Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना


1- निम्नलिखित पद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-


विश्वानि……….. …………..आसुव।
[शब्दार्थ-विश्वानि = सम्पूर्ण; समस्त, देव सवितः हे सूर्यदेव, दुरितानि = पापों को, परासुव= नाश कीजिए, यद् ( यत् ) =जो कुछ, भद्रं = कल्याणकारी हो, तन्नः>तत् + नः= वह हमें, आसुव=प्रदान कीजिए


सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘वन्दना’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद- हे सूर्यदेव! हमारे समस्त पापों (बुराइयों) का नाश कीजिए (और) जो कल्याणकारी हो, वह हमें प्रदान कीजिए।

ईशावास्यमिदं ……………………..धनम्।
[शब्दार्थ-ईशा = ईश्वर से, वास्यम् = व्याप्त है, इदम = यह, यत् किञ्च = जो कुछ भी, जगत्यां = अखिल बह्मांड में; संसार में, जगत् =जड़-चेतनरूप जगत्, तयक्तेन = त्यागपूर्वक, भुञ्जीथा = भोग करो, मा गृधः = लोभ न करो, कस्यस्विद् = किसका; किसी के
सन्दर्भ- पूर्ववत्।


अनुवाद– इस अखिल ब्राह्मण्ड में (स्थित) जो यह चराचर जगत् है, वह सब ईश्वर से व्याप्त है, (इसलिए) उस ईश्वर को साथ रखते हुए (उसका सदा-सर्वदा स्मरण करते हुए) त्यागपूर्वक (इसे) भोगो, (इसमें) आसक्त मत होओ, (क्योंकि) धन (भोग्य पदार्थ) किसका है (अर्थात् किसी का भी नहीं है)? [अथवा, किसी के भी (कस्य स्वित् ) धन पर (धनम् ) ललचाओ मत-किसी के धन को मत ग्रहण करो (मा गृधः)] विशेष- आशय यह है कि सांसारिक पदार्थ नाशवान् हैं, इसलिए उनमें आसक्त न होकर ईश्वर का सदा स्मरण करते हुए त्यागपूर्वक उनका भोग करो।

सह नाववतु …………………. विद्विषावहै।
[शब्दार्थ- सह = साथ-साथ, नाववतु > नौ + अवतु = हम दोनों की रक्षा करें, भुनक्तु = पालन करें, वीर्यम् = शक्ति को, करवावहै = (हम दोनों) प्राप्त करें, तेजस्वि = तेजोमयी, नावधीतमस्तु > नौ + अधीतम् + अस्तु = हम दोनों की पढ़ी हुई विद्या हो, मा विद्विषावहै हम दोनों परस्पर द्वेष न करें
सन्दर्भ- पूर्ववत्।


अनुवाद– हे ईश्वर! आप हम दोनों (गुरु-शिष्य) की साथ-साथ रक्षा करें, साथ-साथ पालन करें, हम दोनों साथ-साथ बल प्राप्त करें, हम दोनों की अध्ययन की हुई विद्या तेजोयुक्त हो (हम कहीं किसी से विद्या में परास्त न हों), हम दोनों परस्पर (कभी) द्वेष न करें।

उत्तिष्ठत ……………… वरान्निबोधत।
[शब्दार्थ- उत्तिष्ठत = उठो, जागृत = जागो, प्राप्य प्राप्त करो, वरान्निबोधत= श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करों
सन्दर्भ- पूर्ववत्।

अनुवाद– (हे मनुष्यो!) उठो (उद्यम करो), जागो (सावधान रहो), श्रेष्ठ मनुष्यों के समीप जाकर उनसे ज्ञान प्राप्त करो
(श्रेष्ठ अनुभवी विद्वानों के पास जाकर उनसे ज्ञान अर्जित करो)।

यतो यतः…………………………. नः पशुभ्यः ।
[शब्दार्थ- यतो यतः= जहाँ जहाँ से, समीहसे= चाहते हो, ततः= वहाँ से; उससे, अभय = निर्भय, कुरु= करो, शन्न:>श + नः = हमारा (नः) कल्याण (शं), प्रजाभ्योऽभयं>प्रजाभ्यः + अभयं = प्रजा का; सन्तान का, पशुभ्यः = पशुओं से] सन्दर्भ- पूर्ववत्।

अनुवाद– हे प्रभो! तुम जहाँ-जहाँ से उचित समझो (अर्थात् जहाँ-जहाँ से हम पर संकट आने वाला हो) वहाँ से हमें निर्भय
करो (अर्थात् हमारी रक्षा करो), हमारी सन्तान का कल्याण करो और हमें पशुओं से निर्भय करो।


सूक्ति-व्याख्या संबंधी प्रश्न

up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना
1- निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘वन्दना’ नामक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में सूर्य से प्रार्थना की गई है।


व्याख्या– प्रस्तुत वैदिक मन्त्र में वैदिक ऋषि ने सूर्य से अपने समस्त पापों को नष्ट करने और जो कल्याणकारी हो उसे प्रदान करने की प्रार्थना की है। भारतीय संस्कृति में अति प्राचीनकाल से ही सूर्य की उपासना की जाती रही है। भारतीय ज्योतिष में मान्य नवग्रहों में भी सूर्य को सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त है। योग में सूर्य-स्वर और आसनों में सूर्य नमस्कार को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। गायत्री मन्त्र के द्वारा जो गायत्री की उपासना प्रचलित है, उसका भी प्रादुर्भाव सूर्य से ही माना जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष देवता के रूप में मान्य हैं। यही कारण है कि आज भी प्रचलित अनेक पर्व, त्योहार सूर्य को प्रमुख मानकर ही मनाए जाते हैं। सूर्य को प्राचीन काल से ही सभी धर्मों सम्प्रदायों के मध्य श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है; अतः अलौकिक शक्तियों से कुछ प्राप्ति की अभिलाषा रखने वाले सूर्य की ही उपासना किया करते हैं।

ईशावास्यमिदं सर्वं।
सन्दर्भ- पूर्ववत्। प्रसंग- इस सूक्ति में ईश्वर की सर्वव्यापकता समझाई गई है।

व्याख्या– इस सूक्ति में बताया गया है कि यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ईश्वर से व्याप्त है। इसके कण-कण में भगवान समाए हुए हैं। इस दृश्यमान् जगत् के जड़ और चेतन सभी तत्वों में परमपिता परमात्मा का वास है। इन सभी वस्तुओं के विषय में जानो। धन किसी का नहीं है; अतः उसके प्रति मोह मत रखो। इस जगत् में जो भी सम्पत्ति है, उसका त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए।

3. मागृधः कस्यस्विद्धनम्।

सन्दर्भ- पूर्ववत्।

प्रसंग- इस सूक्ति में धर्मपूर्वक धनोपार्जन करने का सन्देश दिया गया है।

व्याख्या– (संसार में) आसक्त मत हो, (क्योंकि) धन किसका है (अर्थात् किसी का नहीं है) (अथवा, किसी के भी धन का लोभ न करो)। मनुष्य भाँति-भाँति के उद्यम करके, अन्याय और अत्याचार से धन-सम्पत्ति का अर्जन करता है, सुख-भोग की सामग्री एकत्रित करता है। ये सभी पदार्थ यहीं रह जाते हैं और मनुष्य को इस संसार में खाली हाथ ही जाना पड़ता है; क्योंकि ये सभी सांसारिक पदार्थ नाशवान् हैं। इन्हें यहीं पर नष्ट होना है। मनुष्य के साथ जाने वाला कोई नहीं। इसलिए मनुष्य को सांसारिक विषयभोगों में आसक्त न होकर धर्मपूर्वक धनार्जन करना चाहिए। इससे उसकी आत्मा उन्नत बनेगी और अन्त में वह सद्गति प्राप्त कर सकेगा।

सह नावत्रतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग- इस सूक्ति में गुरु और शिष्य परमात्मा से अपनी रक्षा, पालन और कार्य करने हेतु सहयोग की प्रार्थना कर रहे हैं।

व्याख्या– प्रस्तुत सूक्ति में गुरु एवं शिष्य के पारस्परिक सद्भाव पर आधारित प्राचीन भावना की अभिव्यक्ति हुई है। गुरु और शिष्य दोनों परमात्मा से यह प्रार्थना करते हैं कि वे उन दोनों की ही रक्षा और पालन करें। दोनों को ही बौद्धिक पराक्रम सम्बन्धी कार्य करने का अवसर प्रदान करें। गुरु व शिष्य दोनों में से किसी की भी यह इच्छा नहीं है कि वह इस संसार में अकेला ही सुयश का भागी बने।

मा विद्विषावहै।
सन्दर्भ- पूर्ववत्।

प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में परमात्मा से प्रार्थना करते हुए गुरु और शिष्य कहते हैं कि हम दोनों का जीवन सामंजस्य और सामरस्यपूर्ण हो।

व्याख्या– प्रस्तुत सूक्ति में एक मंगलमय भावना की अभिव्यक्ति हुई है। तात्पर्य यह है कि यदि गुरु और शिष्य परस्पर द्वेषरहित होकर सरस्वती की साधना में लगे रहेंगे तो ज्ञान-विज्ञान की प्रगति होगी और अनुसन्धान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकेंगे। यहाँ पर द्वेष के परित्याग की भावना को बल दिया गया है तथा यह भी स्पष्ट किया गया है कि जीवन में सामंजस्य बहुत आवश्यक है। बिना वैचारिक सामंजस्य के गुरु और शिष्य भी सम्पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकते।

उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

सन्दर्भ- पूर्ववत्।

प्रसंग- इस सूक्ति में श्रेष्ठ पुरुषों की संगति से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया है।

व्याख्या– वैदिक ऋषि मनुष्यों को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि उठकर कर्मशील बनो। आलस्य में अपना अमूल्य समय न गँवाओ। साथ ही हर क्षण सतर्क रहो, जागरूक रहो; जिससे तुम प्राप्त हुए अवसर का उपयोग कर सको, विपत्तियों से बच सको और अपना अभीष्ट पा सको। यदि तुम्हें अपने कर्त्तव्य के विषय में कभी शंका उत्पन्न हो, तो अपने से अधिक बुद्धिमान, ज्ञानवान् सत्पुरुषों के पास जाकर उनसे ज्ञान प्राप्त करो। तात्पर्य यह है कि जीवन की सार्थकता ज्ञान सम्पन्न होने में ही निहित है।

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।

सन्दर्भ- पूर्ववत्।

प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में कवि परमेश्वर से सब प्रकार के कल्याण की कामना करता हुआ निर्भय करने की प्रार्थना करता है।

व्याख्या– कवि परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! आप हमें जहाँ-जहाँ से दुर्बल समझते हो, हमें वहाँ-वहाँ से सबल बनाकर विघ्नों और कष्टों से हमारी रक्षा करके हमें दुःखों के भय से छुटकारा दिलाओ।


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए

प्रश्न—-वन्दनायाः प्रथम मन्त्रे का प्रार्थना कृता?
उ०- वन्दनायाः प्रथमे मन्त्रे पापानां विनाशाय कल्याणं प्रदानाय च प्रार्थना कृता।

प्रश्न—- पञ्चमे मन्त्रे का प्रार्थना कृता?
उ०- पञ्चमे मन्त्रे “प्रभो! अस्मान् अभयान् कुरु। अस्माकं पुत्रपौत्रादीनां पशूनाञ्च कल्याणं कुरु’ इति प्रार्थना कृता।

प्रश्न—- वयं कथं जीवनं यापयेम?
उ०- वयं लोभं त्यक्त्वा ईश्वरञ्च स्मरन्तो जीवनं यापयेम।

प्रश्न—- जगति मानवः कथं वसेत्?
उ०- जगति मानवः जगतं वसेत् ।

प्रश्न—- ईशः पशुभ्यः नः किम् ददातु?
उ०- ईश: पशुभ्य: न: भय ददातु।

निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए –

up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना


1– . हमें बड़ों का आदर करना चाहिए।
अनुवाद- वयं अग्रजस्य सम्मानं कुर्याम् ।

2- हे देव! मेरे सभी पाप दूर करो।
अनुवाद- भो देव! मम समस्त पापं नष्ट कुरु।


3-ईश्वर! मेरे पशुओं का कल्याण करो।
अनुवाद- भो ईश! मम पशुभ्य कल्याणं कुरु।

4-गुलाब का फूल सफेद है।
अनुवाद- पाटलपुष्प श्वेतः अस्ति।

5-तुम्हारा क्या नाम है?
अनुवाद- त्वं किम् नामः अस्ति?

6- अध्यापक छात्र को पुस्तक देता है।
अनुवाद- अध्यापक: छात्राम् पुस्तकं ददाति।

7-तुम दिल्ली में कहाँ जाओगे?
अनुवाद- त्वं दिल्ले कुत्र गमिष्यति।

8-राजा ने ब्राह्मण को गाय दी।
अनुवाद- राजाः ब्राह्मणः गौः ददाति।

9- तुम दोनों निबन्ध लिखोगे।
अनुवाद- यूयं निबन्ध लेखिष्यावः।

10- हम सब गीत गाते हैं।
अनुवाद- वयं गीतं गायाम।

    1—- निम्नलिखित शब्दों में नियम-निर्देश करते हए सन्धि-विच्छेद कीजिए
    तन्नः, नाववतु, ईशावास्यमिदम्, प्रजाभ्योऽभयम्, वरान्निबोधत, नावधीतमस्तु।


    उ०- सन्धि पद सन्धि-विच्छेद नियम सन्धि का नाम
    तन्नः तत् + नः त्+न =न्न परसवर्ण सन्धि
    नाववतु नौ + अवतु औ+ अ = आव अयादि सन्धि
    ईशावास्यमिदम् ईशावास्यम् + इदम् म् + ई =मि अनुस्वार सन्धि
    प्रजाभ्योऽभयम् प्रजाभ्यः + अभयम् यः + अ = ओ +5 उत्व सन्धि
    वरान्निबोधत वरान् + निबोधत न+ब =न्न परसवर्ण सन्धि
    नावधीतमस्तु नौ + अधीतम + अस्तु औ + अ = आव अयादि,
    म+ अ =म दीर्घ सन्धि

    2— निम्नलिखित शब्द-रूपों में प्रयुक्त विभक्ति एवं वचन लिखिए
    विश्वानि, दुरितानि, तेन, जगत, पशुभ्यः, धनम्, कस्य, जगत्याम्, सर्वं


    उ०- शब्द-रूप विभक्ति वचन
    विश्वानि प्रथमा/द्वितीया बहुवचन
    दुरितानि प्रथमा/द्वितीया बहुवचन
    तेन तृतीया एकवचन
    जगत् प्रथमा/द्वितीया एकवचन
    पशुभ्यः चतुर्थी/पञ्चमी बहुवचन
    धनम् द्वितीया एकवचन
    कस्य षष्ठी एकवचन
    जगत्याम् सप्तमी एकवचन
    सर्वं द्वितीया एकवचन

    दिए गएशब्दों के शब्द-रूप लिखिए
    सर्व, जगत।


    सर्व(सब) (पुल्लिङ्ग) शब्द रूप

    up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

    निम्नलिखित शब्दों के संस्कृत में दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
    विश्वः, ईश्वरः, जगत्:
    विश्वः = संसारः, ब्रह्माण्डः।
    ईश्वरः = प्रभुः, परमेश्वरः।
    जगत् = लोकः, जगः।

    रेखांकित पदों में प्रयुक्त विभक्ति तथा उससे संबंधित नियम का उल्लेख कीजिए

    (क) गृहं परितः वृक्षाः सन्ति।
    उ०- रेखांकित पद गृहं में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है। क्योकि अभितः (चारों ओर या सभी ओर), परित:(सभी ओर), समया (समीप), निकषा(समीप), हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द),प्रति (ओर, तरफ) शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

    (ख) सुरेशा पादेन खञ्जः अस्ति।
    उ०- रेखांकित पद पादेन में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है। क्योंकि जिस अंग में विकार होने से शरीर विकृत दिखाई दे, उस विकारयुक्त अंग में तृतीया विभक्ति होती है।

    (ग) रामः लक्ष्मणेन सह वनम् अगच्छत्।
    उ०- रेखांकित पद लक्ष्मणेन में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि सह के योग में अप्रधान (अर्थात् जो प्रधान क्रिया के कर्ता का साथ देता है) में तृतीया विभक्ति होती है।

    (घ) श्री गणेशाय नमः।
    उ०- रेखांकित पद श्रीगणेशाय में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (आहुति), स्वधा (बलि), अलं(समर्थ, पर्याप्त), (आहुति) इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।

    (ङ) राज्ञः पुत्रः।
    उ०- रेखांकित पद राज्ञः में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि जहाँ स्वामी तथा सेवक, जन्य तथा जनक, कार्य तथा कारक
    इत्यादि के मध्य कोई संबंध दिखाए जाते हैं, वहाँ षष्ठी विभक्ति होती है।

    HOME PAGE

    How to download online Ayushman Card pdf 2024 : आयुष्मान कार्ड कैसे ऑनलाइन डाउनलोड करें

    संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam-1

    Garun Puran Pdf In Hindi गरुण पुराण हिन्दी में

    Bhagwat Geeta In Hindi Pdf सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दी में

    MP LOGO

    3 thoughts on “Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 1 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना”

    1. Pingback: Up Board Class 11 Hindi Sanskrit Khand Chapter 3 Sadacharopadesh संस्कृत दिग्दर्शिका तृतीयः पाठः सदाचारोपदेशः सम्पूर्ण हल – UP Board INFO

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    join us
    Scroll to Top