up board class 10 social science chapter 33: भारत की जलवायु

up board class 10 social science chapter 33: भारत की जलवायु bharat ki jalvayu

पाठ- 33 जलवायु (प्रभावित करने वाले कारक, भारतीय जलवायु की विशेषताएँ एवं प्रभाव


up board class 10 social science chapter 33


लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न—1. मानसून से आप क्या समझते हैं?
उ०- मानसून अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है जिसका अर्थ ऋतु है। मानसून उन मौसमी पवनों को कहते हैं, जो 6 माह स्थल से सागर की ओर तथा 6 माह सागर से स्थल की ओर चलती हैं अर्थात् मानसून से तात्पर्य ऐसी जलवायु से है जिनमें ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन हो जाता है। भारत वर्ष भर इन्हीं मानसूनी पवनों के प्रभाव में बना रहता है। ऋतु परिवर्तन मानसूनी जलवायु की विशेषता है। यही कारण है कि भारत में गर्मी-सर्दी और वर्षा की ऋतुएँ वर्षभर बारी-बारी से चक्कर लगाती रहती हैं।


प्रश्न—2. दक्षिण पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति कैसे होती है?
उ०- दक्षिण पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति- ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिम भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। जून के प्रारंभ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिण गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंच आती है। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करके ये पवने बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पहुँच जाती हैं। इसके बाद ये भारत के वायु-संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवतीय वृत्त पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसलिए इन्हें ‘दक्षिण पश्चिमी मानसून’ कहा जाता है।


प्रश्न— 3. भारतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ लिखिए।
उ०- भारतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) भारतीय वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा है। यहाँ दक्षिण-पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी मानसूनों से सर्वत्र व्यापक वर्षा होती है। (ii) भारत की मानसूनी वर्षा सामान्यतः 10 जून से 30 सितंबर तक होती है।
(iii) भारतीय मानसूनी वर्षा तेज गति से मूसलाधार होती है जिससे नदियों में बाढ़े आ जाती हैं।
(iv) भारत में वर्षा कभी अधिक हो जाती है तो कभी सूखा पड़ जाता है इसलिए भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहते हैं। (v) भारत में होने वाली वर्षा अनियमित है। मानसून शीघ्र आने से वर्षा शीघ्र शुरू हो जाती है।
(vi) भारत में वर्षा का वितरण असमान है। कहीं अति वृष्टि का प्रकोप रहता है तो कहीं अनावृष्टि का।
(vii) भारत में वर्षा अधिकतर पर्वतीय वर्षा है, क्योंकि मानसून पर्वतों से टकराकर वर्षा करते हैं।


प्रश्न—4. भारतीय जलवायु की तीन प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

उ०- भारतीय जलवायु की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विविधता- भारतीय जलवायु विविधता के रंगों से रंगी हुई है। उत्तर में शीत, मैदान में समशीतोष्ण, मरुस्थल में
विषमता और दक्षिण भारत में उष्णता भारतीय जलवायु की विविधता को स्पष्ट कर देती है।
(ii) मानसून आधारित- भारतीय जलवायु मानसून की देन है। भारत में मानूसनी वर्षा की अनियमिता, अनिश्चितता तथा
असमान वितरण जैसी विलक्षताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
(iii) ऋतुओं का चक्र- भारत में जलवायु सालभर सर्दी, गर्मी, वर्षा और लौटती मानसून की ऋतुओं के चक्र को घुमाती
रहती है। भारत के लोग सर्दी की ठिठुरन, गर्मी की जलन तथा वर्षा की झड़ियों का आनंद लेते हैं।


प्रश्न—5. कोरोमंडल तट पर जाड़ों में वर्षा क्यों होती है?
उ०- नवंबर, दिसंबर, जनवरी तथा फरवरी के महीनों में संपूर्ण देश में जाड़े की ऋतु होती है। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर तापमान घटता जाता है। इस ऋतु में दक्षिण का औसत तापमान 24° से 25° सेल्सियस तक रहता है, किंतु उत्तरी मैदानों में औसत तापमान 10 से 15° सेल्सियस तक रहता है। निम्न तापमानों के कारण स्थल पर वायुदाब अधिक होता है। अतएव ठंडी एवं शुष्क पवनें स्थल से सागर की ओर चलती हैं। ये पवनें लौटते हुए बंगाल की खाड़ी से नमी ग्रहण कर लेती हैं और अंडमान निकोबार द्वीप समूह और तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर जाड़ों में खूब वर्षा करती हैं।


प्रश्न—भारत की अधिकांश वर्षा गर्मियों में क्यों होती है?
उ०- भारत की 80% वर्षा ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। भारत की अधिकांश वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं
(i) भारत में गर्मियों की ऋतु में उत्तरी क्षेत्र में निम्न वायुदाब उत्पन्न हो जाने से सागर के उच्च वायुदाब की ओर से वाष्प से भरी पवनें आने लगती हैं।
(ii) ये मानसून-पवनें भारत में बांग्लादेश की ओर से प्रवेश करके पूर्व से पश्चिम तक व्यापक वर्षा करती हैं।
(iii) अरब सागर से आने वाली मानसून-पवनें पश्चिमी घाट-महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में वर्षा करती हुई बंगाल की खाड़ी के मानसून से मिलकर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तथा हिमालय के ढालों को वर्षा प्रदान करती हैं।
(iv) हिमालय पर्वत दक्षिण-पूर्व मानसून को रोककर समस्त उत्तरी भारत को वर्षा प्रदान करता है।
(v) शीत ऋतु आते ही यह मानसून लौटने लगता है। शुष्क होने के कारण यह वर्षा नहीं कर पाता। यह बंगाल की खाड़ी पुनः वाष्प ग्रहण करके तमिलनाडु, तथा कर्नाटक राज्यों में ही वर्षा कर पाता है। समस्त उत्तरी भारत जाड़ों में वर्षा से वंचित रह जाता है। भारत में अनुकूल जलवायु दशाएँ मात्र गर्मियों में ही बन पाती हैं। इसीलिए यहाँ गर्मियों में ही अधिक वर्षा होती है। शीत ऋतु इन दशाओं से वंचित रहने के कारण अल्प वर्षा ही प्राप्त कर पाती है।


प्रश्न—7. भारत की जलवायु पर हिमालय पर्वत की स्थिति के दो प्रभावों का उल्लेख कीजिए। उ०- भारत की जलवायु पर हिमालय पर्वत की स्थिति के दो प्रभाव निम्नलिखित हैं
(i) हिमालय पर्वत दक्षिण से आने वाली वाष्पयुक्त पवनों को रोककर उत्तरी भारत में वर्षा कराने में सहायक हैं। (ii) हिमालय पर्वत अपने ऊपर से आने वाली पवनों को रोककर भारत को ठंडा होने से बचाता है ।


प्रश्न— 8. भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारकों का वर्णन कीजिए।
उ०- भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारक निम्नलिखित हैं(i) हिमालय पर्वत की स्थिति- भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत स्थित है, जो उत्तर से आने वाली बर्फीली पवनों को रोककर भारत को ठंडा होने से बचाता है। यह पर्वत दक्षिण से आने वाली भाप से भरी पवनों को रोककर उत्तरी भारत को वर्षा प्रदान कराने में सहायक बनता है। “हिमालय पर्वत न होता तो उत्तर का विशाल मैदान शुष्क मरुस्थल बन गया होता।”
(ii) हिंद महासागर- भारत के दक्षिण में तीन ओर महासागर फैला है। हिंद महासागर का भारत की जलवायु पर गहरा
प्रभाव पड़ता है। अरब सागर, हिंद महासागर तथा बंगाल की खाड़ी की मानसून-पवनें भारत को वर्षा से सराबोर करके
जलापूर्ति कर पूरे भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं।
(iii) मानसून पवनें- भारत की जलवायु को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला तत्व मानसून-पवनें हैं। सागर की ओर से आने
वाली भाप से लदी मानसून-पवनें जून माह से लेकर अक्टूबर माह तक समूचे भारत को वर्षा प्रदान करती हैं। अक्टूबर से लौटती मानसून-पवनें दक्षिण भारत को वर्षा प्रदान करती हैं। मानसूनी पवनें नमी तथा उमस पैदा कर जलवायु को
विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।
प्रश्न—9. मौसम और जलवायु में अंतर बताइए।
उ०- जलवायु और मौसम में अंतर

जलवायु और मौसम में अंतर
जलवायु और मौसम में अंतर

प्रश्न—10. भारत की वर्षा के वितरण पर उच्चावच के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उ०- उच्चावच का वर्षा के वितरण पर प्रभाव- वार्षिक वर्षा के वितरण पर धरातलीय दशाओं (उच्चावच) का गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में पर्वतीय उच्च प्रदेशों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है, जैसे- पश्चिमी घाट, गारो-खासो की पहाड़ियाँ तथा हिमालयी क्षेत्र। मैदानी प्रदेशों में कम वर्षा होती है। इसलिए उत्तरी मैदान में उत्तर से दक्षिण की ओर वर्षा कम हो जाती है। जल से भरी मानसून-पवने मार्ग में पड़ने वाले पर्वतों की सम्मुख ढाल पर अधिक वर्षा करती हैं, जबकि इन पर्वतों के विमुख क्षेत्र (ढाल) वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहते हैं। इन्हीं गारो-खासी पहाडियों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 1,000 सेमी० है परंतु ब्रह्मपुत्र घाटी तथा शिलांग पठार में यह मात्रा घटकर 200 सेमी० रह जाती है। पश्चिमी घाट के अग्र भाग में मालााबर तट पर वर्षा की मात्रा 300 सेमी० है परंतु पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में दक्षिणी पठार पर यह मात्रा केवल 600 सेमी० है। राजस्थान में अरावली पर्वत मानसून-पवनों के समान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता जिससे से प्रदेश शुष्क हैं।
प्रश्न– 11. थार के मरुस्थल में कम वर्षा होने के क्या कारण हैं ?
उ०- थार के मरूस्थल में वर्षा के कम होने के निम्नलिखित कारण हैं
(i) बंगाल की खाड़ी से जब मानसून पश्चिमी राजस्थान (थार के मरूस्थल) में पहुँचती है तो उसमें वर्षा करने की क्षमता समाप्त हो जाती है अर्थात् पवनों के आर्द्रता-रहित होने के कारण उनमें वर्षा करने की क्षमता नहीं होती।
(ii) अरब सागर से आने वाली आर्द्रता युक्त पवनें इस क्षेत्र से सीधी निकल जाती हैं क्योंकि यहाँ स्थित अरावली
पर्वत-माला की दिशा के समानान्तर हैं जो पवनों को रोकने में असमर्थ रहती हैं। इस कारण इन पवनों से भी यहाँ वर्षा नहीं हो पाती है।


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न– 1. भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। उ०- भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारणों का विवरण निम्न प्रकार है(i) विशाल विस्तार- अक्षांश और देशांतरीय विस्तार बहुत अधिक होने और उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक फैला होने के कारण भारत जलवायु की विविधता झेलने पर विवश है। उच्च अक्षांशों में स्थित हिमालय का पर्वतीय प्रदेश शीत जलवायु वाला है जबकि थार के मरुस्थल में तापांतर सर्वाधिक पाया जाता है। मैदानी क्षेत्र में जब गर्मियों में लू चलती है तब पर्वतीय क्षेत्रों में रमणीय जलवायु पाई जाती है। दक्षिणी भारत सालभर उष्ण जलवायु का क्षेत्र बना रहता है।
(ii) हिमालय पर्वत की स्थिति- भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत स्थित है, जो उत्तर से आने वाली बर्फीली पवनों को रोककर भारत को ठंडा होने से बचाता है। यह पर्वत दक्षिण से आने वाली भाप से भरी पवनों को रोककर उत्तरी भारत को वर्षा प्रदान कराने में सहायक बनता है। “हिमालय पर्वत न होता तो उत्तर का विशाल मैदान शुष्क मरुस्थल बन गया होता।”
(iii) हिंद महासागर– भारत के दक्षिण में तीन ओर महासागर फैला है। हिंद महासागर का भारत की जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अरब सागर, हिंद महासागर तथा बंगाल की खाड़ी की मानसून-पवनें भारत को वर्षा से सराबोर करके जलापूर्ति कर पूरे भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं।
(iv) मानसून पवनें- भारत की जलवायु को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला तत्व मानसून-पवनें हैं।
सागर की ओर से आने वाली भाप से लदी मानसून-पवनें जून माह से लेकर अक्टूबर माह तक समूचें भारत को वर्षा प्रदान करती हैं। (v)अक्टूबर से लौटती मानसून-पवनें दक्षिण भारत को वर्षा प्रदान करती हैं। मानसूनी पवनें नमी तथा उमस पैदा कर जलवायु को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। जेट पवनें- 25° उत्तरी अक्षांश पर तेज गति से चलने वाली वायु धाराओं को जेट पवनें या जेट प्रवाह कहते हैं। जेट पवनें भारत के मौसमी रचना तंत्र को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। जेट पवनें भारत में चक्रवातों को पहुँचाकर जलवायु पर प्रभाव डालती हैं। जेट पवनों के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून सक्रिय होकर वर्षा की अधिक मात्रा प्रदान कर देता है।
(vi) उच्चावच– भारत का उच्चावच भी जलवायु को विशेष रूप से प्रभावित करता है। हिमालय पर्वत, थार का मरुस्थल, उत्तर का विशाल मैदान, पश्चिमी घाट आदि वर्षा और तापमान की मात्रा को प्रभावित कर जलवायु को विविधता प्रदान करते हैं।
(vii) चक्रवात- वे चक्करदार पवनें जिनके बीच में निम्न वायुदाब होता है तथा किनारों पर उच्च वायुदाब होता हैं, उन्हें चक्रवात कहा जाता है। भारत में शीतऋतु में पश्चिम-उत्तर से जो चक्रवात आते हैं वे वर्षा के साथ-साथ शीतलहर

तथा कुहरा उत्पन्न कर जलवायु को प्रभावित करते हैं ।।अप्रैल से अक्टूबर तक बंगाल की खाड़ी से उत्तर की ओर आने वाले चक्रवात भी जलवायु को बहुत प्रभावित करते हैं ।।
(viii) अलनीनो- दक्षिणी दोलन के उतार चढ़ाव को अलनीनो प्रभाव कहा जाता है । अलनीनों का प्रभाव भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की जलवायु पर पड़ता है । हिंद महासागर में इसकी बनाई अनुकूल स्थिति से भारत को पर्याप्त मात्रा में वर्षा मिलती है । जबकि प्रतिकूल होने से वर्षा का अभाव झेलना पड़ता है । इस स्थिति में भारत में वर्षा कम होती है । जबकि अधिक वर्षा से चीन में बाढ़ आ जाती है ।


प्रश्न–2. मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए ।।
उ०- मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ- भारत की मानसूनी वर्षा विविध रूपों और विलक्षणताओं से भरपूर है । भारत की मानसूनी वर्षा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) मानसूनी वर्षा- भारतीय वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा है । यहाँ दक्षिणी-पश्चिमी और दक्षिणी-पूर्वी मानसूनों से सर्वत्र व्यापक वर्षा होती है । चक्रवातों से बहुत थोड़े क्षेत्र पर ही अल्पमात्रा में वर्षा होती है ।
(ii) वर्षा की निश्चित अवधि- भारत की वर्षा सामान्यतः 10 जून से 30 सितंबर तक होती है । इस अवधि के दौरान देश में 80% से भी अधिक वर्षा होती है । अतः इस अवधि को वर्षा ऋतु कहा जाता है । वर्षा ऋतु की निश्चित अवधि मानसूनी वर्षा की अनुपम विशेषता है ।
(iii) मूसलाधार वर्षा- भारत में वर्षा तेज गति से तथा मूसलाधार होती है । कभी-कभी तो एक ही दिन में 50 सेंटीमीटर तक वर्षा का हो जाना साधारण सी बात है । तेज वर्षा होने के कारण अधिकांश जल व्यर्थ बह जाता है जिससे नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं ।
(iv) अनिश्चित वर्षा- भारत में वर्षा (दक्षिण-पूर्व मानसून) की सबसे बड़ी विशेषता उसकी अनिश्चितता है । कभी वर्षा अधिक हो जाती है तो कभी सूखा पड़ जाता है । इसलिए भारतीय कृषि एवं भारतीय बजट वर्षा का जुआ है ।
(v) अनियमित वर्षा- भारत में होने वाली वर्षा पूर्णतया मानसून पर निर्भर है । मानसून शीघ्र आ जाता है तो वर्षा भी शीघ्र
शुरू हो जाती है । कभी-कभी वर्षा बीच में लंबा अंतराल दे जाती है । कहीं सूखा और कहीं बाढ़ मानसूनी जलवायु की बहुरंगी विशेषता है ।
(vi) असमान वितरण- भारत में वर्षा का वितरण बहुत असमान है । एक ओर चेरापूँजी में 1,100 सेंटीमीटर के लगभग वर्षा होती है, तो दूसरी ओर राजस्थान में केवल 12 से 15 सेंटीमीटर। वर्षा की मात्रा में पूर्व से पश्चिम की ओर अंतर आ जाता है । कुछ राज्यों में अतिवृष्टि का प्रकोप रहता है तो कुछ में अनावृष्टि का।
(vii) वर्षभर वर्षा- यद्यपि भारत की 80% वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है परंतु शेष समय में भी देश के किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है । जैसे, दिसंबर से मार्च तक उत्तरी-पश्चिमी भारत में, मार्च से मई तक मालाबार तट एवं सुदूरपूर्वी भारत में तथा अक्टूबर एवं नवंबर में कोरोमंडल तट पर तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में वर्षा होती है । (viii) पर्वतीय वर्षा- भारत में वर्षा अधिकतर पर्वतीय वर्षा है, क्योंकि मानसून पर्वतों से टकराकर वर्षा करते हैं ।।देश की 90% वर्षा इसी प्रकार होती है । हिमालय पर्वत इस दिशा में विशेष सहायक बनता है ।


प्रश्न–3. भारत में वार्षिक वर्षा के वितरण को स्पष्ट कीजिए ।।
उ०- भारत की अधिकांश वर्षा मानसूनी-पवनों के द्वारा होती है । भारत के दक्षिणी भागों में संवहनीय वर्षा होती है । भारत का कोई भी भाग वर्षा से रहित नहीं रहता है । भारत के किसी न किसी भाग में वर्ष के प्रत्येक मास में वर्षा होती है । भारत की वार्षिक वर्षा का औसत 110 सेमी० है । भारत में 80% वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है । शेष वर्षा वर्ष के शेष भाग में कहीं न कहीं होती रहती है । भारत के विभिन्न भागों में कई कारणों से कम या अधिक वर्षा होती है । भारत में वर्षा के वितरण को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है । (i) अधिक वर्षा वाले क्षेत्र- भारत के जिन क्षेत्रों पर मानसून का विशेष प्रभाव रहता है वहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमी० से अधिक रहता है । मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा पश्चिमी घाट भारत के अधिक वर्षा पाने वाले क्षेत्र है । मेघालय में भारत की सबसे अधिक वर्षा होती है ।
(ii) मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र- भारत के जिन क्षेत्रों में वर्षा का वार्षिक औसत 200 से 100 सेमी० तक रहता है, मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र कहे जाते हैं ।।इस क्षेत्र में बिहार का पश्चिमी भाग, ओडिशा, हिमालय पर्वत के पूर्वोत्तर ढाल, उत्तर प्रदेश का दक्षिणी भाग तथा मध्य प्रदेश का क्षेत्र इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं ।।वर्षा की कमी होने पर कृषि को सिंचाई के साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है ।
(ii) कम (न्यून) वर्षा वाले क्षेत्र- भारत के जिन भागों में वर्षा का वार्षिक औसत 100 से 50 सेमी० तक रहता है, न्यून वर्षा वाले क्षेत्र कहलाते हैं ।।पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, दक्षिणी पंजाब तथा उत्तरी पश्चिमी गुजरात कम वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र हैं ।।इन क्षेत्रों में कम नमी के कारण सूखा पड़ने की संभावना बनी रहती है ।\


प्रश्न– 4. भारतीय जलवायु की विशेषताएँ लिखिए ।।
उ०- भारतीय जलवायु की विशेषताएँ- भारतीय जलवायु में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं
(i) विविधता- भारतीय जलवायु विविधता के रंगों से रंगी हुई है । उत्तर में शीत, मैदान में समशीतोष्ण, मरुस्थल में विषमता और दक्षिण भारत में उष्णता भारतीय जलवायु की विविधता को स्पष्ट कर देती है ।
(ii) मानसून आधारित- भारतीय जलवायु मानसून की देन है । भारत में मानूसनी वर्षा की अनियमिता, अनिश्चितता तथा असमान वितरण जैसी विलक्षताएँ दृष्टिगोचर होती हैं ।।
(iii) ऋतुओं का चक्र- भारत में जलवायु सालभर सर्दी, गर्मी, वर्षा और लौटती मानसून की ऋतुओं के चक्र को घुमाती रहती है । भारत के लोग सर्दी की ठिठुरन, गर्मी की जलन तथा वर्षा की झड़ियों का आनंद लेते हैं ।।
(iv) सालभर कृषि उत्पादन- भारत की जलवायु की इन विशेषताओं के कारण ही भारत में सालभर कृषि उत्पादन चलता रहता है । यहाँ जलवायु के अनुरूप ही रबी, खरीफ तथा जायद की फसलें उगती हैं ।।
(v) आर्थिक और सांस्कृतिक विकास- भारत की जलवायु ने पर्वतीय, मैदानी, पठारी और मरुस्थलीय क्षेत्रों में विविधता को जन्म देकर आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में भी विविधता ला दी है । भारत की जलवायु की विशेषताओं के कारण ही भारत के विभिन्न भागों में जनजीवन, रीति रिवाज तथा आर्थिक अनुक्रियाओं की विविधताओं के अंकुर फूटे हैं ।

Up board social science class 10 chapter 32 भारत का भौतिक पर्यावरण भौतिक स्वरूप- स्थिति तथा विस्तार, उच्चावच एवं जल प्रवाह


प्रश्न– 5. भारत की जलवायु का मानव जीवन पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए ।।
उ०- भारत की मानसूनी जलवायु का मानव-जीवन पर प्रभाव- ‘जलवायु के प्रभाव’ को हम निम्न शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट कर सकते हैं
(i) जलवायु का कृषि पर प्रभाव- भारत एक कृषि-प्रधान देश है । यहाँ 67.4% कार्यशील जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है । वर्षा और जलवायु का कृषि पर सीधा प्रभाव पड़ता है । कृषि पर जलवायु के प्रभाव को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है(क) कृषि की विभिन्न उपजें- भारत के विभिन्न भागों में जलवायु की भिन्नता एवं वर्षा की असमानता अनेक कृषि उपजों को संभव बनाती है; जैसे- अधिक वर्षा वाले भागों में चावल, गन्ना एवं जूट पैदा किए जाते हैं, जबकि कम वर्षा वाले भागों में ज्वार, बाजरा, तिलहन, दालें, सोयाबीन, मटर, चना आदि पैदा किए जाते हैं ।।
(ख) सिंचाई की सुविधा- भारत में अधिक वर्षा होने के कारण यहाँ की नदियाँ वर्षभर जल से भरी रहती हैं, जिनसे जल निकालकर सिंचाई की जाती है ।
(ग) फसलों के तैयार होने में सहायक- ऊँचे तापमान के कारण भारत में फसलों के पकने में सुविधा रहती है । बहुत-सी फसलें केवल ऊँचे तापमान में ही उगती हैं ।
(ii) जलवायु का जनसंख्या के वितरण पर प्रभाव- भारत में जनसंख्या का वितरण वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है । जैसे-जैसे वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है, वैसे-वैसे जनसंख्या का घनत्व भी पश्चिम की ओर कम होता चला जाता है; जैसे- पश्चिमी बंगाल में यह घनत्व 615 व्यक्ति है, जबकि राजस्थान में केवल 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर ही है ।
(क) रोगों की उत्पत्ति- मानसूनी जलवायु में मलेरिया बहुत फैलता है । इसके अलावा अधिक वर्षा व गर्मी वाले क्षेत्रों में बेरी-बेरी, पेचिश, आदि संक्रामक रोग फैल जाते हैं ।।
(ख) भाग्यवादिता एवं अकाल- भारत की अनियमित तथा अनिश्चित वर्षा ने भारतीय कृषक को भाग्यवादी बना दिया है । वर्षा के लिए इंद्र आदि देवताओं की पूजा की जाती है । वर्षा नहीं होने पर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो
जाती है ।
(iii) जलवायु का मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव- भारत की जलवायु ने यहाँ के निवासियों की आर्थिक
क्रियाओं को बहुत अधिक प्रभावित किया है ।
मानवीय आर्थिक क्रियाओं पर जलवायु के प्रभाव को अनेक प्रकार से
व्यक्त किया जा सकता है
(क) देश के अनेक उद्योगों का स्थानीयकरण
(ख) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दिशा
(ग) पर्यटन उद्योग
(घ) श्रमिकों की कार्यकुशलता इन सभी पर जलवायु का विविध प्रकार से प्रभाव पड़ता है । जलवायु का अर्थतंत्र पर विविध रूप से विशेष प्रभाव पड़ने के कारण ही भारतीय बजट को मानसून का जुआ कहा गया है ।

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