Up board solution for class 10 Science chapter 1

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प्रश्न 1. प्रकाश के अपवर्तन को चित्र सहित विस्तार से समझाइए।

उत्तर- प्रकाश का अपवर्तन किसी एक समांग माध्यम में प्रकाश की किरणें सीधी रेखाओं में चलती हैं। परंतु जब प्रकाश की कोई किरण एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाती है तो वह अपने प्रारंभिक मार्ग से विचलित होकर किसी अन्य दिशा में एक सीधी रेखा में चलने लगती है। प्रकाश किरण के एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर, अपने मार्ग से विचलित होने को प्रकाश का ‘अपवर्तन’ कहते है।

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पहले माध्यम में चलने वाली किरण OA को ‘आपतित किरण’ और दूसरे माध्यम में चलने वाली किरण AB को ‘अपवर्तित किरण’ कहते हैं। आपतित किरण सीमा पृष्ठ के जिस बिंदु A पर मिलती है उसे आपतन बिंदु कहते हैं। आपतन बिंदु पर सीमा पृष्ठ के लंबवत् रेखा  को अभिलंब कहते हैं।

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आपतित किरण व अभिलंब के बीच के कोण OAN₁ को ‘आपतन कोण’ कहते हैं तथा अपविर्तत किरण व अभिलंब के बीच के कोण N2AB को ‘अपवर्तन कोण’ कहते हैं।

यदि अपवर्तित किरण, आपतित किरण के N₂ सापेक्ष अभिलंब की ओर झुक जाती है, तो दूसरे माध्यम को पहले माध्यम के सापेक्ष ‘सघन’ कहते हैं। यदि किरण वायु से काँच में जा रही है तथा अपवर्तित किरण अभिलंब की ओर झुकी है। अतः काँच, वायु के सापेक्ष सघन है परंतु यदि अपवर्तित किरण, आपतित किरण के सापेक्ष, अभिलंब से दूर हट जाती है तो दूसरे माध्यम को पहले माध्यम के सापेक्ष ‘विरल’ कहते हैं। यदि किरण काँच से वायु में जा रही है तथा अपवर्तित किरण अभिलंब से दूर हटती है अतः वायु काँच के सापेक्ष विरल है। प्रकाश की चाल सघन माध्यम में विरल माध्यम की अपेक्षा कम होती है

प्रश्न 2. निरपेक्ष अपवर्तनांक तथा सापेक्ष अपवर्तनांक को समझाइए।

उत्तर- निरपेक्ष अपवर्तनांक- जब प्रकाश का अपवर्तन वायु से किसी अन्य माध्यम में होता है तब आपतन कोण की ज्या तथा अपवर्तन कोण की ज्या के अनुपात को उस माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक या केवल अपवर्तनांक कहते है।

माना प्रकाश का किसी किरण के लिए, वायु में आपतन कोण। है तथा किसी अन्य माध्यम में से गुजरने पर अपवर्तन कोण है तो नियतांक sin i /sin r  का मान उस माध्यम का

अपवर्तनांक कहलाता है तथा इसे अक्षर n से प्रदर्शित करते है। अतः

       n=sin I / sin r

सापेक्ष अपवर्तनांक- यदि पहला माध्यम वायु या निर्वात् के स्थान पर अन्य माध्यम हो तो इसे पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का सापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं। इसमें अपवर्तनांक के चिह्न n के दोनों ओर क्रमशः पहले तथा दूसरे माध्यम का संकेत लिखा जाता है। जैसे यदि किरण वायु (a) से काँच (g) में प्रवेश करती हैं तो अपवर्तनांक को aNg  से प्रदर्शित करते हैं तथा वह वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक कहलाता है। अतः

aNg = sin I / sin r

इसी प्रकार यदि किरण वायु से जल के माध्यम में प्रवेश करती हैं तो वायु के सापेक्ष जल के अपवर्तनांक को से प्रदर्शित करते हैं। इसे वायु के सापेक्ष जल का अपवर्तनांक कहा जाएगा।

aNw = sin I / sin r

यदि प्रकाश किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाते समय दोनों माध्यमों के सीमा पृष्ठ पर लंबवत् गिरती है अर्थात् आपतन कोण i = 0 है तब वह दूसरे माध्यम में जाने पर अपने प्रारंभिक मार्ग से बिना विचलित हुए सीधी निकल जाती है अर्थात् अपवर्तन कोण = 0 हैं। इस स्थिति के लिए स्नैल के नियमानुसार

N= sin I / sin r

लंबवत् आपतन के लिए, r = 0 अतः sin 0° = 0 होगा, तब

n sinr=0

प्रश्न 3. प्रकाश किरणों की उत्क्रमणीयता से आप क्या समझते हैं? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर- प्रकाश किरणों की उत्क्रमणीयता माना कि वायु में चलती एक प्रकाश किरण OA एक काँच के गुटके PORS पर गिरती है। यह किरण तल PQ पर अपवर्तित होकर काँच में AB दिशा में चली जाती है। इस प्रकार वायु में आपतित किरण OA है तथा काँच में अपवर्तित किरण AB है। यदि वायु में आपतन कोण। तथा काँच में अपवर्तन कोण हो, तो वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक

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aNw = sin I / sin r

इसके विपरीत, यदि काँच के भीतर प्रकाश किरण BA दिशा में चले तब वह तल PQ पर अपवर्तित होकर वायु में AO दिशा में जाएगी। इस दशा में काँच में आपतन कोण r होगा ।

तथा वायु में अपवर्तन कोण होगा। अतः जब प्रकाश किरण काँच से वायु में जाती है तो काँच के सापेक्ष वायु का अपवर्तनांक

gNa = sin r / sin i …….(ii)

समीकरण (i) व (ii) की तुलना करने पर

gNa x aNg =1

अर्थात् वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक, काँच के सापेक्ष वायु के अपवर्तनांक का व्युत्क्रम होता है। यदि वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक (3/2) है, तो काँच के सापेक्ष वायु का अपवर्तनांक (2/3) होगा।

यदि माध्यम 1 के सापेक्ष माध्यम 2 का अपवर्तनांक 1n2 है, तो माध्यम 2 के सापेक्ष माध्यम 1 का अपवर्तनांक 2n1 होगा। इस प्रकार,

1N2×2N1=1

यदि तीन समांतर माध्यम 1, 2, 3 हैं, तब

1n2×2n3×3n ₁ = 1

उदाहरण – यदि माध्यम 1 वायु है, माध्यम 2 जल है तथा माध्यम 3 काँच है, तब

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प्रश्न 4. क्रांतिक कोण और पूर्ण आंतरिक परावर्तन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर- क्रांतिक कोण और पूर्ण आंतरिक परावर्तन- जब कोई प्रकाश की किरण OA किसी सघन माध्यम से विरल माध्यम (जैसे काँच से वायु) में जाती है, तो इसका एक छोटा भाग AC परावर्तित हो जाता है तथा अधिकांश भाग AB अपरिवर्तित हो जाता है।

अपवर्तित किरण AB अभिलंब से दूर हटती है। इस स्थिति में अपवर्तन कोण (r) आपतन कोण (i) से बड़ा होता है। अब यदि आपतन कोण का मान धीरे-धीरे बढ़ाते जाए, तो अपवर्तन कोण भी बढ़ता जाता है और एक विशेष आपतन कोण के लिए अपवर्तन कोण 90° हो जाता है। इस आपतन कोण को क्रांतिक कोण कहते हैं तथा इसे C’ से प्रदर्शित करते हैं। अतः क्रांतिक कोण C, सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण है, जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° होता है।

पूर्ण आंतरिक परार्वतन- जब कोई प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है और आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक होता है, तो विरल माध्यम में प्रकाश किरण का अपवर्तन नहीं होता, बल्कि संपूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही वापस लौट जाता है, इस प्रकार के परावर्तन को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं; क्योंकि इसमें प्रकाश का अपर्वतन बिल्कुल नहीं होता है तथा संपूर्ण प्रकाश परावर्तित हो जाता है। पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए निम्नलिखित दो नियम हैं- C

(a) प्रकाश का गमन सघन माध्यम से विरल माध्यम में होना चाहिए।

(b) सघन माध्यम में आपतन कोण का मान विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम के क्रांतिक कोण से अधिक होना चाहिए।

प्रश्न 5. पूर्ण आंतरिक परावर्तन के दैनिक जीवन में होने वाले अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- पूर्ण आंतरिक परावर्तन के दैनिक जीवन में अनुप्रयोग-

(i) जल में परखनली का चमकीला दिखना- यदि एक खाली परखनली को जल से भरे बीकर में रखकर टेढ़ा करते जाए तो बीकर के ऊपर से देखने पर एक स्थिति में नली का तल चाँदी की भाँति चमकीला दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि नली को टेढ़ा करने से उस पर गिरने वाले प्रकाश का आपतन कोण बढ़ता जाता है। जब यह कोण काँच वायु के क्रांतिक कोण से बड़ा हो जाता है तो प्रकाश नली के भीतर वायु में नहीं जाता, बल्कि नली की दीवार पर पूर्ण परावर्तित होकर आँख में पहुँचने लगता है और हमें नली चमकदार दिखने लगती है। यदि परखनली में जल भर दें तो नली चमकीली नहीं दिखाई देती क्योंकि काँच जल के लिए क्रांतिक कोण काँच वायु के क्रांतिक कोण से बड़ा होता है। अतः स्थिति में प्रकाश का पूर्ण परावर्तन नहीं हो पाता।

(ii) काँच में पड़ी दरारों का चमकना-

जब खिड़की में लगा काँच चटख जाता है तो उसमें दरारें पड़ जाती हैं जिनमें वायु की पतली परत आ जाती है। ये दरारें देखने पर चमकती दिखाई देती है। इसका कारण यह है कि इन दरारों पर पड़ने वाला टेढ़ा प्रकाश वायु की परत में नहीं जाता, बल्कि काँच वायु के सीमा पृष्ठ से पूर्ण परावर्तित होकर आँख में पहुँच जाता है। इसी प्रकार यदि काँच अथवा जल के भीतर वायु का कोई बुलबुला हो, तो वह भी बहुत चमकीला दिखाई देता है।

iii) कालिख पुते गोले का जल में चमकना यदि एक धातु के गोले पर सूखी कालिख पोतकर जल से भरे बीकर में रखें तो गोले का तल चाँदी की तरह चमकने लगता है। इसका कारण यह है कि कालिख के कारण गोले का तल जल के संपर्क में नहीं आता बल्कि दोनों के बीच वायु की परत रह जाती है। अतः जल वायु के सीमा पृष्ठ पर प्रकाश का पूर्ण परावर्तन होता है जिससे गोले का तल चमकीला दिखाई देने लगता है।

(iv) हीरे की चमक हीरे से वायु में आने वाली किरणे के लिए क्रांतिक कोण बहुत कम, केवल 24° होता है। अतः जब बाहर का प्रकाश किसी तराशे हुए हीरे में प्रवेश करता है तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों पर बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24° से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इस प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में हीरे से बाहर निकलता है। अतः इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखाई देता है।

(v) रेगिस्तान में मरीचिका- कभी-कभी रेगिस्तान में यात्रियों को दूर से पेड़ के साथ-साथ उसका उल्टा प्रतिबिंब भी दिखाई देता है। अतः इन्हें ऐसा भ्रम हो जाता है कि वहाँ कोई जल का तालाब है जिसमें पेड़ का उल्टा प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। परंतु वास्तव में वहाँ तालाब नहीं होता है।

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जब सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान का रेत गर्म होता है तो उसे छूकर पृथ्वी के पास की वायु अधिक गर्म हो जाती है। इससे कुछ ऊपर तक वायु की परतों पर ताप लगातार घटता जाता है। अतः वायु की नीचे वाली परतें अपेक्षाकृत विरल होती हैं। जब पेड़ से प्रकाश किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं तो उन्हें अधिकाधिक विरल परतों से होकर आना पड़ता है।

इसलिए प्रत्येक परत पर अपवर्तित किरण अभिलंब से दूर हटती जाती है। अतः प्रत्येक अगली परत पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष परत पर क्रांतिक कोण से बड़ा हो जाता है। इस परत पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर चलने लगती है। चूँकि ऊपर वाली परतें अधिकाधिक सघन हैं, अतः ऊपर उठती हुई किरण अभिलंब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण यात्री की आँख में प्रवेश करती है तो उसे पृथ्वी के नीचे से आती प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिंब दिखाई देता है।

(vi) ठंड़े देशों में मरीचिका बहुत ठंड़े देशों में समुद्र पर अथवा बर्फ के क्षेत्रों में दूर की वस्तुओं के प्रतिबिंब वायु में उल्टे लटके दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि जल तथा बर्फ में लगी वायु की परतें ठंड़ी होने के कारण सघन हो जाती हैं और ऊपर की परतें विरल होती जाती हैं। अतः समुद्र के जल पर तैरते जहाज से चली किरणें ऊपर की ओर जाते हुए, वायु की परतों पर अपरिवर्तित होकर अभिलंब से दूर हटती जाती हैं और किसी विशेष परत पर पूर्ण परावर्तन के पश्चात् नीचे आने लगती हैं। जब ये किरणें व्यक्ति की आँख में पहुँचती हैं तो उसे जहाज का उल्टा प्रतिबिंब ऊपर वायु में लटका हुआ दिखाई देता है। नीचे की परतें भारी होने के कारण चलायमान नहीं होती, इसलिए यह प्रतिबिंब स्थिर दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 6. प्रिज्म से होने वाले श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण का चित्र सहित वर्णन कीजिए। वर्ण विक्षेपण का कारण भी बताइए।

उत्तर- प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का वर्ण विक्षेपण- सर आइजक न्यूटन ने 1666 ई० में प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विश्लेषण किया और पाया कि सूर्य का प्रकाश अनेक रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। आपने भी वर्षा के पश्चात् आकाश में सूर्य के श्वेत प्रकाश में रंग-बिरंगा इन्द्रधनुष अवश्य देखा होगा। इससे यह पता चलता है कि सूर्य के श्वेत प्रकाश में अनेक रंग उपस्थित होते हैं।

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जब किसी टॉर्च या सूर्य के प्रकाश की संकीर्ण प्रकाश पुंज को प्रिज्म के एक फलक पर

डाला जाता है; तो प्रिज्म के दूसरे फलक से निर्गत प्रकाश सात रंगों में विभाजित हो जाता है तथा इसे पर्दे पर लेने पर सात रंगों की एक पट्टी प्राप्त होती है। प्रकाश का इस प्रकार सात रंगों में विभाजित होना विक्षेपण कहलाता है।

श्वेत प्रकाश के विक्षेपण के दौरान परदे पर प्राप्त विशेष क्रम में विभाजित स्रोत रंगों की पट्टी को स्पेक्ट्रम कहते हैं; जिसका अर्थ-रंगों का मिश्रण।

इन सात रंगों का क्रम-नीचे से ऊपर की ओर होता है। बैंगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल है। इसको आसानी से याद रखने के लिए VIBGYOR को याद रखे जो इन रंगों के अंग्रेजी भाषा के शब्दों के पहले अक्षर से बना है।

प्रकाश के विक्षेपण के द्वारा बैंगनी प्रकाश का अपवर्तन सबसे अधिक व लाल रंग का सबसे कम होता है। अतः यह बैंगनी रंग को स्पैक्ट्रम में सबसे नीचे व लाल को सबसे ऊपर दिखाता है।

कारण- कोई भी पारदर्शी पदार्थ, जैसा कि काँच का अपवर्तनांक प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है। यह बैंगनी रंग के लिए सबसे अधिक तथा लाल रंग के लिए सबसे कम होता है।

जब प्रकाश किरण प्रिज्म में से गुजरती है तो वह अपने प्रारंभिक मार्ग से विचलित होकर प्रिज्म के आधार की ओर झुक जाती है। प्रकाश किरण में उत्पन्न यह विचलन काँच के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। अपवर्तनांक जितना अधिक होगा, प्रकाश किरण का विचलन भी उतना ही अधिक होगा। अतः यदि प्रिज्म में से गुजरने वाली किरण श्वेत प्रकाश की है तब इस प्रकाश में उपस्थित विभिन्न रंगों की किरणों में विचलन भिन्न-भिन्न होगा। काँच का अपवर्तनांक लाल प्रकाश के लिए सबसे कम तथा बैंगनी प्रकाश के लिए सबसे अधिक है। अतः लाल प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे कम झुकती है तथा बैंगनी प्रकाश की किरण सबसे अधिक झुकती है। इस प्रकार श्वेत प्रकाश का प्रिज्म में से गुजरने पर वर्ण विक्षेपण हो जाता है।

प्रश्न 7. प्रिज्म द्वारा प्रकाश के अपवर्तन व विचलन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- प्रिज्म किसी संमागी पारदर्शी माध्यम का वह भाग जो किसी कोण पर झुके हुए दो समतल पृष्ठों के बीच स्थित होता है, प्रिज्म कहलाता है। प्रिज्म के जिन पृष्ठों से प्रकाश का अपवर्तन होता है, उन पृष्ठों को अपवर्तक पृष्ठ तथा इनके बीच के कोण को अपवर्तक कोण अथवा प्रिज्म कोण कहते हैं। दोनों पृष्ठों को मिलाने वाली कोर को अपवर्तक कोर कहते हैं। अपवर्तक कोर के सामने वाले पृष्ठ को प्रिज्म का आधार कहते हैं।

प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन एवं विचलन- माना PQR काँच के एक प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद है। माना कोण PRO अपवर्तक कोण है। आपतित किरण BC, प्रिज्म के पृष्ठ PR के बिंदु C पर आपतित होती है। इस पृष्ठ पर अपवर्तन के पश्चात् यह प्रकाश किरण बिंदु C पर खींचे गए अभिलंब की ओर झुककर CD दिशा में चली जाती है। प्रकाश किरण CD दूसरे अपवर्तक पृष्ठ QR के बिंदु D पर आपतित होती है और अपवर्तन के पश्चात् बिंदु D पर खींचे गए अभिलंब से दूर हटकर DE दिशा में जाती है। अतः प्रिज्म BC दिशा में आने वाली किरण DE दिशा में विचलित कर देता है। इस प्रकार प्रिज्म प्रकाश की दिशा में कोणीय विचलन उत्पन्न कर देता है। आपतित किरण BC को आगे तथा निर्गत किरण DE को पीछे बढ़ाने पर ये एक-दूसरे को बिंदु G पर काटती हैं। इन दोनों के बीच बना कोण FGD विचलन कोण कहलाता है। इसे δ से प्रदर्शित करते हैं। विचलन कोण का मान प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक एवं आपतित किरण के आपतन कोण पर निर्भर करता है। यदि प्रिज्म पर गिरने वाली किरण के आपतन कोण को बढ़ाते जाए, तो विचलन कोण 8 का मान घटता जाता है और विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम हो जाता है। इस न्यूनतम विचलन कोण को अल्पतम विचलन कोण कहते हैं। यदि किसी प्रिज्म का कोण A तथा किसी रंग की किरण के लिए अल्पतम विचलन कोण δ है, तो उस रंग के लिए,

प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक (n) =

पतले प्रिज्म से उत्पन्न विचलन का व्यंजक δ = (η-1)Α

प्रश्न 8. प्रकाश के प्रकीर्णन को उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर- प्रकाश का प्रकीर्णन- जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें अति सूक्ष्म आकार के कण विद्यमान हों, तो इन कणों के द्वारा प्रकाश का कुछ भाग सभी दिशाओं में फैल जाता है। इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।

उदाहरण-

(i) खतरे का सिग्नल लाल होना इसका कारण यह कि लाल रंग का प्रकीर्णन बहुत कम होता है। इसी कारण लाल सिग्नल बहुत दूर से दिखाई दे जाता है। यही कारण है कि रेलगाड़ी को रोकने की झंड़ी, क्रिकेट की गेंद तथा अस्पताल की गाड़ी पर क्रॉस का चिह्न लाल रंग के होते हैं।

(ii) सूर्योदय एवं सूर्यस्त के समय सूर्य का लाल दिखाई देना- प्रातःकाल या सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग गहरा पीला, नारंगी तथा लाल दिखाई देना भी प्रकाश के प्रकीर्णन का प्रभाव है। सूर्योदय या सूर्यास्त के समय जब सूर्य पृथ्वी के क्षितिज पर होता है, सूर्य से आने वाले प्रकाश को वायुमंडल में अधिक मार्ग तक करना पड़ता है, जिसके कारण सूर्य का प्रकाश बैंगनी, नीले, हरे रंगों का लगभग संपूर्ण अंश, प्रकीर्णित होकर आकाश में बिखर जाता है तथा अवशेष पीले, नारंगी तथा लाल का अंश ही पृथ्वी पर हमारे नेत्रों तक सीधा पहुँच पाता है। इसी कारण सूर्यादय या सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग पीला, नारंगी व लाल दिखाई देता है।

(iii) आकाश का रंग नीला दिखाई देना सूर्य के प्रकाश की किरणें जब वायुमंडल से होकर गुजरती हैं, तो मार्ग में आने वाले वायु के अणुओं, धूल कणों व अन्य पदार्थों के सूक्ष्म कणों द्वारा इसका प्रकीर्णन होता है। बैंगनी एवं नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन लाल रंग के प्रकाश की अपेक्षा 16 गुना अधिक होता है। अतः बैंगनी एवं नीला प्रकाश चारों ओर फैल जाता है। यह फैला हुआ प्रकाश हमारी आँखों में पहुँचता है, जिसके कारण हमें आकाश नीला दिखाई देता है। यदि वायुमंडल न हो, तो सूर्य के प्रकाश के मार्ग में प्रकीर्णन नहीं होता है, जिसके कारण हमें आकाश काला दिखाई देता है। यही कारण है कि चंद्रमा के तल से देखने पर आकाश काला दिखाई देता है।

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