Up board class 10 social science chapter 14 सविनय अवज्ञा आंदोलन
पाठ - 14 सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
उ०- 1929 ई० में कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति के लक्ष्य की घोषणा के बाद भारतवासियों में अंग्रेजों के विरूद्ध जोश बढ़ता गया। 14 फरवरी, 1930 ई० को साबरमती में कांग्रेस ने महात्मा गाँधी को ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ चलाने का अधिकार प्रदान किया। इस आंदोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों का उल्लंघन करके सरकार के विरूद्ध रोष प्रकट करना था। 12 मार्च, 1930 ई० को महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ डांडी यात्रा से किया। गांधी जी पैदल ही अपने अनुयायियों के साथ गुजरात के समुद्री तट तक स्थित डांडी नामक स्थान पर पहुँचे और वहाँ नमक बनाकर सरकार का नमक कानून तोड़ा। इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना शुरू कर दिया। आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज-सरकार ने गांधी जी तथा जवाहरलाल नेहरू सहित प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके फलस्वरूप देश में जगह-जगह हड़तालें तथा प्रदर्शन हुए और अनेक लोग जेल गए। जनवरी 1931 ई० में नेताओं को कारावास से मुक्त कर दिया गया। मार्च 1931 ई० में गांधी जी तथा इरविन के बीच समझौता होने के बाद भी आंदोलन 1934 ई० में समाप्त हुआ ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों चलाया गया?
उ०- असहयोग आंदोलन के स्थगन के बाद लगभग 20 वर्षों तक गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार को भारत के प्रति अपनाई गई अपनी नीतियों को सुधारने एवं संशोधन करने का पूरा अवसर दिया। किंतु भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार के निरंतर अपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण से गांधी जी यह भली-भांति समझ गए कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वेच्छापूर्वक स्वराज्य प्रदान नहीं करेगी। अतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य समिति की सभा ने 1930 ई0 में पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का निश्चय किया तथा इसका संपूर्ण उत्तरदायित्व गांधी जी के सुपुर्द कर दिया। गांधी जी ने 2 मार्च, 1930 ई० को लार्ड इरविन को पत्र लिखा; परंतु उसका कोई प्रभाव होता हुआ न देखकर गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का दृढ़ निश्चय किया। गांधी जी ने इस आंदोलन का शुभारंभ 12 मार्च, 1930 ई० को दांडी मार्च से किया ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए?
उ०- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए
(i) सविनय अवज्ञा आंदोलन भारी संख्या में भारतीयों को एकजुट करने में सफल हुआ।
(ii) इस आंदोलन में मजदूरों, किसानों और महिलाओं से लेकर उच्चवर्ग के लोगों ने पूर्ण निष्ठा से अपनी सहभागिता निभाई। (iii) अंग्रेजी सरकार के अन्यायों और बर्बर दमन-चक्र के बाद भी जनसाधारण ने अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा ।
(iv) इस आंदोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीयता के साथ-साथ आत्मबल का भी संचार किया।
(v) इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दुर्बलताओं का पर्दाफाश कर दिया।
(vi) कांग्रेस के पास भविष्य के लिए आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह जनसमर्थन का भरपूर सदुपयोग नहीं कर सकी ।
गाँधी जी-इरविन समझौते पर एक टिप्पणे लिखिए ।
उ०- गाँधी-इरविन समझौता- प्रथम गोल मेज सम्मेलन से भारत को कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। 5 मार्च, 1931 ई० को गाँधी जी की शर्तों पर वायसराय इरविन ने जो समझौता किया, उसे गाँधी-इरविन समझौता (दिल्ली पैक्ट) नाम दिया गया। समझौते के अनुसार गाँधी जी सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखेदव को न तो जेल से मुक्त करा सके और न उनकी फाँसी की सजा माफ करा सके। अत: 1931 ई० में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में गाँधी जी को काले झंडे दिखाए गए। फिर भी सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों के कारण कांग्रेस ने गाँधी-इरविन समझौता स्वीकार कर लिया और गाँधी जी को भारतीय प्रतिनिधि के रूप में द्वितीय गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए अधिकृत कर दिया।
गाँधी जी के डांडी मार्च पर एक टिप्पणी लिखिए।
उ०- डाँडी मार्च- महात्मा गाँधी ने अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ 12 मार्च, 1930 ई० को अहमदाबाद से डाँडी तक नमक कानून तोड़ने के लिए पैदल मार्च प्रारंभ किया। इसे इतिहास में डाँडी मार्च नाम दिया गया। दो सौ मील लंबी यह पैदल यात्रा 24 दिन में पूरी हुई। 5 अप्रैल, 1930 ई० में गाँधी जी अपने दल-बल के साथ डाँडी पहुँच गए। वहाँ एकत्र भीड़ ने उनका स्वागत किया। 6 अप्रैल को प्रातः प्रार्थना के बाद गाँधी जी ने सागर के जल को उबालकर नमक कानून तोड़ा। सुभाषचंद्र बोस ने गाँधी जी के डाँडी मार्च को नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनी के रोम मार्च जैसा गौरवपूर्ण बताया। डाँडी मार्च ही सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुभारंभ था ।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
गाँधी जी द्वारा चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण तथा कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
उ०- सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण- महात्मा गाँधी द्वारा 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया, उसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे
(i) ब्रिटिश शासन के अन्याय, शोषण और उपेक्षाओं के कारण भारत में शांति एवं सुरक्षा-व्यवस्था भयावह बन चुकी थी।
किसान, मजदूर एवं जनसामान्य ने इस अव्यवस्था और कुशासन से मुक्ति पाने के लिए गाँधी जी को आंदोलन चलाने के लिए प्रोत्साहित किया।
(ii) साइमन कमीशन के विरोध में उभरे जनमत और जन आंदोलन ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी।
(iii) 10 अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसे अंग्रेजी सरकार ने ठुकराकर नए आंदोलन के लिए वातावरण तैयार कर दिया ।
(iv) सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात के वारदौली ग्राम में किसानों के आंदोलन को सफलता मिली, उसने असहयोग आंदोलन चलाने के लिए प्रेरणा और जोश उत्पन्न कर दिया ।
(v) गाँधी जी ने सत्याग्रह को आंदोलन का अस्त्र बनाकर लड़ने का मन बना लिया था, उसका सर्वत्र समर्थन होने से यह आंदोलन प्रारंभ हो गया।
(vi) गाँधी जी के समक्ष तत्कालीन अराजकता और अन्याय से लड़ने का अन्य कोई उपाय नहीं था, अतः उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने के लिए विवश होना पड़ा।
(vii) गाँधी जी सरकार से वार्ता कर भारत की स्वतंत्रता का प्रश्न सुलझाना चाहते थे; परंतु सरकार से उन्हें उपेक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। यही उपेक्षा सविनय अवज्ञा आंदोलन का कारण बन गई।
(viii) गाँधी जी तथा अन्य नेताओं को इन समस्त परिस्थितियों से लड़ने का एकमात्र उपाय सविनय अवज्ञा आंदोलन ही लगा,
अत: उन्होंने इसे प्रारंभ कर दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम- 6 अप्रैल, 1930 ई० को महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रम की रूपरेखा निम्नवत् प्रस्तुत की
(i) भारतवासियों को नमक बनाना चाहिए।
(ii) हिंदू लोग अस्पृश्यता को त्याग दें।
(iii) विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाए।
(iv) शराब की दुकानों पर धरना दिया जाए।
(v) सरकारी स्कूल एवं कालेजों का विद्यार्थियों द्वारा बहिष्कार किया जाए।
(vi) सरकारी कर्मचारी कार्यालयों को छोड़ दें।
(vii) विदेशी वस्त्रों एवं वस्तुओं का बहिष्कार किया जाए।
(viii) भूराजस्व, लगान एवं अन्य करों के भुगतान पर रोक लगा दी जाए।
4 मई, 1930 ई० को अंग्रेज सरकार ने गाँधी जी को बंदी बना लिया। अन्य नेताओं ने भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन किया।
Up board class 10 social science chapter 13 गाँधी विचारधारा- असहयोग आंदोलन
2. सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्व और प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उ०- सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभाव- गाँधी जी ने इस आंदोलन को भी असफलता के रूप में समाप्त कर दिया; परंतु इस आंदोलन के बड़े दूरगामी परिणाम हुए। इस आंदोलन के प्रभावों को निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है
(i) सविनय अवज्ञा आंदोलन भारी संख्या में भारतीयों को एकजुट करने में सफल हुआ।
(ii) इस आंदोलन में मजदूरों, किसानों और महिलाओं से लेकर उच्चवर्ग के लोगों ने पूर्ण निष्ठा से अपनी सहभागिता निभाई। (iii) अंग्रेजी सरकार के अन्यायों और बर्बर दमन-चक्र के बाद भी जनसाधारण ने अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा।
(iv) इस आंदोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीयता के साथ-साथ आत्मबल का भी संचार किया।
(v) इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दुर्बलताओं का पर्दाफाश कर दिया।
(vi) कांग्रेस के पास भविष्य के लिए आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह जनसमर्थन का भरपूर
सदुपयोग नहीं कर सकी । सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व- सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक नई पृष्ठभूमि तैयार की । देश की समूची जनता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आत्मविश्वास से ओत-प्रोत होकर पुनः भावी आंदोलन के लिए कमर कसने में व्यस्त हो गई ।
Up board class 10 social science chapter 14 सविनय अवज्ञा आंदोलन
3—-प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय गोल मेज सम्मेलनों पर प्रकाश डालिए ।
उ०- प्रथम गोलमेज सममेलन (12 नवंबर, 1930 ई०)- ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडॉनल्ड ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 12 नवंबर, 1930 ई० को लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा तथा भारत के अन्य राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए जिनमें सर तेज बहादुर सप्रू, वी.एस. श्रीनिवास शास्त्री, मुहम्मद अली जिन्ना आदि प्रमुख थे। उस समय ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ अपनी चरम सीमा पर था; कांग्रेस के लगभग सभी महत्वपूर्ण नेता जेल में थे। अतः कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया। भारत की 85% जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस के इस सम्मेलन में सम्मिलित न होने के कारण भारतीय समस्याओं का उचित समाधान निकाल पाना संभव नहीं था। इस सम्मेलन में केंद्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना, संघात्मक व्यवस्था और प्रान्तीय स्वायत्ता जैसे संवैधानिक सिद्धांतों पर तो सहमति हो गई किन्तु सांप्रदायिक प्रतिनधित्व की समस्या पर विभिन्न दलों एवं वर्गों के प्रतिनिधि एकमत नहीं हो सके। इस सम्मेलन में हुए समझौते के अनुसार अंग्रेज सरकार ने महात्मा गाँधी और कार्य समिति के 19 सदस्यों को जेल से रिहा कर दिया ।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन- 7 सितंबर, 1931 ई० को द्वितीय गोल मेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में गाँधी ने पूर्ण उत्तरदायी शासन की माँग रखी, जबकि मोहम्मद अली जिन्ना तथा डॉ० भीमराव अंबेडकर ने पूर्ण उत्तरदायी शासन के स्थान पर अपनी-अपनी जातियों के लिए सुविधाओं की माँग रखी। ऐसे वातावरण में कोई उचित निर्णय होता न देख गाँधी जी दु:खी मन से भारत लौट आए। भारत आकर गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः छेड़ दिया। लार्ड विलिंगटन ने कांग्रेस के इस आंदोलन को कठोरता और बर्बरता से कुचलने का दृढ़ निश्चय कर लिया। भारतीय जनता भी दृढ़ निश्चय तथा पवित्र मन से आंदोलन कर रही थी, अतः अंग्रेज सरकार को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। यह आंदोलन 1934 ई० तक चला, जिससे जनता का धैर्य टूट गयाऔर गाँधी जी ने 7 अप्रैल, 1934 ई० को सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त कर दिया। तृतीय गोल मेज सम्मेलन- 17 सितंबर, 1932 ई० से 24 सितंबर, 1932 ई० तक तृतीय और अंतिम गोलमेज सम्मेलन लंदन में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं था। मात्र राजभक्त और संप्रदायवादी ही इसमें सम्मिलित हुए। इसी के अनुरूप भारत में भारत प्रशासन अधिनियम 1935 लागू किया गया।
Up board class 10 social science chapter 12 नवजागरण तथा राष्ट्रीयता का विकास (उदारवादी अनुदारवादी )