Up board social science class 10 chapter 18

Up board social science class 10 chapter 18 केंद्र सरकार-विधायिका

Up board social science class 10 chapter 18
Up board social science class 10 chapter 18
अनुभाग- 2 : नागरिक जीवन इकाई-1 (क): केंद्र एवं राज्य सरकार  केंद्र सरकार-विधायिका
(संसद)

लघुउत्तरीय प्रश्न*
प्रश्न—– 1. लोकसभा का गठन कैसे होता है?
उ०- लोकसभा में जिस दल का बहुमत होता है उस दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। तत्पश्चात् प्रधानमंत्री अपने मंत्रीपरिषद् की सूची राष्ट्रपति के पास भेजता है । राष्ट्रपति प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को गोपनीयता तथा विश्वसनीयता की शपथ दिलाता है। राष्ट्रपति तथा मंत्रियों के हस्ताक्षर के बाद केंद्रीय मंत्रिपरिषद का गठन होता है। प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति मंत्रियों से उनके विभागों का वितरण करता है। तब लोकसभा में किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होता तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करके प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों के लिए संसद के किसी भी सदन में होना आवश्यक है। यदि कोई मंत्री किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे मंत्री बनने के बाद 6 महीने के अंदर किसी न किसी सदन का सदस्य बन जाना चाहिए अन्यथा उसे मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा।
प्रश्न—– 2. राज्यसभा की रचना (गठन) का वर्णन कीजिए।
उ०- मंत्रिपरिषद का गठन- राज्यसभा के चुनाव के बाद जिस दल का राज्यसभा में बहुमत होता है उस दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री नियुक्त करता है। मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनके कार्यों का विभाजन करता है। यदि राज्यसभा में किसी भी एक दल का बहुमत नहीं है तो राज्यपाल अपने विवेक से उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जो मंत्रीपरिषद का संचालन कर सकें राज्य के मंत्रीपरिषद में तीन स्तर के मंत्री होते हैं- कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री और उपमंत्री। संविधान के अंतर्गत मंत्रियों की संख्या निश्चित नहीं की गई है।
मंत्रियों की योग्यताएँ- मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को विधान मंडन के किसी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि कोई मंत्री किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे मंत्री बनने के 6 महीने के अन्दर किसी न किसी सदन का सदस्य बन जाना चाहिए अन्यथा उसे मंत्री-पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा।
प्रश्न—– 3. लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उ०- लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर—————

लोक सभा राज्य सभा
1. लोकसभा संसद का लोकप्रिय और निचला सदन है।1. राज्यसभा संसद का उच्च सदन है।
२. लोकसभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की आयु 25 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।२. राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की आयु वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
3. लोकसभा अस्थायी सदन है।3. राज्यसभा स्थायी सदन है।
4. लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।4. राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
5. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।5. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है।
लोक सभा तथा राज्य सभा में अंतर

राज्यसभा का विधायी शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उ०- राज्यसभा की विधायी शक्तियाँ एवं कार्य निम्नलिखित हैं
(i) वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य सभी साधारण विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
(ii) वित्त विधेयक लोकसभा में पारित होने पर राज्यसभा उसे पारित करती है।
(iii) साधारण विधेयक राज्यसभा में पारित हुए बिना पारित नहीं समझा जाता।
(iv) राज्यसभा साधारण विधेयक को 6 माह तथा वित्त विधेयक को 14 दिन ही रोक सकती है।
(v) किसी विधेयक पर विवाद होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उसे निपटाया जाता है।
(vi) राज्यसभा राज्य सूची से संबंधित किसी विषय को दो-तिहाई मत से राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर, संसद को एक वर्ष
तक उस पर कानून बनाने का अधिकार दिला सकती है। राज्यसभा उसे प्रतिवर्ष एक वर्ष के लिए आगे बढ़ा सकती है।
प्रश्न—-5. लोकसभा के सभापति के प्रमुख कार्य तथा शक्तियों को स्पष्ट कीजिए।
उ०- लोकसभा के सभापति (स्पीकर ) के प्रमुख कार्य तथा शक्तियाँ निम्नलिखित हैं
(i) लोकसभा का सभापति लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
(ii) सदन की कार्यवाही को शांतिपूर्वक एवं सुचारू रूप से चलाने का दायित्य उसी का होता है।
(iii) वह लोकसभा के नेता से परामर्श करके सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है।
(iv) किसी विषय अथवा विधेयक पर विवाद उत्पन्न हो जाने की दशा में वह मतदान कराकर, मतों की गणना करके
परिणाम घोषित करता है।
(v) दोनों पक्षों के मत बराबर रहने की दशा में, वह किसी एक पक्ष को अपना निर्णायक मत देकर विवाद का निबटारा करता है।
(vi) वह सदन की विभिन्न समितियाँ बनाता है तथा उनके कार्यों का निरीक्षण करता है।
(vii) वह लोकसभा के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है।
(viii) स्पीकर प्रत्येक सदस्य को सदन में बोलने की अनुमति देता है।
(ix) स्पीकर सदन की कार्यवाहियों के अभिलेखों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करता है।
(x) वह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
(xi) वह दोनों सदनों में पारित विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भिजवाता है।
(xii) स्पीकर राष्ट्रपति और लोकसभा के मध्य एक सेतु का काम करता है।

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प्रश्न—-6 लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए आवश्यक योग्यताएँ क्या हैं?
उ०- लोकसभा का सदस्य बनने के लिए प्रत्याशी में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए
(i) वह भारत का नागारिक हो।
(ii) वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
(iii) वह केंद्र सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर न हो।
(iv) वह संसद द्वारा निर्धारित सभी योग्यताएँ रखता हो।
(v) वह पागल या दिवालिया न हो।
(vi) उसे किसी न्यायालय द्वारा सजा नहीं दी गई हो।

प्रश्न—-7 धन (वित्त) विधेयक क्या होता है? धन विधेयक और साधारण विधेयक के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उ०- वित्त विधेयक- जिस विधेयक का संबंध धन से होता है, वह वित्त विधेयक कहा जाता है। वित्त विधेयक को प्रस्तुत करने
से पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी पड़ती है। वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं। धन या वित्त विधेयक लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित कराकर ही प्रस्तुत किया जाता है। साधारण विधेयक तथा धन विधेयक में अंतर—-

साधारण विधेयकधन विधेयक
साधारण विधेयक का संबंध धन से नहीं होता।. वित्त विधेयक धन से संबंधित होता है।
साधारण विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति से अनुमति नहीं ली जाती है वित्त विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति से अनुमति अनुमति नहीं ली जाती।
साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा किया जा सकता है।वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा किया जा सकता है।
साधारण विधेयक को प्रस्तुत करने से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष से प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होती वित्त विधेयक को प्रस्तुत करने से पूर्व उसे लोकसभा _ अध्यक्ष से प्रमाणित कराने की आवश्यकता होती है
साधारण विधेयक मंत्री या अन्य कोई भी सांसद प्रस्तुत कर सकता है वित्त विधेयक मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
साधारण साधारण विधेयक ओर वित्त विधेयक मे अंतर

प्रश्न—8 संसद केंद्रीय मंत्रिमंडल पर किस प्रकार नियंत्रण रखती है? अथवा लोकसभा किन-किन तरीकों से मंत्रिपरिषद् पर
नियंत्रण करती है?
उ०- लोकसभा मंत्रिपरिषद ( केंद्रीय मंत्रिमंडल) पर निम्न प्रकार से नियंत्रण करती है
(i) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के सदस्यों से पूरक प्रश्न पूछकर, उस पर नियत्रंण बनाए रखते हैं ।
(ii) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के कार्यों की आलोचना करके, उस पर नियंत्रण बनाते हैं।
(iii) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध स्थगन प्रस्ताव तथा निंदा प्रस्ताव रखकर, नियंत्रण बनाए रखते हैं।
(iv) लोकसभा मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके, उसे पदच्युत कर सकती है।

प्रश्न—9 राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन सी योग्यताएँ होनी चाहिए?
उ०- राज्यसभा के प्रत्याशी में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए
(i) वह भारत का नागरिक हो
। (ii) वह 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
(iii) वह केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।
(iv) वह पागल या दिवालिया न हो।
(v) उसे न्यायालय द्वारा दंडित न किया गया हो।
(vi) वह संसद द्वारा निर्धारित योग्यताएँ रखता हो।

प्रश्न—10 लोकसभा और राज्यसभा में कौन-सा सदन अधिक शक्तिशाली होता है?
उ०- लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली होता है। इसके लिए निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं
(i) वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। राज्यसभा उन्हें विचार के लिए मात्र ___14 दिन तक ही रोक सकती है। इस समय सीमा के बाद उसे पारित मान लिया जाता है।
(ii) यदि राज्यसभा वित्त विधेयक को रद्द कर देती है अथवा उसमें संशोधन करती है, तब भी लोकसभा स्वतंत्र होती है कि
वह उसके निर्णय को स्वीकार करे अथवा नहीं।
(i) राज्यसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के सदस्यों से प्रश्न पूछकर उनकी नीतियों की आलोचना कर सकते हैं।
(ii) राज्यसभा मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर, उसे अपदस्थ नहीं कर सकती। डॉ० एम. पी. शर्मा के शब्दों
में, “लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा कानून बनाने के क्षेत्र में अधिक शक्तिशाली है और वित्त की एकमात्र स्वामी है।”

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न —- 1. संसद के दो सदन कौन-कौन से हैं? लोकसभा के गठन की प्रक्रिया समझाइए, इसके कार्यों का उल्लेख भी कीजिए।

उ०- भारतीय संसद में दो सदन हैं- उच्च सदन तथा निम्न सदन। उच्च सदन को राज्य सभा तथा निम्न सदन को लोकसभा कहते हैं। लोकसभा पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि राज्यसभा राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों का। लोकसभा की रचना- लोकसभा संसद का निम्न सदन है। इसका गठन निम्न प्रकार होता है
सदस्यों की संख्या तथा निर्वाचन- लोकसभा में अधिक से अधिक 552 सदस्य हो सकते हैं। इनमें 530 सदस्य राज्यों के तथा 20 सदस्य केंद्रशासित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। इनके अतिरिक्त, लोकसभा में एंग्लो-इंडियन वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने पर राष्ट्रपति इस वर्ग के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। लोकसभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित है। निर्वाचित होने के पश्चात् सदस्यों को राष्ट्रपति के सम्मुख अपने पद की गोपनीयता की शपथ लेनी पड़ती है।
कार्यकाल- लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। किन्तु विशेष परिस्थितियों में इसका समय एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा को 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है। लोकसभा की 6 महीने बाद बैठक अवश्य होनी चाहिए। लोकसभा के वर्ष में सामान्यतः तीन अधिवेशन होते हैं। पदाधिकारी- लोकसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष (Speaker) और एक उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) चुन लेते हैं। अध्यक्ष सदन की बैठक में अध्यक्षता करता है, सदन की कार्यवाही का संचालन करता है, अधिवेशनों में अनुशासन बनाए रखता है, मत गिनता है तथा आवश्यकता पड़ने पर निर्णायक मत भी देता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में इन्हीं कार्यों को उपाध्यक्ष करता है। इन्हें अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके पदच्युत किया जा सकता है। लोकसभा के अधिकार और कार्य- लोकसभा को संविधान द्वारा निम्नलिखित अधिकार (शक्तियाँ) तथा कार्य सौंपे गए हैं(i) विधायी शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा की विधायी शक्तियाँ निम्नलिखित हैं——
(क) लोकसभा में साधारण विधेयक प्रस्तुत कर उन्हें पारित करवाना।
(ख) वित्तीय विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं, अतः उन्हें प्रस्तुत करके पारित करवाना। (ग) लोकसभा तथा राज्यसभा में किसी विधेयक को लेकर मतभेद हो जाने पर परस्पर विचार-विमर्श करके अथवा संयुक्त बैठक बुलवाकर गतिरोध दूर करवाना। (घ) लोकसभा साधारण विधेयकों और वित्तीय विधेयकों को राज्यसभा से भी पारित हो जाने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजती है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने पर ही, वह कानून का रूप ले पाता है।
(ii) कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ एवं कार्य- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद् तब तक ही बनी रह सकती है, जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त रहता है। लोकसभा कार्यपालिका संबंधी अपनी शक्तियों को निम्नलिखित कार्यों के माध्यम से लागू करती हैं
(क) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के सदस्यों से पूरक प्रश्न पूछकर, उस पर नियत्रंण बनाए रखते हैं।
(ख) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के कार्यों की आलोचना करके, उस पर नियंत्रण बनाते हैं।
(ग) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध स्थगन प्रस्ताव तथा निंदा प्रस्ताव रखकर, नियंत्रण बनाए रखते हैं।
(घ) लोकसभा मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके, उसे पदच्युत कर सकती है। मंत्रिपरिषद् के एक मंत्री की पराजय पूरे मंत्रिपरिषद् की पराजय मानी जाती है।
(ii) वित्तीय, शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अपने निम्नलिखित कार्यों से वित्तीय शक्तियों का उपयोग करती है
(क) वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
(ख) वित्त विधेयक को राज्यसभा मात्र 14 दिन ही रोक सकती है। उसकी सिफारिशों को मानना या न मानना
लोकसभा पर निर्भर होता है।
(ग) दोनों सदनों से पारित विधेयक को लोकसभा राष्ट्रपति के पास उसकी स्वीकृति के लिए भेजती है।
(घ) राष्ट्र का वार्षिक बजट लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है।
(ङ) राष्ट्र के धन पर संसद के माध्यम से लोकसभा ही अपना नियत्रंण बनाए रखती है। वित्तीय मामलों में लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली होती है ।
(iv) निर्वाचन संबंधी शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अपनी निम्नलिखित शक्तियों से निर्वाचन संबंधी कार्यों का संपादन
करती है
(क) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव।
(ख) राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेना।
(v) संवैधानिक शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के माध्यम से
करती है(क) लोकसभा संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव पारित करती है।
(ख) वह पारित प्रस्ताव को राज्यसभा के पास भेजती है।
(ग) दोनों सदनों में बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद लोकसभा संविधान में संशोधन कर देती है ।
(vi) न्यायिक शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अपनी न्यायिक शक्तियों का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के माध्यम से करती है
(क) लोकसभा राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाकर, उसे दोनों सदनों से पारित कराती है।
(ख) लोकसभा उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के दुराचरण का प्रस्ताव लाकर दोनों सदनों से पारित
करवा सकती है।
(ग) राज्यसभा यदि उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पारित करती है, तब उसके लिए लोकसभा का अनुमोदन भी
आवश्यक हो जाता है।
(घ) राष्ट्रपति द्वारा आपातकालीन घोषणा के लिए निश्चित अवधि में लोकसभा की स्वीकृति भी आवश्यक होती है।
(vii) विविध शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अपनी निम्नलिखित विविध शक्तियों एवं कार्यों का भी संपादन करती है(क) लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रों में परिवर्तन करती है।
(ख) वह राज्यसभा के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को लागू कराने के लिए कानून बनाती है।
(ग) वह राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को स्वीकृत या अस्वीकृत करती है।
(घ) वह राज्यसभा के साथ मिलकर नए राज्यों के निर्माण तथा राज्यों के क्षेत्रों और सीमाओं में भी परिवर्तन करती है।
(ङ) राज्यसभा के साथ मिलकर वह दो या दो से अधिक राज्यों के लिए ‘संयुक्त लोक सेवा आयोग’ का गठन करती है। लोकसभा संसद का लोकप्रिय, प्रभावी और शक्ति संपन्न सदन है। लोकसभा के महत्व को प्रो० एम. पी. शर्मा ने इन
शब्दों में व्यक्त किया है, “यदि संसद देश का सर्वोच्च अंग है, तो लोकसभा संसद का सर्वोच्च अंग है।”

Up board class 10 social science chapter 15 भारत छोड़ो आंदोलन पाठ का सम्पूर्ण हल

प्रश्न —–2 राज्यसभा की रचना तथा शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उ०- राज्यसभा की रचना (संगठन)- राज्यसभा संसद का एक स्थायी तथा द्वितीय सदन होता है, जिसे उच्च सदन कहा जाता है। इसका कभी विघटन नहीं होता। संविधान के अनुच्छेद 80 (1) के अनुसार इसमें अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं। इनमें से 238 सदस्य राज्यों तथा केंद्रशासित क्षेत्रों से निर्वाचित होकर आते हैं, जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। ये 12 सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनका साहित्य, विज्ञान, कला अथवा सामाजिक क्षेत्रों मे विशेष योगदान होता है।
राज्यसभा सदस्यों का चुनाव– प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य अपने राज्य के लिए निर्धारित सदस्यों का चुनाव करते हैं। यह चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा संपन्न होता है। संघ शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का चुनाव संसद द्वारा निर्धारित पद्धति से होता है। राज्यसभा की बैठकें राष्ट्रपति बुलाता है, जबकि उनकी अध्यक्षता उपराष्ट्रपति करता है। राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है, उसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष बाद अवकाश ग्रहण कर लेते हैं तथा उनके स्थान पर नए सदस्य चुन लिए जाते हैं। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी एक को 6 वर्ष के लिए उपसभापति चुन लेती है। सभापति की अनुपस्थिति में वही उसके कार्यों का निर्वहन करता है। राज्यसभा के अधिकार एवं कार्य- राज्यसभा अपने अधिकारों (शक्तियों) का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के माध्यम से संपन्न करती है

(i) विधायी शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा की विधायी शक्तियाँ एवं कार्य निम्नलिखित हैं
(क) वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य सभी साधारण विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। (ख) वित्त विधेयक लोकसभा में पारित होने पर राज्यसभा उसे पारित करती है। (ग) साधारण विधेयक राज्यसभा में पारित हुए बिना पारित नहीं समझा जाता। (घ) राज्यसभा साधारण विधेयक को 6 माह तथा वित्त विधेयक को 14 दिन ही रोक सकती है।
(ङ) किसी विधेयक पर विवाद होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उसे निपटाया जाता है। (च) राज्यसभा राज्य सूची से संबंधित किसी विषय को दो-तिहाई मत से राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर, संसद को
एक वर्ष तक उस पर कानून बनाने का अधिकार दिला सकती है। राज्यसभा उसे प्रतिवर्ष एक वर्ष के लिए आगे
बढ़ा सकती है।
(ii) कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा की कार्यपालिका संबधी शक्तियाँ एवं कार्य निम्नलिखित हैं
(क) राज्यसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के सदस्य बन सकते हैं।
(ख) राज्यसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं।
(ग) राज्यसभा के सदस्य बजट पर विचार करते हैं तथा काम रोको’ प्रस्ताव पारित कर सकते हैं।
(घ) राज्यसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् की कड़ी आलोचना करके उसे प्रभावित कर सकते हैं, परंतु उसके विरुद्ध
अविश्वास प्रस्ताव पारित कर मंत्रियों को उनके पद से नहीं हटा सकते।
(iii) वित्तीय शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा अपनी वित्तीय शक्तियों को निम्नलिखित कार्यों द्वारा पूरा करती है
(क) वित्त विधेयक को राज्यसभा मात्र 14 दिन ही रोक सकती है। वित्त विधेयक में किए गए, उसके परिवर्तनों को लोकसभा मानने के लिए बाध्य नहीं है।
(ख) राज्यसभा बजट पर विचार कर उसे पारित करती है।
(iv) संवैधानिक शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा अपनी संवैधानिक शक्तियों को निम्नलिखित कार्यों के माध्यम से पूरा करती है
(क) संविधान में संशोधन के लिए विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(ख) साधारण विधेयक भी राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(ग) राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा को राज्यसभा द्वारा भी स्वीकृत करना आवश्यक है।
(v) न्यायिक शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा अपनी न्यायिक शक्तियों का अनुपालन निम्नलिखित कार्यों द्वारा करती है
(क) राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर महाभियोग प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को अपदस्थ कर सकती है।
(ख) उपराष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रारंभ करने का अधिकार राज्यसभा को ही है।
(ग) राज्यसभा उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को लोकसभा के सहयोग से उसके पद से हटा
सकती है।
(घ) राज्यसभा मुख्य चुनाव आयुक्त, महान्यायवादी तथा नियंत्रक महालेखा परीक्षक को हटवाने के लिए लोकसभा का सहयोग करती है।
(ङ) राज्यसभा अपने सदस्यों अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा विशेषाधिकार का उल्लंघन होने पर, उसे दंडित कर सकती है।
(vi) निर्वाचन संबंधी शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा अपनी निर्वाचन संबंधी शक्तियों का उपयोग अपने निम्नलिखित कार्यों के द्वारा करती है
(क) राज्यसभा के सदस्य राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं।
(ख) राज्यसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से किसी एक को उपसभापति चुनते हैं।
(vii) विशिष्ट शक्तियाँ एवं कार्य- राज्यसभा अपनी विशिष्ट शक्तियों का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों द्वारा पूरा करती है
(क) राज्यसभा राज्य सूची में दिए गए किसी भी विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है।
(ख) राज्यसभा प्रस्ताव पारित करके अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएँ प्रारंभ करने के लिए केंद्र सरकार को अधिकृत कर सकती है।

Up board class 10 social science chapter 16 क्रांतिकारियों का योगदान

संसद के गठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उ०- भारतीय संसद का गठन- केंद्रीय व्यवस्थापिका को ही संसद कहते हैं। भारतीय संसद की रचना लोकसभा और
राज्यसभा दोनों सदनों से मिलकर होती है। इन दोनों सदनों को भारतीय संसद के दो हाथ कहते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, “भारतीय संघ की एक संसद होगी जिसका निर्माण राष्ट्रपति तथा दोनों सदनों से मिलकर होगा, जिनके नाम लोकसभा एवं राज्यसभा होंगे।” इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा को संयुक्त रूप से भारतीय संसद कहा जाता है। संसद के कार्य और अधिकार- संसद भारत की संपूर्ण प्रभुतासंपन्न संघीय व्यवस्थापिका है। भारतीय संविधान ने इसे शासन के सभी अंगों से अधिक और व्यापक शक्तियाँ प्रदान की हैं। भारतीय संसद के कार्य और अधिकारों को अग्रलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है

(i) कानून निर्माण संबंधी कार्य और अधिकार- संसद के कानून निर्माण संबंधी कार्य और अधिकार निम्नलिखित हैं
(क) भारतीय संसद संघ सूची के सभी विषयों पर तथा समवर्ती सूची के कुछ विषयों पर कानून बनाने का अधिकार रखने वाली सर्वोच्च संस्था है।
(ख) वह कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
(ग) कुछ ऐसे विषयों का, जिनका उल्लेख तीनों सूचियों में से किसी में भी नहीं है, उन पर केवल संसद ही कानून बना सकती है।
(घ) संसद पुराने कानूनों को रद्द भी कर सकती है।
(ii) प्रशासन संबंधी कार्य और अधिकार- संसद प्रशासन संबंधी कार्यों और अधिकारों को निम्नवत् संपन्न करती है
(क) भारतीय संसद का मुख्य आधिकारिक कार्य मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण बनाए रखना है।
(ख) मंत्रिपरिषद् का सामूहिक उत्तरदायित्व लोकसभा के प्रति होता है ।
(ग) संसद मंत्रियों से प्रश्न पूछकर, स्थगन प्रस्ताव लाकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव रखकर, काम रोको प्रस्ताव पारित
करके, विधेयकों को अस्वीकृत करके, बजट में कटौती करके तथा उनके कार्यों की जाँच करके, मंत्रिपरिषद्
पर अपना नियंत्रण बनाए रखती है।
(घ) लोकसभा मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उसे भंग करा सकती है) वित्त संबंधी कार्य और अधिकार- संसद केंद्र सरकार के आय-व्यय को निम्नलिखित कार्यों और अधिकारों द्वारा निश्चित और नियंत्रित करती है
(क) संसद सरकार के वित्त पर पूरा नियंत्रण रखती है।
(ख) संसद प्रत्येक वर्ष सरकार का बजट पारित करती है।
(ग) प्राकृतिक आपदाओं और युद्ध के लिए पूरक बजट संसद ही पारित करती है।
(घ) केंद्रीय कोष से व्यय संसद की स्वीकृति से ही किया जा सकता है।
(ङ) सरकार संसद से स्वीकृति लेकर ही कोई ऋण ले सकती है।
(iv) न्याय संबंधी कार्य और अधिकार- संसद को न्याय के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करने का अधिकार प्राप्त है
(क) संसद राष्ट्रपति पर महाभियोग पारित करके उसे पद से हटा सकती है।
(ख) संसद उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों एवं नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि के विरुद्ध
दुराचरण के आरोप के द्वारा उन्हें राष्ट्रपति से अपदस्थ करा सकती है।
(v) संविधान संशोधन संबंधी कार्य और अधिकार- भारतीय संसद संविधान में संशोधन संबंधी कार्य कर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकती है

(क) संसद संविधान के कुछ अनुच्छेदों में साधारण बहुमत से संशोधन कर सकती है।
(ख) संसद को संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
(ग) संसद संविधान के कुछ अनुच्छेदों में राज्य विधानमंडलों के सहयोग से संशोधन करने का अधिकार रखती है।
(vi) निर्वाचन संबंधी कार्य और अधिकार- संसद सदस्य राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं।

संसद मंत्रिपरिषद पर किस प्रकार नियंत्रण करती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उ०- संसद का मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण- संसद निम्नलिखित प्रकार से मंत्रिपरिषद पर अपना नियंत्रण करती है
(i) संसद के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछते हैं जिनका उत्तर देना मंत्रियों के लिए आवश्यक है। यदि किसी
प्रश्न का उत्तर देने में मंत्री असमर्थ हैं तो उनके स्थान पर प्रधानमंत्री उत्तर दे सकता है।
(ii) लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत कर उसको अपरस्थ कराने का प्रयास कर सकते हैं। (iii) संसद के सदस्य मंत्रिपरिषद् के विरूद्ध काम रोको प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव तथा स्थगन प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। (iv) संसद बजट के माध्यम से भी मंत्रिपरिषद् के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया जाता है।
(v) संसद की विभिन्न समितियाँ भी मंत्रिपरिषद् पर अपना प्रभावी नियन्त्रण रखती है। इनमें अनुमान समिति, लोक लेखा
समिति तथा आश्वासन लेखा समिति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।

लोकसभा के अध्यक्ष का निर्वाचन किसके द्वारा होता है? लोकसभा की बैठकों के सफल संचालन हेतु वह क्या कार्य करता है?
उ०- लोकसभा के अध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा सदस्यों में से लोकसभा सदस्यों द्वारा 5 वर्ष के लिए होता है।
लोकसभा की बैठकों के सफल संचालन हेतु लोकसभा अध्यक्ष निम्नलिखित कार्य करता है
(i) वह लोकसभा की बैठकों का सभापतित्व करता है तथा सदन की समस्त कार्यवाहियों का संचालन करता है।
(ii) सदन की कार्यवाही शांतिपूर्वक एवं सुव्यवस्थित रूप से चलाने की व्यवस्था करता है।
(iii) वह लोकसभा के नेता से परामर्श करके सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है।
(iv) किसी विषय अथवा विधेयक पर विवाद उत्पन्न हो जाने की दशा में वह मतदान कराकर, मतों की गणना करके
परिणाम घोषित करता है।
(v) दोनों पक्षों के मत बराबर रहने की दशा में, वह किसी एक पक्ष को अपना निर्णायक मत देकर विवाद का निबटारा करता है।
(vi) वह सदन की विभिन्न समितियाँ बनाता है तथा उनके कार्यों का निरीक्षण करता है।
(vii) वह लोकसभा के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है।
(viii) स्पीकर प्रत्येक सदस्य को सदन में बोलने की अनुमति देता है।
(ix) स्पीकर सदन की कार्यवाहियों के अभिलेखों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करता है।
(x) वह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
(xi) वह दोनों सदनों में पारित विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भिजवाता है।
(xii) स्पीकर राष्ट्रपति और लोकसभा के मध्य एक सेतु का काम करता है।
(xiii) वह प्रश्नों को स्वाकार करता है तथा नियम के विरूद्ध होने पर अस्वीकार भी का सकता है।
(xiv) यदि कोई सदस्य सदन में अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो अध्यक्ष उसे चेतावनी दे सकता है। यदि कोई सदस्य उसकी
आज्ञा का उल्लंघन करता है तो वह उसे सदन से बाहर निकलवा सकता है।

भारतीय संसद में विधि निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उ०- संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया- संसद भारतीय संघ के लिए विधि (कानून) निर्माण करने वाली सर्वोच्च संस्था है।
संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया विधेयक के प्रस्तुत करने से प्रारंभ होती है, ये विधेयक दो प्रकार के होते हैं
(i) साधारण विधेयक- विधि निर्माण के लिए सदन में प्रस्तुत प्रस्ताव का प्रारूप जिसका संबंध धन से नहीं होता, सामान्य या साधारण विधेयक कहलाता है। इसे मंत्री अथवा कोई भी सांसद प्रस्तुत कर सकता है। सामान्य विधेयक सामान्य जनता से संबंधित होने पर वह सार्वजनिक विधेयक तथा किसी क्षेत्र अथवा संस्था विशेष से संबंधित होने पर वह असार्वजनिक विधेयक कहलाता है। साधारण विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(ii) वित्त विधेयक- जिस विधेयक का संबंध धन से होता है, वह वित्त विधेयक कहा जाता है। वित्त विधेयक को प्रस्तुत
करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी पड़ती है। वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं। धन या
वित्त विधेयक लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित कराकर ही प्रस्तुत किया जाता है। साधारण विधेयक पारित होने की प्रक्रिया- संसद में साधारण विधेयक निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से पारित किए जाते हैं
(i) प्रथम वाचन– विधेयक प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति विधेयक के उद्देश्य स्पष्ट करता है तथा उसके पारित करने की
उपादेयता भी बताता है। सदन के सदस्य विधेयक की मुख्य बातों पर वाद-विवाद करते हैं, परंतु उसमें संशोधन नहीं किए जाते। इसे प्रथम वाचन कहा जाता है। द्वितीय वाचन- निर्धारित तिथि पर विधेयक प्रस्तुतकर्ता यह निर्णय करता है, कि विधेयक पर शीघ्र विचार किया जाए। इस समय सदन के सामने दो विकल्प रहते हैं
(क) विधेयक प्रवर समिति को सौंपा जाए या संयुक्त प्रवर समिति को।
(ख) अथवा जनमत जानने के लिए जनता में प्रसारित कर दिया जाए। द्वितीय वाचन में विधेयक के मूल सिद्धांतों के साथ-साथ प्रत्येक अनुच्छेद पर गहराई से विचार-विमर्श किया जाता है। प्रवर समिति गहन अध्ययन के बाद उसमें संशोधन करके, अपनी रिपोर्ट के साथ सदन को वापिस कर देती है। इन संशोधनों पर गहनता के साथ विचार-विमर्श करके सदन द्वितीय वाचन की प्रक्रिया समाप्त करता है।
(iii) तृतीय वाचन– तृतीय वाचन की स्थिति में विधेयक को प्रस्तुत करने वाला यह प्रस्ताव रखता है, कि विधेयक को पारित कर दिया जाए। इस स्थिति में विधेयक के प्रत्येक खंड पर न तो कोई विचार-विमर्श किया जाता है और न कोई महत्वपूर्ण संशोधन ही किया जाता है। मात्र विधेयक की शब्दावली में सुधार किया जाता है। सामान्य वाद-विवाद के बाद विधेयक पारित हो जाता है। द्वितीय सदन में विधेयक पारित होना- लोकसभा से पारित होने के बाद, विधेयक को पारित होने के लिए राज्यसभा के पास भेजा जाता है। राज्यसभा के सामने निम्नलिखित तीन विकल्प होते हैं
(क) विधेयक को यथावत् पारित कर दिया जाए। (ख) विधेयक में आवश्यक संशोधन किए जाएँ। (ग) विधेयक को अस्वीकार कर दिया जाए। राज्यसभा द्वारा विधेयक में संशोधन कर देने पर उसे पुनः लोकसभा के पास भेजा जाता है। लोकसभा संशोधन को स्वीकार कर ले, तो उसे स्वीकृत मानकर राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिए भेज दिया जाता है। विधेयक पर दोनों सदनों में विवाद होने पर राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है, जहाँ विवाद का निराकरण
करके विधेयक पारित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति- दोनों सदनों से पारित विधेयक को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। यदि राष्ट्रपति उसे अपनी स्वीकृति दे देता है, तब विधेयक विधि बन जाता है। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति न दिए जाने पर, दोनों सदन पुनः उस पर विचार करते हैं, उसमें सुधार करके अथवा ज्यों का त्यों उसे पारित कर पुनः राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, इस बार राष्ट्रपति को उस पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है। वित्त विधेयक पारित होने की प्रक्रिया- वित्त (धन) विधेयक पारित होने की प्रक्रिया निम्नलिखित है
(i) वित्त विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। लोकसभा उस पर भली प्रकार विचार-विमर्श करके उसे पारित कर
देती है।
(ii) लोकसभा अपनी सिफारिशों के साथ वित्त विधेयक को पारित करके राज्यसभा के पास भेज देती है। राज्यसभा के
साथ यह प्रतिबंध है, कि उसे 14 दिन की अवधि में ही अपनी सिफारिशों के साथ विधेयक लोकसभा को लौटाना होगा, अन्यथा समय सीमा के बाद उसे पारित मान लिया जाता है। लोकसभा राज्यसभा की सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। वित्त विधेयक के दोनों सदनों से पारित हो जाने के बाद उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति उसे अनुमति प्रदान करने के लिए बाध्य है, क्योंकि उसे वह पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता और न ऐसे विधेयकों को सदनों की संयुक्त समिति को ही सौंपा जा सकता है।

भारतीय संसद के विभिन्न अंग क्या हैं? इसके दोनों सदनो में से कौन-सा सदन अधिक शक्तिशाली है और क्यों?
उ०- भारतीय संसद के तीन अंग है- राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा। भारतीय संसद में दो सदन है- उच्च सदन और निम्न सदन। उच्च सदन को राज्य सभा तथा निम्न सदन को लोकसभा कहते हैं। भारतीय संसद के दोनों सदनों में से निम्न सदन (लोकसभा) अधिक शक्तिशाली है।
लोकसभा के राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली होने के पक्ष में तर्क- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-10 के
उत्तर का अवलोकन कीजिए।

लोकसभा के सदस्यों की योग्यताओं का उल्लेख कीजिए तथा उनका नियमित कार्यकाल बताइए।

उ०- लोकसभा के सदस्यों की योग्यताएँ- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-6 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।
लोकसभा सदस्यों का कार्यकाल- लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। लोकसभा को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति 5 वर्ष से पूर्व भी भंग कर सकता है। संकटकालीन घोषणा की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष और बढ़ाया जा सकता है। घोषणा की समाप्ति के बाद 6 माह के अंदर नई लोकसभा का चुनाव होना आवश्यक होता है। अतः परिस्थितियों के अनुसार इसकी कार्याविधि कम अथवा अधिक हो सकती है। सरकार के अल्प मत में आ जाने पर भी लोकसभा भंग होने की आशंका रहती है।

राज्यसभा के अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है? उसकी शक्तियाँ बताइए।
उ०- राज्यसभा का अध्यक्ष- भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति (अध्यक्ष) होता है।
राज्यसभा के अध्यक्ष ( उपराष्ट्रपति) का चुनाव- राज्यसभा के अध्यक्ष अर्थात् उपराष्ट्रपति का चुनाव ऐसे निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं अर्थात् उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रणीय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है। राज्यसभा अध्यक्ष (उपराष्ट्रपति) की शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उपराष्ट्रपति निम्नलिखित कार्यों का संपादन करता है
(i) उपराष्ट्रपति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
(ii) राज्यसभा की कार्यवाही को शांतिपूर्वक एवं सुचारू रूप से चलाने का दायित्व उसी का होता है।
(iii) राज्यसभा के नेता से परामर्श करके सदन एवं कार्यक्रम निश्चित करता है।
iv) किसी विषय अथवा विधेयक पर विवाद उत्पन्न हो जाने की दशा में मतदान कराकर, मतों की गणना करके परिणाम
घोषित करता है। (v) दोनों पक्षों के मत बराबर होने की दशा में अपना निर्णायक मत देकर विवाद का निपटारा करता है।
(vi) वह सदन की विभिन्न समितियाँ बनाता है तथा उनके कार्यों का निरीक्षण करता है।
(vii) वह राज्यसभा के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
(viii) सदन द्वारा स्वीकृत विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है।
(ix) राज्यसभा के संभाषण उसी को संबोधित करके दिए जाते हैं।
(x) वह आवश्यक होने पर सदन में दर्शकों तथा प्रेस-प्रतिनिधियों के राज्यसभा में प्रवेश पर रोक लगा सकता है।
(xi) वह प्रश्नों को स्वीकार करता है तथा नियम विरूद्ध होने पर अस्वीकार करता है।
(xii) उसकी आज्ञा प्राप्त होने पर ही कोई सदस्य राज्यसभा में भाषण दे सकता है।

भारतीय संसद के दोनों सदनों की निर्वाचन प्रणाली मे क्या अंतर है? लोकसभा की विधायी शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उ०- भारतीय संसद के दोनों सदनों की निर्वाचन प्रक्रिया में अंतर- लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन गुप्त मतदान प्रणाली
में वयस्क मताधिकार द्वारा किया जाता है। निर्वाचन के लिए संपूर्ण देश को अनेक निर्वाचक क्षेत्रों में विभक्त कर दिया जाता है। इसके बाद प्रत्येक क्षेत्र में मतदाताओं की सूची तैयार की जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में जिस उम्मीदवार को सर्वाधिक मत मिलते हैं, वह लोकसभा का सदस्य बन जाता है। लोकसभा के सदस्य का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, जबकि राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि द्वारा किया जाता है। इनका चुनाव प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है। इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद अवकाश ग्रहण करते रहते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। विधायी शक्तियाँ एवं कार्य- लोकसभा की विधायी शक्तियाँ निम्नलिखित हैं
(i) लोकसभा में साधारण विधेयक प्रस्तुत कर उन्हें पारित करवाना।
(ii) वित्तीय विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं, अत: उन्हें प्रस्तुत करके पारित करवाना।
(iii) लोकसभा तथा राज्यसभा में किसी विधेयक को लेकर मतभेद हो जाने पर परस्पर विचार-विमर्श करके अथवा संयुक्त
बैठक बुलवाकर गतिरोध दूर करवाना।
(iv) लोकसभा साधारण विधेयकों और वित्तीय विधेयकों को राज्यसभा से भी पारित हो जाने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति
के लिए भेजती है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने पर ही, वह कानून का रूप ले पाता है।

लोकसभा तथा राज्यसभा के परस्पर संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उ०- लोकसभा तथा राज्यसभा में परस्पर संबंध- लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों सदनों से मिलकर ही भारतीय संसद की रचना
होती है। इन दोनों को भारतीय संसद के दो हाथ कहा जा सकता है। अतः दोनों सदनों में निम्नलिखित संबंध पाए जाते हैं(i) लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों साधारण विधेयकों को पारित करती हैं। गतिरोध उत्पन्न होने पर दोनों सदनों की संयुक्त
बैठक में उसे दूर किया जाता है। दोनों सदनों से पारित विधेयक ही राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिए भेजे जाते हैं।
(ii) वित्त विधेयक भले ही लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं, परंतु उन्हें वह पारित कर राज्यसभा के पास भेजती है, जिसे
राज्यसभा 14 दिन की अवधि में पारित कर लोकसभा को लौटा देती है। लोकसभा उसे राष्ट्रपति के पास भेजती है।
(iii) वार्षिक बजट लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें वह संशोधन कर पारित करती है तथा राज्यसभा को भेजती है।
राज्यसभा बिना किसी कटौती के उसे पारित कर वापिस लोकसभा को भेज देती है।
(iv) लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों ही विविध उपायों से केंद्रीय मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण रखती हैं पंरतु लोकसभा अविश्वास
पारित कर मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र देने पर विवश कर सकती है, जबकि राज्यसभा को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
(v) राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए दोनों सदन उस पर महाभियोग लगा सकते हैं। एक सदन प्रस्ताव लाता है, तब दूसरा सदन उसकी जाँच करता है। दोनों सदनों में बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है। (vi) संविधान में संशोधन करने के लिए दोनों सदन समान भूमिका निभाते हैं।
(vii) राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव में दोनों सदन भाग लेते हैं। लोकसभा अपना सभापति चुनती है तथा उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर सकती है। लोकसभा और राज्यसभा एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। इन दोनों के पारस्परिक संबंधों को डॉ० जाकिर हुसैन ने इन शब्दों में व्यक्त किया है, “दोनों सदनों का अस्तित्व एक-दूसरे के साथ है तथा एक सदन दूसरे की अपेक्षा श्रेष्ठ नहीं है।”

Up board social science class 10 chapter 17 भारत का विभाजन एवं स्वतंत्रता प्राप्ति

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