UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 खून का रिश्ता

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 खून का रिश्ता

up board SOLUTION
कक्खूषा 12 कथा भारती खून का रिश्ता

कवि पर आधारित प्रश्न

1 . भीष्म साहनी के जीवन परिचय एवं कृतियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए ।।

उत्तर – – लेखक परिचय- नई कहानी के सुप्रसिद्ध कहानीकार भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, सन् 1915 ई० को रावलपिण्डी (वर्तमान में पाकिस्तान में) में हुआ था ।। इनके पिता का नाम हरवंशलाल साहनी था ।। राष्ट्रीय-आन्दोलनों और देश के विभाजन ने इनके पारिवारिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया और ये रावलपिण्डी छोड़कर सपरिवार भारत आकर रहने लगे ।। सन् 1957 ई० से 1963 ई० तक इन्होंने ‘मास्को’ के विदेशी भाषा प्रकाशन-गृह’ में अनुवादक के रूप में कार्य किया, जिसमें आस्त्रास्की और टॉलस्टाय आदि की कृतियों के अनुवाद किये ।। इन्होंने दिल्ली कॉलेज में अंग्रेजी के वरिष्ठ प्रवक्ता पद को भी सुशोभित किया ।। 11 जुलाई सन् 2003 को माँ सरस्वती का यह पुत्र स्वर्ग सिधार गया ।। कृतियाँ- साहनी जी ने विशेष रूप से कहानी व उपन्यास विधा-क्षेत्र को अपनी लेखनी से समृद्ध किया ।। इनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैंकहानी- कुछ और साल, भाग्य-रेखा, पहला पाठ, माता-विमाता, भटकती राख, कटघरे, प्रोफेसर, चीफ की दावत, सिफारिशी चिट्ठी, खून का रिश्ता, अहं ब्रहास्मि ।। उपन्यास- कुन्ती, बसन्ती, तमस, कड़ियाँ, झरोखे, मय्यादास की माड़ी, नीलू नीलिमा नीलोफर आदि ।। ‘तमस’ उपन्यास के लिए भीष्म साहनी जी को सन् 1975 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिला है ।।

2 . भीष्म साहनी के कथा-शिल्प एवं शैली का उल्लेख कीजिए ।।

उत्तर – – कथा-शिल्प एवं शैली- देश के विभाजन की त्रासदी में निर्दोष लोगों द्वारा उठाए गए कष्टों को भीष्म साहनी जी ने प्रत्यक्ष रूप से देखा और महसूस किया ।। इसी कारण इनकी कहानियों में मानवीय संवेदनाओं की प्रचुरता है ।। इनकी कहानियों के कथानक राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन से जुड़े हुए होते हैं ।। ये अपनी कहानियों में निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों के अन्तरंग चित्र बड़े मार्मिक रूप में प्रस्तुत करते हैं ।। कहानियों के विषय जाने-पहचाने होते हैं किन्तु भीष्म साहनी ने उन्हें नवीन दृष्टिकोण के आधार पर प्रस्तुत किया है ।। व्यंग्य और करुणा इनकी कहानियों के प्रमुख गुण है ।। कहानियों में प्राय: किसी-न-किसी प्रकार की विडम्बना को अभिव्यक्ति मिली है, जो किसी-न-किसी रूप में हमारे वर्तमान समाज के अन्तर्विरोधों की ओर संकेत करती है ।। सरलता और सहजता इनकी कथा-शैली की प्रमुख विशेषता है ।। आधुनिक कहानी की पेचीदगी, प्रतीकात्मकता और सूक्ष्मशिल्प इनकी कहानियों में नहीं है किन्तु प्रेषणीयता और प्रभाव की दृष्टि से वे निश्चय ही बेजोड़ ठहरती है ।। इनकी कथा-शैली में ‘रिपोर्ताज’ की पद्धति का विशिष्ट प्रयोग देखने को मिलता है ।। कहानियों की भाषा व्यावहारिक हिन्दी है, जिसमें उर्दू की शब्दावली का विशेष योगदान रहा है ।। जिस प्रकार इनकी कहानियों की विषयवस्तु व्यक्तिनिष्ठ न होकर समाजपरक है, उसी प्रकार कहानियों की भाषा भी पूर्वाग्रहमुक्त और लोकपरक है ।। आधुनिक कहानीकारों में इनका विशिष्ट स्थान है ।। हिन्दी-साहित्य जगत सदैव इनका ऋणी रहेगा ।।

पाठ पर आधारित प्रश्न

1 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।

उत्तर – – खाट की पाटी पर बैठा चाचा मंगलसेन भतीजे को सगाई की बात मन ही मन सोचता हुआ प्रसन्नचित्त बैठा हुआ था ।। वह भतीजे की सगाई में आया हुआ है ।। वह दूध का गिलास हाथ में लिये दूध पी रहा है, कभी बादाम तथा कभी पिस्ते की गिरी, मुँह में आ रही है ।। तम्बाकू की कड़वाहट भरे मुख में मिठास आ गया ।। स्वप्न भंग हुआ और उसका मन सगाई में जाने के लिए उत्सुक हो उठा ।। सचमुच आज सगाई का दिन था ।। थोड़ी ही देर में सभी सगे-सम्बन्धी सगाई में जायेंगे ।। उत्साह के कारण मंगलसेन के लिए खाट पर बैठे रहना असम्भव हो गया ।। शरीर में छटाँक-भर खून था, मगर वह ऐसा उछल रहा था कि बैठने नहीं देता था ।। तभी घर का पुराना नौकर सन्तू उसके हाथ से चिलम लेकन पीने लगा और बोला- तुम्हें सगाई में नहीं ले जाएँगे चाचा ।। मंगलसेन ने इस बात को मजाक समझते हुए कहा- “मुझे नहीं ले जाएँगे तो क्या तुम्हें ले जाएँगे?” वीरजी कहते हैं कि सगाई में सिर्फ बाबूजी जाएँगे ।। ऊपर चलो, सब खाना खा रहे हैं ।। तुम्हें नहीं ले जाएँगे, चाहे दो-दो रुपये का शर्त लगा लो ।। वास्तव में रसोईघर में इसी बात पर बहस चल रही थी, वहीं दीवार से पीठ लगाए बाबूजी बैठे थे ।। पुत्र वीरजी और पुत्री मनोरमा दोनों भाई-बहन खाना खा रहे थे ।। वीरजी कह रहे थे कि मेरी सगाई सिर्फ सवा रुपये में होगी और अकेले बाबूजी ही सगाई में जायेंगे ।। मनोरमा कहती है- “मैं भी जाउँगी, आजकल लड़कियाँ भी जाती हैं ।। ” मंगलसेन ने अन्दर झाँका तब बाबूजी बोले-“आओ मंगलसेन, देखो कौन बैठा है ।।

वीरसिंह कहता है- “नमस्ते चाचाजी ।। ” बाबूजी कहते हैं- “उठकर चाचाजी के पाँव छुओ, तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है ।। ” तब वह चरण-स्पर्श करता है ।। बाबू जी कहते हैं- “मंगलसेन जरा आकर टाँगें तो हिलाओ ।।

माँ जी ने घूरकर देखा, नौकरों के सामने तो मंगलसेन से इस तरह रूखेपन से बात मत किया करो ।। मंगलसेन किसी समय फौज में था, उसे अपनी हैसियत पर बड़ा गर्व है वह अब भी खाकी पगड़ी पहनता है ।। ऊँचा खानदान है और शहर के जाने माने धनवान भाई के घर रहता है, ऐंठना तो स्वाभाविक ही था ।। वह बाबूजी का गरीब चचेरा भाई है तथा गाँव से शहर आकर बाबूजी के घर में रहता है व उनके काम में हाथ बँटाता है ।। उसका कद नाटा व शरीर सूखा है, मैले-कुचैले कपड़े तथा फौज के बूट पहनता है ।। काफी बहस के बाद मंगलसेन का सगाई में जाना तय हुआ ।। जब मंगलसेन जाने के लिए तैयार होकर आए तो उनका वेश जोकर जैसा प्रतीत हुआ ।। उन्हें दूसरे कपड़े व पगड़ी दी गई तब मानो मंगलसेन का कायाकल्प ही हो गया ।। समधियों के घर गये ।। वहाँ बाबूजी केवल सवा रुपये की माँग दुहराते हैं लेकिन फिर भी उन्हें बहुत कुछ मिलता है ।। मंगलसेन की भी वहाँ बड़ी आवभगत होती है ।। सगाई के बाद दोनों भाई लौट आते हैं ।। लाल रंग में रूमाल से ढका हुआ थाल मंगलसेन के कंधे पर है ।। घर पहुँचते ही मनोरमा झपटकर थाल ले लेती है ।। कार्यक्रम चल ही रहा था कि इसी बीच चाँदी की एक चम्मच खो जाती है ।। सब मंगलसेन पर शक करते हैं सबके सामने बाबूजी की फटकार सुनकर मंगलसेन गिरकर बेहोश हो जाता है ।। तभी वीरजी का साला चम्मच लेकर आता है, जो वीरजी की ससुराल में ही रह गई थी ।। नौकर सन्तू मंगलसेन को खाट पर लिटाता है और मुँह पर पानी छींटे मारते हुए कहता है- “तुम शर्त जीत गए, तनख्वाह मिलने पर दो रुपये नकद तुम्हारी हथेली पर रख दूंगा ।। “

३- ‘खून का रिश्ता’ कहानी की पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से समीक्षा कीजिए ।।

उत्तर – – कहानी में सीमित पात्र-योजना है ।। कहानी के पात्रों का चरित्राकंन कथाकार ने कुशलता से किया है ।। पात्र इतने सजीव हैं कि वे पाठक के समक्ष मूर्त रूप धारण कर खड़े हो जाते हैं ।। कहानी में चार मुख्य पात्र हैं- वीर जी, वीर जी के माता-पिता और चाचा मंगलसेन ।। इसके अतिरिक्त मनोरमा, सन्तु आदि सभी गौण पात्र हैं, जो कहानी की गतिमयता को बनाये रखते हैं ।। कहानी में प्रमुख पात्र के माध्यम से दहेज-प्रथा जैसे सामाजिक कंलक का विरोध कराकर समाज में सामाजिक समरसता की स्थापना करने का प्रयास किया गया है ।। वीर जी के माता-पिता धन के प्रति कितने केन्द्रीकृत हैं, इसका भी स्पष्ट वर्णन किया गया है ।।

3 . संवाद तथा कथोपकथन की दृष्टि से खून का रिश्ता’ कहानी का मूल्याकंन कीजिए ।।
उत्तर – – कहानी में सटीक संवादों की योजना की गयी है ।। संवाद सरल तथा पात्रों के चरित्र और परिस्थिति पर प्रभाव डालने वाले हैं ।। इस सन्दर्भ में कुछ कथन द्रष्टव्य हैंफिर भी साहस करके बोला “यदि आप अकेले नहीं जाना चाहते तो चाचाजी को साथ ले जाइए ।। बस, दो जने चले जायें ।। “
“कौन-से चाचा को?” माँजी ने पूछा ।। “चाचा मंगलसेन को ।। ” कोने में बैठे सन्तू ने हैरान होकर सिर उठाया ।। माँ झट से बोली, “हाय-हाय बेटा,शुभ-शुभ बोलो! अपने रईस भाइयों को छोड़कर इस मरदूर को साथ ले जाएँ? साराशहर थू-थूकरेगा!” “माँजी,अभी तो आप कह रही थीं,खून का रिश्ता है ।। किधर गया खून का रिश्ता?चाचाजी गरीब हैं इसीलिए?”
तर्कशीलता तथा पैनापन संवादों के विशेष गुण हैं ।। इस प्रकार कथोपकथन की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ तथा सफल कहानी है ।।

4 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए ।।

उत्तर – – कहानी ‘खून का रिश्ता’ समाज में बिगड़ते-बनते रिश्तों का अनूठा उदाहरण है ।। केवल एक व्यक्ति (बाबूजी) को सगाई में भेजने की जिद पर पर अड़े वीरजी खून के रिश्ते को बनाए रखने के लिए चाचा मंगलसेन को सगाई में भेजते हैं ।। चाँदी की चम्मच खोने पर मंगलसेन पर आरोप लगते हैं लेकिन जब वीरजी का साला चम्मच लौटाने आता है, तब ‘खून के रिश्ते’ पर धब्बा लगने से बच जाता है ।। आरम्भ से अंत तक ‘खून का रिश्ता’ प्रमुख है ।। अत: कहानी का शीर्षक ‘खून का रिश्ता’ पूर्णतया उपयुक्त एवं सार्थक है ।।

5 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।।

उत्तर – – श्री भीष्म साहनी की प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य मनुष्य के आत्म-संस्कार की शक्ति का परिचय देना है ।। उनका उद्देश्य समाज में व्याप्त कुसंस्कारों, धन-लोलुपता और स्वार्थपरता से उत्पन्न संकट से समाज को बचाना है ।। जीवन का उचित दिशा प्रदान करने का उद्देश्य ही इनकी कहानियों का मुख्य लक्ष्य होता है ।। ‘खून का रिश्ता’ कहानी भी इनकी ऐसी ही कहानी है, जिसका उद्देश्य समाज से ‘दहेज प्रथा’ को समूल नष्ट करना है ।। इस प्रकार ‘खून का रिश्ता’ कहानी बहुउद्देशीय एवं कालक्रमानुगत है ।। समाज सुधार की दृष्टि से इनकी यह अनूठी और श्रेष्ठ कहानी है ।।

6 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी के मुख्य पात्र वीरजी का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।

उत्तर – – भीष्म साहनी द्वारा लिखित ‘खून का रिश्ता’ नामक कहानी का मुख्य पात्र वीरजी है, उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) शिक्षित युवक- बाबू जी का लड़का वीरजी सही अर्थों में शिक्षित युवक है ।। वह ‘दहेज’ को सामाजिक व्यक्तियों पर आरोपित एक कंलक मानता है ।। इसीलिए अपने रिश्ते के बारे में वह अपने माता-पिता से स्पष्ट कह देता है कि, मेरी सगाई केवल सवा रुपये से ही होगी और सगाई के लिए केवल बाबू जी ही लड़की वालों के यहाँ जाएँगे ।। अन्त में बहुत कहने पर वह मंगलसेन नाम के धन से हीन चाचा को अपने पिता जी के साथ भेजता है ।।

(ii) दहेज विरोधी और आदर्श युवक- वीरजी समाज में नारियों के साथ होने वाली घटनाओं का मुख्य कारण दहेज को मानता है और इसे न लेकर समाज के सामने एक आदर्श उपस्थित करता है ।। वह एक सैद्धान्तिक युवक भी है ।। उसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं है ।। वह अपने पिता को उनकी कही बात ही याद दिलाता है कि ब्याह-शादियों में पैसे बरबाद नहीं करने चाहिए ।।

(iii) समानता की भावना का पोषक- वीरजी एक सहृदय युवक है ।। वह गरीब-अमीर सबको समान दृष्टि से देखता है ।। उसके मन में किसी के भी प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है ।। चाचा मंगलसेन को पिता द्वारा डाँटे जाने पर वह उनका भी विरोध करता है और कहता है कि, “चाचाजी गरीब हैं, इसीलिए इन्हें इतना दुत्कारा जाता है ।। ” धनी रिश्तेदारों को सगाई में ले जाने की बात का भी वह विरोध करता है और मंगलसेन जी को ही सगाई में ले जाने के लिए पिता को विवश कर देता है ।।

(iv) व्यवहारकुशल, हँसमुख और विश्वासी– वीरजी एक व्यवहारकुशल युवक है ।। अपने इसी गुण के कारण वह परिवार के सभी सदस्यों का प्रिय है ।। वह हँसमुख एवं मृदुभाषी भी है ।। घर के सभी सदस्यों के प्रति उसका बड़ा ही मृदु व्यवहार है ।। अपने चाचा मंगलसेन का वह झुककर पाँव छूता है ।।

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा

(v) भावी संगिनी के प्रति स्नेहिल- वीरजी अपनी होने वाली पत्नी प्रभा के प्रति अत्यधिक प्रेमयुक्त है ।। उसका वर्णन कहानीकार ने इन शब्दों में किया है- “थाल पर रखे लाल रूमाल को देखते हुए उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा ।। . . . . . इस रूमाल को जरूर प्रभा ने अपने हाथ से छुआ होगा ।। उनका जी चाहा कि रूमालपको हाथ में लेकर चूम लें ।। “

(vi) पश्चातापयुक्त- वीरजी के ससुराल से आये चम्मच; प्रभा के प्रेम की पहली निशानी; के खो जाने पर वह सहसा आवेश में आ जाते हैं और चाचा मंगलसेन के पास जाकर उन्हें दोनों कन्धे पकड़कर झकझोर देते हैं ।। लेकिन लगभग तुरन्त ही वह खिन्न-सा अनुभव वापस जाने लगता हैं और कहते हैं कि, “मुझसे क्या भूलहोगयी?” निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि वीरजी में वे समस्त गुण विद्यमान हैं; जो एक श्रेष्ठ कहानी के नायक में होने चाहिए ।। पाठक चाहते हुए भी ऐसे पात्र को विस्मृत नहीं कर सकता ।।

7 . मंगलसेन का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।

उत्तर – – मंगलसेन कहानी ‘खून का रिश्ता’ का एक प्रमुख पात्र है उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं(i) स्वप्नशील व्यक्तित्व- मंगलसेन सपनों में रहने वाला व्यक्ति है ।। वह स्वप्न देखता है कि वीरजी की सगाई में उसका आदर सत्कार हो रहा है ।। वह सोचता हैं कि उसकी पगड़ी पर केसर की छींटें हैं और हाथ में दूध का गिलास है, जिसे वह घुट-घुट करके पी रहा है ।। दूध पीते हुए कभी बादाम की गिरी मुँह में आ जाती है, कभी पिस्ते की ।। बाबूजी पास खड़े समधियों से उसका परिचय करा रहे हैं, यह मेरा चचाजाद छोटा भाई है, मंगलसेन! समधी मंगलसेन के चारों ओर घूम रहे हैं ।। उनमें से एक झुककर बड़े आग्रह से पूछता है, और दूधलाऊँचाचाजी? थोड़ा-सा और? अच्छा,ले आओ, आधा गिलास, मंगलसेन कहता है, और तर्जनी से गिलास के तल में से शक्कर निकाल-निकालकर चाटने लगता है .

(ii) अनादरित व्यक्ति – मंगलसेन अपने बड़े भाई के घर पर रहता था ।। वहाँ उसका कोई सम्मान नहीं करता है ।। घर का नौकर सन्तू भी उसका मजाक उड़ाता है ।। वीरजी के पिता बाबूजी भी उसका सभी के सामने अपमान कर देते थे ।। जब बाबूजी मंगलसेन से पूछते हैं “आज रामदास के पास गए थे? किराया दिया उसने या नहीं?” मंगलसेन खुशी में था ।। उसी तरह चहकाकर बोला,”बाबूजी, वह अफीमची कभी घर पर मिलता है, कभी नहीं ।। आजघर पर था ही नहीं ।। ” “एक थप्पड़ मैं तेरे मुँह पर लगाऊँगा, तुमने क्या मुझे बच्चा समझ रखा है?”

(iii) गरीब रिटायर्ड फौजी- मंगलसेन एक फौज से रियाटर्ड गरीब व्यक्ति है ।। मंगलसेन का अपना कोई नहीं था वह अपने दूर के भाई के यहाँ रहता था ।। उसकी गरीबी के कारण होने वाले अपमान से वीरजी गुस्से में आ जाते हैं और मंगलसेन को सगाई में भेजने के लिए कहते हैं ।। जिस पर उसकी माँ झट से कहती है, “हाय-हाय बेटा, शुभ-शुभ बोलो! अपने रईस भाईयों को छोड़कर इस मरदूर को साथ ले जाएँ? सारा शहर थू-थू-करेगा ।। “

(iv) उत्साहित- मंगलसेन को जब पता चलता है कि केवल वह ही बाबूजी के साथ वीरजी की सगाई डलवाने जा रहा है तो वह उत्साहित हो जाता है ।। वह सोचता है क्यों न हो, आखिर मुझसे बड़ा सम्बन्धी है भी कौन, मुझे नही ले जाएँगे तो किसे ले जाएंगे ।।

(iv) स्वाभिमानी- मंगलसेन एक स्वाभिमानी व्यक्ति था ।। जब वीरजी के सगाई के सामान से एक चम्मच कम मिलता है और उस पर चम्मच गँवा देने का आरोप लगता है तथा उसकी जेबों की तलाशी ली जाती है तो स्तब्ध रह जाता है और वह जमीन पर गिर कर बेहोश हो जाता है ।। निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि मंगलसेन का चरित्र कहानी का मुख्य पात्र है कहानी का कथानक उसके चारों तरफ ही घूमता है ।। वह एक बेसहारा, गरीब व्यक्ति है ।। वह अपने दूर के रिश्ते के भाई के साथ रहता है जहाँ उसका सम्मान नहीं किया जाता ।। वास्तव में मंगलसेन का चरित्र दया का पात्र है जो पाठकों के मानस पटल पर स्वयं ही अंकित हो जाता है ।।

8 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए ।।

उत्तर – – प्रस्तुत कहानी में सामान्य बोलचाल की उर्दू-अंग्रेजी मिश्रित खड़ीबोली का प्रयोग किया गया है मुहावरों का प्रयोग बहुत सुन्दर हुआ है ।। यत्र-तत्र देशज शब्दों के भी प्रयोग हुए हैं ।। भाषा पूर्वाग्रह से मुक्त और लोकपरक है ।। गम्भीर शीर्षक वाली इस कहानी में हास्य एवं व्यंग्य शैली को पात्रों, समय और वातावरण के अनकूल अपनाया गया है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य हैमंगलसेन के बदन में झरझरी हई ।। दिल में ऐसा हलास उठा कि जी चाहा पगड़ी उतारकर बाबूजी के कदमों पर रख दे ।। हुमककर बोला, “चिन्ता न करो जी, मेरे होते यहाँ चिड़ी फड़क जाये तो कहना? डर किस बात का? मैंने लाम देखी है, बाबूजी! बसरे की लड़ाई में कप्तान रस्किन था हमारा ।। कहने लगा, देखो मंगलसेन, हमारी शराब की बोतल लारी में रह गयी है, वह हमें चाहिए ।। उधर मशीनगन चल रह थी ।। मैंने कहा, अभीलो,साहब! और अकेले मैं वहाँ से बोतल निकाल लाया ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भाषा-शैली की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ कहानी है ।।

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा

9 . ‘भीष्म साहनी की कहानी ‘खून का रिश्ता’की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए ।।

उत्तर – – कथावस्तु-कहानी का कथानक संक्षिप्त और प्रवाहपूर्ण है ।। यह लेखक के उद्देश्य को पूर्णतया व्यक्त करता है ।। इसका कोई भी अंश अप्रासंगिक नहीं है ।। कथानक पूर्णतया सुसम्बद्ध और प्रवाहपूर्ण है ।। इसमें तारतम्यता भी बनी रहती है ।। कहानी का प्रारम्भ, विकास एवं अन्त स्वाभाविक रूप से हुआ है ।। सीमित वातावरण में भी पात्रों के बीच मजबूत सम्बन्ध दिखाई देता है ।। परिवार के मुखिया को न्यायोचित निर्णय लेने के लिए विवश होते तथा युवा वर्ग को अपने विचारों को दृढ़तापूर्वक रखने का अवसर दिया गया है ।। इस प्रकार इस कहानी में नव-चेतना और जन-जागृति का आह्वान है ।। परम्परागत मान्य ‘खून के रिश्ते’ किस तरह से धनहीनता और धनसम्पन्नता से प्रभावित होते हैं, इसे भी कहानी में पूर्णतया स्पष्ट कर दिया गया है ।। कहानी का कथानक कहानी से सुसम्बद्ध और प्रभावपूर्ण है, जिससे कहानी में तारतम्यता बनी हुई है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘खून का रिश्ता’ कहानी कथानक की दृष्टि में एक सफल कहानी है ।।

10 . ‘खून का रिश्ता’ कहानी की माँ का चरित्र रिश्तों की विवशता से संचालित है ।। स्पष्ट कीजिए ।।

उत्तर – – ‘खून का रिश्ता’ कहानी में वीरजी की माँ कहानी की प्रमुख स्त्री पात्र है, उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
(i) समझदार नारी- कहानी की मुख्य स्त्री पात्र वीरजी की माँ समझदार नारी है ।। वीरजी के द्वारा केवल अपने पिता के द्वारा सगाई पर वह बेटे को समझाती हुई कहती हैं- “यही मौके खुशी के होते हैं बेटा! कोई पैसे का भूखा नहीं होता ।। अकेले तुम्हारे पिताजी सगाई डलवाने जाएँगे तो समधी भी इसे अपना अपमान समझेंगे ।। ” वीर जी द्वारा चाचा मंगलसेन को सगाई डलवाने के लिए भेजने की जिद पर वह अपने पति को समझाती हुई कहती है “क्या बुरा कहता है! आजकल के लड़के माँ-बाप के हजारों रुपये लुटा देते हैं ।। इसके विचार तो कितने ऊँचे हैं ।। यह तो सवा रुपये में सगाई करना चाहता है ।। तुम मंगलसेन को ही अपने साथ ले जाओ ।। अकेले जाने से तो अच्छा है ।।

(ii) सामाजिक व्यक्तित्व-वीरजी की माँ एक सामाजिक नारी है ।। अपने पति द्वारा मंगलसेन का अपमान सबके सामने करने पर वह उससे कहती हैं- “देखो जी, नौकरों के सामने मंगलसेन की इज्जत-आबरू का कुछ ख्याल रखा करो ।। आखिर तोखून का रिश्ता है ।। कुछ तो मुँह-मुलाहिजा रखना चाहिए ।। दिन भर आपका काम करता है ।। “

(iii) विवश माँ- वीरजी की माँ एक विवश माँ है ।। वह अपने बेटे की सगाई धूमधाम से करना चाहती है ।। परन्तु बेटे की जिद के सामने वह विवश हो जाती है ।। बेटे के कहने पर अगर उसकी बात मंजूर है तो ठीक नहीं तो वह सगाई नहीं करेगा, वह कहती है- “बस-बस, आगे कुछ मत कहना!” माँ ने झट से टोकते हुए कहा ।। फिर क्षुब्ध होकर बोली, “जो तुम्हारे मन में आये करो ।। आजकल कौन किसी की सुनता है! छोटा-सा परिवार और इसमें भी कभी कोई काम ढंग से नहीं हुआ ।। मुझे तो पहले ही मालूम था, तुम अपनी करोगे . . . . . . .”

(iv) सामाजिक प्रतिष्ठा से भयभीत- वीरजी की माँ समाज व समाधियों के बीच अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना चाहती है ।। जब मंगलसेन तैयार होकर आता है तो उनके खराब कपड़े देखकर उनका दिल बैठ जाता है ।। वह अपनी प्रतिष्ठा के लिए मंगलसेन के लिए मनोरमा से धुला पजामा तथा पगड़ी मगाँती है तथा उसका कायाकल्प करती है ।।

(v) प्रफुल्लित नारी- अपने बेटे की सगाई के होने के कारण वीर जी की माँ बहुत खुश होती है ।। वह समधियों के यहाँ से आए समान को देखकर प्रसन्न हो जाती है ।। वह अपने पति से उत्सुकता वश पूछती है कि समधियों ने क्या-क्या सामान दिया है ।।

(vi) संदेही स्त्री- वीरजी की माँ चम्मच गुम हो जाने पर मंगलसेन पर संदेह करती है ।। वह वीर जी के द्वारा मंगलसेन को झिंझोड़ने पर कहती है “तुम बीच में मत पड़ो बेटा! अगर चम्मच खो गया है तो तुम्हारी बला से! सबका धर्म अपनेअपने साथ है ।। एक चम्मच से कोई अमीर नहीं बन जाएगा ।। ” निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि वीरजी की माँ रिश्तों की विवशता में फँसी नारी है जिसने सामाजिक-प्रतिष्ठा के साथ साथ रिश्तों का मान भी रखा है ।

Leave a Comment