Up board social science class 10 chapter 20 केंद्रीय मंत्रिपरिषद्- गठन एवं कार्य
पाठ --- 20 केंद्रीय मंत्रिपरिषद्- गठन एवं कार्य
लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न —-1. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् के दो विधायी कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उ०- केंद्रीय मंत्रिपरिषद के दो विधायी कार्य निम्नलिखित हैं
(i) संसद में विधेयक प्रस्तुत कर उन्हें पारित करवाना।
(ii) कानून निर्माण के क्षेत्र में संसद का नेतृत्व करना।
प्रश्न —-2. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् के सामूहिक उत्तरदायित्व का क्या अर्थ है?
उ०- सामूहिक उत्तरदायित्व- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् के सभी सदस्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। एक मंत्री के कार्यों, भूलों तथा त्रुटियों के लिए समूची मंत्रिपरिषद् उत्तरदायी होती है, जिसे सामूहिक उत्तरदायित्व कहा जाता है। किसी एक मंत्री की लोकसभा में पराजय हो जाने पर पूरी मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है। इस संदर्भ में लार्ड मॉर्ले का यह कथन विशेष रूप से उल्लेखनीय बन जाता है, “मंत्रिपरिषद् के सदस्य एक ही साथ तैरते हैं और एक ही साथ डूबते हैं।” मंत्रिमंडल की बैठकें होती रहती हैं, जबकि मंत्रिपरिषद् की बैठक आवश्यकता पड़ने पर ही बुलाई जाती है। समस्त बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करता है।
प्रश्न —-3. प्रधानमंत्री की दो महत्वपूर्ण शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उ०- प्रधानमंत्री की दो महत्वपूर्ण शक्तियाँ निम्नलिखित हैं(i) केंद्रीय शासन का निर्देशक- प्रधानमंत्री केंद्रीय प्रशासन का प्रधान होता है। उसी के निर्देशन में राष्ट्र का शासन संचालित किया जाता है।
(ii) मंत्रालयों का विभाजन- प्रधानमंत्री सदस्यों की वरिष्ठता तथा योग्यतानुसार उन्हें मंत्रालय सौंपता है। प्रधानमंत्री जब चाहें मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर सकता है या उन्हें मंत्रिपरिषद् से हटा भी सकता है।
प्रश्न —-4. मंत्रिपरिषद् की तीन प्रमुख शक्तियाँ क्या हैं?
उ०- मंत्रिपरिषद की तीन प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं(i) विधायी शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् अपनी विधायी शक्तियों के अनुसार संसद में विधेयक प्रस्तुत कर उन्हें पारित करवाती है तथा कानून निर्माण में संसद का नेतृत्व करती है
(ii) वित्तीय शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की महत्वपूर्ण इकाई मंत्रिमंडल की ओर से वित्तमंत्री तथा रेलमंत्री अपने-अपने वार्षिक बजट बनाकर प्रस्तुत करते है तथा उन्हें पारित करते हैं।
(iii) नीति निर्धारण करना- केंद्रीय मंत्रिमंडल गृह तथा विदेश नीति का निर्धारण करता है।
प्रश्न —-5. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् और लोकसभा के संबंधों का वर्णन कीजिए।
उ०- भारतीय संविधान के अनुसार मंत्रिपरिषद् तथा लोकसभा परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। लोकसभा प्रश्नों, पूरक प्रश्नों, काम रोका, स्थगन तथा निंदा प्रस्तावों द्वारा मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण रखती है तथा अविश्वास प्रस्ताव, विधेयक की अस्वीकृति किसी मंत्री के प्रति अविश्वास आदि आधारों पर मंत्रिपरिषद् को पदच्युत कर सकती है। मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है।
- खंडित जनादेश और त्रिशंकु लोकसभा से आपका क्या आशय है?
उ०- आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने को खंडित जनादेश कहते हैं। खंडित जनादेश की स्थिति में अन्य सहयोगी दलों के सहयोग से गठित लोकसभा को त्रिशंकु लोकसभा कहते हैं।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न–Up board social science class 10 chapter 20 केंद्रीय मंत्रिपरिषद्- गठन एवं कार्य
प्रश्न– 1 प्रधानमंत्री की नियुक्ति कैसे होती है? उसके महत्वपूर्ण कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर—-प्रधानमंत्री की नियुक्ति- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है लेकिन वह लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही प्रधानमंत्री बनाने के लिए आमंत्रित करता है। कभी-कभी जब लोकसभा में किसी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है, तो राष्ट्रपति संयकुत दलों के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त कर, उसे लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने को कहता हैं। प्रधानमंत्री के कर्तव्य और अधिकार या शक्तियाँ- भारतीय संविधान ने प्रधानमंत्री को शक्ति संपन्न बना दिया है। वह मंत्रिपरिषद् के निर्माण से लेकर संसद के नेतृत्व और प्रशासनिक गतिविधियों की धुरी है। उसके अधिकार तथा कार्य निम्नलिखित हैं(i) मंत्रिपरिषद् का निर्माता- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का निर्माण करता है। मंत्रिपरिषद् के आकार तथा सदस्य संख्या के निर्धारण में वह एकाधिकारी है। (ii) मंत्रालयों का विभाजन- प्रधानमंत्री सदस्यों की वरिष्ठता तथा योग्यतानुसार उन्हें मंत्रालय सौंपता है। प्रधानमंत्री जब
चाहे मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर सकता है या उन्हें मंत्रिपरिषद् से हटा भी सकता है।
(iii) बैठकों की अध्यक्षता- प्रधानमंत्री कैबिनेट का अध्यक्ष होता है तथा मंत्रिमंडल की सभी बैठकों की अध्यक्षता करके, उन्हें संचालित करता है। उसकी अनुपस्थिति में आवश्यकता पड़ने पर यह कार्य उपप्रधानमंत्री (यदि है) अथवा वरिष्ठ मंत्री करता है।
(iv) केंद्रीय शासन का निर्देशक- प्रधानमंत्री केंद्रीय प्रशासन का प्रधान होता है। उसी के निर्देशन में राष्ट्र का शासन संचालित किया जाता है ।
(v) मंत्रालयों का समन्वयक- प्रधानमंत्री विभिन्न मंत्रालयों के बीच ताल-मेल बैठाकर विकास और प्रगति के कार्यों को गति प्रदान करने के लिए विविध मंत्रालयों में आपसी समन्वय बनाए रखता है।
(vi) लोकसभा का नेतृत्व- प्रधानमंत्री लोकसभा का नेतृत्व करता है। वह सत्र की कार्यवाही को सुचारु रूप से संचालित कराने में स्पीकर का सहयोग करता है। लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत करवाने से लेकर सत्तारूढ़ दल की समस्त गतिविधियों का संचालन उसी के नेतृत्व में होता है ।
(vii) महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ- प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में मंत्रिमंडल में विचार करके राष्ट्रपति से उन्हें संपन्न करवाता है।
(viii) मंत्रिपरिषद् और राष्ट्रपति के मध्य का सेतु- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् और राष्ट्रपति को परस्पर जोड़ने वाला सेतु है। वह मंत्रिपरिषद् के निर्णयों, परामर्शों और विचारों को राष्ट्रपति तक पहुँचाता है। मंत्रिमंडल की बैठकों में लिए गए नीति संबंधी महत्वपूर्ण निर्णयों से वह राष्ट्रपति को अवगत कराता है।
(ix) उपाधियाँ प्रदान करवाना- प्रधानमंत्री उल्लेखनीय तथा महत्वपूर्ण कार्य करने वाले भारतीय नागरिकों को भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री आदि महत्वपूर्ण उपाधि प्रदान कराने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश करता है।
(x) राष्ट्र का प्रतिनिधित्व- भारत का प्रधानमंत्री अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और गोष्ठियों में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। वह देश और सरकार के प्रधान वक्ता के रूप में भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 2. केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उ०- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की रचना (गठन)- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का मुखिया प्रधानमंत्री होता है, जो राष्ट्रपति से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करवाकर केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की रचना करता है। इसकी रचना की प्रक्रिया को निम्नवत् समझा जा सकता है
प्रधानमंत्री की नियुक्ति- प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। वह प्रधानमंत्री की नियुक्ति में निम्नलिखित प्रावधानों का अनुपालन करता है
(i) राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
(ii) खंडित जनादेश या त्रिशंकु लोकसभा होने की स्थिति में, वह संयुक्त गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है, जिसे वह एक निश्चित समय में लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए कहता है।
मंत्रियों का चयन– मंत्रिपरिषद् में कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री तथा उपमंत्री के रूप में तीन श्रेणियों के मंत्री होते हैं, जिनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति करता है। मंत्रियों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री अपने विश्वासपात्र, वरिष्ठ तथा योग्य सदस्यों को वरीयता देता है। संविदा सरकार में प्रत्येक दल को उचित प्रतिनिधित्व देना पड़ता है। मंत्रिपरिषद् में सभी समुदायों, भौगोलिक क्षेत्रों, अल्पसंख्यक वर्गों तथा महिलाओं को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जाता है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का सदस्य लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति मंत्री बन गया है और वह दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य नहीं हैं तब उस पर यह प्रतिबंध होगा कि उसे 6 माह के भीतर किसी भी सदन का सदस्य बनना अनिवार्य होगा। यदि वह इस अवधि में किसी भी सदन की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाता है तो उसे अपना पद त्यागना होता है।
कैबिनेट, राज्यमंत्री तथा उपमंत्रियों के समूह को मंत्रिपरिषद् कहा जाता है, जबकि मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के समूह को कहा जाता है। सरकार के समस्त निर्णय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ही लेता है। अतः मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद का महत्वपूर्ण अंग होता है। इसलिए मंत्रिपरिषद् का प्रत्येक सदस्य कैबिनेट मंत्री ही बनना चाहता है। मंत्रिपरिषद् में मंत्रियों की संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% तक अधिकतम हो सकती है। मंत्रिपरिषद् का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। केंद्रीय मंत्रिपरिषद् तभी तक कार्य करती है, जब तक उसका लोकसभा में बहुमत रहता है और जब तक उसके सदस्यों पर प्रधानमंत्री का विश्वास बना रहता है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद् संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। मंत्रिपरिषद् के सदस्यों में उनके विभागों का बँटवारा प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के सहयोग से करता है। वह एक ही मंत्री को एक से अधिक विभाग भी सौंप सकता है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद् के कार्य और शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की सबसे महत्वपूर्ण इकाई मंत्रिमंडल है। इसकी कार्यवाही को सुचारु रूप से संचालित कराने के लिए मंत्रिमंडलीय सचिवालय है। मंत्रिमंडल के कार्य और शक्तियाँ निम्नलिखित हैं
(i) विधायी कार्य एवं शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् अपनी विधायी शक्तियों के अनुसार निम्नलिखित कार्य करती है
(क) संसद में विधेयक प्रस्तुत कर उन्हें पारित करवाना। (ख) कानून निर्माण के क्षेत्र में संसद का नेतृत्व करना। (ग) संसद में विधेयक प्रस्तुत करने का क्रम तथा समय निश्चित करना।
(घ) आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति से अध्यादेश जारी करवाना।
(ii) नीति निर्धारण करना- केंद्रीय मंत्रिमंडल गृह तथा विदेश की नीति का निर्धारण करता है।
(iii) वित्तीय शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से वित्तमंत्री तथा रेलमंत्री अपने-अपने वार्षिक बजट बनवाकर प्रस्तुत करते हैं तथा उन्हें पारित करवाते हैं।
(iv) नियुक्तियों का अधिकार- केंद्रीय मंत्रिमंडल राज्यों के राज्यपालों, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के
न्यायाधीशों, तीनों सेनाओं के सेनापतियों एवं ऍटार्नी जनरल, राजदूतों आदि की महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ राष्ट्रपति से
करवाता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से ये नियुक्तियाँ मंत्रिमंडल द्वारा ही की जाती हैं।
(v) संकटकालीन घोषणा संबंधी शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करता
(vi) युद्ध और संधि की घोषणा संबंधी शक्तियाँ- आवश्यकता पड़ने पर परिस्थितियों के अनुरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल ही राष्ट्रपति को युद्ध, संधि तथा शांति की घोषणा की सलाह देता है।
(vii) संविधान संशोधन संबंधी शक्तियाँ- संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल ही संसद में प्रस्तुत करता है ।
(viii) प्रशासन के विभागों का नेतृत्व करने की शक्तियाँ- राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ही कार्यों का संचालन करवाता है। वह प्रशासन के विभिन्न विभागों का नेतृत्व और मार्गदर्शन करता है ।
(ix) विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय की शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिमंडल ही विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल बैठाकर प्रशासन को निर्बाध रूप से चलाता है।
(x) उपाधियों के लिए सिफारिश करने की शक्तियाँ- केंद्रीय मंत्रिमंडल भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण तथा
पद्मश्री आदि उपाधियाँ उचित व्यक्तियों को प्रदान कराने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश करता है।
प्रश्न— 3. भारत के प्रधानमंत्री की शक्तियों और कार्यों का परीक्षण कीजिए।
उ०- राष्ट्र के प्रशासन में प्रधानमंत्री की भूमिका- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का रचियता, पार्टी का नेता और प्रशासन का सर्वेसर्वा
होता है। संसदीय शासन प्रणाली में व्यवहारिक रूप से मंत्रिपरिषद् ही कार्यपालिका की प्रधान होती है और मंत्रिपरिषद् का प्रधानमंत्री ही होता है। वह प्रशासन का प्रधान स्रोत और संचालक होता है। राष्ट्रपति केवल संवैधानिक प्रधान होता है, जबकि प्रशासन के समस्त सूत्र प्रधानमंत्री के हाथों में निहित होते हैं।
प्रधानमंत्री के कार्यों और उसकी शक्ति से स्पष्ट है कि भारत के प्रशासन में प्रधानमंत्री की स्थिति वहीं है, जो इंग्लैंड के शासन में प्रधानमंत्री की है। वह शासन-चक्र की धुरी के समान है। वह कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका का नेतृत्व करता है किन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि प्रधानमंत्री की स्थिति और शक्ति उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती है। यदि कोई साधारण प्रतिभा का व्यक्ति इस पद पर आसीन हो जाए तो उसका प्रभाव कम होगा, किन्तु पं0 जवाहरलाल नेहरू की भंति इस पद पर यदि कोई असाधारण प्रतिभा का व्यक्ति आसीन हो जाए तो उसका प्रभाव निश्चय ही सर्वव्यापी होगा। प्रधानमंत्री की स्थिति कभी भी एक तानाशाह के समान नहीं हो सकती क्योंकि वह बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। यदि वह तानाशाह होने का प्रयत्न करेगा तो उसका दल किसी अन्य व्यक्ति को अपना नेता चुन लेगा। वह अपने साथियों , दल व जनमत की उपेक्षा नहीं कर सकता है। उसकी शक्ति सभी के साथ मिलकर कार्य करने से ही कायम रह सकती है।
फिर भी प्रो० लास्की का यह कथन सत्य है- “प्रधानमंत्री के पद का वही महत्व है जो इस पद पर आसीन व्यक्ति इसे प्रदान करना चाहता है।” भारतीय प्रशासन में प्रधानमंत्री की स्थिति वही है जो ब्रिटिश प्रशासन में प्रधानमंत्री की है। डॉ० जेनिंग्स ने कहा है”प्रधानमंत्री केवल समान श्रेणी वालों में प्रथम नहीं है और न वह सितारों के बीच चंद्रमा की तरह है, जैसा कि हरकोर्ट कहता है, वह तो सूर्य के समान है जिसके चारों ओर ग्रह घूमते हैं।” जितनी भी उक्तियाँ ब्रिटिश प्रधानमंत्री के लिए कही गईं हैं, वे सभी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए भी पूर्णतया उपयुक्त हैं क्योंकि दोनों ही देशों में संसदात्मक सरकारें हैं। एक अर्थ में तो भारतीय प्रधानमंत्री ब्रिटिश प्रधानमंत्री से भी अधिक शक्तिशाली है क्योंकि भारत में ब्रिटेन की भांति कोई सुसंगठित विरोधी राजनीतिक दल नहीं है। प्रो० के०टी० शाह ने संविधान सभा में कहा था- “प्रधानमंत्री की शक्तियों को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि यदि वह चाहे तो किसी भी समय देश का तानाशाह बन सकता है।”
प्रश्न—। 4. भारतीय प्रधानमंत्री के संसद और राष्ट्रपति से संबंधों का वर्णन कीजिए।
उ०- प्रधानमंत्री के संसद से संबंध- प्रधानमंत्री और संसद के परस्पर गहरे संबंध हैं। इनके संबंधों को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
(i) प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है। अत: संसद को व्यवस्थित ढंग से चलवाने का कार्य वहीं करता है। (ii) वह संसद में मंत्रियों द्वारा विधेयक प्रस्तुत करवाता है तथा उन्हें पारित करवाने में सहायक बनता है। (iii) प्रधानमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
(iv) प्रधानमंत्री तथा उसकी मंत्रिपरिषद् तब तक ही कार्य करती है, जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त रहता है।
(v) प्रधानमंत्री संसद और मंत्रिपरिषद् के बीच की कड़ी का कार्य करता है।
(vi) प्रधानमंत्री लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है।
(vii) प्रधानमंत्री संसद के रुख को देखकर ही नीतियों का निर्धारण करता है।
प्रधानमंत्री के राष्ट्रपति से संबंध- प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति में निम्नलिखित संबंध पाए जाते हैं
(i) राष्ट्रपति राष्ट्र का संवैधानिक प्रधान, जबकि प्रधानमंत्री कार्यपालिका का प्रधान होता है।
(ii) प्रधानमंत्री के पराम) को मानकर की राष्ट्रपति अपने कार्यों का संपादन करता है ।
(iii) प्रधानमंत्री के निर्णयों पर राष्ट्रपति अपनी मोहर लगाने के लिए विवश है।
(iv) प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् के निर्णयों को राष्ट्रपति तक पहुँचाकर तथा राष्ट्रपति के विचारों को मंत्रिपरिषद् तक पहुँचाकर, एक कड़ी बन जाता है।
(v) राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है, जबकि प्रधानमंत्री संविधान की उपेक्षा करने पर राष्ट्रपति को, संसद में महाभियोग पारित करवाकर पद से हटवा सकता है।
(vi) राष्ट्रपति अपने व्यक्तिगत प्रभाव तथा कुशाग्र नीतियों से प्रधानमंत्री को प्रभावित कर सकता है, परंतु उसे निर्णय बदलने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
प्रश्न—-केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।
उ०- उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या- के उत्तर का अवलोकन कीजिए।
प्रश्न—राष्ट्र के प्रशासन में प्रधानमंत्री की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उ०- राष्ट्र के प्रशासन में प्रधानमंत्री की भूमिका निम्नलिखित है
(i) मंत्रिपरिषद् का निर्माता- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है। फिर प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों की नियुक्ति तथा उनके विभागों का वितरण करता है। प्रधानमंत्री किसी भी मंत्री के विभाग में फेर-बदल कर सकता है ।
(ii) मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष- प्रधानमंत्री केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष तथा नेता होता है। वह मंत्रिपरिषद् की बैठकों में अध्यक्षता तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करता है। मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं। मंत्रिपश्रिशद यदि देश की नौका है तो प्रधानमंत्री उसका नाविक है। यदि किसी मंत्री में प्रधानमंत्री का विश्वास नहीं रहता है तो वह ऐसे मंत्री का त्यागपत्र देने के लिए बाध्य कार सकता है अन्यथा उसे राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद् से हटवा सकता है।
(iii) कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान- राष्ट्रपति देश की कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री में निहित होती है। अतः अप्रत्यक्ष रूप से देश का मुख्य शासक प्रधानमंत्री होता है।
(iv) शासन का प्रमुख प्रबन्धक- देश की शासन-व्यवस्था को विभिन्न विभागों तथा मंत्रालयों में बांटना, मंत्रियों में विभागों का वितरण करना, मंत्रालयों की नीतियाँ तय करना तथा उनमें समय-समय पर अपेक्षित परिवर्तन करना आदि कार्य प्रधानमंत्री की इच्छा तथा निर्देश पर निर्भर होते हैं। इस प्रकार प्रधानमंत्री ही देश के शासन का प्रमुख प्रबंधक होता है।
(v) लोकसभा का नेता- लोकसभा में बहुमत दल का नेता होने के नाते वह लोकसभा का अधिवेशन बुलाने, कार्यक्रम निश्चित करने तथा सत्र स्थगित करने का निर्णय लेता है। वह लोकसभा में अपने मत्रिमंडल का नेतृत्व करता है तथा शासन संबंधी नीतियों की घोषण करता है। वह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का भी परामर्श दे सकता है ।
(vi) राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति एवं संसद के बीच की कड़ी- प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद् के बीच की कड़ी का कार्य करता है। वह मंत्रिमंडल की नीतियों, निर्णयों आदि की जानकारी राष्ट्रपति को देता है तथा राष्ट्रपति के निर्णयों से वह मंत्रियों को अवगत कराता है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा संसद के बीच भी कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह राष्ट्रपति को संसद की कार्यवाही से अवगत कराता है तथा राष्ट्रपति के सुझावों को संसद तक पहुँचाता है ।
(vii) नियुक्तियाँ संबंधी अधिकार- राष्ट्रपति के द्वारा मंत्रियों, राज्यपालों, न्यायधीशों, राजदूतों, विभिन्न आयोगों, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य आदि की नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री के परामर्श पर की जाती हैं।
(viii) देश का प्रतिनिधित्व- प्रधानमंत्री अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मंत्रीपरिषद् रूपी वृत्त-खंड की आधारशिला है। प्रधानमंत्री की तुलना सूर्य से की जा सकता है। जिसके चारों ओर ग्रह चक्कर लगाते है। रेम्जेम्योर के शब्दों में, “मंत्रिमंडल राज्यरूपी जहाज का यंत्र है और प्रधानमंत्री उस यंत्र का चालक है।” उपयुक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि राष्ट्र के प्रशासन में प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का रचयिता, पार्टी का नेता और प्रशासन का सर्वेसर्वा होता है।
संसदीय शासन प्रणाली में व्यवहारिक रूप से मंत्रिपरिषद् ही कार्यपालिका की प्रधान होती है और मंत्रिपरिषद् का प्रधान प्रधानमंत्री ही होता है। वह प्रशासन का प्रधान स्रोत और संचालक होता है। राष्ट्रपति केवल संवैधानिक प्रधान होता है, जबकि प्रशासन के समस्त सूत्र प्रधानमंत्री के हाथों में निहित होते हैं। डॉ० भीमराव अंबेडकर ने प्रधानमंत्री के महत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया है, “प्रधानमंत्री वास्तव में मंत्रिमंडल रूपी भवन के वृत्तखंड की आधारशिला होता है।” प्रधानमंत्री की प्रतिभा तथा कार्यकुशलता पर ही समूचे राष्ट्र की प्रगति निर्भर करती है।
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