संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam part – 6

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam
sanskrit anuvad ke niyam

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam part – 6

sanskrit anuvad ke niyam part – 6

स्मरण करें कुछ अव्यय शब्द और धातुएँ अव्यय –
२३ . आजकल = अद्यत्वे,
२४ . इस समय = इदानीम्, सम्प्रति,
२५ . इधर-उधर = इतस्ततः
२६ . तो = तर्हि, तु,
२७ . एक बार = एकदा,
२८ . कभी = कदाचित्,
२९ . इसलिए = अतः
३० . कभी = कदापि,
३१ . ठीक = सुष्टु समीचीनम्,
३२ . उसके बाद = तत्पश्चात्,
३३ . क्योंकि = कुतः !

स्मरण करें कुछ अव्यय शब्द और धातुएँ

अव्यय – ३४ . उस समय तदानीम्
३५ . किस समय कदानीम्
३६ . अगर = यदि
३७ . इस प्रकार = इत्थम् एवम्
३८ . अचानक = अकस्मात्
३९ . जैसे = = यथा
४० वैसे = तथा
४१ अवश्य अवश्यम्
४२ . निश्चय ही = निश्चयमेव, खलु
४३ . नहीं तो = अन्यथा
४४ . दूसरी जगह अन्यत्र ।

धातुएँ – २२ . कहना = कथ्, २३ . खाना = खाद्, २४ . खोदना = खन्, २५ . चुराना = चुर्, २६ . छूना = सृश्, २७ देखना = दृश् (पश्य), २८ . . नाचना = नृत्, २९ . त्यागना = त्यज्, ३० . रहना = वस्, वस्, ३१ . चिल्लाना क्रन्द्।

धातुएँ – ३२ . ढोना = वह् ३३ . फेंकना = क्षिप् ३४ . फलना = फल् ३५ . = आना = आ + गम् (आगच्छ) ३६ . छोड़ना = मुञ्च् ३७ . उठना = उत् + स्था (उत्तिष्ठ) ३८ . दौड़ना = धाव् ३९ . बोना = वप् ४० भजन करना = भज् ४१ . यजन करना = यज्

इन धातुओं के रूप बिना देखे, लिखें और मिलाएँ, कोई गलती तो नहीं हुई

१० भ्रमति भ्रमतः भ्रमन्ति
भ्रमसि भ्रमथ: भ्रमथ
भ्रमामि भ्रमाव: भ्रमामः

१२ – गच्छति गच्छतः गच्छन्ति
गच्छसि गच्छथः गच्छथ
गच्छामि गच्छावः गच्छामः

१४ – करोति कुरुतः कुर्वन्ति
करोषि कुरुथ: कुरुथः
करोमि कुर्व: कुर्मः

१६ – तिष्ठति तिष्ठतः तिष्ठन्ति
तिष्ठसि तिष्टथ: तिष्ठथ
तिष्ठामि तिष्ठावः तिष्ठामः

११ – भवति भवतः भवन्ति
भवसि भवथः भवथ
भवामि भवावः भवामः

१३ -ददाति दत्त : ददति
ददासि दत्थः दत्थ
ददामि दद्वः दद्मः

१५ – पचति पचतः पचन्ति
पचसि पचथ: पचथ
पचामि पचाव: पचाम:

१७ – अस्ति स्तः सन्ति
असि स्थ: स्थ
अस्मि स्वः स्मः

१८ – जयति जयतः जयन्ति
जयसि जयथ: जयथ
जयामि जयावः जयामः

२० – नमति नमतः नमन्ति
नमसि नमथः नमथ
नमामि नमावः नमामः

१९ – पिबति पिबत: पिबन्ति
पिबसि पिबथ: पिबथ
पिबामि पिबावः पिबाम:

२१ – इच्छति इच्छतः इच्छन्ति
इच्छसि इच्छथः इच्छथ
इच्छामि इच्छावः इच्छामः

२२ . कथयति कथयतः कथयन्ति
कथयसि कथयथः कथयथ
कथयामि कथयावः कथयामः

२३ . खादति खादतः खादन्ति
खादसि खादथः खादथ
खादामि खादाव: खादामः

२४ . खनति खनतः खनन्ति
खनसि खनथः खनथ
खनामि खनावः खनाम:

  • २५ . चोरयति चोरयतः चोरयन्ति
    चोरयसि चोरयथ: चोरयथ
    चोरयामि चोरयाव: चोरयामः

२६ . स्पृशति स्पृशतः स्पृशन्ति
स्पृशसि स्पृशथः स्पृशथ
स्पृशामि स्पृशावः स्पृशामः

२७ . पश्यति पश्यतः पश्यन्ति
पश्यसि पश्यथ: पश्यथ
पश्यामि पश्यावः पश्यामः

२८ . नृत्यति नृत्यत: नृत्यन्ति
नृत्यसि नृत्यथः नृत्यथ
नृत्यामि नृत्यावः नृत्यामः

२९ . त्यजति त्यजतः त्यजन्ति
त्यजसि त्यजथः त्यजथ
त्यजामि त्यजावः त्यजाम:

३० . वसति वसतः वसन्ति
वससि वसथ: वसथ
वसामि वसाव: वसामः

३१ . क्रन्दति क्रन्दतः क्रन्दन्ति
क्रन्दसि क्रन्दथः क्रन्दथ
क्रन्दामि क्रन्दावः क्रन्दामः

३२ . वहति वहतः वहन्ति
वहसि वहथ: वहथ
वहामि वहावः वहामः

३४ . फलति फलतः फलन्ति
फलसि फलथः फलथ
फलामि फलावः फलाम:

३ . क्षिपति क्षिपतः क्षिपन्ति
क्षिपसि क्षिपथ: क्षिपथ
क्षिपामि क्षिपाव: क्षिपामः

३५ . आगच्छति आगच्छतः आगच्छन्ति
आगच्छसि आगच्छथः आगच्छथ
आगच्छामि आगच्छावः आगच्छामः

३६ मुञ्चति मुञ्चतः मुञ्चन्ति
मुञ्चसि मुञ्चथ: मुञ्चथ
मुञ्चामि मुञ्चावः मुञ्चामः

३८ . धावति धावतः धावन्ति
धावसि धावय: धावथ
धावामि धावावः धादाम:

४० . भजति भजतः भजन्ति
भजसि भजथःभजथ
भजामि भजावः भजामः

३७ . उत्तिष्ठति उत्तिष्ठतः उत्तिष्ठन्ति
उत्तिष्ठसि उत्तिष्ठथ: उत्तिष्ठथ
उत्तिष्ठामि उत्तिष्ठावः उत्तिष्ठाम: .

३९ . वपति वपतः वपन्ति
वपसि वपथ: वप्रथ
वपामि वपाव: वपाम:

४१ . यजति यजतः यजन्ति
यजसि यजथ: यजथ
यजामि यजाव: यजामः

आइये अब हम कुछ वाक्यों का अभ्यास करें

अभ्यास ५ – १ . वह आजकल वहाँ इधर उधर क्यों घूमता है?
२ . क्या वे दोनों इस समय भी यहाँ नहीं खेल रहे हैं?
३ नहीं, वे सब तो कभी वहाँ नहीं जाते हैं।
४ . एक बार तुम क्या इस समय वहाँ बैठते हो?
५ . नहीं, तुम दोनों ठीक नहीं कह रहे हो मैं तो कभी भी वहाँ नहीं जाता हूँ।
६ . मैं तो जहाँ भी जाता हूँ, वहीं जल पीता हूँ।
७ . इस समय भी वहाँ पत्ते गिर रहे हैं।
८ . हम सब तो वहाँ एक बार भी इधर-उधर नहीं घूमते हैं।
९ . आप इस समय वहाँ क्या कर रहे हैं।
१० . अरे, मैं तो वहाँ कुछ नहीं कर रहा हूँ।

मिलाइये अपने वाक्यों को आपने क्या गलती की है

१ . सः अद्यत्वे तत्र इतस्ततः कथं भ्रमति ( अटति) ।
२ . किम् तौ सम्प्रति अपि अत्र न क्रीडतः (खेलतः) ।
३ . न, ते तु कदापि तत्र न गच्छन्ति।
४ . एकदा त्वं किं इदानीं तत्र तिष्ठसि
५ . न, युवाम् सुष्टु न कथयथः अहं तु कदापि तत्र न गच्छामि।
६ . अहं तु यत्रापि गच्छामि तत्रैव जलं पिबामि।
७ . इदानीं अपि तत्र पत्राणि पतन्ति ।
८ . वयं तु तत्र एकदा अपि इतस्ततः न भ्रमामः।
९ . भवान् इदानीं तत्र किं करोति ।
१० . अरे! अहं तु तत्र किमपि न करोमि।

यहाँ तक आपने सामान्य वाक्यों का प्रयोग करते हुए कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार क्रिया के पुरुष तथा वचन के प्रयोग को समझा और साथ ही अव्यय शब्दों का भी प्रयोग किया। अब कुछ विशिष्ट नियमों को भी समझें –

नियम १ – यदि एक ही वाक्य में एक से अधिक कर्ता एक ही पुरुष के प्रयुक्त हुए हों तो क्रिया का वचन उनकी संख्या के अनुसार होगा। जैसे- राम और हरि आजकल वहाँ कुछ नहीं बोलते हैं।

यहाँ राम और हरि, दोनों इस वाक्य के कर्ता हैं, जो प्रथम पुरुष के अन्तर्गत आते हैं। अतः इस वाक्य की क्रिया का वचन, कर्ताओं की संख्या के अनुसार द्विवचन का प्रयोग करके अनुवाद इस प्रकार करेंगे राम हरिः च अद्यत्वे तत्र – किमपि न वदतः ।

नियम २ – इस वाक्य में एक बात और ध्यान देवें– ‘समुच्चयबोधक ‘च’ शब्द का उस स्थान पर प्रयोग नहीं करते, जहाँ उसका हिन्दी वाक्य में प्रयोग होता है, अपितु उससे एक शब्द के बाद या अन्यत्र कहीं भी प्रयोग कर सकते हैं। जैसे- रामः हरिः च ।

इसी प्रकार वह और वे दोनों वहाँ आज क्यों नहीं जा रहे हैं’ ? सः तौ च तत्र अद्य कथं न गच्छन्ति। इस वाक्य में कर्ताओं की संख्या कुल मिला कर तीन हो गई है तथा दोनों प्रथम पुरुष के कर्ता हैं अतः प्रथम पुरुष बहुवचन की क्रिया ‘गच्छन्ति’ का प्रयोग किया गया है।

नियम ३ – * प्रथम पुरुष की अपेक्षा मध्यम पुरुष तथा मध्यम पुरुष की अपेक्षा उत्तम पुरुष बलवान् होता है। अतः यदि एक ही वाक्य में प्रथम पुरुष और मध्यम पुरुष के कर्ता प्रयुक्त हुए हों तो क्रिया मध्यम पुरुष की प्रयोग करेंगे और वचन उनकी संख्या के अनुसार । जैसे- क्या कमला और तुम आजकल वहाँ नहीं नाचते हो ? किं कमला त्वं च अद्यत्वे तत्र न नृत्यथः।

यहाँ ‘कमला’ प्रथम पुरुष की कर्ता है और ‘तुम’ मध्यम पुरुष का। अतः उक्त नियम के अनुसार प्रथम पुरुष की अपेक्षा मध्यम पुरुष बलवान् होने से क्रिया मध्यम पुरुष, द्विवचन की प्रयोग की गई है, क्योंकि कर्ताओं की संख्या दो है। यदि यही वाक्य इस प्रकार होता कि- हरि और तुम दोनों अब वहाँ क्यों खेलते हो ? तो अनुवाद इस प्रकार करेंगे – हरिः युवाम् च अधुना तत्र कथं क्रीडथा ।

यहाँ ‘हरि’ और ‘तुम दोनों’ कर्ताओं को मिला कर उनकी संख्या तीन हो गई अतः क्रिया मध्यम पुरुष, बहुवचनं की प्रयोग करके अनुवाद किया। यदि कर्ताओं की संख्या तीन या तीन से अधिक हो तो बहुवचन का प्रयोग करते हैं।

इसी प्रकार राम, तुम और मैं अब कभी भी वहाँ नहीं चलते हैं’, का अनुवाद होगा – रामः त्वं अहं च अधुना कदापि तत्र न चलामः ।

इस वाक्य में ‘राम’ प्रथम पुरुष का कर्ता है, ‘तुम’ मध्यम पुरुष का और ‘मैं’ उत्तम पुरुष का कर्ता है। अतः इसका अनुवाद नियम संख्या ३ के अनुसार उत्तम पुरुष, बहुवचन की क्रिया ‘चलाम:’ का प्रयोग करके बनाया गया है। आइये उक्त नियमों का प्रयोग करते हुए कुछ वाक्यों का अभ्यास करें –

अभ्यास ६ – १ . क्या मैं और आप अब भी वहाँ चल रहे हैं?
२ . रमा और कमला भी वहाँ नहीं पढ़ती हैं।
३ . वे दोनों और तुम वहाँ क्यों हँसते हो ?
४ . कृष्ण, सोहन और वे सब भी कहाँ जाते हैं?
५ . तुम सब और मैं भी तो वहाँ कुछ नहीं करते हैं।
६ . सीमा और रेखा क्या इस समय भी पढ़ रही हैं ?
७ . तुम दोनों और हम दोनों जहाँ जाते हैं, वहीं हँसते हैं।
८ . सुरेश, रमेश और गीता अपना काम रोजाना स्वयं करते हैं।
९ वह तुम और मैं वहाँ नहीं ठहरते हैं ।
१० . तेजस्विता और श्रुति अब कुछ नहीं खाते हैं।

अपने वाक्यों की शुद्धता का परीक्षण करें–

१ . किं अहं भवान् च अधुना अपि तत्र गच्छावः।
२ . रमा कमला च अपि तत्र न पठतः।
३ . तौ त्वं च तत्र कथं हसथ ।
४ . कृष्णः सोहनः ते अपि च कुत्र गच्छन्ति।
५ . यूयम् अहम् चापि (च+ अपि) तु तत्र किंचित् न कुर्मः।
६ . सीमा रेखा च किं इदानीं अपि पठतः ।
७ . युवाम् आवाम् च यत्र गच्छामः तत्र एव (तत्रैव) हसामः ।
८ . सुरेशः रमेशः गीता च स्व कार्यं प्रतिदिनं स्वयं कुर्वन्ति ।
९ . सः त्वं अहं च तत्र न तिष्ठामः ।
१० . तेजस्विता श्रुतिः च अधुना किमपि न खादतः।

ध्यान रखें कुछ नियम और

नियम ४ – संस्कृत में ‘वा’ अव्यय पद के प्रयोग में अत्यन्त सावधान रहना – चाहिए। प्रथम तो इसका प्रयोग हिन्दी वाक्य में प्रयुक्त स्थान के बाद एक शब्द छोड़कर किया जाता है। जैसे— राम अथवा रीता जाती है- रामः रीता वा गच्छति। राम अथवा सोहन यहाँ पढ़ते हैं- रामः सोहनः वा अत्र पठति ।

‘वा’ के प्रयोग में एक और सावधानी अपेक्षित है अथवा का प्रयोग जितने कर्ताओं के बाद हुआ है। उनका प्रभाव क्रिया पद पर नहीं पड़ता है, अपितु क्रिया का पुरुष और वचन अपने सर्वाधिक निकट वाले कर्ता के अनुसार होगा। जैसे – ‘तुम दोनों और मैं यह कार्य शीघ्रतापूर्वक करते हैं – युवाम् अहम् वा इदम् कार्यम् शीघ्रतापूर्वकम् करोमि।

इस उदाहरण में कर्ता ‘मैं’ क्रिया ‘करना’ के सर्वाधिक निकट प्रयुक्त हुआ है और वाक्य में अथवा शब्द का भी प्रयोग हुआ है।अतः उपर्युक्त नियम के अनुसार क्रिया का पुरुष और वचन अपने सर्वाधिक निकट कर्ता ‘मैं’ के पुरुष और वचन के अनुसार ‘करोमि’ प्रयुक्त हुआ।

नियम ५ – संस्कृत में आदर प्रकट करने के लिए अत्यन्त सुन्दर प्रकार अपनाते हैं। जैसे- सामान्यरूप से ‘तुम या तू’ के लिए ‘त्वम्’ का प्रयोग करेंगे, किन्तु यदि अपेक्षाकृत अधिक आदर प्रकट करना है तो ‘आप’ (भवान्) शब्द का प्रयोग करेंगे। –

पुनः उससे भी अधिक आदरभाव की अभिव्यक्ति के लिए कर्ता एक वचन होने पर भी बहुवचन भवन्तः । में प्रयोग करेंगे (आदरार्थे बहुवचनम् ) जैसे- भवान् के स्थान पर

और अधिक आदर प्रकट करने के लिए ‘भवान्’ पद से पूर्व, यदि व्यक्ति सामने उपस्थित है, ‘अत्र’ पद का प्रयोग करते हैं। जैसे— ‘अत्र भवान्’ किन्तु
व्यक्ति की अनुपस्थिति में उससे पूर्व ‘तत्र’ पद का प्रयोग करके ‘तत्र भवान्’ ऐसा लिखेंगे।

अपेक्षाकृत और भी अधिक आदर प्रकट करना हो तो ‘अत्र’ या ‘तत्र’ पदों के साथ-साथ बहुवचन का प्रयोग भी करेंगे। जैसे— ‘अत्र भवन्तः’ ‘तत्र भवन्तः’ इत्यादि। ये सब वस्तुतः संस्कृत भाषा की समृद्धि को ही सूचित करते हैं।

आइये अब कुछ वाक्यों का अनुवाद बनाएँ

अभ्यास ६ – १ . वह तुम अथवा हम दोनों आज क्या कर रहे हैं।
२ . वे दोनों अथवा तुम दोनों वहाँ किस समय जाते हो?
३ . वे सब तुम सब अथवा आप भी आजकल बहुत हँसते हो।
४ . राम, हरि अथवा सीता व्यर्थ ही इधर उधर नहीं घूमते हैं।
५ . एक बार पुष्पा अथवा तुम क्या यहाँ नहीं खेलते हो ?
६ . क्योंकि वह अथवा तुम सब यहाँ पढ़ते हो, तभी (तदैव) मैं भी यहाँ आता हूँ।
७ . उस समय आप अथवा स्मिता वहाँ अवश्य जाते हैं।
८ . तुम क्या कर रहे हो ? ९ . आप भी क्या खेलते हैं ?
१० . आप एक चरित्रवान् युवक हैं (आदरभाव)

परीक्षण करें, क्या अनुवाद ठीक बनाया है ?

१ . सः त्वम् आवाम् वा अद्य किम् कुर्व: ?
२ . तौ युवाम् वा तत्र कदानीम् गच्छथः ?
३ . ते यूयम् भवान् अपि वा अद्यत्वे अति हसति।
४ . रामः हरिः सीता वा व्यर्थमेव इतस्ततः न भ्रमति ।
५ . एकदा पुष्पा त्वम् वा किम् अत्र न क्रीडसि ?
६ . कुतः सः यूयम् वा अत्र पठ्थ, तदैव अहम् अपि अत्र आगच्छामि।
७ . तदानीम् भवान् स्मिता वा तत्र अवश्यमेव गच्छति।
८ . त्वम् किम् करोषि ?
९ . भवान् अपि किम् खेलति ?
१० . अत्र भवान् एकः चरित्रवान् युवकः अस्ति।

कुछ पूर्व में बताये गए उदहारण

अभ्यास १ – १ – वह यहाँ क्या करता है?
२ – तुम दोनों सदैव हो,
३ – तुम प्रतिदिन यहाँ क्या करते हो,
४ – मैं यहाँ व्यर्थ ही नहीं खेलता हूँ,
५ – बहुत बोलते क्या आप भी यहाँ प्रतिदिन घूमते हैं?
६ – आप क्यों हँस रही हैं?
७ – मैं नहीं बोल रही हूँ,
८ – आप आज क्या वहाँ नहीं जा रहे हैं?
९ – वह क्या पका रहा है ?
१० – तुम सब क्या चाहते हो ?
११ – वे वहाँ क्यों जीतते हैं?
१२ – यह क्या है ?

परीक्षण करें, क्या आपका अनुवाद ठीक है

१ – सः तत्र किं करोति ?
२ – युवाम् सदैव अति वदथः,
३ – त्वं प्रतिदिनं अत्र किं करोषि ?
४ – अहं अत्र व्यर्थमेव न क्रीडामि,
५ – किम् भवान् अपि अत्र प्रतिदिनं भ्रमति ( अटति) ?
६ – भवती कथं हसति ?
७ – अहं न वदामि
८ – भवान् अद्य किम् तत्र न गच्छति?
९ – सः किं पचति ?
१० – यूयम् किं इच्छथ ?
११ – ते तत्र कथं जयन्ति ?
१२ – इदं किं अस्ति ?

‘पुस्तक शब्द के रूप (अकारान्त, नपुंसकलिङ्ग) (क् + अ अकार है अन्त में जिसके)

प्रथमा पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकानि

द्वितीया पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकानि

शेष अकारान्त पुल्लिंग (राम) के अनुसार चलेंगे

इसी प्रकार अन्य अकारान्त नपुंसकलिंङ्ग शब्दों के भी रूप चलेंगे। जैसे— पत्ता (पत्रम्), फल, मित्र, दन, कुसुम, मुख, अरण्य (वन), कमल, पुष्प, पर्ण, शस्त्र, अस्त्र शास्त्र, बल, मूल (जड़), धन, सुख, दुःख, पाप, पुण्य, रक्त, चन्दन, सुवर्ण, नेत्र, उद्यान, वस्त्र, भोजन, कार्य, चित्र आदि।
इस भाग का सभी छात्र अच्छे से अभ्यास कर लें |
साथ साथ पिचले भागो को भी दोहराते रहे |


गुरु के रूप – GURU KE ROOP

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमागुरुगुरूगुरव:
द्वितीयगुरुम्गुरूगुरून्
तृतीयागुरुणागुरुभ्याम्गुरुभि:
चतुर्थीगुरवेगुरुभ्याम्गुरुभ्याम्
पंचामीगुरो:गुरुभ्याम्गुरुभ्याम्
षष्ठीगुरो:गुर्वो:गुरूणाम्
सप्तमीगुरौगुर्वो:गुरुषु
संबोधनहे गुरोहे गुरूहे गुरव:

गुरु के रूप guru ke roop


गुरु शब्द के रूप (उकारान्त पुल्लिंग)

(गुर+ उ उकार है अन्त में – जिसके

इन शब्द रूपों में एक बात का विशेष ध्यान रखें कि यहाँ कुछ स्थलों पर दीर्घ ‘ऊ’ प्रयुक्त हुआ है जिसे इस चिह्न द्वारा (रू) प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार प्रयोग न करने पर (रु) वह ह्रस्व उ होगा।

इसी प्रकार अन्य उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूपों का भी अभ्यास करें, बोलकर तथा लिखकर । जैसे— शिशु भानु, वायु, मृदु (कोमल), तरु (वृक्ष). पशु, मृत्यु, साधु, बाहु, इन्दु, रिपु, विष्णु, सिन्धु, शम्भु, ऋतु, बन्धु, जन्तु, वेणु आदि ।

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