UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
पाठ 2 धर्म-सुधार आंदोलन
1—सुधार आंदोलन से क्या तात्पर्य है? धर्म-सुधार आंदोलनों के लिए उत्तरदायी दो कारण लिखिए।
उ०- धर्म-सुधार आंदोलन सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में शासन अशक्त था, धर्म का स्वरूप धुंधला पड़ गया था तथा धर्म और
सत्ता दोनों पर पोप और चर्च का अधिकार हो चुका था। “चर्च और पोप के अत्याचारों और अन्यायों के विरुद्ध धर्म-सुधार की जो धारा प्रवाहित हुई, उसे यूरोप में धर्म-सुधार आंदोलन कहा गया।” यूरोप में धर्म और सत्ता पर कुंडली मारकर बैठे पादरियों ने भ्रष्ट तरीकों से धन कमाकर विलासिता और अनैतकिता की राह पकड़ ली। अत: वहाँ का जनसामान्य धर्म की दलदल और राज-सत्ता के पंजों में फँसकर कराह रहा था। ऐसे घोर दु:ख के काल में धर्म सुधारक उन्हें त्राणकर्ता दिखाई पड़े। “यूरोप में धर्म का यही सुधारवादी आंदोलन धर्म-सुधार आंदोलन के नाम से इतिहास के पृष्ठों में अंकित हो गया।” धर्म-सुधार आंदोलन के लिए उत्तरदायी दो कारण निम्न प्रकार हैं
(i) चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार
(ii) पोप की स्वेच्छाचारिता UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
2—कोलंबस और वास्कोडिगामा कौन थे? उनके एक-एक कार्य पर प्रकाश डालिए।
उ०- कोलंबस- कोलंबस जेनोआ का एक साहसी नाविक था, जिसने उत्तरी अमेरिका की खोज की।
वास्कोडिगामा- वास्कोडिगामा पुर्तगाल का साहसी नागरिक था, जिसने समुद्री मार्ग से सन् 1498 ई में भारत की खोज की।
3—-भौगोलिक खोज यात्राओं के लिए उत्तरदायी दो कारण लिखिए।
उ०- भौगोलिक खोज यात्राओं के लिए उत्तरदायी दो कारण निम्नलिखित हैं
(i) जिज्ञासा- मनुष्य नए स्थानों को जानने तथा उनका परिचय प्राप्त करने की प्राकृतिक जिज्ञासा रखता ह। इसी जिज्ञासा
से भौगोलिक खोज-यात्राओं का श्रीगणेश हुआ।
(ii) कुतुबनुमा का आविष्कार- मार्को पोला ने कुतबनुमा दिशासूचक यंत्र का आविष्कार किया। जिसने दिशाओं का ज्ञान
कराकर समुद्री यात्राओं को निर्विध बना दिया, अतः नाविक खोज यात्रा पर निकल पड़े।
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4—–भौगोलिक खोज-यात्राओं के दो प्रभाव लिखिए।
उ०- भौगोलिक खोज-यात्राओं के दो प्रभाव निम्नलिखित हैं
(i) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने अनेक नए-नए देशों और क्षेत्रों को समूचे विश्व से परिचित करा दिया।
(ii) भौगोलिक खोज-यात्राओं के परिणामस्वरूप यूरोप में नवीन सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ।
5—–भौगोलिक खोज-यात्राओं ने व्यापार तथा साम्राज्य विस्तार के क्षेत्र में क्या योगदान दिया? उ०- भौगोलिक खोज-यात्राओं ने व्यापार को कई गुना बढ़ाकर धन कमाने का रास्ता दिखाया तथा यूरोपीय शक्तियों को साम्राज्य
बढ़ाने तथा उपनिवेश स्थापित करने का अवसर प्रदान किया।
6— मार्टिन लूथर कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध था ?
उ०- मार्टिन लूथर जर्मन के भिक्षु, धर्मशास्त्री, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, पादरी एवं चर्च-सुधारक थे। वे पोप और चर्च के विरूद्ध प्रोटेस्ट आंदोलन चलाने के लिए प्रसिद्ध हैं। यह आंदोलन ऐसा धर्म सुधारवादी आंदोलन था, जिसे यूरोप की जनता का भरपूर सहयोग मिला।
* विस्तृत उत्तरीय प्रश्न- UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
1. धर्म-सुधार आंदोलन क्या था? इसे चलाने का श्रेय किसे है? इस आंदोलन के लिए उत्तरदायी चार कारण लिखिए।
उ०- धर्म-सुधार आंदोलन सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में शासन अशक्त था, धर्म का स्वरूप धुंधला पड़ गया था तथा धर्म और सत्ता दोनों पर पोप और चर्च का अधिकार हो चुका था। “चर्च और पोप के अत्याचारों और अन्यायों के विरुद्ध धर्म-सुधार की जो धारा प्रवाहित हुई, उसे यूरोप में धर्म-सुधार आंदोलन कहा गया।” यूरोप में धर्म और सत्ता पर कुंडली मारकर बैठे पादरियों ने भ्रष्ट तरीकों से धन कमाकर विलासिता और अनैतकिता की राह पकड़ ली। अत: वहाँ का जनसामान्य धर्म की दलदल और राज-सत्ता के पंजों में फँसकर कराह रहा था। ऐसे घोर दु:ख के काल में धर्म सुधारक उन्हें त्राणकर्ता दिखाई पड़े। =UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
“यूरोप में धर्म का यही सुधारवादी आंदोलन धर्म – सु धार आंदोलन के नाम से इतिहास के पृष्ठों में अंकित हो गया।” सोलहवीं शताब्दी में धर्म, दर्शन और आस्था के क्षेत्र में छाई अज्ञानता और अनैतिकता की धुंध को हटाने के लिए जो क्रांतिकारी प्रयास किए गए, उन्हें धर्म-सुधार आंदोलन कहकर संबोधित किया गया। “यह वह संकटकाल था, जब चर्च और पोप के विरुद्ध आवाज उठाने मात्र पर ही व्यक्ति को जीवित जलाकर मार दिया जाता था।” ऐसे ही घने अंधकार के समय जर्मनी के मार्टिन लूथर नामक पादरी ने क्रांति की चिंगारी बनकर धर्म-सुधार का झंडा उठाया। उसने डटकर पोप और चर्च के विरुद्ध प्रोटेस्ट (संघर्ष) किया, अतः उसका आंदोलन प्रोटेस्टेंट आंदोलन बन गया। यह एक ऐसा धर्म सुधारवादी आंदोलन था, जिसे यूरोप की जनता का भरपूर सहयोग मिला। अतः यूरोप में धर्म के क्षेत्र में व्याप्त अनैतिकता, अन्याय और शोषण की बदली छंट गई और वहाँ प्रोटेस्टेंट नामक नए धर्म का सूरज उदित हुआ। मार्टिन लूथर के जिस महान कार्य ने उसे प्रसिद्ध कर दिया, उस नए धर्म की विधिवत् घोषणा 1530 ई० में की गई।
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इस प्रकार यूरोप की धर्मप्रिय जनता को कैथोलिक धर्म से मुक्ति मिल गई। धर्म-सुधार आंदोलन पर प्रसिद्ध विचारक फिशर ने अपनी लेखनी से इन विचारों को प्रकट किया, “16 वीं शताब्दी की उस धार्मिक क्रांति को धर्म-सुधार आंदोलन कहा जाता है, जिसके फलस्वरूप यूरोप के अनेक देशों ने कैथोलिक चर्च से अपना संबंध समाप्त कर लिया था।” इस आंदोलन ने ईसाइयों में जहाँ नैतिकता का बीजारोपण किया, वहीं पोप की सत्ता और चर्च के अन्यायों पर नियंत्रण लगा दिया। मार्टिन लूथर के बाद फ्रांस के जॉन काल्विन ने इस आंदोलन को सक्रियता प्रदान की। धर्म-सुधार आंदोलन के उदय- धर्म-सुधार आंदोलन का उदय धर्म सुधारकों के अंत:करण की आवाज के साथ हुआ। धर्म के विकृत स्वरूप से उनकी आंदोलन के रूप में प्रवाहित होने लगी। धर्म-सुधार आंदोलन के लिए अग्रलिखित कारण उत्तरदायी थे —
(i) चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार- चर्च, सत्तासंपन्न बनकर भ्रष्टाचार और अनैतिकता की दलदल में आकंठ डूब गया था,
अत: उसके विरोध में धर्म-सुधार आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
(ii) पोप की स्वेच्छाचारिता- पोप सर्वशक्तिसंपन्न बनकर स्वेच्छाचारी और विलासी बन गया था। उसकी स्वेच्छाचारिता से बचने के लिए धर्म-सुधार का क्रांतिकारी आंदोलन प्रारंभ हो गया।
(iii) शासकों की लालसाएँ- चर्च की संपत्तियों का अधिग्रहण करने के लिए शासकों की बढ़ती लालसाओं और
महत्वाकांक्षाओं ने धर्म-सुधार आंदोलन की अग्नि में घी का काम किया।
(iv) पुनर्जागरण का प्रभाव- पुनर्जागरण के प्रभाव ने लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करके उन्हें धर्म-सुधार के लिए प्रेरित किया। UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
(v) सुधरे हुए धर्म की आवश्यकता- चर्च, पादरियों और शासकों की बढ़ती हुई बुराइयों ने लोगों के समक्ष एक नए एवं सुधरे हुए धर्म की आवश्यकता प्रस्तुत की, जिसका नया अवतार धर्म-सुधार से ही आ सकता था।
(vi) राष्ट्रीयता का विकास- यूरोप में राष्ट्रवाद का शंखनाद होते ही राष्ट्रीयता की स्वरलहरी फूट निकली। लोगों ने
धर्म-सुधार के आलोक में राष्ट्र को अधिक महत्व देना प्रारंभ कर दिया।
(vii) प्रगतिशील विचारों का विकास- पुनर्जागरण ने जनसामान्य को तर्क और प्रगतिशीलता का गुण देकर उनमें
प्रगतिशील विचारों का बीजारोपण कर दिया, जिसने उन्हें शुद्ध, सात्विक और निर्मल धर्म स्वीकार करने की प्रेरणा दी।
(viii) आर्थिक शोषण- चर्च और पादरियों द्वारा वसूला जाने वाला कर और समस्त धन रोम चला जाता था। संपन्न पादरी करों से मुक्त थे। इस आर्थिक शोषण से मुक्ति पाने की राह, धर्म-सुधार आंदोलन के रूप में प्रकट हुई।
2. धर्म-सुधार आंदोलन के तत्कालीन समाज पर क्या प्रभाव पड़े?
उ०- धर्म-सुधार आंदोलन के परिणाम ( प्रभाव)- धर्म-सुधार आंदोलन ने यूरोप के समाज, धर्म, राजनीति एवं संस्कृति को गहराई तक प्रभावित किया। उसके प्रभाव निम्नलिखित थे
(i) प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय- धर्म-सुधार आंदोलन ने यूरोप के लोगों को प्रोटेस्टेंट धर्म के रूप में एक नया धर्म प्रदान कर दिया। UP BOARD CLASS 10 SOCIAL SCIENCE CHAPTER 2 FULL SOLUTION धर्म-सुधार आंदोलन
(ii) कैथोलिक धर्म में सुधार- धर्म-सुधार आंदोलन ने कैथोलिक धर्म में आ गई बुराइयों का अंत कर दिया। (iii) धार्मिक सहिष्णुता पर बल- धर्म-सुधार आंदोलनों से ईसाई धर्म का पालन करने वाले देशों की एकता नष्ट हो गई। इससे धार्मिक सहिष्णुता और नैतिक मूल्यों का बोलबाला हो गया।
(iv) पूँजीवाद का उदय- उद्योग, व्यापार तथा व्यावसायिक नगरों का विकास होने से यूरोपीय देशों में पूँजीवाद का उदय हो गया।
(v) चर्च पर राजा का आधिपत्य- धर्म-सुधार आंदोलन ने चर्च और पादरियों के अधिकारों को सीमित करके चर्च पर राजा के आधिपत्य को स्थापित करने का पथ प्रशस्त कर दिया।
(vi) आधुनिक युग का शुभारंभ- धर्म-सुधार आंदोलन के कारण मध्य युग के सूर्य का अवसान होने के साथ ही आधुनिक युग के सूर्य का उदय हो गया और विश्व ने नवीन प्रगतिशील युग में प्रवेश किया।
(vii) धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद- बाइबिल का कई अन्य भाषाओं में अनुवाद होने के साथ ही अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुवाद का क्रम चल निकला, जिससे धर्म का प्रचार-प्रसार तीव्रता से हुआ।
3. भौगोलिक यात्राएँ क्या थीं? उन्हें करने के पीछे उत्तरदायी चार कारण लिखिए।
उ०- भौगोलिक खोज-यात्राएँ- पुनर्जागरण ने नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार देकर उद्योग और व्यवसायों को फूलने-फलने का मौका दिया, अतः पूँजीपतियों, शासकों और धर्म प्रचारकों में यश और सोना कमाने की होड़ लग गई। निर्धन और निर्बल देश, धर्म प्रचार के साथ-साथ यश और सोना कमाने के लिए अनुकूल सिद्ध हो सकते थे। अतः साहसी नाविकों ने शासकों से आर्थिक सहयोग लेकर अपने-अपने दल-बल के साथ नए क्षेत्रों की भौगोलिक खोज करने के लिए लंबी-लंबी यात्राएँ करनी प्रारंभ कर दीं।
“इतिहास में नवजागरण काल भौगोलिक खोज-यात्राओं के काल के नाम से प्रसिद्ध है।” इस काल में पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस तथा जर्मनी देशों के नाविकों ने अपनी साहसपूर्ण भौगोलिक खोज-यात्राओं से अनजाने समुद्री मार्ग खोजकर नए-नए देशों से संसार को परिचित कराया। भौगोलिक खोज-यात्राओं के कारण- भौगोलिक खोज-यात्राओं के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे |
(i) कुतुबनमा का आविष्कार- मार्को पोलो ने कुतुबनुमा यंत्र के माध्यम से दिशाओं का ज्ञान कराकर समुद्री यात्राओं को निर्विध बना दिया, अत: नाविक खोज यात्राओं पर निकल पड़े।
(i) मार्को पोलो की यात्रा- मार्को पोलो ने वेनिस से चीन तक की यात्रा करके अपने लेखों से नाविकों के हृदयों में नई भौगोलिक खोज-यात्राएँ करने की महत्वाकांक्षाएँ जगा दीं।
(ii) पृथ्वी के गोल होने का प्रमाण- भूगोलविदों ने पृथ्वी के गोल होने का प्रमाण देकर साहसी नाविकों के हृदयों से अज्ञात भय को भगा दिया। अब वे लंबी समुद्री यात्राओं पर निकल पड़े।
(iv) जिज्ञासा- मनुष्य नए स्थानों को जानने तथा उनका परिचय प्राप्त करने की प्राकृतिक जिज्ञासा रखता है। इसी जिज्ञासा ने भौगोलिक खोज-यात्राओं का श्रीगणेश किया।
(v) धन कमाने की लालसा- यूरोपीय व्यापारी विदेशों में जाकर धन कमाना चाहते थे, अतः उन्होंने नाविकों को खोत्र-यात्राओं के लिए आर्थिक मदद देकर प्रेरित किया।
4. भौगोलिक खोज-यात्राओं के विश्व पर पड़ने वाले छः प्रभावों को स्पष्ट कीजिए। उ०- भौगोलिक खोज-यात्राओं के परिणाम- भौगोलिक खोज-यात्राओं ने समुद्री मार्गों का पता देकर अपरिचित स्थानों की
सभ्यता और संस्कृति से समूचे विश्व को परिचित कराया। इस कार्य में कुतुबनुमा और दूरबीन नामक यंत्रों ने बड़ी सहायता की। कैपलर और कॉपरनिकस ने ग्रहों और पृथ्वी के संबंध में अपने सिद्धांत प्रस्तुत कर नाविकों का मार्गदर्शन किया। भौगोलिक खोज-यात्राओं के उल्लेखनीय परिणाम निम्नलिखित थे |
(i) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने अनेक नए-नए देशों और क्षेत्रों को समूचे विश्व से परिचित करा दिया।
(ii) भौगोलिक खोज-यात्राओं के परिणामस्वरूप यूरोप में नवीन सभ्यता और संस्कृति का उदय हो गया।
(iii) भौगोलिक खोज-यात्राएँ धर्म प्रचार करने तथा सोना और यश कमाने का साधन बनकर उदित हुईं।
(iv) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने यूरोपीय शक्तियों को साम्राज्य बढ़ाने तथा उपनिवेश स्थापित करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान किया। भौगोलिक खोज-यात्राओं ने नाविकों के लिए पूरे विश्व के समुद्री मार्ग सुलभ करा दिए।
(vi) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने व्यापार को कई गुना बढ़ाकर धन कमाने का रास्ता दिखा दिया।
(vii) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने भारत को महासागरीय मार्ग द्वारा सीधा यूरोप से जोड़ दिया।
(viii) भौगोलिक खोज-यात्राओं ने लोगों को इस सत्य से भी परिचित कराया कि महासागर, जो महाद्वीपों को पृथक करते हैं, यात्राओं द्वारा उन्हें जोड़ भी देते हैं।
भौगोलिक खोज-यात्राओं ने समूचे विश्व को परस्पर जोड़ने, औद्योगिक और व्यापारिक विकास करने तथा सभ्यता और संस्कृति को समूचे विश्व में अपने पंख फैलाकर विचरण करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिया। धर्म-सुधार आंदोलनों और भौगोलिक खोज-यात्राओं ने एक नए आध्यात्मिक एवं आर्थिक युग का सूत्रपात कर दिया।