Up board social science class 10 chapter 17 भारत का विभाजन एवं स्वतंत्रता प्राप्ति
लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न — 1. वे कौन से कारण थे, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए विवश किया?
उ०- भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए ब्रिटिश सरकार की विवशता के कारण निम्नलिखित थे
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध ने इंग्लैंड की साम्राज्यवादी शक्ति को नष्ट कर दिया ।
(ii) शक्तिहीन इंग्लैंड अपने सभी एशियाई और अफ्रीकी देशों के स्वतन्त्रता आंदोलनों को रोकने में असमर्थ रहा ।
(iii) ब्रिटिश सरकार पर अमेरिका और चीन का भारी दबाव होना ।
(iv) भारतीय नौ सेना का विद्रोह।।
(v) आजाद हिंद फौज का मुकदमा ।
(vi) इंग्लैंड में लेबर पार्टी की जीत ने भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया ।
- लार्ड माउंटबेटन योजना 1947 ई० की प्रमुख विशेषताएँ बताइए ।
उ०- लार्ड माउंटबेटन योजना 1947 ई० की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं=—————
(i) भारत को दो भागों में विभाजित करके भारत तथा पाकिस्तान दो पृथक स्वतंत्र राज्य बनाए जाएंगे।
ii) पंजाब तथा बंगाल का विभाजन होगा। दोनों प्रांतों की विधानसभाओं को दो भागों में बाँटा जाएगा ।
(iii) देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में सम्मिलित होने अथवा अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने की छूट होगी ।
(iv) भारत तथा पाकिस्तान की सीमाओं संबंधी समस्याओं को निपटाने के लिए एक सीमा आयोग गठित किया जाएगा।
(v) भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों को स्वतंत्रता प्रदान करने की तिथि 15 अगस्त, 1947 ई० होगी।
इस योजना को कांग्रेस ने विवशता और दु:खी हृदय से तथा मुस्लिम लीग से स्वीकार कर भारत की स्वतंत्रता का मार्ग पक्का कर दिया ।
प्रश्न —- 3. लार्ड माउंटबेटन योजना के अंतर्गत भारतीय नरेशों के सामने क्या विकल्प रखे गए। कश्मीर के राजा ने क्या विकल्प दिया?
उ०- लार्ड माउंटबेटन योजना 1947 ई० के अंतर्गत भारतीय नरेशों के सामने यह विकल्प रखा कि देशी रियासतें भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित हो सकती हैं। यदि वे चाहें तो स्वतंत्र भी रह सकती हैं। कश्मीर के राजा कश्मीर को स्वतंत्र रखना चाहते थे। वे कश्मीर को भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित करने में असमंजस्य की स्थिति में थे इसलिए उन्होने लार्ड माउंटबेटन से इस विषय में विचार-विमर्श करने के लिए कुछ समय माँगा।
प्रश्न —- 4. डॉ० भीमराव अंबेडकर कौन थे? उनके दो योगदानों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उ०- डॉ० भीमराव अंबेडकर बाबा साहेब के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक थे। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई० में मध्य प्रदेश के महु नामक ग्राम में हुआ था। उन्होंने जीवनभर भारत की स्वतंत्रता तथा दलितों के उद्धार के लिए संघर्ष किया। भारत के संविधान निर्माण में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई, अतः उन्हें संविधान निर्माता की संज्ञा दी गई।
5. यदि भारतीय रियासतों का विलय भारत संघ में न हुआ होता तो क्या परिणाम होता?
उ०- यदि भारतीय रियासतों का विलय भारत संघ में न हुआ होता तो भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती थी।
प्रश्न —-6. भारत संघ में जम्मू-कश्मीर का विलय किन परिस्थितियों में हुआ?
उ०- प्रारंभ में कश्मीर के राजा हरि सिंह कश्मीर के भारत में सम्मिलित होने में असमंजस्य की स्थिति में थे। जून, 1947 को माउंटबेटन कश्मीर गए और उन्होंने वहाँ के राजा हरि सिंह से विलय के बारे में शीघ्र आत्मनिर्णय पर जोर दिया ओर जनमत संग्रह की बात कही। महात्मा गाँधी भी महाराजा से मिले, परंतु अगस्त, 1947 में पाकिस्तानियों ने कबाइलियों के वेश में जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करनी प्रारंभ की। पाकिस्तान द्वारा आक्रमण किए जाने से विचलित होकर उन्होंने भी भारत संघ में मिलने की स्वीकृति प्रदान कर दी ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को किन तीन चुनौतियों का मुख्य रूप से सामना करना पड़ा?
उ०- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनमें से तीन चुनौतियाँ निम्नवत् हैं
(i) देशी रियासतों को भारत संघ में विलय की चुनौती।
(ii) विस्थापितों के पुनर्वास की चुनौती।
iii) जर्जर अर्थव्यवस्था की चुनौती।
8. स्वतंत्र भारत की किन्हीं तीन उपलब्धियों का विवरण दीजिए।
उ०- स्वतंत्र भारत की तीन उपलब्धियों का विवरण निम्नवत है
(i) देशी रियासतों का विलय- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष 562 देशी रियासतों की समस्या थी, जिसका निराकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी प्रतिभा और सूझ-बूझ से सुगमता से कर लिया। (ii) विस्थापितों का पुनर्वास- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय पाकिस्तान से करोड़ों हिंदू विस्थापित होकर भारत आए थे। भारत
के भावी कर्णधारों ने बड़े धैर्य और यत्नों से उन्हें बसाया और उनकी रोजी-रोटी का प्रबंध भी किया। स्वतंत्र भारत की यह एक प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है।
(iii) अर्थव्यवस्था का सुधार- भारत ने सदियों से जर्जर अपनी अर्थव्यवस्था को आर्थिक नियोजन लागू करके सुधारा।
_ भारत में 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना हुई, जिसके अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू थे।
9. भारत विभाजन के लिए उत्तरदायी तीन प्रमुख कारण लिखिए।
उ०- भारत विभाजन के लिए उत्तरदायी तीन प्रमुख कारण निम्नवत् हैं
(i) मुसलमानों की पृथकतावादी नीति।
(ii) जिन्ना की हठवादिता।
(iii) ब्रिटिश शासकों की कूटनीति।
10. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तीन प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उ०- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तीन प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख निम्नवत हैं
(i) ब्रिटिश सरकार दो अधिराज्यों की संविधान सभाओं को सत्ता सौंप देगी। उन्हें अपना-अपना संविधान बनाने की
स्वतंत्रता होगी। संविधान सभाएँ पूर्ण प्रभुत्व संपन्न रहेंगी।
(ii) 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो अधिराज्य बन जाएँगे।
(iii) दोनों अधिराज्यों की सीमाओं का निर्धारण रेडक्लिफ सीमा आयोग करेगा।
11. भारत के नवनिर्माण में पं० जवाहरलाल नेहरू के तीन प्रमुख योगदान लिखिए।
उ०- भारत के नवनिर्माण में पं० जवाहरलाल नेहरू के तीन प्रमुख योगदान निम्नवत हैं
(i) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने भारत के लिए गुटनिरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों पर आधारित विदेश नीति अपनाई।
(ii) पं० जवाहरलाल नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं के रूप में आर्थिक लागू करके विकास और संपन्नता की नदियाँ बहा दीं।
(iii) जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व भारत ने औद्योगिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अद्वितीय उपलब्धियाँ प्राप्त की।
Up board social science class 10 chapter 17 भारत का विभाजन एवं स्वतंत्रता प्राप्ति
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न *
प्रश्न —-1. भारत विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ? नव स्वतंत्र भारत को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? किन्हीं दो को समझाकर लिखिए ।
उ०- भारत विभाजन के कारण- दीर्घकालीन कष्टकारी संघर्षों के बाद भारत की जनता ने स्वतंत्रता की नवबेला में श्वाँस तो ली; परंतु उसे भारत विभाजन के रूप में दीर्घ आह भी भरनी पड़ी। भारत विभाजन के लिए मुख्यरूप से निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे
(i) मुसलमानों की पृथकतावादी नीति- मुस्लिम लीग के प्रभाव के कारण भारतीय मुसलमान भविष्य में हिंदुओं के प्रभुत्व से व्याकुल थे। मुहम्मद इकबाल और मोहम्मद अली जिन्ना ने पृथकतावादी बनकर सांप्रदायिकता को भड़का दिया, जिससे पृथक पाकिस्तान बनना आवश्यक हो गया।
(ii) जिन्ना की हठवादिता- मोहम्मद अली जिन्ना पृथक पाकिस्तान लिए बिना, राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन नहीं करना चाहते थे। 1946 ई० में उन्होंने सीधी कार्यवाही दिवस मनाकर अपनी हठवादिता को सच कर दिया। अत: कांग्रेस को विभाजन स्वीकार करना पड़ा।
(iii) ब्रिटिश शासकों की कूटनीति- ब्रिटिश सरकार “फूट डालो शासन करो” की नीति पर चलकर भारत में
सांप्रदायिकता के बीज बो रही थी। उसने इसे सांप्रदायिक रूप दिलाकर भारत को विभाजित करने में सफलता पाई।
“वास्तव में पाकिस्तान के निर्माता इकबाल और जिन्ना न होकर लार्ड मिंटो थे।”
(iv) हिंदुओं का अछूतवादी दृष्टिकोण- भारत के कट्टर हिंदू मुसलमानों से दूरी बनाए रखना चाहते थे, जिससे मुसलमानों ने समझ लिया कि बहुसंख्यक हिंदुओं के कारण उनका धर्म और संस्कृति सुरक्षित नहीं है। इसी सांप्रदायिक विद्वेष के कारण भारत का विभाजन संभव हो गया ।
(v) सांप्रदायिक दंगे- मुस्लिम लीग द्वारा ‘सीधी कार्यवाही दिवस’ मनाते ही भारत में जगह-जगह हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। भारतीय नेताओं ने इनसे मुक्ति पाने के लिए बँटवारा स्वीकार कर लिया।
(vi) कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति- कांग्रेस भारतीय मुसलमानों के प्रति तुष्टिकरण की नीति पर चल रही थी। उसने मुस्लिम लीग के साथ सांप्रदायिक निर्वाचन का समझौता करके पृथक पाकिस्तान के निर्माण का मार्ग पक्का कर दिया।
(vii) n शक्तिशाली भारत की कामना- कांग्रेस और सरदार पटेल का मत था कि बँटवारे के बाद भारत में जो 80% भू-भाग बचेगा, उसे एक शक्तिशाली भारत का रूप दिया जा सकता है, अत: बँटवारा स्वीकार कर लिया जाए |
(viii) स्वतंत्रता प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर- इंग्लैंड में मजदूर दल की उदारवादी सरकार बन जाने से कांग्रेस ने सोचा कि हमारा बहुप्रतीक्षित स्वतंत्रता प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर हाथ से न चला जाए, अतः विभाजन के मूल्य पर स्वतंत्रता
स्वीकार करने में ही भलाई है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली की घोषणा और लार्ड माउंटबेटन की कूटनीति ने भारत को दो स्वतंत्र देशों के रूप में विभक्त कर दिया। इस प्रकार सगे भाई दो पड़ोसी देश बनकर रह गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष चुनौतियाँ- भारत ने दीर्घकालीन परतंत्रता का बोझ ढोते हुए स्वतंत्रता का फल चखा था। विदेशी शासन की लूट-खसोट और कूटनीतिक चालों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित समस्याएँ चुनौतियों के रूप में छोड़ी थीं
(i) देशी रियासतों को भारत संघ में विलय करने की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 562 देशी रियासतें
थीं, जिन्हें भारत संघ में मिलाए बिना देश की अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा करना संभव नहीं था।
(ii) विस्थापितों के पुनर्वास की चुनौती- बँटवारे के समय पाकिस्तान ने हिंदुओं को खदेड दिया था। इन लुटे-पिटे
शरणार्थियों की संख्या करोड़ों में थी। भारत सरकार को इस गंभीर चुनौती का दृढ़ता से सामना करना था।
(iii) जर्जर अर्थव्यवस्था की चुनौती- अंग्रेजों ने भारत की प्राकृतिक संपदा को जी भरकर लूटा। उन्होंने कूटनीति
अपनाकर भारत के कला-कौशलों को नष्ट करके भारत को आर्थिक दृष्टि से जर्जर बना दिया था। अतः भारत के
निर्माताओं के समक्ष जर्जर अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने की कठिन चुनौती थी।
(iv) नया संविधान बनाकर लागू करने की चुनौती- भारत में लोकतंत्र और गणतंत्रीय शासन व्यवस्था लागू करने के
लिए नया संविधान बनाकर उसे ठीक से लागू करने की चुनौती भारतीय नेताओं के समक्ष थी, जिसे कुशलतापूर्वक हल
करने के प्रयास किए गए।
(v) भारत के सर्वांगीण विकास की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी और
भुखमरी जैसी समस्याओं से ग्रसित था। अतः नवभारत के निर्माताओं के सामने इन समस्याओं का निराकरण करके राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की चुनौती मुँह खोले खड़ी थी।
(vi) परिवहन तथा संचारतंत्र का जाल फैलाने की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत परिवहन तथा संचारतंत्र के अभावों से जूझ रहा था। राष्ट्र का बहुमुखी विकास करने के लिए इस चुनौती का सामना करना आवश्यक था।
(vii) प्राकृतिक संसाधनों के योजनाबद्ध विदोहन की चुनौती- प्रकृति ने भारत को प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन दिए हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उनके योजनाबद्ध विदोहन की समस्या बनी हुई थी। (viii) विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
बहुत पिछड़ा हुआ था। अतः भारत के निर्माताओं के सामने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के समुचित विकास की चुनौती थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के निर्माताओं ने बड़े कौशल, प्रतिभा और सूझ-बूझ से इन चुनौतियों का निराकरण कर भारत के सर्वांगीण विकास का मार्ग बनाया ।
प्रश्न —- 2. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की प्रमुख विशेषताएँ ( प्रावधान ) बताइए।
उ०- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ई०- ब्रिटेन की संसद ने माउंटबेटन योजना के प्रस्तावों को कार्यरूप में परिणित करने के उद्देश्य से 18 जुलाई, 1947 ई० में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम की धाराएँ निम्नलिखित थीं
(i) ब्रिटिश सरकार दो अधिराज्यों की संविधान सभाओं को सत्ता सौंप देगी। उन्हें अपना-अपना संविधान बनाने की स्वतंत्रता होगी। संविधान सभाएँ पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न रहेंगी।
(ii) 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो अधिराज्य बन जाएँगे।
(iii) दो अधिराज्यों की सीमाओं का निर्धारण रेडक्लिफ सीमा आयोग करेगा।
(iv) जब तक दोनों अधिराज्य नया संविधान नहीं बना लेते, संविधान सभाएँ ही कानून बनाएँगी।
(v) ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में रहने का अधिकार दोनों अधिराज्यों के पास रहेगा। (vi) जब तक नए चुनाव नहीं होते, इस समय के विधान मंडल ही कार्य करते रहेंगे।
(vii) जब तक दोनों अधिराज्य नए संविधान नहीं बना लेते, तब तक प्रांतों में 1935 ई० का अधिनियम ही प्रभावी रहेगा।
(viii) दोनों अधिराज्यों के लिए ब्रिटिश सम्राट अधिराज्यों की सरकारों के परामर्श से अलग-अलग गवर्नर जनरल नियुक्त करेंगे। भारत के प्रथम और अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवती राजगोपालाचारी थे।
(ix) 15 अगस्त, 1947 ई० के पश्चात् देशी रियासतें भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित हो सकती हैं। यदि वे चाहे तो स्वतंत्र भी रह सकती हैं।
(x) ब्रिटिश मंत्रिमंडल में से भारत-मंत्री का पद समाप्त कर दिया जाएगा। अतः ब्रिटिश संसद का भारत या पाकिस्तान पर भविष्य में कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
Up board class 10 social science chapter 14 सविनय अवज्ञा आंदोलन
प्रश्न —-3. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पं० जवाहरलाल नेहरू के मुख्य योगदानों की समीक्षा कीजिए। उ०- पं0 जवाहरलाल नेहरू का योगदान- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके नवनिर्माण में जवाहरलाल नेहरू का योगदान निम्नवत् रहा—
(i) पं० जवाहरलाल नेहरू ने गाँव-गाँव जाकर भारत का भ्रमण किया। किसान उन्हें किसान सेवक कहते थे। (ii) 1922 ई० में उन्होंने इलाहाबाद का चेयरमैन बनकर नगर के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया।
(iii) 1927 ई० में उन्होंने जेनेवा में साम्राज्य विरोधी सम्मेलन में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
(iv) उन्होंने इलाहाबाद में साइमन कमीशन का काले झंडों से विरोध जताया।
(v) स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करने पर उन्हें कई बार जेल-यात्रा भी करनी पड़ी।
(vi) 1946 ई० की अंतरिम सरकार में वे भारत के प्रधानमंत्री बने।
(vii) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने भारत के लिए गुटनिरपेक्षता और पंचशील के सिद्धातों पर आधारित विदेश नीति बनाई।
(viii) पं० जवाहरलाल नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं के रूप में देश में आर्थिक नियोजन लागू करके विकास और संपन्नता की नदियाँ बहा दीं।
(ix) उन्होंने शक्तिगुटों का विरोध और साम्राज्यवाद की आलोचना कर शांतिदूत बनने का गौरव पाया। (x) जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने औद्योगिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अद्वितीय उपलब्धियाँ प्राप्त की।
पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान को विद्वानों ने निम्न प्रकार व्यक्त किया है”नेहरू हमारी पीढ़ी के महानतम् व्यक्ति थे। वे स्वतंत्रता संग्राम में यशस्वी योद्धा थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूत पूर्व था।”
-डॉ० राधाकृष्णन् “मुझे भारतीय इतिहास में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई देता, जिसके प्रति आदर और प्यार प्रकट किया गया हो जितना कि पंडित जी के प्रति था।” -डॉ० जाकिर हुसैन
Up board class 10 social science chapter 16 क्रांतिकारियों का योगदान
प्रश्न —- 4. सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय देते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान की समीक्षा कीजिए।
उ०- सरदार वल्लभ भाई पटेल- भारत के लौहपुरुष के नाम से विख्यात सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 ई० को गुजरात प्रांत के करमंद नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण कर, वकालत करनी प्रारंभ कर दी। गाँधी जी ने साबरमती में अपना आश्रम बनाकर, जब अहमदाबाद में सत्याग्रह प्रारंभ किया तो सरदार पटेल भी उनके अनुयायी बन गए। अब राष्ट्रसेवा करना ही उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य बन गया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने पर उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। धीरे-धीरे वे स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी बन गए। सरदार पटेल का स्वतंत्रता संग्राम का योगदान- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में सरदार पटेल का नाम अग्रिम पंक्ति में लिपिबद्ध है। उनका योगदान निम्नवत् था |
(i) सरदार पटेल ने कार्यकर्ताओं को संगठित कर एकजुट बनाने का अद्भुत कार्य किया।
(ii) उन्होंने गाँधी जी के प्रत्येक आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई।
(iii) सरदार पटेल ने वकालत छोड़कर गोधरा, खेड़ा और बारदौली के आंदोलनों को सफलतापूर्वक संचालित कर, किसानों की समस्याएँ हल करवाईं।
(iv) 1946 ई० में बनी अंतरिम सरकार में उन्हें उप प्रधानमंत्री का पद दिया गया।
(v) स्वतंत्रता प्राप्ति के समय वे 562 देशी रियासतों का विलय भारत संघ में नहीं करते तो भारत की स्वतंत्रता निरर्थक होती।
(vi) उन्होंने भारत की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया।
(vii) सरदार वल्लभ भाई पटेल ने लौह और रक्त नीति का अनुपालन करते हुए भारत की स्वतंत्रता को दीर्घगामी बना दिया।
सरदार पटेल के इस महान कार्य की प्रशंसा इंग्लैंड के प्रमुख पत्र लंदन टाइम्स ने इस शब्दों में की- “भारतीय रियासतों के एकीकरण का उनका कार्य उन्हें जर्मनी के विस्मार्क और संभवतः उससे भी ऊँचा स्थान प्रदान करता है।” सरदार पटेल के प्रत्येक कार्य के पीछे राष्ट्रहित निहित रहता था। 15 दिसंबर, 1950 ई० को विधाता ने भारत के इस लौहपुरूष को भारत माता से सदैव के लिए छीन लिया।
प्रश्न —- 5. नव स्वतंत्र भारत के समक्ष कौन-कौन सी समस्याएँ थीं?
उ०- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष समस्याएँ- भारत ने दीर्घकालीन परतंत्रता का बोझ ढोते हुए स्वतंत्रता का फल चखा था। विदेशी शासन की लूट-खसोट और कूटनीतिक चालों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित समस्याएँ चुनौतियों के रूप में छोड़ी थीं |
(i) देशी रियासतों को भारत संघ में विलय करने की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 562 देशी रियासतें थीं, जिन्हें भारत संघ में मिलाए बिना देश की अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा करना संभव नहीं था।
(ii) विस्थापितों के पुनर्वास की चुनौती- बँटवारे के समय पाकिस्तान ने हिंदुओं को खदेड़ दिया था। इन लुटे-पिटे शरणार्थियों की संख्या करोड़ों में थी। भारत सरकार को इस गंभीर चुनौती का दृढ़ता से सामना करना था।
(ii) जर्जर अर्थव्यवस्था की चुनौती- अंग्रेजों ने भारत की प्राकृतिक संपदा को जी भरकर लूटा। उन्होंने कूटनीति अपनाकर भारत के कला-कौशलों को नष्ट करके भारत को आर्थिक दृष्टि से जर्जर बना दिया था। अतः भारत के निर्माताओं के समक्ष जर्जर अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने की कठिन चुनौती थी।
(iv) नया संविधान बनाकर लागू करने की चुनौती- भारत में लोकतंत्र और गणतंत्रीय शासन व्यवस्था लागू करने क लिए नया संविधान बनाकर उसे ठीक से लागू करने की चुनौती भारतीय नेताओं के समक्ष थी, जिसे कुशलतापूर्वक हल करने के प्रयास किए गए ।
(v) भारत के सर्वांगीण विकास की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी और भुखमरी जैसी समस्याओं से ग्रसित था। अत: नवभारत के निर्माताओं के सामने इन समस्याओं का निराकरण करके राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की चुनौती मुँह खोले खड़ी थी ।
(vi) परिवहन तथा संचारतंत्र का जाल फैलाने की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत परिवहन तथा संचारतंत्र के अभावों से जूझ रहा था। राष्ट्र का बहुमुखी विकास करने के लिए इस चुनौती का सामना करना आवश्यक था। (vii) प्राकृतिक संसाधनों के योजनाबद्ध विदोहन की चुनौती- प्रकृति ने भारत को प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन दिए हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उनके योजनाबद्ध विदोहन की समस्या बनी हुई थी ।
(viii) विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास की चुनौती- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ था। अतः भारत के निर्माताओं के सामने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के समुचित विकास की चुनौती थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के निर्माताओं ने बड़े कौशल, प्रतिभा और सूझ-बूझ से इन चुनौतियों का निराकरण कर भारत के सर्वांगीण विकास का मार्ग बनाया।
प्रश्न —-6. स्वतंत्र भारत की प्रमुख उपलब्धियों की व्याख्या कीजिए।
उ०- स्वतंत्र भारत की उपलब्धियाँ- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतवासियों में एक नवचेतना और नवजागरण का संचार हुआ। भारत का नवनिर्माण करने वाले कर्णधारों ने इन सभी चुनौतियों का सामना करते हुए भारतीय जनता को निम्नलिखित उपलब्धियों का उपहार दिया
(i) देशी रियासतों का विलय- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष 562 देशी रियासतों की समस्या थी, जिसका निराकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी प्रतिभा और सूझ-बूझ से सुगमता से कर लिया।
(ii) विस्थापितों का पुनर्वास- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय पाकिस्तान से करोड़ों हिंदू विस्थापित होकर भारत आए थे। भारत के भावी कर्णधारों ने बड़े धैर्य और यत्नों से उन्हें बसाया और उनकी रोजी-रोटी का प्रबंध भी किया। स्वतंत्र भारत की यह एक प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है।
(iii) अर्थव्यवस्था का सुधार- भारत ने सदियों से जर्जर अपनी अर्थव्यवस्था को आर्थिक नियोजन लागू करके सुधारा। भारत में 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना हुई, जिसके अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू थे।
(iv) नवीन संविधान का निर्माण- भारत की संविधान सभा ने डॉ० राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में तथा प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव अंबेडकर के सहयोग से नया संविधान बनाकर 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू कर, भारत को गणतंत्र बनाया। इसीलिए 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में भारत का राष्ट्रीय पर्व बन गया।
(v) राज्यों का पुनर्गठन- भारत ने 1953 ई० में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की, जिसने 1956 ई० में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित करके उस समय 24 राज्य और 7 केंद्रशासित प्रदेशों का निर्धारण किया। वर्तमान में भारत में 29 राज्य और 7 केंद्रशासित क्षेत्र हैं।
(vi) परिवहन तथा संचारतंत्र का विकास- भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र के सभी क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास करने हेतु परिवहन सेवाओं और संचारतंत्र का जाल फैला दिया ।
(vii) परमाणु शक्ति तथा अंतरिक्ष विज्ञान में ऊँची उड़ान- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु शक्ति का विकास कर लिया। भारतीय वैज्ञानिकों ने उपग्रह बनाकर तथा अंतरिक्ष में उन्हें स्थापित करके अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सफलता की ऊँची उड़ान भर ली।
(viii) औद्योगिक विकास- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने हरितक्रांति के माध्यम से कृषि विकास तथा औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर कुटीर उद्योग, लघु उद्योग और बड़े पैमाने के उद्योगों का विकास कर विश्व में औद्योगिक राष्ट्र की पहचान बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है।
(ix) सूचना प्रौद्योगिकी का विकास- भारत ने कंप्यूटर, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा इंटरनेट के माध्यम से विश्वस्तरीय सूचना प्रौद्योगिकी का विकास कर अपनी सफलता के झंडे विश्वभर में गाड़ दिए हैं।
(x) विकसित राष्ट्र बनने की ओर- भारत ने कृषि, उद्योग, वाणिज्य, व्यापार, परिवहन, संचार, ऊर्जा, राष्ट्रीय आय और नवीनतम् प्रौद्योगिकी का विकास कर विश्व की चतुर्थ सुदृढ़ अर्थव्यवस्था बन जाने का गौरव प्राप्त कर, भविष्य में एक विकसित राष्ट्र बन जाने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं।
Up board class 10 social science chapter 16 क्रांतिकारियों का योगदान