Up Board Solution for Class 12 Home Science Chapter 5 जननतन्त्रः प्रारम्भिक क्रिया विज्ञान एवं अन्तः स्त्रायी ग्रन्थयाँ

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1 – बाह्य मादा जननांगों को सम्मिलित रूप से कहते हैं

(a) जघन उत्थान
(b) भग
(c) भगशेफ
(d) प्रकोष्ठ
उत्तर :- (b) भग

प्रश्न 2 – नर जनन अंगों से सम्बन्धित ग्रन्थि है
(a) प्रोस्टेट ग्रन्थि
(b) स्वेद ग्रन्थि
(C) एड्रीनल ग्रन्थि
(d) एपिडिडाइमिस

उत्तर :- (a) प्रोस्टेट ग्रन्थि

प्रश्न 3 – नर में शुक्राणुजनन किन नलिकाओं में होता है?

(a) अपवाही नलिका में
(b) शुक्रवाहिनी में
(c) शुक्रनलिका में
(d) स्खलन नलिका में

उत्तर :- (C) शुक्रनलिकाओं

प्रश्न 4 – वृषण की अन्तराली (लीडिंग) कोशिकाओं से स्रावित हॉर्मोन है

(a) टेस्टोस्टेरॉन
(b) एस्ट्रोजन
(C) FSH
(d) प्रोजेस्टेरॉन

उत्तर :- (a) टेस्टोस्टेरॉन

प्रश्न 5 – निम्न में से कौन मानव में मादी जनन तन्त्र का भाग नहीं हैं?

(a) अण्डाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिनी
(d) योनि

उत्तर :- (c) शुक्रवाहिनी

प्रश्न 6 – ग्राफियन पुटिका पाई जाती है

(a) स्तनधारियों के अण्डाशय में
(b) लसीका गाँठों में
(c) स्तनधारियों की प्लीहा में
(d) मेंढक के अण्डाशय में

उत्तर :- (a) स्तनधारियों के अण्डाशय में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 – लैंगिक जनन की इकाइयाँ क्या कहलाती हैं? केवल उनके नाम लिखिए।

उत्तर – •नर तथा मादा युग्मकों का संग्युमन लैंगिक जनन कहलाता है। दो युग्मों के संयुग्मन (fusion) से युग्मनज (Zygote) बनता है। समान युग्मकों को संयुग्मन (Isogzmy) कहते हैं।

प्रश्न 2 – अनिषेकजनन की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर :- अनिषेकजनन (Parthenogenesis) निषेचन के बिना अण्डाणु से वृद्धि और विभाजन द्वारा वयस्क का निर्माण होना अनिषेकजनन कहलाता है। नर मधुमक्खी और ततैया में अनिषेकजनन होता है।

प्रश्न 3 – वृषण जालिका क्या है?

उत्तर :- वृषण जालिका (Rete testes) शुक्रजनन नलिकाएँ वृषण की भीतरी सतह पर नलिकाओं के एक घने जाल में खुलती हैं, इसे वृषण जालिका कहते हैं। इससे 5-20 शुक्र वाहिकाएँ निकलकर एपिडिडाइमिस वाहिका (Epididymis duct) में खुलती है। एपिडिडाइमिस या अधिवृषण के अन्तिम भाग से शुक्रवाहिनी निकलती है।

प्रश्न 4 – शुक्राणुजनन का क्या अर्थ है?

उत्तर :- वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा वृषणों में शुक्राणुओं का निर्माण होता है, शुक्राणुजनन कहलाती हैं। वृषणों की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई शुक्रजने नलिकाएँ होती हैं। यहीं पर शुक्राणु जनन होता हैं।

प्रश्न 5 – सर्टोली कोशिकाओं पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर :- वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं (Seminiferous tubules) की जननिक एपीथीलियम में जनन कोशिकाओं के मध्य में स्थान-स्थान पर फूली हुई लम्बी सटली कोशिकाएँ पाई जाती हैं। ये शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती हैं।

प्रश्न 6 – शुक्राणु में एक्रोसोम का क्या महत्त्व है?

उत्तर :- शुक्राणु में एक्रोसोम से हायल्यूरोनिडेज एन्जाइम का स्रावण होता है, जो अण्डाणु की चाहा भित्ति के पाचन में सहायक हैं, जिसके कारण शुक्राणु अण्डाणु में सुगमता से प्रवेश कर पाता है।

प्रश्न 7 – मानव, स्त्री के एक अण्डाणु में कितने और किस प्रकार के गुणसूत्रं पाए जाते हैं?

उत्तर :- मानव, स्त्री के एक अण्डाणु में 28 गुणसूत्र उपस्थित होते हैं, जिसमें 22 कायिक गुणसूत्र और एक लिंग गुणसूत्र ( Sex chromosome) X’ होता है।

प्रश्न 8 – युग्मनज़ क्या है ? इसमें गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है?

उत्तर :- शुक्राणु (n) और अण्डाणु (n) के संयोजन से युग्मनज का निर्माण होता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (2n) होती है।

प्रश्न 9 – स्तनधारियों में निषेचन कहाँ होता है?

उत्तर :- नर शुक्राणु (n) व मादा अण्डाणु (n) युग्मकों के संयोजन को निषेचन कहते हैं। स्तनधारियों में निषेचन फैलोपियन नलिका में होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 – लैंगिक जनन से आप क्या समझते हैं? मानव शरीर में नर तथा मादा युग्मक कहाँ बनते हैं? पूर्णशक्त युग्मनज क्या है?

उत्तर :- लैंगिक जनन (Sexual reproduction) नर तथा मादा युग्मकों अर्थात् शुक्राणु और अण्डाणु का संयुग्मन लैंगिक जनन कहलाता है, जिसके फलस्वरूप युग्मनज़ बनता है। नर युग्मक का निर्माण वृषण (Testis) की शुक्रजनन नलिकाओं में होता है। मादा युग्मक (अण्डाणु) का निर्माण अण्डाशय की ग्राफिया पुटिका में होता है। एक युग्मनज, जिसमें वृद्धि एवं विभाजन द्वारा भूण का निर्माण होता है, पूर्णशक्त युग्मनज कहलाता है।

प्रश्न 2 – नर मनुष्य में वृषण उदर गुहा के बाहर क्यों होते हैं?

उत्तर :- नर मनुष्य में वृषण शरीर से बाहर वृषण कोष (Scrotum) में उपस्थित होते हैं। वृषण कोष का तापमान शरीर के तापमान से 3°C कम होता है, जिस पर शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शरीर का तापमान अधिक होने के कारण शरीर के अन्दर शुक्राणुओं का निर्माण सम्भव नहीं हैं। अतः जन्म के समय वृषण अपने मूल स्थान से हटकर वृषण कोष में आ जाते हैं।

प्रश्न 3 – शुक्रजनन नलिका की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर :- शुक्रजनन नलिका (वृषण) की अनुप्रस्थ काट

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शुक्रजनन नलिका की अनुप्रस्थ काट का चित्र
शुक्रजनन नलिका की अनुप्रस्थ काट का चित्र

प्रश्न 4 – शुक्राणुजनन क्या है? शुक्राणुजनन की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा वृषणों में शुक्राणुओं का निर्माण शुक्राणुजनन कहलाती है। यह प्रक्रिया लैंगिक हॉर्मोन्स द्वारा नियमित होती है। शुक्राणुजनन की प्रक्रिया होता है,

निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होती है।

1 – गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) शुक्रजनन नलिकाओं की जनन उपकला की कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुजन कोशिकाओं या स्पर्मेटोगोनिया का निर्माण होता है। ये कोशिकाएँ द्विगुणित (27) होती हैं।

2 – वृद्धि प्रावस्था ( Growth Phase) शुक्राणुजन कोशिकाएँ पोषक पदार्थों का संचय करके प्राथमिक शुक्रकोशिका (Prirmiry spermatocytes) में रूपान्तरित हो जाती हैं।

3 – परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phas) प्राथमिक शुक्रकोशिकाओं स्पमेंटोसाइट्स में अर्द्धसूत्री प्रथम विभाजन द्वारा अगुणित या द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है। यह अर्द्धसूत्री द्वितीय विभाजन द्वारा प्राक्शुक्राणु कोशिका या स्पर्मेटिड बनाती हैं। अतः एक प्राथमिक शुक्राणु कोशिकाओं से चार प्राक्शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है। शुक्र-कायान्तरण (Sperritiogenesis) द्वारा अचल प्राक्शुक्राणु परिपक्व से चल शुक्राणु बनता है।

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प्रश्न 5 – मानव के शुक्राणु की संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा

मानव शुक्राणु का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर :- शुक्राणु की संरचना प्रत्येक शुक्राणु तीन भागों में विभेदित होता है।

1 – शीर्ष (Head) शीर्ष प्रायः फूला हुआ, घुण्डीदार होता है, परन्तु अनेक जन्तु जातियों में यह लम्बा, दण्डनुमा होता है। इसमें केन्द्रक स्थित होता हैं और केन्द्रक के चारों ओर थोड़ा-सा कोशिकाद्रव्य होता हैं। इसके शीर्ष पर गॉल्जीकाय की बनी एक्रोसोम नामक रचना टोपी की भांति की होती है।

2 – मध्य खण्ड (Middle piece) यह केन्द्र शीर्ष से पतला, दण्डनुमा भाग होता है, जो छोटी-सी ग्रीवा (Neck) द्वारा शीर्ष से जुड़ा रहता है। मध्य खण्ड में माइटोकॉण्डिया उपस्थित होते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया के आगे ग्रीवा में एवं पीछे दो तारक केन्द्र (Centrioles) उपस्थित होते हैं।

3 – पुच्छ (Tall) पुच्छ प्रायः लम्बी, जाबुकनुमा और अत्यधिक गतिशील होती हैं। पुच्छ द्वारा शुक्राणु तरल माध्यम में तैरता है।

प्रश्न 6 – मानव के स्त्रीजनन तन्त्र का नामांकित आरेखीय चित्र बनाइए।

उत्तर

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प्रश्न 7 – •अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट (TS) का एक नामांकित आरेख बनाइए।

उत्तर :-

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अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट

प्रश्न 8 – मानव अण्डाणु का नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर :-

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मानव अण्डाणु की संरचना

प्रश्न 9 – यौवनारम्भ क्या है? इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के शरीर में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए |

उत्तर :-पुरुष में यौवनारम्भ का प्रारम्भ– यौवनारम्भ (Puberty) प्राणी के प्रजनन के योग्य हो जाने को यौवनारम्भ कहते हैं। पुरुष (बालक) में यौवनारम्भ 13-16 वर्ष की आयु में होता है।

वृषण द्वारा स्रावित टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) और एण्ड्रोस्टेरॉन (Androsterone) लिंग हॉर्मोन्स से यौवनारम्भ प्रेरित होता है, जिसके फलस्वरूप बालकों में निम्नलिखित लक्षण विकसित होने लगते हैं।

1 – पुरुष की आवाज भारी होने लगती है और शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है।
2 – अस्थियाँ और मांसपेशियाँ अधिक सुदृढ़ हो जाती हैं, कन्धे भी चौड़े हो जाते हैं।

3 – दाढ़ी, पूँछ निकल आती हैं।

4 – मैथुन अंग शिश्न और वृषण कोष सुविकसित हो जाते हैं।

5 – शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण आरम्भ हो जाता है।

स्त्री में यौवनारम्भ का प्रारम्भ–

बालिकाओं में यौवनारम्भ लड़कों की अपेक्षा जल्दी प्रारम्भ हो जाता है। इनमें 12-13 वर्ष की आयु में आर्तव चक्र प्रारम्भ हो जाता है। एस्ट्रोजन (Ostrogen) और FSH हॉमन्स यौवनावस्था को प्रेरित करते हैं, जिसके फलस्वरूप बालिकाओं में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं।

1 – बाह्य जननांगों और स्तनों का विकास होने लगता है।
2 – आर्तव चक्र ( Menstrual cycle) और अण्डोत्सर्ग (Ovulation) का प्रारम्भ हो जाता है।
3 – चेहरे, जाँघ और नितम्बों पर वसा का संचय प्रारम्भ हो जाता है।
4 – श्रोणि मेखला (Pelvice girdle) फैलकर चौड़ी हो जाती हैं।
5 – स्वर तीव्र और मधुर होने लगता है।
6 – कक्षीय और जघन बालों का उगना।

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प्रश्न 10 – हॉर्मोन्स का क्या महत्त्व है?

अथवा

हॉर्मोन्स क्या है? शरीर में इसका क्या महत्त्व है?

अथवा

मानव शरीर में हॉर्मोन्स के विभिन्न कार्यों को लिखिए

उत्तर :- अन्त : स्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित रासायनिक यौगिकों को हॉर्मोन्स कहते हैं। ये ग्रन्थियों द्वारा सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के अन्य अंगों तक पहुँचते हैं। हॉर्मोन्स सक्रिय उत्प्रेरक के रूप में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं समन्वये करते हैं। इनकी सूक्ष्म मात्रा ही विशेष अंगों की कायिकी को वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार अनुकूलित करती है।

अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ, तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में कार्य करती हैं, किन्तु इनका स्वयं तन्त्रिका तन्त्र पर भी नियन्त्रण होता है। इस प्रकार शरीर में विभिन्न तन्त्रों की क्रियाओं का परस्पर समन्वय सुनिश्चित होता हैं।

हॉर्मोन्स का महत्त्व अथवा कार्य–

हॉर्मोन्स द्वारा शरीर में विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं।

1 – हॉर्मोन्स शरीर की कोशिकाओं के उपापचय का नियन्त्रण करके शरीर की कार्यात्मक क्षमता को बनाए रखते हैं। ये शरीर की समुचित वृद्धि एवं विकास को सुनिश्चित करते हैं। कुछ हॉमन्स, रक्त में ग्लूकोज, लवण, आयरन आदि की मात्रा को नियन्त्रित करते हैं एवं शरीर के अन्त :- वातावरण के सन्तुलन की अवस्था को बनाए रखते हैं।

2 – कुछ हॉर्मोन्स हृदय स्पन्दन दर, श्वास दर आदि को नियमित रखते हैं।
3 – लिग हॉमन्स द्वारा प्रजनन से सम्बन्धित अंगों का विकास तथा उनको सम्पूर्ण क्रियाविधि पर नियन्त्रण का कार्य किया जाता है।

4 – आहारनाल के विभिन्न भागों की श्लेष्मिका से स्रावित हॉमोन पाचक रसों के स्रावण को प्रेरित करते हैं।

5 – कुछ हॉर्मोन्स; जैसे-एड्रीनेलिन, शरीर को संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं। इस प्रकार हॉर्मोन्स की हमारे शरीर में विशेष भूमिका होती है। यदि इनका स्रावण समुचित रूप से न हो, तो शरीर कई कार्यात्मक रोगों (Functional diseases) से ग्रस्त हो जाता है।

प्रश्न 11 – पीयूष ग्रन्थि पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :- पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland) एक नलिकाविहीन (अन्तःस्रावी) ग्रन्थि है। यह अग्र मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस की दीवार के पास, स्फेनॉइड हड्डी के गर्त में पाई जाती है। यह अन्य अन्त :- स्रावी ग्रन्थियों के स्रावण को नियन्त्रित करती है। अत :- इसे मास्टर ग्रन्थि भी कहा जाता है। ग्रन्थि के दो मुख्य भाग होते हैं अग्न पिण्ड तथा पश्च पिण्ड। दोनों के मध्य एक संकरा मध्य पिण्ड होता हैं।

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पीयूष ग्रन्थि की संरचना

पीयूष ग्रन्थि के विभिन्न भागों से स्रावित हॉर्मोन्स के कार्य ग्रन्थि के विभिन्न भागों से स्रावित हॉर्मोन्स के कार्य इस प्रकार हैं।

1 – वृद्धि हॉर्मोन्स, शरीर की उचित वृद्धि के लिए आवश्यक है। बाल्यकाल में इसके अल्पत्रावण से बौनेपन (Dwarfism) एवं अतिस्रावण से भीमकायता (Glantism) की समस्या उत्पन्न होती है।

वृद्धिकाल के बाद अति स्रावण से शरीर बेडौल, भीमकाय एवं कुरूप हो जाता है। इस अवस्था को एक्रोमीगेली कहते हैं। थायरॉइड प्रेरक हॉमन्स, थायरॉइड ग्रन्थि की क्रियाशीलता को बनाए रखता है।

2 – ACTII (एड्रीनल कॉर्टेक्स ट्रॉपिक हॉर्मोन) हॉर्मोन्स, एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स भाग को क्रियाशील बनाता है।

3 – इस ग्रन्थि से स्रावित हॉमन्स पुरुषों में शुक्राणुओं एवं स्त्रियों में अण्डजनन को प्रेरित करता है। ल्यूटिन प्रेरक हॉमन्स, स्त्री एवं पुरुष में लैंगिक हॉर्मोन्स के स्रावण को प्रेरित करता है।

4 – प्रोलैक्टिन या मैमोट्रॉपिक हॉर्मोन, गर्भकाल में स्तनों की वृद्धि तथा दुग्ध स्रावण को प्रेरित करता है।

वैसोप्रेसिन, वृक्क की वाहिनियों एवं कोशिकाओं में जल के अवशोषण को नियन्त्रित करता है एवं मूत्र की मात्रा को कम करता है, इसी कारण इसे मूत्र रोधी कहते हैं ऑक्सीटोसिन, प्रसव के समय गर्भाशय को फैलने तथा प्रसव के पश्चात् गर्भाशय के सिकुड़ने को प्रेरित करता है। यह दुग्ध स्रावण को प्रेरित करता हैं।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 – नर जनन तन्त्र या पुरुष के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर :- नर जनन अंगों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं।

1 – मुख्य जनन अंग इन अंगों में युग्मकों का निर्माण होता हैं।

(i) वृषण (Testis) वृषण एक जोड़ी होते हैं। ये उदर गुहा से बाहर वृषण कोष (Scrotal sac ) में स्थित होते हैं। वृषण लगभग 4-5 सेमी लम्बा 2 – 5 सेमी चौड़ा व 3 सेमी मोटा होता है। वृषण अनेक कुण्डलित नलिकाओं के बने होते हैं, जो शुक्रजनन नलिकाएँ कहलाती हैं। शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण होता है।

नर जनन तन्त्र
नर जनन तन्त्र

2 – सहायक जनन अंग ये अंग जनन की प्रक्रिया में सहायक अंग होते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित हैं।

(i) अधिवृषण (Epididymis) ये लगभग 6 मीटर लम्बी, पतली तथा अत्यधिक कुण्डलित नलिका होती है, जो वृषण के अग्र पश्च तथा भीतरी भाग को ढकने में सहायक हैं। यह अति कुण्डलित होकर लगभग 4 सेमी लम्बी, चपटी, कोमा के आकार की संरचना बनाती हैं।

एपीडिडाइमिस में शुक्राणु का संग्रहण व परिपक्वन होता है। एपीडिडाइमिस के तीन भाग होते हैं-शीर्ष एपीडिडाइमिस (Caput epididymis), मध्य भाग या एपौडिडाइमिस काय ( Corpus epididymis) तथा पुच्छ एपीडिडाइमिस (Cauda epididymis) से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वृषण नाल से होती हुई उदरगुहा में प्रवेश करते हुए मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती हैं।

(ii) शुक्रवाहिनी (Vas deferens) एपोडिडाइमिस से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वृषण नाल से होती हुई उदरगुहा में प्रवेश करते हुए मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।

(iii) शुक्राशय (Serminal vesicle) यह एक द्विपालित थैलीनुमा ग्रन्थिल संरचना होती है। इससे चिपचिपा द्रव स्रावित होता है, जो वीर्य का मुख्य भाग बनाता है तथा शुक्राणुओं का पोषण करता हैं।

(iv) शिश्न (Penis) यह मैथुन अंग है। यह वृषण कोषों के मध्य स्थित होता है। शिश्न के मध्य मूत्रमार्ग (Urethra) गुजरता है, जो शिश्न के अग्र छोर पर खुलता है। मूत्रमार्ग द्वारा ही वीर्य के साथ शुक्राणु बाहर निकलते हैं।

3 – सहायक जनन ग्रन्थियाँ इन ग्रन्थियों का स्रावण जनन प्रक्रिया में सहायक है। वर्णन निम्नलिखित हैं।

(1) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) यह ग्रन्थि मूत्रमार्ग के अधर तल पर स्थित होती है। यह अनेक पिण्डों (Lobules) की बनी होती है। इस ग्रन्थि से हल्का क्षारीय तरल स्रावित होता है। यह मूत्रमार्ग की अम्लीयता को नष्ट करता है, जिससे शुक्राणु सक्रिय बने रहते हैं।

(II) काउपर्स ग्रन्थियाँ (Cowper’s glands) ये एक जोड़ी ग्रन्थियाँ होती हैं तथा मूत्रमार्ग के दाएँ व बाएँ और स्थित होती हैं। काउपर्स ग्रन्थियों मैथुन से पहले एक क्षारीय एवं चिकने द्रव का स्रावण करती हैं। यह मूत्रमार्ग की अम्लता को समाप्त करता है तथा योनि मार्ग को चिकना बनाकर मैथुन में सहायक है।

(iii) पेरीनियल ग्रन्थियाँ (Perineal glands) एक जोड़ी ग्रन्थियाँ मलाशय के पास स्थित होती हैं। इनसे स्रावित रसायन विशेष गन्ध प्रदान करता है।

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प्रश्न 2 – अण्डाणुजनन क्या है? अण्डाणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में समानताएँ एवं असमानताएँ बताइए।
अथवा
युग्मकजनन किसे कहते हैं? शुक्रजनन एवं अण्डजनन का तुलनात्मक विवरण दीजिए युग्मकों में गुणसूत्रों की • संख्या के आधार पर युग्मकजनन के महत्व की विवेचना कीजिए।

अथवा
अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में अन्तर लिखिए।
अथवा
• युग्मकजनन की परिभाषा लिखिए। अण्डाणुजनन की क्रिया समझाइए। अण्डाणुजनन तथा शुक्राणुजनन में अन्तर बताइए ।
उत्तर – युग्मकजनन (Gametogenesis) युग्मकजनन एक जटिल प्रक्रम है – इसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित (Haploid) युग्मकों (शुक्राणु/अण्डाणु) का निर्माण होता है। •अण्डाणुजनन (Oogenesis) अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका (Graafian follicles) के निर्माण की प्रक्रिया, अण्डाणुजनन कहलाती है।

अण्डाणुजनन प्रक्रिया अण्डजनन की प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा गया है। 1 – गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) अण्डाशय के निर्माण के समय ही प्राथमिक जनन कोशिकाएँ अण्डाशयी पुटिकाओं (Ovarian follicles) के रूप में एकत्रित हो जाती हैं, जिसमें से एक कोशिका अण्डाणु मातृ कोशिका (Egg mother cell) के रूप में विभेदित होती है।

2 – वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) यह प्रावस्था बहुत लम्बी होती है। अण्डाणु मातृ कोशिका, अण्डाणु जनन कोशिका या ऊगोनियम (Oogonium) में विभेदित होकर वृद्धि प्रावस्था में प्रवेश करती हैं। यह अधिक मात्रा में पोषक पदार्थों को संचित करके आकार में वृद्धि कर लेती है। इसे पूर्व अण्डाणु कोशिका या प्राथमिक ऊसाइट (Primary 0OCyte) कहते हैं।

3 – परिपक्वन अवस्था (Maturation Phase) ग्राफियन पुटिका के परिपक्व होने के बाद इसमें उपस्थित प्राथमिक ऊसाइट (Primary OOcyte) में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन होता है, जो असमान होता है, जिसके फलस्वरूप एक अगुणित द्वितीयक ऊसाइट (Haploid Secondary OOcyte) और एक छोटी लोपिकाओं (Polar body) का निर्माण होता है। ग्राफियन पुटिका के फटने से यह द्वितीयक अण्डाणु कोशिका मुक्त होकर फैलोपियन नलिका में प्रवेश कर जाती है। इसमें द्वितीय अर्धसूत्री विभाजन शुक्राणु के अण्डाणु में प्रवेश के पश्चात् होता है।

शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में अन्तर निम्नलिखित हैं
शुक्राणुजनन ——

यह प्रक्रिया वृषणों में होती है।
इसमें वृद्धि प्रावस्था छोटी होती है।
स्पर्मेटिइस से थान्तरण द्वारा गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है।
दोनों अर्द्धसूत्री विभाजन शुक्राणु निर्माण से पूर्व हो जाते हैं।
एक प्राथमिक शुक्राणु कोशिका से चार अगुणित शुक्राणुओं का निर्माण होता है।

अण्डाणुजनन———-

यह प्रक्रिया अण्डाशयों में होती है।
अचल आण्डाणु में कायान्तरण नहीं होता है।
वृद्धि प्रावस्था बहुत लम्बी होती है।
दूसरा अर्द्धसूत्री विभाजन अण्डाणु में शुक्राणु के प्रवेश के बाद पूर्ण होता है।
प्राथमिक अण्डाणु कोशिका से केवल एक अगुणित निर्माण होता है।

शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में समानताएँ
1 – दोनों क्रियाएँ तीन प्रावस्था में पूर्ण होती हैं- गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था और परिपक्वन प्रावस्था ।
2 – दोनों क्रियाएँ जनदों की जनन उपकला कोशिकाओं में होती हैं।

युग्मकजनन का महत्त्व युग्मकजनन एक जटिल प्रक्रम है। इसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। नर और मादा युग्मकों के निषेचन के समय समेकन (Fusion) से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मकजनन और निषेचन के फलस्वरूप जीवधारी का गुणसूत्र प्रारूप निश्चित बना रहता है।

प्रश्न 3 – मादा जनन तन्त्र का वर्णन करते हुए मासिक चक्र की विभिन्न प्रावस्थाओं के सन्दर्भ में संक्षिप्त में लिखिए। उत्तर :-

मादा जनन तन्त्र इसके अन्तर्गत निम्नलिखित जनन अंग आते हैं।
1 – अण्डाशय एक जोड़ी अण्डाशय उदरगुहा में स्थित होते हैं। अण्डाशय संयोजी ऊतक से बनी ठोस अण्डाकार संरचना (लगभग 3 सेमी लम्बा, 2 सेमी चौड़ा तथा 1 सेमी मोटा) होती है। अण्डाशय में ग्राफियन पुटिकाएँ छोटे-छोटे दानों जैसी रचनाओं के रूप में उभरी होती हैं। यहीं अण्डाणु का निर्माण होता है।

2 – अण्डवाहिनी इसका प्रारम्भिक भाग अण्डाशय से सटी हुई झालरदार कीपनुमा संरचना अण्डवाहिनी मुखिका (Oviducal funnel) बनाता है, जो फैलोपियन नलिका में खुलती हैं। अण्डवाहिनी का प्रारम्भिक संकरा भाग फैलोपियन नलिका तथा पश्च भाग गर्भाशय कहलाता है। अण्डे का निषेचन फैलोपियन नलिका में होता है।

3 – गर्भाशय दोनों अण्डवाहिनी मिलकर पेशीय थैलीनुमा एवं उल्टे नाशपाती के आकार की संरचना गर्भाशय में खुलती हैं। इसका सामान्य आकार 8 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 2 सेमी मोटा होता है। गर्भाशय अत्यधिक फैल सकता है। गर्भावस्था में भ्रूण का रोपण गर्भाशय में होता हैं।

4 – योनि यह लगभग 8 सेमी लम्बी नलिकारूपी संरचना होती है। मूत्राशय तथा योनि मादा जनन छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलती है। मादा जनन छिद्र भाग की बाह्य सतह पर एक पेशीय संरचना क्लाइटोरिस होती हैं।

5 – बार्थोलिन ग्रन्थियाँ ये योनि के पार्श्व में स्थित होती हैं। इनसे स्रावित तरल योनि को क्षारीय तथा चिकना बनाता है।

6 – पेरीनियल ग्रन्थियाँ इनसे विशिष्ट गन्धवत् तरल स्रावित होता है, जो लैंगिक आकर्षण पैदा करता है।
मासिक चूक (Menstrual Cycle) व्यस्क स्त्रियों में एक माह की अवधि के दौरान गर्भाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जिसे मासिक चक्र या आर्तव चक्र कहते हैं। मासिक चूक मासिक चूक की तीन अवस्थाएँ होती हैं। 1 – क्रम प्रसारी अवस्था (Proliferative Phase) FSH, पुटिकाओं को एस्ट्रोजन के स्रावण के लिए प्रेरित करता है। इस अवस्था का अन्तराल 10-12 दिनों का होता हैं। यह पुटिकीय अवस्था (Follicular phase) भी कहलाती हैं।

2 – स्रावित अवस्था (Secretory Phase) कॉर्पस ल्यूटियम, प्रोजेस्टेरॉन का स्रावण करती हैं। इस अवस्था का अन्तराल 12-14 दिन का होता है।

3 – मासिक अवस्था (Menstrual Phase) यह पुराने मासिक चक्र की अन्तिम तथा नए मासिक चक्र की प्रारम्भिक अवस्था होती है। यदि अण्डाणु निषेचित नहीं होता है, तो कॉर्पस ल्यूटियम, प्रोजेस्टेरॉन स्तर में कमी के कारण नष्ट हो जाता है। एण्डोमीट्रियम के टूटने से रुधिर का स्राव होता है। यह स्राव लगभग पाँच दिन चलता है।

यह FSH, LH, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन के द्वारा नियन्त्रित होता है। मासिक चक्र गर्भावस्था तथा दुग्ध त्रावण (Lactation) के दौरान नहीं होता है।

रजोनिवृत्त (Menopause)

इसमें अण्डोत्सर्ग तथ मासिक चक्र स्थायी रूप से रुक जाता है। यह 45 या 50 साल की आयु में होता हैं। इस अवस्था में स्त्री में जनन की क्षमता नहीं होती है।

प्रश्न 4 – नलिकाविहीन ग्रन्थियों पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों क्या हैं? मानव शरीर में पाई जाने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव शरीर के विभिन्न अन्तः स्रावी ग्रन्थियों के नाम लिखिए।

उत्तर :- मानव शरीर में पाई जाने वाली ऐसी विशिष्ट ग्रन्थियाँ, जिनमें स्रावित पदार्थ को लक्ष्य स्थान तक ले जाने के • लिए नलिकाएँ नहीं होती, नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ कहलाती हैं। इन ग्रन्थियों को अन्तःस्रावी ग्रन्थि भी कहते हैं। इनसे स्रावित पदार्थ, सीधे रक्त में मुक्त होकर शरीर के अन्य अंगों तक पहुँचता हैं। इन स्रावित पदार्थों को हॉमन्स कहते हैं। हॉमन्स रासायनिक यौगिक हैं, जो प्राणियों में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं समन्वय करते हैं ये उपापचय क्रियाओं, शारीरिक वृद्धि एवं विकास, लैंगिक लक्षणों एवं जनन आदि के नियन्त्रण में भाग लेते हैं।

मानव शरीर में नलिकाविहीन/अन्त :- स्रावी ग्रन्थियाँ

मानव शरीर में निम्नलिखित नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं
1 – पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland) यह अग्र मस्तिष्क के ‘हाइपोथैलेमस’ की दीवार के पास, स्फेनॉइड हड्डी के गर्त में पाई जाती है। इसे मास्टर ग्रन्थि भी कहा जाता हैं, क्योंकि यह अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावण को नियन्त्रित करती हैं। इसके साथ यह व्यक्ति के स्वभाव, स्वास्थ्य वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है।

2 – थायरॉइड ग्रन्थि (Thyroid Gland) यह दो पिण्डों की रचना है एवं श्वासनली के दोनों ओर लैरिक्स (Larynx) के नीचे स्थित रहती हैं। इससे स्रावित थायरॉक्सिन, हॉर्मोन शरीर की उपापचयी क्रियाओं का नियमन तथा नियन्त्रण करता है।

3 – पैराथायरॉइड ग्रन्थि (Parathyroid Gland) यह थायरॉइड ग्रन्थि के पीछे स्थित रहती हैं। इसके द्वारा स्रावित पैराथॉर्मोन नामक हॉमोंन रक्त में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की मात्रा का नियन्त्रण करता है। यह अस्थि एवं दाँतों के निर्माण में सहायक होता है।

4 – थायमस ग्रन्थि (Thymus Gland) यह ग्रन्थि वक्ष में हृदय के सामने स्थित होती है। युवावस्था तक यह लुप्त हो जाती है। इस ग्रन्थि से स्रावित थायमोसिन हॉर्मोन, लिम्फोसाइट्स को भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवाणुओं और एण्टीजन को नष्ट करने हेतु प्रेरित करता है।

5 – अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal Gland) यह ग्रन्थि प्रत्येक वृक्क (Kidney) के ऊपरी भाग पर स्थित होती है, इसका बाहरी भाग काँटेक्स व आन्तरिक भाग मेड्यूला कहलाता है। कॉर्टिक्स से स्रावित हॉमोन उपापचयी नियन्त्रण, रक्त में लवण की मात्रा का नियन्त्रण एवं लैंगिक परिपक्वता आदि को नियन्त्रित करते हैं। मेड्यूला से स्रावित, एडीनलीन तथा नॉर एडीनेनीन हॉमन्स शरीर को संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं।

6 – अग्न्याशय ( Pancreas) यह एक मिश्रित ग्रन्थि है, इसका बहिःस्रावी भाग, अग्न्याशय रस स्रावित करता है। अग्न्याशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समूह पाए जाते हैं, जिन्हें लैंगरहँन्स की द्वीपिकाएँ (Iglete of Langarhans) कहते हैं। ये अन्तःस्रावी ग्रन्थि का काम करती हैं। इनसे स्रावित हॉर्मोन्स निम्नलिखित हैं

• इन्सुलिन आवश्यकता से अधिक ग्लुकोज का ग्लाइकोजन में परिवर्तन करता है। इसकी कमी से शरीर से शर्करा की मात्रा मूत्र में आने लगती है, जिसे मधुमेह रोग कहते हैं। • ग्लूकैगॉन ग्लाइकोजन से ग्लूकोज को संश्लेषण करता है।

7 – जनन ग्रन्थियाँ (Gonada) स्त्री में अण्डाशय (Ovary) तथा पुरुष में वृषण (Testha) विशेष हॉर्मोन्स स्रावित करते हैं, जिनसे लैंगिक लक्षणों का विकास होता है। स्त्रियों में एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरॉन का स्रावण होता है, जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन स्रावित होता है।

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