Up Board Class 12th Civics Solution Chapter 17 Public Services in India : Public Service Commission : Its Importance and Functions भारत में सार्वजनिक सेवाएँ लोक सेवा आयोग- उसके महत्व तथा कार्य free pdf
भारत में सार्वजनिक सेवाएँ लोक सेवा आयोग- उसके महत्व तथा कार्य
(Public Services in India : Public Service Commission : Its Importance and Functions)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1– किन्हीं दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम लिखिए ।
उत्तर— दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम निम्नलिखित हैं
(i) भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)
(ii) भारतीय पुलिस सेवा (IPS)
2– किन्हीं दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम बताइए । इनकी नियुक्ति में संघ लोक सेवा आयोग की क्या भूमिका
होती है?
उत्तर— दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम निम्नलिखित हैं
(i) भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)
(ii) भारतीय विदेश सेवा (IFS) उपर्युक्त अखिल भारतीय सेवाओं में योग्य परिश्रमी एवं ईमानदार व्यक्तियों के चयन हेतु संघ लोक सेवा आयोग प्रतिवर्ष अनेक प्रतियोगिताएँ अथवा प्रतियोगी परिक्षाएँ आयोजित करता है ।
3– लोक सेवाओं के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— लोक सेवाओं के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) इनका कार्य कानून की व्यवस्था करना है । ये निष्ठा, निष्पक्षता एवं राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ रहकर कानून को कार्यान्वित करते हैं ।
(ii) सार्वजनिक सेवा का उच्च पदाधिकारी नीति निर्माण, विधान तथा कर लगाने के विषयों में अपने राजनीतिक प्रमुखों पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं ।
(iii) सार्वजनिक सेवा में महत्वपूर्ण परामर्श देते हैं और तथ्य एवं आँकड़े पेश करते हैं । इन तथ्यों और आँकड़ों के अभाव में आधुनिक काल में कानून निर्माण संबंधी कार्य अव्यवहारिक तथा कठिन है ।
(iv) संसद के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले प्रत्येक विधेयक इन सार्वजनिक सेवाओं के कुछ प्रशासकीय अधिकारियों के अथक परिश्रम एवं शक्ति से ही निर्माण होता है ।
(v) वित्तीय क्षेत्र में भी इन कर्मचारियों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है । ये कर्मचारी केवल बजट को तैयार ही नहीं करते, अपितु एक बड़ी मात्रा में सरकार की कराधान एवं व्यय नीति को भी प्रभावित करते हैं ।
(vi) सार्वजनिक सेवाओं के कर्मचारी प्रशासन के विभिन्न विभागों का संचालन करते हैं और मंत्रियों के नीति संबंधी निर्णय पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं । इसका कारण यह है कि विभागीय मंत्रियों को उस विभाग से संबंधित ज्ञान नहीं होता और उनके पास समय का भी अभाव होता है । मंत्री उन कर्मचारियों की सहायता के बिना उस विभाग से संबंधित विषयों के संबंध में कोई नीति निर्धारण करने में असमर्थ होते हैं ।
(vii) प्रशासक विधानमंडल के कानूनों की व्याख्या एवं विवेचना भी करते हैं तथा कई बार उनमें संसद के कानूनों के अन्तर्गत नियम एवं अधिनियम का निमार्ण करने को भी कहा जाता है । इसको हस्तान्तरित विधान की संज्ञा दी जाती है ।
4– संघ लोक सेवा आयोग के मुख्य कार्य बताइए ।
उत्तर— संघ लोक सेवा आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
(i) प्रतियोगी परिक्षाओं द्वारा सरकारी पदों के लिए व्यक्तियों का चयन करना
(ii) परामर्श देना
(iii) क्षतिपूर्ति की सिफारिश करना
(iv) वार्षिक विवरण तैयार करना
(v) लोक सेवाओं का संरक्षण करना
(vi) राज्यों की सहायता करना
(vii) छात्रवृत्तियों के लिए उम्मीदवारों का चयन करना ।
5– संघलोक सेवा आयोग के संगठन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— संविधान ने संपूर्ण भारत के लिए एक संघ लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की है । इसके संगठन के संबंध में निम्नलिखित तथ्य उल्लेखनीय हैंसदस्यों की संख्या तथा नियुक्ति- संविधान के अनुच्छेद 315 से अनुच्छेद 323 तक संघ लोक सेवा आयोग तथा प्रान्तों के लोक सेवा आयोगों के संगठन तथा कार्यों आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है । मूल संविधान के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष तथा 7 सदस्यों की व्यवस्था की गई थीं । सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करती है तथा अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है । वर्तमान समय में संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य हैं ।
योग्यताएँ– साधारण योग्यताओं के अतिरिक्त संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य बनने के लिए
(i) आयु 65 वर्ष से कम होनी चाहिए ।
(ii) आयोग के कम-से-कम आधे सदस्य भारत के या राज्य सरकार के अधीन 10 वर्ष तक उच्च सरकारी पद पर कार्यरत रह चुके हों । सदस्यों की कार्यावधि- संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है । किन्तु यदि कोई सदस्य इससे पूर्व ही 65 वर्ष का हो जाता है तो उसे अपना पद त्यागना पड़ता है । इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय के परामर्श पर राष्ट्रपति इन्हें पदच्युत भी कर सकता है । संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भयमुक्त होकर निष्पक्षता के साथ कार्य कर सके, इसीलिए इन्हें सब प्रकार से पूर्णतः स्वतंत्र रखा जाता है ।
6– संघ लोक सेवा आयोग के कोई दो कार्य लिखिए ।
उत्तर— उत्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-4 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
7– राज्य लोक सेवा आयोग के दो प्रमुख कार्य बताइए ।
उत्तर— राज्य लोक सेवा आयोग के दो प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा योग्य व्यक्तियों का चयन करना,
(ii) वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना ।
8– राज्य लोक सेवा आयोग के गठन की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— राज्य लोक सेवा आयोग का गठन- राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या को निश्चित करने का अधिकार राज्य के राज्यपाल में निहित है । राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को नियुक्त राज्यपाल ही करता है । किन्तु इस आयोग के आधे सदस्य ऐसे होते हैं जो कम-से-कम 10 वर्ष तक सरकारी पद पर कार्य कर चुके हों । वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और पाँच अन्य सदस्य हैं । उत्तर प्रदेश का राज्य लोक सेवा आयोग इलाहाबाद में स्थित हैं ।
(i) कार्यकाल– संघ लोक सेवा आयोग की भाँति राज्य में भी लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है । किन्तु यदि 6 वर्ष से पूर्व कोई सदस्य 62 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो उस स्थिति में उसे 6 वर्ष से पूर्व ही अपना पद छोड़ देना पड़ता है । सेवानिवृत्ति आयु के संबधं में संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की स्थिति भी समान है । इसी प्रकार प्रान्तीय लोक सेवा आयोग के सदस्यों और उच्च न्यायालय के सदस्यों की स्थिति समान है ।
इसके अतिरिक्त दुराचाराभियोग के आधार पर राज्यपाल किसी सदस्य को पदच्युत करने का अधिकार रखता है, किन्तु उसका अपराध उच्चतम न्यायालय द्वारा सही सिद्ध होने पर ही ऐसा किया जा सकता है । यदि कोई पदाधिकारी इस पद पर रहते हुए किसी अन्य सेवा में संलग्न हो जाए, दिवालिया घोषित हो जाए या मानसिक दोषयुक्त हो जाए तो इन सभी स्थितियों में ऐसे सदस्य को पदच्युत किया जा सकता है ।
(ii) सदस्यों का वेतन- सदस्यों का वेतन प्रत्येक राज्य में राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है ।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1– भारत में लोक सेवा के प्रकारों का उल्लेख करते हुए उनके महत्व पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर— भारत में लोक (सार्वजनिक) सेवाओं का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जाता है
(i) अखिल भारतीय सेवाएँ और केंद्रीय सेवाएँ- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय नागरिक सेवा का नाम बदलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा रख दिया गया । अखिल भारतीय सेवाओं की भर्ती राष्ट्रपति द्वारा संघ लोक सेवा आयोग की संस्तुति पर की जाती है । अखिल भारतीय सेवाओं में प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय पुलिस सेवा के अतिरिक्त कुछ केंद्रीय सेवाओं जैसे भारतीय विदेश सेवा, भारतीय लेखा सेवा, रक्षा लेखा सेवा, भारतीय सीमा शुल्क व उत्पादन कर सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय डाक एवं तार सेवा, भारतीय रेल सेवा आदि को भी सम्मिलित किया जाता है । इन सेवाओं के लिए उम्मीदवारों का चयन संघ लोक सेवा आयोग प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से सम्पन्न करता है । इन परीक्षाओं के लिए उम्मीदवार का कम-से-कम स्नातक होना आवश्यक है । संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उम्मीदवारों के लिए आयु-सीमा का निर्धारण भी किया गया है । निष्पक्ष चयन की दृष्टि लिखित परीक्षा के लिए निर्धारित अंक व्यक्तित्व परीक्षा/साक्षात्कार के लिए निर्धारित अंकों की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं । उल्लेखनीय है कि लिखित परीक्षा और व्यक्तित्व परीक्षा दोनों में अर्जित अंकों के योग के आधार पर ही अन्तिम चयन होता है ।
(ii) राज्य सेवाएँ- कुछ सेवाओं के लिए उम्मीदवारों का चयन राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा किया जाता है, उनको राज्य सेवा का स्तर प्रदान किया जाता है । राज्य सेवा दो प्रकार की होती हैं- उच्च राज्य सेवाएँ तथा अधीनस्थ राज्य सेवाएँ ।
भारत की प्रमुख सार्वजनिक सेवाएँ—–
1– अखिल भारतीय सेवाएँ === (इनकी भर्ती केंद्र द्वारा की जाती है, लेकिन कार्य क्षेत राज्य होते है
(i) भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)
(ii) भारतीय पुलिस सेवा (IPS)
(iii) भारतीय वन सेवा (IFS)
(iv) भारतीय विदेश सेवा (IFS)
2–केंद्रीय सेवाएँ– (इनकी भर्ती केंद्र द्वारा की जाती है, और नियुक्ति का क्षेत्र भी केंद्र ही होता है, इसमें कैडर नहीं होता और पूरे देश में इनके स्थानान्तरण होते रहते हैं ।
(i) भारतीय रेल कार्मिक सेवा (IRPS)
(ii) भारतीय रेल अभियंत्रण सेवा (IRES)
(iii) भारतीय डाक व तार सेवा (IP& TS)
(iv) भारतीय राजस्व सेवा (IRS)
(v) केंद्रीय उत्पाद व सीमा शुल्क सेवा (ICCES)
(vi) भारतीय रक्षा लेखा सेवा (IDAS)
राज्य सेवाएँ
(i) द्वितीय श्रेणी की सेवा
(ii) तृतीय श्रेणी की सेवा
(iii) चतुर्थ श्रेणी की सेवा
केंद्रीय सेवाओं की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन बोर्ड तथा रेलवे भर्ती बोर्डों द्वारा की जाती है । राज्य की सेवाओं में द्वितीय श्रेणी की सेवा के लिए राज्य लोक सेवा आयोग उम्मीदवार का चयन करता है । तृतीय श्रेणी के लिए अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड बनाए गए हैं । चतुर्थ श्रेणी की सेवा हेतु स्थानीय स्तर पर विभाग के प्रमुख अधिकारी द्वारा चयन तथा नियुक्ति की जाती है ।
सार्वजनिक सेवाओं का महत्व- किसी सरकार की सफलता बहुत कुछ नागरिक सेवाओं की कार्यकुशलता एवं ईमानदारी पर आश्रित होती है । नागरिक सेवाएँ प्रशासन की आधारशिला है । सार्वजनिक सेवाओं के महत्व का उल्लेख करते हुए श्री एच–वी– कामथ लिखते है, “एक देश कार्यकुशल नागरिक सेवाओं के अभाव में कदाचित उन्नति नहीं कर सकता, चाहे वहाँ के मंत्रिगण कितने ही देश-प्रेमी और उच्च आदर्शों पर चलने वाले क्यों न हों । अनुभव यह बतलाता है कि जहाँ कहीं भी लोकतान्त्रिक संस्थाएँ विद्यमान हैं, वहाँ पर नागरिक सेवाओं को राजनीतिक अथवा व्यक्तिगत शासन से सुरक्षित रखना परम आवश्यक है । “
किसी राज्य के प्रशासन का नैतिक स्तर, नागरिक सेवाओं की कार्यकुशलता, ईमानदारी एवं सच्चरित्रता पर आधारित है । इन नागरिकों की सेवाओं में जो व्यक्ति नियुक्त किए जाते हैं, वे योग्यतम व्यक्ति होते हैं, तथा इन्हें स्थायी रूप से कार्य करते-करते अपने विभाग के कार्यों का पूर्ण अनुभव प्राप्त हो जाता है । मंत्रियों के पद संसदीय शासन-प्रणाली में स्थायी नहीं होते और उन्हें प्रशासनिक कार्यों का कोई विशेष अनुभव नहीं होता । मंत्री इन नागरिक सेवाओं के कर्मचारियों की सहायता से ही अपने विभाग का कार्य चलाते हैं । वास्तव में संपूर्ण देश के शासन का कार्य मंत्री-परिषद् का होता है और इन नीतियों को कार्यान्वित करना नागरिक सेवाओं के कर्मचारियों का कार्य है । इन सेवाओं के कर्मचारियों का यह दायित्व होता है कि वे अपने विभागों के मंत्रियों को परामर्श दें । नीति के औचित्य का पूर्ण उत्तरदायित्व मंत्रियों का है । मंत्रियों का काम केवल नीति निर्धारित करना ही नहीं, अपितु यह देखना भी है कि उनके द्वारा निश्चित की गई नीतियों को कहाँ तक कार्यान्वित किया जा रहा है । इसी कारण मंत्रियों को विभाग का अध्यक्ष बनाया जाता है और उन्हें नागरिक सेवाओं के सदस्यों के विरुद्ध अनुशात्मक कार्यवाही करने का भी अधिकार होता है ।
इसी प्रकार शासन को सुचारु रूप से संचालित करने का उद्देश्य सरकारी सेवाओं में कार्य करने वालों को दो भागों में विभक्त कर दिया जाता है- (i) राजनीतिक कार्यकारिणी, तथा (ii) नागरिक सेवाएँ ।
मंत्रिमंडल को राजनीतिक कार्यकारिणी कहा जाता है । इनका कार्यकाल अनिश्चित होने के कारण स्थायी नागरिक सेवा-प्रणाली को अपनाया जाता है । इन सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति संघीय लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है ।
2– भारत में संघ लोक सेवा आयोग के संगठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— संघ लोक सेवा आयोग का संगठन- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-5 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
संघ लोक सेवा आयोग के कार्य-संघ लोक सेवा आयोग अनेक महत्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करता है । यह देश के लिए योग्य परिश्रमी एवं ईमानदार व्यक्तियों का चयन कर सरकारी विभागों में कार्य करने हेतु उपलब्ध कराता है । इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा सरकारी पदों के लिए योग्य व्यक्तियों का चयन करना- संघ लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य केंद्रीय सेवाओं के नागरिक अर्थात् असैनिक पदों के लिए योग्य व्यक्तियों का चयन करना है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह अनेक प्रतियोगिताएँ अथवा प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करता है । संघ लोक सेवा आयोग प्रतिवर्ष सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भी करता है, जिसके अन्तर्गत भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय राजस्व सेवा (IRS), आदि महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए भर्ती की जाती है ।
(ii) परामर्श देना- संघ लोक सेवा आयोग शासन को कर्मचारियों की नियुक्ति की विधि अनुशासन, पदोन्नति, स्थानान्तरण एवं अन्य विविध विषयों में परामर्श देता है । यह राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए अन्य किसी मामले के संबंध में भी परामर्श देता है ।
(iii) क्षतिपूर्ति की सिफारिश करना- संघ लोक सेवा आयोग सरकारी कर्मचारियों की किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति हो जाने पर संघ सरकार को उनकी क्षतिपूर्ति का परामर्श देता है और उससे सिफारिश भी करता है ।
(iv) वार्षिक विवरण तैयार करना- संघ लोक सेवा आयोग को अपने कार्यों से संबंधित एक वार्षिक रिपोर्ट (प्रतिवेदन) राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करनी पड़ती है । यदि सरकार इस आयोग द्वारा की गई रिपोर्ट की कोई संस्तुति नहीं मानती है तो राष्ट्रपति इसका कारण रिपोर्ट में लिख देता है और इसके उपरान्त संसद इस पर विचार करती है । इस रिपोर्ट का यह लाभ है कि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किन विभागों में इस आयोग ने कितनी नियुक्तियाँ की हैं । आयोग अपने प्रतिवेदन में आयोग को सुदृढ़ करने संबंधी सुझाव भी दे सकता है ।
(v) लोक सेवाओं का संरक्षण करना- यह उन लोक सेवकों की अपील भी सुनता है जो इसके समक्ष अपने हितों तथा अधिकारों की सुरक्षा तथा शिकायत को दूर करने के लिए अपील करते हैं । यह इनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार को उचित सलाह देता है । सरकार प्रायः इसकी सलाह को मान भी लेती है । इसलिए इसको लोक-सेवकों का संरक्षक कहा जाता है ।
(vi) राज्यों की सहायता- यदि संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या दो से अधिक राज्य मिली-जुली भर्ती की योजनाओं को बनाने तथा उनको लागू करने की प्रार्थना करें जिनके लिए विशेष योग्य उम्मीदवारों की आवश्यकता हो, तो संघ लोक सेवा आयोग उन विषयों में राज्य की सहायता करेगा ।
(vii) छात्रवृत्तियों के लिए उम्मीदवारों का चयन- भारत सरकार योग्यता के आधार पर कुछ छात्रवृत्तियाँ प्रदान करती है तथा योग्य उम्मीदवारों का चयन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है ।
(viii) संसद द्वारा प्रदत्त अधिकार- संसद को यह शक्ति भी प्राप्त है कि वह संघ क्षेत्र की नगरपालिकाओं, नगर निगम तथा सार्वजनिक संस्थाओं के उच्च कर्मचारियों की नियुक्ति के विषय में संघ लोक सेवा आयोग को सिफारिश का अधिकार प्रदान कर दें ।
3– संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर— उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या-2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
4– संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य निष्पक्षतापूर्वक कार्य कर सकें,इसके लिए संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर— लोक सेवा आयोग का देश के प्रशासन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । इसकी उपयोगिता के कारण ही भारतीय संविधान द्वारा संघ में तथा राज्यों में लोक सेवा आयोगों की व्यवस्था की गई हैं । जनतन्त्र, समाजवाद तथा सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास के प्राप्ति में लोक सेवा आयोग की बड़ी उपयोगिता है । सबको योग्यता के आधार पर सामान अवसर प्रदान कराने एवं योग्यता के आधार पर निष्पक्षता के साथ उच्च सरकारी पद प्रदान करने में इन आयोगों का बड़ा महत्व है ।
लोक सेवा आयोग प्रतियोगिता परीक्षाओं का आयोजन करके योग्यतम व्यक्तियों का चयन बिना किसी पक्षपात के करता है । यह आयोग सरकारी कर्मचारियों के हितों की भी रक्षा करते हैं तथा अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए यदि किसी राज्य के कर्मचारी को किसी प्रकार की क्षति हो जाती है, तो यह आयोग सरकार से उसकी क्षति-पूर्ति की सिफारिश करते हैं । इन्हीं आयोगों के कारण सब व्यक्तियों की उन्नति के समान अवसर प्राप्त होते हैं । इसी कारण जनतन्त्र को सफल बनाने के लिए प्रशासन की सेवा के आधार पर गठित करना परम आवश्यक है । किसी राज्य के प्रशासन का नैतिक स्तर नागरिक सेवाओं कार्यकुशलता, ईमानदारी और सच्चरित्रता पर आधारित है । इन लोकसेवाओं के सदस्य की नियुक्ति यही लोक सेवा आयोग करता है ।
अतः इस आयोग के अभाव में किसी प्रकार का प्रशासन ठीक प्रकार से संचालित नहीं हो सकता । इसके लिए यह आवश्यक है कि लोक सेवा आयोग निष्पक्षतापूर्वक एवं ईमानदारी के साथ सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति करे । लोक सेवा आयोग सरकार की निरंकुशता पर भी अंकुश रखता है । इन आयोगों के कार्यों के महत्व में वृद्धि करने के उद्देश्य से संविधान में यह उपबन्ध किया गया है कि लोक सेवा आयोग अपने वार्षिक कार्यों का विवरण राष्ट्रपति या राज्य आयोगों की स्थिति में राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और राष्ट्रपति एवं राज्यपाल उस विवरण को संसद एवं विधान-मंडलों के विचारार्थ प्रस्तुत करायेंगे ।
यह व्यवस्था विभागीय अध्यक्षों अथवा मंत्रिपरिषद् की स्वेच्छाचारिता को रोकने के लिए ही है । इस प्रकार भारत में लोकसेवा आयोगों का बहुत महत्व एवं उपयोगिता है । गत वर्षों के अनुभव से यह ज्ञात है कि सरकार ने लोक सेवा आयोगों की लगभग सभी सिफारिशों को स्वीकार किया है । ये आयोग निष्पक्षतापूर्वक कार्य कर रहे हैं ।
5– अपने राज्य के लोक सेवा आयोग संगठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— उत्तर प्रदेश के लोक सेवा आयोग का संगठन- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या को निश्चित करने का अधिकार राज्य के राज्यपाल में निहित है । राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को नियुक्त राज्यपाल ही करता है । किन्तु इस आयोग के आधे सदस्य ऐसे होते हैं जो कम-से-कम 10 वर्ष तक सरकारी पद पर कार्य कर चुके हों । वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और पाँच अन्य सदस्य हैं । उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का कार्यालय इलाहाबाद में स्थित हैं ।
(i) कार्यकाल- संघ लोक सेवा आयोग की भाँति राज्य में भी लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है । किन्तु यदि 6 वर्ष से पूर्व कोई सदस्य 62 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो उस स्थिति में उसे 6 वर्ष से पूर्व ही अपना पद छोड़ देना पड़ता है । सेवानिवृत्ति आयु के संबधं में संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की स्थिति भी समान है । इसी प्रकार प्रान्तीय लोक सेवा आयोग के सदस्यों और उच्च न्यायालय के सदस्यों की स्थिति समान है । इसके अतिरिक्त दुराचाराभियोग के आधार पर राज्यपाल किसी सदस्य को पदच्युत करने का अधिकार रखता है, किन्तु उसका अपराध उच्चतम न्यायालय द्वारा सही सिद्ध होने पर ही ऐसा किया जा सकता है । यदि कोई पदाधिकारी इस पद पर रहते हुए किसी अन्य सेवा में संलग्न हो जाए, दिवालिया घोषित हो जाए या मानसिक दोषयुक्त हो जाए तो इन सभी स्थितियों में ऐसे सदस्य को पदच्युत किया जा सकता है ।
(ii) सदस्यों का वेतन- सदस्यों का वेतन प्रत्येक राज्य में राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है । उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के कार्य- उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं
(i) वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना- आयोग की वार्षिक रिपोर्ट का विशेष महत्व होता है । इस रिपोर्ट में आयोग आगामी वर्ष के अपने विस्तृत कार्यक्रम का विवरण देता है तथा उन बिन्दुओं को भी स्पष्ट करता है जिन्हें राज्य सरकार ने अस्वीकार कर दिया हो । इस रिपोर्ट को आयोग राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करता है । राज्यपाल इस विवरण-पत्र को राज्य के विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करता है । इससे यह ज्ञात हो जाता है कि राज्य सरकार आयोग की संस्तुतियों को किस सीमा तक स्वीकार करने के लिए सहमत है, जिससे आयोग अपने कार्यक्रम को निश्चित रूप देने में सफल होता है ।
(ii) परामर्श देने का कार्य- राज्य लोक सेवा आयोग सरकार के अन्तर्गत कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, पदोन्नति, अनुशासन एवं अन्य अनेक क्षेत्रों में भी सरकार को परामर्श देता हैं । राज्यपाल द्वारा भेजे गए अन्य किसी मामले के संबंध में भी लोक सेवा आयोग परामर्श देता है ।
(iii) क्षतिपूर्ति की सिफारिश करना- यदि किसी कर्मचारी को सरकारी पद, पर कार्यरत रहते समय किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति हो जाती है, तो सरकार के कर्मचारी को कितनी धनराशि देनी चाहिए या अपने पद से संबंधित किसी विषय पर सरकार के विरुद्ध लड़े गए मुकदमें में, जिसे वह जीत चुका है, कितनी धनराशि मिलनी चाहिए आदि इसी प्रकार के अनेक विषयों से संबंधित बिन्दुओं पर आयोग सरकार को परामर्श देता है । अतः यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि लोक सेवा आयोग अनेक रूपों में महत्वपूर्ण संगठन है ।
(iv) प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा योग्य व्यक्तियों का चयन करना- राज्य लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य अनेक प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित कर योग्य व्यक्तियों का राज्य सरकार की सेवा के लिए चयन करना होता है । कुछ पदों के लिए लिखित तथा मौखिक दोनों ही परीक्षाएँ अनिवार्य होती हैं । कुछ पद ऐसे भी होते हैं । जिनके लिए साक्षात्कार के आधार पर सीधी भर्ती की जाती है ।
6– ’भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार’ बिंदु पर संक्षिप्त लेख लिखिए ।
उत्तर— भारतीय लोक (सार्वजनिक) सेवाओं में भ्रष्टाचार- किसी भी देश की उन्नति कार्यकुशलता एवं निष्पक्ष लोक सेवाओं के अभाव में कदापि नहीं हो सकती । भारत का शासन भी इन्हीं लोक सेवाओं पर आश्रित है । इन सेवाओं में कार्य करने वाले कर्मचारियों तथा लोकसेवाओं में कुछ भ्रष्टाचार दृष्टिगोचर होता है, जिनमें सुधार की परमावश्यकता है । जब तक इनमें आवश्यक सुधार नहीं होगा, जब तक देश का प्रशासन उन्नत नहीं हो सकता । भारतीय लोक सेवाओं में निम्नलिखित दोष दृष्टिगोचर होते हैं
(i) सेवाओं के सभी कर्मचारियों को समान सुविधाएँ नहीं- सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाएँ केवल उच्च वर्गीय कर्मचारीगण को ही प्राप्त है किन्तु निम्न वर्ग कर्मचारी जैसे विकास खण्ड तथा सामुदायिक विकास कर्म चारियों को इस प्रकार की सुबिधायें प्रदान नहीं की जा सकती है |
(ii) सेवाओं का तानाशाही का-सा व्यवहार- लोक सेवाओं में कार्य करने वाले कर्मचारी अपने को लोक सेवक न समझकर जनता का शासक समझते हैं । वे सर्वसाधारण के साथ तानाशाहों का-सा व्यवहार करते हैं । पद में स्थानीय होने के कारण वे अपने इस व्यवहार के करने में किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं करते । उनको लोकहित की कोई चिन्ता नहीं होती ।
(iii) जन-संपर्क का अभाव- लोक सेवाओं के कर्मचारियों को राज्यों एवं केन्द्र की राजधानी में ही नियुक्त किया जाता है । वहीं पर वे अपने विभाग से संबंधित कार्य करते हैं । इस प्रकार जनता से उनका संपर्क नाममात्र का ही होता है । अतः वे सर्वसाधारण की ओर से उदासीन हो जाते हैं । अपने कार्य में दक्ष होने के कारण वे जनमत की कोई चिन्ता नहीं करते ।
(iv) लालफीताशाही- लालफीताशाही लोक सेवाओं का सबसे गम्भीर दोष है । इसका अर्थ है कि शासन संबंधी कार्य पर निर्णय बड़ी सुस्ती से किया जाता है । ये कर्मचारियों लोकमत की अपेक्षा फाइलों की अधिक चिन्ता करते हैं ।
(v) नियुक्तियों में पक्षपात- कुछ विभागों के अध्यक्ष अपनी पंसद के व्यक्तियों की नियुक्ति अस्थायी रूप से कर लेते हैं । जब वे लोकसेवा आयोग के समक्ष नियुक्ति के लिए जाते हैं, तो पूर्व अनुभव के आधार पर उनको प्रधानता दी जाती है । इस प्रकार नियुक्तियाँ निष्पक्ष रूप से नहीं हो पातीं ।
(vi) पदोन्नति की रीति में दोष- बहुत से कार्यालयों में कर्मचारियों की पदोन्नति पक्षपातपूर्ण ढंग से की जाती है । इससे योग्य कर्मचारियों का उत्साह कम हो जाता है और उनमें बड़ा असन्तोष फैल जाता है ।
(vii) वेतन की दरों में महान् अंतर- कुछ राज्य कर्मचारियों का वेतन बहुत कम है तथा कुछ का बहुत अधिक है । इससे भी
छोटे कर्मचारियों में बड़ा असंतोष है ।
(viii) नैतिकता का अभाव- लोक सेवकों का नैतिक स्तर ऊँचा हैं, वे अवसरवादी हैं तथा उनका कोई आदर्श नहीं है । वे सरकारी हानि को अपने देश की हानि न समझकर लापरवाही से काम करते हैं । बड़े अफसरों को अपने अधीन कर्मचारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है । जनता के साथ भी उनका व्यवहार अच्छा नहीं है, वे जनता की शिकायतों को सहानुभूति से
न देखकर घृणा की दृष्टि से देखते हैं । उनके सेवा-संबंधी चरित्र में सेवा के आदर्श की कमी है । कुछ सेवाओं में भ्रष्टाचार पूर्ववत् प्रचलित है । निम्न सेवाओं में तो भ्रष्टाचार बहुत अधिक है । राजनीतिक नेताओं ने सेवाओं पर दबाव डालकर स्थिति को और भी विषम बना दिया है । निचले वर्ग के कर्मचारी वेतन की कमी के कारण भी रिश्वत लेने के आदि हो गए हैं ।