Up board social science class 10 chapter 26 भारत की विदेश नीति (गुट-निरपेक्षता एवं पंचशील, निःशस्त्रीकरण रंगभेद नीति का विरोध)
इकाई-2 (क): भारतीय विदेश नीति
भारत की विदेश नीति (गुट-निरपेक्षता एवं पंचशील, निःशस्त्रीकरण रंगभेद नीति का विरोध)
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. गुट-निरपेक्ष नीति का क्या अर्थ है?
उ०- गुट-निरपेक्ष नीति का अर्थ है कि विश्व में शक्तिशाली गुटों से पृथक रहकर कौन सही है और कौन गलत, इस पर स्वतंत्र निर्णय लेना ओर सही का साथ देना।
पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “गुट-निरपेक्ष नीति शांति का मार्ग है और लड़ाई से बचाव का मार्ग है।” भारत ने गुट-निरपेक्ष नीति का अनुपालन करके स्वयं को एक गुट-निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में विश्व के
समक्ष प्रस्तुत किया है।
2. गुट-निरपेक्ष आंदोलन के दो महत्व बताइए।
उ०- गुट-निरपेक्ष आंदोलन के दो महत्व निम्नलिखित हैं
(i) गुट-निरपेक्ष आंदोलन दो शक्ति गुटों में संतुलन बनाए रखने तथा विश्व को युद्ध की भयानकता से बचाने के लिए प्रासंगिक है। (ii) गुट-निरपेक्ष आंदोलन शक्तिशाली राष्ट्रों के आर्थिक साम्राज्यवाद पर प्रभावी नियंत्रण लगाने के लिए प्रासंगिक बन गया है।
3. गुट-निरपेक्षता से क्या आशय है? क्या इस नीति का पालन करने से भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है?
उ०- गुट-निरपेक्षता का अर्थ- गुट-निरपेक्षता का सामान्य अर्थ है- शक्ति गुटों से अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखने की भावना। गुट-निरपेक्षता धीरे-धीरे विश्वव्यापी आंदोलन बन गया। गुट-निरपेक्षता तटस्थता की नीति से भिन्न है। किसी विवाद में यह जानते हुए कि कौन ठीक है और कौन गलत, चुप रहकर किसी का पक्ष न लेना तटस्थता है, जबकि सही का साथ देना गुट-निरपेक्षता है। विश्व में शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा, निर्बल और पिछड़े राष्ट्रों का शोषण असहनीय होता चला गया। अतः शक्तिशाली राष्ट्रों के अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाकर उनका सामना करने की भावना से उत्पन्न नया आंदोलन गुट-निरपेक्ष आंदोलन बन गया।
गुट-निरपेक्षता को परिभाषित करते हुए पं० जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “गुट-निरपेक्षता शांति का मार्ग है और लड़ाई से बचाव का मार्ग है।” गुट-निरपेक्षता सैनिक गुटबंदियों से दूर रहकर जिस नए संगठन को जन्म देने में सफल रहा, उसे तृतीय विश्व कहा गया। श्रीमती इंदिरा गाँधी के शब्दों में, “गुट-निरपेक्षता अपने आप में एक नीति है। यह केवल एक लक्ष्य नहीं, इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतंत्रता और राष्ट्र की सच्ची भक्ति तथा मौलिक हितों की रक्षा की जाए।”
हाँ, गुट-निरपेक्ष नीति का पालन करने से भारत की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति में वृद्धि हुई है।
4. वर्तमान परिस्थितियों में भारत को गुट-निरपेक्ष नीति का अनुसरण क्यों करना चाहिए?
उ०- वर्तमान परिस्थितियों में भारत को गुट-निरपेक्ष नीति का अनुसरण निम्नलिखित कारणों से करना चाहिए(i) भारत को अपने पड़ोसी राष्ट्रों से संबंध बनाए रखने के लिए गुट-निरपेक्षता का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि किसी
राष्ट्र की विदेश नीति उसकी भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करती है। सार्क संगठन की स्थापना और उसकी गतिविधियों में भारत की सक्रिय भूमिका उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण ही है। (ii) राष्ट्र में व्याप्त राजनीतिक विचारधारा का प्रत्यक्ष प्रभाव विदेश नीति पर पड़ता है। (iii) भारत एक गरीब विकासशील राष्ट्र है जिसे आर्थिक विकास के लिए विदेशी आर्थिक सहायता की अत्यंत आवश्यकता
है। इसलिए भारत को गुट निरपेक्षता की नीति आवश्यक है।
5.पंचशील के दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उ०- पंचशील के दो सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(i) प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे राष्ट्र की एकता व अखंडता का सम्मान करें। (ii) विभिन्न राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना करना।
6. भारत की विदेश नीति की दो मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उ०- भारत की विदेश नीति की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं(i) जातिवाद तथा रंगभेद का घोर विरोध- भारत जातिवाद तथा रंगभेद का भाव रखने वाले देशों का घोर विरोधी रहा है। भारत ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के रंगभेद का विरोध ही नहीं किया, वरन् उससे राजनीतिक संबंध भी विच्छेद कर लिए। भारत ने रोडेशिया की गोरी सरकार का भी इसी संदर्भ में घोर विरोध किया। (ii) निःशस्त्रीकरण का पक्षधर- भारत ने ‘शांतिदूत’ बनकर सदैव ही नि:शस्त्रीकरण का पक्ष लिया है।
भारत द्वारा 1982 ई० में प्रस्तुत निःशस्त्रीकरण का प्रस्ताव इस क्षेत्र के लिए नींव का पत्थर सिद्ध हुआ। भारत का विश्वास है कि एक बमवर्षक विमान बनाने में जितना धन व्यय होता है, उससे कई अस्पताल और स्कूल बनाए जा सकते हैं। विमान मौत बरसाता है, जबकि अस्पताल और विद्यालय जीवन के फूल खिलाते हैं। भारत की विदेश नीति इसी सिद्धान्त की अनुयायी बनी हुई है।
7. गुट-निरपेक्ष नीति क्या है? इसके प्रर्वतक कौन-कौन थे? इसका प्रथम सम्मेलन कब और कहाँ आयोजित किया गया था?
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उत्तर- विश्व में शक्ति गुटों से पृथक रहना तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में किसी बाह्य दबाव के अच्छाई और बुराई को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने को गुट-निरपेक्ष नीति कहते हैं। गुट-निरपेक्ष नीति के प्रवर्तक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर तथा युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो थे।
गुट–निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन सन् 1961 ई० में युगोस्लाविया के बेलग्रेड नगर में हुआ।
8. भारत की विदेश नीति के तीन सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उ०- भारत में विदेश नीति के तीन सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(i) विश्व में संघर्ष एवं तनाव के झंझावतों को प्रेम, त्याग और अहिंसा के सिद्धांतों से रोककर ही स्थायी विश्वशांति की __स्थापना की जा सकती है, यह भारतीय विदेश नीति का सार्वभौमिक सिद्धांत है। (ii) तटस्थता या गुट-निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की आधारभूत सिद्धांत है। (iii) सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाना।
(iv) पंचशील सिद्धांतों का अनुपालन करना।
9. विश्व-शांति के लिए निःशस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उ०- निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता- शीत युद्ध और तनाव पर प्रभावी रोक लगाने का एक मात्र सही उपाय नि:शस्त्रीकरण है। अत: वर्तमान परिवेश में निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से और भी महत्वपूर्ण हो जाती है(i) युद्धों पर नियंत्रण- अस्त्र-शस्त्र के भंडार युद्धों को जन्म देते हैं। अतः नहीं होंगे अस्त्र और न होगा युद्ध। इस संदर्भ में श्री कोहन का यह कथन विचारणीय होगा, “नि:शस्त्रीकरण द्वारा राष्ट्रों के भय और मतभेद को कम करके शांतिपूर्ण समझौतों की प्रक्रिया को सुविधापूर्ण तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।” शस्त्रीकरण युद्धों का जनक है।
निःशस्त्रीकरण उनका नियंत्रक होने के कारण बहुत आवश्यक है।
(ii) स्थायी विश्व-शांति की स्थापना- स्थायी विश्व-शांति की स्थापना का सपना नि:शस्त्रीकरण ही पूरा कर सकता है।
शस्त्र न होने पर युद्ध नहीं होगा और युद्ध न होने पर स्थायी विश्व-शांति को अपने पंख फैलाने का अवसर मिलेगा। निःशस्त्रीकरण ही वह मसाला है, जो स्थायी विश्व-शांति का महल खड़ा कर सकता है। निःशस्त्रीकरण विश्व-शांति को जन्म देने के कारण, वर्तमान समय की आवश्यकता बन गया है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न Up board social science class 10 chapter 26 भारत की विदेश नीति (गुट-निरपेक्षता एवं पंचशील, निःशस्त्रीकरण रंगभेद नीति का विरोध)
प्रश्न 1. “भारत की विदेश नीति का आधार गुट-निरपेक्षता है।” स्पष्ट कीजिए।
उ०- भारतीय विदेश नीति का दूसरा आधार स्तंभ है- गुट-निरपेक्षता का सिद्धांत। पंचशील और नि:सशस्त्रीकरण की भावना ने भारत की विदेश नीति को गुट–निरपेक्षता की गइराई तक जोड़ दिया है। 1947 ई० में गुट-निरपेक्ष नीति ने तृतीय विश्व को जन्म दिया। अतः भारत ने गुटों से पृथक रहने की नीति का अनुपालन करके स्वयं को एक गुट-निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। आइए, परीक्षण करें कि गुट-निरपेक्षता भारतीय विदेश नीति का कितना मजबूत आधार बनी
(i) गुटों से दूर रहना- भारत ने अपनी आंतरिक सुरक्षा, बढ़ती जनसंख्या, सैन्य संगठन और बहुआयामी विकास को ध्यान में रखते हुए शक्ति शिविर में प्रवेश न करके स्वयं को पूँजीवादी और साम्यवादी शक्ति गुटों से पृथक रखा।
(ii) गुटों से पृथक रहकर कठिनाइयों का समाधान- भारत ने अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान गुटों से जुड़कर नहीं, उनसे पृथक रहकर किया। उसने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर अपना भौगोलिक और सामरिक संतुलन बनाए रखते हुए आर्थिक क्षेत्र के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास किया।
(iii) संघर्ष और तनावों से बचाव- भारत ने अपनी विदेश नीति के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय तनावों और संघर्षों में उलझने के
बजाय बचाव, सुरक्षा और अहिंसा का मार्ग चुना। पं० जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “गुट-निरपेक्षता लड़ाई से बचाव और शांति का मार्ग है।” भारत सैनिक गुटबंदियों से दूर रहकर गुट–निरपेक्षता का अक्षरश: अनुपालन कर रहा है।
(iv) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध- भारत गुट-निरपेक्षता के इस सिद्धांत का पक्का समर्थक है। उसने एशिया तथा अफ्रीका के देशों को उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद से बचाने के लिए, उनके स्वतंत्रता आंदोलन में भरपूर सहयोग दिया है। (v) स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण- गुट निरपेक्षता की नीति की यह मूलभूत विशेषता है, जिसका भारत ने अपनी
स्वतंत्र विदेश नीति में अनुपालन किया है। भारत ने अपनी विदेश नीति बिना किसी बाह्य दबाव के बनाई है।
(vi) संयुक्त राष्ट्र संघ का सहयोग- भारत की विदेश नीति संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों में विश्वास रखते हुए, उसके सभी कार्यों में उसका सहयोग करती है। भारतीय विदेश नीति का लक्ष्य रहा है कि यह अंतर्राष्ट्रीय संस्था शक्तिसंपन्न बनकर विश्व-शांति और भाईचारे के वातावरण का निर्माण करे।। भारतीय विदेश नीति गुट-निरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुपालन में अग्रणी रही है। इस संदर्भ में स्व. श्री राजीव गाँधी के ये शब्द उल्लेखनीय बन जाते हैं, “हमें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नि:शस्त्रीकरण, मानवाधिकार तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ज्वलंत समस्याओं पर ध्यान देना है।” भारतीय विदेश नीति गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत की पोषक ही नहीं अनुगामी भी है।
प्रश्न 2- गुट-निरपेक्ष आंदोलन से आप क्या समझते हैं? क्या यह वर्तमान परिस्थितियों में प्रासंगिक है?
उ०- गुट-निरपेक्ष आंदोलन- गुट-निरपेक्ष आंदोलन को समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि में झाँकना आवश्यक है। गुट-निरपेक्ष आंदोलन को जन्म देने का श्रेय, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात प्रारंभ हुए शीत युद्ध से उत्पन्न तनाव और संघर्ष को है। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया, परंतु जाते-जाते विश्व को दो शक्ति गुटों में विभाजित कर गया। सैनिक संधियों और गठबंधनों ने राष्ट्रों के मध्य ईर्ष्या, द्वेष और गुटबंदी पैदा कर दी। द्वितीय विश्व युद्ध के महाविनाश ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को झकझोरकर रख दिया और विस्तारवादी यूरोपीय शक्तियों को उपनिवेशों से अपना बोरिया-बिस्तर बाँधने का संकेत दे दिया। एशिया तथा अफ्रीका के परतंत्र देशों में स्वतंत्रता प्राप्ति की होड़ लग गई। सभी परतंत्र राष्ट्र स्वतंत्र होने लगे। नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के समक्ष दो विकल्प थे
(i) शक्ति गुटों में शामिल होकर पुन: आर्थिक दासता स्वीकार कर लेना। (ii) गुटों से पृथक रहकर अपने बहुविकास के द्वार खोलना। नव-स्वतंत्र राष्ट्रों ने गुटों से पृथक रहकर अपने नवनिर्माण का जो निर्णय लिया, उसी से गुट-निरपेक्ष आंदोलन की विचारधारा ने जन्म लिया। गुटों से पृथक रहने का भाव ही गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्ष आंदोलन का महत्व या प्रासंगिकता- गुट-निरपेक्षता आंदोलन वर्तमान युग में बड़ा महत्वपूर्ण बन चुका है,
अत: उसकी प्रासंगिकता निम्नलिखित कारणों से और अधिक बढ़ गई है(i) गुट-निरपेक्ष आंदोलन दो शक्ति गुटों में संतुलन बनाए रखने तथा विश्व को युद्ध की भयानकता से बचाने के लिए प्रासंगिक है। (ii) गुट-निरपेक्ष आंदोलन शक्तिशाली राष्ट्रों के आर्थिक साम्राज्यवाद पर प्रभावी नियंत्रण लगाने के लिए प्रासंगिक बन गया है।
(iii) नव-स्वतंत्र देश जो आर्थिक तथा सैन्यबल के क्षेत्र में दुर्बल हैं, उन्हें शक्ति संपन्न राष्ट्रों की आर्थिक परतंत्रता से बचाने
के लिए गुट-निरपेक्ष आंदोलन प्रासंगिक बन जाता है। (iv) शीतयुद्ध, तनाव और संघर्ष से बचने तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए गुट-निरपेक्षता आज प्रासंगिक बनी हुई है। (v) 21वीं शताब्दी के भावी आर्थिक युद्ध को रोकने के लिए निश्चय ही गुट-निरपेक्ष आंदोलन आवश्यक रूप से प्रासंगिक बन जाता है। (vi) वर्तमान युग में परमाणु अस्त्र-शस्त्रों के बढ़ते भंडार पर प्रभावी नियंत्रण लगाने के लिए गुट-निरपेक्ष आंदोलन का महत्व
बढ़ गया है। (vii) प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन को लेकर मची मारामारी, प्रदूषण तथा आतंकवाद जैसी समस्याओं का निश्चित समाधान खोजने के लिए गुट-निरपेक्षता प्रासंगिक ही नहीं आवश्यक बन गई है। (viii) विश्व के सभी राष्ट्रों के लिए ‘शांतिपूर्ण सहअस्तित्व’ अपनाने तथा ‘अनाक्रमण’ का अनुपालन करने के लिए गुट–निरपेक्षता प्रासंगिक बन गई है।
प्रश्न 3. भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उ०- भारत की विदेश नीति के सिद्धांत एवं विशेषताएँ- भारत राम, कृष्ण, गाँधी, गौतम और महावीर का देश है। ये सभी
महापुरुष सदाचरण और अहिंसा का सदुपदेश देते रहे। भगवान महावीर ने संपूर्ण विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत दिया। अहिंसा के रंग में डूबी हमारी विदेश नीति में निम्नलिखित सिद्धांतों को महत्व दिया गया
(i) विश्व-शांति- भारत देश और विदेश सभी स्थानों पर शांति चाहता है। विश्व में संघर्ष और तनाव के झंझावातों को प्रेम, त्याग, सहयोग और अहिंसा के सिद्धांतों से रोककर ही स्थायी विश्व-शांति की स्थापना की जा सकती है, यही भारतीय विदेश नीति का सार्वभौमिक सिद्धांत है। (ii) गुट-निरपेक्षता- गुट–निरपेक्षता का सामान्य अर्थ है, शक्ति गुटों से पृथक रहना तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में बिना किसी बाह्य दबाव के अच्छाई व बुराई को ध्यान में रखकर स्वतंत्र निर्णय लेना। द्वितीय विश्वयुद्ध के विनाश ने समूचे विश्व को पूँजीवादी और साम्यवादी दो शक्ति गुटों में बाँट दिया था। भारत ने गुट-निरपेक्षता का मार्ग ग्रहण कर तटस्थता को चुना। भारत ने गुट-निरपेक्ष संगठन के रूप में तृतीय विश्व का निर्माण किया। गुट-निरपेक्षता या तटस्थता भारत की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धांत है। गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत से भारत को दोनों ही गुटों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग मिलता रहा है। (iii) अन्य राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध- भारत की विदेश नीति विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने पर
बल देती है।
पं० जवाहरलाल नेहरू ने इस आदर्श को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “भारत की विदेश नीति का मूल उद्देश्य विश्व के समस्त राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना है।” भारत इस सिद्धांत का कठोरता से पालन करता आ रहा है। इतिहास गवाह है कि भारत ने आज तक किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया है और न ही किसी की भूमि पर कब्जा जमाने का प्रयास किया। (iv) पंचशील के सिद्धांतों का अनुपालन- पंचशील बौद्ध धर्म के पाँच सिद्धांतों पर आधारित है। इसकी घोषणा भारत के प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन. लाई ने 1954 ई० में की थी। बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी पंचशील के सिद्धंन्त को स्वीकार कर लिया था। पंचशील के सिद्धांत निम्नलिखित हैं(क) प्रत्येक राष्ट्र की एकता व अखंडता का पूर्ण सम्मान करना। (ख) अनाक्रमण के सिद्धांत का पालन करना।
(ग) किसी राष्ट्र के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन करना।
(घ) प्रत्येक राष्ट्र के लाभ के लिए सहयोग की भावना रखना। (ङ) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का पालन करना। भारत की विदेश नीति में निहित पंचशील ही एक ऐसा मार्ग है, जिस पर चलकर विश्व को युद्ध के महाविनाश से बचाया जा सकता है। विश्व के अनेक देश इस सिद्धांत के प्रशंसक और अनुपालक बन चुके हैं। (v) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है, समस्त छोटे-बड़े राष्ट्रों को परस्पर मिल-जुलकर अपना अस्तित्व बनाए रखना। यह पंचशील के सिद्धांत का ही एक खंड है, जिसे भारत ने अपनी विदेश नीति का अंग बना लिया है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के निम्नलिखित तीन आधार हैं
(क) प्रत्येक राष्ट्र के स्वतंत्र अस्तित्व को पूर्ण मान्यता देना। (ख) प्रत्येक राष्ट्र को अपने भाग्य का स्वयं निर्माता बनने देना। (ग) पिछड़े हुए राष्ट्रों के आर्थिक विकास का दायित्व संयुक्त राष्ट्र संघ की समिति द्वारा स्वीकार करना। भारत की विदेश नीति का यह सिद्धांत कहता है, “आओ साथ-साथ बढ़ें, मिलकर सुखपूर्वक जियें।” (vi) उपनिवेशवाद का विरोध- उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद द्वारा बोई गई अन्याय और शोषण उगाने वाली फसल है। भारत की विदेश नीति उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की प्रवृत्ति का घोर विरोध करती है। भारत ने साम्राज्यवाद के भार से दबे परतंत्र देश जैसे वियतनाम, घाना, मोरक्को तथा अल्जीरिया आदि के स्वतंत्र होने में सहयोग किया। (vii) जातिवाद तथा रंगभेद का घोर विरोध- भारत जातिवाद तथा रंगभेद का भाव रखने वाले देशों का घोर विरोधी रहा है। भारत ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के रंगभेद का विरोध ही नहीं किया, वरन् उससे राजनीतिक संबंध भी विच्छेद कर लिए। भारत ने रोडेशिया की गोरी सरकार का भी इसी संदर्भ में घोर विरोध किया। (viii) निःशस्त्रीकरण का पक्षधर- भारत ने ‘शांतिदूत’ बनकर सदैव ही नि:शस्त्रीकरण का पक्ष लिया है। भारत द्वारा 1982 ई० में प्रस्तुत निःशस्त्रीकरण का प्रस्ताव इस क्षेत्र के लिए नींव का पत्थर सिद्ध हुआ। भारत का विश्वास है कि एक बमवर्षक विमान बनाने में जितना धन व्यय होता है, उससे कई अस्पताल और स्कूल बनाए जा सकते हैं। विमान मौत बरसाता है, जबकि अस्पताल और विद्यालय जीवन के फूल खिलाते हैं। भारत की विदेश नीति इसी सिद्धांत की अनुयायी बनी हुई है।
प्रश्न 4. भारतीय विदेश नीति के सिद्धांतों का वर्णन कीजिए। उ०- उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या- 3 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।
प्रश्न 5. भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति को बताइए। वर्तमान युग में इस नीति का क्या महत्व है?
उ०- भारत की गुट निरपेक्षता की नीति- ‘गुट निरपेक्षता’ का अर्थ है शक्ति के किसी भी गुट में सम्मिलित न होना तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में बिना किसी बाह्य दबाव के अच्छाई व बुराई को ध्यान में रखकर स्वतंत्र निर्णय लेना। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व के अधिकांश राष्ट्र दो गुटों में बँट गए– एक गुट का नेतृत्व रूस ने तथा दूसरे का संयुक्त राज्य अमेरिका ने किया है। किन्तु भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपनाई है। अर्थात् हमने किसी भी गुट ने शामिल न होकर दोनों गुटों के राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। भारत की इस नीति ने तृतीय विश्व’ (गुट निरपेक्ष राष्ट्र) की स्थापना में बड़ा सहयोग दिया है। वैसे सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् राष्ट्रों के अब दो गुट नहीं रह गए हैं। गुट निरपेक्षता की नीति के पालन से भारत कई प्रकार से लाभान्वित हुआ है-
(1) भारत ने दोनों गुटों के देशों से आर्थिक तथा तकनीकी सहायता प्राप्त करके अपना तीव्रता से विकास किया है। (2) भारत का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में आत्म-सम्मान बढ़ा है।
(3) भारत की इस नीति से अमेरिका तथा रूस के बीच की दूरी कम करने में, अंतर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने में तथा उपनिवेशवाद का विरोध करने में बड़ी सहायता प्रदान की है।
(4) इस नीति के अपनाने से भारत अन्य राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने में सफल रहा है।
वर्तमान युग में गुट-निरपेक्षता का महत्व- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या- 2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।
प्रश्न 6. पंचशील तथा भारत की विदेश नीति पर एक निबंध लिखिए।
उ०- भारत की विदेश नीति और पंचशील- भारत की विदेश नीति का आधार पंचशील के सिद्धांत हैं। भारत की विदेश नीति के जन्मदाता और पंचशील के सिद्धांतों के प्रणेता पं० जवाहरलाल नेहरू ने दोनों को भली प्रकार समन्वित किया है। इसके लिए निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं(i) पंचशील का प्रथम सिद्धांत है कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करे। भारत की विदेश नीति इस सिद्धांत का अनुपालन पूर्ण निष्ठापूर्वक करती रही है। भारत ने सदैव विकसित राष्ट्रों से सहयोग प्राप्त किया है तथा पिछड़े राष्ट्रों को संबल प्रदान किया है।
(ii) अनाक्रमण का सिद्धांत पंचशील का दूसरा सिद्धांत है। भारत ने आज तक किसी भी राष्ट्र पर आक्रमण न करके अपनी विदेश नीति को इसी सिद्धांत के अनुरूप ढाल दिया है। इसीलिए भारत की विदेश नीति ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती है।
(iii) अहस्तक्षेप की भावना पंचशील के तृतीय सिद्धांत से प्रतिध्वनित होती है। यही भारत की विदेश नीति का आधार बन गई है। पं० जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “यह एक महत्वपूर्ण धारणा है कि प्रत्येक राष्ट्र को दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप न करते हुए, अपने भाग्य का निर्माण करना चाहिए। जब कभी किसी सबल राष्ट्र ने दुर्बल राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया, तो उसे भारत का विरोध झेलना पड़ा।
(iv) समानता और पारस्परिक सहयोग पंचशील का चौथा सिद्धांत है, जो भारत की विदेश नीति में पूर्णतः रच बस गया है। भारत सदैव से विकासशील और पिछड़े राष्ट्रों को विकसित राष्ट्रों के समकक्ष समानता देने के पक्ष में रहा है। भारत की विदेश नीति एकला चलो न होकर, परस्पर मिल-जुलकर रहने और विकास करने की पक्षधर रही है।
(v) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं आर्थिक सहयोग पंचशील का पंचम् सिद्धांत है, जो भारत की विदेश नीति में पूरी तरह रचा बसा है। भारत की विदेश नीति शांतिपूर्ण ढंग से रहने तथा आर्थिक विकास करने के मार्ग का अनुसरण करती है, जिससे विश्व में नवीन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था बन सके। भारत संघर्षों को टालने के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर बल देता है। इसीलिए वह अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन की घुसपैठों को भुलाकर, उनसे शांतिपूर्ण भाईचारा बनाए रखना चाहता है। वास्तव में पंचशील के पाँच सिद्धांत भारतीय विदेश नीति का ताना-बाना बनकर उसमें समा गए हैं। 14 सितंबर, 1954 ई० को भारत ने पंचशील के सिद्धांतों को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में प्रस्तुत किया, जिसका अधिकांश राष्ट्रों ने स्वागत किया। इसी के परिणामस्वरूप भारत एशिया तथा अफ्रीका के देशों में अगुवा बनकर उभरा।