UP BOARD CLASS 10 HINDI SANDHI स्वर संधि व्यंजन संधि विसर्ग संधि
UP BOARD CLASS 10 HINDI SANDHI सन्धि विच्छेद
जब दो शब्द अत्यन्त समीप होकर जुड़ते हैं, तो प्रथम शब्द का अन्तिम अक्षर और द्वितीय शब्द का प्रथम अक्षर मिलकर नया रूप धारण कर लेते हैं। इस क्रिया को सन्धि करना कहते हैं। सन्धि किये हुए पद को पुनः उनके मूल रूप में लिखने की क्रिया को सन्धि-विच्छेद करना कहते हैं। ज्ञातव्य हो कि प्रथम और द्वितीय शब्दों के अन्य शेष वर्ण यथावत् रहते हैं।
वर्ण या अक्षर स्वर, व्यञ्जन या विसर्ग होते हैं। प्रथम शब्द का अन्तिम वर्ण इन तीनों (स्वर, व्यञ्जन या विसर्ग) में जो भी होगा उसी के अनुसार स्वर सन्धि, व्यञ्जन सन्धि या विसर्ग सन्धि होती है।
सकत वर्णमाला में अ, इ, उ, ऋ, ल मूल स्वर होते हैं और ए, ओ, ऐ, औ संयुक्त स्वर होते हैं तथा व्यञ्जनों में स्पर्श व्यञ्जन-क वर्ग (क्, ख, ग, घ, ङ्), च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ्), ट वर्ग (ट, ठ, ड्, ढ्, ण), त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) और प वर्ग (प, फ, ब, भ, म्) ये 5 वर्ग अर्थात् 25 स्पर्श व्यञ्जन होते हैं। स्वर और व्यञ्जन के मध्य (ध्वनि के आधार पर) अन्तःस्थ (य, व, र, ल्) चार वर्ण होते हैं और ऊष्म व्यञ्जन (श्, ष, स्, ह) होते हैं। विसर्ग का चिह्न (:) होता है और उच्चारण ‘ह’ ध्वनि का होता है।
ध्यान रहे जिन वर्गों में कोई मात्रा या हलन्त ( ) का चिह्न नहीं होता है उन वर्गों में ‘अ’ स्वर जुड़ा होता है और हलन्तयुक्त वर्ण शुद्ध व्यञ्जन होता है। हलन्त वर्ण में कोई मात्रा या विसर्ग नहीं हो सकता है।
माहेश्वर के निम्नलिखित 14 सूत्रों में सम्पूर्ण संस्कृत वर्णमाला है। हलन्त वर्ण उच्चारण सुविधा हेतु हैं, वर्णमालान्तर्गत नहीं हैं।
अइउण् । ऋलुक् । एओङ् । ऐऔच् ।
(स्वर) हयवरट। लण्।
(विसर्ग, अन्तःस्थ) जमङणनम्। झभञ्। घढधष्। जबगडदश। खफछठथचटतव्। कपम्।
(स्पर्श व्यंजन शषसर्। हल्।
(ऊष्म व्यञ्जन) सूत्रों को समझने की विधि सूत्र के प्रथम अक्षर से लेकर उस सूत्र के हलन्त अक्षर के मध्य आनेवाले सभी अक्षरों के समूह को जाना जाता है यथा
अच् = अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ऐ, औ अर्थात् सभी स्वर
इक् = इ, उ, ऋ, लु ।।
यण = य, व, र, ल ।
एच् = ए, ओ, ऐ, औ ।
अक् = अ, इ, उ, ऋ, ल (सभी मूल स्वर)
एङ् = ए, ओ।
एच् = ए, ओ, ऐ, औ (सभी संयुक्त स्वर),
हल् (सभी व्यञ्जन अक्षर) ।
स्वर सन्धि दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण, अयादि, पूर्व रूप, पररूप में मात्र यण और वृद्धि सन्धि ही पाठ्यक्रम में हैं । अतः उनकी परिभाषा, उदाहरण एवं पहचान यहाँ पर दिये जा रहे हैं
- वृद्धि संधि–[बृद्धिरेचि] जब अ या आ के बाद ए या ऐ, ओ या औ में से कोई स्वर आता है तो दोनों स्वरों को मिलाकर क्रमशः ऐ, औ हो जाता है, उदाहरण :
एक + एकः = (अ + ए = ऐ ) = एकैकः
महा + ऐश्वर्यम् = (आ + ऐ = ऐ ) = महैश्वर्यम्
देव + ऐश्वर्यम् = (अ + ऐ = ऐ ) = देवैश्वर्यम्
तथा + एव = (आ + ए = ऐ ) = तथैव
तव + ओजः _ = (अ + ओ = औ) = तवौजः - मम + औत्सुक्यम् = (अ + औ = औ ) = ममौत्सुक्यम्
- महा + ओजः = (आ + ओ = औ) = महौजः
- महा + औत्सुक्यम् = (आ + औ = औ) = महौत्सुक्यम्
- तदा + एव = (आ + ए = ऐ ) = तदैव
- यदा + एव (आ + ए = ऐ ) = यदैव
- अस्य + एव = (अ + ए = ऐ ) = अस्यैव
- बालिकाः + एषाः = (आ + ए = ऐ ) = बालिकैषाः
- जल + ओघः = (अ + ओ = औ ) = जलौघः
- तव + औदार्यम् = (अ + औ = औ ) = तवौदार्यम्
- महा + ओषधिः = (आ + ओ = औ ) = महौषधिः
- सदा + एव = (आ + ए = ऐ ) = सदैव
- गोप + ऐश्वर्यम् गोपैश्वर्यम् गुण + ऐश्वर्यम् = गुणैश्वर्यम्
- अद्य + एव = (अ + ए = ऐ) = अद्यैव
- तत्र + एव = (अ + ए = ऐ)
- वन + औषधम् = (अ + औ = औ) वनौषधम्
- ग्राम + औषधालय (अ + औ = औ) ग्रामौषधालय
- मा + एवम् [ + ए = ऐ) मैवम् वन + ओकसः (अ + ओ = औ) = वनौकसः राज + ऐश्वर्यम् __= (अ + ऐ = ऐ) = राजैश्वर्यम्
मम + एव = (अ + ए = ऐ) = ममैव
मत + ऐक्यम् = (अ + ए = ऐ)
रत्न + ओघः = (अ + ओ = औ) = रत्नौघः
परम + ऐश्वर्यम् = (अ + ऐ = ऐ) = परमैश्वर्यम्
समय + औचित्यम् = (अ +औ = औ)= समयौचित्यम्
काल + औचित्यम् = (अ +औ = औ) =कलौचित्यम्
अत्र + एव (अ +ए = ऐ) = अत्रैवं
महा + ओघः = (आ +ओ = औ) =महौघः
महा + औदार्य = (आ +औ = औ) = महौदार्य
दन्त + ओष्ठः = (अ +ओ = ओ) = दन्तोष्ठः - यण् सन्धि (इकोयणचि)- यदि इ, उ, ऋ, ल ह्रस्व या दीर्घ के बाद असमान स्वर आते हैं तो उनके स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल हो जाता है। यदि मूल स्वरों के बाद कोई भी असमान स्वर आ जाय तो आगेवाले स्वर की मात्रा लग जाती है। उदाहरण : –
इत्यादि = इति + आदि (इ + आ = य् + आ = या) = इत्यादि
स्वागतम् = सु + आगतम् = स् + उ + आगतम् = स्व + आ = स्वागतम् - पित्रादेशः = पितृ + आदेशः (ऋ + आ = र् + आ = रा) = पित्रादेशः
लाकृतिः = लृ + आकृतिः = (ल + आ = ला) = लाकृतिः
इत्यत्र = इति + अत्र = (इ + अ = य) = इत्यत्र
मन्वन्तर = मनु + अन्तर = (उ+ अ = व) = मन्वन्तर
मातृ + आज्ञा = (ऋ+ आ = र् + आ = रा) = मात्राज्ञा
मधु + अरिः = (उ+ अ = व) =मध्वरिः
दधि + आनय = (इ + आ = या ) = दध्यानय
इति + उक्त्वा (इ + उ = यु) = इत्युक्त्वा
पितृ + आकृतिः = (ऋ+ आ = रा) पित्राकृतिः
प्रति + उत्तरम् = (इ + उ = यु) = प्रत्युत्तरम् (2017AA,AD,20MG,MA)
अति + अत्याचार (इ + आ = या ) = अत्याचार
अति + अन्त (इ > य् + अ = य) = अत्यन्त
प्रति + एकः (इ > य् + ए = य) = प्रत्येकः
इति + अत्र = (इ > य् + अ = य) = इत्यत्र
अति + अधिकम् (> य् + अ = य) = अत्यधिकम्
यदि + अपि = (इ > य् + अ = य) = यद्यपि
इति + आदि (इ > य् + आ = या) = इत्यादि
देवी + आज्ञा (य् + आ = या) = देव्याग्या
उपरि + उक्तम् (इ > य् + उ = यु) = उपर्युक्तम्
नारी + उपदेशः (इ > य् + उ = यु) = नार्युपदेशः
मनु + अन्तरः = (उ > व् + अ = व) = मन्वन्तरः
गुरु + आदेशः (उ > व् + आ = वा) गुर्वादेशः
वधू + आगमनम् (ऊ > व् + आ = वा) =वध्वागमनम्
अनु + एषणम् (उ > व् + ए = वे) =अन्वेषणम्
लघु + आकृतिः (उ > व् + आ = वा) लघ्वाकृतिः
पितृ + आज्ञा (ऋ > र् + आ = रा) = पित्राज्ञा
भातृ + अंश (ऋ > र् + अ = रं) भात्रंश
गुरु + आज्ञा (उ > व् + आ = वा) =गुर्वाज्ञा
अभि + उत्तरम् =(इ > उ = यु) =अभ्युत्तरम्
धातृ + आज्ञां (ऋ > र् + आ = रा) = धात्राज्ञा
मातृ + आकृति (ऋ + आ = र् + आ = रा) =मात्राकृति लृ + आदेशः (लु > ल् + आ = ला)
लघु + आदाय (उ > व् + आ = वा) =लघ्वादाय
इति + अलम् (इ > य् + अ = य) = इत्यलम्
प्रत्युपकार = प्रति + उपकार
दधि + अत्र = दध्सुयत्र
परि + उपासते = पर्युपासते
इति + अत्र = इत्यत्र
भातृ + आदेशः = भात्रादेश
अभि + उदयः = अभ्युदय
सुधी + उपास्यः सुध्युपास्य
प्रति + आगमनम्= प्रत्यागमन
अति + उक्ति= अत्युक्ति
कवि + आदि= कव्यादि
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