Up board solution for class 9 hindi chapter 7 thele par himalay ठेले पर हिमालय (डॉ० धर्मवीर भारती)
Up board solution for class 9 hindi chapter 7 thele par himalay ठेले पर हिमालय (डॉ० धर्मवीर भारती) सम्पूर्ण हल
पाठ — 7 ठेले पर हिमालय (डॉ० धर्मवीर भारती)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1— धर्मवीर भारती की जन्म-तिथि तथा जन्म-स्थान के बारे में बताइए ।
उत्तर— धर्मवीर भारती जी का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ था ।
2— धर्मवीर जी की स्कूली शिक्षा तथा उच्च शिक्षा कहाँ हुई ? उन्होंने पी०एच०डी० किसके निर्देशन में की ?
उत्तर— धर्मवीर जी की स्कूली शिक्षा डी०ए०वी० हाईस्कूल में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में । उन्होंने डॉ० धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में पी०एच०डी० की ।
3— धर्मयुग के संपादक कौन थे ?
उत्तर— डॉ० धर्मवीर भारती धर्मयुग के संपादक थे ।
4— धर्मवीर जी की कौन-सी रचना पर आधारित श्याम बेनेगल ने फिल्म बनाई ?
उत्तर— धर्मवीर जी के ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ नामक उपन्यास पर श्याम बेनेगल ने फिल्म बनाई ।
5— साहित्य लेखनके अतिरिक्त भारती जीके और कौन-से शौकथे ?
उत्तर— भारती जी को साहित्य लेखन के अतिरिक्त अध्ययन और यात्रा का शौक था ।
6— 1972 में भारती जी को किस सम्मान से सम्मानित किया गया ?
उत्तर— 1972 में भारती जी को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया ।
7— भारती जी को और कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त हुए ?
उत्तर— भारती जी को हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता, भारत भारती, सर्वश्रेष्ठ नाटककार, महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, व्यास सम्मान, के०के० बिड़ला फाउंडेशन, महाराष्ट्र गौरव आदि पुरस्कार प्राप्त हुए ।
8— कौन-सा उपन्यास लिखकर भारती जी अमर हो गए ?
उत्तर— भारती जी ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास लिखकर अमर हो गए ।
9— ‘ठेले पर हिमालय’ का वर्ण्य-विषय क्या है ?
उत्तर— ‘ठेले पर हिमालय’ का वर्ण्य-विषय हिमालय की रमणीय शोभा है । इसमें कौसानी में हिमालय की सुंदरता का अद्भुत वर्णन है ।
(ख) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1— धर्मवीर भारती के जीवन का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए ।
उत्तर— डॉ० धर्मवीर भारती आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे । वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान संपादक भी थे । डॉ० धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया । उनका उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ सदाबहार रचना मानी जाती है । ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ उनका दूसरा अनुपम उपन्यास है, जिस पर श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनाई ।
जीवन परिचय- डा० धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माँ का श्रीमती चंदादेवी था । इनकी स्कूली शिक्षा डी०ए०वी० हाईस्कूल में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में । प्रथम श्रेणी में एम०ए० करने के बाद डॉ० धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध-प्रबंध लिखकर उन्होंने पी-एच०डी० प्राप्त की ।
घर और स्कूल से प्राप्त आर्यसमाजी संस्कार, इलाहाबाद और विश्वविद्यालय का साहित्यिक वातावरण, देश भर में होने वाली राजनैतिक हलचलें, बाल्यावस्था में ही पिता की मृत्यु और उससे उत्पन्न आर्थिक संकट इन सबने उन्हें अतिसंवेदनशील, तर्कशील बना दिया । उन्हें जीवन में दो ही शौक थे – अध्ययन और यात्रा । भारती जी के साहित्य में उनके विशद अध्ययन और यात्रा-अनुभवों का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है । जानने की प्रक्रिया में होने और जीने की प्रक्रिया में जानने वाला मिजाज जिन लोगों का है उनमें मैं अपने को पाता हूँ । आलोचकों में भारती जी को प्रेम और रोमांस का रचनाकार माना जाता है । उनकी कविताओं, कहानियों और उपन्यासों में प्रेम और रोमांस का तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद है । परंतु उसके साथ-साथ इतिहास और समकालीन स्थितियों पर भी उनकी पैनी दृष्टि रही है, जिसके संकेत उनकी कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, आलोचना तथा संपादकियों में स्पष्ट देखे जा सकते हैं उनकी कहानियों व उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ के चित्र हैं । ‘अंधा युग’ में स्वातंत्र्योत्तर भारत में आई मूल्यहीनता के प्रति चिंता है । उनका बल पूर्व और पश्चिम के मूल्यों, जीवन-शैली और मानसिकता के संतुलन पर है, वे न तो किसी एक का अंधा विरोध करते हैं न अंधा समर्थन । परंतु क्या स्वीकार करना और क्या त्यागना है, इसके लिए व्यक्ति और समाज की प्रगति को ही आधार बनाना होगापश्चिम का अंधानुकरण करने की कोई जरूरत नहीं है, पर पश्चिम के विरोध के नाम पर मध्यकाल में तिरस्कृत मूल्यों को भी अपनाने की जरूरत नहीं है । 1997 ई० में धर्मवीर भारती जी का देहावसान हो गया ।
रचनाएँ- कहानी, निबंध, एकांकी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, संपादन व काव्य सृजन के क्षेत्र में इन्होंने अपनी विलक्षण सृजन-प्रतिभा का परिचय दिया । वस्तुतः साहित्य की जिस विधा का भी इन्होंने स्पर्श किया, वही विधा इनका स्पर्श पाकर धन्य हो गई । ‘गुनाहों का देवता’ जैसा सशक्त उपन्यास लिखकर ये अमर हो गए । डॉ० धर्मवीर भारती ने विविध विधाओं में साहित्य रचना की है, उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं
(अ) उपन्यास- सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता
(ब) काव्य- कनुप्रिया, सात गीत-वर्ष, अंधा युग, ठंडा लोहा
(स) कहानी संग्रह- मुर्दो का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग
(द) नाटक और एकांकी- ‘नदी प्यासी थी’ इनका प्रसिद्ध नाटक है । ‘नीली झील’ संग्रह में इनके एकांकी संकलित हैं ।
(य) निबंध-संग्रह- कही-अनकही, ठेले पर हिमालय, पश्यंती
(र) आलोचना- मानव-मूल्य, साहित्य इन रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने विश्व की कुछ प्रसिद्ध भाषाओं की कविताओं के अनुवाद भी किए हैं । यह संग्रह ‘देशांतर’ नाम से प्रकाशित हुआ है ।
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2— भारती जी का हिंदी साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए ।
उत्तर— हिंदी साहित्य में स्थान- भारती जी की दृष्टि में वर्तमान को सुधारने और भविष्य को सुखमय बनाने के लिए आम जनता के दुःख दर्द को समझने और उसे दूर करने की आवश्यकता है । दुःख तो उन्हें इस बात का है कि आज ‘जनतंत्र’ में ‘तंत्र’ शक्तिशाली लोगों के हाथों में चला गया है और ‘जन’ की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है । अपनी रचनाओं के माध्यम से आम जन की आशाओं, आकांक्षाओं, विवशताओं, कष्टों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास उन्होंने किया है । भारती जी ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी लेखनी से तीखे प्रहार किए और आधुनिक भारतीय समाज के यथार्थ रूप को अनावृत करके रख दिया । इनका एक कवि, नाटककार, कथाकार, निबंधकार और पत्रकार के रूप में हिंदी-गद्य साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान है । गद्य साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही ‘नई कविता’ क्षेत्र को भी समृद्ध करने वाले डॉ० धर्मवीर भारती का साहित्य जगत सदैव ऋणी रहेगा ।
3— भाषा-शैली की दृष्टि से धर्मवीर भारती का मूल्यांकन कीजिए ।
उत्तर— भाषा-शैली- भारती जी की भाषा प्रवाहपूर्ण, सशक्त और प्रौढ़ है । इनकी रचनाओं में परिष्कृत और परिमार्जित भाषा का प्रयोग मिलता है । इनकी भाषा में सरलता, सहजता, सजीवता और आत्मीयता का पुट है तथा देशज, तत्सम और तद्भव सभी प्रकार के शब्दों के प्रयोग हुए हैं । मुहावरों तथा कहावतों के प्रयोग से भाषा में गति और बोधगम्यता आ गई है । विषय और विचार के अनुकूल भारती जी की रचनाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार की शैलियों का प्रयोग हुआ है ।
(अ) भावात्मक शैली– भारती जी मूलत: कवि थे । अत: इनका कवि-हृदय इनकी गद्य रचनाओं में भी मुखर हुआ है । ऐसे स्थलों पर इनकी शैली भावात्मक हो गई है ।
(ब) समीक्षात्मक शैली- अपनी आलोचनात्मक रचनाओं में भारती जी ने समीक्षात्मक शैली का प्रयोग किया है । इस शैली में गंभीरता है और भाषा तत्समप्रधान है ।
(स) चित्रात्मक शैली– भारती जी शब्दचित्र अंकित करने में विशेष दक्ष हैं । जहाँ इन्होंने घटनाओं और व्यक्तियों के शब्दचित्र अंकित किए हैं, वहाँ इनकी शैली चित्रात्मक हो गई है ।
(द) वर्णनात्मक शैली– जहाँ घटनाओं, वस्तुओं या स्थानों का वर्णन हुआ है, वहाँ इनकी वर्णनात्मक शैली के दर्शन होते हैं ।
(य) व्यंग्यपूर्ण प्रतीकात्मक शैली- भारती जी ने अपनी रचनाओं में यथास्थान हास्य और व्यंग्य का भी प्रयोग किया है । ऐसे स्थलों पर इनकी शैली में प्रतीकात्मकता आ गई है ।
4— ‘ठेले पर हिमालय’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर— ठेले पर हिमालय डॉ० धर्मवीर भारती द्वारा लिखित यात्रावृत्तांत श्रेणी का संस्मरणात्मक निबंध है । इसमें लेखक ने नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का रोचक वर्णन किया है । इस निबंध के माध्यम से लेखक ने जीवन के उच्च शिखरों तक पहुँचने का जो संदेश दिया है, वह भी अभिनंदनीय है । लेखक एक दिन जब अपने गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ पान की दुकान पर खड़े थे तब ठेले पर लदी बर्फ की सिल्लियों को देखकर उन्हें हिमालय पर्वत को ढके हिमराशि की याद आई क्योंकि उन्होंने उस राशि को पास से देखा था, जिसकी याद उनके मन पर एक खरोंच सी छोड़ देती है । इस बर्फ को पास से देखने के लिए ही लेखक अपनी पत्नी के साथ कौसानी गए थे । नैनीताल से रानीखेत व मझकाली के भयानक मोड़ों को पारकर वे कोसी पहुँचे । कोसी में उन्हें उनके सहयात्री शुक्ल जी व चित्रकार सेन मिले जो हृदय से बहुत सरल थे । कोसी से कौसानी के लिए चलने पर उन्हें सोमेश्वर घाटी के अद्भुत सौंदर्य के दर्शन हुए । जो बहुत ही सुहाने थे, परंतु मार्ग में आगे बढ़ते जाने पर यह सुंदरता खोती जा रही थी, जिससे लेखक के मन में निराशा उत्पन्न हो रही थी क्योंकि लेखक के एक सहयोगी के अनुसार कौसानी स्विट्जरलैंड से भी अधिक सुंदर था तथा महात्मा गाँधी जी ने भी अपनी पुस्तक अनासक्तियोग की रचना यहीं की थी । कौसानी सोमेश्वर घाटी की ऊँची पर्वतमाला के शिखर पर बसा हुआ है, जो एक वीरान व छोटा सा गाँव था तथा वहाँ बर्फ के दर्शन कहीं नहीं थे । हमें ऐसा लगा जैसे हमारे साथ धोखा हुआ हो । जिससे लेखक उदास हो गए और बेमन से बस से उतरे परंतु वह जहाँ खड़े थे वहीं जड़ हो गए । कौसानी की पर्वतमाला में स्थित कत्यूर की घाटी का अद्भुत सौंदर्य उनके सामने बिखरा पड़ा था । लेखक को लगा जैसे वह दूसरे लोक में पहुँच गए हों और इस धरती पर पाँव को साफ करके आगे बढ़ना चाहिए । लेखक को क्षितिज के धुंधलेपन में कुछ पर्वतों का आभास हुआ जिसके पीछे बादल थे । अचानक लेखक को बादलों के बीच नीले, सफेद व रूपहले रंग का टुकड़ा दिखाई दिया जो कत्यूर घाटी में स्थित पर्वतराज हिमालय था । परंतु एक क्षण बाद ही उसे बादलों ने ढक लिया जैसे किसी बच्चे को खिड़की से अंदर खींच लिया हों परंतु उस क्षण भर के हिम दर्शन ने लेखक के मन की निराशा, उदासी व थकावट को दूर कर दिया था । शुक्ल जी शांत थे जैसे कह रहे थे यही है कौसानी का जादू । धीरे-धीरे बादलों के छंटने के बाद हिमशिखरों के अनावृत रूप के उन लोगों को दर्शन हुए । उस समय उन लोगों के मन की क्या दशा थी उसका वर्णन करना असंभव था अगर लेखक उसका वर्णन कर पाता तो उसके मन में वर्णन न कर पाने की पीड़ा न रह गई होती ।
हिमालय की शीतलता से अपने दुःखों को नष्ट करने के लिए ही तपस्वी यहाँ आकर साधना करते थे । सूरज के अस्त के समय कत्यूर घाटी का सौंदर्य अद्भुत था । रात में चाँद के आगमन पर ऐसा लगा जैसे हिम निद्रा में मग्न है । हिमालय के दर्शन से लेखक स्वयं को कल्पनाहीन और छोटा महसूस कर रहा था । उसे लगा जैसे हिमालय उसे उसके समान ऊँचा उठने की चुनौती दे रहा हो । सेन एक मनोरंजक व्यक्ति था जो हर दृष्टिकोण से हिमालय को देखना चाहता था । अगले दिन लेखक और उसके सहयात्री 12 मील की यात्रा के बाद बैजनाथ गए जहाँ गोमती नदी अपनी मधुरता के साथ बहती है और जिसमें हिमालय अपनी छाया से तैरता हुआ प्रतीत होता है । आज भी लेखक को उसका स्मरण हो आता है । ठेले पर हिमालय कहकर लेखक उन बर्फ की स्मृतियों को भुलाने की कोशिश करता है जो लेखक को बार-बार अपनी ओर आकर्षित करती है । लेखक का मन होता है कि वह हिमालय को संदेश भेजे कि वह लौटकर अवश्य आएगा । उन्हीं ऊँचाइयों पर उनका मन लगता है जिसकी स्मृति उसके मन में बार-बार उठती है ।
अवतरणों पर आधारित प्रश्न——Up board solution for class 9 hindi chapter 7 thele par himalay ठेले पर हिमालय (डॉ० धर्मवीर भारती)
1— छोटा सा————— आगे बढ़ना चाहिए ।
संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के ‘गद्य खंड’ के ‘डॉ० धर्मवीर भारती’ द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक निबंध से अवतरित है ।
प्रसंग- अवतरण में लेखक ने कौसानी के सौंदर्य को देखने की अपनी उत्सुकता व कौसानी में स्थित कत्यूर घाटी के सौंदर्य का अनुपम वर्णन किया है ।
व्याख्या- लेखक अपनी उत्सुकता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब हम कौसानी पहुँचे, जो एक छोटा सा बिलकुल वीरान सा गाँव था और जहाँ पर बर्फ दूर दूर तक नहीं थी । वहाँ पहुँचकर हमें लगा कि हमारे साथ धोखा हुआ है । मैं बहुत निराश और अनचाहे मन से बस से नीचे उतरा परंतु बस से उतरकर मैं जहाँ पर खड़ा था वहीं निष्प्राण मूर्ति की भाँति स्तब्ध रह गया । लेखक कहता है कि मैंने कौसानी के सौंदर्य के बारे में जो वर्णन सुना था मार्ग में तथा कौसानी पहुँचने पर उसे न पाकर बहुत निराश हो गया था । परंतु कौसानी के सामने की घाटी के सौंदर्य और उसके आकर्षण से खिंचा हुआ मैं मंत्रमुग्ध-सा उसे देखता रहा । वह कत्यूर घाटी थी, जिसमें अनंत सौंदर्य बिखरा पड़ा था । जिस प्रकार कोई सुंदरी अपने सौंदर्य को अपने आँचल में छिपाकर रखती है, उसी प्रकार कौसानी की इस पर्वत-श्रृंखला ने कत्यूर घाटी के सौंदर्य को छिपा रखा था । कत्यूर घाटी के सौंदर्य में जो आकर्षण है, उससे आकर्षित होकर निश्चय ही प्रेम, सौंदर्य तथा संगीत के उपासक यक्ष और किन्नर यहाँ रहते होंगे ।
तात्पर्य यह है कि इस कत्यूर घाटी के सौंदर्य से आकर्षित होकर देवता भी यहाँ आने के लिए उत्सुक रहे होंगे । यह घाटी लगभग पचास मील चौड़ी है । इस घाटी में हरे-भरे खेत भी हैं, जो हरी मखमली चादर के समान प्रतीत होते है । यहाँ गेरू की लाल-लाल शिलाएँ काटकर रास्ते बनाए गए हैं, जो लाल रंग के हैं और अत्यंत आकर्षक लगते हैं । इन लाल-लाल रास्तों के किनारे सफेद पर्वत खड़े हैं, जो ऐसे लगते हैं मानो सफेद रंग की कोई रेखा खींच दी गई हो । उलझी हुई बेलों की लड़ियों के समान नदियाँ वहाँ गुंथी हुई प्रतीत होती हैं । इस सौंदर्य ने मेरा मन मोह लिया और सहसा मेरे मन में यह विचार आया कि इन बेलों की लड़ियों को उठाकर अपनी कलाई में लपेटकर आँखों से लगा लूँ । तात्पर्य यह है कि इसकी सुंदरता आँखों में बसाने योग्य है । यह सौंदर्य आत्मविभोर कर देने वाला है । सजे हुए सुंदर तथा पवित्र सौंदर्य वाली इस कत्यूर घाटी को देखकर मन करता है कि इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए मंदिर अथवा आराधना-स्थल की भाँति जूते उतारकर और फिर पैर पोंछकर ही आगे बढ़ना चाहिए, जिससे कि इसकी पवित्रता पर पैरों की धूल आदि का कोई धब्बा न लगे ।
प्रश्नोत्तर
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर— पाठ- ठेले पर हिमालय
लेखक- धर्मवीर भारती
(ब) लेखक पत्थर की मूर्ति की भाँति क्यों खड़े रह गए ?
उत्तर— कौसानी के सामने कत्यूर की घाटी का सौंदर्य देखकर लेखक पत्थर की भाँति खड़े रह गए ।
(स) कत्यूर की घाटी कहाँ स्थित है ?
उत्तर— कत्यूर घाटी कौसानी की पर्वतमाला के मध्य स्थित है ।
(द) कौसानी की पर्वतमाला में कौन-कौन वास करते होंगे ?
उत्तर— किन्नर और यक्ष कौसानी की पर्वतमाला में निवास करते होंगे; क्योंकि यहाँ का प्रकृति-सौंदर्य अत्यंत मोहक और
रमणीय है । किन्नर और यक्ष प्रेम सौंदर्य और संगीतप्रिय जाति मानी गई हैं तो निश्चय ही वे ऐसे ही सौंदर्य-संपन्न स्थान पर निवास करती होगी ।
य) कत्यूर की घाटी का सौंदर्य वर्णन कीजिए ।
उत्तर— कत्यूर की घाटी को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस घाटी में किन्नर और यक्ष (मानव से इतर योनि) निवास करते होंगे क्योंकि इन्हें प्रेम सौंदर्य और संगीतप्रिय जाति माना जाता है । नदियाँ वृक्ष की लंबी बेलों के समान लगती हैं । इन्हें देखकर इनको कलाई में लपेटकर आँखों से लगाने की इच्छा जाग्रत होती है । पवित्र सौंदर्य वाली कत्यूर की घाटी में आगे बढ़ने के लिए किसी पवित्र स्थल के समान जूते उतारकर और पैर पोंछकर आगे बढ़ने की इच्छा होती है ।
(र) ‘पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए’ लेखक ऐसा क्यों कह रहा है ?
उत्तर— लेखक ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि उसे कत्यूर घाटी बहुत पवित्र लगती है । उसकी पवित्रता बनाए रखने के
लिए वह पैर पोंछकर आगे बढ़ने के लिए कह रहा है ।
2— पर उस एक क्षण——- —— मँह लटका लिया ।
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- उत्तराखंड स्थित कौसानी के प्राकृतिक सौंदर्य का वास्तविक चित्रण किया गया है, जहाँ जीवन की समस्त कलुषिता धुल जाती है और मन पवित्रता व शीतलता से भर जाता है ।
व्याख्या- हिमालय की घाटियों तथा हिमशिखरों पर प्रकृति का विराट अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है । अचानक ही बादलों के बीच से प्रकट हुई हिमशिखरों पर चमकती सफेद चाँदी-सी बर्फ ने सभी के दिल को तरोताजा कर दिया था । एकक्षण के पश्चात् उस बर्फ को फिर से बादलों ने ढक लिया । मगर उस एक क्षण के दृश्य ने यात्रा की थकावट तथा मन की खिन्नता को मिटा दिया था । जीवन प्रकृति-सुषमा को देखकर फूल की तरह खिल उठा था । मन एक बार फिर से उस सौंदर्य को देखने के लिए व्याकुल हो उठा । मन में एक आशा जगी कि अभी कुछ देर में ये बादल हट जाएँगे और हिमालय का वह पवित्र सौंदर्य एक बार फिर से हमारे सामने उपस्थित हो जाएगा बिल्कुल स्पष्ट और बेपर्दा । मन कल्पना करने लगा कि हिमालय की अपार सुंदरता से सजी दुल्हन मानो हमारे सामने बादलों का चूँघट अपने मुख पर डाले खड़ी है । बस वह अभी धीरे से अपना घूघट पीछे को सरका देगी और हमारा मन उसके सौंदर्य को देखकर आनंद से भर उठेगा । उस घूघट के सरकने और मन के आनंदित हो उठने की अत्यधिक उत्सुकीय प्रतीक्षा ने हमारे दिल की धड़कने बढ़ा दीं कि वह घट अब हटा और तब हटा । लेखक कहते हैं कि हम सब उस सौंदर्य को देखने के लिए बहुत आतुर थे परंतु शुक्ल जी को बिलकुल भी आतुरता न थी वे मेरी ओर देखकर कभी-कभी मुस्कुराते जिसका तात्पर्य था यही है कौसानी का जादू । यह जादू क्षण-क्षण में बदलता रहता है और पर्यटकों को विस्मित कर देता है । लेखक के मन में कौसानी तक पहुंचे बिना ही जो निराशा व्याप्त हो गई थी, वह यह जादू देखकर गायब हो गई थी ।
प्रश्नोत्तर
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर— पाठ- ठेले पर हिमालय
लेखक- धर्मवीर भारती
(ब) क्या देखने के लिए सभी व्याकुल हो रहे थे ?
उत्तर— बादलों से ढकी हिमाच्छादित पर्वत चोटी का सौंदर्य देखने के लिए सभी व्याकुल हो रहे थे ।
(स) बादलों से ढके हिमालय के सौंदर्य की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर— बादलों से ढके हिमालय के सौंदर्य की तुलना मुख पर चूँघट डाले नई-नवेली दुल्हन से की गई है ।
(द) लेखक के दिल की धड़कन क्यों बढ़ी हुई थी ?
उत्तर— हिमाच्छादित पर्वत-चोटी के सौंदर्य-दर्शन की उत्सुकता के कारण लेखक के दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी ।
(य) शुक्ल जी लेखक को देखकर बार-बार क्यों मुस्कुरा रहे थे ? ।
उत्तर— शुक्ल जी लेखक को देखकर बार-बार इसलिए मुस्कुरा रहे थे क्योंकि वह लेखक को यह दर्शाना चाहते थे कि
बिना कौसानी तक पहुँचे ही उनके मन में जो निराशा व्याप्त हो गई थी, वह यहाँ पहुँचते ही कहाँ गायब हो गई । यही तो कौसानी का जादू है ।
3— हमारे मन में —————————————– ——-चिरंतन हिम ।
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- लेखक अपने मित्रों के साथ हिमालय की गोद में स्थित कौसानी की यात्रा पर गया । वहाँ पर डाकबंगले में ठहरने के पश्चात् उसने वहाँ बैठे-बैठे हिमालय की जिस सुंदरता को देखा, उसी का वर्णन इस गद्यांश में किया गया है । व्याख्या- लेखक जिस समय डाकबंगले में पहुँचा था, उस समय आसमान में बादल छाए थे, जिस कारण पर्वतीय सौंदर्य कहीं दिखाई न देता था । फिर एकाएक बादल पहाड़ों के पीछे, नीचे को उतरते गए और उनके बीच से बर्फ से ढके पहाड़ों की श्रृंखलाएँ दिखाई देने लगी । हिमाच्छादित पर्वत-शिखरों की बादलों के मध्य से झाँकती ऊबड़-खाबड़ श्रृंखलाएँ जितनी मोहक और रहस्यमयी लग रही थी, उनका वर्णन करना लेखक को अपने लिए संभव नहीं दिखता । अपनी इसी असमर्थता को व्यक्त करता लेखक कहता है कि उस रहस्यमय पर्वतीय सौंदर्य को देखकर हम सबके मन में जो भावनाएँ उठ रही थीं, शब्दों में उनका वर्णन करने में मैं स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ ।
उस असमर्थता की टीस आज तक मेरे मन को व्यथित करती है । उस पल के आत्मानुभाव को मैं एक प्रतीक के रूप में इस प्रकार व्यक्त कर सकता हूँ कि उस समय मन को वैसा आनंद, वैसी शीतलता का अनुभव हो रहा था जैसी शीतलता का अनुभव हम बर्फ की सिल्लियों के सामने खड़े होने पर करते हैं । जैसे बर्फ की सिल्लियों से उठती ठंडी भाप हमारे अंतर्मन तक को शीतलता का अनुभव कराती है, कुछ इसी तरह हिमालय की शीतलता हमारे माथे को स्पर्श करके हमारे मन-मस्तिष्क के समस्त संघर्षों, अंतर्द्वद्वों और दुःखों को नष्ट कर रही थी । लेखक यहाँ ऋषि-मुनियों द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं भौतिक आदि सभी प्रकार के दुःखों को ताप कहे जाने पर अपना मत व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं इस रहस्य को आज पहली बार ठीक प्रकार से समझ पाया हूँ कि हिमालय पर निवास करके तपस्या करने वाले क्यों दुःखों को ताप कहते थे । कारण स्पष्ट है कि तन-मन को शीतल और शांत बनाने वाली हिमालय की शीतलता का अनुभव वे लोग कर चुके थे, अतः दुःखों (ताप) के संताप से छुटकारा पाने के लिए ही वे हिमालय में तपस्या करने आते थे । तभी अचानक उनके मन में एक प्रश्न उठा कि बर्फ का यह अतुलनीय भंडार कितना पुराना है । अनंत काल से कभी ना नष्ट होने वाला यह बर्फ इन शिखरों पर विराजमान है । इसलिए कुछ विदेशी पर्यटकों ने हिमालय की इस बर्फ को ‘पुरातन बर्फ’ की संज्ञा दी है ।
प्रश्नोत्तर
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर— पाठ- ठेले पर हिमालय
लेखक- धर्मवीर भारती (ब) लेखक ने खरोंच’ और ‘पीर’ किसे कहा है ?
उत्तर— हिमालयी सौंदर्य को देखकर लेखक के मन में जो भावनाएँ उत्पन्न हो रही थीं, लेखक उनको शब्दों में व्यक्त कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा है, अपनी इसी असमर्थता को उसने खरोंच और पीर कहा है ।
(स) लेखक की उस समय मनोदशा कैसी थी ? ।
उत्तर— लेखक की हिमालय दर्शन के बाद मनोदशा बड़ी विचित्र थी । हिमालय के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए उसके पास शब्द ही नहीं थे । उस सौंदर्य सुख का वर्णन न कर पाने के कारण उसे पीड़ा का अनुभव हो रहा था ।
(द) पुराने साधक हिमालय पर क्या करने जाते थे ?
उत्तर— पुराने साधक हिमालय पर साधना करने जाते थे । क्योंकि उन्हें यहाँ आकर अपने सभी शारीरिक, मानसिक और भौतिक दुःखों से छुटकारा मिल जाता था, इसका कारण यह था कि वे सौंदर्य में इतने डूब जाते थे कि अपने सभी दुःखों को भूल जाते थे और उनके मन को अपार शांति मिलती थी ।
(य) लेखक ने हिमालय की शीतलता की तुलना किससे की है ?
उत्तर— लेखक ने हिमालय की शीतलता की तुलना बर्फ की सिल्लियों से उठने वाली ठंडी भाप से की है ।
4— इसी हिमालय को देखकर —— ——–ऊँचे उठोगे ?
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- इन पंक्तियों में भारतीजी ने अपनी कौसानी यात्रा के दौरान हुए अनुभवों के माध्यम से हिमालय का सजीव वर्णन किया है तथा हिमालय को समीप से देखने पर अपने मन में उत्पन्न भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है ।
व्याख्या- लेखक अपने मनोभावों को प्रकट करते हुए कहते हैं कि दूसरे कवियों ने इस पवित्र हिमालय की सुंदरता को देखकर बहुत कुछ लिखा है लेकिन वह स्वयं को इस हिमालय के आगे इतना तुच्छ समझ रहे हैं कि उनके मन में इसके लिए कविता तो दूर कविता की एक पंक्ति या एक शब्द भी नहीं आ रहा है । कौसानी में रात के समय चाँद निकलने पर जब भारती जी ने हिमालय की गगनचुंबी बर्फ से ढकी चोटियों को देखा तो वे अपने मन के अंदर अपनी चेतना के विराट होते हुए स्वरूप की अनुभूति करने लगे । उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनके अंतर्मन में छाए अज्ञानरूपी बादल भी उँट रहे हैं और कुछ ऐसा उभरकर सामने आ रहा है; जिसकी प्रकृति हिमालय के इन शिखरों के समरूप है । उनकी चेतना हिमालय की चोटियों के समान ही ऊँचा उठने की चेष्टा करने लगी, जिससे उन चोटियों से उनके स्तर पर ही मिला जा सके । उनके मन में ऐसी अनुभूति होने लगी, मानो हिमालय उनका बड़ा भाई हो और वह स्वयं ऊँचे चढ़कर एवं उन्हें कुंठाग्रस्त व लज्जानुभूति की मनोदशा में नीचे देखकर स्नेहपूर्ण चुनौती देते हुए कह रहा हो – “हिम्मत है ? ऊँचे उठोगे ?”
प्रश्नोत्तर
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर— पाठ- ठेले पर हिमालय
लेखक- धर्मवीर भारती (ब) लेखक के मन में हिमालय को देखकर क्या भावनाएँ उठ रही हैं ?
उत्तर— लेखक की चेतना हिमलाय की चोटियों के समान ही ऊँचा उठने की चेष्टा करने लगी । उनके मन में यह भावना
उठी कि मानो हिमालय उनका बड़ा भाई हो जो उन्हें ऊँचा उठने के लिए प्रेमपूर्ण चुनौती दे रहा है ।
(स) हिम के समक्ष आकर लेखक अपने आप को कैसा महसूस कर रहा है ?
उत्तर— हिम के समक्ष आकर लेखक अपने आप को छोटा महसूस कर रहा है ।
(द) लेखक को हिमालय एक बड़े भाई की तरह क्यों लगा ?
उत्तर— बड़े भाई का कर्त्तव्य होता है कि वह पहले उन्नति का उदाहरण प्रस्तुत करके छोटे भाई का हाथ पकड़कर उसे भी
अपने बराबर लाकर खड़ा कर दे । हिमालय बहुत ऊँचा उठ गया है, लेखक उसके सामने अपने आपको बहुत छोटा अनुभव कर रहा है । उसे लग रहा है कि मानो हिमालय बड़े भाई की तरह उससे कह रहा है कि आओ मेरे
समान ऊँचे उठकर मेरे बराबर में आकर खड़े हो जाओ ।
(य) हिमालय क्या चुनौती दे रहा है ?
उत्तर— हिमालय लेखक की हिम्मत अथवा साहस को प्रेमपूर्ण चुनौती दे रहा है कि यदि हिम्मत रखते हो तो मेरे बराबर
उँचा उठकर दिखाओ ।
5— आज भी उसकी याद ————– मैं करूँ तो क्या करूँ ?
संदर्भ- पूर्ववत् प्रसंग- लेखक हिमालय की गोद में स्थित कौसानी के सौंदर्य से इतना प्रभावित हुआ कि उसका मन बार-बार वहाँ जाने को करता रहता है । अपने यात्रा-वृत्तांत के समापन में लेखक ने अपनी इसी मनोदशा को व्यक्त किया है ।
व्याख्या- मेरे मन में आज भी हिमालय की हिम से ढकी हुई चोटियाँ साकार हो उठती हैं । उन हिम-मंडित शिखरों ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है । मुझे लगता है कि वे शिखर मुझे बुला रहे हैं । हिमालय के असीम सौंदर्य का स्मरण होते ही एक अजीब-सी कसक हृदय में उठने लगती है । लेखक बताते हैं कि कल ठेले पर लदे बर्फ को देखकर उनके उपन्यासकार मित्र हिमालय की जिन स्मृतियों में खो गए थे, वे साक्षात् हिमालय को न देख पाने की उनकी कसक को भली-भाँति समझते हैं । लेखक स्वयं भी वही कसक अपने मन में लिए है, किंतु वह ठेले पर हिमालय की बात कहकर जिस प्रकार हँसता है उस हँसी से भी वह कसक स्पष्ट झलकती है । एक प्रकार से उसका वह हँसना मानो उस दर्द को भुलाने का एक बहाना है । हम नगरों में रहने वाले हिमालय के उन हिम-मंडित शिखरों को नहीं देख पाते, ठेले पर लदकर जाने वाली बर्फ को देखकर ही अपने को दिलासा दे लेते हैं । शायद महाकवि तुलसीदास ने अपने आस-पास ठेलों पर लदे हिमालयों को अर्थात् ऊँचे आदर्शों की बात करने वाले क्षुद्र (छोटे, नीच) लोगों को देखा था और तभी उनके दिल में उच्च (आदर्शमयी) जीवन व्यतीत करने की भावना उदित हुई ।
अपनी इसी भावना को प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा था – ‘कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो’ अर्थात् क्या मैं कभी इस प्रकार उच्च जीवन जी सकूँगा ? यह ध्यान आते ही मेरे मन में यह लालसा उत्पन्न होती है कि मैं उस ऊँचे हिमालय से पुकार-पुकारकर कह दूँ कि हे बन्धु हिमालय! मैं फिर लौटकर उन्हीं ऊँचाइयों पर आऊँगा; क्योंकि वही मेरा वास्तविक निवास-स्थल है । मेरा मन वहीं रमता है । इन्हीं ऊँचाइयों पर आकर मेरे सब ताप शीतल हो जाते हैं । मन को एक शीतल व सुखद स्पर्श-सा मिलता है, जिससे मुझे तृप्ति की अनुभूति होती है ।
प्रश्नोत्तर (अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर— पाठ- ठेले पर हिमालय
लेखक- धर्मवीर भारती
.(ब) लेखक को आज भी किसकी याद आती है ?
उत्तर— लेखक को आज भी हिमालय के असीम सौंदर्य की याद आती है जो उसने कौसानी में देखा था । (स) ठेलों पर लदे हिमालय को देखकर तुलसीदास जी ने क्या कहा था ?
उत्तर— तुलसीदास जी ने अपने आस-पास ठेलों पर लदे हिमालयों को अर्थात् ऊँचे आदर्शों की बात करने वाले क्षुद्रों को
देखकर कहा था- ‘कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो’ अर्थात् क्या मैं भी कभी इस प्रकार उच्च जीवन जी सकूँगा ?
(द) लेखक हिमालय को क्या संदेश भेजना चाहता है ?
उत्तर— लेखक हिमालय को संदेश भेजना चाहता है कि ‘हे भाई! मैं कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हूँ । वरन तुम्हारे समान ही
ऊँचा सोचने वाला हूँ । मेरा मन भी तुम्हारे ऊँचे शिखरों पर ही लगता है । अब तुम ही बताओ कि तुम्हारे पास रहने
के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
(घ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1— धर्मवीर भारती जी का जन्म-स्थान है
(अ) इलाहाबाद (ब) कानपुर (स) दिल्ली (द) आगरा
उत्त्तर — (अ) इलाहाबाद
2— धर्मवीर भारती का जन्म-सन् है
(अ) 1941 (ब) 1905 (स) 1926 (द) 1935
उत्तर— (स) 1926
3— प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र धर्मयुग’ के संपादक हैं
(अ) धर्मवीर भारती (ब) रामचंद्र शुक्ल (स) काका कालेलकर (द) हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर— (अ) धर्मवीर भारती
4— धर्मवीर भारती को भारत सरकार ने पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत किया
(अ) 1965 ई० में (ब) 1984 ई०में (स) 1978 ई० में (द) 1972 ई० में
उत्तर— (द) 1972 ई० में
5— मुर्दो का गाँव’ कहानी के लेखक हैं
(अ) श्रीराम शर्मा (ब) जयशंकर प्रसाद (स) धर्मवीर भारती (द) रामवृक्ष बेनीपुरी
उत्तर— (स) धर्मवीर भारती
6— ‘नदी प्यासी थी’किस साहित्यिक विधा से संबधित है ?
(अ) नाटक (ब) उपन्यास (स) कहानी(द) निबंध
उत्तर— (अ) नाटक
(ङ) निम्नलिखित शब्दों के उपसर्गों को पृथक करके लिखिए
उपसर्ग—————————— शब्द
खुशकिस्मत —————————— खुश
अत्याधुनिक —————————— अति
संदेश —————————— सम्
सुकुमार—————————— सु
निरावृत —————————— निर
अनासक्ति —————————— अन
सहयोगी —————————— सह
सुललित —————————— सु
लापरवाह —————————— ला
प्रतिक्रिया—————————— प्रति