NCERT SOLUTION FOR CLASS 11 HINDI CHAPTER 2 PATHIK
1 . पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
उत्तर:- पथिक का मन बादलों पर बैठकर नीलगगन और लहरों पर बैठकर विशाल समुद्र का कोना-कोना विचरना चाहता है ।।
2 . सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर:- सूर्योदय वर्णन के लिए निम्नलिखित बिंबों का प्रयोग हुआ है
1 . समुद्र तल से उगते हुए सूर्य का अधूरा बिंब अपनी प्रातः कालीन आभा के कारण बहुत ही मनोहर दिखाई देता है और उसे देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे वह मंदिर का कँगूरा हो ।।
2 . समुद्र में फैली लाली मानो लक्ष्मी का मंदिर है ।।
3 . एक अन्य बिंब में वह सूर्य की रश्मियों से बनी चौड़ी-उजली रेखा मानो लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाई गई सुनहरी सड़क है ।।
3 . आशय स्पष्ट करें .
1 . सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है ।। तट पर खड़ा गगन – गंगा के मधुर गीत गाता है ।।
उत्तर:- ‘सस्मित-वादन’ का अर्थ है-चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए ।। प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि ने रात्रि सौंदर्य का वर्णन किया है ।। कवि को ऐसा आभास होता है कि जब रात को अँधेरा छाने के बाद आकाश में तारे सज जाते हैं, तब संसार का स्वामी मुस्कुराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश गंगा के मधुर गीत गाता है ।।
2 . कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी ।।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी ॥
उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति का आशय ‘प्रकृति सौंदर्य की प्रेम कहानी’ से है ।। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि समुद्र तट पर प्रकृति के दृश्य इतने मनोहारी होते हैं; जैसे कोई प्रेम कहानी चल रही हो और कवि इस कहानी को अपने शब्दों में व्यक्त करना चाह रहा है ।। इस तरह से कवि विश्व-भर को प्रकृति सौंदर्य का आनंद बाँटना चाहता है क्योंकि वह इससे प्रेरणा लेकर काव्य रचना करना चाहता है ।।
4 . कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है ।। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें ।।
उत्तर:- कविता में कवि ने अनेक स्थलों में प्रकृति का मानवीकरण किया है जोकि निम्नलिखित है –
1 . प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला ।।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला ।।
भाव प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बादलों को रंग-बिरंगी नर्तकी के रूप में सूर्य के सामने नृत्य करते हुए दर्शाया है ।। –
भाव- प्रस्तुत पंक्तियों में समुद्र को किसी वीर की भांति गर्जन करते हुए दर्शाया गया है ।।
3 . लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी ।। रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी ।।
भाव -प्रस्तुत पंक्तियों में सूर्य की रश्मियों से बनी चौड़ी-उजली रेखा को मानो लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाई गई सुनहरी सड़क का रूप दिया गया है ।।
4 . सस्मित वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है ।। तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है ।।
भाव-प्रस्तुत पंक्ति में ईश्वर का मानवीकरण करते हुए उसे मधुर गीत गाते हुए बताया गया है ।।
5 . जब गंभीर तम अर्ध-निशा में जग को ढक लेता है ।।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है ।।
भाव प्रस्तुत पंक्तियों में अंधेरे से सारा संसार ढँकने तथा आकाश में तारे छिटकने के द्वारा प्रकृति को एक चित्रकार के रूप में बताया – गया है ।।
6 . उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता हैं ।।
वृक्ष विविध पत्तों- पुष्पों से तन को सज लेता है ।।
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं भाव प्रस्तुत पंक्तियों में चन्द्रमा को प्रकृति प्रेम पर हँसना, वृक्षों का मानव की तरह अपने आप को सजाना तथा फूलों द्वारा सुख की – साँस लेना आदि सभी मानव प्रक्रिया को दर्शाते हैं ।।
5 . समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं ।। लगभग 70 शब्दों में लिखें ।।
उत्तर:- मेरे मन में समुद्र को देखकर कौतूहल के भाव उठते हैं ।। मैं सोचता हूँ कि इतना अथाह जल कैसे इस समुद्र में समाता होगा ? क्या इसका कोई और छोर होगा? समुद्र के नीचे की दुनिया कैसी होगी? समुद्र तल के नीचे छिपे सारे राज़ को जानना चाहूँगा ।। बरसों से अथाह जलराशि को समेटे हुए समुद्र कैसा महसूस करता होगा? कैसे उसकी लहरें बालू पर पहुँचते ही अपने अस्तित्व को ख बैठती हैं ।। दिन-प्रतिदिन, वर्ष-दर-वर्ष युगों से इसी प्रकार एक ही रूप-रंग, एक ही सुर में समुद्र के वक्षस्थल पर लहरों की यह लीला अनवरत चली आ रही है; कहीं कोई आराम और विश्राम नहीं ।। समुद्र को देखकर एक और भाव मेरे मन में उठता है कि इस अथाह जलराशि को किस तरह पीने लायक बनाया जाए और किस तरह से समुद्र के जल-जीवन को सुरक्षित रखा जाए ।।
6 . वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं ।।
उत्तर:- यह बात बिल्कुल सच है कि वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं ।। वर्तमान समय में प्रकृति गमलों, चलचित्रों, कैलेंडरों, पुरानी यादों आदि में सिमटती जा रही हैं ।।
मानव की स्वार्थवृत्ति और व्यावसायिक दृष्टिकोण ही प्रकृति विनाश की जिम्मेदार है ।। हमारे शहर कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं ।। हमारी संवेदनाएँ समाप्त हो गई हैं क्योंकि हम हर चीज़ में केवल अपनी स्वार्थपूर्ति देखते हैं तभी तो मानव ने अपने लाभ के लिए प्रकृति का अत्यधिक दोहन कर दिया है ।। हमें चाहिए कि हम प्रकृति का दोहन करने के स्थान पर उसका पोषण करें; तभी हम स्वयं के लिए सुरक्षित कल बना पाएँगे ।। प्रकृति का महत्त्व हम भुला नहीं सकते हैं ।। इसके बिना हम अपनी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।।
प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं –
1 . सड़क के दोनों तरफ जहाँ तक संभव हो; पेड़-पौधे लगाएँ जाएँ ।।
2 . विद्यालय परिसर, आवासीय कॉलोनी, औद्योगिक स्थलों आदि की खुली जगहों पर पेड़-पौधे लगवाएँ जाएँ ।।
3 . देश में वृक्षारोपण संबंधित जन-जागरण अभियान चलाए जाएँ ।।
4 . पर्यावरण को नुकसान पहुँचानेवाली वस्तुओं का उपयोग न किया जाए ।।
5 . नैसर्गिक वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया जाए ।।
6 . प्रकृति पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए ।।