संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam part-2

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam
sanskrit anuvad ke niyam

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam part – 2

आपने पठ् = पढ़ना धातु के लट् लकार के रूप भलीभाँति याद कर लिए हैं। उसी आधार पर निम्न धातुओं को भी लिखकर याद करें

(१) हँसना = हस्, (२) चलना = चल् (३) खेलना = क्रीड्, खेल्, (५) बोलना = वद्, (६) घूमना = अट्, (७) गिरना = पत्, (८) रक्षा करना = रक्ष, (९) पढ़ना = पठ्, (१०) घूमना = भ्रम्

१. हसति हसतः हसन्ति
हससि हसथ: हसथ
हसामि हसाव: हसामः

क्रीडति क्रीडतः क्रीडन्ति
क्रीडसि क्रीडथ: क्रीडथ
क्रीडामि क्रीडाव: क्रीडामः

वदति वदतः वदन्ति
वदसि वदथः वदथ
वदामि वदावः वदामः

पतति पततः पतन्ति
पतसि पतथ: पतथ
पतामि पतावः पतामः

चलति चलतः चलन्ति
चलसि चलथः चलथ
चलामि चलाव: चलामः

खेलति खेलतः खेलन्ति
खेलसि खेलथ: खेलथ
खेलामि खेलावः खेलामः

अटति अटतः अटन्ति
अटसि अटथः अटथ
अटामि अटाव: अटामः

रक्षति रक्षतः रक्षन्ति
रक्षसि रक्षथः रक्षथ
रक्षामि रक्षाव: रक्षामः

यह भी पढ़े sanskrit anuvad ke niyam part – 1

एक विशेष— धातु रूपों को याद करने मे छात्र प्रायः विसर्गों के प्रयोग में भूल करते हैं, वे भूल जाते है कि कहाँ विसर्गों का प्रयोग होगा और कहाँ नहीं। यहाँ हम उनके लिए एल विधि (L) का प्रयोग बता रहे हैं। जिसे समझने के बाद वे लट् लकार तथा लृट् लकार (भविष्यत काल) में विसर्गों की गलती से बच सकेंगे।

एल विधि (L) – ‘लट्’ और ‘लृट्’ दोनों लकारों में यदि हम द्विवचन के धातु रूपों के ऊपर एक एल (L) की आकृति का चिह्न बना दें, तो वह चिह्न जिन जिन शब्दों का स्पर्श करेगा, केवल उन-उन शब्दों में विसर्गों का प्रयोग करेंगे।’

आइये अब हम उपर्युक्त क्रियाओं के आधारपर कुछ वाक्यों का अभ्यास करें। अभ्यास २ – (१) वह हँसता है। (२) तुम दोनों चलते हो। (३) वे खेलते हैं। (४) मैं बोलता हूँ। (५) तुम सब घूमते हो। (६) वह रक्षा करता है। (७) मैं गिरता हूँ। (८) हम सब खेलते हैं। (९) हम सब हँसते हैं। (१०) वह हँसती है। (११) वे पढ़ती हैं। (१२) वे चलते हैं। (१३) तुम बोलते हो। (१४) मैं रक्षा करता हूँ। (१५) वे गिरते हैं।

परीक्षण करें, क्या आपने अनुवाद ठीक बनाया है

१. सः हसति । २. युवाम् चलथः । ३. ते क्रीडन्ति (खेलन्ति)। ४. अहम् वदामि। ५. यूयम् अटथ। ६. सः रक्षति। ७. अहम् पतामि। ८. वयं खेलामः । ९. वयं हसामः । १० सा हसति । ११ ताः पठन्ति । १२ ते चलन्ति । १३. त्वम् वदसि १४ अहम् रक्षामि। १५. ते पतन्ति ।

ध्यान देवें- १. संस्कृत में ‘हसति’ क्रिया पद का अर्थ ही है हंसता है इसलिए वाक्यों में ‘है’ की संस्कृत अलग से नहीं बनेगी।

२. इसी प्रकार ‘रक्षामि’ का अर्थ ही रक्षा करता हूँ’ होगा। उसका अनुवाद ‘रक्षां करोमि’ ठीक नहीं होगा, वैसे किया जा सकता है।

३. संस्कृत में लिङ्ग का क्रिया पर प्रभाव नहीं पड़ता जैसे वह पढ़ती है- सा पठति और वह पढ़ता है- सः पठति। दोनों मे पठति’ क्रियापद प्रयुक्त हुआ है।

४. छात्रों की एक जिज्ञासा रहती है। अनुवाद करते समय म् को अनुस्वार लगाकर ‘वयं’ इस प्रकार लिखें या ‘वयम्’ इस प्रकार इसका उत्तर है- यदि बाद में व्यञ्जन वर्ण प्रयुक्त हुआ है तो म् को ‘मोऽनुस्वारः’ सूत्र से अनुस्वार होगा, किन्तु अब सरलता की अभिव्यक्ति के कारण म् बनाकर लिखने का भी प्रचलन हो गया है।

`हरि’ शब्द के रूप, इकारान्त (हर् + इ इकार है अन्त में जिसके) पुल्लिंग

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हरि शब्द के रूप

शब्द रूप याद करने की सरल विधि-

(१) प्रायः छात्र शब्द रूप याद करते समय हरिः हरी हरयः प्रथमा इस प्रकार बोलते हैं। जो ठीक नहीं है, क्योंकि इससे समय और क्षमता दोनों का अधिक प्रयोग होता है। इसके स्थान पर यदि हम अपनी अंगुली पर गिनते हुए याद करें तो अपेक्षाकृत कम समय में याद होगा, क्योंकि प्रथमा, द्वितीया के स्थान पर हम केवल प्रथमा में अंगुली के पहले पोरखे पर दूसरी अंगुली को लाएँगे, बोलेंगे नहीं और इस विधि से अधिक समय तक स्मरण भी रहेगा, क्योंकि हमें याद करते समय यह ध्यान रहेगा कि तृतीया, एकवचन में ‘हरि’ का ‘हरिणा’ रूप बनेगा। इसी प्रकार सभी शब्द रूपों को याद करें।

(२) शब्द रूपों को याद करते समय एक बात और ध्यान रखनी चाहिए। सभी शब्द रूपों को ध्यान से देखें। यहाँ कुछ स्थानों पर एक से अधिक विभक्तियों में एक जैसे रूप चलते हैं। जैसे- द्विवचन प्रथमा, द्वितीया विभक्ति; तृतीया, चतुर्थी और पञ्चमी विभक्ति; षष्ठी और सप्तमी विभक्तियों में एक जैसे रूप प्रयुक्त हुए हैं। ठीक इसी प्रकार एकवचन पञ्चमी और षष्ठी में एक समान तथा बहुवचन चतुर्थी और पञ्चमी में एक जैसे रूप बनते हैं। अन्य रूपों में भी अत्यधिक साम्य है। इस साम्य, वैषम्य को समझकर याद करने से शब्द रूपों को रटने से बचा जा सकेगा।

सभी इकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप हरि शब्द के अनुसार ही चलेंगे। अतः इनका भी बोलकर तथा लिखकर अभ्यास करें- जैसे कपि, मुनि, भूपति, कवि, ऋषि, निधि, गिरि, अरि, अग्नि, रवि, पाणि (हाथ), अतिथि, मणि, यति (सन्यासी), विधि (ब्रह्मा), जलधि, मरीचि, व्याधि आदि।
विशेष- आपको शब्द रूप केवल स्मरण करने हैं। इनके प्रयोगों को हम आगे बताएँगे।

यहाँ तक आप कर्ता और क्रिया के प्रयोग को भलीप्रकार समझ गए होंगे। अलग-अलग क्रियाओं का प्रयोग करते हुए स्वयं वाक्य बनाएँ और अनुवाद करें। जैसे- वह जाता है, वह पीता है, वह देता है। एक ही क्रिया का प्रयोग अलग अलग कर्ताओं के साथ करने से अनेक वाक्य बन सकते हैं।

अब हम अगले पाठ में अव्यय शब्दों के प्रयोग को बताएँगे।

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