Up Board Solution For Class 9 Sanskrit Gady Bharti Chapter 6 भारतवर्षम्

 Up Board Solution For Class 9 Sanskrit Gady Bharti Chapter 6

Up Board Solution For Class 9 Sanskrit Gady Bharti Chapter 6 भारतवर्षम्

UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 SANSKRIT

BoardUP Board
TextbookUP Board
ClassClass 9
SubjectSanskrit
ChapterChapter 6 भारतवर्षम्
Chapter Nameअस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि (गद्य – भारती)
CategoryUP Board Solutions

UP BOARD FULL SOLUTION FOR CLASS 9 SANSKRIT

भारतं नामास्माकं जन्मभूमिः । भरतनामानश्चत्वारो महापुरुषा अस्मिन् देशे अतिप्राचीनकाले बभूवुः । एको मर्यादापुरुषोत्तमरामचन्द्रस्यानुजो दाशरथिर्भरतः, हस्तिनापुराधीशस्य पुरुवंशीयस्य दुष्यन्तस्य सुतश्शाकुन्तलेयः द्वितीयः, अभिनयकुशलो नाट्यशास्त्रप्रणेता भरतमुनिश्च तृतीयः, श्रीमद्भागवते वर्णितो ब्रह्मस्वरूपो जडभरतश्चतुर्थः । भागवते तत्रैव प्रतिपादितमस्ति “अजनाभं नामैतद्वर्ष भारतमिति यत् आरभ्यव्यपदिशन्ति” तेनेदं प्रतीयते यद् जडभरतस्य नामैव अस्माकं देशस्य संज्ञा अनुसरतीति । वयं तु एवं मन्यामहे यत् सर्वदा सर्वथा च “भायाम् तेजसि रतत्वादेव भारतमिति” अस्माकं प्राणप्रियस्य देशस्य प्राचीनं नाम । कालान्तरे सिन्धुनदीसंज्ञामनुसृत्य मुहम्मदीयैरत्रत्यवासिनो हिन्दुनाम्ना कथिता, देशश्च हिन्दुस्थानमिति । तथैव यूरोपीयैरितरैश्च ‘इण्डिया’ इति नाम कृतम् ।

अनुवाद:–भारत हमारी जन्मभूमि है । अति प्राचीन समय में हमारे देश में ‘भरत’ नाम के चार महापुरुष हुए । एक तो मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र के छोटे भाई, दशरथ के पुत्र भरत; दूसरे हस्तिनापुर के राजा, पुरुवंशीय दुष्यन्त के शकुन्तला से उत्पन्न पुत्रं भरते; तीसरे अभिनयकला में कुशल, नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि और चौथे श्रीमद्भागवत् में वर्णित ब्रह्मस्वरूप जड़भरत । भागवत् में वहीं पर बताया गया है-“अज की नाभि से उत्पन्न यह वर्ष भारत, जिसके आरम्भ करके कहते हैं । उससे यह प्रतीत होता है कि जड़भरत के नाम का ही अनुसरण हमारे {UPBOARDNOTES.COM} देश का नाम कर रहा है (अर्थात् हमारे देश का नाम ‘भारत’ जड़भरत के नाम का अनुसरण कर रहा है) । हम तो ऐसा मानते हैं कि सदा और सब प्रकार से तेज (भा) में संलग्न (रत) रहने के कारण ही भारत है, ऐसा प्राणों से प्यारे हमारे देश का प्राचीन नाम है । बाद में सिन्धु नदी के नाम का अनुसरण करके मुसलमानों ने यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दू’ नाम से और देश को ‘हिन्दुस्थान’ कहा है । उसी प्रकार यूरोप के निवासियों ने और अन्यों ने ‘इण्डिया’ नाम,रख दिया ।

अस्योत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजो विराजते । संसारस्य पर्वतेषु उत्तुङ्गतमस्यास्य गिरेरुच्छ्रिताः शिखरमालाः सर्वदैव हिमाच्छादितास्तिष्ठन्ति तस्मादेवायं हिमालयः कथ्यते । एतानि शिखराणि देशीयानां विदेशीयानां च पर्वतारोहिणामाकर्षणकेन्द्राण्यपि वर्तन्ते । एवं विश्वस्यते यत् तुषाराच्छादितेष्वस्य प्रदेशेषु ‘येति’ इति जातीया केचन हिममानवा अपि प्राप्यन्ते । हिमावेष्टितोऽयमद्रिर्भारतस्य मूर्धिन विधिना स्थापितं सितं किरीटमिव विभाति यस्योपत्यकासु प्रसृतानि गहनानि वनानि मरकतमणिपङ्क्तीनां शोभामनुहरन्ति । एषु वनेषु निःसीमा ओषधिसम्पत् पुष्पर्द्धिश्च भवतः । बहुप्रकाराणि फलानि उत्पद्यन्ते, नानाविधा खगमृगाश्च वसन्ति । एवमनुश्रूयते यदन्तकाले सद्रौपदीकाः पाण्डवाः हिमालयमारोहन्त एव स्वर्गमाप्ताः । दीर्घकालं यावदसौ पर्वत: प्रहरीव स्थितो भारतस्य रक्षामकरोत् किन्तु अद्यत्वेतु अस्य रक्षा भारतेन करणीया आपतिता, यतो हि अस्माकं प्रतिवेशी चीनदेशः कंचिद् भूभागं स्वकीयं कृत्वा यदा कदा भारतीयसीम्न उल्लङ्घनं हिमालयस्य पारात् करोति । तदनेकत्रास्माकं शूराः सैन्ययुवानोऽत्युच्छ्रितेषु हिमाच्छादितेषु स्थानेषु दिवानिशं दृढं तिष्ठन्तो रक्षन्ति । हिमालयस्यैवोत्सेऽस्माकं गणराज्यस्य जम्मूकश्मीर-हिमाचल- सिक्किम-अरुणाचल प्रदेशाः सन्ति भूताननामकं भारतरक्षितं स्वतन्त्रं राज्यं भारतमित्रं संसारस्यैकमात्रं हिन्दु-राष्ट्रं नैपालराज्यं च वर्तते । अमरनाथ-वैष्णवदेवी-गंगोत्री-यमुनोत्री – केदारनाथ-बद्रीनाथादीनि नैकानि सुप्रसिद्धानि तीर्थान्यपि हिमालयस्य क्रोडे विराजन्ते । यत्र देशस्य प्रत्येक भूभागात् प्रतिवर्ष सहस्रशस्तीर्थयात्रिण आगच्छन्ति । श्रीनगर पहलगाँव-शिमला- नैनीताल-मंसूरी-दार्जिलिङ्गादीनि मनोरमनगराण्यपि अत्रैव वर्तन्ते यत्र बहवो जनास्तपर्तुतापात् अत्रागत्य त्राणं लभन्ते ।

अनुवाद:– इसकी उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मास्वरूप हिमालय नाम का पर्वतों का राजा सुशोभित है । संसार के पर्वतों में सबसे ऊँची इस पर्वत की ऊँची शिखरमालाएँ सदा ही बर्फ से ढकी रहती हैं, इसी कारण से यह ‘हिमालय’ कहा जाता है । ये चोटियाँ देश-विदेश के पर्वतारोहियों के आकर्षण का केन्द्र भी हैं । ऐसा विश्वास किया जाता है कि बर्फ से ढके हुए इसके प्रदेशों में ‘येति जाति के कुछ हिम-मानव भी पाये जाते हैं । बर्फ से ढका हुआ यह पर्वत भारत के मस्तक पर ब्रह्मा के द्वारा रखे गये श्वेत मुकुट के समान सुशोभित हो रहा है, जिसकी तलहटियों में फैले हुए घने वन मरकत मणि की पंक्तियों की शोभा को हरते हैं; अर्थात् वे मरकत मणियों से भी अधिक सुन्दर हैं । इन वनों में सीमारहित औषध-सम्पत्ति और पुष्प-समृद्धि होती है । बहुत प्रकार के फल उत्पन्न होते हैं और {MPBOARDNFO.IN} अनेक प्रकार के पशु-पक्षी रहते हैं । ऐसा सुना जाता है कि अन्तिम समय में द्रौपदीसहित पाण्डव हिमालय पर चढ़ते हुए स्वर्ग पहुँच गये । लम्बे समय तक इस पर्वत ने पहरेदार के समान खड़े रहकर भारत की रक्षा की, किन्तु आज इसकी रक्षा भारत को करनी पड़ रही है; क्योंकि हमारा पड़ोसी चीन देश कुछ भू-भाग को दबाकर हिमालय के पार से कभी-कभी भारत की सीमा का उल्लंघन करता है । अनेक जगहों पर हमारे बहादुर सेना के जवान बुहत ऊँचे बर्फ से ढके स्थानों पर रात-दिन मजबूती से खड़े रहकर उसकी रक्षा करते हैं । हिमालय की ही गोद में हमारे गणराज्य के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश हैं । भूटान नाम का भारतरक्षित स्वतन्त्र राज्य और भारत का मित्र, संसार का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल राज्य है । अमरनाथ, वैष्णव देवी, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ आदि अनेक प्रसिद्ध तीर्थस्थान भी हिमालय की गोद में सुशोभित हैं, जहाँ देश के प्रत्येक भूभाग से प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री आते हैं । श्रीनगर, पहलगाँव, शिमला, नैनीताल, मसूरी, दार्जिलिंग आदि सुन्दर नगर भी यहीं हैं, जहाँ बहुत-से लोग भयंकर गर्मी से यहाँ आकर छुटकारा पाते हैं ।

भारतस्य दक्षिणस्यां दिशि हिन्दमहासागरः, प्राच्यां बङ्गसमुद्रः, प्रतीच्यामरबसागरश्च वर्तते । पश्चिमोत्तरदिग्भागे सम्प्रति ‘पाकिस्तानः’ पूर्वोत्तरस्मिश्च ‘बांगलादेशः’ तिष्ठति । पूर्वमिमावप्यस्माकं भारतस्यैव भागावास्तां राजनीतिकारणाद् विदेशिनां षड्यन्त्राणामस्माकमेव एकस्य वर्गस्य कतिपयनेतॄणां हठधर्मितायाश्चकारणात् पार्थक्यं सञ्जातम् । दक्षिणस्यां दिशि भारतस्य दूरतमो भूभागः ‘कन्याकुमारी’ नाम्ना प्रसिद्धो यत्र त्रयाणां सागराणां सङ्गमो भारतस्य चरणप्रक्षालनं कुर्वन्नतिशयपावनतां भजते ।

अनुवाद:–भारत की दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर, पूर्व दिशा में बङ्ग-समुद्र (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिम दिशा में अरब महासागर है । इसकी पश्चिमोत्तर दिशा में अब पाकिस्तान और पूर्वोत्तर दिशा में बांग्लादेश स्थित हैं । पहले ये दोनों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) भी हमारे भारत के ही भाग थे, किन्तु राजनीतिक कारणों से, विदेशियों के षड्यन्त्रों से, हमारे ही एक वर्ग के कुछ नेताओं की हठधर्मिता के कारण अलगाव (विभाजन) हो गया । दक्षिण दिशा में भारत का सुन्दर प्रदेश ‘कन्याकुमारी’ नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ तीन सागरों का संगम भारत के पद प्रक्षालन करता (पैरों को धोता) हुआ अत्यन्त पवित्र हो जाता है ।

पारेसागरं चतुर्योजनमात्रे श्रीलङ्का नामाऽस्माकं प्रतिवेशी देशो विद्यते । एतदपि न जातु विस्मरणीयं यद् हिन्दमहासागरे ‘लक्षद्वीप’ नामा बंग समुद्रे ‘अण्डमान’ नामा द्वीपसमूहश्चापि अस्माकं भारतस्यैव अविच्छिन्नौ प्रदेशौ स्तः । गुर्जर-महाराष्ट्र- कर्णाटक-केरल-तमिल-आन्ध्र-उत्कल-बङ्गराज्यानां भूमि सागरः स्पृशति तस्मादेते तटीयप्रदेशाः कथ्यन्ते । यत्र अनेकानि महान्ति पत्तनानि विद्यन्ते येषु असंख्यजलपोतानां साहाय्येन वैदेशिकैर्विनिमेयानां पण्यानां निर्यातमायातं च क्रियते । प्राचीनकालेऽपि भारतवर्षस्य नौपरिवहनव्यवस्था अतीव समृद्धा आसीत् । अनेकैद्वींपैर्देशान्तरैश्च साकं सागरमार्गेण वाणिज्यं प्रचलति स्म । एवमेव सागरतटीयजलेषु मत्स्यग्रहणव्यापारोऽधुनातनो महानुद्योगः परिणतः ।

अनुवाद:– समुद्र के पार केवल चार योजन पर श्रीलंका नाम का हमारा पड़ोसी देश है । यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्द महासागर में लक्षद्वीप नाम का और बंगाल की खाड़ी में अण्डमान नाम का द्वीपसमूह भी हमारे भारत के ही अभिन्न प्रदेश हैं । गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिल, आन्ध्र, उड़ीसा और बंगाल राज्यों की भूमि को सागर स्पर्श करता है, इसलिए ये तटीय प्रदेश कहे जाते हैं । यहाँ अनेक बड़े बन्दरगाह हैं, जिनमें असंख्य जलयानों की सहायता से विदेशियों द्वारा विनिमय के योग्य व व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात और {MPBOARDNFO.IN} आयात किया जाता है । प्राचीनकाल में भी भारत की नौका-परिवहन की व्यवस्था अत्यन्त समृद्ध थी । अनेक द्वीपों और दूसरे देशों के साथ सागर के मार्ग से व्यापार चलता था । इसी प्रकार समुद्र के तट के जल में मछली पकड़ने का धन्धा आजकल का महान् उद्योग बन गया है ।

प्रकृतिदेव्या भारते महती कृपा वर्तते । षड्भिः ऋतुभिर्विराजमानम् ऋतुचक्रमत्रैव परिवर्तते । सूर्याचन्द्रमसोः प्रकाशो यथाऽत्र प्रसरति तथा संसारस्यात्यल्पेषु एव देशेषु स्यात् । सूर्यास्तस्य चन्द्रास्तस्य च सूर्यचन्द्रयोः अस्तगमन वेलायाः मनोरमाणि दृश्यानि यथा अत्र भवन्ति तथा नान्यत्र । सकलेऽपि भारते देशे नदीनां प्राकृतिकं जालं प्रसृतं येनात्रत्या भूमिरत्युर्वरा सञ्जाता । सिन्धु-वितस्ता- शतद्रु-सरस्वती-गङ्गा-यमुना- ब्रह्मपुत्रादयः सरित उत्तरभागे, चर्मण्वती नर्मदादयो मध्यभागे, गोदावरी-कावेरी-कृष्णा- पेरियारमहानद्यादयश्च दक्षिणभागे प्रवहन्ति । एतासां तटेषु हरिद्वार-प्रयाग-काशी-गयादीनि बहूनि तीर्थस्थानानि विद्यन्ते । यत्र प्रतिदिनं सहस्रशो यात्रिणः स्नानं कृत्वा धर्मं चिन्वन्ति । विशेषेष्ववसरेषु, तु कुम्भसदृशानि मेलकानि भवन्ति । यत्र देशस्य प्रतिकोणतः सहस्रशो लक्षशो जना: आगत्य सम्मिलन्ति । देशस्य वास्तविकीमेकतां च वाचं विनैव सुतरां मुखरयन्ति । भारतस्य वनानां शोभापि परमहृद्या । हिमालयेषु देवदारुवृक्षाणामुच्छ्रायो गगनं चुम्बति तर्हि सागरतटीयप्रदेशेषु नारिकेलपूगादिवृक्षाणां घना वनराजयः समुद्रजलमात्मनो दर्पणमिवाकलयन्ति । प्राकृतिकसुषमाकारणादेव कश्मीरस्तु पृथ्वीस्थः स्वर्ग एव मन्यते । अस्माकं राष्ट्रगीते भारतस्य प्रमुखानां प्रदेशानां पर्वतानां नदीनाञ्च कीर्तनं वर्तते । अपरस्मिन् च वन्दे मातरमित्याख्ये गीते च अस्याः भुवः सुजलत्वं सुफलत्वं शस्यश्यामलत्वञ्च वर्ण्यन्ते ।

अनुवाद:– भारत पर प्रकृति देवी की महान् कृपा है । छह ऋतुओं से सुशोभित ऋतु-चक्र यहीं पर बदलता है । सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश जैसा यहाँ फैलता है, वैसा संसार के बहुत थोड़े ही देशों में होता है । सूर्यास्त, चन्द्रास्त और सूर्य-चन्द्र के डूबने के समय के जैसे सुन्दर दृश्य यहाँ होते हैं, वैसे अन्यत्र नहीं । सारे ही भारत देश में नदियों का प्राकृतिक जाल फैला हुआ है, जिससे यहाँ की भूमि अत्यधिक उपजाऊ हो गयी है । उत्तर भाग में सिन्धु, बेतवा, सतलज, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ; मध्य भाग में चम्बल, नर्मदा आदि और दक्षिण भाग में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेरिषार आदि महानदियाँ बहती हैं । इनके तटों पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया आदि बहुत-से तीर्थस्थान विद्यमान हैं, जहाँ प्रतिदिन हजारों यात्री स्नान करके धार्मिक कार्यक्रमों में लगते हैं (धर्मार्जन करते हैं) । {MPBOARDNFO.IN} विशेष अवसरों पर तो कुम्भ जैसे (विशाल) मेले होते हैं, जहाँ देश के प्रत्येक कोने से हजारों, लाखों लोग आकर सम्मिलित होते हैं और देश की सच्ची एकता को बिना कहे ही अच्छी तरह प्रकट करते हैं । भारत के वनों की शोभा भी परम रमणीय है । हिमालय पर देवदारु के वृक्षों की ऊँचाई आकाश को चूमती है , तो संसार के तटीय प्रदेशों में नारियल, सुपारी आदि वृक्षों की घनी वन पंक्तियाँ समुद्र के जल , को अपने दर्पण के समान समझती हैं । प्राकृतिक शोभा के कारणों से ही कश्मीर पृथ्वी का स्वर्ग ही माना जाता है । हमारे राष्ट्रगान में भारत के प्रमुख प्रदेशों, पर्वतों और नदियों की कीर्ति (को वर्णन) है । और दूसरे ‘वन्देमातरम्’ नाम के गीत में इस पृथ्वी की सुजलता, सुफलता और शस्य-श्यामलता वर्णित है ।

अयमस्माकं भारतदेशः संसारस्य गुरुरप्युच्यते । न केवलमुपनिषदामुत्तरवेदान्तस्य चाध्यात्मिकता, श्रुतिस्मृत्यादिषु प्रतिपादितो नैतिक आचारस्तथा विविधसिद्धिप्रदाता योगाभ्यास एवाद्यत्वेऽपि विदेशीयानामाकर्षणकारणं येन तेऽधुनानेकेष्वाश्रमेष्वत्र शान्ति मृगयमाणाः साधनां कुर्वन्ति । स्वदेशेष्वपि तथा विधान् आश्रमांश्च संस्थापयन्ति । हरे कृष्णाद्यनेकसम्प्रदायानुद्भाव्य भक्तिमार्गमवलम्बन्तेऽपि च कामार्थाविति पुरुषार्थद्वयेऽपि भारतस्य प्राचीनामुपलब्धि बहु मन्यते । वात्स्यायनं चाणक्यं चानुद्धृत्य यौनविज्ञानस्य राजनीतिविज्ञानस्य चेतिहासमपि प्रारब्धं न पारयन्ति । अनुल्लिख्य च सुश्रुतं न शल्यविज्ञानस्याविर्भावं प्रस्तोतुं शक्यते । गणितविद्यायां मूलम् अङ्कलेखनप्रणाली सर्वप्रथमं भारते एव आविर्भूता, ततश्च भारतीयेभ्यो अरबदेशीयैरवगता । अधुनापि अङ्क ‘हिन्दसा (हिन्दात् = भारतात् आगतः) इति कथयन्ति । यूरोपीयैस्तु तत्पश्चादेवारबवासिभ्यः संख्यालेखनप्रकार: शिक्षितः । स्वास्थ्यकृते योगासनशिक्षा तु ब्रिटेनादिदेशेषु अनेकात्र माध्यमिक विद्यालयेषु प्रचलति । भारतजन्मा बौद्धधर्मोऽद्यापि कोटिभिर्विदेशीयानामनुत्रियते । महात्मा गान्धिना पुनरुद्घोषितो ‘अहिंसा परमो धर्मः ‘ अद्यापि विश्वशान्तेरद्वितीय उपाय: स्वीक्रियते किन्तु हन्त! मिथः अविश्वसद्भिः परस्परं विभ्यद्भिस्तथोच्चैराकाङ्क्षमाणैः संसारस्य नैकैर्हठिभिनेतृभिस्तदनुपालने वैवश्यमनुभूयते । त्यक्तेन भुञ्जीथा इत्यार्षं सिद्धान्तमनुसृत्य ‘वसुधैव कुटुम्बकमिति’ आदर्श प्राप्ता जना एव विश्वशान्ति स्थापयितु समर्था न तु आयुधेभ्यो धावमानाः मृत्युपण्या: कुशासका: विश्वराजनेतारः ।

अनुवाद:– यह हमारा भारत देश संसार का गुरु भी कहा जाता है । केवल उपनिषदों और उत्तर वेदान्त की आध्यात्मिकता ही नहीं, वेदों, स्मृतियों आदि में बतलाया गया नैतिक आचार तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों को देने वाला योगाभ्यास ही आजकल भी विदेशियों के आकर्षण का कारण है, जिससे वे लोग अब अनेक आश्रमों में यहाँ शान्ति को खोजते हुए साधना करते हैं और अपने देशों में भी उस प्रकार के आश्रमों की {MPBOARDNFO.IN} स्थापना करते हैं । हरे कृष्ण’ आदि अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भक्तिमार्ग का अवलम्बन करते हुए भी काम और अर्थ इन दो पुरुषार्थों को भी प्राचीन भारत की बड़ी (महान्) उपलब्धि समझते हैं । वात्स्यायन और चाणक्य का उद्धरण दिये बिना यौन-विज्ञान और राजनीति विज्ञान के इतिहास को भी प्रारम्भ करने में समर्थ नहीं हैं । सुश्रुत का उल्लेख किये बिना शल्य-विज्ञान की उत्पत्ति प्रस्तुत नहीं की जा सकती । गणित विद्या की मूलस्वरूप अंकों को लिखने की प्रणाली सबसे पहले भारत में भी उत्पन्न हुई और इसके बाद भारतीयों से अरब देश वालों ने जानी । आज भी अंकों को ‘हिन्दसा’ (हिन्द या भारत से आया हुआ) कहते हैं । यूरोप वालों ने तो उसके बाद ही अरब देश वालों से संख्या लिखने का तरीका सीखा । स्वास्थ्य के लिए योगासन की शिक्षा तो ब्रिटेन आदि देशों में अनेक जगह माध्यमिक स्कूलों में प्रचलित है । भारत में उत्पन्न बौद्ध धर्म को आज भी करोड़ों विदेशियों द्वारा अनुसरण किया जाता है । महात्मा गाँधी के द्वारा पुनः उद्घोषित ‘अहिंसा परमो धर्मः’ (के नारे) को आज भी विश्व-शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय स्वीकार किया गया है, किन्तु खेद है । आपस में विश्वास न करने वाले, आपस में डरने वाले तथा ऊँची आकांक्षा रखने वाले संसार के अनेक हठी नेता उनका पालन विवश होकर नहीं करते हैं । ‘त्यक्तेन भुञ्जीथाः’ (त्यागपूर्वक भोग करो) ऋषियों के इस सिद्धान्त का अनुसरण करके ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पृथ्वी ही कुटुम्ब के समान है)-इस आदर्श को प्राप्त हुए लोग ही विश्व-शान्ति को स्थापित करने में समर्थ हैं, आयुधों के लिए दौड़ते हुए, मृत्यु का व्यापार करने वाले, बुरे शासक, संसार के राजनेता नहीं ।

अस्माकं प्राचीनां वास्तुकलां शिल्पकलां च दर्श दर्श विस्फारितनेत्राणां विकसितदेशवास्तव्यानां विस्मयचकिता वागपि न स्फुरति । खजुराहो कोणार्कादिमन्दिराणां स्थापत्यं मूर्तिकलां चावलोकयितुं लक्षशो विदेशीया: पर्यटका अत्रागच्छन्ति । मुहम्मदीयैरपि शासकैरस्मिन् क्षेत्रे यद्विहितं तदपि ‘ताजमहल-कुतुबमीनारादि’ रूपेण प्रतिष्ठितं भारतीयं गौरवं वर्धयति । तदपि वैदेशिकैः सविस्मयं मुहुर्मुहुः स्तूयते । ताजमहलं तु तैः संसारस्य सप्तसु आश्चर्येषु गण्यते । भारतीयमूर्तिकलायास्तु वैदेशिकास्तथा प्रशंसकास्तदर्थं तथोन्मत्ताश्च जायन्ते यल्लक्षशो रुप्यकाणां व्ययं कृत्वापि अवैधैरप्युपायैस्तास्कर्यादिभि: प्राचीनाः मूर्ती: प्राप्तुं यतन्ते । अहो! प्रशंसनीया तेषां कलाप्रीति: निन्दनीयाः अवैधा उपायाः दयनीया च कलाकृतिदरिद्रता ।

अनुवाद:– हमारी प्राचीन भवन-निर्माण कला और शिल्पकला को देख-देखकर फटी हुई आँखों से देखते हुए विकसित देश के निवासियों की विस्मय से चकित होकर वाणी भी नहीं निकलती है । खजुराहो, कोणार्क आदि के मन्दिरों की स्थापत्यकला और मूर्तिकला को देखने के लिए लाखों विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं । मुसलमान शासकों ने भी इस क्षेत्र में जो किया, वह भी ताजमहल, . कुतुबमीनार आदि के रूप में प्रतिष्ठित होकर भारत के गौरव को बढ़ा रहा है । उसकी भी विदेशियों के द्वारा विस्मय से बार-बार प्रशंसा की जाती है । MPBOARDNFO.IN ताजमहल को तो वे संसार के सात आश्चर्यों में गिनते हैं । भारत की मूर्तिकला के तो विदेश के लोग इतने प्रशंसक हैं और उनके लिए इतने पागल हो जाते हैं कि लाखों रुपये खर्च करके भी गैरकानूनी तरीकों, चोरी आदि से भी प्राचीन मूर्तियों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । अहो! उनका कला-प्रेम प्रशंसा के योग्य है, गैरकानूनी तरीके निन्दा के योग्य हैं और कलाकृतियों का अभाव दया के योग्य है ।

अद्भुतोऽयं परमगरिमा देशो यत्र नचिकेता इव ज्ञानपिपासवः जाबालेयसत्यकाम इव सत्यवादिनः, ध्रुव इव तपस्विनश्च बालकाः, अभिमन्युरिव शूराः किशोरा:, एकलव्योद्दालककौत्ससदृशा गुरुभक्ताः शिष्याः, शिविमयूरध्वजकर्णप्रभृतयो दानिनः, हरिश्चन्द्रयुधिष्ठिरादयः सत्यवादिनः, भरतलक्ष्मणसदृशाः भ्रातरः, सीतासावित्रीगान्धारीसदृश्यः पन्यः, दशरथसदृशाः पितरश्च बभूवुः ।

मैत्रेयीगार्गीभारती सदृश्यो विदुष्यो, रजियासुल्ताना-दुर्गावती-लक्ष्मीबाई सदृश्यो वीराङ्गनाः, भगतसिंहसुखदेवचन्द्रशेखरसदृशाः देशभक्ताः, महावीरगौतमबुद्धगान्धितुल्या महात्मानः सन्तश्चास्या एव भारतभुवः सन्ततयः आसन् । देशान्तरेषु धर्मस्य ग्लान्यां सत्यां क्वचिदीश्वरेण स्वकीयो दूतः प्रहितः क्वचिच्च सुतः अत्र तु स्वयं भगवानेव मानवरूपमाधायावतीर्णः ।

अनुवाद:– अत्यन्त गरिमा वाला यह देश अद्भुत है, जहाँ नचिकेता के समान ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक; जाबालि के पुत्र सत्यकाम की तरह सत्यवादी; ध्रुव की तरह तपस्वी बालक; अभिमन्यु की तरह वीर किशोर; एकलव्य, उद्दालक और कौत्स के समान गुरुभक्त शिष्य; शिवि, मयूरध्वज, कर्ण जैसे दानी; हरिश्चन्द्र, युधिष्ठिर आदि सत्यवादी; भरत और लक्ष्मण के समान भाई; सीता, सावित्री और गान्धारी के समान पत्नियाँ और दशरथ के समान पिता हुए हैं । मैत्रेयी, गार्गी और भारती के समान विदुषी स्त्रियाँ; रजिया सुल्तान, दुर्गावती, लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाएँ; भगतसिंह, सुखदेव और चन्द्रशेखर के समान देशभक्त; महावीर, गौतम बुद्ध और गाँधी के समान महात्मा और सन्त इसी भारत-भूमि की सन्तान थे । दूसरे देशों में धर्म की हानि होने पर कहीं ईश्वर के द्वारा अपना दूत भेजा गया और कहीं पुत्रे, परन्तु यहाँ तो स्वयं भगवान् ने ही मनुष्य का रूप धारण करके अवतार लिया ।

अधुनातनेऽप्यनेहसि भारतस्य विश्वस्मिन् भूमण्डले महत्त्वपूर्ण स्थानं वर्तते । स्वकीयाः पारतन्त्र्यशृंखला विभज्यास्माभिः सर्वेषामपि पराधीनदेशानां कृते साहाय्यमुद्घोषितम् । कस्यापि देशस्य प्रभुत्वसत्ता तत्रत्यजनेषु एव निहितेति सडिण्डिमं सिद्धान्तितम् । साम्यवादिदेशानां पुञ्जिवादिदेशानाञ्च वर्गात् पृथक् स्थित्वा विकसतां नवस्वतन्त्रताणां देशानां कृते ताटस्थ्यनीति: प्रचारिता, तेषां च पृथक् संघठनं कृतं यस्य प्रभावो विश्वराजनीत्यां स्पष्टमनुभूयते । विकसित देशानामार्थिकषड्यन्त्राणामुद्घाटनं क्रियते । श्वेताङ्गानां रङ्गभेदनीतेर्विरुद्धं जनमतं सुदृढ़ीकृतम् । भारतीयैः प्रयत्नैरेशियाऽफ्रीकामहाद्वीपीयदेशेषु यद् जागरणं जातं तेनैतेषां देशानां मानोऽपि जगति वर्धितः । आधुनिकविज्ञानौद्योगिकीयान्त्रिक्यादीनां नवज्ञानानां क्षेत्रे महान् विकासो विहितः । नैके आविष्काराश्च कृताः । कृष्युत्पादनं वर्धितम्, यत्र सूच्यपि नो निर्मीयते स्म तत्राधुना अत्याधुनिकानि यन्त्राणि निर्मीयन्ते न केवलमविकसितेभ्यो देशेभ्योऽपि तु अमेरिका-ब्रिटेन सदृशविकसितदेशेभ्योऽपि न केवलं हस्तशिल्पनिर्मितानि वस्तून्यपि तु उच्चाभियान्त्रिकीनिमेंयाणि सूक्ष्मयन्त्राणि अपि दीयन्ते । वैज्ञानिकानां यान्त्रिकीविशेषज्ञानां च यद् बाहुल्यं सम्प्रति भारते वर्तते तत् संसारे द्वित्रिशु देशेषु भवेन्न वा । सहस्रशो विशेषज्ञा देशान्तराणि गत्वा तत्र तेषामुपचयं कुर्वन्ति । भारतीया यथा श्रमशीला न तथा अन्ये इति देशान्तरेषु प्रतिष्ठितम् तथ्यम् ।

अनुवाद:– आधुनिककाल में भी भारत का सम्पूर्ण भूमण्डल में महत्त्वपूर्ण स्थान है । अपनी पराधीनता की जंजीरों को काटकर हमने सभी पराधीन देशों के लिए सहायता की घोषणा की । किसी भी देश की प्रभुसत्ता वहाँ के लोगों में ही निहितं है, इसको ढिंढोरा पीटकर सिद्धान्ततः सिद्ध किया । साम्यवादी देशों और पूँजीवादी देशों के वर्ग से अलग रहकर विकसित नये स्वतन्त्र हुए देशों के लिए (हमने) तटस्थ नीति (निर्गुट नीति) का प्रचार किया और उसका अलग से संगठन बनाया, जिसका प्रभाव विश्व की राजनीति पर स्पष्ट रूप से अनुभव किया जाता है । विकसित देशों के आर्थिक षड्यन्त्रों का भण्डाफोड़ किया है । गौरांगों की रंगभेद नीति के विरुद्ध जनमत को दृढ़ किया । भारत के प्रयत्नों से एशिया, अफ्रीका महाद्वीप के देशों में जो जागरण हुआ, उससे इन देश का संसार में सम्मान भी बढ़ा । MPBOARDNFO.IN आधुनिक विज्ञान, औद्योगिकी और अभियान्त्रिक आदि के नये ज्ञान के क्षेत्र में बहुत विकास किया और अनेक आविष्कार (खोज) किये । कृषि का उत्पादन बढ़ाया है । जहाँ सूई भी नहीं बनायी जाती थी, वहाँ अब अति आधुनिक यन्त्र बनाये जा रहे हैं । केवल अविकसित देशों को ही नहीं, वरन् अमेरिका, ब्रिटेन सरीखे विकसित देशों को भी न केवल हस्तशिल्प से बनायी गयी वस्तुएँ, अपितु बड़े अभियान्त्रिकी के लिए बनाये जाने वाले सूक्ष्म यन्त्र भी दिये जा रहे हैं । वैज्ञानिक और अभियान्त्रिकी विशेषज्ञों की जो अधिकता इस समय भारत में है, वह संसार में दो-तीन देशों में भी हो या न हो । हजारों विशेषज्ञ दूसरे देशों में ज़ाकर वहाँ उनकी वृद्धि करते हैं । भारत के लोग जैसे परिश्रमी हैं, वैसे दूसरे नहीं-यह तथ्य दूसरे देशों में स्थापित है ।

उपर्युक्तविवरणेन विदितमेतद्भवति यत् भारतस्यातीतं तथा गौरवम् अद्याप्यस्मान् विश्वस्य सम्मुखं सम्मानस्योच्चैर्वेदिकायां प्रतिष्ठापयति । किन्तु केवलमतीतगौरवं तु भविष्यन्त्रैव निर्मातुं शक्नोति । वर्तमानकाले उपलब्धानां मानवसंसाधनानां संपदांच सर्वोत्तम उपयोगो विधेयो येन विकासस्य गतिः प्रवर्धेत । सन्ति काश्चिद्दुर्दमाः समस्या याः कथमपि समाधेया एव । विदेशीया न वाञ्छन्ति यद् भारतं राजनीतिक्षेत्रे वित्तीयासु चोपलब्धिषु दृढ़तां गच्छेत् । अतस्ते भारतवासिषु मिथो भेदं प्रयुज्य कलहं कारयन्ति । धर्मं भाषां स्वनिवासक्षेत्रं वा अग्रे कृत्वा समस्या उत्थाप्यन्ते । पञ्चाम्बुप्रदेशे केचन् धर्मान्धा आतङ्कवादमनुसरन्ति विदेशीयैः प्रोत्साहिताः । प्रतिवर्षमनेके साम्प्रदायिककलहा जायन्ते, निरपराधाः जनाः म्रियन्ते, जनसम्पत्तिर्नश्यति देशस्य शक्तिक्षयो भवति । अतः सर्वैरपि अस्माभिः सौहार्देन मिथो वर्तितव्यम् । सर्वेषामपि धर्माणां सांस्कृतिकपरम्पराणां सामाजिकरीतीनामादरः कर्त्तव्यः । धर्मसाहसिभिश्चापि अवगन्तव्यं यद् राजनीत्या धर्मस्य संकट: सर्वथा अश्रेयस्करः । देशजीवनस्य प्रधानधारायां सम्यङ्निमज्जनमेव सर्वेषां मङ्गलम् । द्वितीया तु जनसंख्याया: समस्या । जनसंख्या अत्यधिकवृद्धेः कारणाद् विकासस्य लाभो विलीयते । अतः परिवारकल्याणमप्यवधेयम् । एवमपि सर्वैरवधेयं यत् सार्वजनिकजीवने विशेषतो भ्रष्टाचारो रोधनीयः । अनुचितो लाभः न जातु केनापि स्पृहणीयः । तदर्थं न कश्चिदप्यनुरोद्धव्यः, प्रोत्साहनीयो वैवश्यं वोपनेयः । न कदापि तथा वर्तितव्यं यद् भारतमातुर्विरुद्धं भवेत् । सा वै अस्माकं जन्मभूमिर्यस्या: रजसि वयमाविर्भूताः । भवेन्नाम कस्यापि शवो वह्निसात् परस्य च भूमिसात् को नाम भेदः ? अन्ते तु सर्वोऽपि अस्या भारतमातुरेव रजसि विलीनो भवति । तत्त् कोऽर्थः परस्परं कलहेन जन्मनः मातरं विद्रोहेण वा । सा तु सर्वदैव माननीया यतो हि-

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”

अनुवाद:– ऊपर बताये गये विवरण से यह मालूम होता है कि भारत का अतीत और गौरव आज भी . हमें संसारे के सामने सम्मान के उच्च सिंहासन पर स्थापित करता है, किन्तु अतीत का गौरव भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता है । वर्तमान समय में प्राप्त हुई मानव की सुविधाओं और सम्पत्तियों का सबसे उत्तम उपयोग करना चाहिए, जिससे विकास की गति बढ़े । कुछ दबाने में कठिन दुर्दमनीय समस्याएँ हैं, जिनको किसी तरह समाधान करना ही है । विदेश के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत राजनीति के क्षेत्र में और आर्थिक उपलब्धियों में मजबूत बने; अतः वे भारतवासियों में आपस में फूट डालकर झगड़ा कराते रहते हैं । धर्म, भाषा या प्रदेश को आगे रखकर समस्याएँ पैदा की जाती हैं । पंजाब प्रदेश में कुछ धर्मान्ध विदेशियों के द्वारा उकसाये जाकर आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं । प्रतिवर्ष अनेक साम्प्रदायिक झगड़े पैदा होते हैं, निर्दोष लोग मारे जाते हैं, जन-सम्पत्ति नष्ट होती है और देश की शक्ति का ह्रास MPBOARDNFO.IN होता है; अत: हम सबको आपस में भाईचारे से रहना चाहिए । सभी धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों का आदर करना चाहिए; अत: धर्म के अगुवाओं को भी समझ लेना चाहिए कि राजनीति के द्वारा धर्म का संकट पैदा करना सब तरह से अहितकर है । देश के जीवन की मूलधारा में अच्छी तरह मिल जाने में ही सबका कल्याण है । दूसरी जनसंख्या की समस्या है । जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ने से विकास का लाभ नष्ट हो जाता है; अतः परिवार कल्याण की ओर भी ध्यान देना चाहिए । यह भी सबको ध्यान देना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में विशेष रूप से भ्रष्टाचार को रोका जाए । किसी को (कभी) भी अनुचित लाभ की इच्छा नहीं करनी चाहिए । उसके लिए न किसी से अनुरोध किया जाए अथवा विवश होकर न प्रोत्साहन दिया जाए । कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो भारतमाता के प्रतिकूल हो । (निश्चय ही) यह । हमारी जन्मभूमि है, जिसकी धूल में {MPBOARDNFO.IN हम उत्पन्न हुए हैं । किसी को मृत शरीर जलाया जाए या दफनाया जाए-दोनों में क्या अन्तर है? अन्त में तो सभी इस भारतमाता की धूल में मिल जाते हैं । आपस में झगड़ने से अथवा जन्म की माता के प्रति विद्रोह करने से क्या लाभ? वह. तो सदा ही सम्मान के योग्य है; क्योंकि माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं ।”

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