उद्यमः पर संस्कृत निबंध || Essay on udyam in Sanskrit language

अहिंसा परमो धर्मः पर संस्कृत निबंध || Essay on Ahinsa Parmo Dharm in Sanskrit language

उद्यमः पर संस्कृत निबंध || Essay on udyam in Sanskrit language

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उद्यमः पर संस्कृत में निबंध [2013, 14]

[अन्य शीर्षकः-उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः, उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि (2011, 12), उद्योग:, उद्योग – महिमा (2010), परिश्रमः (2013), उद्योगः सर्वसाधनम् (2014)]

1 – अस्मिन् संसारे सर्वे जनाः सुखमिच्छन्ति, पुरुषार्थेन एव ते सुखं प्राप्नुवन्ति ।

2 – उद्यमेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति ।

3 – यदि मानव: उद्योगं न कुर्यात्, तस्य किमपि कार्यं न सिध्येत् ।

4 – सिंह: महान् बलवान् भवति, सोऽपि उद्यम विना स्वोदरमपि पूरयितुं न समर्थः ।

5 – उद्योगिनां पुरुषाणां पाश्र्वे लक्ष्मीः स्वयमायाति ।

6 – उद्योगबलेनैव पाण्डवाः नष्टमपि राज्यम् उपलब्धवन्तः

7 – कालिदासः उद्योगं कृत्वा एव कविकुलगुरुः अभवत्।

8 – लोकमान्यतिलक-गोखले-महात्मागान्धिप्रभृतिभिः देशभक्तैः पुरुषार्थेनैव भारतभूमिः पारतन्त्र्याद् विमुक्ता कृता ।

9 – शास्त्रेषु उद्यमस्य महिमा वर्णित: नास्ति, उद्यमसमो बंधु उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः च इति ।

10 – निर्बला पिपीलिका उद्योगस्य बलेन एव स्वजीवनम यापयति ।

11 – अत: वयं जीवनसौख्याय उद्योगिनः भवेमम् ।

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