Mp board class 10 hindi path ki pahchan हरिवंश राय बच्चन

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पथ की पहचान

पूर्व चलने के बटरोही, बाट की पहचान कर ले।

(1)

पुस्तकों में है नहीं छापी गयी इनकी कहानी, हाल इनका ज्ञात होता है न औरों की जबानी,

पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,

अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या,

यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है, खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।2।

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना, अब असंभव, छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,

तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,

सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना

हर सफल पंथी, यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है। तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।3।

है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे, है अनिश्चित, किस जगह पर बाग, वन सुन्दर मिलेंगे।

किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,

है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे,

पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले। 4।

कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न ऐसी आन कर ले।

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में, देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में

और तू कर यत्न भी तो मिल नहीं सकती सफलता,

ये उदय होते, लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में

किंतु जग के पंथ पर यदि स्वप्न दो तो सत्य दो सौ, स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

स्वप्न आता स्वर्ग का; दृग कोरकों में दीप्ति आती, पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,

रास्ते का एक काँटा पाँव का दिल चीर देता,

रक्त की दो बूँद गिरती, एक दुनिया डूब जाती,

आँख में हो स्वर्ग लेकिन

पाँव पृथ्वी पर टिके हों, कंटकों की इस अनोखी

सीख का सम्मान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। 6।

  • हरिवंशराय बच्चन ( सतरंगिणी से )

पथ की पहचान कविता का भावार्थ – हरिवंशराय बच्चन

पथ की पहचान कविता में कवि ने मनुष्य को जीवन पथ पर आगे बढ़ने से पहले सावधान किया है कि यात्रा आरंभ करने से पहले मनुष्य को अपने लक्ष्य व मार्ग का निर्धारण कर लेना चाहिए। इस लक्ष्य का निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ता है। यह कहानी पुस्तकों में नहीं छपी होती। जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने भी अपने लक्ष्य का निर्धारण स्वयं ही किया था। कवि ने पथिक को अच्छे -बुरे की शंका किए बिना आस्था के साथ अपने मार्ग पर चलने को कहा है, जिससे लक्ष्य तक पहुँचने की यात्रा सरल हो जाएगी। यदि हम अपने मन में यह सोच लें कि यही मार्ग सही एवं सरल है तो हम लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से कर सकते हैं।

जितने भी महापुरुषों ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति की है, वे मार्ग की कठिनाइयों से नहीं घबराए और अपने मार्ग पर निरंतर बढ़ते रहे। उचित मार्ग की पहचान से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। जीवन के मार्ग में कब कठिनाइयाँ आएँगी और कब सुख मिलेगा, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। अर्थात् यह सब अनिश्चित है कि कब कोई हमसे बिछड़ जाएगा और कब हमें कोई मिलेगा, कब हमारी जीवन यात्रा समाप्त हो जाएगी। कवि मनुष्य को हर विपत्ति से सामना करने का प्रण लेने की प्रेरणा देते हैं। कल्पना करना मनुष्य का स्वभाव है।

कवि के अनुसार जीवन के सुनहरे सपने देखना गलत बात नहीं है। अपनी आयु के अनुरूप सभी कल्पना करते हैं। परंतु इस संसार में कल्पनाएँ बहुत कम और यथार्थ बहुत अधिक हैं। इसलिए तू कल्पनाओं के स्वप्न में न डूब, वरन् जीवन की वास्तविकताओं को देख। जब मनुष्य स्वर्ग के सुखों की कल्पना करता है तो उसकी आँखों में प्रसन्नता भर जाती है। पैरों में पंख लग जाते हैं और हृदय उन सुखों को पाने को लालायित हो जाता है परंतु जब यथार्थ (सत्य) सामने आता है तो मनुष्य निराश हो जाता है।

हमारे आँखों में भले ही स्वर्ग के सुखों के सपने हो परंतु हमारे पैर धरातल पर ही जमे होने चाहिए। राह के काँटे हमें जीवन मार्ग की कठिनाइयों का संदेश देते हैं। इसलिए इन कष्टों से लड़ने के लिए सोच-विचारकर ही कार्य करो और एक बार आगे बढ़ने पर विघ्न-बाधाओं से मत घबराओ

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