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कवि परिचय कबीर का जन्म बनारस में संवत् 1455 ई. में माना जाता है। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने इन्हें बनारस के लहरतारा तालाब के किनारे पाया था। इनकी ममता की छाँव में ही कबीर का पालन-पोषण हुआ। कबीर प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य माने जाते हैं। कबीर की पत्नी का नाम लोई और पुत्र का नाम कमाल था। कबीर सत्संग और पर्यटन प्रिय थे, इसलिए वे अनुभव समृद्ध भी थे, कबीर की जीवनी से संबंधित इन तथ्यों पर विद्वानों के मतभेद हो सकते हैं, किंतु कबीर के काव्य में उल्लिखित कुछ संकेतों से इनकी आंशिक प्रमाणिकता पुष्ट होती है। कबीर के व्यक्तित्व निर्माण में उनकी जीवनगत परिस्थितियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कबीर की मृत्यु संवत् 1575 में मगहर नामक स्थान पर मानी जाती है।
कबीर भक्तिकालीन निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि माने जाते हैं। उनकी प्रामाणिक कृति ‘बीजक’ है। इसमें साखी, सबद और रमैणी छंदाधारित तीन भाग हैं, कबीर को समाज सुधारक के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनकी कविता में समाज की चिन्ता का स्वर प्रमुख है। समाज में व्याप्त वैषम्य, अंधविश्वास और उसकी प्रवृत्तियों पर उन्होंने व्यंग्य का प्रहार किया है। वे ईश्वर की प्राप्ति के लिए ज्ञान को साधन मानते हैं। वे योग-साधना के गूढ़ रहस्यों को भी अपनी कविता में प्रस्तुत करते हैं। वे निराकार ईश्वर को पाने के लिए ज्ञान-मार्ग, इंद्रिय नियमन तथा योग साधना को महत्वपूर्ण मानते हैं। प्रेम की उदात्त अनुभूति भी उनके काव्य में प्राप्त होती है। नाम महिमा, गुरु का महत्व, सदाचार आदि विषयों पर केन्द्रित रचनाएँ कबीर के काव्य को संत काव्य की व्यापक पृष्ठभूमि प्रदान करती हैं। कबीर के काव्य में यद्यपि अभिव्यक्ति की सहजता है, किंतु उनका काव्य साहित्यिक सौंदर्य से भी अनुप्राणित है। उनकी भाषा को खिचड़ी भाषा कहा गया है। अपने देशाटन के कारण वे जगह- जगह की बोली वाणी से परिचित होते रहे और वहाँ के शब्द भी ग्रहण करते रहे, इसलिए उनकी भाषा में अनेक बोलियों के शब्द आ गए हैं। उनके प्रतीक, रूपक तथा अन्योक्तियाँ काव्य साहित्य की धरोहर हैं।