान लिया जाता है कि विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछूत जाति के सदस्य पीड़ित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं । हालांकि मानवाधिकार की समस्याएँ भारत में मौजूद हैं फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है । इन विचारों के आधार पर फ्रीडम हाऊस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है जिससे भारत ने स्वाधीन होने का व संभवत: उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित किया है ।

3– मानव अधिकारों का संक्षिप्त महत्व बताइए ।
उत्तर —- मानव अधिकारों का महत्व-— मानव अधिकार वह मौलिक तथा अन्यसंक्राम्य अधिकार है जो मनुष्य के जीवन के लिए अति आवश्यक है । मानव अधिकार ही मानव को समानता का अधिकार दिलाते हैं, यही उसे यह अहसास कराते हैं कि वह अन्य मानवों के समान हैं, चाहे वह किसी भी राष्ट्रीयता, प्रजाति या नस्ल धर्म लिंग का हो । मानव अधिकार हमारी प्रकृति में अन्तर्निहित है, इनके बिना हम मानवों की भाँति जीवित नहीं रह सकते । मानवीय अधिकार तथा मौलिक स्वतंत्रताएँ हमें अपने गुणों, ज्ञान प्रतिभा तथा अन्तर्विवेक का विकास करने में सहायक होते हैं जिससे हम अपनी भौतिक आध्यात्मिक तथा अन्य आवश्यकताओं की संतुष्टी कर सके । संविधान में वर्णित सभी मौलिक कर्त्तव्य की मानवाधिकारों की नींव हैं । इन मौलिक कर्तव्यों के अतिरिक्त सरकार ने अनेक कानून बनाए हैं जिनसे मानव को अपने मानव होने का अधिकार प्राप्त होता है ।

4– महिलाओं के हित के लिए बनाए गए किन्हीं दो प्रमुख अधिकारों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर —- महिलाओं के हित के लिए बनाए गए दो प्रमुख अधिकार निम्न हैं
(i) महिलाओं के राजनीतिक अधिकार
(ii) विवाहित महिलाओं के राष्ट्रीयता संबंधी अधिकार

5– बच्चों के हित के लिए बनाए किन्हीं दो प्रमुख अधिकारों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर —- भारतीय संविधान में बच्चों के हित के लिए बनाए गए दो प्रमुख अधिकार निम्न हैं
(i) 6—-14 वर्ष की आयु समूह वाले सभी बच्चों को अनिवार्य और निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार ।
(ii) 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को किसी भी जोखिम वाले कार्य से सुरक्षा का अधिकार ।

6– बच्चों के अधिकारों की घोषणा (1959) में उल्लिखित किन्हीं 5 सिद्धान्तों को लिखिए ।
उत्तर —- बच्चों के अधिकारों की घोषणा (1959 ई०) में उल्लिखित 5 सिद्धान्त जो बच्चों के कल्याण की संहिता के समान हैं, निम्नलिखित हैं
(i) बच्चे घोषणा में उल्लिखित सभी अधिकारों का उपभोग करेंगे । बिना किसी अपवाद के प्रत्येक बच्चा जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य मत, राष्ट्रीय या सामाजिक उत्पत्ति, सम्पत्ति, जन्म या अन्य प्रास्थिति, चाहे उसके या उसके परिवार के हों, के भेदभाव बिना इन अधिकारों का अधिकारी होगा ।


(ii) बच्चा विशेष संरक्षण का उपभोग करेगा तथा उसे विधि तथा उन साधनों द्वारा अवसर तथा सुविधाएँ दी जाएँगी जिससे उसका शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास स्वस्थ तथा साधारण ढंग से तथा स्वतंत्रता एवं गरिमा की दशाओं में हो सके । इस प्रयोजन के लिए कानून बनाए जाने में, बच्चों के सर्वोत्तम हित पर प्रमुख विचार होगा ।

(iii) जन्म से ही बच्चा एक नाम एवं राष्ट्रीयता का अधिकारी होगा ।
(iv) बच्चे सामाजिक सुरक्षा के हितों का लाभ उपभोग करेंगे । वह बढ़ने तथा स्वस्थ विकास का अधिकारी होगा तथा इस उद्देश्य से उसकी तथा उसकी माँ की जन्म से पूर्व एवं जन्म के बाद विशेष देखभाल एवं संरक्षण होगा ।
(v) बच्चे जो शारीरिक, मानसिक या सामाजिक रूप से असुविधाग्रस्त हैं उन्हें उनकी विशेष दशा के अनुसार विशेष उपचार, शिक्षा एवं देखभाल प्रदान की जाएगी ।

7– संविधान में वर्णित बच्चों के कोई दो प्रमुख अधिकार बताइए ।
उत्तर —- संविधान में वर्णित बच्चों के दो अधिकार निम्न हैं


(i) जीवन के रहन—-सहन के एक उपयुक्त प्रतिमान को पाने का अधिकार—- बच्चे के उपयुक्त शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विकास के लिए राज्य पक्षकार स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक बच्चा जीवन के रहनसहन का एक उपयुक्त प्रतिमान पाने का अधिकारी है । इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी माता—-पिता या बच्चे के लिए जो जिम्मेदार हैं उनकी है । राज्य पक्षकार अपनी राष्ट्रीय दशाओं एवं साधनों को ध्यान में रखते हुए माता–पिता या बच्चों के लिए जिम्मेदार लोगों की इस मामले में सहायता हेतु उपयुक्त उपाय करेंगे । (अनुच्छेद 27)

(ii) शिक्षा पाने का अधिकार—- प्रत्येक बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है तथा इस अधिकार की क्रमिक प्राप्ति के लिए तथा समान अवसर के आधार पर राज्य पक्षकार विशेषकर

(क) प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करेंगे तथा उसे सभी को निःशुल्क उपलब्ध कराएँगे;

(ख) विभिन्न प्रकार की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करेंगे;

(ग) उच्च शिक्षा प्रत्येक उपयुक्त साधनों से क्षमता के आधार पर सभी को अधिगम्य कराएँगे;

(घ) शैक्षिक एवं व्यावसायिक सूचना एवं मार्गदर्शन सभी बच्चों को उपलब्ध कराएँगे;


(ङ) स्कूलों में नियमित उपस्थिति को प्रोत्साहन करने के लिए तथा शिक्षा मध्य में छोड़ने के दर को न्यून करने के उपाय करेंगे । (अनुच्छेद 28)

8– बच्चों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर —- बच्चों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार—- बच्चे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा । इस अधिकार में सभी प्रकार की सूचना एवं विचार को खोजने, प्राप्त करने तथा देने का अधिकार सम्मिलित होंगे । यह अधिकार कुछ प्रतिबन्धों के अधीन हो सकता है परन्तु यह प्रतिबन्ध ऐसे होने चाहिए जो विधि द्वारा उपबन्धित हो तथा

(i) अन्य लोगों के अधिकार या प्रतिष्ठा के सम्मान के लिए या
(ii) राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण के लिए लोक व्यवस्था या लोक स्वास्थ्य या नैतिकता के लिए आवश्यक होना चाहिए । (अनुच्छेद 13)

9– विश्व मानवाधिकार दिवस पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए ।
उत्तर —- विश्व मानवाधिकार दिवस—- ‘विश्व मानवाधिकार दिवस’ सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मनाया जाता है । संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सन् 1948 ई० सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा—-पत्र स्वीकार किया था । तब से 10 दिसम्बर को प्रत्येक वर्ष मानवाधिकार दिवस के रूप में सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है । भारत में 28 सितंबर, 1993 ई० मानव अधिकार कानून अमल में आया । 12 अक्टूबर, 1993 ई० में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया ।
.मानवाधिकार, किसी भी इन्सान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है । अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानवीय अधिकारों को पहचान देने और वजूद को अस्तित्व में लाने के लिए तथा अधिकारों के लिए जारी हर लड़ाई को ताकत देने के लिए मनाया जाता है सम्पूर्ण विश्व में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों—-सितम को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई परवाज देने में इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

10– मानवाधिकारों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर —- मानवाधिकार के समक्ष चुनौतियाँ अथवा समस्याएँ—-दुनिया में विभिन्न देशों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मौद्रिक दशाएँ अलग-अलग हैं । लोग भौतिकता की दृष्टि से जितने आधुनिक हुए है उतने विचारों की दृष्टि से नहीं । यह विचार—-संकीर्णता हमें लोगों के अधिकारों का सम्मान करने से रोकती है स्त्रियों के प्रति सामूहिक भेद—-भाव विभिन्न समाजों एवं राष्ट्रों में आज भी हो रहा है । तानाशाही कानूनों का प्रचलन समाप्त नहीं किया जा सका है, वर्ग संघर्ष और अनावश्यक रक्तपात का दौर जारी है । ऐसे में जहाँ लोगों के जीने का अधिकार भी खतरे में पड़ जाता है तो वहाँ अन्य मानवाधिकारों, जैसे—- समानता, विचार अभिव्यक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता आदि के बारे में बातें करना भी व्यर्थ है ।

बाल मजदूरी, महिलाओं को यौन शोषण, धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, जातिगत भेद-भाव, लूट-पाट, बलात्कार आदि सभी बातें मानवाधिकारों के खिलाफ जाती हैं । दंगे-फसाद, आतंक व दहशत पर आधारित सामाजिक व्यवस्था में हमारे मूलभूत अधिकारों का हनन सर्वाधिक होता है । सबल सरकारी तंत्र अपने निहत्थे नागरिकों का उत्पीड़न करता है, तो मानवाधिकारवादी फिर किससे गुहार करें । जब निर्धन और असहाय व्यक्ति को मामूली अपराध में वर्षों जेल में सड़ना पड़ता है तब मानवाधिकारों की बात बेमानी हो जाती है । युद्धबंदियों को जब अमानवीय यातनाएँ दी जाती है तो मानवाधिकारों पर कुठाराघात होता है ।

कानूनी दाँवपेचों में फंसकर रह जाने वाला हमारा न्यायतंत्र उचित समय पर न्याय नहीं कर पाता है तो इसका कुफल भी आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है । समस्या का एक और पहलू यह है कि लोग मानवाधिकारों की व्याख्या अपने—-अपने ढंग से करते हैं । कई देशों में इसे लोगों के धार्मिक अधिकारों से जोड़कर अधिक देखा जाता है । कहीं—-कहीं व्यक्तियों के अधिकार धार्मिक कानूनों की आड़ में कुचल दिए जाते हैं । जनसंख्या बहुल देशों में पुलिस तंत्र समाज के दबे—-कुचलों पर अधिक कहर बरसाता है । बच्चों के अधिकार, अभिभावकों द्वारा कम कर दिए जाते हैं ।

11– मानवाधिकारों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों के समाधान पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर —- मानवाधिकार के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का समाधान—- संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग मानवाधिकारों के प्रति समर्पित होकर काम कर रहा है, विभिन्न देशों की सरकारों ने अपने यहाँ मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाएँ गठित की हैं । पूरी दुनिया के लोग मानवाधिकारों के बारे में जागरूक हो सकें, लोग अपने व दूसरों के अधिकारों को जाने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन संस्थाओं का गठन किया जा रहा है । आधुनिक समाज से नैतिक भावनाओं का शनैः—-शनै लोप होना भी मानवाधिकार के हनन के लिए जिम्मेदार तत्व बन गया है । धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद जैसे कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं ।

विश्व मानवाधिकार दिवस हमें इन बातों का चिंतन करने का अवसर प्रदान करता है । मानवाधिकारों के प्रति सम्मान केवल संयुक्त राष्ट्र संघ की चिन्ता का विषय नहीं है, विभिन्न सरकारों एवं वहाँ की आम जनता को भी इस संबंध में अपनी सक्रियता दिखानी होगी । एमनेस्टी इंटरनेशनल नामक संस्था मानवाधिकारों के मामले में प्रतिवर्ष अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करती है । वर्तमान भारत में शासन की जो भी नीतियाँ या राजनीतिक विचारधारा हो, जनता अपने कटु अनुभवों के कारण, मानव अधिकारों के संरक्षण की अधिक बेसब्री से माँग कर रही है । जनता चाहती है कि आर्थिक समानता के साथ राजनीतिक स्वतंत्रता एवं सक्रिय सहभागिता भी उसे प्राप्त हो । इसमें दो मत नहीं है कि मानव अधिकारों के संरक्षण के मार्ग में अनेक अवरोध और कठिनाइयाँ है ।

मानव अधिकारों के प्रति आदर और इनको साकार करने के लिए सदस्य राष्ट्रों को स्वयं स्वविवेक से पहल करने की अपेक्षा है । मानव अधिकारों का हनन रोकने के लिए बंधनकारी आदेश जारी करने का संयुक्त राष्ट्र के पास आज कोई अधिकार नहीं हैं परन्तु विद्यमान विषम परिस्थितियों में यह सुस्पष्ट होता जा रहा है कि केवल आदर्श के रूप में नहीं अपितु मानव जगत के अनुभवों के आधार पर आम आदमी की मानव अधिकरों के संरक्षण की माँग बढ़ती ही जानी है । इसकी आलोचनाओं का कुछ तो असर होता ही है । लेकिन जब हमारी आलोचना हो, तभी हम मानवाधिकारों के प्रति सजग हों, यह धारणा उचित नहीं है । विभिन्न राष्ट्रों को स्वयं अपने यहाँ की मानवाधिकारों की स्थिति की निरंतर समीक्षा करनी चाहिए तथा सुधारों के लिए तत्परता दिखानी चाहिए । हमें व्यक्तिगत स्तर पर अपनी जवाबदेही स्वीकार करनी ही होगी ।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

1– मानवाधिकार का अर्थ एवं परिभाषा बताइए तथा भारत में मानवाधिकार की स्थिति को भी स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर —- मानव अधिकारों से आशय व परिभाषा—- मानव अधिकारों से अभिप्राय मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से हैं जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है । अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों, नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार, काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार । आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाएँ समसामयिक इतिहास से संबंध है ।

द टवेल्स आर्टिकल्स ऑफ द ब्लैक फॉरेस्ट (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज माना जाता है । यह जर्मनी के किसान—-विद्रोह स्वाबियन संघ के समक्ष उठाई गई किसानों की माँग का ही एक हिस्सा है । ब्रिटिश बिल ऑफ राइट्स ने युनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्रवाइयों को अवैध करार दिया । सन् 1776 ई० में संयुक्त राज्य में और सन् 1789 ई० में फ्रांस में 18वीं शताब्दी के दौरान दो प्रमुख क्रांतियाँ घटी । जिसके फलस्वरूप क्रमश: संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी मनुष्य की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा का अभिग्रहण हुआ । इन दोनों क्रांतियों ने ही कुछ निश्चित कानूनी अधिकार की स्थापना की ।

कोई भी देश अपने “मानवाधिकारों’ को लेकर अक्सर विवाद में बना रहता है । ये समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि क्या वाकई में मानवाधिकारों की सार्थकता है । यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम तरह की विसंगतियों और विद्रूपताओं से भरा पड़ा है । किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, समानता और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार है । भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा भी देती हैं ।

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (घ) के अनुसार, “मानवाधिकारों से तात्पर्य जीवन, स्वतंत्रता, समता एवं व्यक्ति की गरिमा से हैं जिन्हें संविधान द्वारा प्रत्याभूत किया गया अथवा जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में दिए गए हैं एवं भारतीय न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है । ” भारत में मानवाधिकारों की स्थिति—-देश के विशाल आकार और विविधता, विकासनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म—-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई हैं । भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त हैं ।

संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने जाने की भी आजादी दी गई हैं । यह अक्सर मान लिया जाता है कि विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछुत जाति के सदस्य पीडित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं । हालांकि मानवाधिकार की समस्याएँ भारत में मौजूद हैं फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है ।
इन विचारों के आधार पर फ्रीडम हाऊस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है जिससे भारत ने स्वाधीन होने का व संभवत: उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित किया है ।

2– मानव अधिकारों के महत्व को विस्तारपूर्वक बताइए ।
उत्तर —- मानव अधिकारों का महत्व—- मानव अधिकार वह मौलिक तथा अन्यसंक्राम्य अधिकार है जो मनुष्य के जीवन के लिए अति आवश्यक है । मानव अधिकार ही मानव को समानता का अधिकार दिलाते हैं, यही उसे यह अहसास कराते हैं कि वह अन्य मानवों के समान हैं, चाहे वह किसी भी राष्ट्रीयता, प्रजाति या नस्ल धर्म लिंग का हो । मानव अधिकार हमारी प्रकृति में अन्तर्निहित है, इनके बिना हम मानवों की भाँति जीवित नहीं रह सकते । मानवीय अधिकार तथा मौलिक स्वतंत्रताएँ हमें अपने गुणों, ज्ञान प्रतिभा तथा अन्तर्विवेक का विकास करने में सहायक होते हैं जिससे हम अपनी भौतिक आध्यात्मिक तथा अन्य आवश्यकताओं की संतुष्टी कर सकें ।

संविधान में वर्णित सभी मौलिक कर्त्तव्य मानवाधिकारों की नींव हैं । इन मौलिक कर्तव्यों के अतिरिक्त सरकार ने अनेक कानून बनाए हैं जिनसे मानव को अपने मानव होने का अधिकार प्राप्त होता है, जैसे
(i) जनवध के अपराध को रोकने एवं दंडित करने का संविधान
(ii) युद्धबन्दियों के व्यवहार पर जेनेवा संविधान
(iii) व्यक्तियों के अवैध व्यापार तथा अन्य लोगों की वेश्यावृत्ति के शोषण के दमन पर अन्तर्राष्ट्रीय संविधान
(iv) दासता, दास व्यापार एवं दासता के समान संस्थाएँ व व्यवहार की समाप्ति का संविधान

(v) सभी प्रकारों के जातीय भेदभाव को समाप्त करने का अन्तर्राष्ट्रीय संविधान
(vi) खेलों में जातीय भेदभाव के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय संविधान (1985)
(vii) बन्धक बनाने या लिए जाने के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय संविधान (1979)
(viii) यंत्रणा एवं अन्य निर्दयी, अमानवीय या अपमानित करने वाले व्यवहार या दंड के विरुद्ध संविधान (1984)
(ix) रोजगार (या नियोजन) एवं उपजीविका (या पेशा) से भेदभाव से संबंधित संविधान

(x) शिक्षा में भेदभाव के विरुद्ध संविधान (xi) शरणार्थियों की प्रास्थिति का संविधान (1951)
(xii) राष्ट्रीयताहीन व्यक्तियों से संबंधित संविधान (1954)
(xiii) विराष्ट्रीयता को कम करने का संविधान (1961)
(xiv) सभी प्रवासी कामगारों एवं उनके परिवारों के सदस्यों के अधिकारों के संरक्षण का अन्तर्राष्ट्रीय संविधान (1990) (xv) अयोग्यता वाले व्यक्तियों के अधिकारों का संविधान
(xvi) जबरन गायब हुए व्यक्तियों के संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय संविधान (2006) आदि ।

विश्व में सभी मानवाधिकारों तथा अन्य मौलिक अधिकारों की सुरक्षा व उन्हें सुचारु रूप से संचालित करने हेतु समय समय पर अनेक संस्थाएँ बनाई गई हैं तथा आवश्यकता के अनुसार इनमें व्यापक परिवर्तन भी किए गए है । विश्व के भिन्न भिन्न राष्ट्रों द्वारा इन अधिकारों की सुरक्षा व संचालन के लिए बनाई गई प्रमुख संस्थाए हैं मानव अधिकार परिषद्, संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार कमीशन, भेदभाव को रोकने एवं अल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु उप—-कमीशन, महिलाओं की प्रास्थिति पर कमीशन, मानव अधिकारों का उच्च कमिश्नर, शरणार्थियों के लिए उच्च कमिश्नर, मानव अधिकारों का संयुक्त राष्ट्र केन्द्र आदि ।

3– महिलाओं के हित के लिए बनाए गए प्रमुख संविधानों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर —- महिलाओं के हित के लिए बनाए गए प्रमुख मानवाधिकार संविधान—- भारतीय संविधान के अन्तर्गत निर्मित सभी मानवाधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है । इन मानव अधिकारों में महिलाओं व बच्चों की आर्थिक, सामाजिक व सामाजिक दशा सुधारने का भरसक प्रयास किया गया है, जिसका परिणाम हम आज के बालकों व महिलाओं की भूतकाल से तुलना करने पर प्रत्यक्ष रूप में देख सकते हैं । भारत में महिलाओं एवं बच्चों के लिए बनाए गए मानवाधिकार संविधान निम्नलिखित हैं
(i) महिलाओं के राजनीतिक अधिकार का संविधान, 1952—- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के पुरुष एवं महिलाओं के समान अधिकारों के सिद्धान्त को कार्यान्वित करने की इच्छा रखते हुए तथा यह स्वीकार करते हुए कि प्रत्येक को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार है तथा प्रत्येक देश की लोक सेवा में प्रवेश पाने का अधिकार है तथा यह इच्छा करते हुए कि राजनीतिक अधिकारों के उपभोग में पुरुषों एवं महिलाओं की प्रास्थिति को संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुसार समान किया जाए, राज्य पक्षकारों ने महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों के संविधान (1952) को स्वीकार किया । इस अभिसमय के मुख्य उपबन्ध निम्नलिखित हैं
(क) महिलाओं को पुरुषों के समान तथा बिना किसी भेदभाव के सभी चुनावों में मतदान करने का अधिकार होगा । (अनुच्छेद 1)
(ख) राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत सभी जनता द्वारा चुने निकायों में महिलाएँ पुरुषों के समान तथा बिना किसी भेदभाव के चुने जाने की पात्रता प्राप्त होंगी । (अनुच्छेद 3)
(ग) महिलाएँ राष्ट्रीय विधि द्वारा स्थापित सभी लोक पद प्राप्त करने तथा लोक कार्य करने की पुरुषों के समान तथा बिना किसी भेदभाव के, अधिकारी होंगी । (अनुच्छेद 2)
संविधान के अनुच्छेद 4 में यह उपबन्धित किया गया है कि यह संविधान संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों तथा उन अन्य राज्यों, जिन्हें महासभा ने आमंत्रित किया है, हस्ताक्षर हेतु खुला रहेगा । संविधान का अनुसमर्थन के संलेख को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास जमा करके किया जा सकेगा । (अनुच्छेद 4)
संविधान उपर्युक्त वर्णित राज्यों के लिए सम्मिलन (accession) हेतु खुला रहेगा । (अनुच्छेद 5) छठे राज्य द्वारा अनुसमर्थन या सम्मिलन न किए जाने के उन्नीसवें (19) दिन अभिसमय विधिवत लागू हो जाएगा । (अनुच्छेद 6)

अब तक 115 देश इसके पक्षकार हो चुके थे ।

(ii) विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता का संविधान, 1957—- सन् 1949 ई० में महिलाओं की प्रास्थिति पर कमीशन ने यह मत व्यक्त किया कि विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता पर एक संविधान तैयार किया जाए तथा उसे अंगीकार किया जाए जिससे महिलाओं को राष्ट्रीयता के मामले में पुरुषों के समान समानता तो प्राप्त हो सके तथा उन्हें विवाह या विवाह—-विच्छेद से होने वाली विराष्ट्रीयता से बचाया जा सके । तत्पश्चात् कमीशन ने संविधान का प्रारूप तैयार किया तथा सन् 1957 ई० में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता पर संविधान को अंगीकार किया । इस संविधान में राज्य पक्षकारों ने निम्नलिखित प्रतिबद्धताएँ स्वीकार की हैं

(क) राज्य पक्षकार के राष्ट्रिकता वाली महिला तथा विदेशी के मध्य विवाह अथवा विवाह—-विच्छेद तथा न ही पति की राष्ट्रिकता में परिवर्तन से पत्नी की राष्ट्रिकता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । (अनुच्छेद 1)

(ख) राज्य पक्षकार की राष्ट्रिकता वाले पुरुष द्वारा किसी अन्य राज्य की राष्ट्रिकता प्राप्त करने या राष्ट्रिकता त्याग करने से ऐसे व्यक्ति की पत्नी की राष्ट्रिकता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा अर्थात् पत्नी अपनी राष्ट्रिकता कायम रख सकती है । (अनुच्छेद 2) (ग)

राज्य पक्षकार की राष्ट्रिकता वाले पुरुष की विदेशी पत्नी विशेषाधिकृत प्राकृतिकरण प्रक्रिया से पति की राष्ट्रिकता
प्राप्त कर सकती है । परन्तु ऐसी राष्ट्रिकता का प्रदान करना कुछ परिसीमाओं के अधीन हो सकता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा या लोक नीति के आधार पर लगाई जा सकती है । (अनुच्छेद 3, पैरा1)

(घ) वर्तमान संविधान ऐसे किसी कानून या न्यायिक अभ्यास पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा जिससे ऐसी राष्ट्रिकता वाले व्यक्ति की पत्नी प्रार्थना करके अधिकार के रूप में अपने पति की राष्ट्रिकता को प्राप्त कर सकती है । संविधान के अनुच्छेद 6 के अनुसार संविधान 6 राज्य संविधान पक्षकारों द्वारा अनुसमर्थन या सम्मिलन के संलेख जमा के करने के बाद 90 वें दिन लागू होना था । यह संविधान सन् 1958 ई० में लागू हो गया था । सन् 2013 ई० तक 74 देश इस संविधान के पक्षकार हो चुके थे ।

महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों की समाप्ति का संविधान, 1979—- जैसा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 1 तथा 55 में वर्णित है संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों में एक उद्देश्य लिंग आदि के भेदभाव के बिना मानव अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं की सार्वभौमिक प्रोन्नति करनी है । मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में भी यह उद्घोषित किया गया है कि प्रत्येक घोषणा में वर्णित सभी अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं का लिंग आदि भेदभावों के बिना प्राप्त होगा । महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव मानव गरिमा एवं समाज के कल्याण के विरुद्ध है तथा महिलाओं की समर्थताओं या संभाव्य शक्ति की पूर्ण प्राप्ति में बाधक है ।

7 नवम्बर, 1967 ई० को महासभा ने महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव की समाप्ति पर घोषणा पारित की थी । इस घोषणा के अनुच्छेद 1 में यह उद्घोषित किया गया कि महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव या पुरुषों की अपेक्षा उनकी समानता को कम करना या इनकार करना मौलिक रूप से अनुचित है तथा मानव गरिमा के विरुद्ध एक अपराध है । घोषणा के अनुच्छेद 2 के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव करने वाली विधियाँ, प्रथाएँ, विनियमनों, एवं अभ्यासों को समाप्त करने के सभी उपयुक्त उपाय किए जाएँगे तथा महिलाओं एवं पुरुषों के समान अधिकारों के लिए उपयुक्त विधिक संरक्षण स्थापित किया जाएगा । अनुच्छेद 5 के अनुसार, पुरुषों के समान महिलाओं को राष्ट्रीयता प्राप्त करने, परिवर्तित करने तथा कायम रखने का अधिकार होगा । महिलाओं द्वारा विदेशियों से विवाह करने पर स्वतः ही उनकी राष्ट्रीयता समाप्त नहीं होगी तथा न ही उनको अपने पति की राष्ट्रीयता लेने को विवश किया जाएगा ।

अनुच्छेद 6 के अनुसार, महिलाओं को सिविल विधि के क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार होंगे । उन्हें सम्पत्ति प्राप्त करने, उसका प्रशासन करने, उपभोग करने, व्ययन करने तथा उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकार है । अनुच्छेद 7 में उपबन्धित है कि दंड संहिताओं के सभी उपबन्ध जो महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं निरस्त किए जाएंगे । अनुच्छेद 8 के अनुसार, महिलाओं का सभी प्रकार का अवैध व्यापार, शोषण एवं वेश्यावृत्ति को समाप्त करने के लिए कानून समेत सभी उपयुक्त उपाय किए जाएंगे ।

अनुच्छेद 10 के उपबन्धों के अनुसार, आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में भी महिलाओं, चाहे वह विवाहित हों या अविवाहित, को पुरुषों के समान समानता के अधिकार दिए जाने के लिए सभी उपयुक्त उपाय किए जाएंगे । घोषणा के अन्तिम अनुच्छेद अर्थात् अनुच्छेद 11 में उपबन्ध हैं कि पुरुषों एवं महिलाओं के समान अधिकारों के सिद्धान्त की माँग की है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुरूप सभी राज्यों में कार्यान्वयन हो । अतः सरकारी, गैर—-सरकारी संस्थाओं एवं व्यक्तियों से अनुरोध किया जाता है कि वह इस घोषणा में उल्लिखित सिद्धान्तों के कार्यान्वयन अपनी शक्ति भर करें । अन्तत: 18 दिसम्बर, 1979 ई० संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर संविधान को अंगीकार किया ।

संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार, संविधान 20 राज्यों द्वारा अनुसमर्थन, सम्मिलन के संलेख जमा होने के 30 दिन बाद लागू होता था, इस आवश्यकता की पूर्ति सन् 1981 ई० में हो गई । 2 जून, 2012 ई० तक 187 देश इसके पक्षकार हो चुके थे । महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति का ऐच्छिक प्रोटोकॉल, 1999—- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस ऐच्छिक प्रोटोकॉल को 6 अक्टूबर, 1999 ई० को अंगीकार किया था । दसवें राज्य द्वारा अनुसमर्थन करने के बाद यह प्रोटोकॉल 22 दिसम्बर, 2000 ई० को लागू हो गया था । 30 मई, 2013 ई० तक 104 देश इसके पक्षकार हो चुके थे । भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किया है । इस संविधान में दो प्रकार की प्रक्रियाओं का उपबन्ध है
(i) व्यक्तिगत संसूचना प्रक्रिया, तथा () जांच प्रक्रिया ।
इस प्रकार संविधान में स्थापित समिति व्यक्तिगत शिकायतें सुन सकती हैं तथा उन पर विचार कर सकती है ।

4– निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(i) महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों का संविधान,1952
(ii) विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता का संविधान, 1957
(iii) महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति का संविधान,1979

उत्तर —- उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—-3 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।

5– बच्चों के हित के लिए बनाए गए प्रमुख अधिकारों का वर्णन कीजिए तथा इन अधिकारों के सुचारु रूप से संचालित
करने हेतु राज्य पक्षकारों के दायित्वों का भी वर्णन कीजिए ।

उत्तर —- संविधान में वर्णित बच्चों के अधिकार एवं उनके संचालन हेतु राज्य पक्षकारों के दायित्व
(i) जीवन का अधिकार—- प्रत्येक बच्चे के अन्तर्निहित जीवन के अधिकार को राज्य पक्षकार स्वीकार करते हैं । राज्य पक्षकार अधिकतम सीमा तक सम्भव बच्चे की उत्तरजीविता एवं विकास को सुनिश्चित करेंगे । (अनुच्छेद 6)

(ii) जन्म से एक नाम तथा राष्ट्रीयता प्राप्त करने का अधिकार—- बच्चे के जन्म के बाद उसका तुरन्त रजिस्ट्रीकरण किया जाएगा तथा जन्म से एक नाम तथा राष्ट्रीयता प्राप्त करने का अधिकार तथा जहाँ तक सम्भव हो उसे जानने तथा माता—-पिता द्वारा देखभाल किए जाने का अधिकार होगा । राज्य पक्षकार इन अधिकारों का कार्यान्वयन अपनी राष्ट्रीय विधि के अनुसार तथा इस क्षेत्र में सुसंगत अन्तर्राष्ट्रीय संलेखों के अन्तर्गत दायित्वों के अन्तर्गत करेंगे, विशेषकर जहाँ बच्चा अन्यथा राष्ट्रीयताहीन होता । (अनुच्छेद 7)

(iii) राष्ट्रिकता, नाम, पारिवारिक संबंध समेत अपनी पहचान परिरक्षित करने का अधिकार—- राज्य पक्षकार यह स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक बच्चे को राष्ट्रियता, नाम, बिना हस्तक्षेप के कानून द्वारा स्वीकृत पारिवारिक संबंध परिरक्षित करने का अधिकार है । जहाँ किसी बच्चे को उसके पहचान के सभी या कुछ तत्वों से अवैध रूप से वंचित कर दिया गया है, राज्य पक्षकार शीघ्रता से उसकी पहचान पुनः स्थापित करने के लिए उपयुक्त सहायता एवं संरक्षण प्रदान करेंगे । (अनुच्छेद8)

(iv) अपनी इच्छा के विरुद्ध अपने माता—-पिता से पृथक न किए जाने का अधिकार—- राज्य पक्षकार यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई बच्चा अपनी इच्छा के विरुद्ध उसके माता—-पिता से अलग न किया जाए । इसका केवल एक अपवाद यह है कि जहाँ न्यायिक पुनरीक्षण के अधीन बच्चे के सर्वोपरि हितों के कारण उसके माता—-पिता से पृथक किया जाता है । यदि कोई बच्चा माता—-पिता में से किसी एक या दोनों से पृथक किया गया है, राज्य पक्षकार ऐसे बच्चे के माता—-पिता से व्यक्तिगत या प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाए रखने के अधिकार का सम्मान करेंगे । (अनुच्छेद 9)

(v) बच्चे को अपने मामलों में अपने मत की स्वतंत्र अभिव्यक्ति करने का अधिकार—- जो बच्चे अपने मामलों में मत बनाने की क्षमता रखते हैं उन्हें अपने मतों को स्वतंत्रता से अभिव्यक्त करने का अधिकार होगा तथा उसकी आयु एवं परिपक्वता के अनुसार उसके मत को महत्व दिया जाएगा । इस प्रयोजन के लिए, न्यायिक एवं प्रशासनिक कार्यवाहियों में बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से या प्रतिनिधि या उपयुक्त निकाय के माध्यम से सुने जाने का अवसर प्रदान किया जाएगा । (अनुच्छेद 12 )

(vi) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार—- बच्चे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा । इस अधिकार में सभी प्रकार की सूचना एवं विचार को खोजने, प्राप्त करने तथा देने का अधिकार सम्मिलित होंगे । यह अधिकार कुछ प्रतिबन्धों के अधीन हो सकता है परन्तु यह प्रतिबन्ध ऐसे होने चाहिए जो विधि द्वारा उपबन्धित हो तथा (क) अन्य लोगों के अधिकार या प्रतिष्ठा के सम्मान के लिए या

(ख) राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण के लिए लोक व्यवस्था या लोक स्वास्थ्य या नैतिकता के लिए आवश्यक होना चाहिए । (अनुच्छेद 13)

(vii) विचार, अन्तःकरण एवं धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार—- राज्य पक्षकार बच्चे के विचार, अन्तःकरण एवं धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करेंगे । राज्य पक्षकार माता—-पिता तथा प्रयोज्य होने पर अभिवावक को बच्चे के इस अधिकार के प्रयोग करने पर निर्देश करने के अधिकारों एवं कर्तव्यों को सम्मान करेंगे । (अनुच्छेद 14)

(viii) संघ एवं शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता का अधिकार—- राज्य पक्षकार बच्चे के संघ बनाने एवं शान्तिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार करते हैं । इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबन्धों को छोड़कर जो विधि के अनुरूप हैं तथा प्रजातांत्रिक समाज में राष्ट्रीय सुरक्षा या लोक सुरक्षा, लोक व्यवस्था, लोक स्वास्थ्य या नैतिकता के संरक्षण या अन्य लोगों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए आवश्यक हो, अन्य प्रतिबन्ध नहीं लगाए जा सकते हैं । (अनुच्छेद 15)

(ix) गुप्तता, परिवार, गृह या पत्राचार तथा सम्मान या प्रतिष्ठा में मनमाने या अवैध हस्तक्षेप से स्वतंत्रता एवं विधि के संरक्षण का अधिकार—- किसी भी बच्चे की गुणता, परिवार, गृह या पत्राचार या सम्मान या प्रतिष्ठा में मनमाने या अवैध ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा । बच्चे को ऐसे हस्तक्षेप या अतिक्रमण के विरुद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है । (अनुच्छेद 16)

(x) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्रोतों से सूचना एवं सामग्री के प्रवेश एवं प्राप्त कराने का अधिकार—- बच्चे को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्रोतों से सूचना एवं सामग्री विशेषकर जिसका उद्देश्य उसके सामाजिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक कल्याण एवं उसके शारीरिक एवं मानसिक प्रोन्नति है, के प्रवेश एवं प्राप्त करने का अधिकार है । इस मामले में राज्य पक्षकार जनसम्पर्क साधन द्वारा सम्पादित किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य को स्वीकार करते हैं । (अनुच्छेद 17)

(xi) स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त होने वाले प्रतिमान के उपभोग करने का अधिकार—- राज्य पक्षकार यह स्वीकार करते हैं कि बच्चे को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त होने वाले प्रतिमान के उपभोग करने का अधिकार तथा बीमार होने पर उपचार तथा स्वास्थ्य के पुनः प्राप्त करने का अधिकार है । राज्य पक्षकार यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी बच्चे को स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में प्रवेश के अधिकार से वंचित न किया जाए । (अनुच्छेद 24)
(xii) सामाजिक सुरक्षा से लाभ उठाने का अधिकार—- संविधान के राज्य पक्षकार यह स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक बच्चे को सामाजिक सुरक्षा से लाभ उठाने का अधिकार है । सामाजिक सुरक्षा में सामाजिक बीमा भी सम्ििलत हैं । अपनी राष्ट्रीय विधि के अनुसार, राज्य पक्षकार इस अधिकार की पूर्ण प्राप्ति के लिए आवश्यक उपाय करेंगे । (अनुच्छेद 26)
.
(xiii) जीवन के रहन—-सहन के एक उपयुक्त प्रतिमान को पाने का अधिकार—- बच्चे के उपयुक्त शारीरिक, मानसिक,
आध्यात्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विकास के लिए राज्य पक्षकार स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक बच्चा जीवन के रहनसहन का एक उपयुक्त प्रतिमान पाने का अधिकारी है । इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी माता—-पिता या बच्चे के लिए जो जिम्मेदार हैं उनकी है । राज्य पक्षकार अपनी राष्ट्रीय दशाओं एवं साधनों को ध्यान में रखते हुए माता—-पिता या बच्चों के लिए जिम्मेदार लोगों की इस मामले में सहायता हेतु उपयुक्त उपाय करेंगे । (अनुच्छेद 27)

(xiv) शिक्षा पाने का अधिकार—- प्रत्येक बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है तथा इस अधिकार की क्रमिक प्राप्ति के लिए तथा समान अवसर के आधार पर राज्य पक्षकार विशेषकर
(क) प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करेंगे तथा उसे सभी को निःशुल्क उपलब्ध कराएँगे;
(ख) विभिन्न प्रकार की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करेंगे; (ग) उच्च शिक्षा प्रत्येक उपयुक्त साधनों से क्षमता के आधार पर सभी को अधिगम्य कराएँगे;
(घ) शैक्षिक एवं व्यावसायिक सूचना एवं मार्गदर्शन सभी बच्चों को उपलब्ध कराएँगे;
(ङ) स्कूलों में नियमित उपस्थिति को प्रोत्साहन करने के लिए तथा शिक्षा मध्य में छोड़ने के दर को न्यून करने के उपाय करेंगे । (अनुच्छेद 28)
(xv) विश्राम एवं अवकाश का अधिकार—- बच्चों को उनकी आयु के अनुसार खेलने एवं मनोरंजक कार्यकलापों को करने
हेतु तथा सांस्कृतिक जीवन एवं कलाओं में स्वतंत्रतापूर्वक भाग लेने के लिए राज्य पक्षकार स्वीकार करते हैं कि बच्चे को विश्राम एवं अवकाश प्राप्त करने का अधिकार होगा । (अनुच्छेद 31)

(xvi) आर्थिक शोषण तथा खतरनाक कार्यों आदि से संरक्षण का अधिकार—- राज्य पक्षकार यह स्वीकार करते हैं कि बच्चे
का अधिकार है कि उसे आर्थिक शोषण, खतरनाक कार्यों या उसकी शिक्षा में हस्तक्षेप करने वाले कार्यों या ऐसे कार्यों जिससे उसके स्वास्थ्य या शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक, नैतिक या सामाजिक विकास के लिए हानिकारक हैं, से उसे संरक्षित किया जाए । इस अधिकार के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य पक्षकार विधायनी, प्रशासनिक, सामाजिक एवं शैक्षिक उपाय करेंगे । इस उद्देश्य से तथा अन्तर्राष्ट्रीय संलेखों के उपबन्धों को ध्यान में रखते हुए राज्य पक्षकार विशेषकर निम्नलिखित करेंगे(क) नियोजन में प्रवेश की न्यूनतम आयु उपबन्धित करेंगे; (ख) नियोजन के उपयुक्त धन एवं दशाएँ निर्धारित करेंगे; (ग) वर्तमान अनुच्छेद के प्रभावी प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त दंड या अन्य अनुशास्तियाँ उपबन्धित करेंगे । (अनुच्छेद 32)


(xvii) लैंगिक शोषण एवं लैंगिक दुरुपयोग से संरक्षित किए जाने का अधिकार—- राज्य पक्षकारों ने संकल्प किया है कि वह बच्चों को सभी प्रकार के लैंगिक शोषण एवं लैंगिक दुरुपयोग से संरक्षित करेंगे । (अनुच्छेद 34)


(xviii) यंत्रणा या अन्य निर्दयी, अमानवीय या परिभ्रष्ट करने वाले व्यवहार या दंड न किए जाने का अधिकार—- राज्य पक्षकार यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी बच्चे को यंत्रणा नहीं दी जाएगी या उसके साथ अन्य निर्दयी, अमानवीय या परिभ्रष्ट करने वाला व्यवहार नहीं किया जाएगा या दंड नहीं दिया जाएगा । 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मृत्यु दंड या जीवनपर्यन्त कैद जिसमें नियुक्ति की कोई सम्भावना न हो, नहीं दी जाएगी ।

(xix) अवैध या मनमाने ढंग से स्वतंत्रता से वंचित न किए जाने का अधिकार—- किसी भी बच्चे को उसकी स्वतंत्रता से अवैध या मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाएगा । बच्चों की गिरफ्तारी, निरोध या कैद विधि के अनुरूप ही की जा सकेगी तथा ऐसा केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाएगा तथा कम से कम समय के लिए किया जाएगा (अनुच्छेद 37 (ख)) ।

प्रत्येक बच्चा जिसको स्वतंत्रता से वंचित किया गया उसके साथ मानवता का व्यवहार किया जाएगा तथा उसकी अन्तर्निहित गरिमा का सम्मान किया जाएगा (अनुच्छेद 37 (ग)) ।

प्रत्येक बच्चा जिसे उसकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया है उसे तुरन्त कानूनी तथा अन्य सहायता प्राप्त करने तथा स्वतंत्रता से वंचित किए जाने की वैधता को सक्षम एवं निष्पक्ष प्राधिकारी के समक्ष चुनौती देने का अधिकार होगा । (अनुच्छेद 37(घ))

(xx) दंड विधि के उल्लंघन के अभिकथित अभियुक्त बच्चों या उन बच्चों, जिन्होंने उल्लंघन किया है, के अधिकार राज्य पक्षकार यह स्वीकार करते हैं कि दंड विधि के उल्लंघन के अभिकथित अभियुक्त या जिन्होंने उल्लंघन किया है उनका अधिकार है कि उनके साथ व्यवहार बच्चों की गरिमा एवं मूल्य की भावना तथा मानव अधिकारों को एवं मौलिक स्वतंत्रताओं की प्रोन्नति से सुसंगत व्यवहार का अधिकार है । इस उद्देश्य से तथा अन्तर्राष्ट्रीय संलेखों को ध्यान में रखते हुए राज्य पक्षकार, विशेषकर निम्नलिखित सुनिश्चित करेंगे कि

(क) किसी भी बच्चे को उन कृत्यों या प्रतिविरतों के लिए दंड विधि का उल्लंघन करने का अभिकथित अभियुक्त या उल्लंधन करने वाला नहीं माना जाएगा यदि कृत्य या प्रतिविरति के समय वह राष्ट्रीय विधि या अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा निषिद्ध नहीं थे;

[8:26 AM, 10/23/2021] Rajkumar Singh: (ख) प्रत्येक बच्चा जो दंड विधि के उल्लंघन का अभिकथित अभियक्त या उल्लंघन करने वाला हैं उसे कम से कम निम्नलिखित गारंटियाँ प्राप्त हों

(अ) जब तक दोषी सिद्ध न हो उसे निर्दोष, प्रकल्पित या उपधारित किया जाए;

(ब) उसे तुरन्त तथा प्रत्यक्ष रूप से उसके ऊपर आरोपों की सूचना दी जाए;

(स) उसके मामले को बिना विलम्ब के एक सक्षम, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष अधिकारी या न्यायिक निकाय द्वारा विधि के अनुसार न्यायोचित ढंग से निर्णीत करवाया जाए;

(द) उसे अपराध या दोष की गवाही देने या अस्वीकार करने को विवश नहीं किया जाए;

(य) यदि यह समझा गया है कि उसने दंड विधि का उल्लंघन किया है तो इस निर्णय को एक उच्चतर सक्षम, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष प्राधिकार या न्यायिक निकाय से उसका पुनरीक्षण कराया जाए;

(र) यदि बच्चा प्रयोग की जाने वाली भाषा को नहीं समझता है तो उसे निःशुल्क भाषान्तर करने वाले की सहायता दी जाए;

(ल) कार्यवाही के सभी चरणों में उसका एकान्तता का पूर्ण रूप से सम्मान किया जाए। (अनुच्छेद 40)

6—मानवाधिकार के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ तथा इनके समाधान पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।

उत्तर – मानवाधिकार के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या – 10 के उत्तर का अवलोकन कीजिए । मानवाधिकार के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का समाधान- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या – 11 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।

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