UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 11 POLITICAL SCIENCE CHAPTER 10 विकास
1 . आप ‘विकास’ से क्या समझते हैं? क्या विकास की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है? उत्तर- विकास = लोगों की प्रगति, कल्याण, उन्नति तथा बेहतर जीवन से है ।। हालाँकि वर्तमान भौतिकवादी युग में विकास’ शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि तथा समाज के आधुनिकीकरण के संबंध में होता है ।। परन्तु ‘विकास की यह प्रचलित परिभाषा काफी संकीर्ण है ।। विकास को पहले से निर्धारित लक्ष्यों या उद्योग, बाँध, अस्पताल जैसी परियोजनाओं को पूरा करने से जोड़कर देखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है ।। समाज के व्यापक नज़रिए से विकास का काम नहीं हो सकता ।। इस प्रक्रिया के द्वारा समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं और बाकी लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है ।। उन्हें बिना किसी भरपाई के अपने घर, जमीन, रोजगार आदि सब कुछ खोना पड़ता है ।। ऐसा देखा जाता है कि विकास के ज़्यादातर फायदें को ताकतवर लोग हथिया लेते हैं तथा उसकी कीमत अति दरिद्रों तथा आबादी के असुरक्षित हिस्से को चुकानी पड़ती है ।।
उत्तर- विकास का जो मॉडल ज्यादातर देशों में अपनाया जा रहा है, उसकी वजह से समाज तथा पर्यावरण को भारी कीमत चुकानी पड़ती है ।।
i . पर्यावरणीय प्रभाव विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा है और इसके परिणामों को विस्थापित लोगों समेत पूरी आबादी महसूस करने लगी है ।। वनों को अंधाधुंध काटा जा रहा है जिसके कारण भूमंडलीय ताप बढ़ने लगा है ।। वायुमंडल में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही हैं जिससे बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है ।। वायु प्रदूषण एक अलग गंभीर समस्या है ।। लेकिन संसाधनों के अविवेकशील उपयोग का वंचितों पर तात्कालिक और अधिक तीखा प्रभाव पड़ता है ।। जंगलों के नष्ट होने से उन्हें जलावन की लकड़ी, जड़ी बूटी और आहार आदि मिलने में कठिनाई होती है ।। नदियों-तालाबों के सूखने और भूमिगत जलस्तर के गिरने के कारण औरतों को अधिक दूर से पानी लाना पड़ता है ।।
ii . सामाजिक प्रभाव विकास की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ ।। विस्थापन के कारण लोग अपनी आजीविका खो बैठे, जिससे वे और भी दरिद्र हो गए ।। अगर ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परंपरागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिए पर चले जाते हैं ।। इसके पश्चात्न में ये शहरी तथा ग्रामीण गरीबों की बड़ी आबादी में सम्मिलित हो जो जाते हैं ।। लंबी अवधि में अर्जित परंपरागत कौशल नष्ट हो जाते हैं ।। इससे संस्कृति भी नष्ट होती है, क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं, तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन पद्धति खो बैठते हैं ।।
3 . विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है? उत्तर- विकास की प्रक्रिया ने निम्नलिखत अधिकारों के दावों को जन्म दिया है:
1 . लोगों को यह अधिकार प्राप्त है कि उनके जीवन के भविष्य के लिए लिए जाने वाले निर्णयों में उनसे सलाह ली जाए ।। ii . आदिवासी और आदिम समुदाय नैसर्गिक संसाधनों के उपयोग के परंपरागत अधिकारों का दावा कर सकते हैं ।।
iii . लोगों को आजीविका का अधिकार भी प्राप्त है इसके अंतर्गत वे सरकार से अपनी आजीविका के स्रोत पर खतरा पैदा होने पर इसका दावा कर सकते हैं ।।
उत्तर- इसमें कोई संदेह नहीं है की सरकारों की अपेक्षा लोकतांत्रिक सरकार विकास के बारे में जो भी निर्णय लेती है, वह निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने वाला माना जाता है ।। दरअसल लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का काम जनसमूह के अनेक तबकों की प्रतिस्पर्धात्मक माँगों को पूरा करने के साथ ही वर्तमान तथा भविष्य की दावेदारियों के मध्य संतुलन कायम करना होता है ।। लोकतांत्रिक सरकार और अन्य प्रकार की सरकारें, जैसे तानाशाही के मध्य यही अंतर है कि लोकतंत्र में संसाधनों को लेकर विरोध या बेहतर जीवन के बारे में विभिन्न विचारों के द्वंद्ध का हल विचार-विमर्श और सभी अधिकारों के प्रति सम्मान के जरिए होता है ।। यद्यपि तानाशाही में इस तरह के फैसले उच्चता से थोपे जातें हैं ।। इस तरह लोकतंत्र में बेहतर जीवन हासिल करने में समाज का हर व्यक्ति साझीदार है और विकास की योजनाएँ बनाने और उनके कार्यान्वयन के तरीके ढूँढने में भी हरेक व्यक्ति शामिल होता है ।। दूसरे की बनाई योजना का अनुसरण करने, योजना तैयार करने और भागीदार होने में अंतर है क्योंकि इसमें आपकी विशेष ज़रूरतों से अवगत होने की गुंजाइश कम होती है ।। ।।
लोकतांत्रिक देशों में निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लोगों के अधिकार पर बल दिया जाता है ।। भागीदारी सुनिश्चित करने का एक प्रस्तावित रास्ता स्थानीय विकास योजनाओं के बारे में निर्णय स्थानीय निर्णयकारी संस्थाओं को लेने देना है ।। स्थानीय निकायों के अधिकार तथा संसाधन बढ़ाने की वकालत इसीलिए की जाती है, क्योंकि इससे लोगों को अत्यधिक प्रभावित करने वाले मसलों पर लोगों से परामर्श हो पाता है तथा समुदाय को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को रद्द करना संभव हो पाता है यहां तक कि योजना बनाने और नीतियों के निर्धारण में संलग्नता से लोगों के लिए अपनी जरूरतों के मुताबिक संसाधनों के उपयोग के की भी गुंजाइश बनती है ।। लोकतंत्र से अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की सरकार में इन सब बातों की संभावनाएँ नहीं होती हैं ।।
उत्तर- ऐसे आंदोलन कभी-कभी ही सफल हो पाते आशिक रूप से ही सफल हो पाए हैं ।। इस संदर्भ में पहला उदाहरण नर्मदा बचाओ आंदोलन’ का दे सकते हैं ।। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर परियोजना के द्वारा बनने वाले बाँधों के निर्माण के खिलाफ विस्थापित लोगों द्वारा चलाया जा रहा है ।। बड़े बाँधों में इन समर्थकों का दावा किया जाता है कि इससे बिजली पैदा होगी, काफी बड़े इलाके में जमीन की सिंचाई में मदद मिलेगी और सौराष्ट्र एवं कच्छ के रेगिस्तानी इलाके को पेयजल भी उपलब्ध होगा ।। ऐसे बाँधों के विरोधियों द्वारा इन दावों का खंडन किया जाता है ।। विरोधियों का तर्क है कि इस परियोजना के कारण लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है, उनकी आजीविका उनसे छीन गई है ।। इन विरोधियों का यह भी कहना है कि विशाल जंगली भूभाग के बाँध में डूब जाने से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ सकता है ।। विरोधियों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का सरकार पर जबरदस्त दबाव पड़ा ।। अंत रूप में यह कहा जा सकता है की बाँध की ऊँचाई सीमित करने में आंदोलनकारियों को कुछ हद तक सफलता मिली और विस्थापित लोगों के पुर्नवास की भी व्यवस्था की जा रही है ।।
इस संदर्भ में दूसरा उदाहरण ‘चिपको आंदोलन’ है जो भारत में हिमाचल के वनक्षेत्र को बचाने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में शुरू हुआ था ।। इस आंदोलन के द्वारा यहाँ वनों की कटाई पर काफी हद तक रोक लग पाई ।। इन आंदोलनों ने विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।।