NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18

UPMSP UP Board Result 2022
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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज
1 . जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर के क्या तर्क हैं?

उत्तर:- जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर ने निम्न तर्क दिए हैं, उनके अनुसार यह विभाजन अस्वाभाविक है ।

1 . श्रम विभाजन मनुष्य की रुचि पर नहीं बल्कि उसके जन्म पर आधारित है, जो जातिवाद का पोषक है ।

2 . व्यक्ति की योग्यता और क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है ।

3 . व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसके माता-पिता के सामाजिक स्तर के आधार पर उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है । उसे पेशा चुनने की कोई आज़ादी नहीं होती ।

4 . व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने या चुनने की अनुमति नहीं होती ।

5 . संकट में भी व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं होती चाहे बेरोजगारी या भूखों मरने की नौबत ही क्यों न आ जाए ।

2 . जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तर:- जाति प्रथा किसी व्यक्ति के पेशे का दोषपूर्ण तरीके से पूर्व निर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे से बाँध देती है जो उसकी इच्छा या आवश्यकता के अनुकूल न हो । भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए । आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती रहती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन आ जाता है जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो उसके लिए भूखों मरने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है यद्यपि भारतीय समाज पेशा बदलने की अनुमति नहीं देता भले ही वह अपने पैतृक पेशे की अपेक्षा अन्य पेशे में पारंगत हो । इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक मुख्य और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है । आज भारत की स्थिति बदल रही है । सरकारी कानून, सामाजिक सुधार व विश्व स्तर पर होने वाले परिवर्तनों के कारण जाति प्रथा के बंधन समाप्त तो नहीं हुए हैं परंतु कुछ लचीले बन गए हैं । आज लोग अपनी जाति से अलग पेशों को भी अपना रहे हैं । आज लोगों को अपनी योग्यता, रूचि एवं क्षमता के अनुसार साधन और अवसर दोनों उपलब्ध हैं ।

3 . लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?

उत्तर:- लेखक के अनुसार दासता केवल कानूनी पराधीनता नहीं है बल्कि इसकी व्यापक परिभाषा तो व्यक्ति को अपना पेशा चुनने की आज़ादी न देना अथवा अपने मनोनुकूल आचरण न करने देना है । सामाजिक दासता की स्थिति में कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा तय किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है । अपनी इच्छा के विरुद्ध मजबूरी में पैतृक पेशे अपनाने पड़ते हैं ।

4 . शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?

उत्तर:- शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने के पीछे यह तर्क देते हैं कि समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए, सबको अपनी क्षमता को विकसित करने तथा रुचि के अनुरूप व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए । राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत लाने की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए । उन्हें समान अवसर दिए जाए ताकि उनमें मानसिक स्तर पर भेदभाव उत्पन्न न हो ।

5 . सही में अंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है । क्या इससे आप सहमत हैं?

उत्तर:- हम लेखक की बात से सहमत है कि उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है । किसी भी समाज में भावनात्मक समत्व तभी आ सकता है जब सभी को समान भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध होंगी । समाज में जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए समता आवश्यक तत्व है । मनुष्यों के प्रयासों का मूल्यांकन भी तभी हो सकता है जब सभी को समान अवसर मिले । उदाहरण के लिए गाँव की पाठशाला और कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों का सही मूल्यांकन हम कैसे कर सकते हैं अत: पहले जातिवाद का उन्मूलन हो, सभी को समान भौतिक सुविधाएँ मिलें और उसके पश्चात जो भी श्रेष्ठ हो वही उत्तम व्यवहार के हकदार हो । इसके लिए स्वस्थ मानसिकता और खुले विचारों का होना परम आवश्यक है ।
6 . आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं?
यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे / समझेंगी?

उत्तर:- आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों का स्पष्ट रूप से कोई उल्लेख तो नहीं किया है परंतु स्त्री-पुरुष दोनों ही किसी भी समाज के आवश्यक तत्व माने जाते हैं अतः स्त्रियों को सम्मिलित करने या न करने की बात व्यर्थ और अनुचित है । ‘भ्रातृता’ शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है भाईचारा यह बात सर्व विदित है कि भाई चारे से ही संबंध बनते हैं परंतु ‘भ्रातृता’ शब्द प्रचलन में न होने के कारण मैं भाईचारा शब्द का उपयोग करना ही उचित समझँगा ।

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