
Up board solution for class 8 hindi manjari sanskrit chapter 2 बाल-प्रतिज्ञा (भविष्यत् काल विधिलिङ)
बाल-प्रतिज्ञा (भविष्यत् काल/ विधिलिङ्))
करिष्यामनो सङ्गतिं दुर्जनानाम्
करिष्यामि सत्सङ्गतिं सज्जनानाम् ।
धरिष्यामि पादौ सदा सत्यमार्गे
चलिष्यामि नाहं कदाचित् कुमार्गे ।।
हिन्दी अनुवाद – बुरे लोगों की संगति नहीं करूंगा । अच्छे लोगों की सत्संगति करूंगा । हमेशा सच्चे रास्ते पर पैर रखूगा । कभी बुरे रास्ते पर मैं नहीं चलूंगा ।
हरिष्यामि वित्तानि कस्यापि नाऽहम्
हरिष्यामि चित्तानि सर्वस्य चाऽहम्।
दिष्यामि सत्यं न मिथ्या कदाचित्
वदिष्यामि मिष्टं न तिक्तं कदाचित् ।।
हिन्दी अनुवाद – मैं किसी का धन हरण नहीं करूंगा और मैं सबके चित्तों को हर लँगा सबका प्यारा बन जाऊँगा । मैं सत्य बोलूंगा, कभी भी झूठ नहीं बोलूंगा । मैं मीठा बोलूंगा, कड़वा कभी नहीं बोलूंगा ।
भविष्यामि धीरो भविष्यामि वीरः
भविष्यामि दानी स्वदेशाभिमानी ।
भविष्याम्यहं सर्वदोत्साहयुक्त
भविष्यामि चालस्ययुक्तो न वाऽहम् ।।
हिन्दी अनुवाद – मैं धैर्यवान होऊँगा, मैं वीर होऊँगा । मैं दानी होऊँगा, अपने देश का अभिमानी होऊँगा, मैं हमेशा उत्साहयुक्त होऊँगा और मैं कभी भी आलस्ययुक्त नहीं होऊँगा ।
सदा ब्रह्मचर्य व्रतं पालयिष्ये
सदा देशसेवा व्रतं धारयिष्ये ।
न सत्ये शिवे सुन्दरे जातु कार्ये स्वकीये पदे पृष्ठतोऽहं करिष्ये ।।
हिन्दी अनुवाद – मैं सदा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूंगा । मैं सदा देशसेवा का व्रत धारण करूंगा । मैं सत्य, शिव और सुन्दर कार्य में अपने पैरों को पीछे नहीं करूंगा ।
सदाऽहं स्वधर्मानुरागी भवेयम्
सदाऽहं स्वकर्मानुरागी भवेयम् ।
सदाऽहं स्वदेशानुरागी भवेयम्
सदाऽहं स्ववेषानुरागी भवेयम् ।।
वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
हिन्दी अनुवाद – मैं सदा अपने धर्म का अनुरागी बनूं । मैं सदा अपने कार्य का अनुरागी बनूं । मैं सदा स्वदेशानुरागी बनूं । मैं सदा स्ववेषानुरागी बनें ।
(शब्दार्थ)
धरिष्यामि = रखूँगा । पादी दोनों पैरों को हरिष्यामि हरण करूँगा। वित्तानि = धन 1 को। तिक्त = कड़वा धारयिष्ये = धारण करूँगा। जातु = कभी पृष्ठतः = पीछे से। भवेयम् = होऊँ।
(अभ्यास)
1- उच्चारण करें-
सत्सङ्गतिम् धरिष्यामि सर्वोत्साहयुक्तम्
पालयिष्ये
स्ववेषानुरागी
भवेयम्
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं उच्चारण करें
2- एक पद में उत्तर दें-
(क) कस्य सङ्गतिं न करिष्यामि ?
उत्तर : दुर्जनानाम्।
(ख) अहं सदा कुत्र पादौ धरिष्यामि ?
उत्तर : सत्यमार्गे।
(ग) अहं किं न वदिष्यामि ?
उत्तर : मिथ्या।
(घ) अहं कस्य चित्तानि हरिष्यामि ?
उत्तर : सर्वस्य।
(ङ) अहं किं वदिष्यामि ?
उत्तर : सत्य।
3- कोष्ठक से उचित क्रिया-पदों को चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
(क) अहं सज्जनानां सत्सङ्गति……….. (करिष्यति करिष्यसि करिष्यामि)
(ख) अहं कस्यापि वित्तं न हरिष्यामः.. (हरिष्यामि, हरिष्यावः हरिष्याम:)
(ग) अहं सदा उत्साहयुक्तः………..(भविष्यति भविष्यामि,)
(घ) अहं सदा स्वधर्मानुरागी…………(भवेव भवेम भवेदम्)
उत्तर –
(क) अहं सज्जनानां सत्सङ्गतिम् करिष्यामि।
(ख) अहं कस्यापि वित्तं न हरिष्यामि।
(ग) अहं सदा उत्साहयुक्तः भविष्यामि।
(घ) अहं सदा स्वधर्मानुरागी भवेयम्।
4- रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कर
(क) लता कदाचित् कुमार्गे न चलिष्यति।
प्रश्न – का कदाचित् कुमार्गे न चलिष्यति।
(ख) अहं कस्यापि वित्तानि न हरिष्यामि ।
प्रश्न – अहम् कस्यापि वित्तानि किम् न करिष्यामि
(ग) वयं स्वदेशानुरागी भवेम
प्रश्न – के स्वदेशानुरागी।
5- वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद करें-
(क) मं सदा सत्य बोलूँगा ।
अनुवाद : अहं सदा सत्यं वदिष्यामि।
(ख) हम सब कड़वी बात नहीं बोलेंगे।
अनुवाद : वयं तिक्तं न वदिष्यामि।
(ग) मैं सदा देश सेवा करूँगा।
अनुवाद : अहं सदा देशसेवाम् भवेयम्।
(घ) मै सदा स्वदेशानुरागी होऊँगा।
अनुवाद : अहं सदा स्वदेशानुरागी भवेयम्।
प्रश्न 6.नीचे दिए गए चक्र को ध्यान से देखिए, बीच के गोले में कुछ क्रियापद दिए गए हैं । उचित क्रिया पदों को लेकर उसमें ऊपर दिए गए अधूरे वाक्यों को पूर्ण कीजिए (चक्र पाठ्यपुस्तक से देखकर)
(क) अहं सदा सत्यं वदिष्यामि । (क) अहं सदा स्वदेशानुरागी भवेयम् ।
(ख) अहं सर्वदा उत्साहयुक्तः भविष्यामि । (ख) अहं वीरः भविष्यामि ।
(ग) अहम् आलस्ययुक्तः न भविष्यामि । (ग) अहम् स्वदेशाभिमानी भवेयम् ।
(घ) अहं सदा स्वकर्मानुरागी भवेयम् । (घ) अहं सदा मधुरम् वदिष्यामि ।
(ङ) अहं कस्यापि चित्तानि न हरिष्यामि । (ङ) अहं सज्जनानाम् सत्संगति करिष्यामि ।
(च) अहं मिथ्या न वदिष्यामि । (च) अहं सदा स्ववेशानुरागी भवेयम् ।
7- ‘कृ’ धातु का अर्थ ‘करना’ है। इस धातु के रूप लृट् लकार में तीनों पुरुषों एवं तीनों
वचनों में इस प्रकार होते हैं-
एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष करिष्यति करिष्यतः करिष्यन्ति
मध्यम पुरुष करिष्यसि करिष्यथः करिष्यथ
उत्तम पुरुष करिष्यामि करिष्यावः करिष्यामः
इसी प्रकार ‘धृ एवं हृ धातु के रूप होते हैं। इसे अपनी अभ्यास-पुस्तिका में लिखिए।
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