Up Board Class 10 English Chapter -3 TORCH BEARERS FULL SOLUTION सम्पूर्ण पाठ का सारांश हिन्दी व अंग्रेजी में

Up Board Class 10 English Chapter -3 TORCH BEARERS FULL SOLUTION सम्पूर्ण पाठ का हिन्दी सारांश अंग्रेजी सारांश

Class 10 English Chapter -3 TORCH BEARERS

Part I

Once upon a time, many centuries ago, there lived an old merchant. All his life he had toiled hard and made a lot of money. He wanted to give all his money to the son who proved himself to be cleverer of the two. He gave one rupee to each of his sons. He asked them to go separately and buy something which might fill the whole house. The elder son bought a load of hay for a rupee. Hopefully he piled it into the house. But when it was all in, he found that there was not enough to cover even the floor.

The second son did not go straight way to the market. For a long time he sat thinking about what to possibly could buy. At last he spent his rupee on candles, of which he got quite a number. When he reached home, his brother was standing disconsolately looking at the hay spread out on the floor. He put the candles in every room of his house and lit them. At once all the house was filled with light. Then the old merchant was impressed by the second son and gave all his property to him.


Now we live in a big house which we call our native country. Each of us has powers of body, powers of mind, powers of character. We should use these powers and abilities to spread light into all parts of our country. We should try to become good citizen.


Part II

In the course of his travels, Guru Nanak and his disciple Mardana came to a village. They wanted to stay there for the night. But the villagers were rude and inhospitable, and would not let them stay. As Guru Nanak d away from the village, Guru Nanak said, “I pray that the people of this village may always stay in this village.” Mardana was somewhat puzzled at this, but said nothing.


The next night they came to another village. In this village the villagers welcomed them, treated them kindly, found them a place to stay for the night, and gave them food to eat. In the morning when Guru Nanak and Mardana were leaving, the Guru said “I pray that the people of this village may not remain in their village, but may be scattered throughout the country.” This was too much for Mardana. He thought that the Guru had not done justice. Guru Nanak said that the bad people staying at one place would do harm in one place only. On the other hand good people should be scattered all over the country so that their goodness might spread everywhere.


The author advises that we should grow into such citizens that people will want the light of our character and our influence everywhere. A good citizen is a centre of light wherever he lives, and whatever he is doing. The greater the number of good citizen in a country, the more enlightened will the country be as a whole.


If we are weak and poor citizens, our country will suffer. A chain is as strong as its weakest line. Each one of us is a link in the chain that is our country. So, each of us has the responsibility of being a good and strong citizen. We must see that our particular link in the chain is not a weak one.


When the Olympic games were held in London in 1948, a flame was carried from Greece to London. Where the Olympic games have been being held for long. This flame was carried by a long relay of runners right across Europe. Unfortunately while handing over the torch to the new runner, let it go out. How ashamed he must have been!


Each one of us, as we leave school, has a flame to carry which we have to pass on to others. We have been given knowledge and skill. If we have to keep this torch that has been given to us alight. We have to know how to look after it, and we have to know how to hold it as we run.

Part I

किसी समय कई सदियों पूर्व एक बूढ़ा व्यापारी रहता था। अपने सारे जीवन में उसने कठिन परिश्रम किया था और बहुत अधिक धन कमा लिया था। वह अपना सारा धन अपने दोनों पुत्रों में से एक को देना चाहता था, जो अपने आप को अधिक चतुर सिद्ध कर सके। उसने अपने पुत्रों में से दोनों को एक-एक रुपया दिया। उसने उनसे अलग-अलग जाने के लिए तथा कोई वस्तु खरीदने के लिए कहा, जो सारे घर को भर सके। बड़े पुत्र ने एक रुपये में भूसे का भार खरीद लिया। किंतु जब वह सारा भूसा अंदर आया, तो उसने पाया कि वह फर्श को ढकने के लिए पर्याप्त नहीं था।


दूसरा पुत्र सीधा बाजार नहीं गया। काफी समय तक वह यह सोचता हुआ बैठा रहा कि उसके लिए क्या खरीदना संभव हो सकेगा। अंत में उसने अपना रुपया मोमबत्तियों पर खर्च किया, जिन्हें उसने बड़ी मात्रा में प्राप्त कर लिया था। जब वह घर पहुँचा तो उसका भाई निराशापूर्वक फर्श पर फैले हुए भूसे को देख रहा था। उसने मकान के प्रत्येक कोने में मोमबत्ती को रख दिया और उन्हें जला दिया। एकदम सारा घर प्रकाश से भर गया। तब बूढ़ा व्यापारी अपने दूसरे पुत्र से बहुत खुश हुआ और अपनी सारी सम्पत्ति उसको दे दी।


अब, हम एक बड़े परिवार में रहते हैं, जिसे हम अपना स्वदेश पुकारते हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति शरीर की शक्तियाँ, दिमाग की शक्तियाँ और चरित्र की शक्तियाँ रखता है। हमें इन शक्तियों और क्षमताओं का प्रयोग अपने देश के सभी भागों में प्रकाश फैलाने के लिए करना चाहिए। हमें अच्छे नागरिक बनने का प्रयास करना चाहिए।

Part II

अपनी यात्रा के दौरान गुरु नानक और उनका शिष्य मरदाना एक गाँव में आए। वे वहाँ रात्रि में ठहरना चाहते थे। किंतु गाँव वाले असभ्य और अतिथि सत्कार न करने वाले थे और उन्होंने उन्हें ठहरने नहीं दिया। ज्यों ही गुरु नानक और मरदाना गाँव से बाहर आए, गुरु नानक ने कहा, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस गाँव के लोग सदैव इसी गाँव में ठहरे रहें।” मरदाना इस बात पर भ्रमित हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा।


अगली रात्रि में वे दूसरे गाँव में आए। इस गाँव में ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया, रात्रि में ठहरने के लिए उन्हें स्थान दिया और खाने के लिए भोजन दिया। प्रात:काल जब गुरु नानक और मरदाना, प्रस्थान कर रहे थे तो गुरु ने कहा, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस गाँव के लोग अपने गाँव में न रह सकें, बल्कि सारे देश में फैल जाएँ।

यह मरदाना के लिए बहुत बड़ी बात थी। उसने सोचा कि गुरु ने न्याय नहीं किया है। गुरु नानक ने कहा कि बुरे लोग एक स्थान पर रहकर केवल एक ही स्थान पर नुकसान करेंगे। दूसरी ओर अच्छे लोगों को सारे देश में फैल जाना चाहिए, जिससे कि उनकी अच्छाई प्रत्येक जगह पर फैल सके।


लेखक सलाह देता है कि हमें ऐसे नागरिक के रूप में विकसित होना चाहिए कि लोग हमारे चरित्र और हमारे प्रभाव के प्रकाश की आवश्यकता महसूस करें। एक अच्छा नागरिक प्रकाश का केंद्र होता है, चाहे वह कहीं भी रहे और कुछ भी करे। जितनी बड़ी संख्या किसी देश में अच्छे नागरिकों की होगी, उतना ही सभ्य संपूर्ण देश हो जाएगा।


यदि हम कमजोर और निर्धन नागरिक हैं तो हमारा देश संघर्ष करेगा। एक जंजीर उतनी ही मजबूत होती है, जितनी कि उसकी सबसे कमजोर कड़ी। हममें से प्रत्येक अपनी देशरूपी जंजीर की एक कड़ी है। अत: हममें से प्रत्येक का उत्तरदायित्व है कि हम अच्छे और मजबूत नागरिक बनें। हमें देखना है कि हमारी कड़ी ही तो कहीं कमजोर नहीं है।
जब 1948 में लंदन में ओलंपिक खेल आयोजित किए गए थे, तो एक ज्योति यूनान से लंदन लाई गई थी। जहाँ लंबे समय से ओलंपिक खेल आयोजित होते रहते थे। यह ज्योति दौड़ने वालों की एक लंबी कतार के द्वारा सम्पूर्ण यूरोप में से होकर ले जाई गई थी।


तभी दुर्भाग्य से, एक घटना घटी। एक धावक जब उस मशाल को अपने हाथ में जे ला रहा था, तो यह बुझ गई। वह कितना शर्मिन्दा हुआ होगा। हममें से प्रत्येक जब स्कूल छोड़ते हैं, के पास एक मशाल (ज्योति) होती है, जिसे दूसरे तक पहुँचाना है। हमारे पास दिया हुआ ज्ञान व कौशल होता है। यदि हम इस मशाल को जलता हुआ रखना चाहें, जो हमें दी गई है, तो हमें जानना होगा कि इसकी देखभाल कैसे की जाए और हमें यह भी जानता होगा कि जब हम दौड़ें इसे कैसे पकड़ा जाए।

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