up board class 10 hindi full solution chapter 6 sanskritk khand केन किम् बर्धते
पाठ का संपूर्ण हिंदी अनुवाद और प्रश्न उत्तर तथा संस्कृत व्याकरण सहित

पाठ -6 केन किम् बर्धते
निम्नलिखित प्रश्नों के संस्कृत में उत्तर लिखिए :
(1) इन्दुदर्शनेन कः वर्धते?
इन्दुदर्शनेन समुद्र: वर्धते |
(2) श्रीः केन वर्धते?
श्रीः उद्यमेन वर्धते |
(3) राज्यं केन वर्धते?
राज्यं न्यायेन वर्धते |
(4) तृणैः कः वर्धते?
तृणैः वैश्वानरः वर्धते :
(5) नीचसङ्गेन का वर्धते?
नीचसङ्गेन दुश्शीलता वर्धते |
(6) रोगः केन वर्धते?
रोगः अपथ्येन वर्धते |
(7) विषयः केन वर्धते?
विषयः व्यसनेन वर्धते |
(8) मैत्री केन वर्धते?
मैत्री सुबचनेन वर्धते |
(9) विद्या केन वर्धते?
विद्या अभ्यासेन वर्धते |
(10) जलदः केन वर्धते?
जलदः पूर्ववायुना वर्धते |
(11) रिपुः केन वर्धते?
रिपुः उपेक्षया वर्धते |
(12) गुणः केन वर्धते?
गुणः विनयेन वर्धते |
(13) कुटुम्बकलहेन कः वर्धते?
कुटुम्बकलहेन दुःख: वर्धते |
(14) दानेन का वर्धते?
दानेन कीर्तिः वर्धते |
(15) सत्येन कः वर्धते?
सत्येन धर्मः वर्धते |
(16) धर्मः केन वर्धते?
धर्मः सत्येन वर्धते |
(17) तृष्णा केन वर्धते?
तृष्णा असन्तोषेण वर्धते |
(18) उपेक्षया किं वर्धते?
उपेक्षया रिपुः वर्धते?
(19) तपः केन वर्धते?
तपः क्षमया वर्धते?
(20) औदार्येण कः वर्धते?
औदार्येण प्रभुत्वम् वर्धते?
(21) न्यायेन कः वर्धते?
न्यायेन राज्यम् वर्धते?
(22) कीर्तिः केन वर्धते?
दानेन कीर्तिः वर्धते |
(23) सुवचनेन किं वर्धते?
सुवचनेन मैत्री वर्धते
(24) वैश्वानर केन वर्धते?
वैश्वानर तृणैः वर्धते |
(25) दुर्वचनेन किं वर्धते?
दुर्वचनेन कलहः वर्धते |
(26) लोभः केन वर्धते?
लोभः लाभेन वर्धते
(27) पुत्र दर्शनेन किम् भवति?
अथवा
पुत्र दर्शनेन कः वर्धते?
पुत्र दर्शनेन हर्षः वर्धते|
(28) मित्र दर्शनेन किं वर्धते ?
मित्र दर्शनेन आह्लादः वर्धते |
(29) अपथ्येन किं भवति?
अपथ्येन रोग: भवति |
(30) लाभेन किं वर्धते? (2017AA) (2017AB)
लाभेन लोभ: वर्धते |
अनुवादात्मक प्रश्न
up board class 10 hindi full solution chapter 6 sanskritk hand केन किम् बर्धते
- निम्नलिखित पंक्तियों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
(क) सुवचनेन मैत्री,………………..लाभेन लोभः।
(ख) सुवचनेन मैत्री, ……………… अभ्यासेन विद्या।
सन्दर्भ – प्रस्तुत खण्ड हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के संस्कृत खण्ड के केन किं बर्धते नामक शीर्षक से लिया गया है |
अनुवाद – अच्छे वचनों से मित्रता बढ़ती है, चन्द्र दर्शन से समुद्र बढ़ता है | श्रंगार से राग बढ़ता है, विनय से गुण बढ़ता है दान से कीर्ति बढ़ती है |उद्योग से लक्ष्मी बढ़ती है, सत्य से धर्म बढ़ता है | पालन करने से बगीचा बढता है, सदाचार से विश्वास बढ़ता है |अभ्यास से विद्या बढती है, न्याय से राज्य बढ़ता है | उचित व्यबहार से महत्त्व बढ़ता है, उदारता से प्रभुता बढ़ती है | क्षमा से तप बढ़ता है पूर्वी बायु से बादल बढ़ते हैं और लाभ से लोभ बढ़ता है |
(ग) पुत्रदर्शनेन हर्षः,…………….. व्यसनेन विषयः।
सन्दर्भ – प्रस्तुत खण्ड हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के संस्कृत खण्ड के केन किं बर्धते नामक शीर्षक से लिया गया है |
अनुवाद – पुत्र के दर्शन से हर्ष बढ़ता है मित्र के दर्शन से प्रसन्नता बढ़ती है बुरे वचनों से झगड़ा बढ़ता है तिनकों से आग बढ़ती है नीच लोगों की संगति करने से दुष्टता बढ़ती है | उपेक्षा करने से शत्रुता बढ़ती है पारिवारिक झगड़े से दुख बढ़ता है दुष्टों की संगति करने से दुर्दशा बढ़ती है अपवित्रता से दरिद्रता बढ़ती है अनुचित भोजन करने से रोग बढ़ता है असंतोष करने से लालच बढ़ता है और बुरी आदतों से बासना बढ़ती है |
- निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
(क) दरिद्रता से अपवित्रता बढ़ती है।
दारिद्र अशौचेन वर्धते |
(ख) अभ्यास से निपुणता बढ़ती है।
अभ्यासेन दाक्ष्यं बर्धते |
(ग) सत्य से आत्मशक्ति बढ़ती है।
सत्येन आत्मशक्ति बर्धते |
(घ) उपेक्षा से शत्रुता बढ़ती है।
उपेक्षया रिपु; बर्धते |
(ङ) सत्य से धर्म में बढ़ोतरी होती है ।
सत्येन धर्मस्य वृद्धि: भवति |
व्याकरणात्मक प्रश्न
(1) निम्न शब्दों में विभक्ति एवं वचन बताइए—
व्यसनेन, क्षमया, उपेक्षया, पूर्ववायुना, दानेन।
व्यसनेन= तृतीय विभक्ति एकवचन
क्षमया= तृतीय विभक्ति एकवचन
उपेक्षया= तृतीय विभक्ति एकवचन
पूर्ववायुना = तृतीय विभक्ति एकवचन
दानेन= तृतीय विभक्ति एकवचन
(2) विनय, रिपु और रोग के चतुर्थी, पञ्चमी एवं सप्तमी विभक्तियों में रूप लिखिये।
विनय (शब्द)
चतुर्थी, विनयाय विनयाभ्याम् विनयेभ्य:
पञ्चमी विनयात विनयाभ्याम् विनयेभ्य:
सप्तमी विनये विनययो: विनयेषु
रिपु शब्द
चतुर्थी रिपवे रिपुभ्याम् रिपुभ्य:
पञ्चमी रिपो: रिपुभ्याम् रिपुभ्य:
सप्तमी रिपौ रिप्वो: रिपुषु
पर्यायवाची शब्द —
इन्दु – चन्द्रः, शीतांशुः, मयङ्कः, शशिः, रजनीशः ।
शृङ्गार – रसराजः|
वायुः – अनिलः, पवनः, मरुत् ।
वैश्वानरः – अग्निः, अनलः, पावकः, कृशानुः ।