Essay on Paropkar in Sanskrit language परोपकार पर संस्कृत निबंध

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परोपकार पर संस्कृत निबंध || Essay on Paropkar in Sanskrit language

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परोपकार पर निबंध [2006, 07, 08, 10, 11, 12, 13, 14, 15]

[अन्य शीर्षकः-परोपकारः पुण्याय (2007), परोपकाराय सतां विभूतयः(2010]]

1 – परेषाम् उपकारः परोपकारः कथ्यते ।

2 – स्वार्थं परित्यज्य अन्येषां कल्याणेच्छया यत् किञ्चित् क्रियते तत् परोपकारः कथ्यते ।

3 – परोपकारिणः जनाः परोपकारेणैव प्रसन्नाः भवन्ति ।

4 – परोपकारस्य भावना मनुष्येषु एव न, देवेषु, पशु-पक्षिवृक्षादिषु अपि च भवति ।

5 – प्रकृतिः अपि परोपकारस्य एव शिक्षां ददाति ।

6 – नद्यः स्वयम् एव जलं न पिबन्ति, वृक्षाः स्वयं फलानि न खादन्ति, किन्तु तासां जलं, तेषां फलानि च परोपकाराय एव भवन्ति ।

7 – परोपकारिणः हृदये सन्तोष: आनन्दः च जायते ।

8 – परोपकारेण जनः सर्वाः सम्पदः लभते ।

9 – परोपकाराय एव नरपति: शिविः कपोताये स्वमांसम् अयच्छत्, दानवीरः कर्णः कवचकुण्डलौ दत्तवान्, रन्तिदेवः ” क्षुध स्वभोजनं चाण्डालाय, प्रायच्छत् ।

10 – शास्त्रेषु परोपकारस्य महत्त्वं वर्णितम्- ‘परोपकारः पुण्याय’, ‘उपकाराज्जायते सुखम् च इति ।

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